गुरुवार, 14 मार्च 2013

चुनावी साल में कांग्रेसियों को साल रहे भूरिया

भोपाल। यह चुनावी साल है। ऐसे में हर नेता अपनी पार्टी के मुखिया के इर्द-गिर्द नजर आता है,लेकिन कांग्रेस में आलम यह है कि प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया अपने ही नेताओं को साल (खटक)रहे हैं। यही कारण है कि अब नेता भूरिया से दूरी बनाने लगे हैं। इसका नजारा भूरिया के कार्यक्रमों में देखने को मिल रहा है। इसके पीछे वजह यह बताई जा रही है कि भूरिया ने जिस प्रकार एकला चलो की नीति अपनाई है उससे पार्टी पदाधिकारियों और नेताओं में रोष व्याप्त है। सलमान के नाम पर भीड़ जुटाने की कवायद 24 फरवरी को पन्ना जिले के शाहनगर कस्बे में भूरिया की सभा थी। सभा में भरसक प्रयास कर करीब पंद्रह हजार की भीड़ जुटाई गयी थी। लोगों के बीच बोलने के लिए उज्जैन के सांसद प्रेमचंद गुड्डू साथ आए थे। लेकिन कांग्रेस का कोई भी कद्दावर और बड़ा नेता वहां नहीं पंहुचा। प्रचार खूब किया गया कि अभिनेता सलमान खान वहाँ पहुंच रहे हैं, दिग्विजय सिंह भी वहां पहुचेंगे और नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह के पहुंचने का माहौल बनाया गया लेकिन पहुंचे सिर्फ भूरिया और गुड्डू ही। मुख्य मेहमानों के आने के पहले आयोजकों ने एक युवक जो दूर से देखने में कुछ-कुछ सलमान खान की बनावट का था, कद-कांठी का कतई नहीं। उसे सलमान के तौर पर पेश किया और जैसे हीभूरिया मंच पर पहुंचे, क्षण भर में ही उसे गायब कर दिया गया। समझने वालों से यह बात छुपी नहीं रह सकी, समझदार जनता भी सब जान गई। पहले दो बार पवई विधानसभा से विधायक चुनकर मंत्री रह चुके मुकेश नायक ने भी सभा में जाना उचित नहीं समझा, जबकि इलाके में उनका अच्छा लोकव्यवहार और सम्मान है। वे पिछला चुनाव वर्तमान राज्य मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह के मुकाबले मात्र ग्यारह सौ मतों से हारे थे। वैसे वस्तु स्थिति भी यही है कि पार्टी जनों और जनता के बीच कांतिलाल भूरिया की साख दिन पर दिन गिरती जा रही है। पिछले डेढ़ वर्ष में वे अनेक बार गुहार लगा चुके हैं कि मध्यप्रदेश कमेटी के अध्यक्ष वही हैं और उन्हें हटाया नहीं जा रहा है। हरिबोला की तरह बार-बार चिल्लाने के बाद भी कि वही राज्य में कांग्रेस के तारनहार हैं, हर जिम्मेदार नेता उनसे बचकर भाग क्यों रहा है? आज आदिवासी वोट बैंक को पुन: कबजाने के लिए कांतिलाल भूरिया को प्रदेश अध्यक्ष बना कर भेजा गया, लेकिन वो भी गुटबाजी की गांठ को और भी कस दिये। नतीजा पार्टी के अंदर उनका जमकर विरोध शुरू हो गया है। गत वर्ष विधायक कल्पना पारूलेकर सहित बीस विधायकों ने दमदारी के साथ भूरिया की खिलाफत करके बता दिया कि कांतिलाल नहीं चलेंगे। कल्पना पारूलेकर कहती हैं, कांतिलाल भूरिया की वजह से कांग्रेस रसातल में जा रही है। कांग्रेस को मजबूत करने की बजाय उन्होंने उसे गुटों में बांट दिया है। उन्हें मुद्दे उठाना नहीं आता। कई मामले में ऐसा लगता है कि उनकी सांठ गांठ सत्ता पक्ष से है। केवल प्रवक्ताओं की फौज खड़ी करने से काम नहीं चलेगा। यदि 2013 का चुनाव कांग्रेस जीतना चाहती है तो ज्योतिरादित्य सिंधिया को कमान सौंपना ही होगा। अन्यथा कांग्रेस एक बार फिर औंधे मुंह गिर जाएगी। यह अकेले कल्पना की ही आवाज नहीं है। देखा जा रहा है कि कमलनाथ के आदमी हों या फिर दिग्विजय के समर्थक सभी ज्योतिरादित्य के साथ खड़े होने को आतुर हैं। विधायक अमृतलाल जायसवाल कहते हैं, कांतिलाल भूरिया के आने से कांग्रेस में तेजी आई है। अभी कांग्रेस में जैसा चल रहा है उसे ठीक ठाक कहा जा सकता है। चुनाव का जहां तक सवाल है, तो राजनीति हमेशा लोकप्रियता पर चलती है। लोकप्रिय व्यक्ति की ही बात सुनी जाती है। ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के स्टार प्रचारक की भूमिका निबाह सकते हैं। उनमें युवाओं को जोडऩे का आकर्षण है। जितने युवा जुड़ेंगे वो कांग्रेस के लिए प्लस होगा।

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