गुरुवार, 14 मार्च 2013

अफसरों के आगे पंगू बने सात मंत्री

भोपाल। प्रदेश सरकार में 7 मंत्री ऐसे हैं जिन्हें पद और प्रतिष्ठा तो मिला है लेकिन उनके पास करने के लिए कोई काम नहीं हैं। ऐसा भी नहीं है कि विभाग के पास काम नहीं है। विभागों में काम की भरमार है,लेकिन अधिकारी स्व-विवेक से फाइलें निपटा देते हैं और मंत्री को पता ही नहीं चलता है। हां,मंत्रियों को विधानसभा में सवालों के उत्तर देने की आजादी तो मिलती है, लेकिन महत्वपूर्ण फैसले और फाइलों के मामलों में ऐसा नहीं होता। हाल ही में दो मंत्रियों की जिम्मेदारी भी बढ़ाई गई, लेकिन इनके पास फाइलें ही नहीं पहुंच रही हैं। पर्यटन, खेल एवं युवा कल्याण मंत्री तुकोजीराव पवार के बीमार होने के कारण मुख्यमंत्री ने इनके विभागों की जिम्मेदारी राज्यमंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह को दे दी। लोक सेवा प्रबंधन विभाग का स्वतंत्र प्रभार संभाल रहे मंत्री सिंह के पास किसान कल्याण तथा कृषि विभाग की जिम्मेदारी पहले से ही है। इसी प्रकार अनुसूचित जाति एवं जनजाति कल्याण विभाग के राज्यमंत्री हरिशंकर खटीक को घुमक्कड़ एवं अर्धघुमक्कड़ विभाग की जिम्मेदारी भी दी गई है। इसके पहले इस विभाग की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री स्वयं संभाल रहे थे। इन्हें इस विभाग की जिम्मेदारी तो मिल गई, लेकिन महकमे की फाइलें इनके पास नहीं पहुंच रही हैं। कुछ ऐसी ही स्थिति खेल एवं युवा कल्याण विभाग की है। यहां की महत्वपूर्ण फाइलें मुख्यमंत्री के पास ही जाती हैं। इतना जरूर है कि विधानसभा सत्र के दौरान विधायकों के सवाल देने के लिए इन्हें अधिकृत किया गया है। इनके पास भी पॉवर की कमी पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग राज्य मंत्री देवी सिंह, परिवहन, जेल एवं गृह राज्यमंत्री नारायण सिंह कुशवाह, वन एवं राज्यमंत्री जयसिंह मरावी, स्कूल शिक्षा राज्यमंत्री नानाभाऊ मोहोड़, नगरीय प्रशासन राज्यमंत्री मनोहर ऊंटवाला ऐसे राज्यमंत्रियों में शुमार हैं, जिनके पास अधिकाों की कमी है। इसमें से कुछ मंत्री तो ऐसे हैं, जिनके पास विभागों की फाइलों ही नहीं पहुंचती हैं। कैबिनेट मंत्रियों की गैर मौजूदगी में इन्हें विधानसभा मे विधायकों के सवालों का जवाब देने का मौका जरूर मिल जाता है। इनके पास कोई जिम्मेदारी नहीं लंबे समय से बीमार चल रहे कैबिनेट मंत्री तुकोजीराव के पास अब सरकार में किसी भी प्रकार की जिम्मेदारी नहीं है। मुख्यमंत्री इनके विभाग खेल एवं युवा कल्याण जिम्मेदारी किसान कल्याण एवं कृषि राज्यमंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह को पहले ही दे चुके हैं, अब इनके प्रभार का जिला दतिया की जिम्मेदारी भी बृजिन्द्र प्रताप सिंह को दे दी गई है। शनिवार को इस संबंध में अधिसूचना जारी कर दी गई है। इस तरह सिंह अब कैबिनेट में सबसे अधिक जिलों के प्रभारी मंत्री हो गए हैं। मालूम हो कि इसके पास होशंगाबाद औरा रायसेन जिले का प्रभर प्रहले से ही है, दतिया की जिम्मेदारी मिलने के बाद अब ये तीन जिलों के प्रभारी मंत्री हो गए हैं।

जनता को ढ़ूंढऩे निकलेंगे मंत्री

भोपाल। प्रदेश में भाजपा की सत्ता की हैट्रिक को लेकर टीम शिवराज और टीम तोमर भले ही आश्वस्त हो लेकिन आलाकमान किसी भी गफलत में नहीं रहना चाहता है। इसलिए उसने प्रदेश संगठन को निर्देश दिया है कि विधानसभा के बजट सत्र के बाद मंत्रियों को उनके विधानसभा क्षेत्र और प्रभार वाले जिलों में सघन जनसंपर्क करने की कार्ययोजना तैयार करे। संगठन से निर्देश मिलते ही मंत्री मंत्रालय छोड़ जनता को ढूंढऩे(कौन सरकार से खुश है और कौन नाखुश)निकल पड़ेंगे। महाजनसंपर्क अभियान की रिपोर्ट के बाद बनेगी कार्ययोजना 20 फरवरी को महाजनसंपर्क अभियान की समाप्ति के बाद संगठन अपने रणनीतिकारों के साथ बैठ कर कार्ययोजना तैयार करेगा। कार्ययोजना में क्षेत्र की समस्या और उसके समाधान,जनता की भाजपा से नाराजगी की वजह, कांग्रेस की क्षेत्र में स्थिति और कांग्रेस के प्रभाव को कम करने के उपायों का भी समावेश रहेगा। उल्लेखनीय है कि प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में प्रदेश प्रभारी अनंत कुमार ने भी मंत्रियों और विधायकों को फील्ड में रहने की हिदायत दी थी। शिव,तोमर और मेनन पर दारोमदार आगामी विधानसभा चुनाव में संघ और संगठन के विभिन्न सर्वे में कई मंत्रियों और विधायकों की स्थिति पतली बताई गई है। इससे भाजपा में चिन्ता की लकीरें हैं। पार्टी के माथे पर बल लगातार गहरा हो रहा है। मुख्यमंत्री भले ही कितने भी लोकप्रिय क्यों न हो किन्तु सत्ता विरोधी रुझान कम नहीं हो रहा। इसके अलावा विधायकों के प्रति नाराजगी भी बढ़ती जा रही है। पार्टी के आंतरिक सर्वे ने प्रदेश नेतृत्व को सोचने पर मजबूर कर दिया है। इस सर्वे में परम्परागत सीटें छोड़ कर बाकी जगह प्लस-मायनस का गुणा भाग सामने आया है। इन सीटों पर भाजपा को मजबुत करने का दारोमदार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान,प्रदेश अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर और संगठन मंत्री अरविंद मेनन पर है। ब्रांड शिवराज को भुनाने के लिये विशेष कार्य योजना मुख्यमंत्री के कुछ विश्वस्त अफसरों व पार्टी नेताओं ने बनाई है। परदे के पीछे कार्य करने वाले दो भाजपा पदाधिकारियों की देखरेख में जो रणनीति बनाई गई है उसके अनुसार मुख्यमंत्री निकट भविष्य में पूरे प्रदेश का दौरा करेंगे। इस दौरान सभी 230 विधानसभा क्षेत्र का जायजा लिया जायेगा। शहर से ज्यादा प्राथमिकता ग्रामीण इलाके को दी जायेगी। मुख्यमंत्री की इस यात्रा के दौरान तोमर और मेनन भी रहेंगे। मिशन 2013 के लिए टारगेट फिक्स प्रदेश में मिशन 2013 के लिए आलाकमान ने टारगेट फिक्स कर दिया है। उसने प्रदेश के नेताओं को एक लाइन की यह हिदायत दी है कि हर हाल में इस बार प्रदेश में सत्ता बरकरार रखना है। यही वजह है कि महाजनसंपर्क अभिायान के बाद उसने मंत्रियों को मैदानी मोर्चा संभालने का निर्देश दिया है। प्रदेश में उसे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर ही भरोसा है। कई मंत्रियों की विवादस्पाद कार्यशैली से वह बेहद खफा हैं। इसीलिए उसने मंत्रियों से कह दिया है कि वे अब मंत्रालयों में बैठकर अपना वक्त जाया नहीं करें बल्कि निर्वाचन क्षेत्रों में पहुंचकर जनता के दुखदर्द की फेहरिस्त बनाएं। भाजपा के मंत्रियों ने इसे टारगेट 2013 नाम दिया है। मंत्रियों को हिदायत दी गई है कि वे सरकार की उपलब्धियों से जनता को अवगत कराएं। कुछ मंत्री इस काम को आसानी से अंजाम देने में सक्षम हैं, लेकिन दिक्कत आएगी उन मंत्रियों को जो मंत्री पद मिलने के बाद से ही जनता से कट गए हैं। चुनाव के सिलसिले में अब तक हुई दर्जन से ज्यादा बैठकों में विधायकों और सांसदों ने बिजली, पानी, सड़क और भ्रष्टाचार के मुद्दों को उठाकर अपनी-अपनी परेशानी बताई। विवादस्पद मंत्रियों और विधायकों के टिकट काटने तक की चर्चा हुई। पार्टी ने इस पर कड़े फैसले इस अंदेशे से नहीं लिए की कहीं पार्टी में बगावत न हो जाए। आखिरकार बीच का रास्ता निकाल गया जिसके तहत यह तय किया गया कि मंत्री अब मंत्रालयों में न बैठकर निर्वाचन क्षेत्रों में जाएं, जनता के सवालों का जवाब दें, उनकी समस्याओं का समाधान करें और यह देखें की चुनाव के दौरान आने वाली चुनौतियों का सामना किस तरह किया जा सकता है। यही वजह है कि मंत्रियों ने विधानसभा सम्मेलनों में रूचि दिखाई। यद्यपि इस दौरान वे जनता पर खास असर नहीं छोड़ पाए। क्योंकि क्षेत्रीय जनता ने उनके बारे में यही टिप्पणी की कि चुनाव नजदीक आते ही अब मंत्रियों और विधायकों को वोट की चिंता सताने लगी है। यह समस्या सिर्फ भाजपा के साथ ही नहीं है, कई कांग्रेसी विधायकों से भी जनता की यही शिकायतें हैं। चूंकि भाजपा सत्ता में है इसलिए उनके विधायकों और मंत्रियों पर आक्रमण ज्यादा हो रहे हैं।

विंध्य की उपेक्षा भारी न पड़ जाए भाजपा को

भोपाल। प्रदेश में भाजपा की सरकार बनवाने में विंध्य क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका रही है लेकिन इस क्षेत्र के नेताओं को जितना तव्वजों कांग्रेस ने दिया है उतना भाजपा ने नहीं। यही कारण है कि विंध्य में भाजपा के पास ऐसा कोई बड़ा नाम नहीं है जिसको आगे करके पार्टी कांग्रेस के कदावर नेताओं की घेराबंदी कर सके। बावजुद इसके इस क्षेत्र की 30 विधानसभा सीटों में से 25 पर भाजपा का कब्जा है। चेहरा बदला है, समीकरण नहीं प्रदेश में भाजपा लगातार तीसरी बार सरकार बनाने की ओर अग्रसर है, लेकिन विधानसभा चुनाव को लेकर चुनावी रणनीति में एक बार फिर क्षेत्रीय राजनीति में भेदभाव का शिकार हो गई है। प्रदेश अध्यक्ष को लेकर भाजपा क्षेत्रीय संतुलन नहीं बना पाई और फिर उसने पुरानी रणनीति के तहत ही कदम बढ़ाते हुए चेहरा बदला है, समीकरण नहीं। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के बहाने सूबे में क्षेत्रीय संतुलन बना सकती थी, लेकिन वह इसे दरकिनार कर गई। दूसरी रूप में कहा जाए तो भाजपा में हमेशा ही की तरह मालवा और ग्वालियर क्षेत्र से बाहर अपने दायरे को बढ़ा नहीं सकी और विंध्य में अपनी पकड़ मजबूत बनाने के लिए कोई करिश्मा नहीं कर सकी, जबकि पार्टी की विंध्य में तो स्थिति ठीक है। यही नहीं प्रदेश संगठन की कमान नहीं मिलने के कारण विंध्य के लोगों को संगठन के अन्य पदों में भी उपेक्षा का शिकार होना पड़ा है। हालांकि, यह बात अलग है कि भाजपा की वर्तमान में विंध्य में 30 में से 25 सीटों पर कब्जा है, बावजूद इसके भाजपा ने विंध्य की उपेक्षा बरकरार रखी है। हालांकि, इसके पहले के चुनाव में जरूर यहां भाजपा की स्थिति पतली थी। विंध्य में अपना जनाधार बढ़ाने के लिए संगठन स्तर पर भाजपा की कोई रणनीति भी नहीं दिख रही है, ऐसे में फिर उम्मीद है कि आगामी विधानसभा चुनाव में विंध्य में भाजपा को तगड़ा झटका लगे। आंकड़ों पर गौर करें तो भाजपा में अब तक मालवा और ग्वालियर संभाग का ही दबदबा रहा है। जो अनवरत जारी है। भाजपा में अभी तक सबसे ज्यादा प्रदेश अध्यक्ष की कमान 14 प्रदेश अध्यक्षों में से 8 बार मालवा को कमान मिली है, जबकि तीन बार ग्वालियर को मौका मिला है। जनसंघ के समय था विंध्य का प्रभाव प्रदेश में भाजपा से पहले जनसंघ के समय विंध्य का काफी प्रभाव था। भाजपा के आने के बाद जहां विंध्य क्षेत्र की उपेक्षा बढ़ती गई, वहीं जनसंघ के समय विंध्य के साथ ही सभी क्षेत्रों को समान प्रतिनिधित्व का अवसर मिला था। जनसंघ के दौरान मप्र में करीब 10 प्रदेश अध्यक्ष बने, जिसमें से दो बार विंध्य को मौका मिला था, जबकि इसमें से एक बार महाकौशल, एक बार भोपाल, तीन बार मालवा, एक बार ग्वालियर और दो बार छग को मौका मिला था, लेकिन जनसंघ के विघटन और भाजपा के अस्तित्व में आते ही सबकुछ उल्टा हो गया।

प्रत्यासी ढूंढने प्रदेश भर का दौरा करेंगे सांसद

भोपाल। भाजपा के गढ़ के रूप में स्थापित हो रहे पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने जिस फॉर्मूले से भाजपा को हराया था उसी शैली में मैदानी राज्य मप्र को फतह करने की तैयारी कर रही है। इसके लिए प्रदेश के सभी 12 कांग्रेसी सांसद प्रदेश भर का दौरा करेंगे। इस दौरे के दौरान वे विधानसभा चुनाव के जीताऊ प्रत्यासियों की खोज के साथ ही क्षेत्रवार चुनावी रणनीति भी तैयार कर आलाकमान को देंगे। उसके आधार पर पार्टी रणनीति बनाकर चुनावी समर में उतरेगी। यह संकेत पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रदेश के सांसदों के साथ नई दिल्ली में हुई बैठक में दिया है। हिमाचल प्रदेश और गुजरात चुनाव से पार्टी में उत्साह हिमाचल प्रदेश और गुजरात चुनाव के बाद कांग्रेस में उत्साह का माहौल बना हुआ है। इन चुनावों में कांग्रेस अपनी रणनीति में सफल रही है। हिमाचल प्रदेश में जहां सत्ता उसके हाथ लगी है, वहीं गुजरात में भी कांग्रेस को नरेंद्र मोदी के मजबूत कुनबे में दो सीटें कम करने में सफलता मिली है। कांग्रेस का मानना है कि अगर 2013 में मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों में हिमाचल की नीति पर चलें, तो सफलता हाथ लग सकती है। वैसे देखा जाए तो प्रदेश कांग्रेस के लिए सबसे ज्यादा चुनौतियों भरा है। कांग्रेस यहां सबसे ज्यादा कमजोर है और इस कमजोरी का कारण सिर्फ और सिर्फ गुटबाजी है। क्या है हिमाचल फार्मूला मप्र की तरह ही हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस टूकड़ों में बंटी थी। वहां के दिग्गज नेता किसी की नहीं सुन रहे थे। आलाकमान ने सभी नेताओं को पार्टी या किसी भी नेता के खिलाफ जाने वालों को बाहर का रास्ता दिखाने की हिदायत के साथ लाख विरोधों के बावजूद भी वीरभद्र सिंह को कमान सौंपी दी। फार्मूले के अनुसार वीरभद्र ने विधानसभा क्षेत्रों का सर्वे सासदों,विधायकों और पदाधिकारियों से करवाया। उसके बाद एक रिपोर्ट तैयार कर आलाकमान को सौंपी गई और उसके आधार पर सभी को महत्व देते हुए प्रत्यासियों का चयन कर पार्टी मैदान में उतरी और वीरभद्र ने कांग्रेस को सत्ता दिला दी। आलाकमान का मानना है कि अगर यही प्रयोग मध्य प्रदेश में भी होता है, तो दस वर्ष बाद कांग्रेस वहां फिर से वापसी कर सकती है। दिग्विजय और सिंधिया के हाथ कमान मप्र में पार्टी की कमान कांतिलाल भूरिया के पास रहेगी और चुनावी कमान होगी दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के पास। कांग्रेस में व्याप्त गुटबंदी को कम करने के लिए यह कदम उठाया गया है। दिग्विजय और सिंधिया इसके लिए तैयार भी हैं और चुनावी सफलता के लिए राहुल मॉडल पर चुनाव लडऩे की तैयारी में लगे हैं। दिग्विजय सिंह सप्ताह भर पहले तक अपने दिल्ली स्थित कार्यालय और घर पर लगातार कार्यकर्ताओं से मिल रहे थे और उनकी शिकायतों को संजीदगी से ले रहे थे। वहीं केंद्रीय राज्य मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने तो प्रदेश में दौरा भी शुरू कर दिया है। राहुल मॉडल और हिमाचल फार्मूला का ही प्रभाव है कि लंबे अर्से दिग्विजय और ज्योतिरादित्य के बीच दूरियां कम होने लगी हंै। ऐसा माना जा रहा है कि ये सब राहुल गांधी के मॉडल पर चलने की शुरुआत है, ताकि इन आपसी दूरियों का फायदा कहीं शिवराज सिंह चौहान को न मिल जाए। दोनों के बीच घटती दूरियों का एक उदाहरण उस वक्त देखने को मिला, जब गुना में सिंधिया और दिग्विजय एक साथ पहुंचे, तो दिग्विजय सिंह खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया का स्वागत करने गए, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया और दिग्विजय द्वारा पहनाए गए हार को सिंधिया ने उन्हीं को पहनाकर जिंदादिली का परिचय दिया। जानकारों का भी कहना है कि इस तरह से निकटता बढ़ जाती है, तो निश्चित तौर पर आगामी चुनावों में इसका लाभ प्रदेश कांग्रेस को मिलेगा। इधर कुछ महिनों से देखा जा रहा है कि दिग्विजय सिंह अपने सभी विरोधियों से हाथ मिला रहे हैं। स्पष्ट है कि आगामी चुनावों में वे कोई भी विरोधी तेवर नहीं चाहते। इस प्रकार से कांग्रेस की राजनीति में लगातार हो रहे बदलावों का कितना असर होगा, यह तो वक्त ही बताएगा। लेकिन फिलहाल माहौल बनाने की कोशिशें लगातार की जा रही है। यह सिलसिला अगर जारी रहा, तो निश्चित तौर पर कांग्रेस को लाभ होगा। भूरिया को सुझाव 20 जुझारू और अनुभवी नेताओं की एक टीम बनाएं। दस नेता कार्यालय में बैठकर रणनीति बनाएंगे। दस नेताओं को मैदानी संघर्ष की जिम्मेदारी सौंपी जाए। मजबूत जनाधार वाले नेताओं को सक्रिय करें। बिना जनाधार वाले नेताओं को कांग्रेस में कोई जगह न दें। दिग्गज नेताओं को जिम्मेदारी सौंपे और उनके अनुभवों का लाभ लें। तेज-तर्रार विधायकों को सक्रिय करें और मतभेद दूर करें।

