शुक्रवार, 15 मई 2015

कभी भी दरक सकते हैं मप्र के उम्रदराज बांध!

जर्जर बांधों की जद में प्रदेश की आधी आबादी
प्रदेश में 100 साल की उम्र पार कर चुके हैं 23 बांध
नेपाल में आए भूकंप के बाद बढ़ी सरकार की चिंता
भोपाल। नेपाल सहित देश के कई राज्यों में भूकंप से मची तबाही के बाद अब मप्र के उम्रदराज बांधों की चिंता पर्यावरणविदों और उनके आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को सताने लगी हैं। सरकार भी इस बात को लेकर चिंतित है, क्योंकि प्रदेश के 23 बांध 100 साल से भी अधिक पुराने हो गए हैं और अधिकांश खतरे की जद में हैं। अहमदाबाद स्थित भूकंप अनुसंधान संस्थान के महानिदेशक बीके रस्तोगी का कहना है कि अगर नेपाल की तरह यहां 7.9 मैग्नीट्यूट तीव्रता वाला भूकंप आता है तो हर तरफ जलजला हो जाएगा क्योंकि मप्र के अशिकांश बांधों की स्थिति इतना तेज झटका बर्दास्त करने की नहीं है। भूगर्भशास्त्रियों और वैज्ञानिकों के मुताबिक, मप्र अपेक्षाकृत कम खतरे वाले हिस्से जोन-3 में आता है। इस कारण यहां के बांधों के निर्माण में भूकंपरोधी क्षमता की ओर अधिक ध्यान नहीं दिया गया है। वैज्ञानिक डॉ. अशोक कुमार कहते हैं कि जिस तरह टिहरी बांध नौ से दस मैग्निट्यूड के भूकंप को भी झेलने में सक्षम है उस तरह की क्षमता मप्र के बांधों में नहीं है। वैसे भी मप्र के बांध पिछले कुछ सालों से जर्जर अवस्था में पहुंच गए हैं। पिछली बारिश के दौरान डिंडोरी का गोमती बांध, हमेरिया बांध, रामगढ़ी, सिमरियानग, चांदिया, गोरेताल, लोकपाल सागर, भरोली सहित करीब दर्जनभर बांधों में रिसाव और दरार आने से आसपास के क्षेत्रों में दहशत फैल गई थी। हालांकि समय पर इन बांधों के रिसाव और दरार को दुरूस्त कर दिया गया, लेकिन ये घटनाएं इस बात का संकेत दे गईं की अगर बांधों की लगातार देखरेख और मरम्मत नहीं की गई तो ये कभी भी जानलेवा बन सकते हैं। अब नेपाल में आए विनाशक भूकंप के बाद जब मप्र के जर्जर बांधों की स्थिति का जायजा लिया गया तो यह तथ्य सामने आया की प्रदेश के करीब 91 बांध उम्रदराज हैं और ये कभी भी दरक सकते हैं। वाटर रिसोर्स डेवलपमेंट के आंकडों के अनुसार प्रदेश में पेयजल उपलब्ध कराने, सिंचाई और बिजली उत्पादन के लिए 168 बड़े और सैकड़ों छोटे बांध बनाए गए हैं। देखरेख और मेंटेंनेंस के अभाव में कई छोटे-बड़े बांध बूढ़े और जर्जर हो चुके हैं। इनमें से कुछ की उम्र 100 साल से ज्यादा है। इन उम्रदराज बांधों को लेकर बेपरवाह प्रशासन ने न तो इन्हें डेड घोषित किया और न ही मरम्मत की कोई ठोस पहल की। ऐसे में ये लबालब बांध यदि दरक गए या टूट गए तो कभी भी बड़ी तबाही ला सकते हैं। इन बांधों की वजह से नदियां भी अपनी दिशा बदल सकती हैं। इससे भी बड़ा खतरा पैदा हो सकता है। लेकिन इस ओर कभी किसी का ध्यान नहीं गया है। प्रदेश के लगभग आधा सैकड़ा बांधों की उम्र 50 साल पूरी हो चुकी है। जबकि 23 बांध तो 100 साल से भी ज्यादा पुराने हैं। ऐसे में इन बांधों की ठोस मरम्मत नहीं होने से इनके आधार कमजोर हो चले हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक बड़े बांधों की उम्र 100 वर्ष व छोटे बांध की उम्र लगभग 50 वर्ष मानी जाती है। इस उम्र तक इन बांधों की मजबूती बनी रहती है। बाद में ये धीरे-धीरे ये कमजोर होने लगते हैं। साथ ही नदियों के साथ आने वाले गाद भी बांधों को प्रभावित करते हैं। इससे बांधों की क्षमता कम होने लगती है। वाटर रिसोर्सेज से जुड़े एक्सपर्ट इंजीनियर बांधों की उम्र 50 और 100 साल बताते हैं। छोटे बांधों को 50 वर्ष के हिसाब से डिजाइन किया जाता है, जबकि बड़े बांधों की उम्र 100 साल बताई जाती है। बांधों के सिलटेशन और मजबूती दोनों के आधार पर उम्र तय होती है। वर्तमान में ज्यादातर बांधों की उम्र बहुत ज्यादा हो चुकी है। जानकारों का कहना है कि जब बांध बने थे जब ज्यादातर स्थान जंगल थे। अब जंगल काटकर खेती होने लगी है। इसका असर भी बांधों पर पड़ा है। बांधों में सिलटेशन बढ़ चुके हैं। आजतक सरकार ने लाइव स्टोरेज ही नहीं मापी है। बेस में मिट्टी में सही तरीके से का प्रेशन नहीं किया गया है। आधार ही यदि कमजोर हो गया, तो बांध के बचने का सवाल ही नहीं। गेट से ज्यादा खतरा बांधों में सबसे ज्यादा खतरा गेट के खराब होने का रहता है। हर साल गेट की मरम्मत होनी जरूरी हैं। ज्यादातर गेट के रबर-सील कट जाते हैं, जिन्हें नहीं सुधारने पर बगैर गेट खोले ही पानी बहने लगता है। इसके अलावा चोक नालियां भी खतरा बन सकती हैं। पिछले चार साल से करीब दो दर्जन बांध जब बारिश के दिन में लबालब होते हैं तो उनके गेट से पानी बहने लगता है। लेकिन मध्यप्रदेश वाटर रिसोर्स डेवलपमेंट इस ओर ध्यान नहीं दे रहा है। बताया जात है हर साल सैकड़ों एकड़ खेती तो बांध से निकले पानी से ही खराब हो जाती है। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि तीन साल पहले एक रिपोर्ट तैयार की गई थी, जिसमें बांधों की बदहाल स्थिति को बताया गया था। लेकिन रिपोर्ट फाइलों में ही दब कर रह गई है। प्रदेश के कई बांधों में रिसाव की समस्या आम है। आए दिन रिसाव वाली जगह से बांधों के आशिंक रूप से टूटने की खबरें आती रहती हैं। बांध टूटने से सैकड़ो एकड़ फसल के अलावा अन्य आर्थिक नुकसान भी होते हैं। मंदसौर शहर को बाढ़ के खतरे से बचाने के लिए चार दशक पहले बने धुलकोट बांध पर अब खनन माफियाओं की नजर पड़ गई है। शहर के पश्चिमी इलाके में बने इस ढाई किलोमीटर लंबे बांध की पाल को मिट्टी माफियाओं ने खोदना शुरु कर दिया है और वे चोरी छिपे यहां से ट्रॉलियों में मिट्टी भरकर ले जा रहे है, जिसका ईंट बनाने में उपयोग कर रह रहे हैं। ईंट भट्टे मालिकों ने शमशान घाट और नरसिंहपुरा इलाके से गुजर रही बांध की पाल से इतनी भारी मात्रा में मिट्री की खुदाई की है कि करीब आधा किलोमीटर इलाके में बांध काफी जर्जर हो गई है। हैरत की बात ये है कि अधिकारी इस खुदाई से नावाकिफ हैं। वहीं, खंडवा जिले में स्थित 'ओंकार पर्वतÓ की दरार से ओंकारेश्वर बांध (जल विद्युत सिंचाई परियोजना) को खतरा उत्पन्न होने की आशंका है। बांध के ठीक सामने पर्वत में दरार दिखाई दे रही है। बांध से लगभग 150 मीटर दूर पर्वत का एक हिस्सा दरकने लगा है। बांध और पर्वत के बीच कुछ चट्टानें कट गई हैं। आशंका व्यक्त की जा रही है कि नर्मदा नदी की तलहटी में दरार अंदर ही अंदर बांध तक पहुंच गई तो बड़े नुकसान का खतरा हो सकता है। जानकारों का कहना है कि नर्मदा में आने वाली बाढ़ से पर्वत चारों तरफ से कट रहा है। पर्वत पर कभी जंगल हुआ करता था, लेकिन क्षेत्र में गिनती के पेड़ रह गए हैं। पर्वत पर मठ, आश्रम, दुकान, मकान बन गए हैं। पर्वत की तलहटी में ज्योर्तिलिग मंदिर है, यह क्षेत्र अवैध भवन निर्माणों से घिरता जा रहा है। पर्वत पर अतिक्रमण हो रहे हैं। उल्लेखनीय है कि नर्मदा हाइड्रोइलेक्ट्रिक डेवलपमेंट कापरेरेशन लिमिटेड द्वारा बनाई गई ओंकारेश्वर जल विद्युत परियोजना में बांध द्वारा 520 मेगावाट बिजली बनाने की क्षमता है। बांध में कुल 23 गेट लगे हैं। यहां पर 189 मीटर जलस्तर तक (समुद्र तल से) पानी भरा जाता है। अगर यह बांध दरकता है तो बड़ी जन हानि होगी। संजय सरोवर परियोजना के तहत बनाए गए एशिया के सबसे बड़े मिट्टी के बांध पर खतरा मंडरा रहा है। एक तरफ इस बांध के तटबंध की मिट्टी लगातार बह रही है वहीं आतंकवादियों और नक्सलवादियों की भी कुदृष्टि इस बांध की ओर है। भीमगढ़ बांध में गेटों की सुरक्षा के लिए कन्ट्रोल रूम बनाया गया है जहां एक चोकीदार रहता है और वह भी नदारद रहता है और उसके सिवाय वहां कोई भी जबाबदार व्यक्ति सेवा नहीं देता। इनकी होती है लगातार मॉनिटरिंग एक तरफ जहां आधी शताब्दी पहले बने बांधों की देखरेख नहीं की जा रही है वहीं अभी हाल ही में बने बरगी, तवा, बरना, इंदिरा सागर,ओंकारेश्वर, बाणसागर, गांधी सागर, मनीखेड़ा, गोपीकृष्ण सागर, माही, कोलार और केरवा बांध ऐसे हैं जिनकी लगातार मॉनिटरिंग हो रही है। इन बांधों में किस दिन कितना पानी बढ़ा और कितना कम हुआ इसकी जानकारी प्रतिदिन मिलती है। कितने सुरक्षित हैं बांध... सरकार ने माना था कि देश के कुल 5,000 बांधों में से 670 ऐसे इलाके में जो भूकंप संभावित जोन की उच्चतम श्रेणी में आते हैं। ऐसे बांधों में मप्र के करीब 24 बांध भी शामिल हैं। सवाल ये उठता है कि भूकंप संभावित इलाकों में मौजूद ये बांध आखिर कितने सुरक्षित हैं। मौजूदा समय में उपयोग किए जाने वाले 100 से ज़्यादा बांध 100 वर्ष से भी पुराने हैं। भारत में बांध बनाने की परंपरा सदियों पुरानी है और पिछले 50 वर्षों में ही देश के विभिन्न राज्यों में 3,000 से ज़्यादा बड़े बांधों का निर्माण हुआ है। ऐसे देश में, जहां आधी से ज़्यादा आबादी कृषि पर निर्भर है वहां 95 प्रतिशत से ज़्यादा बांधों का उपयोग सिंचाई के लिए किया जाता है। भारत में बांधों का निर्माण और उनकी मरम्मत की निगरानी केंद्रीय जल आयोग करता है। आयोग के साथ सरकारें भी दोहराती रहीं हैं कि सभी बांधों की सुरक्षा जांच होती रही है और भूकंप संभावित ज़ोन में आने वाले बांध भी किसी आपदा को झेल सकने में सक्षम हैं। कई विशेषज्ञों का मत है कि मप्र में सैंकड़ों बांध अब पुराने हो चले हैं और असुरक्षित होते जा रहे हैं। उनका कहना है कि पुराने बांधों को गिराकर उसी इलाके में नए और ज़्यादा मज़बूत बांधों का निर्माण आवश्यक है। साऊथ एशिया नेटवर्क ऑफ डैम्स के प्रमुख हिमांशु ठक्कर कहते है कि सरकारों का ध्यान इस ओर नहीं गया है। ठक्कर ने बताया, मौजूदा समय में उपयोग किए जाने वाले देश में 100 तथा मप्र में 23 बांध 100 वर्ष से भी पुराने हैं। बांध पर बांध बने जा रहे हैं बिना ये सोचे की अगर ऊपर का एक बांध टूट गया तो नीचे किस तरह की प्रलय आ जाएगा। मामले से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि भारत में किसी बांध का इस्तेमाल बंद कर देना इतना भी आसान नहीं है और उसे बंद करने से पहले विकल्प की तलाशने की जरूरत होती है। भारत के 'सेंट्रल वॉटर कमीशनÓ के प्रमुख अश्विन पंड्या को लगता है कि भारत एक विकासशील अर्थव्यवस्था है जहां आबादी का दबाव तेजी से बढ़ रही है, साथ ही सिंचाई और ऊर्जा संबंधी जरूरतें बढ़ती जा रही हैं। ऐसे ताबड़तोड़ बांध बनाए जा रहे हैं, लेकिन इन बांधों को बनाने में कई तरह की बातों को दरकिनार किया जा रहा है,जो भविष्य के लिए खतरनाक है। वह कहते हैं कि भारत में दशकों पहले कंक्रीट से बने बांधों को भूकंप से बचाने के लिए नई बांध तकनीक से मजबूत करने की जरूरत है। इसके लिए आईआईटी के साथ मिलकर अमेरिका के विशेषज्ञ काम करने को तैयार हैं। कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ प्रो. एके चोपड़ा कहते हैं कि 1967 में भूकंप में पुणे का 'कोएना बांधÓ जिस तरह से टूटा-फूटा था, उसे लेकर कंक्रीट के बांधों को नई तकनीक से मजबूती देने की जरूरत महसूस हुई। भारत में अधिकांश बांध 50 से 60 साल पुराने हैं जिनकी क्षमता दिनों दिन घट रही है। उल्लेखनीय है कि भारत में कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकार ने एक प्रस्ताव रखा था जिसमें देश के सभी बांधों के निरीक्षण और मरम्मत की बात कही गई थी। यह प्रस्तावित कानून अभी तक संसद से पारित नहीं हुआ है। हालांकि पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा है, हम हर बांध की पूरी सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे और उसी हिसाब से उनकी समीक्षा की जाएगी। धरती की गरमी बढ़ाते हैं बांध बांधों से हो रहे पर्यावरण विनाश को लेकर पर्यावरणविद बरसों से चेता रहे हैं लेकिन हमारी सरकारें बांधों को विकास का प्रतीक बताने का ढिंढोरा पीटते हुए उनकी नसीहतों को अनसुना करती रही हैं। कैग की रिपोर्ट ने भी अपनी तरह से चेताया है। इस सबके बावजूद सरकार बड़े बांध बनाकर उसको विकास का नमूना दिखाना चाह रही है। सच यह है कि बांधों ने पर्यावरणीय शोषण की प्रक्रिया को गति देने का काम किया है जबकि बांध समर्थक इसके पक्ष में विद्युत उत्पादन, सिंचाई, जल, मत्स्य पालन और रोजगार आदि में बढ़ोतरी का तर्क देते हैं। वे बांधों को जल का प्रमुख स्रोत बताते नहीं थकते। जबकि विश्व बांध आयोग के