बुधवार, 21 दिसंबर 2016

मप्र की माटी में निखरा रॉ का 'सोनाÓ

भोपाल। मप्र कैडर के 1981 बैच के आइपीएस अधिकारी अनिल कुमार धस्माना को देश की खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) का प्रमुख बनाया गया है। यह मप्र के लिए गौरव की बात है। धस्माना उत्तराखंड के पौड़ी जिले के तोली गांव से हैं, लेकिन प्रशासनिक दक्षता को उन्होंने मप्र की माटी में निखारा। मप्र की माटी में निखरे इस 'सोनेÓ को देश की सुरक्षा की अहम जिम्मेदारी मिली है। ग्राम तोली निवासी स्व. महेशानंद धस्माना के सबसे बड़े पुत्र अनिल धस्माना की प्राथमिक शिक्षा गांव के ही प्राइमरी स्कूल में हुई। बाद में वे पिता के साथ दिल्ली चले गए और वहीं उनकी आगे की शिक्षा-दीक्षा हुई। भारतीय पुलिस सेवा में चयन होने पर उन्हें मध्य प्रदेश के इंदौर में बतौर एएसपी प्रथम तैनाती मिली। अपनी मेहनत और काबिलियत के दम पर वह आगे बढ़ते चले गए। उन्होंने कई देशों में देशहित से जुड़े कार्यों को अंजाम दिया। अब उन्हें सबसे अहम जिम्मेदारी मिली है। धस्माना 1993 में रॉ में शामिल हुए थे। 2 वर्षों के लिए नियुक्त हुए प्रमुख धस्माना ने पाकिस्तान सहित कई अन्य मोर्चों पर काम किया है। धस्माना को आतंक रोधी आप्रेशन के साथ इस्लामिक मामलों में विशेषज्ञता हासिल है। धस्माना अभी रॉ में नंबर दो की हैसियत रखते हैं। उन्हें बलूचिस्तान और आतंकवाद निरोधी मामलों में लंबा अनुभव है।
ईमानदार और कड़क छवि के आईपीएस
धस्माना अपनी बेहद ईमानदार और कड़क छवि के लिए पूरे प्रदेश में विख्यात रहे हैं। पटवा सरकार के दौरान इंदौर के पुलिस अधीक्षक बने धस्माना ने अपनी जवाबदारी निभाते हुए जो रंग दिखाए थे वो आज तक मध्यप्रदेश के हर फील्ड के लोगों को याद हैं। इंदौर के मशहूर गुंडे बाला बेग के आतंक को खत्म करने में धस्माना का सबसे अहम रोल रहा है। बाबरी कांड के चलते मध्यप्रदेश के कई बड़े शहर जिसमें इंदौर भी शामिल रहा है, में कानून व्यवस्था की स्थिति खराब थी। धस्माना ने उस दौर में अहम भूमिका निभाते हुए राजनीतिक और रसूखदार लोगों को पुलिसिंग से रूबरू कराया था। बाबरी मस्जिद के बाद पटवा सरकार बर्खास्तगी होते ही प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया था और उस दौरान तत्कालिक राज्यपाल रहे कुंवर महमूद अली खान को पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ला का दायां हाथ माना जाता था। राष्ट्रपति शासन में पटवा सरकार की बर्खास्तगी होते ही पूरी तरह से नियंत्रण विद्याचरण शुक्ल के हाथों में आ गया था जो जग जाहिर रहा है। उस दौरान राजभवन से लिए जाने वाले सारे प्रशासनिक निर्णय वीसी शुक्ला के कहने पर ही होते थे।
मैं वही करूंगा जो पब्लिक के लिए ठीक है अनिल कुमार धस्माना को भारत सरकार ने रॉ के चीफ के रूप में नियुक्त किया है, अपनी बेबाकी और ईमानदारी के चलते 1991 बाद अनिल धस्माना लंबे समय से दिल्ली में अहम पदों पर भूमिका निभाते रहे हैं। 1981 से 1991 के इंदौर के एसपी कार्यकाल के दौरान पॉवरफुल कांग्रेस नेता विद्याचरण शुक्ल से धस्माना का टकराव जबरदस्त सुर्खियों में रहा। उस दौरान हुए वाक युद्ध में रॉ के चीफ धस्माना ने विद्याचरण शुक्ल को दो टूक कहा था कि मैं किसी के चरणों में झुकने वाला एसपी नहीं हूं।