संघ की मेहनत...पंजे पर भारी पड़ेगा कमल

भोपाल। भाजपा के अंदुरूनी सर्वे में भले ही प्रदेश में पार्टी की स्थिति ठीक नहीं है लेकिन उज्जैन संभाग के छह जिलों(शाजापुर,देवास,रतलाम,मंदसौर,नीमच और उज्जैन) की 29 विधानसभा सीटों में से 23 पर भाजपा की स्थिति बेहतर बताई जा रही है। इसकी मुख्य वजह क्षेत्र में संघ की पकड़ और सक्रियता है। वर्तमान में संभाग की 29 विधानसभा सीटों में से 19 सीटों पर भाजपा का कब्जा है,जबकि कांग्रेस के पास 9 सीटें हैं,एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार के पास है। बताया जाता है कि 2008 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को संभाग की जिन सीटों पर हार का सामना करना पड़ा वहां संघ ने अपनी गतिविधियां बढ़ा दी और भाजपा के लिए वोट बैंक तैयार करना शुरू कर दिया। यहां भाजपा करेगी कमबैक पार्टी के सर्वे में भाजपा अपनी वर्तमान विधानसभा सीटों के अलावा उज्जैन जिले के नागदा खाचरोद,रतलाम जिले के रतलाम ग्रामिण,रतलाम सिटी और नीमच जिले की मनासा सीट पर अच्छी स्थिति में नजर आ रही है। नागदा खाचरोद में भाजपा के दिलीप सिंह शेखावत को कांग्रेस के दिलीप गुर्जर ने 9892 मतों से मात दी थी। 2003 के विधानसभा चुनाव में गुर्जर ने निर्दनीय चुनाव लड़ा था और भाजपा के लालसिंह राणावत को हराया था। अब इस सीट पर भाजपा को मजबुत स्थिति में बताया जा रहा है। रतलाम जिले की रतलाम ग्रामीण (एसटी)सीट पर भाजपा के मथुरालाल डामर को कांग्रेस की लक्ष्मीदेवी खराड़ी ने 2551 वोटों से हराया था,जबकि 2003 के विधानसभा चुनाव में यह सीट भाजपा के कब्जे में थी। भाजपा के धूलजी चौधरी ने कांग्रेस के मोतीलाल दवे को हराया था। 2008 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को सबसें बड़ा झटका रतलाम सिटी विधानसभा सीट पर लगा था। यहां निर्दलीय पारस सखलेचा ने तत्कालीन गृहमंत्री हिम्मत कोठारी को 29872 के मतों से मात देकर सबको चौका दिया था। बताया जाता है कि एक बार फिर से इस सीट पर भाजपा ने अपने आप को मजबुत कर लिया है। मनासा विधानसभा सीट पर भाजपा के पूर्व मंत्री कैलाश चावला को कांग्रेस के विजेन्द्र सिंह मालाखेड़ा 11485 मतों से हराया था। संघ की मेहनत से इस सीट पर भाजपा एक बार फिर मजबुत हो गई है। विकास नहीं संघ के नाम पर वोट इस संभाग से प्रदेश मंत्रिमंडल में चार मंत्री शामिल हैं,लेकिन विकास के मामले में पूरा क्षेत्र पिछड़ा हुआ है। देवास सीट से विधायक तुकांजीराव पंवार,मंदसौर जिले के मल्हारगढ़ के विधायक जगदीश देवड़ा परिवहन एवं जेल,उज्जैन उत्तर के विधायक पारस जैन खाद्य,नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण और आलोट के विधायक मनोहर ऊॅटवाल को नगरीय प्रशासन एवं विकास राज्य मंत्री बनाया गया है,लेकिन आरोप है कि संभाग में विकास के लिए मंत्रियों ने कोई विशेष प्रयास नहीं किया है। सर्वे में कहा गया है कि संभाग में संघ की सक्रियता और घर-घर में पहुंच ने यहां भाजपा को नुकसान नहीं होने दिया है। किसके पास कितनी सीट भाजपा तराना (अजा)-रोड़मल राठौर उज्जैन उत्तर-पारस जैन उज्जैन दक्षिण-शिवनारायण जागीरदार बडऩगर-शांतिलाल घवई आलोट (अजा)-मनोहर उटवाल मंदसौर-यशपाल सिसोदिया मल्हारगढ़ (अजा)-जगदीश देवड़ा सुवासरा-राधेश्याम पाटीदार नीमच- खुमान सिंह शिवाजी जावद-ओमप्रकाश सकलेचा सुसनेर-संतोष जोशी आगर (अजा)-लालजी राम शुजालपुर-जसवंत सिंह हाड़ा कालापीपल-बाबूलाल वर्मा सोनकच्छ (अजा)-फूलचंद वर्मा देवास-तुकोजीराव पवार हाटपिपल्या-दीपक जोशी खातेगाँव-बृजमोहन धूत बागली-चम्पालाल देवड़ा कांग्रेस- नागदा खाचरोद-दिलीप गुर्जर महिदपुर-कल्पना परूलेकर घटिया (अजा)-रामलाल मालवीय रतलाम ग्रामीण (एसटी-लक्ष्मीदेवी खराड़ी सैलाना (एसटी)-प्रभुदयाल गहलोत जावरा-महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा गरोठ -सुभाष सोजतिया मनासा-विजेन्द्र सिंह मालाखेड़ा शाजापुर-हुकुम सिंह कराड़ा निर्दलीय रतलाम सिटी-पारस सखलेचा

थ्री डी पोस्टरों से आईना दिखाएगी सरकार

भोपाल। प्रदेश में लगातार तीसरी बार सत्ता पर काबिज होने के लिए भाजपा के रणनीतिकार विधानसभा चुनावों के दौरान प्रदेश भर में शिवराज सिंह चौहान को महिमा मंडित करने नरेंद्र मोदी का थ्री डी फार्मूला अपनाने जा रहे हैं। इसके तहत भाजपा थ्री डी पोस्टरों के जरिए जहां शिवराज सरकार की योजनाओं का बखान करेगी वहीं कांग्रेस शासनकाल की बदहाली को लोगों के सामने परोसेगी। कांग्रेस को 2003 और 2013 की तस्वीर दिखाने की तैयारी मुंबई की एक कंपनी ने थ्री डी पोस्टरों को लेकर अपनी एक प्रस्तुति सरकार के सामने पेश की थी। उसके आईडिया को सरकार ने सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है। इन पोस्टरों की थीम भी तैयार कर ली गई है। अब उसे मूर्त रूप देने का काम तेजी से जारी है। सरकार इन थ्री डी पोस्टरों के जरिए जनता को यह बताएगी कि मध्यप्रदेश 2003 में कहां और कैसा था और अब 2013 में राज्य ने विकास की पायदानों को कितना चढ़ा है। थ्री डी पोस्टरों की खासियत यह रहेगी कि जब भी कोई व्यक्ति एक कोण से देखेगा तो उसे 2003 की तस्वीर दिखेगी। जब वह कोण बदलकर देखेगा तो 2013 का स्वरूप उसे नजर आएगा। 2003 बनाम 2013 के इन पोस्टरों में सड़क,बिजलीऔर पानी के साथ ही विकास के तमाम सूचकांकों के लिहाज से दिखाकर यह साबित करने की कोशिश की जाएगी कि कांग्रेस के दिग्विजय सिंह के दस साल के कार्यकाल के मुकाबले भाजपा सरकार के दस साल में कितना ज्यादा विकास किया। भाजपा इस बहाने शिवराज को विकास पुरूष के बतौर स्थापित करना चाहती है। भाजपा मीडिया सेल से जुड़े कार्यकर्ताओं की माने तो 2008 के चुनाव की तरह ही इस बार मोबाइल पर एसएमएस, कॉल और कॉलर ट्यून से प्रचार की तैयारी कर चुके हैं। नेट यूजर्स युवाओं से नेट के जरिए संपर्क किया जाएगा। जनवरी में हुई युवा पंचायत के जरिए भाजपा कार्याकर्ताओं ने इसमें शामिल हुए युवाओं का लेखा-जोखा रखा था। मीडिया सेल अब इसी डाटा के जरिए संपर्क साधने की तैयारी में है। यहां प्रचार हाईटेक प्रचार को मंजूरी मिलती है तो भाजपा चार बड़े व प्रमुख शहरों में इससे प्रचार करेगी। इनमें भोपाल, इंदौर, जबलपुर और ग्वालियर होंगे। इसके अलावा उन जिलों को भी शामिल किए जाने की योजना है, जिनकी ग्रामीण सीमाएं अधिक हैं। प्रचार में उन क्षेत्रों पर ज्यादा ध्यान रहेगा, जहां से 2008 के चुनाव में भाजपा को शिकस्त मिली थी। इनका कहना है ऐसी दो कंपनियों ने हमसे संपर्क किया है, जो थ्रीडी मॉड्यूल पर काम करती हैं। हमने उनके प्रपोजल्स का प्रजेन्टेशन देखा है। विचार-विमर्श के बाद ही अंतिम निर्णय लिया जाएगा। फिलहाल अन्य माध्यमों से भाजपा ने प्रचार-प्रसार की तैयारी पूरी कर ली है। डॉ. हितेष वाजपेयी, प्रदेश भाजपा संवाद प्रमुख

मप्र में कपाट बंद... तो उप्र कार्यकारिणी में उमा का नाम नहीं..!

भोपाल। कभी भाजपा की राजनीति की धूरी रही साध्वी उमा भारती की स्थिति यह हो गई है कि न उन्हें घर(मप्र) में जगह मिल रही है और ना ही बाहर(उप्र) वाले पुछ रहे हैं। उधर खबर है कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह की टीम में भी उनको जगह मिलने की संभावना कम नजर आ रही है। ऐसे में उमा कहां जाएंगी यह सवाल हर किसी के मन में उठ रहा है। 7 साल से राजनीति वजूद अधर में 2005 में जब उमा भारती को पार्टी से निकाला गया था तब से लेकर अब तक वे अपना दमदार राजनीतिक वजूद बनाने में लगी हुई हैं लेकिन उन्हें मजबुत आधार नहीं मिल पा रहा है। जून 2011 में भाजपा में वापसी के बाद उन्हें उत्तर प्रदेश में अजमाया गया लेकिन वह वहां नहीं चल सकी। विधानसभा चुनाव में पार्टी को मिली करारी हार के बाद उन्होंने मप्र में सक्रिय होने के प्रयास किए लेकिन यहां पर नेताओं ने उनके लिए कपाट बंद कर दिए। यहां अपनी सक्रियता बढ़ाने के लिए उन्होंने संघ और संगठन का भी सहारा लिया लेकिन मप्र में सबकुछ बेहतर चल रहा है कह कर टाल दिया गया। अभी हाल ही में बांद्राभान में आयोजित एक कार्यक्रम में भी वे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ मंच पर दिखी। प्रदेश में यह पहला आयोजन था जहां दोनों नेता एक साथ दिखे। उसके बाद खबर आई की उमा प्रदेश में सक्रिय होने के प्रयास में लगी हुई हैं। ऐसे में उनके लिए हैरान करने वाली एक खबर यह आई है कि उन्हें भाजपा उत्तर प्रदेश इकाई की कार्यकारिणी में भी जगह नहीं मिल पाई है। प्रदेश नेतृत्व की तरफ से हालांकि संशोधित सूची जारी करने की बात भी कही जा रही है। उमा को नई टीम में जगह नहीं मिलने के बारे में प्रदेश अध्यक्ष वाजपेयी का कहना है कि उमा भारती का नाम भूलवश छूट गया है, संशोधित सूची जल्द ही जारी की जाएगी, जिसमें उनका नाम स्थाई आमंत्रित सदस्यों के साथ शामिल किया जाएगा। वाजपेयी ने कहा कि उमा भारती राष्ट्रीय स्तर की नेता हैं और इस नाते उन्हें स्थाई आमंत्रित सदस्यों की श्रेणी में आने का अधिकार प्राप्त है। दो बार पार्टी से हो चुकी हैं बाहर राम मंदिर आंदोलन के अग्रदूतों में से एक रहीं उमा भारती एक समय न सिर्फ भाजपा और हिंदुत्व का चेहरा तो थी हीं बल्कि सामाजिक न्याय का भी प्रतिनिधित्व किया करती थीं। भाजपा की प्रमुख प्रचारकों में से एक रहीं उमा भारती अपने उग्र भाषणों के जरिए बार-बार पार्टी के लिए लोगों के वोट को खींचने का काम करती रहीं। मध्य प्रदेश में सत्ताधारी कांग्रेस सरकार को बेदखल करने का श्रेय भी उमा भारती को ही जाता है। साल 2003 के चुनावों में भारी जीत हासिल करने वाली भाजपा की ओर से उमा भारती प्रदेश की मुख्यमंत्री बनाई गईं। उमा भारती को दो बार भारतीय जनता पार्टी से निकाला गया। पहली बार साल 2004 में उन्होंने लाल कृष्ण आडवाणी के खिलाफ बयानबाजी की। हालांकि जल्द ही वर्ष 2005 में उनकी पार्टी में वापसी हो गई। इसके बाद 2005 के अंत में पार्टी द्वारा शिवराज सिंह चौहान को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री निर्वाचित करने पर उन्होंने फिर भड़काऊ बयान दिए, जिसके कारण उन्हें एक बार से बाहर का रास्ता देखना पड़ा। जून 2011 में उमा भारती को पार्टी में दोबारा शामिल कर लिया गया और उनकी अगुआई में उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव लड़ा गया लेकिन उनका जादू नहीं चल पाया और भाजपा को करारी हार मिली।