सर्वेक्षण से स्पष्ट होता है कि बांध राजनेताओं, प्रमुख केन्द्रीयकृत सरकारी-अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं और बांध निर्माता कंपनियों के निजी हितों की भेंट चढ़ जाते हैं। सरकार इस मामले में दूसरे देशों से सबक लेने को तैयार नहीं है जो अब बांधों से तौबा कर रहे हैं। विडम्बना यह है कि सरकार नए बांधों के निर्माण को तो प्रमुखता दे रही है लेकिन खतरनाक स्थिति में पहुंच चुके 50 साल पुराने तकरीब 655 बांधों के रखरखाव, भूकंप, बाढ़, मौसमी प्रभाव और सामान्य टूट-फूट से उपजी समस्याओं तथा बांधों के खतरे के आकलन स बंधी अध्ययन के लिए सचेत नहीं दिखती है। इस संबंध में जल संसाधन मंत्रालय के पास न तो कोई योजना है और न उसके लिए कोई बजट निर्धारित है। सरकार ने बांध सुरक्षा समिति गठित तो की है लेकिन मात्र सलाह देने के अलावा उसके पास कोई अधिकार नहीं है। यह सरकारी लापरवाही की जीती-जागती मिसाल है। गौरतलब है कि आज भारत समेत दुनिया के बड़े बांधों को ग्लोबल वार्मिग के लिए भी जिम्मेदार माना जा रहा है। ब्राजील के वैज्ञानिकों के शोध इस तथ्य का खुलासा कर इसकी पुष्टि कर रहे हैं। उनसे स्पष्ट हो गया है कि दुनिया के बड़े बांध 11.5 करोड़ टन मीथेन वायुमंडल में छोड़ रहे हैं और भारत के बांध कुल ग्लोबल वार्मिग के पांचवे हिस्से के लिए जि मेदार हैं। इससे स्थिति की भयावहता का अंदाजा लगाया जा सकता है। वैज्ञानिकों का दावा है कि दुनिया के कुल 52 हजार के लगभग बांध और जलाशय मिलकर ग्लोबल वार्मिग पर मानव की करतूतों के चलते पडऩे वाले प्रभाव में चार फीसदी का योगदान कर रहे हैं। इस तरह इंसानी करतूतों से पैदा होने वाली मीथेन में बड़े बांधों की अहम भूमिका है। हमारे यहां मौजदा समय में कुल 5125 बड़े बांध हैं जिनमें से 4728 तैयार हैं और 397 निर्माणाधीन हैं। भारत में बड़े बांधों से कुल मीथेन का उत्सर्जन 3.35 करोड़ टन है जिसमें जलाशयों से करीब 11 लाख, स्पिलवे से 1.32 करोड़ व पनबिजली परियोजनाओं की टरबाइनों से 1.92 करोड़ टन मीथेन उत्सर्जित होता है। ऐसे में जिन क्षेत्रों में बांध बने हुए हैं वहीं भूकंप की संभावना अधिक रहती है। भूकंप के अलावा बांधों से लोगों को और भी कई तरह के खतरे रहते हैं। मध्य प्रदेश की जमीन पर बने उत्तर प्रदेश के आधा दर्जन बांधों के कारण पिछले कई दशक से मध्य प्रदेश हर साल बाढ़ से तबाही झेल रहा है। इन बांधों से मध्य प्रदेश को दोहरी मार पड़ रही है। एक तो यहां जमीनें खराब हो रही हैं और साथ ही बांधों के बकाए राजस्व की राशि दिन पर दिन बढ़ती जा रही है। प्रदेश को होने वाली इस राजस्व की क्षति की वसूली के लिए प्रदेश की सरकारों ने कभी पहल नहीं की जबकि दूसरी ओर एक बड़े रकबे में भूमि सिंचित करने और बकाया भू-भाटक कोई जमा न करने से उत्तर प्रदेश सरकार के दोनों हाथों में लड्डू हैं। इस बीच केन बेतवा नदी गठजोड़ परियोजना पर भी सवालिया निशान उठ रहे हैं। इन बांधों के कारण मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमा से लगा हुआ छतरपुर जिला अरसे से बाढ़ त्रासदी को झेल रहा है। जंगल और जमीन मध्य प्रदेश की है लेकिन उसका दोहन उत्तर प्रदेश कर रहा है। गौरतलब है कि आजादी से पहले एकीकृत बुन्देलखण्ड में सिंचाई की व्यवस्था थी। लेकिन प्रदेशों के गठन के बाद मध्य प्रदेश को इन बांधों के कारण दोहरी मार झेलनी पड़ रही है। बांधों का निर्माण तो मध्य प्रदेश की जमीन पर हुआ है लेकिन व्यवसायिक उपयोग उत्तर प्रदेश कर रहा है। मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में कुल 6 बांध निर्मित हैं जो उत्तर प्रदेश की सम्पत्ति हैं। लहचुरा पिकअप वियर का निर्माण सन् 1910 में ब्रिटिश सरकार ने कराया था। इसमें मध्य प्रदेश की 607.88 एकड़ भूमि समाहित है। तत्कालीन अलीपुरा नरेश और ब्रिटिश सरकार के बीच अलीपुरा के राजा को लीज के रकम के भुगतान के लिए अनुबन्ध हुआ था। आजादी के बाद नियमों के तहत लीज रेट का भुगतान मध्य प्रदेश सरकार केा मिलना चाहिए था लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने कोई भुगतान नहीं किया। नियम कायदों के हिसाब से लहचुरा पिकअप वियर ग्राम सरसेड के पास है इसलिए 15.30 रूपया प्रति 10 वर्गफुट के मान से 607.88 एकड़ का 40 लाख 51 हजार 318 रूपया वार्षिक भू-भाटक संगणित होता है। लेकिन ये रकम उत्तर प्रदेश पर बकाया है। इसी तरह पहाड़ी पिकअप वियर का निर्माण 1912 में ब्रिटिश सरकार ने कराया था। अनुबन्ध की शर्तों के मुताबिक दिनांक 01 अप्रैल 1908 से 806 रूपया और 1 अप्रैल 1920 से 789 रूपया अर्थात 1595 रूपया वार्षिक लीज रेट तय किया गया था। पहाड़ी पिकअप वियर के डूब क्षेत्र 935.21 एकड़ का वार्षिक भू-भाटक 62 लाख 32 हजार 875 रूपया होता है। यह राशि 1950 से आज तक उत्तर प्रदेश सरकार ने जमा नहीं की। करोड़ों रूपयों के इस बकाया के साथ-साथ बरियारपुर पिकअप वियर का भी सालाना भू-भाटक 8 लाख 36 हजार 352 रूपया होता है। इस वियर को भी 1908 में अंग्रेजी हुकूमत ने तैयार कराया था। इसमें तकरीबन 800 एकड़ भूमि डूब क्षेत्र में आती है। छतरपुर के पश्चिम में पन्ना जिले की सीमा से सटे गंगऊ पिकअप वियर का निर्माण 1915 में अंग्रेजी सरकार ने कराया था। जिसमें 1000 एकड़ डूब क्षेत्र है। लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने अन्य बांधों की तरह इस बांध का भी 6 लाख 53 हजार 400 रूपया वार्षिक भू-भाटक राशि को आज तक जमा नहीं किया। छतरपुर एवं पन्ना जिले की सीमा को जोडऩे वाले रनगुंवा बांध का निर्माण 1953 में उत्तर प्रदेश सरकार ने कराया था। इसका डूब क्षेत्र भी तकरीबन 1000 एकड़ है। इस प्रकार से वार्षिक भू-भाटक 6 लाख 53 हजार 400 रूपया है। इस राशि को भी उत्तर प्रदेश सरकार की रहनुमाई का इन्तजार है। वर्ष 1995 में उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदेश की सीमा को जोडऩे वाली उर्मिल नदी पर बांध का निर्माण कराया था। इसके निर्माण के बाद मध्य प्रदेश की 1548 हेक्टेयर भूमि डूब क्षेत्र में आ गयी। इसका सालाना अनुमानित भू-भाटक 9 लाख 86 हजार 176 रूपए बनता है। लेकिन मप्र सरकार कभी भी उत्तर प्रदेश सरकार से अपने राजस्व का हिसाब नहीं कर सकी। जबकि हर बरसात में मध्य प्रदेश के गांवों को भीषण बाढ़ का सामना करने के साथ-साथ पलायन करना पड़ता है। उत्तर प्रदेश के इन अधिकंाश बांधों की समय सीमा अब लगभग समाप्त हो चुकी है। इनसे निकलने वाली नहरों के रख-रखाव पर न ही सरकारों ने कोई ध्यान दिया और न ही जल प्रबन्धन के सकारात्मक समाधान तैयार किए हैं। रनगुंवा बांध से मध्य प्रदेश को अब पानी भी नहीं मिल पाता है। जल-जंगल और जमीन इन तीन मुद्दों के बीच पिसती उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की हांसिए पर खड़ी जनता की यह पीड़ा कहीं न कहीं उन बांध परियोजनाओं के कारण ही उपजी है। जिसने दो प्रदेशों के बीच वर्तमान में पानी की जंग और भविष्य में बिन पानी बुंदेलखंड के अध्याय लिखने की तैयारी कर ली है। आलम यह है कि अब ये बांध लोगों की जानमाल के लिए भी खतरे की घंटी बजा रहे हैं। इन बांधों से है खतरा बांध निर्मित वर्ष बालाघाट जिले में डोगरबोदी 1911 अमनल्ला 1916 बिठली 1910 बसीनखार 1909 रामगढ़ी 1915 तुमड़ीभाटा 1989 कुतरीनल्ला 1916 बड़वानी जिले में रंजीत 1916 बैतूल जिले में सतपुड़ा 1967 भोपाल जिले में केरवा 1976 हथाईखेड़ा 1962 छतरपुर जिले में मदारखबनधी 1964 गोरेताल 1663 दमोह जिले में माला 1929 मझगांव 1914 हसबुआमुदर 1917 गोड़ाघाट 1913 चिरेपानी 1913 रेद्दैया 1910 छोटीदेवरी 1919 जुमनेरा 1910 नूनपानी 1952 दतिया जिले में रामसागर(गुना) 1963 रामपुर 1917 अमाही 1917 खानपुरा 1907 जमाखेड़ी 1915 भरोली 1916 मोहरी 1916 केशोपुर 1916 खानकुरिया 1915 समर सिंघा 1917 ग्वालियर जिले में हरसी 1917 तिगरा 1917 रामोवा 1931 टेकनपुर 1895 सिमरियानग 1976 खेरिया 1913 रीवा जिले में गोविंदगढ़ 1916 सागर जिले में नारायणपुरा 1926 रतोना 1924 चांदिया 1926 सतना जिले में लिलगीबुंदबेला 1938 सीहोर जिले में जमनोनिया 1938 सिवनी जिले में अरी 1952 समाल 1910 चिचबुंद 1951 बारी 1957 शाजापुर जिले में नरोला 1916 सिलोदा 1916 शिवपुरी जिले में धपोरा 1913 चंदापाठा 1918 डिनोरा 1907 नागदागणजोरा 1911 झलोनी 1913 रजागढ़ 1914 अदनेर 1911 ककेटो 1934 विदिशा जिले में घटेरा 1956 उज्जैन जिले में अंतालवासा 1908 कड़ोडिया 1957 शाजापुर जिले में नरोला 1916 सिलोदा 1916 होशंगाबाद जिले में दुक्रिखेड़ा 1956 धनदीबड़ा 1956 इंदौर जिले में यशवंत नगर 1933 देपालपुर 1931 हशलपुर 1950 जबलपुर जिले में परियट 1927 बोरना 1920 पानागर 1912 कटनी जिले में पिपरोद 1913 गोहबंनधा 1912 पथारेहटा 1918 दारवारा 1918 पब्रा 1912 अमेठा 1918 जगुआ 1921 जगुआ 1921 लोवर सकरवारा 1919 अपर सकरवारा 1919 बोहरीबंद 1927 अमाड़ी 1927 बोरिना लोवरटी 1923 मौसंधा 1917 मंदसौर जिले में पोदोंगर 1956 गोपालपुरा 1954 पन्ना जिले में लोकपाल सागर 1909 रायसेन जिले में लोवर पलकसती 1936 भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील है नर्मदा पट्टी भारतीय उपमहाद्वीप में विनाशकारी भूकंपों का लम्बा इतिहास रहा है। भूकंपों की अत्यधिक आवृत्ति और तीव्रता का मुख्य कारण यह है कि भारतीय टेक्टोनिक प्लेट तकरीबन 47 मिलीमीटर प्रति वर्ष की गति से यूरेशियाई प्लेट से टकरा रही है। भारत का करीब 54 प्रतिशत हिस्सा भूकंप की आशंका वाला है। जहां तक मप्र का सवाल है तो यहां के अधिकांश क्षेत्र जोन-3 यानी सामान्य तबाही वाले क्षेत्र की श्रेणी में आते हैं। भूकंप के दृष्टिकोण से अति संवेदनशील निमाड़ देश के मानचित्र में भूकंप जोन-3 में आता है। यह भूकंप की दृष्टि से कमजोर सोन-नर्मदा-ताप्ती लिनियामेंट जोन में है। यहां सन 1847 से 1992 के बीच 4 से 6.5 मैग्नीट्यूट क्षमता के 7 भूकंप आ चुके हैं। इसे देखते हुए नर्मदा पट्टी को संवेदनशील भूकंप संभावित क्षेत्र माना गया है। खंडवा जिले की पंधाना तहसील में करीब 20 वर्षों से भूगर्भीय हलचल ज्यादा बढ़ी है। 11 सितंबर 1998 से सन 2002 तक अंचल के 50 से अधिक गांवों को थर्रा देने वाले करीब 2000 झटके दर्ज हुए। इस दौरान सबसे अधिक 3.1 मैग्नीट्यूट तीव्रता का एक झटका दर्ज हुआ था। कई बार तो एक ही दिन में 50 से अधिक झटके दर्ज हुए। इनसे किसी प्रकार की क्षति तो नहीं हुई लेकिन कुछ वर्षों तक भूकंप की दहशत बनी रही। धीरे-धीरे भूगर्भीय गतिविधियों में कमी होते-होते लगभग बंद हो गई। भूगर्भीय हलचल के बाद देश के ख्यात वैज्ञानिकों ने क्षेत्र में इनका सर्वेक्षण किया। पंधाना तहसील मुख्यालय, नर्मदानगर, जिलाधीश कार्यालय, छनेरा, ओंकारेश्वर, बागली, बड़वानी, मंडलेश्वर सहित 11 स्थानों पर भूकंप मापी सिस्मोग्राफ मशीनें लगाई गई। छेगांवमाखन विकास खंड के सिरसोद में वैधशाला स्थापित की गई। भूगर्भीय हलचल पर नजर रखने के लिए वैज्ञानिकों के लगातार दौरे होते रहे, लेकिन सन 2002 के बाद जैसे-जैसे भूगर्भीय हलचलों में कमी आई वैधशाला बंद हो गई। अधिकांश स्थानों पर लगी भूकंपमापी मशीनें भी बंद हो गईं। लेकिन विसंगति यह है कि भूकंप के लिए संवेदनशील नर्मदा पट्टी में सबसे अधिक बांधों और नहरों का निर्माण किया गया है। क्षेत्र में निर्माण की लंबी श्रृंखला को देखते हुए लगता है कि नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण (एनवीडीए)को पता ही नहीं है कि नर्मदा पट्टी भूकंप के लिए संवेदनशील क्षेत्र है। खतरे में है नर्मदा घाटी नर्मदा घाटी क्षेत्र में 26 अप्रैल को हुए भू-गर्भीय कंपन लोगों के लिए कौतूहल का विषय बना हुआ है। बड़वानी में भूकंप से कई स्थानों पर पक्के मकानों की दीवारों में दरारें आ गई। लोगों का कहना है कि भूकंपन की दृष्टि से नर्मदा घाटी खतरनाक जोन में माना गया है। नर्मदा पर बनाए जा रहे सरदार सरोवर बांध सहित अन्य बांधों की श्रृंखला से व जलाशयों के बनने से यहां लगातार दबाव बढ़ता जा रहा है। बावजूद इसके आपात स्थिति से निपटने के लिए कोई तैयारी नहीं है। जिला मुख्यालय पर वेधशालाएं तो हैं लेकिन पर्याप्त संसाधन नहीं होने से ये किसी काम की साबित नहीं हो रही है। जिस समय भूकंपन हुआ उस दौरान लोगों ने इसे साफ महसूस किया। कृष्णा स्टेट कॉलोनी निवासी विजय गोरे ने बताया मकान के खिड़की दरवाजे हिलने लगे। अजय गोरे ने बताया कि पूजा करते समय दो झटके लगे। इससे मकान की दीवार में दरारें भी पड़ गई। नर्मदा बचाओ आंदोलन नेत्री मेधा पाटकर ने बताया कि नर्मदा घाटी खतरे की जद में है। वर्ष 2009 में भी क्षेत्र में 4.2 रिक्टर स्केल की तीव्रता का कंपन आंका गया था। सरदार सरोवर बांध प्रभावित क्षेत्र में भू-गर्भीय हलचल को रोकने या इसके आंकलन के लिए कोई तैयारी नहीं है। भूकंप के लिए मेधा पाटकर ने सरदार सरोवर बांध व नर्मदा क्षेत्र में हो रहे रेत उत्खनन को जिम्मेदार ठहराया हैं। उन्होंने बताया कि मप्र में जलाशयों की श्रंृखला निर्मित की जा रही है। नर्मदा सोन लिनमेट पर बहने वाली नर्मदा पर ही बनने से जो क्षेत्र पर बड़ा दबाव पैदा होता है, उससे भूगर्भ में हलचल मचती है, जो भूचाल बनाती है। मेधा पाटकर कहती हैं कि नर्मदा सोन नर्मदा लिनामेंट पर बह रही है। भूकंप की दृष्टि से ये क्षेत्र बहुत ही कमजोर है। उन्होंने बताया कि 3 रिक्टर स्केल के भूकंप महसूस नहीं होता है। 