नया साल, नई चुनौतियां
देश की प्रमुख खुफिया एजेंसी रॉ के नए मुखिया धस्माना की नियुक्ति दो साल के लिए की गई हैं। धस्माना पिछले 23 सालों से रॉ में काम कर रहे हैं। धस्माना को बलूचिस्तान मामलों का विशेषज्ञ माना जाता है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान मामलों में खासा अनुभव के कारण सरकार ने धस्माना को चुना है। धस्माना लंदन, फ्रैंकफर्ट, सार्क और यूरोपिय डेस्क पर काम कर चुके हैं। सरकार की नई बलूचिस्तान नीति में धस्माना के अनुभव का फायदा लिया जाएगा। पाकिस्तान ने भी हाल ही में अपने नए आईएसआई प्रमुख की नियुक्ति की है। अनिल कुमार धस्माना के लिए नया साल नई चुनौती लेकर आने वाला है। नया साल मोदी सरकार के लिए भी कठिन चुनौती भरा साबित होने वाला है। नोटबंदी की जो सर्जिकल स्ट्राइक की गई है, उसका असर नए साल में भी देखने के मिलेगा और इन अधिकारियों के रोल भी अहम साबित होंगे। उनकी नियुक्ति में एनएसए अजित डोभाल की भूमिका अहम मानी जा रही है।
धस्माना का इतिहास डोभाल की तरह रोचक है राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की ही तरह रॉ के नए चीफ अनिल धस्माना का इतिहास भी काफी रोचक रहा है। 1981 बैच के आईपीएस अफसर धस्माना यूं तो मूल रूप से उत्तराखंड के रहने वाले हैं, लेकिन उन्हें करियर में पहली पहचान मिली बतौर इंदौर एसपी, जो संयोग से एसपी के पद पर उनकी पहली पोस्टिंग भी थी। बहुत कम लोग जानते हैं कि एक दौर में मिनी मुंबई यानी मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर में माफिया राज था। यहां के एक इलाके में फिल्मों की तरह माफियाराज चलता था, जिसके अपने उसूल और कायदे थे। यह इलाका शहर के बीच में होने के बावजूद आम आदमी तो छोडि़ए, यहां पुलिस भी कदम रखने से डरती थी। ऐसे दौर में इंदौर एसपी की कमान संभालने वाले अनिल धस्माना ने जिस तरह पुलिसिंग की, उसने इस शहर को हमेशा के लिए बदल दिया। उनके एसपी रहते ही वर्ष 1990 में ऑपरेशन बंबई बाजार चला और पूरा क्षेत्र हमेशा के लिए आंतक व अवैध गतिविधियों से मुक्त हो पाया।
ऑपरेशन बंबई बाजार 1990 में इंदौर डीआईजी का पद संभालने वाले पूर्व डीजीपी एसके दास भी धस्माना की कार्यप्रणाली के मुरीद हैं। दास का कहना है, धस्माना निष्पक्ष व बिना किसी डर के कार्रवाई करने वाले अधिकारी हैं। 1990 में घटनाक्रम को याद करते हुए दास कहते हैं, उस समय बंबई बाजार का पूरे क्षेत्र में आतंक था। जब तक 50-60 पुलिसकर्मी न हो तब तक उस इलाके में अंदर नहीं जा सकते था। ऑपरेशन बंबई बाजार इंदौर से आतंक और माफिया राज के खात्मे के लिए चलाए गए पुलिस अभियान को नाम दिया गया था। जिस्मफरोशी, सट्टे और जुए के अड्डे के लिए बदनाम बंबई बाजार, इंदौर के दामन पर काला दाग था। धस्माना के नेतृत्व में करीब एक पखवाड़े तक चले अभियान के बाद बंबई बाजार से