ज्योतिरादित्य पर मिशन का दारोमदार

भोपाल। कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी राहुल गांधी के संभालने के बाद से उनकी युवा ब्रिगेड के साथी केंद्रीय ऊर्जा राज्यमंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की सक्रियता ग्वालियर-चंबल संभाग के बाहर तेजी से बढ़ रही है। उनकी इस सक्रियता के सियासी मायने निकाले जाने लगे हैं और बताया जा रहा है कि कांग्रेस के मिशन 2013 फतह का पूरा दारोमदार सिंधिया के कंधे पर ही होगा। राहुल आगामी विधानसभा चुनाव में राज्य में कांग्रेस की सत्ता में वापसी हर कीमत पर चाहते हैं। इसके लिए वे तमाम नेताओं को गुटबाजी भुलाकर काम करने के निर्देश भी दे चुके हैं। पार्टी की रणनीति के मुताबिक सक्रिय हैं सिंधिया लंबे अरसे से सिंधिया को पार्टी की ओर से राज्य की कमान सौंपे जाने की चर्चा सियासी गलियारे में है। पार्टी सूत्रों पर भरोसा करें तो सिंधिया पर पार्टी दांव लगाने को तैयार है। यह बात अलग है कि चुनाव से पूर्व पार्टी मुख्यमंत्री का उम्मीदवार किसी को घोषित नहीं करने वाली है। पार्टी की रणनीति के मुताबिक सिंधिया राज्य के कई हिस्सों में राजीव गांधी विद्युतीकरण योजना के विस्तार के नाम पर दौरा करेंगे। मालवा निमाड़ दौरे से इसकी शुरुआत भी कर चुके हैं। सिंधिया पर दांव लगाने की वजह भी हैं। सिंधिया किसी तरह के विवाद में नहीं हैं। युवा व उर्जावान हैं। अपनी बात साफगोई से रखते हैं। इतना ही नहीं उनके पिता स्वर्गीय माधवराव सिंधिया का भी राजनीति में दखल रहा है। उनकी छवि भी साफ सुथरे नेता की रही है। क्षत्रपों नहीं कार्यकर्ताओं के साथ यात्रा सिंधिया की इस सक्रियता में एक बात देखने को मिल रही है वह बिना किसी क्षत्रप के साथ लिए ही घूम रहे हैं। सिंधिया पार्टी में चलने वाली गुटबाजी से अपने को दूर रखना चाहते हैं। उनकी यह भी कोशिश है कि जिस इलाके में जाएं वहां के सभी गुट के कार्यकर्ता उनसे जुड़ें। यही कारण है कि वे किसी अन्य को साथ लेकर चलने की बजाय अकेले ही दौरा करने में भरोसा कर रहे हैं। यही सिलसिला आगे भी जारी रहेगा। सिंधिया ने अभी हाल ही में सीहोर से लेकर शाजापुर, रतलाम व मंदसौर में तूफानी दौरा करने के दौरान साफ कर दिया कि पार्टी की मजबूती उनकी प्राथमिकता है। उनके इन कार्यक्रमों के दौरान वे नेता भी नजर आए जिनकी निष्ठा किसी दूसरे नेता के प्रति जग जाहिर है। सक्रियता को लेकर हर तरफ से उठ रहे सवालों पर वे खुद विराम लगाने की कोशिश करने से नहीं चूकते। राहुल की टीम ने सिंधिया को बताया सीएम मटेरियल प्रदेश में कांग्रेस पार्टी में पहली दफा उपयुक्त प्रत्याशियों के साथ-साथ मुख्यमंत्री पद के लिए संभावित चेहरों का गोपनीय सर्वे विगत दो माह से चल रहा था, इस सर्वे में ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री पद के लिए सर्वाधिक अंक मिले हैं। कांग्रेस कल्चर में मुख्यमंत्री पद के लिए किसी व्यक्ति विशेष को प्रोजेक्ट करने की परंपरा नहीं है, लेकिन राजनीति में कार्पोरेट कल्चर हावी हाने के बाद शीर्ष नेतृत्व सीएम प्रोजेक्शन का यह उपक्रम किया। यह सर्वे राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी की सीधी निगरानी में किया गया। प्रदेश की सभी लोकसभा सीटों के लिए बनाए गए पर्यवेक्षकों को क्रमश: दस-दस सीटों की विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने की जवाबदारी देते हुए उन्हें राज्य के विधानसभा सीटों के लिए भी उपयुक्त दावेदारों का पैनल बनाने को कहा गया था। साथ ही मुख्यमंत्री पद के लिए कौन सबसे ज्यादा उपयुक्त है? यह पता लगाने के लिए भी कहा गया था। पर्यवेक्षकों ने पार्टी नेता, कार्यकर्ता एवं आम जन से यह पता लगाने की कोशिश की कि आपकी नजर में मुख्यमंत्री पद के लिए सबसे बेहतर कौन है? मध्यप्रदेश की दस लोकसभा सीटों के लिए सर्वे पर आए महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री विजय विट्टीवार ने पिछले दिनों टीकमगढ़, छतरपुर, खजुराहो, पन्ना, सतना, रीवा, कटनी, दमोह और सागर का दौरा किया इस दौरान पूछे गए सवालों में संभावित मुख्यमंत्री का सवाल भी शामिल था। सवालों के जवाब के लिए पार्टी द्वारा बनाया गया प्रोफर्मा बाकायदा भरवाया गया। जिसमें मुख्यमंत्री पद के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रोजेक्ट करने की बात सामने आई। कांग्रेस में दिखाई पड़ रहे इस बदलाव को पिछले दिनों राहुल गांधी द्वारा दिल्ली में पार्टी प्रदेशाध्यक्ष, नेता प्रतिपक्षों की बैठक के असर से जोड़कर देखा जा रहा है। जो लगातार पार्टी के रिफार्मेशन में लगे हुए हैं।

जनाधार वाले मुस्लिम नेताओं को साधेगी कांग्रेस

भोपाल। विधानसभा चुनाव की चुनौती का सामना करने के लिए खुद को तैयार कर रही कांग्रेस के पास मुस्लिम मतदाताओं को एकजुट करने के लिए अब मुस्लिम नेता के नाम पर सिर्फ भोपाल से आरिफ अकील बचे हैं। ऐसे में पार्टी प्रदेश में मुस्लिम नेतृत्व को तरस गई है। नेतृत्व के अभाव से जूझ रही पार्टी की मुसीबत उन मुस्लिम नेताओं ने और बढ़ा दी है जो उसके पाले में मौजूद हैं। उनमें से पूर्व सांसद गुफराने आजम और असलम शेर खां ने लंबे अरसे से पार्टी नेतृत्व के खिलाफ बागी तेवर अख्तियार कर रखे हैं। ऐसी ही तेवर दिखाने वाले पूर्व सांसद अजीज कुरैशी उत्तराखंड के राज्यपाल बनकर प्रदेश से बाहर हो गए हैं। लेकिन अब इस चुनावी साल में पार्टी सभी मतभेद भुलाकर जनाधार वाल मुस्लिम नेताओं को साधने की तैयारी कर रही है। उपचुनावों में कांग्रेस से बिछड़ गए मुस्लिम प्रदेश में कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक रहे मुस्लिम मतदाता पिछले 5 सालों में भाजपा के खेमें में आ गए हैं। 2003 की अपेक्षा 2008 के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं ने भाजपा के पक्ष में कुछ हद तक अधिक मतदान किया तो उसके बाद हुए 5 उपचुनावों के तो उन्होंने कांग्रेस से नाता तोडऩे का संकेत दे दिया। अब इस चुनावी साल में जब कांग्रेस ने इसका विश£ेषण किया तो उसके होश ही उड़ गए। साल 2011 में हुए तीन विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनाव में मुस्लिम बहुल मतदान केंद्रों पर भाजपा को कांग्रेस से ज्यादा वोट हासिल हुए। जबेरा उपचुनाव में मुस्लिम बहुल 29 मतदान केंद्रों पर कांग्रेस के 6,506 के मुकाबले भाजपा को 8,665 वोट मिले। इसी तरह हाई प्रोफाइल सीट कुक्षी के 40 मुस्लिम बहुल मतदान केंद्रों पर कांग्रेस को 8,699 और भाजपा को 15,058 एवं सोनकच्छ सीट के 53 मुस्लिम बहुल मतदान केंद्रों पर कांग्रेस को 15,800 और भाजपा को 18,308 वोट मिले। 2008 के विधानसभा चुनाव में सोनकच्छ में उन 53 केंद्रों पर भाजपा को महज 12,939 और कांग्रेस को 16,167 वोट मिले थे। शिवराज की छवि बनी बाधा कांग्रेस और मुस्लिम मतदाओं के बीच लगातार बढ़ रही दूरी की मुख्य वजह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की धर्मनिरपेक्ष छवि है। मध्यप्रदेश अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष हिदायतुल्ला शेख कहते हैं,प्रदेश में कांग्रेस के पक्ष में मुसलमानों का मतदान अब इतिहास की बात है। भाजपा केवल लुभावने नारों एवं बातों तक ही सीमित नहीं है। मुस्लिम समुदाय के नेताओं को तरजीह देते हुए पार्टी ने उन्हें विभिन्न पदों से नवाजा है। मध्यप्रदेश राज्य अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष पद लगभग ढाई साल तक खाली रहने पर कांग्रेस ने भाजपा पर आरोप लगाया था कि वह अल्पसंख्यकों की उपेक्षा कर रही है.भाजपा ने तत्काल अनवर मोहम्मद खान को राज्य अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष बनाया। मध्यप्रदेश मदरसा बोर्ड, मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी एवं मध्यप्रदेश हज कमिटी में अध्यक्ष पद पर भाजपा ने राजनीतिक नियुक्ति करने के अलावा मध्यप्रदेश कुक्कुट विकास निगम, भोपाल विकास प्राधिकरण एवं देवास विकास प्राधिकरण में उपाध्यक्ष पद पर भी मुस्लिम समुदाय के नेताओं को ही बिठाया है। मुस्लिम नेताओं में समन्वय नहीं कांग्रेस में जितने भी मुस्लिम नेता हैं उनमें समन्वय नहीं है। 230 सदस्यों वाली मप्र विधानसभा में अकेले मुसलिम विधायक आरिफ अकील अपनी मर्जी के मालिक हैं। उनका गुफराने आजम से भी 36 का आंकड़ा है। मुसलिम नेतृत्व के संकट से जूझ रही कांग्रेस की परेशानी वरिष्ठ नेता गुफराने आजम और असलम शेर खां ने और बढ़ा दी है। गुफराने लोकसभा, राज्यसभा व कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य, पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष और युवा कांग्रेस के प्रदेश महामंत्री और असलम पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री व हाकी के ओलंपिक खिलाड़ी रहे हैं। दोनों नेता पार्टी में अल्पसंख्यकों व जमीनी मुद्दों की अनदेखी का आरोप लगाते हुए लगातार कांग्रेस नेतृत्व को कोस रहे हैं। गुफराने ने तो पार्टी प्रदेशाध्यक्ष कांतिलाल भूरिया को नकारा करार देते हुए यहां तक कह दिया कि 2003 और 2008 की तरह 2013 का विधानसभा चुनाव भी कांग्रेस नहीं जीत पाएगी। असलम भी कह चुके हैं कि पार्टी का यही हाल रहा तो उसका बेड़ा पार होना मुश्किल होगा। वहीं प्रदेश कांग्रेस इब्राहिम कुरैशी,सचिव अब्दुल रज्जाक, प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य निजामुद्दीन अंसारी 'चांदÓ,सईद अहमद सुरूर,नासीर इस्लाम,हफीज कुरैशी,शबाना सोहेल व पार्टी के अल्पसंख्यक विभाग के प्रदेशाध्यक्ष हाजी हारुन भी अपनी डफली अपना राग अलाप रहे हैं।

चुनावी साल में कांग्रेसियों को साल रहे भूरिया

भोपाल। यह चुनावी साल है। ऐसे में हर नेता अपनी पार्टी के मुखिया के इर्द-गिर्द नजर आता है,लेकिन कांग्रेस में आलम यह है कि प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया अपने ही नेताओं को साल (खटक)रहे हैं। यही कारण है कि अब नेता भूरिया से दूरी बनाने लगे हैं। इसका नजारा भूरिया के कार्यक्रमों में देखने को मिल रहा है। इसके पीछे वजह यह बताई जा रही है कि भूरिया ने जिस प्रकार एकला चलो की नीति अपनाई है उससे पार्टी पदाधिकारियों और नेताओं में रोष व्याप्त है। सलमान के नाम पर भीड़ जुटाने की कवायद 24 फरवरी को पन्ना जिले के शाहनगर कस्बे में भूरिया की सभा थी। सभा में भरसक प्रयास कर करीब पंद्रह हजार की भीड़ जुटाई गयी थी। लोगों के बीच बोलने के लिए उज्जैन के सांसद प्रेमचंद गुड्डू साथ आए थे। लेकिन कांग्रेस का कोई भी कद्दावर और बड़ा नेता वहां नहीं पंहुचा। प्रचार खूब किया गया कि अभिनेता सलमान खान वहाँ पहुंच रहे हैं, दिग्विजय सिंह भी वहां पहुचेंगे और नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह के पहुंचने का माहौल बनाया गया लेकिन पहुंचे सिर्फ भूरिया और गुड्डू ही। मुख्य मेहमानों के आने के पहले आयोजकों ने एक युवक जो दूर से देखने में कुछ-कुछ सलमान खान की बनावट का था, कद-कांठी का कतई नहीं। उसे सलमान के तौर पर पेश किया और जैसे हीभूरिया मंच पर पहुंचे, क्षण भर में ही उसे गायब कर दिया गया। समझने वालों से यह बात छुपी नहीं रह सकी, समझदार जनता भी सब जान गई। पहले दो बार पवई विधानसभा से विधायक चुनकर मंत्री रह चुके मुकेश नायक ने भी सभा में जाना उचित नहीं समझा, जबकि इलाके में उनका अच्छा लोकव्यवहार और सम्मान है। वे पिछला चुनाव वर्तमान राज्य मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह के मुकाबले मात्र ग्यारह सौ मतों से हारे थे। वैसे वस्तु स्थिति भी यही है कि पार्टी जनों और जनता के बीच कांतिलाल भूरिया की साख दिन पर दिन गिरती जा रही है। पिछले डेढ़ वर्ष में वे अनेक बार गुहार लगा चुके हैं कि मध्यप्रदेश कमेटी के अध्यक्ष वही हैं और उन्हें हटाया नहीं जा रहा है। हरिबोला की तरह बार-बार चिल्लाने के बाद भी कि वही राज्य में कांग्रेस के तारनहार हैं, हर जिम्मेदार नेता उनसे बचकर भाग क्यों रहा है? आज आदिवासी वोट बैंक को पुन: कबजाने के लिए कांतिलाल भूरिया को प्रदेश अध्यक्ष बना कर भेजा गया, लेकिन वो भी गुटबाजी की गांठ को और भी कस दिये। नतीजा पार्टी के अंदर उनका जमकर विरोध शुरू हो गया है। गत वर्ष विधायक कल्पना पारूलेकर सहित बीस विधायकों ने दमदारी के साथ भूरिया की खिलाफत करके बता दिया कि कांतिलाल नहीं चलेंगे। कल्पना पारूलेकर कहती हैं, कांतिलाल भूरिया की वजह से कांग्रेस रसातल में जा रही है। कांग्रेस को मजबूत करने की बजाय उन्होंने उसे गुटों में बांट दिया है। उन्हें मुद्दे उठाना नहीं आता। कई मामले में ऐसा लगता है कि उनकी सांठ गांठ सत्ता पक्ष से है। केवल प्रवक्ताओं की फौज खड़ी करने से काम नहीं चलेगा। यदि 2013 का चुनाव कांग्रेस जीतना चाहती है तो ज्योतिरादित्य सिंधिया को कमान सौंपना ही होगा। अन्यथा कांग्रेस एक बार फिर औंधे मुंह गिर जाएगी। यह अकेले कल्पना की ही आवाज नहीं है। देखा जा रहा है कि कमलनाथ के आदमी हों या फिर दिग्विजय के समर्थक सभी ज्योतिरादित्य के साथ खड़े होने को आतुर हैं। विधायक अमृतलाल जायसवाल कहते हैं, कांतिलाल भूरिया के आने से कांग्रेस में तेजी आई है। अभी कांग्रेस में जैसा चल रहा है उसे ठीक ठाक कहा जा सकता है। चुनाव का जहां तक सवाल है, तो राजनीति हमेशा लोकप्रियता पर चलती है। लोकप्रिय व्यक्ति की ही बात सुनी जाती है। ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के स्टार प्रचारक की भूमिका निबाह सकते हैं। उनमें युवाओं को जोडऩे का आकर्षण है। जितने युवा जुड़ेंगे वो कांग्रेस के लिए प्लस होगा।