4.5 रिक्टर स्केल के भूकंप महसूस होते हैं। मप्र में भूकंप मापन पर कोई काम नहीं हो रहा है। सोन नर्मदा लिनामेंट पर वॉटर बॉडी खड़ी कर रहे हैं। इसके घातक परिणाम भुगतने होंगे। किनारों पर जमीन धंसने की घटनाएं अब लगातार होने की संभावना है। नर्मदा घाटी देश की संवेदनशील क्षेत्रों में से एक है। नदी घाटियों में स्थित सरदार सरोवर के इर्दगिर्द में तीनों राज्यों में कई सोर प्लांट जोन्स है। इसमें एक बोरखेड़ी बड़वानी में है तो दूसरा शाहदा महाराष्ट्र में है। बड़वानी में 1930 से लेकर कई भूकंप आए हंै। जिसमें 6 .5 तक के झटके हैं, 2009 में 4.2 रिक्टर स्केल का रहा है। इससे बांध को क्षति हुई, लेकिन कभी भी उसका आंकलन नहीं करवाया गया। सरदार सरोवर संबंध में भूकंप मापन केन्द्र प्रस्थापित किए गए हैं। इनमें से एक सागबारा, गुजरात में तथा दूसरा शाहदा, महाराष्ट्र में कार्यरत है। मप्र में एक भी काम नहीं कर रहा है। इसी कारण भूकंप की तीव्रता एवं नियमितता कभी रिकॉर्ड पर नहीं हुई। नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण के पर्यावरण उपदल की बैठकों में यह कहा गया है कि अधिक जानकारी राज्यों से जरूरी है, जो नहीं मिल पा रही है। बरगी में 1996 का भूकंप बांध के पास ही केंद्र होकर निर्मित हुआ था। कच्छ में आए महाविनाशक 2000 के भूंकप का केंद्र भी सरदार सरोवर के ही पास था। यह गुजरात के कई वैज्ञानिकों की खोज से निकली बात थी। बड़वानी 1938 में 6 रिस्केल से अधिक और 2009 में 4.2 रिस्केल को भूंकप आया था। बरगी मध्यप्रदेश तथा कोयना महाराष्ट्र और अन्य बांधों को भूकंप से सुरक्षित कहकर इर्दगिर्द के घर, इंसान, पेड़ और संपत्ति का बड़ा नुकसान किया था। बोरखेड़ी बड़वानी फाल्ट जोन में आज भी भूकंप का हादसा बना हुआ है, जिसका असर पाटी जैसे आदिवासी क्षेत्र से लेकर खरगोन तक जाता है। 2009 में बड़वानी के भूकंप का धक्का भी खरगोन तक पहुंचा था। 1972 में बने मास्टर प्लान के अनुसार मध्यप्रदेश नर्मदा में उपलब्ध कुल जल का 65 फीसद यानि 18.25 मिलियन एकड़ फीट(एमएएफ ) जल का उपयोग कर प्रदेश को समृद्ध बनाएगा। इसके तहत 23 बड़ी, 135 मध्यम व तीन हजार से अधिक छोटी परियोजनाओं का निर्माण करना तय किया गया। वृहद परियोजनाओं के लिए 1985 में नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण (एनवीडीए)का गठन हुआ। सभी बड़ी परियोजनाओं का जिम्मा प्राधिकरण को सौंपा गया। लेकिन प्राधिकरण ने बिना मापदंड के इस क्षेत्र में निर्माण कार्य करवाया है जो कभी भी खतरनाक बन सकते हैं। इस क्षेत्र में प्राधिकरण ने तीन दशक में केवल दो बड़ी परियोजनाएं मान व जोबट ही पूरी कर सका। वहीं पांच परियोजनाएं वर्ष 1988 से पहले जल संसाधन विभाग द्वारा पूरी की गई। एनवीडीए की सात परियोजनाएं रानी अवंतीबाई लोधी सागर परियोजना (जल उपयोग1681एमसीएम), बरगी डायवर्जन (2510.6 एमसीएम), इंदिरा सागर (1625.26 एमसीएम), ओंकारेश्वर (1300 एमसीएम), अपर वेदा(101.09 एमसीएम), पुनासा लि ट (130.20 एमसीएम)एवं लोअर गोई (136.65 एमसीएम)निर्माणाधीन हैं। वहीं दो परियोजनाएं हालोन एवं अपर नर्मदा के लिए निर्माण का कार्य शुरुआती दौर में ही है। जबकि सात परियोजनाएं अब तक शुरु ही नहीं की जा सकी। इनके लिए सर्वे,अन्वेषण एवं डीपीआर बनाने का काम ही पूरा नहीं हो सका। भूकंप से बचाने की कागजी योजना भूकंप और अन्य प्राकृतिक आपदाओं को लेकर सरकारी एजेंसियों का अभी तक का रवैया कैसा रहा है इसका सबसे बड़ा उदाहरण जवाहर लाल नेहरू अर्बन रिन्यूअल मिशन के तहत भूकंप सहने वाले मकान बनाने की योजना है। इस योजना के तहत तीन दर्जन से ज्यादा शहरों में भूकंप रोधी मकानों के निर्माण के कार्य को वरीयता देने की बात थी लेकिन कई वर्ष बीतने के बाद भी यह योजना कागजों में ही सिमटी है। इस योजना का हश्र बताता है कि जब देश में कोई आपदा आती है तो सरकारी एजेंसियां योजना बनाने में जुट जाती हैं लेकिन समय बीतने के साथ ही उस योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। योजनाओं के अमल का कोई उपाय नहीं जवाहर लाल नेहरू अर्बन रिन्यूअल मिशन में भूकंप सहने वाले मकान बनाने की योजना के साथ ही 38 शहरों के लिए अर्बन अर्थक्वेक वलनरबिलिटी रिडक्शन प्रोजेक्ट की प्रगति भी काफी खराब है। असलियत में इन दोनों योजनाओं की प्रगति सिर्फ कागजों में दिखाई देती है। दरअसल, इन योजनाओं को कैसे अमलीजामा पहनाया जाएगा, इसको लेकर सरकार अंधेरे में हैं। केंद्र में नई सरकार के आने के बाद भी हालात में बहुत बदलाव नहीं हुए हैं। बार-बार केंद्र की तरफ से राज्यों को भूकंप से बचने के लिए तमाम उपाय करने पर सुझाव देने की औपचारिकता पूरी कर दी जाती है। लेकिन इसे कैसे अमल में लाया जाए या इसको लेकर क्या प्रगति हो रही है, इसकी कोई निगरानी नहीं होती। बिल्डर उड़ा रहे नियमों की धज्जियां राज्य सरकारों की भूमिका भी कम चिंताजनक नहीं है। इस बारे में केंद्र की तरफ से बुलाई गई बैठक में काफी वादे किए जाते हैं लेकिन जमीनी तौर पर भूकंप से बचने के लिए होने वाले उपायों की पूरी तरह से अनदेखी की जाती है। लिहाजा बिल्डर धड़ल्ले से नियम कायदों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। मप्र की राजधानी से लेकर इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर जैसे तमाम शहरों में सिंगल प्लाट पर बनने वाले बहुमंजिला इमारत किसी प्राकृतिक आपदा में मौत का कुंआ साबित हो सकते हैं। उत्तर भारत के अधिकांश शहर खतरनाक सेस्मिक जोन (भूकंप संभावित क्षेत्र) में है। सरकार ने भूकंप की आशंका के मुताबिक सभी शहरों के लिए योजना बनाई थी लेकिन अमल अभी तक नहीं हो पाया। पहले चरण में पांच लाख से ज्यादा आबादी वाले भूकंप संभावित शहरों को चुना गया था। लेकिन कही भी इसका अमल नहीं हुआ है।

अपात्रों को कर्ज बांट कंगाल हुए सहकारी बैंक

1200 करोड़ के घोटाले की फांस में शिव राज
भोपाल। मछली तालाब से कितना पानी पीती है क्या आप इसका पता लगा सकते हैं....? बिल्कुल इसी तरह ये पता लगाना भी मुश्किल है कि सरकारी अमला खजाने से कितना धन लूटता है। इसी उधेड़बुन में मध्यप्रदेश के अधिकारी और नेता मिलकर लूट-खसोट में जुटे हुए हैं। खुद को किसान पुत्र कहने वाले शिवराज के राज में किसान भी इस लूट से अछूते नहीं हैं। प्रदेश में कृषि ऋणमाफी, किसानों को सस्ती ब्याज दर पर ऋण देने जैसी लोक लुभावन राजनीतिक घोषणाओं के कारण राज्य की मजबूत सहकारी कृषि ऋण व्यवस्था जर्जर और बदहाल हो गई हैं। अब तो राज्य के कई जिला सहकारी बैंकों के खजाने खाली हो गए हैं। जिससे कई बैंक कंगाली की कगार पर आ गए हैं। आलम यह है कि पिछले 10 साल में प्रदेश के अपेक्स बैंक समेत 38 जिला सहकारी बैंक की 852 शाखाओं के हिसाब से 1200 करोड़ रूपए गायब हो गए हैं। इस घपले की जांच करने की जगह इसे किसी न किसी मद में खर्च दिखाकर हिसाब बराबर किया जा रहा है। यही नहीं कर्ज माफी के नाम पर अरबों रूपए की हेराफेरी को दबाने की कोशिश भी की जा रही है। राज्य के सहकारी बैंकों व प्राथमिक सहकारी समितियों ने धडल्ले से अपात्रों से मिलीभगत करके यह घपला किया था। इन तमाम घपले-घोटाले के बीच सरकार ने वित्तीय वर्ष 2015-16 में सहकारी बैंकों के माध्यम से 18,000 करोड़ रूपए किसानों को वितरित करने का प्रावधान रखा है। मध्य प्रदेश राज्य सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंक के लगभग 761 करोड़ रुपए वसूली न होने के कारण डूब चुके हैं, क्योंकि केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा घोषित कृषि ऋणमाफी योजना के मानदण्डों के अनुसार काम करने पर जिला सहकारी बैंकों ने 861.37 करोड़ रुपयों की सकल वसूली की तुलना में केवल 98.44 करोड़ रुपए ही वसूल किए हैं। बैंक ने वसूली की उम्मीद भी छोड़ दी है और इसीलिए जमीनी कर्मचारियों ने भी वसूली के काम में कोई रुचि नहीं ली है। किसान ऋण राहत योजना के क्रियान्वयन में सहकारी बैंकों के कामकाज में घपले, घोटालों से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। राज्य सरकार भी मानती है कि गड़बडिय़ां जरूर हुई हैं। सरकार ने शिकायतें मिलने पर गुपचुप तरीके से 3 नवंबर 2009 को राज्य के सभी जिला सहकारी बैंकों के ऋणमाफी प्रकरणों की जांच के निर्देश दिए थे। जानकारी के मुताबिक 38 जिला बैंकों में से 32 जिला बैंकों की जांच की गई जिनमें 16 बैंकों में विभिन्न प्रकार की गड़बडिय़ां होने के पुख्ता प्रमाण मिले हैं। एक अनुमान के अनुसार लगभग 115 करोड़ रुपयों की गड़बड़ी या हेराफेरी हुई है। उसके बाद से अभी तक लगातार गड़बडिय़ां हो रही हैं और यह आंकड़ा 320 करोड़ रूपए के ऊपर पहुंच गया है। अभी तक की जांच में जो तथ्य निकलकर सामने आया हैउसके अनुसार, सहकारिता विभाग घोटालों का गढ़ बन गया है। इस विभाग में कोई न कोई गड़बडिय़ां आए दिन उजागर हो रही हैं। विभाग की पूरी कार्यशैली पर सवाल उठ रहे हैं। सहकारिता विभाग और अनियमितताएं एक दूसरे के पर्याय बन गई है। इस विभाग में हर महीने कोई न कोई घोटाला सामने आ रहा है। सहकारी बैंकों में ऋणों की वसूली नहीं हो रही है, उस पर ऐसे व्यक्तियों को ऋण बांटा जा रहा है जिन्हें ऋण की कोई आवश्यकता नहीं है। आलम यह है की कई सहकारी बैंक हो गए कंगाल हो गए हैं। नौ सहकारी बैंकों की एनपीए 800 करोड़ पहुंचा किसानों को शॉर्ट टर्म लोन देने वाले जिला सहकारी बैंकों की माली हालत गड़बड़ाने लगी है। कुछ बैंक सी कैटेगरी में भी पहुंच चुके हैं। करीब नौ बैंकों में तो खतरे की घंटी बज गई है। इनका एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग असेट) पौने आठ सौ करोड़ को पार गया है। अपेक्स बैंक सहित अन्य संस्थाओं की देनदारी इन बैंकों पर बढ़ती जा रही है। हालत नहीं सुधरी तो बैंक आर्थिक आपातकाल (धारा 11) की स्थिति में पहुंच जाएंगे यानी इनके कार्य व्यवहार पर भारतीय रिजर्व बैंक रोक लगा देगा। यही नहीं, नाबार्ड इन्हें दिए जाने वाले लोन में कटौती कर देगा। ऐसे हालात 1997-98 से लेकर 2003-04 में बने थे। तब करीब 18 बैंक धारा 11 में आ गए थे। बैंकों में प्रशासकों की नियुक्ति की गई थी। अब फिर सरकार और बैंक के स्तर पर समीक्षा और कड़े कदम उठाने का दौर शुरू हो गया है। उल्लेखनीय है कि अपेक्स बैंक द्वारा की गई समीक्षा में जब सहकारी बैंकों की खस्ताहालत होने का मामला सामने आया तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विभागीय मंत्री गोपाल भार्गव सहित आला अफसरों के साथ हुई बैठक में कड़े कदम उठाने के निर्देष दिए और इसके लिए उन्हें फ्री-हैंड भी दे दिया है। ज्ञातव्य है कि 2006-07 में बैंकों की आर्थिक हालात सुधारने के लिए वैद्यनाथन पैकेज में मिले 1200 करोड़ रुपए की वजह से बैंक पटरी पर आ गए थे लेकिन दोबारा वही हालात बनने लगे हैं। सीधी में तो 1100 ट्रैक्टर फाइनेंस के मामले में बड़ा घोटाला सामने आ गया है। करीब 114 ट्रेक्टर जिन्हें फाइनेंस करना बैंक ने दस्तावेजों में बताया है, वे किसी और के नाम पर पंजीकृत हैं। अपेक्स बैंक द्वारा की गई समीक्षा के अनुसार, टीकमगढ़ बैंक की एनपीए 110 करोड़ रूपए हो गई है। वहीं रायसेन बैंक की 90 करोड़ रूपए, मंडला बैंक की144 करोड़ रूपए दतिया बैंक 60 करोड़ रूपए, ग्वालियर बैंक 80, होशंगाबाद बैंक 131, छतरपुर बैंक 98, रीवा बैंक 62 और सीधी बैंक की एनएपी 39 करोड़ रूपए हो गई है। इसलिए बिगड़े हालात बताया जाता है सहकार बैंकों की खस्ता हालत के लिए की लोन वितरण में फर्जीवाड़ा सबसे बड़ा कारण है। इसके अलावा पीडीएस में घोटाले के चलते समितियों ने बैंकों को पैसा नहीं दिया जिसे बैंकों ने अपने रिजर्व फंड से चुकाया। तीन साल में कृषि ऋण की वसूली काफी कम रही। प्राकृतिक आपदा की वजह से सरकार ने वसूली स्थगित करवाई पर रकम समय पर नहीं दी, जिससे बैंकों पर ब्याज का बोझ बढ़ा। जीरो परसेंट ब्याज पर कर्ज देने से बैंकों का ध्यान इस पर ही लगा रहा। बैंक बिना इजाजत ही दस-दस शाखाएं खोल रहे हैं और भर्तियां भी की हैं। इस कारण अब आलम यह है कि राज्य सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (भूमि विकास बैंक प्रचलित नाम) बंद होने की कगार पर है। बैंक को 1 लाख 27 हजार किसानों से 13 सौ करोड़ से ज्यादा कर्ज वसूलना है। लेकिन, वसूली 5-6 प्रतिशत से ज्यादा नहीं है। बैंक ने किसानों को दीर्घावधि कर्ज देना 2010 से बंद कर दिया है। बैंक इस स्थिति में भी नहीं है कि नाबार्ड के 990 करोड़ लौटा सके, इसलिए सरकार अपनी गारंटी पर कर्ज अदायगी कर रही है। इसके बावजूद सरकार बैंक के भविष्य को लेकर संजीदा नहीं है। यही वजह है कि पिछले डेढ़ साल से एकमुश्त समझौता योजना का प्रस्ताव फाइल में कैद है। बैंक के लिए कोई कारगर बिजनेस मॉडल नजर नहीं आने पर मंत्रिमंडलीय समिति इसे बंद करने की सिफारिश तक कर चुकी है पर कोई फैसला अब तक नहीं हुआ है। नेताओं की चारागाह सहकारी बैंक नेताओं की चारागाह बन गए हैं। ये तय ही नहीं हो पा रहा है कि इन्हें सहकारिता में रखें या फिर बैंक बने रहने दें। ईमानदार सीईओ को बैंक अध्यक्ष रहने ही नहीं देते हैं। दोनों के बीच कभी बनती ही नहीं है। बैंकों का हर साल नाबार्ड की ओर से निरीक्षण होता है। वित्त सचिव के साथ जब भी बात होती है, गड़बडिय़ों की ओर ध्यान आकर्षित कराया जाता है पर इसका हल नहीं निकलता। नोटिस फॉर फ्यूचर कम्पलाइंस नोट भी दिया जाता है पर उसका पालन नहीं होता। नाबार्ड के सेवानिवृत्त महाप्रबंधक केए मिश्रा कहते हैं कि एनपीए बढऩे और वसूली न होने से बैंकें सी और डी केटेगरी से होती हुई धारा 11 में पहुंच जाती हैं। इसके बाद या तो सरकार मदद करके इन्हें फिर खड़ा कर देती हैं या फिर वैद्यनाथन पैकेज जैसा कोई फंडा फिर आ जाता है और बैंक चल पड़ते हैं। लेकिन, कोई स्थायी समाधान नहीं निकला। समस्या ये है कि बैंकों को लेकर सरकारें गंभीर नहीं हैं। इस स्थिति का नुकसान अंतत: किसानों को होगा क्योंकि किसी भी वाणिज्यिक बैंक की रूचि क्रॉप लेने-देने में नहीं है। प्रमुख सचिव सहकारिता अजीत केसरी कहते हैं कि बैंक विषम परिस्थितियों में न फंसें, इसके लिए सरकार सक्रिय हुई है। मुख्यमंत्री स्वयं समीक्षा कर चुके हैं। नाबार्ड, सहकारिता विभाग और अपेक्स बैंक स्तर पर संयुक्त बैठक करके बैंकवार स्थितियों का आकलन किया गया है। ऋण माफी के नाम पर डकारे करोड़ों रूपये एक दर्जन जिलों में हुए करोड़ों के घोटाले का मामला भी ईओडब्ल्यू की फाइलों में दम तोड़ रहा है। एक हजार करोड़ के ऋण माफी घोटालों में होशंगाबाद, हरदा, सीहोर, रायसेन, विदिशा, राजगढ़, बैतूल, नरसिंहपुर, जबलपुर, पन्ना, टीकमगढ़, शाजापुर जिले शामिल हैं, जिसमें सहकारी बैंक व समितियां शामिल हैं, जिसकी जांच ईओडब्ल्यू कर रहा है। इसमें 38 जिलों में बैंक अध्यक्ष व महाप्रबंधक 85 करोड़ के घोटाले में शामिल पाए गए हैं। अकेले हरदा जिले में 75 करोड़ का घोटाला हुआ है। उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने 2008 में किसानों की कर्ज माफी व राहत योजना के तहत करीब 1100 करोड़ रुपये की राशि मप्र को नाबार्ड से आवंटित की थी। इतना बड़ा मामला उजागर होने पर ईओडब्ल्यू ने 27 नवंबर 2011 को अपराध 38-11, धार 120 बी, 470 और 405 धाराओं के तहत प्रकरण दर्ज करें। 38 जिलों में पांच-पांच सौ करोड़ के घोटाले की जानकारी उजागर हुई। पिछले वर्ष 2011-12 में कर्ज माफी घोटाले का मामला उठा था, जिसमें सहकारिता मंत्री ने भी माना था कि 100 करोड़ से ज्यादा की गड़बड़ी हुई है। नाबार्ड ने ऋण देते समय शर्त रखी थी कि ऋण माफी योजना लागू करने से पहले जिला सहकारी बैंक प्राथमिक सहकारी समितियों की आडिट कराया जाए। टीकमगढ़, भिंड, हरदा, होशंगाबाद जिले में कराई जांच में पता चला कि जिला बैंकों ने आडिट किए बगैर ही समिति प्रबंधकों की रिपोर्ट पर मोहर लगा दी। जिला बैंकों से छूट मिलने पर समिति प्रबंधकों ने मनमर्जी से कर्ज माफ कर लूट खसोट की। अधिकारी घोटालों पर डाल देते हैं पर्दा अपैक्स बैंक में घोटाले जब-तब उजागर होते रहते हैं। अब सहकारी बैंकों के घोटाले सामने आ रहे हैं। अभी हाल ही में बुंदेलखंड इलाके के सहकारी बैंकों तीन करोड़ का घोटाला सामने आया है। सहकारी बैंक के अधिकारी उस पर पर्दा डाल रहे हैं। बुंदेलखंड के पन्ना, छतरपुर और टीकमगढ़ के जिला केंद्रीय सहकारी बैंक तो 3 करोड़ के घोटाले में फंसे ही हैं। अब छतरपुर जिला सहकारी बैंक की राजनगर कस्बे की ब्रांच से तीन करोड़ का घोटाला उजागर हुआ है। इसमें सहकारी पंजीयक ने 10 अप्रैल को ब्रांच मैंनेजर के खिलाफ एनआईआर दर्ज कराने के निर्देश संयुक्त पंजीयक को दिए हैं। प्रदेश में चल रही किसान क्रेडिट कार्ड योजना के क्या हाल हैं यह छतरपुर के सहकारी बैंक की राजनगर की ब्रांच में हुई करतूत से सामने आया है। ब्रांच मैंनेजर लक्ष्मी पटेल ने 183 किसानों को क्रेडिट कार्ड पर कर्ज देकर तीन करोड़ रूपए का घोटाला किया। प्रावधान है कि यह कर्ज प्राथमिक समितियों के माध्यम से दिया जाए और बैंक मुख्यालय से अनुमति ली जाए पर ऐसा नहीं हुआ। ब्रांच मैंनेजर ने न तो बैंक से अनुमति ली और न ही समितियों के माध्यम से किसानों को कर्ज दिया। सीधे ब्रांच से ही बांट दिया। सब्सिडी हड़प कर ली गई। इतना ही नहीं घोटाले की तीन करोड़ की रकम से समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीदी करवा ली। राजनगर ब्रांच से मछली पालन के करीब पांच लाख रूपए का कर्ज दिया गया। जिन गांव के किसानों को कर्ज दिया गया वहां तालाब ही नहीं है। इसमें सब्सिडी हड़प ली गई। रिकार्ड तोड़ गया सीधी सहकारी बैंक घोटाला प्रदेश के तमाम जिलों में संचालित सहकारी बैंकों में हुए घोटालों के सारे रिकार्ड तोड़ते हुए सीधी का सहकारी बैंक घोटाला अब प्रदेश में नंबर 1 पर आ गया है। इस एक बैंक से 1100 ट्रेक्टर फाइनेंस दिखा दिए गए, जबकि इतने तो पूरे प्रदेश में फाइनेंस नहीं हुए। इतना ही नहीं 167 कर्मचारियों की फर्जी भर्ती कर दी गई। इतना ही नहीं जीप व हाउसिंग फाइनेंस, पदोन्नित, शाखा भवनों के निर्माण में अनियमितता जैसे कई और मामले सामने आए हैं। अपेक्स बैंक स्तर की प्रारंभिक जांच में आरोप पहली नजर में प्रमाणित पाए गए और बैंक के तत्कालीन सीईओ आरकेएस चौहान निलंबित कर दिए गए, अब विस्तृत जांच हो रही है। सूत्रों के मुताबिक बीते तीन साल में सीधी जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक ने ताबड़तोड़ फाइनेंस किया। सहकारी क्षेत्र में सामान्यत: शार्ट टर्म फाइनेंस होता है, पर बैंक ने ट्रैक्टर, जीप और हाउसिंग फाइनेंस धड़ल्ले से किया। बैंक की जांच में पता चला कि कई ट्रैक्टरों के रजिस्ट्रेशन नंबर तक नहीं है। जिन हितग्राहियों के नाम ये फाइनेंस हुए उनमें से कुछ का अता-पता तक नहीं है। शार्ट टर्म फाइनेंस का पैसा इसमें लगा दिया गया। अब बैंक की हालत ये है कि अमानतदार पैसा वापस मांग रहे हैं और बैंक के पास देने को रकम नहीं है। वसूली भी यहां बेहद कम हो रही है। यही नहीं अपेक्स बैंक की प्रारंभिक जांच में 167 कर्मचारियों की नियुक्ति बाउचर पेमेंट पर करने की बात सामने आई है। इन लोगों को अलग-अलग शाखाओं में पदस्थ किया गया था। नियुक्ति के लिए शासन या अपेक्स बैंक से इजाजत तक नहीं ली गई। पदोन्नित में भी मनमर्जी चलाई गई। सात शाखाएं बिना अपेक्स बैंक की परमिशन खोल दी गईं। मामले की गंभीरता को देखते हुए सहकारिता मंत्री गोपाल भार्गव ने अपेक्स बैंक प्रबंधन को विस्तृत जांच कराने के निर्देश दिए हैं। वहीं, बैंक ने सहकारिता विभाग को प्रस्ताव दिया है कि सीधी बैंक का बीते चार साल का विशेष ऑडिट कराया जाए, ताकि अन्य गड़बडिय़ों के बारे में भी पता लग सके। अपेक्स बैंक के प्रबंध संचालक प्रदीप नीखरा ने बताया कि शिकायत प्राप्त हुई थी, जिसके आधार पर जांच कराई गई। इसमें प्रथम दृृष्टया अनयिमितताएं सामने आई हैं। तत्कालीन सीईओ को निलंबित कर दिया है। मामले की जांच बैंक स्तर पर कराई जा रही है। मंदसौर में बांट दिया गया 12 करोड़ का फर्जी ऋण प्रदेश भर के जिला सहकारी बैंकों की कार्यप्रणाली को लेकर मुख्यमंत्री ने भोपाल में चिंता जाहिर कर सुधारने की ताकीद की है। सीएम की चिंता सही भी है अकेले मंदसौर के जिला सहकारी बैंक ने ही पिछले कुछ वर्षों में 12 करोड़ का फर्जी ऋण बांट दिया है, वहीं बैंक कर्मचारियों व सोसायटियों ने ही 1.25 करोड़ का गबन कर दिया। बैंक में बैठे अध्यक्ष ने पात्रता नहीं होने पर भी बैंक से ही परिजनों के नाम पर कर्जा ले लिया। बीते तीन सालों में बैंक अध्यक्ष व अधिकारियों की जुगलबंदी का नतीजा कहो या जिम्मेदारों की लापरवाही नीमच, जीरन व सावन के वेयर हाउस की फर्जी पर्चियों के आधार पर लगभग 12 करोड़ रुपए के ऋण दे दिए गए। जबकि वेयर हाउस में माल रखा ही नहीं गया था। सबसे बड़ी बात यह रही कि यह ऋण जिन शाखाओं से जारी हुआ उन्हें इस तरह के ऋण देने की पात्रता भी नहीं थी। इसके बाद भी मंदसौर मुख्यालय पर बैठे जनप्रतिनिधि और अधिकारी इन लोगों को प्रश्रय देते रहे। अब स्थिति यह हो रही है वसूली करने जा रहे बैंक अधिकारियों को न तो वेयर हाउस मालिक मिल रहे हैं और न ही फर्जी पर्चियों पर ऋण लेने वाले। हाल ही में नाबार्ड के दल द्वारा की गई जांच में यह भी उजागर हुआ है कि तत्कालीन अध्यक्ष राजेंद्र सुराना ने भी बैंक की दलौदा शाखा से अपने परिजनों के नाम व उनके वेयर हाउस में रखे सामान की पर्ची पर लगभग 2 करोड़ रुपए तक के ऋण प्राप्त कर लिए थे। हालांकि बवाल उठने के बाद सभी राशि ब्याज सहित जमा भी कर दी गई। पर लंबे समय तक बैंक की राशि का इस्तेमाल किया गया जबकि सहकारिता के नियमों में पदाधिकारियों या उनके परिजनों द्वारा इस तरह कर्ज नहीं लिया जा सकता है। इस मामले में सरकार ने जांच ठंडे बस्ते में डाल दी थी। बाद में हाईकोर्ट के निर्देश पर संयुक्त पंजीयक सहकारिता उज्जैन वीपी मारन ने भी जांच की थी। पर मामला दबा दिया गया। रीवा में 16 करोड़ का घोटाला सहकारी बैंकों में लगातार घोटाले सामने आ रहे हैं। हाल ही में रीवा बैंक में भी करीब 16 करोड़ का घोटाला पकड़ा गया है। इस मामले में अभी जांच भी चल रही है। इसके अलावा रायसेन, होशंगाबाद, टीकमगढ़, छतरपुर सहित लगभग सभी बैंकों में घपले हुए हैं और अफसरों और जनप्रतिनिधियों ने मिलकर बैंक को करोड़ों रुपए की चपत लगाई है। इसी तरह हाल ही में हरदा के को-ऑपरेटिव बैंक में 2.77 करोड़ का घोटाला सामने आया था। इस मामले में आरोपी जेल में है। उधर,सिंगरौली जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक मर्यादित बैढऩ में लोन प्रक्रिया में करोड़ों का घोटाला हुआ है। गरीब जनता कलेक्टर से जांच की मांग कर रही है। घोटाले की निष्पक्ष जांच की जाए तो बड़ी मछलियां जाल में फंसेंगी। नीमच जिला सहकारी केंद्रीय बैंक की तीन शाखाओं में किसानों का फर्जी माल वेयरहाउस में संग्रहित बताकर 9 करोड़ का घोटाला किया गया है। गौरतलब है कि नीमच सिटी बैंक शाखा में पोरवाल एग्रो फेसेलिटी वेयरहाउस के मयंक पोरवाल ने प्रबंधन से मिलीभगत कर 3.39 करोड़ रुपए का फर्जी ऋण हथिया लिया था। इसके लिए 34 किसानों की रसीदें प्रस्तुत कर माल वेयरहाउस में संग्रहित होना बताया था। बाद में ऋण जमा भी नहीं कराया गया। घोटाले में शामिल नीमच सिटी और सावन बैंक शाखा के मामले में तत्कालीन प्रबंधकों मंगलसिंह मोर्य और सुमित ओझा को गिरफ्तार किया जा चुका है। जबकि मुख्य आरोपी पुलिस गिरफ्त से बाहर है। हाल ही में पुलिस ने घोटाले में शामिल युसूफ मोहम्मद, हरिवल्लभ पाटीदार, देवीलाल किलोरिया को गिरफ्तार किया है। आरोपियों को न्यायालय ने जेल भेज दिया है। इन लोगों के नाम पर वेयरहाउस में धनिए का भंडारण बताया गया था। घोटाला होता रहा, अफसरों को नहीं लगी भनक हरदा, सीधी और रीवा के सहकारी बैंकों में करोड़ों के घोटाले होने के बाद भी सहकारिता विभाग के अफसरों की जिम्मेदारी अब तक तय नहीं की गई है। विभाग अफसरों पर कार्रवाई करने के लिए जांच रिपोर्टों का इंतजार कर रहा है। जबकि, घोटालों की पुष्टि अपेक्स बैंक की जांचों में हो चुकी है। इसी आधार पर तीनों जगह एफआईआर कराई गई हैं। सहकारिता विभाग के अधिकारियों ने बताया कि शासन के प्रतिनिधि के तौर पर सहकारिता विभाग के अफसरों पर बैंक की गतिविधियों पर नजर रखने, मुख्यालय को सूचना देने के साथ पर्यवेक्षण की जिम्मेदारी होती है। होशंगाबाद बैंक की हरदा ब्रांच में नियमों के विपरीत करोड़ों रुपए रखे जाते रहे पर उप या संयुक्त पंजीयक को पता नहीं लगा। सहकारिता मंत्री गोपाल भार्गव ने बताया कि बैंकों में आए दिन उजागर हो रहे घोटालों के मद्देनजर ही कलेक्टरों को प्रशासक बनाने का फैसला किया है। पांच बैंकों की जिम्मेदारी इन्हें सौंपकर कार्रवाई के लिए फ्री-हैण्ड भी दे दिया है। साथ ही ये हिदायत भी दी है कि जांच में किसी भी स्तर का अधिकारी दोषी पाया जाता है तो सीधे एफआईआर कराई जाए। 