माफियाराज का अंत हुआ था। इस दौरान हिंसा भी हुई, जिसके चलते शहर कई दिन कफ्र्यू के साए में भी रहा, लेकिन धस्माना की धमक के आगे हर चुनौती छोटी साबित हुई। बंबई बाजार से अनैतिक गतिविधियों का संचालन करने वाले हर व्यक्ति को खदेड़ दिया गया या फिर सलाखों के पीछे पहुंचा दिया गया। इस दौरान घरों के अंदर बने तहखाने, सड़क पर कब्जा कर किए गए निर्माण और सीढिय़ों को ध्वस्त किया गया। हाल ही पुलिस सेवा से रिटायर हुए देशराज सिंह बताते हैं, अनिल धस्माना बेहद दबंग अफसर हैं। उन्हें जब अनैतिक गतिविधियों की जानकारी मिली तो कार्रवाई के लिए एसआई गजेंद्र सिंह सेंगर और सिपाही श्याम वीर को भेजा गया था। उस दौर में बंबई बाजार में माफियाराज चलता था, ऐसे में पुलिस का वहां पहुंचना ही बड़ी बात थी। बंबई बाजार में समानांतर सत्ता चला रहे लोगों के लिए पुलिस का आना रास नहीं आया। उन्होंने न केवल दोनों पुलिसकर्मियों पर हमला कर दिया बल्कि पुलिस चौकी में भी गदर मचाया।
20 मिनट में सैनिक छावनी बना बंबई बाजार एसपी धस्माना जैसे बेहद दबंग और ईमानदार अफसर ने फिर जो किया उसने हमेशा के लिए इंदौर का इतिहास बदल दिया। बताते हैं कि जिस बंबई बाजार में पुलिस कदम रखने से डरती थी, वहां 20 मिनट के भीतर हर घर पर पुलिस का सख्त पहरा था। प्रशासन, पुलिस और नगर निगम में संयुक्त रूप से अवैध निर्माण, जुए और सट्टे के अड्डे के अलावा वेश्यालयों को ध्वस्त कर दिया।
अंगरक्षक ने शहीद होकर बचाई जान कार्रवाई के दौरान एसपी धस्माना अपने अमले के साथ बेग परिवार के घर के बाहर पहुंचे थे। पुलिस की कार्रवाई से उनका पूरा साम्राज्य ध्वस्त हो रहा था। इस वजह से सबसे ज्यादा नाराजगी एसपी को लेकर थी। बताते हैं कि ऑपरेशन बंबई बाजार के दौरान अनिल धस्माना की जान लेने की कोशिश की गई थी। बेग परिवार के घर में सर्चिंग अभियान के वक्त छत से मसाला कूटने की सिल्ली उन्हें निशाना बनाकर फेंकी गयी थी। एसपी का ध्यान नहीं था, लेकिन सतर्क अंगरक्षक छेदीलाल दुबे ने धक्का देकर उनकी जान बचाई थी, दुर्भाग्य से सिल्ली सिर पर गिरने से छेदीलाल शहीद हो गए। एसपी के लिए ये बेहद मुश्किल घड़ी थी, लेकिन उन्होंने भावनाओं को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। वो बोले कुछ नहीं लेकिन अगले एक पखवाड़े में उन्होंने माफिया का नेटवर्क पूरी तरह से खत्म कर दिया। इंदौर में आज भी धस्माना के कार्यकाल की मिसाल दी जाती है।
पिकनिक स्पॉट बना बंबई बाजार शहर में एक दौर ऐसा भी था, जब बंबई बाजार जाना बड़ी बुरी बात मानी जाती थी। ऐसे में ऑपरेशन बंबई बाजार ने इस इलाके की तस्वीर बदल गई, तो कई सप्ताह तक मेले जैसा माहौल रहा। उस दौर को याद करते हुए जोशी बताते हैं कि महिलाएं भी बड़ी संख्या में यहां आकर बंबई बाजार की मायावी दुनिया को देखना चाहती थी। इंदौर एसपी रहने के कुछ समय बाद अनिल धस्माना केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर चले गए, जिसके बाद उन्होंने मुड़कर पीछे नहीं देखा।

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