भाजपा का कटघरा...कांग्रेस का रथ

भोपाल। मप्र में चुनावी बिसात बिछ गई है। भाजपा और कांग्रेस के रणनीतिकारों ने मोहरे बिछानी शुरू कर दी है। शह-मात के इस द्वंद्व में बाजी कौन मारेगा यह तो नवंबर में चुनाव के बाद आने वाले परिणाम के बाद ही पता चलेगा,लेकिन एक-दूसरे को घेरने के लिए दोनों दलों ने मैदानी अभियान तेज कर दिया है। कांग्रेस को घेरने के लिए भाजपा ने महाजनसंपर्क अभियान के रूप में कटघरा बना रखा है वहीं कांग्रेसी ने भाजपा को घेरने के लिए किसान बचाओ रथ पर सवार हैं। महाजनसंपर्क अभियान बनाम किसान बचाओ रथयात्रा विधानसभा चुनाव को अभी करीब 8 माह समय बचा है,लेकिन काम करने के लिए 3-4 माह ही मिलेंगे। इसलिए दोनों पाटिर्यों ने बरसात से पहले ग्रमीण इलाकों के मतदाताओं को पटाने का अभियान शुरू कर दिया है। कांग्रेस किसान मोर्चा ने 1 फरवरी से किसान बचाओ रथयात्रा निकाल कर भाजपा सरकार को किसान और आम आदमी विरोधी होने का प्रचार करती फिर रही है वहीं भाजपा ने 25 फरवरी से महाजनसंपर्क अभियान शुरू कर दिया है। इस अभियान के तहत भाजपा शिवराज सिंह चैहान की आम आदमी-गरीब आदमी के कल्याण की कुछ अद्भुत और अति लोकप्रिय योजनाओं के सहारे विधानसभा चुनाव की वैतरणी पार करने की उधेड़बुन में लगी है और गरीब आदमी का आम आदमी का मुख्यमंत्री शिवराज सिंह वाली छवि के साथ अपने अभियान को गति देने में लगी है। 'महाजनसंपर्कÓ अभियान 20 मार्च तक प्रदेश के 14 नगर निगम, 88 नगरपालिकाओं और 236 नगर पंचायतों, 23 हजार ग्राम पंचायतों तक करीब 3500 टोलियां 53 हजार मतदान केन्द्रों के $ढ़ाई करोड़ मतदाताओं के बीच पहुंचेगी। इस अभियान के दौरान भाजपा नेता केंद्र सरकार की जनविरोधी छवि को मतदाताओं से सामने प्रस्तुत कर रही है। जिसमें महंगाई और भ्रष्टाचार प्रमुख है। गुप्त अभियान पर सिंधिया कांग्रेस इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों में बदली रणनीति के साथ उतरेगी। खास तौर से मध्यप्रदेश कांग्रेस के एजेंडे में सबसे ऊपर है, जहां उसकी कोशिश किसी भी कीमत में भाजपा को जीत की हैट्रिक बनाने से रोकने की है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का हर सीट पर अपना एक वोटबैंक बनने की रिपोर्ट से कांग्रेस हलकान है। इसीलिए, तमाम सिर फुटौव्वल के बावजूद राज्य में केंद्रीय ऊर्जा राज्य मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को आलाकमान ने एक गुप्त एजेंडे के तहत प्रदेश मेें सक्रिय कर दिया है। शायद यही कारण है कि भाजपा के महाजनसंपर्क अभियान बनाम कांग्रेस के किसान बचाओ रथयात्रा के इतर केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया प्रदेश के ग्रामिण अंचलों का दौरा कर रहे हैं। शिवराज के व्यक्तिगत वोटबैंक बाधक बताया जाता है कि मध्यप्रदेश में एक दशक बाद सत्ता में वापसी की कोशिश में कांग्रेस शिवराज के व्यक्तिगत वोटबैंक को अपने मिशन में बाधक मान रही है। चुनावों की तैयारियों से पहले जमीनी हकीकत की समीक्षा के बाद कांग्रेस हाईकमान ने इन हालात को देखते हुए तय किया है कि प्रदेश में पार्टी बिना चेहरे के नहीं दिखेगी। दिग्विजय सिंह, कमलनाथ,सुरेश पचौैरी, ज्योतिरादित्य सिंधिया आदि तमाम क्षत्रपों के गुटों में बंटी कांग्रेस कहीं से भी शिवराज के सामने खड़ी नहीं दिख रही है। लिहाजा, पार्टी ने तय किया कि यहां पर युवा चेहरे के रूप में ज्योतिरादित्य सिंधिया को आगे बढ़ाया जाएगा। हालांकि सिंधिया पार्टी का चेहरा बनने की खबर से इंकार कर रहे हैं लेकिन प्रदेश में उनकी सक्रियता इसका संकेत दे रही है। इनका कहना है भाजपा सरकार ने प्रत्येक वर्ग की चिंता की है। प्रदेश के संवेदनशील मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रत्येक वर्ग की महापंचायत बुलाकर उनकी समस्याओं का निराकरण किया है। अपने प्रदेश को स्वर्णिम बनाने के सपने के मुख्यमंत्री पूरा करने में लगे है। जितने विकास कार्य इस सरकार में हुए है। उतने पहले कभी किसी सरकार में देखने को नहीं मिले है। माखन सिंह पूर्व प्रदेश संगठन महामंत्री,भाजपा प्रदेश में भाजपा सरकार ने पिछले 9 साल में घोषणाओं के अलावा कुछ नहीं किया है। किसान बचाओ रथयात्रा के दौरान किसानों के साथ प्रदेश सरकार द्वारा किए गए छलावे की हकीकत सामने आ रही है। हमारी रथ यात्रा का समापन 28 फरवरी को होगा। इस दिन तीजबडली में सम्मेलन आयोजित कर सरकार के खिलाफ शंखनाद किया जाएगा। वीरेंद्र सिंह राणा प्रदेशाध्यक्ष किसान कांग्रेस

गढ़ घेरने निकले ज्योतिरादित्य

भोपाल। सरकार के खिलाफ अंडरकरंट की खबर के बाद भी कांग्रेस में करंट नजर नहीं आ रहा है। इन सब के बीच केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया मप्र भाजपा के दिग्गज नेताओं को उनके गढ़ में घेरने के लिए निकल पड़े हैं। सिंधिया के इस अभियान ने भाजपा को चिंता में डाल दिया है, क्योंकि सिंधिया का अभियान भी ग्रामीण इलाकों पर केंद्रित है जहां पर आज से भाजपा ने पहुंचने के लिए महाजनसंपर्क अभियान शुरू किया है। कांग्रेस में सुन-सपाटा सिंधिया के अभियान से भले ही भाजपा के नेता चिंतिन हों लेकिन गुटों में बटीं कांग्रेस में सुन-सपाटा है। एक ओर भाजपा नेतृत्व ने मप्र में शिवराज सिंह चौहान को फ्रीहैंड दिया है और संगठन में भी उनकी पसंद का ध्यान रखा जा रहा है। यह भी तय है कि भाजपा अगला चुनाव शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में और उन्हें तीसरी बार मुख्यमंत्री बनाने के नाम पर लडऩे जा रही है। शिवराज के खास नरेन्द्र सिंह तोमर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष की कमान संभालने के बाद चुनावी तैयारियों में जुट गए हैं। वहीं कांग्रेस अभी तक कोई कार्य योजना ही नहीं बना पाई है। चुनावी साल में सिंधिया की इस यात्रा ने प्रदेश की राजनीतिक गतिविधियां तेज कर दी है। चुनाव मैदान में उतरने की इच्छा रखने वाले कांग्रेस नेताओं की सक्रियता भी बढ़ गई है। नए राजनीतिक समीकरण बनने के संकेत भी नजर आ रहे हैं, कांग्रेस सांसद सज्जन सिंह वर्मा के निर्वाचन क्षेत्र में केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के अनेक आयोजनों में आने से कांग्रेस कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ा हुआ है। सदन में सक्रिय, सड़क पर ठंडी कांग्रेस के बारे में यह कहा जाता है कि विधानसभा के अंदर अजय सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस विधायक दल बेहतर भूमिका निभा रहा है। पिछले कई सत्रों में मुद्दों के आधार पर कांग्रेस ने राज्य सरकार को घेरने का प्रयास किया, लेकिन सड़क पर कांग्रेस कहीं दिखाई नहीं दे रही। कांग्रेस के शो पीस प्रदेश कांग्रेस में अध्यक्ष के अलावा 11 उपाध्यक्ष, 1 कोषाध्यक्ष, 16 महामंत्री, 48 सचिव, 51 कार्यकारिणी सदस्य, 40 विशेष आमंत्रित सदस्यों के अलावा 20 सदस्यीय निगरानी समिति है जिसे केन्द्र सरकार द्वारा पोषित योजनाओं की निगरानी का जिम्मा है। इसके अलावा 11 सदस्यीय अनुशासन समिति। महिला कांग्रेस, युवक कांग्रेस, कांग्रेस सेवा दल, भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ की शाखाएं प्रदेशभर में बनाई गई हैं। यही नहीं कांग्रेस ने 9 विभाग अलग से काम कर रहे हैं। इनमें आरोप पत्र विभाग, किसान खेत मजदूर विभाग, विधि एवं मानव अधिकार विभाग, अनुसूचित जाति विभाग, अनुसूचित जनजाति विभाग, अल्पसंख्यक विभाग, भूतपूर्व सैनिक विभाग, विचार विभाग, मीडिया विभाग। कांग्रेस की सदन में ताकत प्रदेश विधानसभा के 230 सदस्यों में 66 कांग्रेस के विधायक हैं। इसी प्रकार लोकसभा की 29 सीटों में 12 सदस्य कांग्रेस के हैं। राज्यसभा की 11 सीटों में कांग्रेस मात्र 1 सीट पर काबिज है।

भाजपा तलाश कर रही है जीतने वाले चेहरे

भोपाल। खुफिया महकमें से प्रदेश के हर जिले में विधानसभावार उम्मीदवारों को तलाशने में लगी है भाजपा। भाजपा उन चेहरों को तलाश रही है, जो जीत सकते हैं तथा उन मंत्रियों और विधायकों की वर्तमान स्थिति भी तलाशी जा रही है। यह रिपोर्ट सत्ता और संगठन तक पहुंचेगी। संघ के लोग इस प्रक्रिया को लेकर अंदरखाने नाराज हैं। अभी तक यह काम संघ करता रहा है। बताया जाता है कि सूची पर सत्ता का शिखर नेतृत्व जिलों के कलेक्टरों से भी राय ले सकता है। सत्ता और संगठन ने समन्वय की दृष्टि से इस बार यह नई प्रक्रिया अपनाई है। खुफिया सोर्स से पार्टियां अपने लिए सूचनाएं मंगाती रहती है, यह कोई नई बात नहीं है। कांग्रेस में यह परम्परा बहुत पुरानी है। पहली बार संघ के अलावा भी भाजपा ऐसे सूत्रों से जीतने वाले उम्मीदवार तलाश रही है। संगठन का सीधे खुफिया स्रोतों से कोई सीधा वास्ता नहीं पड़ता और सत्ता के कई ध्रुव है जो संपर्क में रहते। संघ के एक प्रचारक इस बात की जांच करने इंदौर संभाग पर निकले हैं। धार और झाबुआ के बीच में रुकते-रुकते वे इस खबर की तफ्तीश कर रहे थे। अचानक वे झाबुआ जिला पंचायत के एक अधिकारी की बात से चौंक गए। उन्होंने जिले के तमाम भाजपा नेताओं से कहा कि प्रशासन बड़ी ताकत होती है। हमसे आपकी पार्टी के लोग कई सूचनाएं लेते हैं, अच्छा व्यवहार करो अन्यथा आपका टिकट कट सकता है। उसने पूछा कि क्यों और कैसे। तब उसने राज खोला कि हम लोग एक रिपोर्ट पर काम कर रहे हैं, जिसमें जितने वालों की जानकारी इक_ा की हुई है। संघ का वह प्रचारक चौंक पड़ा। जब वह इंदौर से निकला था तो उसके कान पर इस तरह की वार्ता पुराने संघ से सम्पर्क रखने वाले लोगों द्वारा सुनाई दी थी। उसे तब तो विश्वास नहीं हुआ, लेकिन जब वह झाबुआ में उक्त अधिकारी के संपर्क में आया तो फिर उसे दाल में काला दिखा। लौटते समय आलीराजपुर, बड़वानी, खंडवा, खरगोन, बुरहानपुर और धार होते हुए उसने सही तथ्य जुटाए। अब वे इस जानकारी को किस तरह संघ से संगठन तक पहुंचाते हैं, यह देखने वाली बात होगी। पिछले दिनों एक बात अंदरखाने तेजी से चल रही है कि प्रदेश में प्रशासन राज चल रहा है। भोजशाला के संदर्भ में संघ ने यही कुछ महसूस किया। हालांकि उसके पुख्ता प्रमाण अभी तक नहीं मिले हैं। कहा जा रहा है कि सत्ता और संघ के बीच एक हल्की नाराजी की लकीर खिंच आई है। संगठन के नवनियुक्त कप्तान इस खाई को पाटने में लगे हैं। उनकी कोशिश यह है कि चुनाव इतने नजदीक है, तब भोजशाला के नाम पर प्रशासन से कोई नया पंगा भी न हो और कार्यकर्ताओं की नाराजी को भी दूर कर लिया जाए, मगर यह यक्ष प्रश्न तमाम नेताओं और कार्यकर्ताओं के सामने खड़ा हो गया है कि क्या उनके जिले में विधानसभा की टिकट प्रशासन की हरी झंडी पर आधारित होगी? 60 से 80 भाजपा विधायक खतरे के निशान पर भाजपा के जिस आंतरिक सर्वे ने मुख्यमंत्री तक की नींद उड़ाई हुई है उसमें मंत्रियों को भी निशाना बनाया गया है। एक डेढ़ दर्जन से अधिक मंत्रियों के हारने की आशंका जताई गई है। महाकोशल के दो मंत्रियों पर संदेह का साया दिखाया गया है। कई विधायक भी खतरे के निशान पर है और यही वजह है कि निकट भविष्य में मुख्यमंत्री स्वंय प्रदेश का दौरा करने निकलेंगे। सूत्रों का कहना है कि पिछले दिनों भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) भोपाल आये थे और उन्हें भी इस सर्वे रिपोर्ट से अवगत कराया गया। दावा यह भी हो रहा है कि राष्ट्रीय महामंत्री ने खुद उन नेताओं से चर्चा किया जिन्होंने यह सर्वे कराया। एक एनजीओ तथा कुछ इंटेलिजेंस अधिकारियों से सर्वे कराने की बात कही गई। यह भी राष्ट्रीय महामंत्री को बताया गया कि सर्वे से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान व नये प्रदेश अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर भी वाकिफ हैं। मुख्यमंत्री ने सर्वे के मुताबिक कार्य भी शुरू कर दिया है और वे अफसरों तथा मंत्रियों से वन-टू-वन विचार विमर्श भी कर रहे हैं। श्री चौहान पूरे प्रदेश का दौरा भी करेंगे। जिन मंत्रियों पर लाल यानि हार जायेंगे या पीला यानि हार सकते हंै का निशान लगा है की भी जानकारी दी गई। तकरीबन 6 से ज्यादा केबिनेट मंत्रियों की हालत खराब है और इतने से ही अधिक राज्यमंत्रियों से भी क्षेत्र की जनता नाराज है। यह भी राष्ट्रीय महामंत्री को फीड किया गया। महाकोशल क्षेत्र के दो मंत्रियों के नाम उनमें शामिल बताये गये जो मंत्री हार जायेंगे या हार सकते हैं। 60 से 80 ऐसे विधायक का भी खुलासा किया गया जो सत्ता विरोधी और स्वंय के कारनामे से पार्टी की साख पर बट्टा लगा देंगे। दबी जुबान से यह भी कहा गया कि इस बार सर्वे के आधार पर प्रत्याशी चयन किया जाये तथा ज्यादा से ज्यादा नये चेहरे उतारे जायें। आखिर में यह तय किया गया कि जल्द ही चुनाव की रणनीति बनाई जाये और पार्टी को एकजुट करने के प्रयास हों। 25 फरवरी का महा जनसम्पर्क अभियान भी इसी कड़ी में देखा जा रहा है। इसके बाद प्रभारी मंत्रियों की गुद्दी कसी जायेगी और जिला व संभाग स्तर पर संगठन द्वारा विधायक कार्य की समीक्षा होगी। कलेक्टर्स से मंगवाए जिताऊ नेताओं के नाम मध्यप्रदेश में इन दिनों ठीक वैसा ही प्रशासनिक चुनावी प्रबंधन दिखाई दे रहा है जैसा कि कभी इंदिरा गांधी के समय दिखाई दिया करता था। सीएम के सचिवालय ने कलेक्टरों से भाजपा के ऐसे नेताओं के नाम मांगे हैं जो आगामी विधानसभा चुनावों में जिताऊ प्रत्याशी हो सकते हैं। सामान्यत: प्रशासनिक अधिकारी चुनावों पर अपनी रायशुमारी दिया ही करते हैं और वो हमेशा अनआफिसीयल ही होती है परंतु उनकी रायशुमारी का यूज नहीं किया जाता। कम से कम भाजपा में तो यह कल्चर कतई नहीं रहा कि प्रशासनिक अधिकारियों की राय को वेल्यू दी जाए। भाजपा में वेल्यू आरएसएस के सुझावों को दी जाती है, परंतु टीम शिवराज ने भाजपा की परंपरा के इतर वही पेटर्न यूज करने का मन बनाया है जो इंदिरा गांधी यूज किया करतीं थीं। सीएम का सचिवालय इन दिनों कलेक्टरों से रायशुमारी कर रहा है कि इलाके में जमीनी लेवल पर किस भाजपा नेता की पकड़ मजबूत है और कौन आगामी विधानसभा चुनावों में जिताऊ प्रत्याशी हो सकता है। इसके लिए बाकायदा सूची बनाई जा रही है और कई जिलों के कलेक्टर्स गंभीरतापूर्वक अपनी रिपोर्टस भी भेज रहे हैं। ब्यूरोक्रेट्स और शिवराज सिंह की जुगलबंदी किसी से छिपी नहीं है और मध्यप्रदेश में तीसरी बार सरकार बनाने के लिए भाजपा में शिवराज सिंह को फ्रीहेंड भी मिला हुआ है अत: माना जा रहा है कि कलेक्टर्स की इस रिपोर्ट्स का बेहतर यूज किया जाएगा। सनद रहे कि इसी तरह की प्रक्रिया इंदिरा गांधी भी आजमाया करतीं थीं। उन्होंने पीएम आफिस को देश का सबसे ताकतवर आफिस बना दिया था और पीएम आफिस का दखल भारत के सभी जिलों तक होता था। कांग्रेस में प्रत्याशियों को टिकिट से पहले संबंधित जिलों के कलेक्टर्स की रिपोर्ट पर भी गंभीरता से विचार किया जाता था, इसी प्रक्रिया के चलते कई बार कांग्रेस में इंदिरा गांधी को तानाशाह भी कहा गया। भाजपा ने इस पेटर्न का यूज कभी नहीं किया। भाजपा का मानना रहा है कि आफिसों में बंद वरिष्ठ अधिकारियों को जमीनी स्तर की जानकारी नहीं होती जबकि आरएसएस इसका सबसे बेहतर सोर्स है। मध्यप्रदेश में भी आरएसएस की योजना से भाजपा में भेजे गए नेताओं की कमी नहीं है परंतु टिकिट वितरण में किसकी चलेगी यह तो समय ही बताएगा।