12 रिमांइडर, फिर भी रिकॉर्ड गायब ग्वालियर जिला सहकारी बैंक में हुई 30 करोड़ रूपए से अधिक की आर्थिक अनियमितताओं के खिलाफ जांच कर रही ईओडब्ल्यू शाखा को अभी तक मूल रिकॉर्ड नहीं मिला है। जबकि ईओडब्ल्यू ने 2013-14 में लगातार 12 से अधिक पत्र भेजे थे, इन पत्रों में फर्जी ऋण प्रकरणों की सूची भी लगाई थी, ताकि मूल रिकॉर्ड मिलने में आसानी रहे। हाईकोर्ट के आदेश पर हुई इस कार्यवाही के अंतर्गत पत्रों की प्रति डीआर, जेआर, एमडी अपैक्स बैंक और सहकारिता विभाग के आयुक्त को भेजी गई थी। वर्तमान में बैंक प्रशासक भी इस प्रकरण से संबंधित फाइलें ईओडब्ल्यू को नहीं सौंप रहे। अपराध क्रमांक 1-10 में अपना घर, ड्रिप ऋण योजना, उपभोक्ता ऋण सहित धारा 37 का उल्लंघन कर बैंक को 20 लाख रूपए की सीधी हानि पहुंचाने का उल्लेख हैं, इसके अलावा आईआरडीपी ऋण वितरण नियुक्ति पदोन्नतियों में अवैधानिक प्रक्रिया सहित अन्य कार्यों से सहकारी बैंक को करीब 30 करोड़ की चपत लगी थी। कलेक्टर ने लिया चार्ज, घोटालों की होगी जांच उधर, जिला सहकारी बैंक भिंड का बोर्ड भंग होने के बाद कलेक्टर मधुकर आग्नेय ने 2 अप्रैल को चार्ज ले लिया है। इस दौरान उन्होंने बैंक की फाइलों को भी खंगाला। ज्वाइंट रजिस्ट्रार अभय खरे ने स्पष्ट किया कि भोपाल के अफसरों ने बैंक के रिकार्डों की जांच की है, उसके तहत पूर्व चेयरमैन के खिलाफ मामला भी दर्ज हो सकता है। साथ ही घोटाले और नियुक्तियों की फाइलों को भी खंगाला जाएगा। इस संबंध में दिशा निर्देश भी जारी कर दिए है। प्रदेश सरकार ने सहकारिता के चुनाव से पहले जिला सहकारी बैंक का बोर्ड भंग कर चेयरमैन श्यामसुंदर सिंह जादौन को पद से हटा दिया है। भाजपा संगठन की माने तो श्यामसुंदर सिंह जादौन प्रदेश नेतृत्व द्वारा कराए जा रहे चुनाव को लेकर खफा थे। साथ ही भाजपा ने अगले चेयरमैन के तौर पर मेहगांव के भाजपा के वरिष्ठ नेता केपी सिंह के नाम का मेेंडेड जारी कर दिया था। इसके खिलाफ श्यामसुंदर सिंह जादौन ने बयान देकर कहा था कि सरकार ने गलत तरीके से भिंड जिले में मेंडेड जारी किया है। प्रदेश के अन्य जिलों में मेंडेड जारी नहीं हुआ है। बैंक में कलेक्टर के चार्ज लेने के बाद हड़कंप मच गया। सहकारी बैंकों में हवाला कारोबार भी छत्तीसगढ़ में सहकारी बैंकों के माध्यम से हवाला कारोबार का खुलासा होने के बाद अब मप्र के सहकारी बैंक भी जांच के घेरे में आ गए हैं। दरअसल, इनकम टैक्स विभाग ने पाया कि रायपुर जिला सहकारी बैंक के तीन शाखाओं सीओडी ब्रांच (लाल गंगा शॉपिंग माल के सामने वाला)में 6 खाते, दूसरा न्यू मंडी ब्रांच 5 खाते और रामसागर पारा ब्रांच 10 खाते यानी 21 खाते खोले गए, जिनमें करीब 500 करोड़ का लेन देन हुआ। इन सारे खातों में लेन देन 20 जुलाई 2007 से लेकर 2011 मई तक हुए। इनमें आरबीआई की गाइड लाइन नो योर क्सटमर (केवाईसी) का पालन नहीं हुआ। पेन कार्ड की इंट्री नहीं थी। इन चीजों की शिकायत जब आरबीआई के पास पहुंची तो फिर जांच हुई और शिकायतों को सही पाया गया। खातेदारों के बारे में मालूम करने पर पते फर्जी निकले, लेकिन पैसे का ट्रांजेक्शन पर रोक नहीं लगी। इसके बाद 20 जनवरी 2015 में आरबीआई ने रजिस्टार ऑफ कॉपरेटिव सोसाइटी को आरबीआई ने खत लिखा और सहकारी बैंक के मुख्य अधिकारी डीआर देवांगन, एसके वर्मा सीईओ अनूप अग्रवाल और पूर्व सीईओ एके श्रीवास्तव पर कार्रवाई करने के लिए कहा था जिस पर आखिरकर कलेक्टर के आदेश पर कार्रवाई हुई। अब इसी आधार पर मप्र के बैंकों की भी जांच-पड़ताल हो रही है। दरअसल, दोनों राज्यों का सिस्टम एक समान है। लोग आसानी से सहकारी बैंकों में अपने खाते खोल लेते हैं और फिर लेनदेन करने लगते हैं। राष्ट्रीय या मल्टीनेशनल बैंक की तरह सहकारी बैंकों पर जांच पड़ताल नहीं होती और इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की नजर भी सहकारी बैंकों पर कम ही रहती है। आरबीआई को चाहिए कि वो मप्र के सहकारी बैंकों की छानबीन करे। बहुत ज्यादा संभावनाएं हैं कि एक बड़ा हवाला कारोबार का खुलासा हो। 115 करोड़ के घोटाला ठंडे बस्ते में प्रदेश के सहकारी बैंकों में लगातार घपले-घोटाले सामने आते रहते हैं, लेकिन आज तक जिम्मेदारों पर कोई बड़ी कार्रवाई नहीं हुई है। 2010 में प्रदेश के 36 जिलों में कर्ज माफी के नाम पर 115 करोड़ की हेराफेरी का मामला सामने आया था। राज्य की सहकारी बैंकों व प्राथमिक सहकारी समितियों ने धडल्ले से अपात्रों से मिलीभगत करके यह घपला किया था। इस घपले में जिला सहकारी बैंकों के 299 अधिकारी, 395 कर्मचारी एवं प्राथमिक सहकारी समितियों के 1507 कर्मचारी दोषी पाए गए हैं किन्तु राज्य सरकार ने केवल 10 कर्मचारियों को ही सेवा से पृथक करने की कार्यवाही की। इस मामले को लेकर कांग्रेस ने 2011 में सीबीआई जांच कराने की मांग करती रही तथा तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से भी शिकायत की थी, लेकिन घपलेबाजों का बालबांका नहीं हो सका। उल्लेखनीय है कि केन्द्र सरकार ने मप्र के गरीब एवं बैंकों का कर्ज न पटा सकने वाले किसानों के ऋण माफ करने एवं उन्हें ऋण चुकाने में राहत देने की योजना के तहत राज्य सरकार को 914 करोड़ रुपए की राशि उपलब्ध कराई थी। इस राशि से जिला केन्द्रीय सहकारी बैंकों को उन किसानों के ऋण पूरी तरह माफ करने थे जिनके पास 5 एकड़ से कम भूमि है तथा वे 1997 से 2007 के बीच अपना कर्ज अदा नहीं कर सके हैं, इसके अलावा पांच एकड़ से अधिक भूमि वाले ऐसे किसानों के लिए भी केन्द्र सरकार ने ऋण राहत योजना प्रारंभ की थी जो पिछले दस वर्षों तक बैंकों का ऋण नहीं चुका सके थे। जिला केन्द्रीय सहकारी बैंकों को भारत सरकार के निर्देशों के अनुसार किसानों की ऋण माफी एवं ऋण राहत करना थी। ऋण राहत योजना में 5 एकड़ से बड़े किसानों को एकमुश्त राशि जमा करने पर 25 प्रतिशत ऋण से मुक्ति देने की योजना थी। लेकिन यह जानते हुए कि सहकारी बैंकों में बैठे नेता और दलाल घपले से बाज नहीं आएंगे, राज्य सहकारी बैंक ने यह राशि सभी जिलों सहकारी बैंकों को भेज दी। सहकारी बैंको ने भी बेहद लापरवाही का परिचय दिया और ऋण राहत एवं ऋण माफी के प्रकरण प्राथमिक सहकारी समितियों के माध्यम से तैयार कराए। इन समितियों में स्थाई कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं होती। जिला सहकारी बैंकों के कर्मचारियों, अधिकारियों एवं समितियों ने सदस्यों ने मनमाने ढंग से किसानों का ले देकर कर्ज माफ कर दिया। केन्द्र सरकार ने निर्देश दिए थे कि केवल कृषि ऋण ही माफ किया जाएगा, लेकिन बैंकों एवं सहकारी समितियों ने मकान, मोटर सायकिल, चार पहिया वाहनों के ऋण भी माफ कर दिए। मप्र विधानसभा में कांग्रेस के विधायक डा. गोविन्द सिंह ने 28 जुलाई 2009 को यह मामला विधानसभा में उठाया। इसके बाद 23 जुलाई 2009 को विपक्षी सदस्यों ने इस मुद्दे पर ध्यानाकर्षण सूचना के तहत सरकार का ध्यान इस घपले की ओर आकर्षित किया। तब सहकरिता मंत्री ने घपले को स्वीकार करते हुए 31 दिसम्बर तक इसकी जांच कराने एवं दोषी अधिकारियों कर्मचारियों के विरुद्ध कार्यवाही करने का भरोसा दिलाया था। लेकिन इस घपले की जांच अभी तक पूरी नहीं हुई है। 10 मार्च 2010 को कांग्रेस के डा. गोविन्द सिंह ने जब प्रश्र के माध्यम से फिर से इस मामले को विधानसभा में उठाया तो सहकारिता मंत्री बिसेन ने चौंकाने वाली जानकारी दी। उन्होंने सदन में स्वीकार किया कि इस योजना में अभी तक की जांच में 114.81 करोड़ की अनियमितता हो चुकी है। उसके बाद कांग्रेस ने इस मुददे को लेकर कई बार हंगामा किया लेकिन परिणाम सिफर रहा। कांग्रेस का आरोप है कि केन्द्र की कर्ज माफी योजना के जरिए किसानों को मिलने वाली 200 करोड़ की राहत का किसानों के नाम पर अपहरण कर लिया गया और इसकी भनक किसानों को लगी भी नहीं और प्रदेश के नेता और अफसर तो किसानों के कर्ज से मालामाल हो रहे हैं। यूपीए सरकार ने जब कर्ज माफी का ऐलान किया तो हरदा जिले के बघवार गांव में रहने वाले किसान गरीबदास को लगा पैसा ना सही कर्जे से मुक्ति ही सही कुछ तो फायदा होगा। आठ एकड़ जमीन के मालिक गरीबदास को सहकारी बैंक के पचास हजार रुपए चुकाने थे। कर्जा जस का तस है। ये अलग बात है कि कर्जा माफी की लिस्ट में गरीबदास के नाम से 32,090 रुपए माफ हो चुके हैं। किसानों के कर्ज माफी की लिस्ट की तरह बैंक के गोलमाल की लिस्ट भी लंबी है। कमल सिंह पांच एकड़ के किसान हैं। नियम कायदे से इनका पूरा कर्जा माफ होना था। बेचारे दो साल में पच्चीस हजार रुपए बैंक में जमा कर चुके हैं। इनके नाम पर भी लिस्ट में 22,162 रुपए की माफ हुई। लेकिन फायदा कमल को नहीं मिला। दिलावर खान की कहानी चौंकाने वाली है। इनके वालिद का नाम नेक आलम है लेकिन लिस्ट में दिलावर का धर्म ही बदल गया। इनकी वल्दियत में रामसिंह का नाम लिखा है। जबकि दिलावर रामसिंह नाम का कोई शख्स हरदा जिले की टिमरनी तहसील के करताना गांव में रहता ही नहीं। इस नाम पर लिस्ट में 11,400 रुपए माफ कर दिए गए। कर्ज माफी के इस अपहरण से जुड़े दस्तावेज साबित करते हैं कि होशंगाबाद और हरदा जिलों में ही 13 करोड़ से ज्यादा के फर्जी कर्ज माफी क्लेम बनाए गए हैं। जब दो जिलों का ये हाल है तो अन्य जिलों में क्या हुआ होगा आप अंदाजा लगा सकते हैं। गोंदा गांव में रहने वाले रामनारायण के तीन खाते हैं। इन खातों में दो लाख से ज्यादा की कर्ज माफी हो गई। लेकिन हरदा जिले के इस गरीब किसान को कर्ज माफी की भनक तक नहीं लगी। गोंदा गांव के ही रेवाराम ने साठ हजार रुपए बैंक का कर्ज चुकाने के लिए जमा किए। इसके बाद भी इनके दो खातों पर डेढ़ लाख रुपए का कर्ज माफ हो गया। बगैर पढ़े-लिखे किसान सहकारी बैंकों के गोलमाल में फंसकर रह गए। ज्यादातर मामलों में बैंकों ने ऐसे कर्जे भी माफ कर दिए जो खेती के लिए नहीं लिए गए थे। कई जगह तो खेती की आड़ में मोटर साइकिल, जीप और घरों के कर्ज माफ हो गए। सरकार ने विधानसभा में भी माना है कि 36 जिलों में हेराफेरी हुई। सींधी और सिंगरौली जिलों में तो बैंक के रिकॉर्ड ही गायब हो गए। भिंड जिले में गोलमाल के ही रिकॉर्ड मिले। जाहिर है कि सहकारी बैंक के मैनेजरों की जानकारी के बगैर ये हेराफेरी नामुमकिन है। कैसे होती है करोड़ों की हेराफेरी आखिर को-ऑपरेटिव बैंक करोड़ों की हेराफेरी करते कैसे हैं। इसकी पड़ताल करने पर पता चला है कि किसानों को उनके खाते की न तो पासबुक दी जाती है, ना ही कर्जे के हिसाब-किताब के लिए ऋण पुस्तिका। नतीजा ये कि किसानों को न तो कर्ज का पता चलता है न कर्ज माफ का। लिस्ट में कई ऐसे फर्जी नाम भी हैं जिनका असल में कोई वजूद ही नहीं। गोंदा गांव में कर्ज माफी घोटाले की कहानी किसी का भी होश उड़ाने के लिए काफी है। हरदा जिले के इस गांव के किसानों को खबर ही नहीं लगी कि केन्द्र सरकार ने उनका कर्ज माफ किया। लिस्ट में तमाम नाम ऐसे हैं जो इस गांव में ढूंढ़े से भी नहीं मिले। लेकिन इनके नाम पर लिया कर्ज माफ हो चुका है। हरिओम वल्द रामदास....माफ हुए....9707 रुपए मंगलसिंह वल्द गुलाबसिंह....माफ हुए....5863 रुपए विजय सिंह वल्द सूरत सिंह....माफ हुए...11017 रुपए चमनसिंह वल्द गजराज सिंह....माफ हुए...37208 रुपए देवीसिंह वल्द कल्लू सिंह....माफ हुए.....61687 रुपए मंगल सिंह वल्द रामाधऱ....माफ हुए....57147 रुपए अधार वल्द पूनाजी....माफ हुए....86593 रुपए जगदीश वल्द बहादुर...माफ हुए...81051 रुपए गोंदा के पड़ोस में सडोरा नाम का एक गांव ऐसा भी है जहां को ऑपरेटिव बैंक के एक भी खातेदार के पास पासबुक नहीं। गांव वाले बार-बार पासबुक मांगते हैं तो हर बार जवाब मिलता है बन रही हैं। जगदीश प्रसाद के खाते से कब 27,000 रुपए का लोन हो गया उसे पता ही नहीं चला। ना तो उसने कहीं दस्तखत किए ना ही कहीं अंगूठा लगाया। मगर जब नोटिस आया तो आंखें खुली रह गईं। गांव के ही किसान कमलकिशोर को भी एक अदद पासबुक की दरकार है जो अब तक नहीं मिली।