मंत्री विश्रोई,प्रतिभा,जैन और मरावी के खिलाफ अंडरकरंट

भोपाल। भाजपा की हाल की सर्वे रिपोर्ट में पार्टी की मध्य भारत व महाकौशल के कई जिलों की करीब-करीब उन सारी सीटों पर हालत खराब पाए गए हैं, जहां वर्ष 2008 के चुनाव में पार्टी ने कांग्रेस का सुपड़ा ही साफ कर दिया था। इनमें जबलपुर में तो यह स्थिति बताई जा रही है कि यहां कि जिन सात सीटों पर भाजपा का कब्जा है उसमें से मंत्री अजय विश्रोई समेत 4 सीटों पर जबरदस्त अंडरकरंट है। अगर पार्टी नहीं संभली तो चार सीटों पर हार निश्चित है। इस रिपोर्ट के बाद से ही पार्टी के माथे पर बल लगातार गहरा हो रहा है। रिपोर्ट में मौजूदा विधायकों की व्यक्तिगत छवि को चुनाव में हानिकारक बताया गया है। इन क्षेत्र का उतना विकास नहीं हो पाया जितना दावा किया गया। ऊपर से यहां के मंत्री व विधायक जन अपेक्षा में खरे नहीं उतर रहे। खुद पार्टी जनों ने कई विधायक की शिकायत भोपाल तक पहुंचाई है। लगातार यह कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री इन क्षेत्र में बेहद लोकप्रिय है किन्तु सरकारी कामकाज ढीलाढाला है। विधायक भी जनता से कटे हुये हैं और मंत्री भी सुध नहीं ले रहे। कुछ कल्याणकारी योजनाओं का क्रियान्वयन भी ठीक ढंग से नहीं हो रहा। इनकी हालत खराब जबलपुर जिले की 8 विधानसभा सीटों में से 7 सीटों यानी पाटन,बरगी,जबलपुर उत्तर,जबलपुर केन्टोन्मेंट,जबलपुर पश्चिम,पनागर और सिहोरा में भाजपा का जबकि जबलपुर पूर्व में कांग्रेस का कब्जा है। इनमें से पाटन,बरगी,जबलपुर उत्तर और सिहोरा में भाजपा की स्थिति दयनीय है। पाटन में अजय विश्नोई ने कांग्रेस के विक्रम सिंह लोधी को12404 मतों से हराया था। लेकिन क्षेत्र से कटे रहने के कारण यहां मतदाता उनसे खफा है। बरगी से भाजपा की प्रतिभा सिंह ने कांग्रेस के माँगीलाल मरावी को 17593 वोट से पछाड़ कर कब्जा जमाया था। जबलपुर उत्तर से भाजपा के शरद जैन ने कांग्रेस के मोहम्मद कादिर 9861 वोट से हराया था। सिहोरा (एसटी)से भाजपा की नन्दिनी मरावी कांग्रेस के मुन्ना मरावी 16702 मतों से मात दी है। इनके अलावा यहां की एक मात्र कांग्रेस के कब्जे वाली जबलपुर पूर्व विधानसभा सीट पर कांग्रेस की स्थिति भी अच्छी नहीं है। जबलपुर पूर्व (अजा)सीट पर भाजपा के अंचल सोनकर को हराकर कांग्रेस के लखन घंघोरिया 6807 मतों से हरा कर विजयश्री हासिल की थी। ये हैं दमदार रिपोर्ट में जबलपुर केन्टोन्मेंट,जबलपुर पश्चिम और पनागर में भाजपा की स्थिति मजबुत बताई जा रही है। जबलपुर केंट से ईश्वरदास रोहाणी ने कांग्रेस के आलोक मिश्रा 16000 मतों से हरा कर जीत दर्ज की थी। जबलपुर पश्चिम से भाजपा के हरजिन्दर सिंह बब्बू कांग्रेस के तरुण भानोट को 8901 वोटों से शिकश्त दी। पनागर से भाजपा के नरेन्द्र त्रिपाठी ने कांग्रेस के विजयकांति पटेल को 15120 वोट से मात दी है। दो सीट पर नये चेहरे उतारेगी कांग्रेस दस साल या उससे अधिक समय जिन सीट पर कांग्रेस हार रही है उन्हें लेकर नई रणनीति बनाने का काम शुरू हो गया है। तीन सूत्रीय फार्मूला तय किया जा चुका है और दूसरे सुझाव भी लिए जा रहे हैं। एक समिति भी इस संबंध में बनाई गई है जो संबंधित क्षेत्र में जाकर लोगों से चर्चा करेगी। जबलपुर शहर में पूर्व क्षेत्र को छोड़ दिया जाये तो पश्चिम, उत्तर-मध्य व कैंट में कांग्रेस जीत का जश्न नहीं मना पा रही। उत्तर-क्षेत्र जब मध्य हुआ करता था तब नरेश सराफ जीते थे। पूर्व में भी लगातार चार चुनाव से हार मिल रही थी और उस पर विराम लखन घनघोरिया ने लगाया। अब समिति का सुझाव यह है कि पार्टी को नया चेहरा तलाशना चाहिए। जो चेहरे एक दम फ्रेश हैं उन्हें चुनाव लडऩे का मौका दिया जाए। जहां पिछला चुनाव बहुत अधिक अंतर से हारा गया है वहां नए चेहरे के प्रयोग की सलाह हरहाल में करने दी गई है। शहर के अलावा ग्रामीण का भी फार्मूला यही रहेगा। कटंगी-मझौली क्षेत्र जो अब पाटन के नाम जाना जाता है में भी हार का रिकार्ड बन रहा है। पनागर-सिहोरा में यह दूसरा क्रम भाजपा का है। बरगी जनरल होने से पहले भी भाजपा के कब्जे में रही।

भूरिया ने महल पर साधा निशाना...राहुल को सौंपे सबूत

भाजपा से प्रदेश की सत्ता छीनने के लिए आतुर कांग्रेस में अभी तो सिंधिया बनाम भूरिया लड़ाई ही चल रही है। कल दिल्ली में राहुल के सामने पेशी के दौरान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया ने ग्वालियर के महल पर निशाना साधा और सिंधिया द्वारा मालवा-निमाड़ अंचल में दौरे के नाम पर किए गए शक्ति प्रदर्शन के सबूत भी सौंपे। उल्लेखनीय है कि प्रदेश में पिछले कई महीनों से ज्योतिरादित्य सिंधिया और कांतिलाल भूरिया के बीच अघोषित जंग चल रही है। पहले महेश जोशी ने इस मुहिम का नेतृत्व किया था और भूरिया को हटाने के लिए भोपाल से दिल्ली तक लॉबिंग की थी, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। इसके बाद सिंधिया ने राजीव गांधी विद्युतीकरण योजना की आड़ में मालवा-निमाड़ के तूफानी दौरे कर दिए। भूरिया को इन दौरों से दूर रखा गया। भूरिया ने इन सभी दौरों की पूरी जानकारी के वीडियो फुटेज बुलवाए और कल जब राहुल के सामने उनकी पेशी हुई तो भूरिया ने सिंधिया खेमे द्वारा उनके भाजपाईयों के साथ व्यावसायिक रिश्ते होने के आरोपों पर पलटवार करते हुए बताया कि सिंधिया महल की राजनीति करते हैं। महल के संबंधों के खिलाफ वे नहीं जाते। अपनी बुआ यशोधरा राजे के साथ भी वे रिश्ता निभाते हैं और जब बुआ उनके सामने आती हैं, तो वे इलाका बदल लेते हैं। वे कभी संघ और भाजपा पर हमला नहीं बोलते। सिंधिया जब अपने ही इलाके में पार्टी के लोगों को जिता नहीं पाते, तो दूसरे इलाकों में क्या जिताएंगे। उनके इलाके में दूसरे खेमों के जो नेता हैं, उनकी मदद करने पर वे बौखला जाते हैं। वे केवल अपना प्रभुत्व चाहते हैं और यह सब संभव नहीं है। भूरिया ने सिंधिया के ताजा दौरों की वीडियो क्लिपिंग और अखबारों की कतरनों के जरिए यह साबित करने का प्रयास किया कि उनके दौरे में छुटभैये कांग्रेसी मंच पर थे, लेकिन उन्होंने अध्यक्ष को नहीं बुलाया। भूरिया ने तो यहां तक कह दिया कि मप्र क्रिकेट एसोसिएशन के चुनाव की खातिर सिंधिया ने भाजपा नेताओं से हाथ मिलाए। सारी बातें सुनने के बाद कांतिलाल भूरिया और अजय सिंह को राहुल ने चुनाव तक फ्री-हैंड देने की बात कही और कहा कि वे संगठन मजबूती से चलाएं। जब तक प्रदेश कांग्रेस और जिला कांग्रेस प्रत्याशी की अनुशंसा नहीं करेगी, तब तक टिकट फाइनल नहीं होगा। केवल जीतने वाले व्यक्ति को ही टिकट मिलेगा। दूसरी तरफ अजय सिंह उर्फ राहुल ने भी अकेले सोनिया गांधी से मुलाकात कर उन्हें विधानसभा में प्रतिपक्ष की परफॉर्मेंस की जानकारी दी।

सितंबर से मैदानी मोर्चा संभालेंगे शिवराज

भोपाल। सत्ता की हैट्रिक के लिए भाजपा ने विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की छवि को भुनाने की योजना बनाई है। 25 फरवरी से 20 मार्च तक चलने वाले महाजनसंपर्क अभियान की रिपोर्ट पर आधारित कार्ययोजना को लेकर शिवराज सिंह चौहान सितंबर-अक्टूबर में विधानसभा क्षेत्रों का दौरा करेंगे। पार्टी ने शिवराज के साथ ही, राज्य की 74 फीसदी कृषि पर आधारित आबादी के लिए किए गए सरकार के काम और युवाओं के लिए औद्योगिक निवेश के जरिए रोजगार के रास्ते खेलने को वोट का माध्यम बनाने का निश्चय किया है। वोट के लिए शिवराज की छवि पिछले चार साल से विधायकों द्वारा मतदाताओं से संपर्क की चूक, कार्यकर्ता से संवाद की कमी, विकास कार्यों पर ध्यान नहीं देना और अनुकूल फीडबैक नहीं। यह कुछ कारण है जो संगठन को मजबुर कर रहा है कि वह वोट के लिए पूरी तरह शिवराज की छवि को भुनाए। ब्रांड शिवराज को भुनाने के लिये विशेष कार्य योजना मुख्यमंत्री के कुछ विश्वस्त अफसरों व पार्टी नेताओं ने बनाई है। परदे के पीछे कार्य करने वाले दो भाजपा पदाधिकारियों की देखरेख में जो रणनीति बनाई गई है उसके अनुसार मुख्यमंत्री पूरे प्रदेश का दौरा करेंगे। इस दौरान सभी 230 विधानसभा क्षेत्र का जायजा लिया जायेगा। शहर से ज्यादा प्राथमिकता ग्रामीण इलाके को दी जायेगी। मुख्यमंत्री सीधे ग्रामीणों के बीच जायेंगे और उनसे प्रदेश सरकार के काम के बारे में पूछेंगे। उनका यह दौरा तीन चरण में होगा और इसकी शुरूआत विंध्य क्षेत्र से हो सकती है। मुख्यमंत्री की लोकभावन छवि को देखते हुए पार्टी ने 28,29 और 30 मार्च को मंडल स्तर पर होली मिलन समारोह का आयोजन करने जा रही है। इस आयोजन में आम आदमी को जोड़ा जाएगा। वोट के लिए शिवराज की छवि, कृषि क्षेत्र में काम, युवाओं के लिए निवेश से रोजगार, सोशल सेक्टर विशेषकर बेटियों व महिलाओं की योजनाएं। हाथ जोड़ कर घर-घर जाओ और पूछो समस्या विधायक के साथ बड़े नेता हो या न हो कोई फर्क नहीं पड़ेगा। न उनकी पूछ परख होगी ना ही उनको वजन मिलेगा। 25 फरवरी से पूरे प्रदेश में एक साथ शुरू होने वाली जनसंपर्क यात्रा का प्रदेश नेतृत्व ने ऐसा खाका तैयार किया है जिसमें कार्यकर्ता बूथ एक-एक घर जायेंगे और हाथ जोड़कर नागरिकों से मिल उनकी समस्या जानेंगे। यात्रा का वार्ड प्रभारी मंडल प्रभारी को और मंडल प्रभारी विधानसभा प्रभारी एवं विधानसभा नगर प्रभारी को रिपोर्ट देंगे। इसको नाम नगर जनसंपर्क यात्रा दिया गया है लेकिन पत्रक में जो सवाल पूछकर भरते हैं उसके अनुसार एक तरह से भाजपा यात्रा के बहाने चुनाव प्रचार की शुरूआत कर रही है। जनसंपर्क यात्रा पूरी तरह से संगठन के भरोसे चलेगी। ऐसा भी कह सकते हैं कि 25 से भाजपा बिना प्रत्याशी के चुनाव प्रचार शुरू कर रही है। जनसंपर्क यात्रा को लेकर प्रदेश नेतृत्व कितनी गंभीर है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जनसंपर्क यात्रा की बारीकियां बताने पांच बार नगर जिलाध्यक्षों को भोपाल बुला चुका है। बिना ढोल धमाके की होगी यात्रा प्रदेश भाजपा के निर्देश के अनुसार यात्रा में कार्यकर्ता एक एक बूथ के एक एक घर में जायेंगे और हाथ जोड़कर नागरिकों से समस्ता पूछेंगे। जिस बूथ में जो पदाधिकारी,नेता रहता है वह वहीं यात्रा में शामिल होगा।

प्रदेश में राजनीतिक भूमिका तलाश रहीं उमा!

भोपाल। 2003 में प्रदेश में दस साल पुरानी दिग्विजय सिंह सरकार को उखाड़ कर भाजपा का सरकार लाने वाली उमा भारती अब स्वयं के लिए मध्य प्रदेश में राजनीतिक भूमिका तलाश रहीं है। इसके लिए वे प्रदेश संगठन के साथ ही अपने प्रिय नेता और पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह से निरंतर संपर्क में हैं। यही कारण है कि जो उमा कभी शिवराज सिंह चौहान पर कई गंभीर आरोप लगाती थीं वही अब उनके गले लगते दिखाई देती हैं। उमा इस बात को जानती हैं कि वापसी के समय जिन शर्तों को उन्होंने स्वीकार किया उनमें सबसे बड़ी यही थी कि वे मध्य प्रदेश की राजनीति से दूर रहेंगी। ऐसे में एक चीज स्पष्ट है कि भले ही उमा की और कहीं कोई भूमिका निकल सकती हो लेकिन मध्य प्रदेश के राजनीतिक कपाट उनके लिए बंद हो चुके हैं। यहां के भाजपा नेताओं ने उमा की वापसी का सबसे ज्यादा विरोध किया था। जानकारों का मानना है कि उमा इस बात को अच्छी तरह समझ चुकी हैं कि मध्य प्रदेश में अब उनके लिए कोई राजनीतिक जमीन बची नहीं है और राष्ट्रीय स्तर पर नेताओं के बीच ऐसे ही पद और वर्चस्व को लेकर सिर-फुटौव्वल मची हुई है। उमा के एक अत्यंत करीबी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, देखिए, दीदी जानती हैं कि उनके पास विकल्प नहीं है। मध्य प्रदेश वे आ नहीं सकती। फिर भी राजनाथ सिंह के अध्यक्ष बनने पर उन्हें एक उम्मीद की किरण नजर आ रही है। वे आगे कहते हैं कि राजनाथ जी भी चाहेंगे की दीदी केंद्र में रह कर राजनीति करें। कुछ राजनीतिक विश्लेषक यह भी मानते हैं कि उमा आगे क्या करेंगी, पार्टी में उन्हें क्या नई जिम्मेदारी मिलेगी, उनकी राजनीतिक हैसियत कितनी कमजोर या मजबूत होगी यह इस बात पर भी निर्भर करेगा कि राजनाथ उन्हें कितना महत्व देते हंै। राजनीतिक टिप्पणीकारों का मानना है कि खुद को स्थापित करने और खोई हैसियत पाने के साथ ही पार्टी को स्थापित करने के लिए भी यह जरूरी है कि उमा उत्तर प्रदेश में रहकर काम करें क्योंकि वर्तमान चुनाव परिणामों ने बता दिया है कि जब तक दिल दिल्ली में लगा रहेगा तब तक उत्तर प्रदेश में जीत नामुमकिन है। उत्तर प्रदेश में नहीं चली बताते हैं कि भाजपा में वापसी के बाद जब उमा भारती को उत्तर प्रदेश भेजा गया तब किसी को भी यह भ्रम नहीं था कि वे वहां जाकर क्रांति करने वाली हैं। भाजपा और उसके खुद उमा भारती भी जानती थीं कि पार्टी में वापसी के बाद यूपी में उन्हें मिली पहली पोस्टिंग का क्या मतलब है। खैर, कार्यकर्ता, संगठन और नेतृत्व विहीन या कहें मरणासन्न उत्तर प्रदेश भाजपा के साथ उन्होंने काम किया। नतीजा सामने है। पार्टी बुरी तरह चुनाव हार चुकी है। 2007 के मुकाबले न उसे चार सीटें कम मिली हैं बल्कि वोट प्रतिशत में भी कमी आया। हां, उमा चरखारी विधानसभा से अपनी सीट जीतने में कामयाब हुईं। अब फिर से वही यक्ष प्रश्न सामने है कि उमा भारती का अगला राजनीतिक कदम क्या होगा। कम हुई शिव और उमा की दूरिया राजनीति में कोई किसी का दुश्मन नहीं होता है। वक्त-वक्त के साथ राजनीति भी अपना चेहरा बदलती रहती है। इसका नजारा 9 फरवरी को होशंगाबाद में नर्मदा समग्र के सेमीनार में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उमा भारती एक मंच पर थे। इस दौरान चौहान और भारती के बीच गुप्तगू भी हुई। दोनों खूब खिल-खिलाए भी। राजनीतिक पंडितों को इस पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ। क्योंकि राजनीति में हर पल तो बदलाव होता है। भाजपा में वापसी के बाद उमा भारती और शिवराज की प्रदेश में पहली बार एक मंच पर मौजूदगी थी। इससे साफ जाहिर है कि कहीं न कहीं मामला भीतर ही भीतर कुछ पक रहा है। उमा भारती संघ परिवार से बेहद निकट से जुड़ी हुई हैं और संघ परिवार अब उमा भारती को मुख्य धारा में लाने के लिए हरसंभव कोशिश कर रहा है। ऐसी स्थिति में उमा भारती ने भी पुराने गिला-शिकवा भुलाकर अब फिर से अपनी नई राजनीतिक जमीन तैयार करने की कोशिश कर रही हैं। निश्चित रूप से मप्र की राजनीति में उमा और शिव की जोड़ी अगर भविष्य में बनती भी है, तो यह भाजपा के लिए सुखद ही होगा, जो कि चुनाव में भी वोट प्रतिशत तो बढ़ाएगा ही।

भाजयुमो में ऊपरी को जगह नहीं

भोपाल। भारतीय जनता युवा मार्चा (भाजयुमो )की मध्यप्रदेश इकाई की कार्यकारिणी की घोषणा का युवाओं को बेसब्री से इंतजार हो रहा है। कहा जा रहा है कि यदि 25 फरवरी के पहले घोषणा नहीं हुई तो इंतजार और लम्बा खींच सकता है। उधर खबर है की चुनावी वर्ष होने के कारण इस बार मोर्चे की कार्यकारिणी का जो खाका तैयार किया गया है उसमें किसी भी ऊपरी(सिफारिश वाले को)युवा को शामिल नहीं किया गया है। लेकिन करीब 150 पदाधिकारियों वाली कार्यसमिति में कई मंत्री और विधायकों के पुत्रों और रिश्तेदारों को जगह मिली है। काम करने वालों को ही मौका प्रदेश कार्यसमिति के लिए युवाओं द्वारा जमकर लॉबिंग की जा रही है,लेकिन चुनावी वर्ष होने के कारण किसी की जुगाड़ नहीं लग पा रही है। भाजयुमो प्रदेश अध्यक्ष अमरदीप मौर्य संगठन के खेमे से है और वे भोपाल में संगठन मंत्री भी रह चुके हैं ऐसे में उम्मीद यही है कि इस बार काम करने वालों को ही प्रदेश कार्यकारिणी में मौका मिलेगा। बताया जाता है कि मौर्य द्वारा कार्यकारिणी का जा खाका तैयार किया गया है उसमें पांच उपाध्यक्ष, एक महामंत्री और पांच मंत्री मनोनित किए गए है। साथ ही आधा सैकड़ा कार्यकारिणी सदस्य, आधा सैकड़ा विशेष आमंत्रित सदस्य और आधा सैकड़ा ही स्थायी सदस्य मनोनित किए गए है। पुरानों के कंधों पर होगा भार बताया जाता है भाजयुमों की नई कार्यकारिणी में अधिकांश पुराने पदाधिकारियों को शामिल किया गया है। इस चुनावी वर्ष में संगठन किसी गफलत में नहीं पडऩा चाहता। हालांकि भाजयुमों की कार्यकारिणी घोषित करने की अभी समय सीमा तय नहीं की गई है, लेकिन निकट भविष्य में प्रदेश कार्यकारिणी के साथ भाजयुमो जिलाध्यक्षों से लेकर मंडल तक के पदाधिकारियों की नई टीम खड़ी होगी जिससे मिशन 2013 के विधानसभा चुनावों में फतह प्राप्त की जा सके। जिलों में मोर्चा प्रकोष्ठों के पदाधिकारियों से लेकर युवा मुखिया की दौड़ में दावेदारों की लंबी कतार है। बताया जाता है कि मोर्चा के कई पूर्व जिलाध्यक्षों को इस बार भी मौका मिलेगा। इस संकेत उस दिन ही मिल गया था जिस दिन भाजपा कार्यालय में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ने मोर्चा के सभी जिलाध्यक्षों को बुलाकर चुनावी तैयारी में जुट जाने का निर्देश दिया था। प्रदेश कार्यकारिणी शीघ्र भाजयुमो के प्रदेश अध्यक्ष अमरदीप मौर्य का कहना कि मोर्चा की प्रदेश कार्यकारिणी का गठन वरिष्ठ नेताओं से विचार विमर्श के बाद शीघ्र ही किया जाएगा। एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि मोर्चा में कोई गुटबाजी नहीं है। मोर्चा का अब एकमात्र लक्ष्य मिशन 2013 को सफल बनाना है। उन्होंने कहा कि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर के नेतृत्व में मिशन 13 को सफल बनाने के लिए मोर्चा पूरी तरह से तैयार है। प्रदेश में जहां भाजपा हेट्रिक बनाएगी वहीं अब दिल्ली भी दूर नहीं है।

फीलगुड कहीं शाइन कम न कर दे भाजपा का

भाजपा के खिलाफ ग्वालियर-चंबल, विंध्य और बुंदेलखंड में जबरदस्त अंडरकरंट भोपाल। 2004 के लोकसभा चुनावों में फीलगुड और इंडिया शाइनिंग ने भाजपा की उम्मीदों पर पानी फेर दिया था। इसके बाद भी मध्यप्रदेश सरकार इसी फार्मूले पर आगे बढ़ती दिखाई दे रही है। भाजपा के खिलाफ ग्वालियर-चंबल, विंध्य और बुंदेलखंड में जबरदस्त अंडरकरंट हैं। लगातार दूसरी पारी खेल रही मध्य प्रदेश भाजपा को 2013 में होने वाले विधानसभा चुनावों में भारी मशक्कत करना पड़ सकता है। 230 विधानसभा सीटों वाले मध्य प्रदेश में 155 सीटों पर भाजपा की हालत पतली ही दिख रही है। विंध्य में कुपोषण और भुखमरी के कारण लोगों में सरकार के प्रति आक्रोश है तो बुंदेलखंड में बेरोजगारी उसकी मुश्किल बढ़ा सकती है। चुनाव से पहले सड़कों को ठीक करने की सरकार की मंशा भी उसके लिए उल्टा-दांव पड़ सकती है। सड़कों की दुर्दशा से भाजपा के शहरी मतदाता भी उससे नाराज हैं। चुनाव के समय किसानों को भरपूर बिजली देने के लिए बिजली की खरीदी भी होगी, इसके बाद फिर पांच साल तक किसान खाद, बीज, पानी और सड़क के लिए तरसेगा। भाजपा के मंत्रियों का बड़बोलापन और प्रदेश में भ्रष्टाचार भी उसके लिए मुसीबत बन सकता है। भाजपा हैटट्रिक करेगी या नहीं इस सवाल का जवाब ढूंढने में लगी खुफिया एजेंसी की रिपोर्ट कहती है कि प्रदेश की 155 से ज्यादा सीटों पर भाजपा की हालत बहुत खराब है। जिन मुद्दों पर भाजपा 2003 में जीती थी, उन्हीं मुद्दों पर अंडरकरंट दिख रहा है। लोकसभा चुनावों के अप्रत्याशित परिणामों का असर भी इन सीटों पर दिखाई दे रहा है। अन्य राज्यों से लगी विधानसभा सीटों पर भी भाजपाविरोधी लहर साफ दिख रही है। कांग्रेस को दूर करनी होगी गुटबाजी कांग्रेस की हर बैठक में गुटबाजी के कारण झगड़े होते हैं। बड़े नेता कार्यक्रमों और बैठकों से किनारा कर रहे हैं। इससे कांग्रेस में कलह साफ दिख रही है। भोपाल में पिछले दिनों प्रदेश प्रभारी बीके हरिप्रसाद की मौजूदगी में हुई महत्वपूर्ण बैठक में वरिष्ठ कांग्रेस नेता नदारद थे। सभी सांसदों और विधायकों ने भी इसमें उपास्थिति दर्ज नहीं कराई। बेटे को केंद्रीय मंत्रिमंडल से बाहर करने के कारण पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुभाष यादव नाराज चल रहे हैं। पूर्व नेता प्रतिपक्ष स्वर्गीय जमुना देवी की गैरमौजूदगी में कांग्रेस के लिए आदिवासी वोट बैंक बरकरार रखने के लिए कड़ी मशक्कत करना पड़ेगी। भूरिया क्षेत्र से निकलकर पहली बार प्रदेश के आदिवासी नेता बनने की कोशिश कर रहे हैं। पार्टी हाईकमान भी उन्हें आदिवासी नेता के रूप में प्रदेश में स्थापित कराना चाहता है, इसमें कितनी सफलता मिलती है यह अगले चुनाव में ही स्पष्ट होगा। ग्वालियर-चंबल संभाग में सब दमदार ग्वालियर-चंबल संभाग में भी उत्तरप्रदेश का फेक्टर काम करेगा। बसपा वहां जीती तो इन इलाकों के जिलों में भी अपना असर दिखा सकती है। इस क्षेत्र में फूलसिंह बरैया की पार्टी भी अच्छा-खासा जनाधार रखती है। बसपा से निकाले जाने पर भाजपा ने उन्हें अपनाया लेकिन उन्हें वहां पर्याप्त तवज्जो नहीं मिली। इसलिए उन्होंने पार्टी छोड़ दी। रीवा से मुरैना तक 31 सीटें ऐसी हैं, जहां बसपा ने दमदार उपस्थिति दर्ज कराई है। कांग्रेस में कलह कांग्रेस ने विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव और जेल भरो आंदोलन के जरिए अपने इरादे जाहिर स्पष्ट कर दिए हैं। लेकिन कांग्रेस की कथित एकता खंडित हो रही है। बड़े नेताओं की अरुचि की वजह से कार्यकर्ताओं में जोश नहीं है। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ओर प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया की जोड़ी प्रदेश सरकार की नींद उड़ाए हुए है। इस जोड़ी ने पिछले दो महीने में जो सक्रियता दिखाई और सरकार पर जोरदार हमले किए उससे कांग्रेस में नई जान आ गई है। विंध्य क्षेत्र में बसपा का दबदबा उत्तरप्रदेश चुनावों का सीधा असर विंध्य क्षेत्र के जिलों रीवा, सतना, सिंगरौली, त्योंथर में दिखाई देगा। यदि बसपा ने उत्तरप्रदेश में अच्छा प्रदर्शन किया तो वह यहां भी पैर पसार सकती है। इस इलाके में अर्जुन सिंह को हराने वाले समानता दल के प्रदेश प्रमुख का भी दबदबा है। महाराष्ट्र की सीमा से लगे छिंदवाड़ा व आसपास के जिलों में एनसीपी का प्रभाव है। यहां यह पार्टियां भले ही सीटें जीत न पाए, लेकिन बड़ी संख्या में वोट काटने में कामयाब जरूर रहेंगी। इनकी नहीं हो रही पूछ परख सुभाष यादव, श्रीनिवास तिवारी, इंद्रजीत पटेल, मुकेश नायक, गुफरान ए आजम, अजीज कुरैशी, सुरेश पचौरी, शोभा ओझा, बालकवि बैरागी, किसन पंत इन मुद्दों पर है अंडरकरंट खाद संकट, बिजली, पाला , कुपोषण, सड़क, पानी, घोषणाएं ज्यादा, काम कम

चुनावी वर्ष में कांग्रेस को नए जिलाध्यक्षों की तलाश

भोपाल। जयपुर चिंतन शिविर में प्रदेशाध्यक्ष, उपाध्यक्ष और जिलाध्यक्षों के चुनाव नहीं लड़ाने पर बनी सैद्धान्तिक सहमति कांग्रेस के गले की फांस बनती नजर आ रही है। खास कर मप्र मेें तो स्थिति इतनी विकट है कि यहां दर्जन भर जिलाध्यक्ष विधानसभा चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहे हैं। ऐसे में पार्टी उन जिलों में नए जिलाध्यक्ष की तलाश कर रही है। बताया जाता है कि दर्जन भर जिलाध्यक्षों के साथ करीब दो दर्जन पदाधिकारी इस बार चुनाव लडऩे की पूरी तैयारी में हैं। ऐसे में अगर जयपुर चिंतन के मसौदे में बदलाव नहीं किया जाता है तो इस चुनावी वर्ष में प्रदेश के कई जिलों में पार्टी को नए जिलाध्यक्ष नियुक्त करने पड़ेंगे। पार्टी ने इसकी खोजबीन भी शुरू कर दी है। क्योंकि इनमें से कई जिलाध्यक्षों की दावेदारी न केवल जायज है, बल्कि वे जीतने की माद्दा रखते है। ये जिलाध्यक्ष हैं विधानसभा की सीट के दावेदार पीसी शर्मा (भोपाल शहर)- प्रमोद टंडन(इंदौर शहर)-इंदौर क्रमांक-5 बालमुकुंद गौतम(धार)- धार विधानसभा अंतर सिंह दरबार(इंदौर ग्रामीण)-महू विधानसभा क्षेत्र श्याम होलानी( देवास ग्रामीण के अध्यक्ष- बागली विधानसभा क्षेत्र प्रदीप जायसवाल(बालाघाट जिलाध्यक्ष )-वर्तमान में विधायक नित्यनिरंजन खम्परिया(जबलपुर ग्रामीण)- स्थान तय नहीं नरेश सर्राफ (जबलपुर शहर अध्यक्ष )-स्थान तय नहीं मकसूद अहमद(सतना शहर अध्यक्ष)-सतना विधानसभा क्षेत्र दिलीप मिश्रा (सतना ग्रामीण अध्यक्ष)-अमरपाटन विधानसभा वृदां प्रसाद(रीवा ग्रामीण )-मनगवां विधानसभा क्षेत्र राकेश कटारे (शहडोल जिलाध्यक्ष)- शहडोल से विधानसभा मनोज दुबे (छतरपुर जिलाध्यक्ष)-स्थान तय नहीं रामसिंह यादव()-कोलारस विधानसभा चुनाव लडऩे के इच्छुक प्रदेश पदाधिकारी उपाध्यक्षों में विधायक तुलसी सिलावट, बिसाहुलाल सिंह, आरिफ अकील, अरूणोदय चौबे (ये सभी वर्तमान में विधायक भी है),घनश्याम पाटीदार, महामंत्री बाला बच्चन, प्रभुराम चौधरी, निशीथ पटेल, संजय पाठक, सुखदेव पांसे(ये सभी विधायक), रवि जोशी, सुनील सूद और सत्यदेव कटारे, सचिवों में स्वदेश जैन, नासिर इस्लाम, जीतू पटवारी, कमलेश्वर पटेल, जोधाराम गूर्जर,कौशिल्या गोटिया और पुष्पा चौहान। ये सभी दावेदार संगठन का पद छोडऩे को तैयार हंै, बशर्ते उन्हें टिकट मिलने की गारंटी हाईकमान द्वारा मिल जाए। प्रत्यासियों की खोज शुरू कांग्रेस ने उम्मीदवारों की तलाश अपने स्तर पर शुरू कर दी है। लेकिन यह बहुत प्राथमिक प्रक्रिया है। हाइकमान ने उत्तराखंड के पूर्व मंत्री किशोर उपाध्याय को भोपाल समेत कुछ संभागों के हालात की जानकारी जुटाने भेजा था। इस दौरान वे कांग्रेस नेताओं-कार्यकर्ताओं से मुलाकात करके तमाम जरूरी फीडबैक ले गए। हालांकि जाहिर तौर पर वे लोकसभा उम्मीदवारों की संभावना तलाशने भेजे गये थे, लेकिन जानकारों का मानना है कि इसी दौरान उन्होंने विधानसभा सीटों का गणित भी पूरी दिलचस्पी से समझा है। इस बार चुनाव में युवा कांग्रेस को लगभग 25 से 30 सीटों से चुनाव लड़ाने की योजना से भी कांग्रेस नेता बेचैन हैं। सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी ने युंका नेताओं को आजमाने का फार्मूला यह कहकर बनाया है कि युवा हारता भी है तो वह बाकी पांच साल क्षेत्र में सक्रिय रहता है, उम्रदराज ऐसा नहीं कर पाता। इनका कहना है जयपुर चिंतन शिविर में जो प्रस्ताव पारित किया गया है उसके अनुसार कार्य किया जाएगा। अभी इसके लिए कोई दिशा-निर्देश नहीं मिला है। प्रदेश की एक-एक रिपोर्ट केन्द्रीय नेतृत्व के पास है। विधानसभा चुनाव में जीतने वाले को टिकट देना पार्टी की प्राथमिकता होगी। कांतिलाल भूरिया प्रदेशाध्यक्ष,मप्र कांग्रेस