719 करोड़ के घोटाले के आरोपी मोहंती पर गिरेगी गाज

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हुई जांच में मोहंती पाए गए दोषी
प्रदेश सरकार ने विधि विशेषज्ञों की सलाह पर शुरू की कार्रवाई
ईओडब्ल्यू के बाद लोकायुक्त ने भी पूरी की कागजी कार्रवाही
पीएमओ ने भी मामले की फाइल की तलब
विनोद उपाध्याय
भोपाल। औद्योगिक विकास निगम (एमपीएसआईडीसी) में 719 करोड़ रूपए के घोटाले के आरोपी अपर मुख्य सचिव सुधि रंजन मोहंती पर इस बार गाज गिरनी तय मानी जा रही है। क्योंकि राज्य आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो (ईओडब्ल्यू)और लोकायुक्त के साथ सरकार ने भी इस घोटाले के मुख्य आरोपी मोहंती के खिलाफ कार्रवाई की तैयारी शुरू कर दी है। व्यापमं घोटाले से पहले प्रदेश के सबसे बड़े इस घोटाले में औद्योगिक विकास निगम के तत्कालीन प्रबंध संचालक एसआर मोहंती ने बिना किसी नियम का पालन करते हुए जिस तरह कंपनियों को ऋण वितरीत किया है, उसकी फाइल एक बार फिर से खुल गई है। ईओडब्ल्यू ने घोटाले में राज्य सरकार से स्कूल शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव एसआर मोहंती के खिलाफ न्यायालय में चालान पेश करने के लिए अभियोजन स्वीकृति मांगी है। ईओडब्ल्यू ने कहा कि राज्य उद्योग विकास निगम में हुए करोड़ों के गोलमाल मामले का सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर नए सिरे से परीक्षण किया गया है, इस पूरे मामले में मोहंती पूरी तरह शामिल पाए गए हैं। ऐसे में इनके खिलाफ कोर्ट में चालान पेश करने के लिए अभियोजन स्वीकृति दी जाए। सामान्य प्रशासन कार्मिक विभाग ने पूरा प्रकरण तैयार कर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भेज दिया है। उनके अनुमोदन के बाद उक्त प्रकरण को केंद्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय को भेजा जाएगा। केंद्र की अनुमति मिलने के बाद ईओडब्ल्यू मोहंती के खिलाफ न्यायालय में चालान पेश कर अभियोजन दायर कर सकेगी। उधर, खबर यह है कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने भी इससे संबंधित फाइल तलब की है। उल्लेखनीय है कि औद्योगिक विकास निगम के तत्कालीन प्रबंध संचालक एसआर मोहंती ने बिना किसी नियम का पालन करते हुए देशभर की लगभग 177 कंपनियों को 714 करोड़ का ऋण बांट दिया था। इस मामले में 30.11.1998 को तत्कालीन प्रबंधक संचालक एमपी राजन ने संचालक मंडल की बैठक में यह प्रस्ताव भी पारित कराया था कि एमपीएसआईडीसी किसी भी संस्थान से 175 करोड़ के स्थान पर 500 करोड़ तक की सहायता राशि प्राप्त करें। शासन द्वारा इस प्रस्ताव के संबंध में आपत्ति भी की गई। लेकिन इन अधिकारियों ने जानबूझकर प्रस्ताव के संबंध में शासन को गुमराह करते हुए किसी तरह का अनुमोदन नहीं लिया और न ही कार्पोरेट डिपाजिट दिए जाने के लिए कोई नियम ही बनाए। इस तरह अल्प अवधि के लिए दिए जाने वाले डिपाजिट (एक वर्ष से कम अवधि के लिए) को प्रबंध संचालक द्वारा तीन वर्ष एवं पांच वर्ष तक की अवधि में तब्दील कर एमपीएसआईडीसी के तात्कालीन प्रबंध संचालक एमपी राजन एवं एसआर मोहंती ने अनाधिकृत रूप से डिपाजिट प्राप्त किया एवं उसे आईसीडी के रूप में वितरित कर दिया। जबकि प्रस्ताव में यह पारित कराया गया था कि एमपीएसआईडीसी के सरप्लस फंड का उपयोग किया जाएगा। प्रबंध संचालकों ने कार्पोरेट डिपाजिट के रूप में वितरित की जाने वाली राशि बिना सिक्योरिटी जमा कराए ही वितरित कर दी। जिसमें इस तथ्य को भी नजर अंदाज किया गया कि उपरोक्त राशि वापस होने की संभावना है या नहीं। घोटाला उजागर होने पर सरकार ने एमपीएसआईडीसी द्वारा जिन 42 कंपनियों को आईसीडी की राशि वितरित की गई उसका मूल रिकॉर्ड जब्त किया गया एवं 23 अधिकारियों और कर्मचारियों से पूछताछ कर कथन भी लिए गए थे। मामले में तात्कालीक चेयरमैन और दोनों पूर्व प्रबंध संचालकों के अलावा जिन कंपनियों को ऋण वितरित किया गया उनमें से 17 कंपनियों के संचालकों से पूछताछ की जा चुकी है। तत्कालीन मुख्यमंत्री उमाभारती ने लगभग सवा सात अरब रुपए से अधिक के घोटाले पर कार्रवाई करने के निर्देश देते हुए आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो में प्रकरण दर्ज कराया। आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो ने प्रकरण क्रमांक 25/04 अंडरसेक्शन 409, 420, 467, 468, 120 बी, 13 (आई) (डी) आरडब्ल्यू 13 (आईआई) पीसी-एसीटी का समावेश कर मोहंती के विरुद्ध एफआईआर दर्ज की। नियम विरूद्व कर्ज बांटने पर मोहंती के खिलाफ जांच 2004 में शुरू की गई थी। जांच को प्रभावित करने की कोशिश मामले की जांच चल रही थी, तभी तत्कालीन मुख्य सचिव विजय सिंह ने वर्ष 2005 में केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय को एक पत्र लिखा था। पत्र में यह कहा गया था कि आईएएस अफसर एसआर मोहंती की इस मामले में कोई भूमिका नहीं है। वे निर्दोष हैं। पत्र मोहंती की होने वाली पदोन्नति के मद्देनजर लिखा गया था। मोहंती ने उक्त पत्र को जबलपुर हाईकोर्ट में पेश कर अपने को निर्दोष बताया था। इस मामले में मुख्य सचिव विजय सिंह के दबाब में सामान्य प्रशासन विभाग ने भी उपसचिव सामान्य प्रशासन विभाग के माध्यम से उच्च न्यायालय में 18 जनवरी 2006 को हलफनामा प्रस्तुत किया। इस मामले में एसआर मोहंती ने हलफनामा प्रस्तुत करने के दिन 18 जनवरी 2006 को ही उच्च न्यायालय में आवेदन लगाकर जल्दी सुनवाई करने का निवेदन किया। राज्य सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा मोहंती के पक्ष में हलफनामा प्रस्तुत करने से उच्च न्यायालय ने भी मोहंती के पक्ष में निर्णय दिया। न्यायालय द्वारा अरबों रुपए के घपले में फंसे सुधी रंजन मोहंती को क्लीन चिट देने की जानकारी जब समाचार पत्रों द्वारा प्रमुखता से प्रकाशित हुई तब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपना स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि उन्हें अंधेरे में रखते हुए शपथपत्र तैयार कर न्यायालय में प्रस्तुत किया गया। बताया जाता है कि इस अरबों रुपए के घोटाले में प्रदेश के तत्कालीन मुख्य सचिव विजय सिंह ने बिना मुख्यमंत्री को विश्वास में लिए ही उच्च न्यायालय में शपथपत्र प्रस्तुत कराया था। इससे खिन्न होकर मुख्यमंत्री ने तत्कालीन मुख्य सचिव को बुलाकर अप्रसंन्नता व्यक्त करते हुए नाराजगी जाहिर की और मुख्य सचिव बदल दिया। चूंकि मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित था, इसके चलते हो रही देरी को ध्यान में रखते हुए शासन ने आदेश देकर मोहंती के विरुद्ध पुन: कार्रवाई आरंभ करने कि निर्देश दिए हैं। मामले की जांच कर रही ईओडब्ल्यू ने उस समय माना था कि हाईकोर्ट ने जांच एजेंसी (ईओडब्ल्यू) को पक्ष सुने बिना फैसला सुना दिया है। उसके विरोध में ईओडब्ल्यू ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने माना आईएएस अफसर एसआर मोहंती का नाम एफआईआर से हटाया जाना गलत है। यह भी उचित नहीं है कि 84 आरोपियों में से एक के खिलाफ जांच नहीं की जाए। सुप्रीम कोर्ट ने नए सिरे से जांच करने और सबूत जुटाने के निर्देश ईओडब्ल्यू को दिए थे। ईओडब्ल्यू इस मामले में पूर्व मंत्री व निगम के अध्यक्ष सहित सभी आईएएस अधिकारियों (मोहंती को छोड़ कर) के खिलाफ अदालत में चालान पेश कर चुका है। मोहंती के खिलाफ चालान जबलपुर हाईकोर्ट के कारण पेश नहीं किया गया था। अब तक 14 कंपनियों को दोषी माना गया है और उनके खिलाफ चालान पेश किया जा चुका है। उल्लेखनीय है कि मोहंती के खिलाफ केंद्र सरकार ने 28 जून 2011 को अभियोजन स्वीकृति जारी की थी, लेकिन मोहंती ने इस मामले में ईओडब्ल्यू की कार्रवाई को गलत ठहराते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। मामले की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने ईओडब्ल्यू को नए सिरे से जांच करने के निर्देश दिए। हाल ही में ईओडब्ल्यू ने दोबारा मामले की जांच कर पाया है कि इस पूरे घपले में मोहंती दोषी हैं इसलिए एक बार फिर अभियोजन स्वीकृति जारी करने की मांग की है। ईओडब्ल्यू द्वारा अभियोजन स्वीकृति मांगे जाने की भनक लगते ही मोहंती ने मुख्यमंत्री को रिप्रजेंटेशन देकर अपनी बात कही। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जिन 13 बिंदुओं पर जांच करने के निर्देश दिए थे, ईओडब्ल्यू ने उनमें से केवल एक बिंदू पर जांच कर अपनी रिपोर्ट सरकार को दी है, जो कि सीधे-सीधे सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना है। मोहंती का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने ईओडब्ल्यू को मेरा पक्ष लेने के भी निर्देश दिए थे, जो नहीं लिया गया। मुझे फंसाने की साजिश हो रही है। मोहंती का पक्ष सुनने के बाद मुख्यमंत्री ने पूरे मामले को विधि विभाग को परीक्षण के लिए भेज दिया है। विधि विभाग से अभिमत आने के बाद ही कार्रवाई होगी। दो धड़े में बंटे मप्र के आईएएस बताते हैं कि मोहंती के भ्रष्टाचार की फाइल खुलते ही प्रदेश के आईएएस अफसर दो धड़ों में बंट गए हैं। एक धड़ा अभी भी एसीएस मोहंती को बचाने में लगा है तो जाहिर है कि दूसरा निपटाने में। एक धड़े के अफसरों का कहना है कि सुधि रंजन मोहंती आईसीडी लोन प्रकरण में अकेले दोषी कैसे हो सकते हैं। मोहंती आज भी और पहले भी उसी सरकार का हिस्सा रहे हैं जिसे शीर्ष पर बैठे राजनेता चलाते आए हैं। कोई भी अफसर अपने बॉस की नाफरमानी नहीं कर सकता। जाहिर है कि मोहंती अगर दोषी ठहराए जा रहे हैं तब इसके पीछे बड़ी राजनीति का हाथ है। राजनीति एक काबिल अफसर का भविष्य चौपट करने पर आमादा नजर आती है। वहीं दूसरे धड़े के अफसर गड़े मुर्दे उखाडऩे में लगे हुए हैं। अफसरों की नुराकुश्ती में यह बात निकलकर सामने आई है कि भ्रष्टाचार के प्रकरणों पर खासकर किसी आईएएस के खिलाफ लोकायुक्त या ईओडब्ल्यू को चालान पेश करने की अनुमति देने के बारे में कांग्रेस और भाजपा सरकार का ट्रेक रिकार्ड एक जैसा है। दोनों पार्टियों की सरकार अपने-अपने शासनकाल के दौरान बड़े अफसर के विरुद्ध बड़ी मुश्किल से मुकदमा चलाने के लिए इन संगठनों को हरी झंडी देती है। और फिर जब एसआर मोहंती जैसा अधिकारी हो तो यह निर्णय लेना सरकार के मुखिया के लिए भी सचमुच मुश्किल होगा। वर्ष 2005 में जब तत्कालीन मुख्य सचिव विजय सिंह और सामान्य प्रशासन की प्रमुख सचिव आभा अस्थाना ने मोहंती व अन्य के पक्ष में हाईकोर्ट को एफिडेविट देकर क्लीन चिट दिलवाई थी तब भी यह मामला उछला था। फिर कुछ दिनों के बाद मुख्यमंत्री पद पर पहली दफा काबिज होते ही शिवराज सिंह ने सीएस विजय सिंह को हटा दिया था और आभा अस्थाना तथा एक जीएडी अफसर को निलंबित कर दिया था। लेकिन बाद में मोहंती के सुप्रीम कोर्ट जाने से यह मसला लटक गया था और इस तरह तब वे ईओडब्ल्यू की चपेट में आने से बच गए थे। अब इतने अंतराल के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर नए सिरे से परीक्षण के उपरांत ईओडब्ल्यू ने इस प्रकरण में आगे बढ़ते हुए सरकार से चालान पेश करने की अनुमति मांगी है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2015 की शुरूआत में ही लोकायुक्त जस्टिस पीपी नावलेकर ने भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर मोहंती सहित 135 अफसरों-कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की अनुमति मांगी थी। 