घबराए राहुल...मप्र में भेजा दूत

भोपाल। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अंदरूनी सर्वे की आकलन रिपोर्ट से जहां संघ और भाजपा के दिग्गजों को नई दिल्ली में मैराथन मंत्रणा के लिए विवश कर दिया है वहीं घबराए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने दूत मप्र भेंज कर सर्वे में लगा दिया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सर्वे रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में सांसदो,मंत्रियों और विधायकों की पुअर प्रोफार्मेंस के बाद भी यहां लोकसभा की 24 और विधानसभा की 130 सीटों पर भाजपा को जीत मिलने की संभावना है। जबकि कांग्रेस और भाजपा द्वारा कराए गए सर्वे में भाजपा की स्थिति खस्ताहाल बताई गई थी। संघ की रिपोर्ट सामने आते ही राहुल गांधी ने अपने दूत भेज कर सर्वे शुरू करा दिया है। दस लोकसभा सीटों पर सर्वे का काम पूरा प्रदेश में दस लोकसभा सीटों पर सर्वे का काम पूरा हो चुका है। पार्टी सूत्र बताते है कि गांधी लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटे हैं और वे उन्हीं लोगों को टिकट देना चाहते हैं जो जीत सकते हैं। इसके लिए अलग-अलग स्तर पर लोक सभावार सर्वे कराया जा रहा है। प्राइवेट कंपनी के अलावा गांधी अपने विश्वस्त नेताओं को भेजकर रिपोर्ट ले रहे हैं। इनमें कांग्रेस कार्यकर्ताओं से लेकर आम लोगों से तक उम्मीदवार को लेकर राय ली जा रही है। इसके बाद ही टिकट का निर्णय लिया जाएगा। गांधी ने महाराष्ट्र सरकार में पूर्व मंत्री रहे विजय एन वेडट्टीवार को प्रदेश की दस लोकसभा सीटों सागर, रीवा, सतना, भिंड, मुरैना, ग्वालियर, गुना, दमोह, टीकमगढ़ और खजुराहो की जिम्मेदारी सौंपी थी। उन्हें इन सीटों का पर्यवेक्षक बनाकर भेजा गया था। वेडट्टीवार ने दसों सीटों पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं से लेकर नेताओं तक से चर्चा करने के बाद रिपोर्ट बनाई है। यह रिपोर्ट वे इसी महीने आलाकमान को सौंपेगे। दिग्विजय का सागर से लडऩे की संभावना कांग्रेस महासचिव एवं पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का सागर से लोकसभा चुनाव लडऩे की संभावना है। वेडट्टीवार ने स्वीकार किया है कि सागर के कार्यकर्ताओं और नेताओं ने वहां से पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह को उम्मीदवार बनाने की मांग की है और उन्हें ही वहां से जीतने वाला उम्मीदवार बताया है। सर्वे के दौरान कांग्रेस नेताओं ने बेहतर उम्मीदवार के नाम के साथ ही पिछली बार हार के कारण भी जानने की कोशिश की। साथ ही यह भी पूछा कि पार्टी उम्मीदवार जीत सके इसके लिए क्या कदम उठाने चाहिए। सूत्र बताते हैं कि ज्यादातर कार्यकर्ताओं ने कहा कि सही तरीके से टिकट बंटना चाहिए और जो जीतने लायक है, उन्हें ही टिकट दिया जाना चाहिए। पिछली बार बुरी तरह हार के पीछे जो कारण सर्वे में आए हैं उनमें पार्टी कार्यकर्ताओं में निराशा सबसे बड़ी वजह आई। वेडट्टीवार ने स्वीकार किया कि निराशा की वजह से पिछली बार हारे थे लेकिन इस निराशा से पार्टी कार्यकर्ता बाहर निकल आया है और अब उसमें जोश-उत्साह भरा हुआ है। जिसके अगले चुनाव में बेहतर परिणाम सामने आएंगे। उन्होंने कहा कि हमारा उद्देश्य वास्तविक रिपोर्ट पार्टी हाईकमान तक पहुंचाना है। यह ले रहे हैं टोह दस लोकसभा क्षेत्र में विडट्टीवार के साथ आलाकमान द्वारा प्रदेश भेज कर कांग्रेस नेता हसन गिलानी और प्रकाश देवताले लोगों से उम्मीदवारों को लकर टोह ले रहे हैं। बंद कमरे में नेताओं से एक-एक कर चर्चा की जा रही है और कार्यकर्ताओं से भी मुलाकात कर उनकी राय जानी जा रही है। हर सीट पर उन्होंने 500 से लेकर हजार कार्यकर्ताओं और नेताओं से मुलाकात की है।

विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा का रोडमैप तैयार

भोपाल। प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर और संगठन महामंत्री अरविंद मेनन की तिकड़ी जीत की हैट्रिक बनाने को लेकर कोई भी मौका नहीं चुकना चाहती है। यही कारण है कि उसने चुनाव के 8 माह पूर्व ही हर मतदाता तक पहुंचने के लिए रोडमैप तैयार कर लिया है। अगले आठ माह तक चलने वाले विभिन्न अभियानों के जरिए पार्टी हर वर्ग तक पहुंचने की कोशिश करेगी। पार्टी का हर तैयार पूरी तरह चुनाव की धूरी पर धूमती नजर आ रही है। कांग्रेस पर हमले की तैयारी भाजपा अब पूरी तरह चुनावी मोड में आ गई है। पार्टी राज्य में किसानों, महिलाओं, गरीबों के उत्थान और विकास की दिशा में रचे गए इतिहास को हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर कांग्रेस पर करारे हमले बोलेगी। इतना ही नहीं, बढ़ते आतंकवाद, नक्सलवाद व महंगाई के लिए केंद्र सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराते हुए उसकी पोल खोलेगी। सबसे सक्रिय शिवराज मप्र में नवंबर माह में विधानसभा जंग होनी है, इससे पहले कांग्रेस और भाजपा अपनी रणनीति बनाने में जुट गए है सबसे सक्रिय सरकार है, सरकार के मुखिया ने चुनाव पर आधारित अभियान चला दिए है जिस पर पूरा ध्यान मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान का है, वे लगातार पंचायतों का आयोजन करके अपनी छवि में तो चार चांद लगा ही रहे है पर उनके साथ भाजपा संगठन कदम ताल कर रहा है। प्रदेश अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर धीरे-धीरे संगठन को गति दे रहे हैं। भाजपा सरकार और संगठन तो अपने स्तर पर गोपनीय सर्वे भी करा रहे है, इस बार तीसरी ताकत के दल भी अभी से जोर मार रहे हैं। बसपा का अपना अभियान चल पडा है, यूं तो मप्र में दो दलीय व्यवस्था जड़ जमा चुकी है पर समय-समय पर तीसरी ताकत के दलो ने भी अपना जादू दिखाया है। नौ साल की उपलब्धियां गिनाएंगे विभाग संगठन को शिवराज सरकार की उपलब्धियों का प्रचार का कार्यक्रम देने के बाद शिवराज सरकार ने अब प्रशासनिक रूप से भी मिशन 2013 के लिए बीते नौ साल की उपलब्धियां जुटानी शुरू कर दी हैं। राज्य के सभी विभागों को नोटशीट भेजकर आदेशित किया गया है कि वे पिछले नौ साल की महत्वपूर्ण उपलब्धियों के संबंध में नोट एवं ईमेल भेजें। यह ईमेल एमपीजीओवीडाटएमपीडाटजीओवीडाटइन पर भेजने के लिये कहा गया है। जाहिर है, शिवराज सरकार अपने वर्तमान चार साला कार्यकाल की उपलब्धियों पर संतुष्ट नहीं है इसलिये वह पिछले पांच साला कार्यकाल की उपलब्धियों को भी आम जनता के सामने लाना चाहती है। परदे के पीछे कार्य करने वाले दो भाजपा पदाधिकारियों की देखरेख में जो रणनीति बनाई गई है उसके अनुसार मुख्यमंत्री निकट भविष्य में पूरे प्रदेश का दौरा करेंगे। इस दौरान सभी 230 विधानसभा क्षेत्र का जायजा लिया जायेगा। शहर से ज्यादा प्राथमिकता ग्रामीण इलाके को दी जायेगी। मुख्यमंत्री सीधे ग्रामीणों के बीच जायेंगे और उनसे प्रदेश सरकार के काम के बारे में पूछेंगे। उनका यह दौरा तीन चरण में होगा और इसकी शुरूआत विंध्य क्षेत्र से हो सकती है। सर्वे में कहा गया है कि विंध्य,बुंदेलखंड व महाकोशल की सौ सवा सौ सीट पर पार्टी को अधिक खतरा है। इन क्षेत्र का उतना विकास नहीं हो पाया जितना दावा किया गया। ऊपर से यहां के मंत्री व विधायक जन अपेक्षा में खरे नहीं उतर रहे। खुद पार्टी जनों ने कई विधायक की शिकायत भोपाल तक पहुंचाई है। लगातार यह कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री इन क्षेत्र में बेहद लोकप्रिय है किन्तु सरकारी कामकाज ढीलाढाला है। विधायक भी जनता से कटे हुये हैं और मंत्री भी सुध नहीं ले रहे। कुछ कल्याणकारी योजनाओं का क्रियान्वयन भी ठीक ढंग से नहीं हो रहा। बहरहाल हैट्रिक बनाने की धुन में मुख्यमंत्री ने संभवत: अब खुद ही पार्टी का अकेले बोझ उठाने की ठान ली होगी। ----------- यह बात और है कि जब नवम्बर, 2011 को मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस द्वारा विधानसभा में शिवराज सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था तब सिर्फ इसी सरकार के कार्यकाल के आरोपों को ही शामिल आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा में भी चिन्ता की लकीरें हैं। पार्टी के माथे पर बल लगातार गहरा हो रहा है। मुख्यमंत्री भले ही कितने भी लोकप्रिय क्यों न हो किन्तु सत्ता विरोधी रुझान कम नहीं हो रहा । इसके अलावा विधायकों के प्रति नाराजगी भी बढ़ती जा रही है। पार्टी के आंतरिक सर्वे ने प्रदेश नेतृत्व को सोचने पर मजबूर कर दिया है। इस सर्वे में परम्परागत सीटें छोड़ कर बाकी जगह प्लस-मायनस का गुणा भाग सामने आया है। सूत्रों का कहना है कि पूर्व अध्यक्ष प्रभात झा के समय कराये गये सर्वे की रिपोर्ट आ गई है। इस सर्वे में कुछ इन्टेलीजेन्स अधिकारियों की सहायता ली गई थी। यह भी दावा हो रहा है कि इस सर्वे रिपोर्ट से स्वयं मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान चिन्तित हो उठे हैं। उन्होंने अपनी तरफ से कुछ कदम भी लिये हैं। ब्रांड शिवराज को भुनाने के लिये विशेष कार्य योजना मुख्यमंत्री के कुछ विश्वस्त अफसरों व पार्टी नेताओं ने बनाई है। फिलहाल कांग्रेस की चाल में खासी तब्दीली नहीं आई है पर ऐसा लगता है कि कांग्रेस में भीतर ही भीतर बेचैनी तो नजर आ रही है। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह की शपथ भी इसी साल खत्म हो रही है। ऐसी स्थिति में कांग्रेस की चाल में तेजी तो आएगी पर यह कब आएगी यह अभी किसी को नहीं मालूम है जबकि सरकार की तरफ रोजाना मुद्दे विपक्ष को मिल रहे है तब भी जैसी सक्रियता की आम आदमी अपेक्षा कर रहा है। उस पर कांग्रेस खरी नहीं उतर रही है। इस वजह से हर तरफ होने वाली चर्चाओं से कांग्रेस को कम ही नंबर मिल रहे है।