8 जनवरी को मुख्यमंत्री को लिखे खत में नावलेकर ने लिखा था कि कई शासकीय सेवक ऐसे हैं जिनके खिलाफ लोकायुक्त द्वारा चालान पेश किए दो साल से ज्यादा हो चुके हैं, लेकिन संबंधित को निलंबित किया है अथवा नहीं, इसकी जानकारी प्राप्त नहीं हुई है। चि_ी में लिखा है 'भ्रष्टÓ शासकीय सेवकों के विरुद्ध त्वरित एवं प्रभावी कार्यवाही की शासन की मंशा के प्रति समाज में जहां प्रतिकूल छवि निर्मित होती है वहीं भ्रष्ट सेवकों के यथावत पद पर बने रहने से साक्ष्य/साक्षियों को प्रभावित करने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। दिग्विजय के साथ उमा-गौर भी रहे हैं मोहंती के रक्षक कांग्रेस शासन काल में हुए इस घोटाले के आरापी मोहंती को पहले पांच साल दिग्विजय सिंह का संरक्षण मिलता रहा, उसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती और बाबूलाल गौर भी उनके रक्षक रहे। हालांकि मोहंती के खिलाफ 2004 में उमा भारती के निर्देश पर ही ईओडब्ल्यू में मामला दर्ज हुआ था। उसके बाद बाबूलाल गौर ने भी मोहंती को बचाने की भरपूर कोशिश की। उल्लेखनीय है कि जब आईसीडी घोटाले के आरोपी सुधि रंजन मोहंती को क्लीन चिट देने के मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तत्कालीन मुख्य सचिव विजय सिंह को हटा दिया था। इसके अलावा प्रमुख पद पर बैठे मोहंती को भी हटा दिया गया था। इस दौरान फरवरी 2006 में जब कांग्रेस विधायक आरिफ अकील ने तत्कालीन वाणिज्य कर मंत्री बाबूलाल गौर से एक लिखित सवाल में पूछा था कि क्या आईसीडी घोटाले में अनुसंधान ब्यूरो ने कोई मुकदमा दर्ज किया है? अगर मुकदमा दर्ज हुआ तो किन अफसरों और उद्योगपतियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया? तब गौर ने यह बताकर पल्ला झाडऩे की कोशिश की कि इस मामले में जानकारी एकत्र की जा रही है जबकि मामले के पूरे तथ्य स्वयं औद्योगिक विकास निगम 2004 में ही सार्वजनिक कर चुका है। 18 जनवरी को जबलपुर हाई कोर्ट द्वारा मोहंती के खिलाफ दर्ज याचिका खारिज किए जाने के बाद यह मामला उछला था। उसके बाद सामान्य प्रशासन विभाग की प्रमुख सचिव आभा अस्थाना, उप सचिव सुभाष डाफणे, मुख्य सचिव विजय सिंह पद से हटाए गए थे और मोहंती का विभाग बदला गया था। गौर ने ही मुख्यमंत्री बनने पर आरोपी अधिकारी मोहंती को प्रमुख विभाग में नियुक्त कर उनके खिलाफ मामला वापस लिए जाने की स्वीकृति दी थी। गौर ने मुख्य सचिव को हटाने का भी विरोध किया था। महाधिवक्ता ने सीबीआई जांच की मांग की थी कर्ज वितरण का यह मामला कितना गंभीर यह यह इसी बात से समझा जा सकता है कि प्रदेश के तत्कालीन महाधिवक्ता ने स्पष्ट लिखा है कि यह मामला इतना गंभीर है कि राज्य सरकार को तत्काल सीबीआई जांच के आदेश देने चाहिए क्योंकि बड़े पदों पर बैठे लोगों ने एक सुनियोजित आपराधिक षड्यंत्र के तहत जनता की गाढ़ी कमाई का अरबों रुपया लुटा दिया। निगम सूत्रों के मुताबिक सीआईआई से जुड़े उद्योगपति खासतौर से इस लूट में भागीदार रहे हैं। इनके मुताबिक, इस पूरे घोटाले का सूत्रधार और निगम के तत्कालीन महाप्रबंधक एमपी राजन स्वयं करीब चार साल तक सीआईआई मध्य प्रदेश के अध्यक्ष रहे। उस दौरान उन्होंने सीआईआई से जुड़े उद्योगपतियों को सभी नियमों को ताक पर रखकर पैसे दिए दिए गए। सीआईआई मध्य प्रदेश से जुड़े लोग ही निगम का करोड़ों रुपया दबाए बैठे हैं। राजन नौकरी छोड़ चुके हैं और पेंशन ले रहे हैं। सीआईआई के सदस्य- एनबी ग्रुप, स्टील ट्यूबस ऑफ इंडिया, अल्पाइन ग्रुप, एसार ग्रुप , सोम ग्रुप , जमना ऑटो, सिद्धार्थ ट्यूब , गिल्ट पैक लि. आदि उद्योगों को राजन ने सबसे ज्यादा फायदा पहुंचाया था। इस घोटाले की ओर मीडिया का ध्यान न जाए इसके लिए सीआईआई ने मध्य प्रदेश के कुछ पत्रकारों को लंदन का दौरा भी करवाया था। इनका खर्चा सीआईआई के एक सदस्य ने ही उठाया था। उस सदस्य को अभी निगम को करीब 33 करोड़ रुपए लौटाने हैं लेकिन वह नहीं दे रहा है। निगम का रिकॉर्ड इस बात का गवाह है कि किस तरह मनमाने ढंग से पैसा बांटा गया। कई तो ऐसे मामले है जिनमें पुराना पैसा वापस न मिलने पर भी आगे इंटर कॉरपोरेट डिपॉजिट दिया जाता रहा। यह काम एसआर मोहंती के प्रबंध संचालक बनने तक जारी रहा। सूत्रों के मुताबिक 14 मई 1998 को संचालक मंडल द्वारा प्रबंध संचालक को ऋण लेने और उसे आगे उधार देने का फैसला ही पूरी तरह नियमों के खिलाफ था। उन्हें ऐसा करने का अधिकार ही नहीं था लेकिन उद्योगपतियों को सरकारी संरक्षण के कारण ऐसा हुआ। सरकार जानबूझ कर आंख बंद किए रही। आज निगम की हालत खस्ता है। वह करीब 600 करोड़ के घाटे में है। जिन लोगों से पैसा उधार लिया गया था, वे अब निगम पर मुकदमे कर रहे हैं। देश की विभिन्न संस्थाओं के कर्मचारियों के प्रॉविडेंट फंड, ऑर्गनाइजेशन , पेंशन फंड , छोटे निवेशकों और बैंक आदि से बॉन्ड के तहत निगम ने करीब 81 करोड़ रुपए लिए थे। इनको वापस चुकाने की मियाद पूरी हो चुकी है। फलस्वरूप कई मुकदमे दर्ज कराए जा चुके हैं। दोराहे पर प्रदेश सरकार वर्तमान सरकार दोराहे पर खड़ी है। एक ओर उसे करीब 719 करोड़ उद्योगपतियों से वसूलने हैं तो दूसरी ओर वह चाहती है कि प्रदेश का औद्योगीकरण हो। अरबों रुपए दबाए बैठे उद्योगपति वसूली के लिए हो रही सख्ती को अपना उत्पीडऩ मानकर विरोध कर रहे हैं। चारों ओर से इन डिफॉल्टरों को बचाने की कोशिशें हो रही हैं। इसके चलते वसूली मुहिम चलाने वाले अफसर परेशान हैं। यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि जो लोग बड़े डिफॉल्टर हैं, वे पूर्व सरकार के काफी करीब रहे हैं। एक सज्जन तो केंद्र में सत्तारूढ़ दल के राज्यसभा सदस्य भी रहे हैं। सबसे ज्यादा पैसा करीब 117 करोड़ उन्हें ही वापस करना है। वही वसूली की इस मुहिम का विरोध कर रहे हैं। भ्रष्ट अफसरों पर अड़ीबाजी करती हैं जांच एजेंसियां! ईओडब्ल्य ने सरकार से जैसे ही चालान पेश करने की अनुमति मांगी है वैसे ही प्रदेश की जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर आईएएस सहित अन्य अफसर सवाल उठाने लगे हैं। अफसरों का कहना है कि ईओडब्ल्यू, लोकायुक्त, आयकर विभाग, क्राइम ब्रांच, एसटीएफ और ऐसी ही तमाम ऐजेंसियों को समाज में ईमानदार और शक्तिशाली जांच ऐजेन्सियों की मान्यता प्राप्त है परंतु लगतार कुछ इस तरह के मामले सामने आ रहे हैं, जिससे संदेह होता है कि इन जांच ऐजेन्सियों के अधिकारी भ्रष्ट अफसरों पर अड़ीबाजी करते हैं और जो अफसर इनकी मुराद पूरी नहीं करता, केवल उसी के खिलाफ कार्रवाई करते हैं। अपना पक्ष रखते हुए मोहंती ने कहा है कि ' सुप्रीम कोर्ट ने जिन 13 बिंदुओं पर जांच करने के निर्देश दिए थे, ईओडब्ल्यू ने उनमें से केवल एक बिंदू पर जांच कर अपनी रिपोर्ट सरकार को दी है, जो कि सीधे-सीधे सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना है। मोहंती ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने ईओडब्ल्यू को मेरा पक्ष लेने के भी निर्देश दिए थे, जो नहीं लिया गया। मुझे फंसाने की साजिश हो रही है।Ó इसके अलावा मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार के ब्रांच एम्बेसडर योगीराज शर्मा के मामले में भी ईओडब्ल्यू सस्पेक्टेड है। यदि आप भोपाल पुलिस के एक सिपाही को भी योगीराज शर्मा की काली कमाई पता लगाने का जिम्मा सौंपे तो वो 7 दिन में जांच पूरी कर लेगा परंतु ईओडब्ल्यू लगतार योगीराज शर्मा के खिलाफ जांच को टालती जा रही है। कभी-कभी एक हुड़की भरा प्रेस बयान जारी होता है और फिर मामला शांत हो जाता है। धीमी जांच यह संदेह पैदा करती है कि योगीराज शर्मा के साथ ईओडब्ल्यू के अफसरों की सेटिंग हो गई है। जब तक किश्तें आ रहीं हैं ईओडब्लयू की जांच ठंडी ही रहेगी। संभव है यह नस्तीबद्ध भी हो जाए। अभी तक समाज में ईओडब्ल्यू की बड़ी ईमानदार छवि है। आर्थिक अपराधों के मामले में ईओडब्ल्यू को आम आदमी सीबीआई के समतुल्य मानते हैं और यदि ईओडब्ल्यू अपनी जांच में किसी अफसर या कारोबारी को भ्रष्टाचार का दोषी प्रमाणित करता है तो लोग बिना न्यायालय के निर्णय की प्रतीक्षा किए, संबंधित को दोषी मान लेते हैं परंतु अब कुछ ऐसे मामले सामने आने लगे हैं जो ईओडब्ल्यू की छवि को धूमिल कर रहे हैं। कंपनियों को वितरित ऋण की सूची 1. एस. कुमार पॉवर कार्पोरेशन 4475.00 लाख, 2. मोडक रबर एंड टेक्सरीज 325.00 लाख, 3.प्रोग्रेसिव इक्सटेंशन एंड एक्सपोर्ट 675.00 लाख, 4. सूर्या एग्रो लिमि. 1475 लाख, 5. एलपिन इंडस्ट्रीज लिमि. 2845 लाख, 6. स्नोकम इंडिया लिमि. 2800 लाख, 7. किलिक निक्सोन लिमि. 1500 लाख, 8. स्टील ट्यूब ऑफ इंडिया लिमि. 1700 लाख, 9. एसटीआई प्रोड्क्स 800 लाख, 10. सोम डिस्टलरीज लिमि. 1475 लाख, 11. सोम डिस्टलरीज एंड बेवरीज 700 लाख, 12. सोम पॉवर लिमि. 200 लाख, 13. सिद्धार्थ ट्यूब्स लिमि.1450 लाख, 14. भानू आयरन एंड स्टील कम्पनी 1000 लाख, 15. रिस्टसपिन साइट्रिक्स लिमि. 1100 लाख, 16 आईसर आलोयस एंड स्टील 1050 लाख, 17. आइसर एग्रो लिमि. 200 लाख, 18. हेरीटेज इंवेस्टमेंट 70 लाख, 19. आइसर फाइनेंस प्राइवेट लिमि. 250 लाख, 20. एईसी इंटरप्राइज लिमि. 1010 लाख, 21. एईसी इंडिया लिमि. 150 लाख, 22. राजेंद्र स्टील लिमि. 855 लाख, 23. भास्कर इंडस्ट्रीज लिमि. 669.50 लाख, 24. अर्चना एयरवेज लिमि. 300 लाख, 25. माया स्पिनरर्स 200 लाख, 26. गजरा बेवल गेयर्स 100 लाख, 27. बीएसआई लिमि. 100 लाख, 28. पसुमाई ऐरीगेशन 50 लाख, 29. जीके एक्जिम 2400 लाख, 30. गिल्ट पैक लिमि. 150 लाख। कुल- 30074.50 लाख। जांच में दोषी पाई गईं कंपनियां 1. एनबी इंडस्ट्रीज लिमि. 3000 लाख, 2. सूर्या एग्रो आइल्स लिमि. 1500 लाख, 3. फ्लोर एंड फूड्स लिमि. 40 लाख, 4. स्टील ट्यूब्स ऑफ इंडिया लिमि. 878.11 लाख, 5. एसटीआई प्रोड्क्स लिमि. 155 लाख, 6. एसटीएल एक्सपोर्ट लिमि. 165.86 लाख, 7. भानू आयरन एंड स्टील कम्पनी 440 लाख, 8. जमुना ऑटो इंडस्ट्रीज 400 लाख, 9. वेस्टर्न टोबेको 350 लाख, 10. सरिता साफ्टवेयर इंडस्ट्रीज 300 लाख, 11. केएन रिसोर्सेज 27.01 लाख, 12. इटारसी ऑयल एंड फ्लोर्स लिमि. 126.13 लाख, 13. गजरा बेवल गेयर्स 50 लाख, 14. गरहा यूटीब्रोक्सेस लिमि. 134.55 लाख, 15. बैतूल आयल एंड फ्लोर्स 80 लाख, 16. पोद्दार इंटरनेशनल 72.60 लाख, 17. महामाया स्टील 100 लाख। कुल-7819.26 लाख। इधर, हाईकोर्ट ने दिया मोहंती को नोटिस स्कूल शिक्षा विभाग में एरिया एज्यूकेशन अधिकारी की भर्ती मामले में हाईकोर्ट के आदेश का पालन नहीं करने पर शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव एसआर मोहंती को कोर्ट ने शोकाज नोटिस जारी किया है। साथ ही कहा है कि 6 हफ्ते के भीतर आदेश का पालन कर ओर कोर्ट को सूचित को सूचित किया जाए। कोर्ट के आदेश का पालन नहीं करने पर याचिकाकर्ता की ओर से कोर्ट में अर्जी लगाई गई थी। जबलपुर हाईकोर्ट की डबल बैंच ने 8 सितंबर 2014 को आदेश दिया था कि शिक्षा विभाग द्वारा वर्ष 2010-11 में व्यापमं के माध्यम से एरिया एज्यूकेशन अधिकारियों की भर्ती की गईं, जिन्होंने परीक्षा उत्तीर्ण की उन्हें नियुक्ति दी जाए। इस मामले में सरकार की ओर से रखी गईं सभी दलीलें कोर्ट में खारिज हो चुकी है। 9 महीने में आदेश का पालन नहीं होने पर कोर्ट ने सख्त नाराजगी जताई है, इस संबंध में शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव एसआर मोहंती को शोकाज नोटिस भेजा है। ज्ञात हो कि शिक्षा विभाग ने स्कूलों के कामकाज की निगरानी के लिए एरिया एज्यूकेशन अधिकारी के पद पर भर्ती की गई थी। जिसमें अध्यापक वर्ग से सिलेक्ट हुए। जिस पर पुराने शिक्षकों ने आपत्ति जताई और वे कोर्ट गए। इसके बाद सरकार ने परीक्षा पास करने वालों की नियुक्ति पर रोक लगाई। कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलों के सुनने के बाद परीक्षा पास करने वालों को नियुक्ति करने का फैसला सुनाया था, जिस पर सरकार ने अमल नहीं किया।