गढ़ से निकल चुनावी मोर्चा संभालेंगे दिग्गज

भोपाल। कभी कांग्रेस का अभेद किला रहे मप्र में लगातार 10 साल सत्ता से बाहर रहने के बाद पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव में हर हाल में जीत दर्ज करने की योजना बना रहा है। इसके लिए दिग्गज नेताओं को अपने गढ़ से निकल कर पूरे प्रदेश में सक्रिय होने की रणनीति बनाई जा रही है। इस नीति के तहत सभी दिग्गज नेता चुनाव से चार माह पहले प्रदेश में डेरा डालना होगा। 2008 का चुनाव हारने के बाद कांग्रेस कुपोषित हो गई। उमा के बाद बाबूलाल गौर और उसके बाद शिवराज के सीएम बनने के बाद कांग्रेस के जो वोट बैंक थे, उस पर धीरे धीरे भाजपा का कब्जा हो गया। शिवराज चूंकि ओबीसी की राजनीति करते हैं, और कांग्रेस के जीत का यही वोट बैंक है। जो कि उसके हाथ से सत्ता के जाते ही खिसक गया। आज आदिवासी वोट बैंक को पुन: कबजाने के लिए कांतिलाल भूरिया को प्रदेश अध्यक्ष बना कर भेजा गया, लेकिन वो भी गुटबाजी की गांठ को और भी कस दिये। नतीजा पार्टी के अंदर उनका जमकर विरोध शुरू हो गया। मामला प्रदेश से दस जनपथ तक पहुंचा। केन्द्रीय मंत्रिमंडल का विस्तार होने की वजह से मामला दब गया। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह राहुल और कांतिलाल भूरिया को दिल्ली बुलाया गया। कांतिलाल वर्सेस ज्योतिरादित्य सिंधिया के मामले की विवेचना का दायित्व फर्नांडिस को देकर विरोध के गुबार को दबाने का प्रयास हाई कमान ने किया। लेकिन अब भी माना जा रहा है कि कांग्रेस के अंदर कांतिलाल को लेकर विरोध दबा नहीं है। पार्टी के अंदर बगावत की आग सुलग रही है। विधायक कल्पना पारूलेकर सहित बीस विधायकों ने दमदारी के साथ कांतिलाल की खिलाफत करके बता दिया कि कांतिलाल नहीं चलेंगे। कल्पना पारूलेकर कहती हैं, ''कांतिलाल भूरिया की वजह से कांग्रेस रसातल में जा रही है। कांग्रेस को मजबूत करने की बजाय उन्होंने उसे गुटों में बांट दिया है। उन्हें मुद्दे उठाना नहीं आता। कई मामले में ऐसा लगता है कि उनकी सांठ गांठ सत्ता पक्ष से है। केवल प्रवक्ताओं की फौज खड़ी करने से काम नहीं चलेगा। यदि 2013 का चुनाव कांग्रेस जीतना चाहती है तो ज्योतिरादित्य सिंधिया को कमान सौंपना ही होगा। अन्यथा कांग्रेस एक बार फिर औंधे मुंह गिर जायेगी''। यह अकेले कल्पना की ही आवाज नहीं है। देखा जा रहा है कि कमलनाथ के आदमी हों या फिर दिग्गी के समर्थक सभी ज्योतिरादित्य के साथ खड़े होने को आतुर हैं। विधायक अमृतलाल जायसवाल कहते हैं, '' कांतिलाल भूरिया के आने से कांग्रेस में तेजी आई है। अभी कांग्रेस में जैसा चल रहा है उसे ठीक ठाक कहा जा सकता है। चुनाव का जहां तक सवाल है, तो राजनीति हमेशा लोकप्रियता पर चलती है। लोकप्रिय व्यक्ति की ही बात सुनी जाती है। ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के स्टार प्रचारक की भूमिका निबाह सकते हैं। उनमें युवाओं को जोडऩे का आकर्षण है। जितने युवा जुड़ेंगे वो कांग्रेस के लिए प्लस होगा''। एक विधायक कहते हैं, ''कमलनाथ छिंदवाड़ा से बाहर निकलते नहीं, कांतिलाल भूरिया आदिवासी जिले तक ही सिमट गये। अजय सिंह राहुल ने ठाकुर बाहुल्य क्षेत्र तक अपने को सिमटा लिया। सुभाष यादव खंडवा से बाहर नहीं निकलते। ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर से बाहर नहीं जाते। पिछले कुछ माह से कुछ जिलों का दौरा किया है। लेकिन इससे क्या होता है। पूर्व विधान सभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी विंध्य क्षेत्र के नेता बन कर रह गये। दिग्विजय सिंह केवल बयानबाजी तक ही सिमट कर रह गये हैं। कमलनाथ को केवल छिंदवाड़ा दिखता है। सभी बड़े नेता अपना अपना क्षेत्र तय कर रखे हैं। ऐसे में हाथ को साथ कैसे मिले। कांग्रेस को मजबूत करने की जवाबदारी किसी एक नेता पर क्यों थोपी जा रही है। जब नेता अपने अपने ठिकाने से बाहर नहीं आयेंगे,कांग्रेस में गिरावट आती जायेगी''। दरअसल आज कांग्रेस गुटों में बंटी है। जो सामंती पृष्ठ भूमि से नहीं आये उन्होंने भी अपना गुट बना लिया है। हर जिले में गुट हैं। हर नेता के आका हैं। लेकिन बड़े नेता अपना क्षेत्र छोड़कर दूसरे के क्षेत्र में झांकते तक नहीं। यह अलग बात है कि उनके समर्थक अपने जिले में दूसरे गुट से भिड़ते रहते हैं। कमलनाथ, ज्योतिरादित्य, सुभाष यादव, सुरेश पचौरी, दिग्विजय सिंह, कांतिलाल भूरिया, अजय सिंह, श्रीनिवास तिवारी आदि के नाम से आज कांग्रेस जानी जाती है। आज हर गुट ने अपने आदमियों को पदों पर बिठा रखा है। जिन्हें पद मिला वो खुश, जिन्हें नहीं मिला वो हाथ का साथ देने को तैयार नहीं। पार्टी में रहकर लोग पार्टी की नहीं पहले अपना देख रहे हैं। विंध्य क्षेत्र में सियासत की नंगी पीठ पर कांग्रेस हंटर सी तुड़ी मुड़ी है। ऐसा लगता है कांग्रेस जो एक क्रांति के नाम से जानी जाती थी, उसका दौर ही खत्म हो गया है। कांग्रेस के हाथ में कुछ भी नहीं है। रीवा ओर शहडोल संभाग को मिलाकर मात्र दो विधायक। इसे देखकर ही, रीवा के जिला भाजपा अध्यक्ष जनार्दन मिश्रा चहक कर कहते हैं,'' तीसरी बार तो हम आठों विधान सभा जीत लेंगे और कांग्रेस को मिली दोनों सीटें भी छीन लेंगें। जानकारों का कहना है कि भाजपा के एक जिलाध्यक्ष के ऐसा कहने के पीछे वजह साफ है। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह राहुल जब से नेता प्रतिपक्ष बने हैं देखा जाये तो अभी तक उन्होंने एक भी कार्यक्रम संभागीय मुख्यालय में नहीं किया। पिछले दिनों उन्होंने जनचेतना यात्रा निकाली तो बुंदेलखंड तक ही यात्रा सिमट कर रह गई। बुंदेलखंड के ठाकुर नेताओं को रिझाने के लिए ऐसा किया। राजा राम की नगरी ओरछा से चेतना यात्री निकाली। रीवा संभाग में राहुल को लगता है कि ऐसी यात्रा की जरूरत नहीं है। राहुल बोले थे, सोनिया जी का कहना है कि मैं सारा ध्यान विंध्य क्षेत्र पर दूं, यदि पिछली बार यहां से कांग्रेस 25 सीट भी निकाल लेती तो प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनाने की दिशा में पहल करती। विंध्य क्षेत्र दूर तक खाली है। अब सवाल यह उठता है कि अजय सिंह किस क्षेत्र में कांग्रेस को मजबूत कर रहे है। जानकारों का कहना है कि राहुल के लिए सीधी का चुरहट ही कठिन होता जा रहा है, इसलिए वो विंध्य क्षेत्र को भूलकर अपना सारा ध्यान चुरहट में लगा रहे हैं। कांग्रेस में गुटबाजी की परंपरा कोई नई नहीं है, गांधी नेहरू के समय से चली आ रही है। अंतर सिर्फ इतना आया है कि पहले विचारों को लेकर गुटबाजी थी, और अब स्वार्थ की पूर्ति के लिए गुटबाजी है। दिग्विजय सिंह, फिर सुरेश पचैरी और कांतिलाल भूरिया ने भी गुटबाजी की परंपरा को जीवंत रखा। नतीजा आज कांग्रेस की देह टुकड़े में टुकड़े मे हर जिले में अलग अलग नामों से जानी जाती हैं। तभी तो विधायक आरिफ अकील कहते हैं,'' जब तक प्रदेश कांग्रेस को जमीन से जुड़ा सबको साथ लेकर चलने वाला नेता नहीं मिलेगा प्रदेश में कांग्रेस के अंदर के हालात नहीं सुधरेंगे। और कांग्रेस का नुकसान होता जायेगा। आज सभी कहते हैं कि हाथ को चाहिए साथ। लेकिन कौन दे साथ। हाथ बढ़ाते भी हैं तो कमान संभालने के लिए। गुटबाजी के कांटो से लहुलूहान है हाथ। कांग्रेस में भडफ़ोड़ मची है। हर जिले में कांग्रेसियों का हाथ, खिलाफ है हाथ के। कांग्रेस की देह कटी हुई है। जादूगर चाहिए,जो कांग्रेस की कटी देह को जोड़ दे।

मिशन-2013 के लिए 'विजय संकल्प यात्राÓ निकालेगी भाजपा

भोपाल। प्रदेश में लगातार तीसरी बार सत्ता पर काबिज होने के लिए भाजपा प्रदेश अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा की तरह यात्रा पर निकलने की तैयारी कर रहे हैं। इस यात्रा का नाम होगा 'विजय संकल्प यात्राÓ। इस यात्रा में पार्टी राज्य सरकार की उन छह योजनाओं का सबसे ज्यादा बखान करेगी जिसके जरिए उसको फिर से सत्ता में लौटने की पूरी उम्मीद है। उल्लेखनीय है कि भाजपा पिछले 9 साल में कांग्रेस को लगभग हर स्तर के चुनाव में मात देते आ रही है। लेकिन नरेन्द्र सिंह तोमर की प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर दूसरी बार ताजपोशी के बाद पिथमपुर,राघोगढ़ और ओंकारेश्वर में हुए नगर पालिका चुनाव में मिली हार से भाजपा चिंतित है। चिंतित भाजपा ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की छह प्रमुख योजनाओं पर फोकस करने का मन बनाया है। 'विजय संकल्प यात्राÓ, प्रभात झा द्वारा शुरू कराई गई 'विकास यात्राÓ का ही रूप है बस, इसका नाम बदल दिया गया है। गौरतलब है कि 'विकास यात्राÓ के जरिये प्रभात झा ने आम आदमी को सरकार की योजनाओं की जानकारी देने के साथ ही जनता से सीधे जुडऩे का प्रयास किया था। विकास यात्रा का ऐसा हल्ला हुआ था कि कांग्रेस की आवाज ही दब गई थी। पार्टी का मकसद भी यही था, हालांकि इस दौरान जनता की शिकायतों और समस्याओं का सामना विधायकों को करना पड़ा था। कई तो ऐसे भी थे जो क्षेत्र में गिने चुने स्थानों पर गये थे और यात्रा की पूरी रिपोर्ट बनाकर दे दी थी। बहरहाल, नये प्रदेश अध्यक्ष अब यात्रा को नये स्वरूप और चुनावी दृष्टि के परिप्रेक्ष्य मेें निकालना चाहते हैं। पार्टी सूत्रों ने बताया कि वैसे 'विजय संकल्प यात्राÓ की तारीख अभी फाइनल नहीं हुई, लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि फरवरी में यह यात्रा शुरू हो सकती है। प्रदेश अध्यक्ष इसकी विस्तृत रूपरेखा भाजपा की नई प्रदेश कार्यकारिणी में तय करने के मूड में है। अगर कार्यकारिणी गठन में देरी होती है तो यात्रा के समय मेें परिवर्तन हो सकता है। हालांकि अभी प्रदेश के इंदौर-1 में पार्टी विधायक सुदर्शन गुप्ता और सोनकच्छ विधायक राजेंद्र वर्मा 'विधायक जनता के द्वारÓ नाम से अभियान चला रहे हैं। प्रदेश अध्यक्ष तोमर की यह भी मंशा है कि इन दोनों यात्राओं की विस्तृत रिपोर्ट आ जाए और जनता का मूड भांप लिया जाए इसके बाद विजय संकल्प यात्रा को अंतिम रूप दिया जाए। जनता के रुख को देखते हुए इस यात्रा में कुछ परिवर्तन भी संभावित है। इन योजनाओं पर फोकस 00 लाड़ली लक्ष्मी बेटी बचाओ योजना- राज्य सरकार की यहमहत्वाकांक्षी योजना है जिसमें सरकार कन्या के नाम पर बैंक में पैसा जमा करवाती है और बड़े होने पर उसका विवाह उस राशि से करवाती है। 00 जीरो प्रतिशत ब्याज पर कर्ज योजना- राज्य सरकार की इस योजना में किसानों को सरकारी संस्थाओं से बीज आदि के लिए कर्ज दिलाया जाता है और कर्ज का ब्याज इन संस्थाओं को सरकार चुकाती है। 00 मुख्यमंत्री कन्यादान योजना- यह योजना वर्ष 2006 से शुरू हुई थी और अभी सफलतापूर्वक चल रही है। योजना में गरीब कन्याओं का विवाह का खर्च सरकार द्वारा उठाया जाता है। 00 मुख्यमंत्री तीर्थदर्शन योजना- इस योजना में प्रदेश के बुजुर्गो को देशभर के प्रमुख तीर्थो का दर्शन कराया जा रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा शुरू की गई इस योजना में अब तक 30 हजार से ज्यादा बुजुर्गों को विभिन्न तीर्थ स्थानों पर सरकारी खर्च से दर्शन कराए जा चुके हैं। 00 मुफ्त दवा योजना- यह योजना 31 अक्टूबर 2012 को सरदार बल्लभभाई पटेल की जयंती पर जबलपुर से शुरू की गई है। इसमें 119 तरह की दवाइयां मरीजों को नि:शुल्क उपलब्ध कराई जा रही है। 00 स्वरोजगार कर्ज योजना-यह योजना को ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में लागू किया जाना है। इसका मकसद युवाओं को अपने घर के आसपास ही उद्योग धंधो के लिए प्रोत्साहन देना है ताकि आदिवासी इलाकों से उनका पलायान रोका जा सके।

सरकार के तमाम दावे के बाद मध्य प्रदेश में आदिवासी बदहाल

भोपाल। प्रदेश के बजट का करीब 22 प्रतिशत बजट आदिवासियों के नाम पर किया जाने लगा है, लेकिन बावजूद इसके शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, खाद्यान्न, भूमि सहित हर क्षेत्र में आदिवासियों का पिछड़ापन दूर नही हो सका। मध्य प्रदेश में तमाम लुभावने दावों के बावजूद आदिवासियों की स्थिति जस की तस है। आलम यह है कि बीते आठ साल में 217 अरब से ज्यादा की राशि आदिवासियों पर खर्च की गर्ई, फिर भी कहीं इलाज के अभाव में आदिवासी दम तोड़ रहे हैं तो कहीं जमीन से बेदखल होने की नौबत है। हर बार चुनाव के पहले लुभावने वादे जरूर होते हैं, लेकिन जीत के बाद कोई दल पलटकर नहीं देखता। राज्य सरकार के विभिन्न सरकारी विभागों में आदिवासियों के लिए सौ से ज्यादा कल्याणकारी योजनाएं चलती हैं, लेकिन आदिवासी उत्थान की रफ्तार सुस्त है। विभिन्न विभागों के तहत आदिवासी उपयोजना में वर्ष 2004-05 से 2011-12 तक करीब 239 अरब रूपए का बजट आदिवासियों के लिए मंजूर हुआ, जिसमें से दिसंबर-2011 तक 199 अरब से ज्यादा खर्च कर दिए गए। वर्ष-2012-13 में आदिवासी उपयोजना के तहत अनुमानत: करीब 35 अरब का बजट है, जिसमें से करीब 18 अरब खर्च होने का अनुमान है। इस तरह करीब करीब 217 अरब रूपए आठ सालों में खर्च करने के बावजूद आदिवासियों की हालत सुधर नहीं सकी है। वर्ष-2004-05 में करीब 15 अरब का बजट विभिन्न विभागों के तहत आदिवासियों के लिए था, जिसमें से 12 अरब से ज्यादा खर्च किया गया। यह बजट वर्ष-2011-12 तक बढ़ते-बढ़ते साढ़े 45 अरब से भी ज्यादा हो गया। यदि केवल आदिम जातिकल्याण विभाग के बजट को देखे, तो चार साल में 81 अरब 91 करोड़ 64 लाख आठ हजार रूपए का बजट मिला, जिसमें से 64 अरब 16 करोड़ चार लाख 76 हजार रूपए खर्च किए गए। फिर भी विभाग को संतोषजनक नतीजे नहीं मिले। योजनाओं का ढेर आदिवासियों के लिए मुख्य रूप से आदिवासियों के सरकारी स्कूल, आवासीय छात्रावास, छात्रवृत्ति, रोजगार प्रशिक्षण, कपिलधारा योजना में सबसिडी, किसानों को स्वरोजगार अनुदान, रानी दुर्गावती स्वरोजगार योजना में उद्योग के लिए अनुदान, अधोसंरचना विकास और पुनर्वास योजना चल रही हैं। जमीन से बेदखल होने की नौबत- आदिवासियों की स्थिति जमीन के मामले में भी खराब है। वनाधिकार अधिनियम-2006 के तहत वनभूमि के पट्टे मिलने के दावे हकीकत के सामने खोखले नजर आते हैं। अगस्त-2012 तक प्रदेश में 4 लाख 60 हजार 947 आवेदन में से अनुसूचित जनजाति के लोगों को केवल 1 लाख 59 हजार 172 पट्टे दिए गए थे। वहीं 2 लाख 78 हजार 758 दावे खारिज कर दिए गए। करीब 4 लाख 50 हजार 619 दावे व्यक्तिगत थे, जबकि दस हजार 328 सामुदायिक दावे थे। आदिवासियों की मुख्य समस्याएं- - सरकारी योजनाओं का लाभ न मिल पाना - मनरेगा में पूरी मजदूरी नहीं मिलना - वनभूमि के पट्टे से बेदखल करना - चिकित्सीय सुविधाएं नहीं मिल पाना - अशिक्षा: स्कूलों में शिक्षा-शिक्षक नहीं मिलना - रोजगार-स्वरोजगार की व्यवस्था नहीं होना - समाज में दोयम दर्जे का व्यवहार होना - कुपोषण-घेंगा रोग सहित अन्य बीमारियां आदिवासियों के नाम से अरबों रूपए आ रहे हैं, लेकिन सरकारी तंत्र उसका गबन कर रहा है। आदिवासियों की मूल जरूरतें पूरी करने की बजाए छीना जा रहा है। माधुरी बेन, जागृत आदिवासी दलित संगठन मप्र आदिवासियों के लिए विशेष योजनाएं और विशेष कानून हैं, लेकिन उसी के नाम पर उनका शोषण हो रहा है। उनको जमीन से बेदखल कर रहे। योजनाओं में आदिवासियों से धोखा करने वालों पर दंडात्मक कार्रवाई होना चाहिए। - श्रीकांत, नर्मदा बचाओ आंदोलन कोशिश जारी आदिवासियों के उत्थान के लिए काफी काम हो रहा है, लेकिन यह भी सच है कि अभी भी अपेक्षानुसार सुधार नहीं हो सका है। आदिवासी बहुल क्षेत्र दूसरे क्षेत्रों से बहुत ज्यादा पिछड़े हैं। इस खाई को भरने की कोशिश कर रहे हैं। आशीष उपाध्याय, आयुक्त, आदिवासी कल्याण विभाग मप्र हर क्षेत्र में पिछड़े आदिवासी संबंधित योजनाएं ठेकेदारों और अधिकारियों का घर भर रही हैं। आजादी से अब तक तमाम योजनाओं के बावजूद आदिवासी हर क्षेत्र में पिछड़ा है। जिन योजनाओं में आदिवासी ने कर्ज लिया, वहां वह और बर्बाद हो गया। अनुराग मोदी, श्रमिक आदिवासी संगठन