vinod upadhyay

मप्र के मंत्रियों की परफार्मेंस रिपोर्ट से असंतुष्ट शाह ने पूछा सवाल

अकेले शिवराज की छवि से कैसे चलेगा काम
15 मंत्रियों परफार्मेंस रिपोर्ट तलब की शाह ने
विनोद उपाध्याय
भोपाल। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह शिवराज सरकार के 15 मंत्रियों से नाराज हैं। नाराजगी की वजह है इन मंत्रियों द्वारा संगठन के दिशा निर्देशों के अनुसार काम नहीं करना। राजधानी में 10 मई को आयोजित महिला मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक और सुशासन संकल्प सम्मेलन में शामिल होने आए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने शाम को प्रदेश सरकार के मंत्रियों की जमकर क्लास ली। शाह ने मंत्रियों से सख्त लहजे में कहा कि आप लोगों की परफार्मेंस रिपोर्ट से संगठन संतुष्ट नहीं है। आप लोग न तो अपने क्षेत्र का दौरा करते हैं और न ही प्रभार वाले जिलों का। ऐसे में अकेले शिवराज सिंह चौहान की छवि से कैसे काम चलेगा? उल्लेखनीय है कि मप्र के मंत्रियों की परफार्मेंस रिपोर्ट से प्रदेश संगठन भी संतुष्ट नहीं दिखा है। अब राष्ट्रीय संगठन ने भी मंत्रियों की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा कर दिया है। रविवार को दिल्ली रवाना होने से पहले शाह ने सीएम हाउस में शिवराज कैबिनेट के मंत्रियों की जमकर क्लास भी ली। उन्होंने कहा कि कई मंत्रियों का फीडबैक और परफार्मेंस ठीक नहीं है, उनके नाम मैं मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को बता चुका हूं। शाह ने मंत्रियों को प्रभार के जिलों में लगातार जाने, संगठन के साथ बेहतर तालमेल और सक्रियता दिखाने की नसीहत भी दे दी। उन्होंने कहा कि केंद्रीय संगठन के पास जो रिपोर्ट है, उसके अनुसार अभी तक प्रदेश में भाजपा मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान और संगठन के पदाधिकारियों के दम पर अच्छा परफार्मेंस करती आ रही है। इसलिए उचित होगा कि आप लोग निरंतर सक्रिय रहें और जनता के बीच अधिक से अधिक समय गुजारें। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि आप लोगों की पल-पल की रिपोर्ट मेरे पास है। संगठन से बनाए रखें तालमेल मंत्रियों के साथ होने वाली बैठक में करीब सवा घंटे की देरी से पहुंचे शाह ने शिकायती अंदाज से सभी का अभिवादन स्वीकार किया, फिर उन्होंने मंत्रियों की जमकर क्लास ली। उन्होंने कहा कि मुझे फीडबैक मिल रहा है कि आप लोग अपने प्रभार वाले जिलों का दौरा नहीं कर रहे हैं। इससे कांग्रेस मुक्त देश का जो संकल्प प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लिया है, वह कमजोर पड़ रहा है। इसलिए आप लोग संगठन के साथ तालमेल बनाकर काम करें। उन्होंने कहा कि आप लोगों में से कई मंत्रियों का संगठन से तालमेल नहीं बैठ रहा है। इसकी खबर मुझे बराबर मिल रही है। आप लोग प्रभार वाले जिलों में सक्रियता बढ़ाएं, सबसे मिलें। वहां संगठन के नेताओं से भी मेलजोल रखें। उनके साथ मीटिंग करें, यदि जिले में रुकना पड़े तो रुक भी जाएं। हारी हुई सीटों का विशेष ध्यान रखें। हम भले ही लगातार जीत रहे हों, लेकिन जनता से संपर्क निरंतर जारी रखें। उन्होंने बातचीत में संकेत दिए कि प्रदेश के कार्यकर्ता मेरे पास आकर बताते हैं कि प्रभारी मंत्री उनसे नहीं मिलते। इसलिए कोशिश करें कि जब जिलों में जाएं और अफसरों की बैठक लें तो कार्यकर्ताओं की भी अलग से एक बैठक होनी चाहिए। साथ ही आसपास की हारी हुई लोकसभा या विधानसभा में भी अभी से मेहनत करें। गुड गवर्नेंस पर जोर दें शाह ने कहा कि प्रदेश के बाहर अगर किसी की बात होती है, तो वह हैं शिवराजसिंह चौहान। इसलिए आप लोग भी अपनी छवि ऐसी बनाएं, ताकि दूसरे प्रदेशों में आपके कार्यों की चर्चा हो। इस अवसर पर उन्होंने मंत्रियों को सुझाव दिया कि दूसरे राज्यों में जाकर वहां गुड गवर्नेंस की अच्छी बातें देखें और उन्हें भी अपने राज्य में लागू करने के प्रयास करें। शाह ने यह भी समझाइश दे डाली कि कामकाज में सुधार दिखना चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिमंडल के सदस्य दिन-रात काम कर रहे हैं और साथ ही अपने क्षेत्रों का दौरा भी कर रहे हैं। ऐसे ही आप लोग भी करें। इस अवसर पर उन्होंने उदाहरण के तौर पर संगठन के पदाधिकारियों की प्रशंसा करते हुए कहा कि हरियाणा, जम्मू-कश्मीर में हुए विधानसभा के चुनाव में यहां के पदाधिकारियों ने पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ मेहनत की, जिसका परिणाम है हम वहां ऐतिहासिक जीत हासिल कर सके। 10 दिन जनता के बीच गुजारें आप लोग आधे घंटे की चर्चा के बाद जाते-जाते शाह ने मंत्रियों को टारगेट भी थमा दिया। उन्होंने कहा कि हाल में तीन योजनाएं केंद्र सरकार ने जारी की हैं। मंत्री 20 से 30 मई तक अभियान के रूप में इन योजनाओं को लें और जनता तक पहुंचाएं। ज्यादा से ज्यादा लोगों को इससे जोड़ें। महासंपर्क के साथ यह भी हो जाएगा। उन्होंने कहा कि आप लोग इन 10 दिनों में जो मेहनत करेंगे, उसका परिणाम हमें आगामी चुनाव में देखने को मिलेगा। इसलिए केंद्र और राज्य की जितनी भी योजनाएं हैं, उनका प्रचार-प्रसार लगातार करते रहें। यह तभी होगा, जब आप लोग जनता के बीच जाने की आदत डालेंगे। जाते-जाते शाह ने मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान से कहा कि वे मंत्रियों की रिपोर्ट केंद्रीय संगठन को भेजें। बहाना नहीं चलेगा, अब काम करो शाह ने भोपाल दौरे के दौरान ने केवल मंत्रियों बल्कि पदाधिकारियों को भी निर्देश दे कर गए हैं। उन्होंने सुशासन संकल्प सम्मेलन में पदाधिकारियों से कहा कि दिल्ली से लेकर पंचायत तक अब हमारी सरकार है। कोई बहाना नहीं चलेगा। सभी को काम करना होगा। वक्त अब परिणाम देने का आ गया है। शाह ने जनप्रतिनिधियों से कहा कि पंचायत से लेकर संसद तक शत प्रतिशत व्यवस्था अब बीजेपी के हाथ में है। समस्याओं को हल करने की जिम्मेदारी अब बीजेपी की है। केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक साल के भीतर विकास का ठोस आधार रखा है। पंचायत, नगर पालिकाओं का ठीक से काम करना जरूरी है वरना लगेगा ही नहीं कि अच्छा काम हो रहा है। संकल्प लें कि ऐसा कोई काम नहीं करेंगे जिससे पार्टी की छवि को नुकसान हो। बदले जाएंगे संगठन मंत्री लंबे समय से एक ही स्थान पर जमे संगठन मंत्रियों के कामों में भाजपा जल्द ही फेरबदल करने जा रही है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यालय समिधा में संघ नेताओं से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष की हुई लंबी मंत्रणा ने इन संभावनाओं को बल दे दिया है। इस फेरबदल में एक दर्जन संगठन मंत्रियों के संभाग और जिले बदले जा सकते हैं तो आधा दर्जन संगठन मंत्रियों को प्रदेश से बाहर भेजा जा सकता है। दो संगठन मंत्रियों को घर बैठाए जाने की भी खबर है। संघगर्भा भाजपा की बैक बोन माने जाने वाले संगठन मंत्रियों के कामों में दिसम्बर 2011 में अंतिम फेरबदल किया गया था। इसके बाद से पार्टी ने इनके कामों में कोई बड़ा फेरबदल नहीं किया है। संघ से जुडेÞ सूत्रों की माने तो संगठन मंत्रियों के दायित्व के संभाग और जिलों में हर तीन साल में फेरबदल करने की परम्परा रही है पर प्रदेश में लगातार हो रहे चुनावों के कारण यह मामला लंबे समय से टलता रहा है। 10 मई को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, संगठन महामंत्री रामलाल और प्रदेश संगठन महामंत्री अरविंद मेनन के साथ संघ कार्यालय में हुई एक घंटे की मंत्रणा संगठन मंत्रियों के कामकाज पर ही केन्द्रित रही। इस मामले में संघ के उप प्रमुख कृष्ण गोपाल और क्षेत्र प्रचारक अरूण जैन के साथ चर्चा के बाद अंतिम निर्णय लिया जाएगा। संघ के सूत्रों की माने तो फेरबदल इसी महीने हो सकता है। संगठन मंत्रियों के फेरबदल में परफार्मेन्स के अलावा शिकायतों को भी आधार बनाया जाएगा। संभाग और जिलों में भी संगठन मंत्रियों, सहायकों की कमी को भी पूरा किया जाएगा। गौरतलब है कि मंदसौर, रतलाम, नीमच के संगठन मंत्री बृजेश चौरसिया को संगठन पहले ही कार्यमुक्त कर चुका है। वरिष्ठ संगठन मंत्री सीताराम बाथम एक निगम के पदाधिकारी बनने के कारण पहले ही कार्यमुक्त किए जा चुके हैं। ग्वालियर ग्रामीण के संगठन मंत्री अशोक दांतरे भी अब नहीं है। श्योपुर नगरपालिका अध्यक्ष का चुनाव लडऩे वाले छतरपुर-टीकमगढ़ के संगठन मंत्री बिहारी सोलंकी भी कार्यमुक्त हो चुके हैं। वहीं छिंदवाड़ा के संगठन मंत्री हुकुम गुप्ता के खिलाफ संगठन को शिकायतें मिली हैं। संघ सूत्रों की माने तो इस फेरबदल में मालवा और विंध्य के संगठन मंत्री और सहायकों की भूमिका में बड़ा बदलाव हो सकता है। मालवा के काम देख रहे एक संगठन मंत्री ने खुद संगठन के काम से मुक्त करने का अनुरोध आला नेताओं से किया है। दस सालों से अधिक समय से कई शहरों का काम देख रहे इस संगठन मंत्री की इच्छा अब सक्रिय राजनीति में उतरने की है। वे पूरी तरह भाजपा की चुनावी राजनीति में सक्रिय होना चाहते हैं। वहीं विंध्य्य के एक बड़े जिले के संगठन मंत्री के खिलाफ वहां के विधायकों ने ही शिकायत की है। सिंगरौली में संगठन सहायक के तौर पर काम कर रहे सत्यनारायण सोनी के काम में बढ़ोतरी की जा सकती है। उन्हें किसी बड़े जिले में भेजने की चर्चा है। इसी तरह सागर के संगठन मंत्री दिनेश शर्मा को भी यहां से बदला जा सकता है। उनकी जगह एक पुराने संगठन मंत्री को यहां लाने की चर्चा है। पार्टी में अभी संगठन महामंत्री अरविंद मेनन, प्रदेश कार्यालय प्रभारी गोविंद आर्य और प्रदेश कार्यालय मंत्री सत्येन्द्र भूषण सिंह को मिलकार कुल 32 संगठन मंत्री हैं। मंत्री बोले ट्रेनिंग चाहिए मध्य प्रदेश शिवराज सरकार में साढ़े ग्यारह साल सरकार में रहने के बाद अब सरकार के मंत्रियों को ट्रेनिंग की जरुरत महसूस हो रही है। सरकार के सीनियर कैबिनेट मिनिस्टर सरताज सिंह ने ये बहस छेड़ी तो दूसरे दिग्गज मंत्री भी इस प्रस्ताव के समर्थन में नजर आ रहे हैं। एकाएक इस तरह की बात उठने से ये सवाल उठने लगे हैं कि क्या सरकार में सबकुछ ठीक चल रहा है या फिर मंत्री भी नौकरशाही के पचड़े में फंसकर असहाय हो रहे हैं। प्रदेश सरकार के लोक निर्माण मंत्री सरताज सिंह ने एक नई बहस छेड़ दी है। उनका कहना है कि मंत्रियों को भी सरकारी कामकाज निपटाने की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए। इस तरह की ट्रेनिंग भाजपा की केंद्रीय समिति सभी सांसदों के निजी स्टॉफ को दे रही है। सरताज सिंह की दलील है कि मंत्री भी आईएएस की तरह है, जिसे कोई भी विभाग दे दिया जाता है। इसलिए केवल निजी स्टॉफ को ही नहीं बल्कि मंत्रियों को भी ट्रेनिंग मिलना चाहिए। सरताज जैसे ज़मीन से जुड़े दिग्गज नेता का ये बयान काफी मायने रखता है। क्योंकि वे ना केवल भाजपा में बल्कि सरकार के लिए भी काफी सीनियर हैं। वे 1998 में अटलजी की 13 दिन की सरकार में स्वास्थ्य मंत्री बनाए गए थे। तब वे होशंगाबाद से छठी बार के सांसद निर्वाचित हुए थे। इसके बाद वे सरकार की पिछली दो पारियों से मंत्री की भूमिका निभा रहे हैं। सरताज का ये बयान से संकेत देता है कि नौकरशाही या लालफीताशाही शायद सरकार में ज्यादा हावी है जो मंत्रियों के काम में रोड़े अटका रही है। नियम-कायदों में उलझाने वाली बाबूशाही से निपटना आसान नहीं है। इनसे काम लेने के लिए पूरी ट्रेनिंग ज़रुरी है। शिवराज कैबिनेट के दूसरे मंत्री भी सरताज के बयान के साथ खड़े नजऱ आते हैं। इससे ये संकेत पुख्ता होते हैं। कांग्रेस को सरकार पर हमला बोलने का एक और मौका मिल गया है। उसका कहना है कि सरकार के कई मंत्री कामकाज नहीं जानते हैं। इसलिए ये गफलत हो रही है। बहरहाल, सरताज का ये बयान सरकार के अंदर की कहानी और मंत्रियों की काम ना कर पाने का दर्द बयां करता है। सीनियर मंत्रियों के ये बयान ज़ाहिर करता है कि सरकारी नियम कायदे या नौकरशाही उनकी इच्छाओं में रोड़े अटका रही है। 11 साल बाद ये दर्द बाहर आ रहा है तो ये भी साफ है कि मंत्रियों के हाथ बंधे हुए हैं और सरकार में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा।