शुक्रवार, 15 मई 2015

719 करोड़ के घोटाले के आरोपी मोहंती पर गिरेगी गाज

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हुई जांच में मोहंती पाए गए दोषी
प्रदेश सरकार ने विधि विशेषज्ञों की सलाह पर शुरू की कार्रवाई
ईओडब्ल्यू के बाद लोकायुक्त ने भी पूरी की कागजी कार्रवाही
पीएमओ ने भी मामले की फाइल की तलब
विनोद उपाध्याय
भोपाल। औद्योगिक विकास निगम (एमपीएसआईडीसी) में 719 करोड़ रूपए के घोटाले के आरोपी अपर मुख्य सचिव सुधि रंजन मोहंती पर इस बार गाज गिरनी तय मानी जा रही है। क्योंकि राज्य आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो (ईओडब्ल्यू)और लोकायुक्त के साथ सरकार ने भी इस घोटाले के मुख्य आरोपी मोहंती के खिलाफ कार्रवाई की तैयारी शुरू कर दी है। व्यापमं घोटाले से पहले प्रदेश के सबसे बड़े इस घोटाले में औद्योगिक विकास निगम के तत्कालीन प्रबंध संचालक एसआर मोहंती ने बिना किसी नियम का पालन करते हुए जिस तरह कंपनियों को ऋण वितरीत किया है, उसकी फाइल एक बार फिर से खुल गई है। ईओडब्ल्यू ने घोटाले में राज्य सरकार से स्कूल शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव एसआर मोहंती के खिलाफ न्यायालय में चालान पेश करने के लिए अभियोजन स्वीकृति मांगी है। ईओडब्ल्यू ने कहा कि राज्य उद्योग विकास निगम में हुए करोड़ों के गोलमाल मामले का सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर नए सिरे से परीक्षण किया गया है, इस पूरे मामले में मोहंती पूरी तरह शामिल पाए गए हैं। ऐसे में इनके खिलाफ कोर्ट में चालान पेश करने के लिए अभियोजन स्वीकृति दी जाए। सामान्य प्रशासन कार्मिक विभाग ने पूरा प्रकरण तैयार कर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भेज दिया है। उनके अनुमोदन के बाद उक्त प्रकरण को केंद्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय को भेजा जाएगा। केंद्र की अनुमति मिलने के बाद ईओडब्ल्यू मोहंती के खिलाफ न्यायालय में चालान पेश कर अभियोजन दायर कर सकेगी। उधर, खबर यह है कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने भी इससे संबंधित फाइल तलब की है। उल्लेखनीय है कि औद्योगिक विकास निगम के तत्कालीन प्रबंध संचालक एसआर मोहंती ने बिना किसी नियम का पालन करते हुए देशभर की लगभग 177 कंपनियों को 714 करोड़ का ऋण बांट दिया था। इस मामले में 30.11.1998 को तत्कालीन प्रबंधक संचालक एमपी राजन ने संचालक मंडल की बैठक में यह प्रस्ताव भी पारित कराया था कि एमपीएसआईडीसी किसी भी संस्थान से 175 करोड़ के स्थान पर 500 करोड़ तक की सहायता राशि प्राप्त करें। शासन द्वारा इस प्रस्ताव के संबंध में आपत्ति भी की गई। लेकिन इन अधिकारियों ने जानबूझकर प्रस्ताव के संबंध में शासन को गुमराह करते हुए किसी तरह का अनुमोदन नहीं लिया और न ही कार्पोरेट डिपाजिट दिए जाने के लिए कोई नियम ही बनाए। इस तरह अल्प अवधि के लिए दिए जाने वाले डिपाजिट (एक वर्ष से कम अवधि के लिए) को प्रबंध संचालक द्वारा तीन वर्ष एवं पांच वर्ष तक की अवधि में तब्दील कर एमपीएसआईडीसी के तात्कालीन प्रबंध संचालक एमपी राजन एवं एसआर मोहंती ने अनाधिकृत रूप से डिपाजिट प्राप्त किया एवं उसे आईसीडी के रूप में वितरित कर दिया। जबकि प्रस्ताव में यह पारित कराया गया था कि एमपीएसआईडीसी के सरप्लस फंड का उपयोग किया जाएगा। प्रबंध संचालकों ने कार्पोरेट डिपाजिट के रूप में वितरित की जाने वाली राशि बिना सिक्योरिटी जमा कराए ही वितरित कर दी। जिसमें इस तथ्य को भी नजर अंदाज किया गया कि उपरोक्त राशि वापस होने की संभावना है या नहीं। घोटाला उजागर होने पर सरकार ने एमपीएसआईडीसी द्वारा जिन 42 कंपनियों को आईसीडी की राशि वितरित की गई उसका मूल रिकॉर्ड जब्त किया गया एवं 23 अधिकारियों और कर्मचारियों से पूछताछ कर कथन भी लिए गए थे। मामले में तात्कालीक चेयरमैन और दोनों पूर्व प्रबंध संचालकों के अलावा जिन कंपनियों को ऋण वितरित किया गया उनमें से 17 कंपनियों के संचालकों से पूछताछ की जा चुकी है। तत्कालीन मुख्यमंत्री उमाभारती ने लगभग सवा सात अरब रुपए से अधिक के घोटाले पर कार्रवाई करने के निर्देश देते हुए आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो में प्रकरण दर्ज कराया। आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो ने प्रकरण क्रमांक 25/04 अंडरसेक्शन 409, 420, 467, 468, 120 बी, 13 (आई) (डी) आरडब्ल्यू 13 (आईआई) पीसी-एसीटी का समावेश कर मोहंती के विरुद्ध एफआईआर दर्ज की। नियम विरूद्व कर्ज बांटने पर मोहंती के खिलाफ जांच 2004 में शुरू की गई थी। जांच को प्रभावित करने की कोशिश मामले की जांच चल रही थी, तभी तत्कालीन मुख्य सचिव विजय सिंह ने वर्ष 2005 में केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय को एक पत्र लिखा था। पत्र में यह कहा गया था कि आईएएस अफसर एसआर मोहंती की इस मामले में कोई भूमिका नहीं है। वे निर्दोष हैं। पत्र मोहंती की होने वाली पदोन्नति के मद्देनजर लिखा गया था। मोहंती ने उक्त पत्र को जबलपुर हाईकोर्ट में पेश कर अपने को निर्दोष बताया था। इस मामले में मुख्य सचिव विजय सिंह के दबाब में सामान्य प्रशासन विभाग ने भी उपसचिव सामान्य प्रशासन विभाग के माध्यम से उच्च न्यायालय में 18 जनवरी 2006 को हलफनामा प्रस्तुत किया। इस मामले में एसआर मोहंती ने हलफनामा प्रस्तुत करने के दिन 18 जनवरी 2006 को ही उच्च न्यायालय में आवेदन लगाकर जल्दी सुनवाई करने का निवेदन किया। राज्य सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा मोहंती के पक्ष में हलफनामा प्रस्तुत करने से उच्च न्यायालय ने भी मोहंती के पक्ष में निर्णय दिया। न्यायालय द्वारा अरबों रुपए के घपले में फंसे सुधी रंजन मोहंती को क्लीन चिट देने की जानकारी जब समाचार पत्रों द्वारा प्रमुखता से प्रकाशित हुई तब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपना स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि उन्हें अंधेरे में रखते हुए शपथपत्र तैयार कर न्यायालय में प्रस्तुत किया गया। बताया जाता है कि इस अरबों रुपए के घोटाले में प्रदेश के तत्कालीन मुख्य सचिव विजय सिंह ने बिना मुख्यमंत्री को विश्वास में लिए ही उच्च न्यायालय में शपथपत्र प्रस्तुत कराया था। इससे खिन्न होकर मुख्यमंत्री ने तत्कालीन मुख्य सचिव को बुलाकर अप्रसंन्नता व्यक्त करते हुए नाराजगी जाहिर की और मुख्य सचिव बदल दिया। चूंकि मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित था, इसके चलते हो रही देरी को ध्यान में रखते हुए शासन ने आदेश देकर मोहंती के विरुद्ध पुन: कार्रवाई आरंभ करने कि निर्देश दिए हैं। मामले की जांच कर रही ईओडब्ल्यू ने उस समय माना था कि हाईकोर्ट ने जांच एजेंसी (ईओडब्ल्यू) को पक्ष सुने बिना फैसला सुना दिया है। उसके विरोध में ईओडब्ल्यू ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने माना आईएएस अफसर एसआर मोहंती का नाम एफआईआर से हटाया जाना गलत है। यह भी उचित नहीं है कि 84 आरोपियों में से एक के खिलाफ जांच नहीं की जाए। सुप्रीम कोर्ट ने नए सिरे से जांच करने और सबूत जुटाने के निर्देश ईओडब्ल्यू को दिए थे। ईओडब्ल्यू इस मामले में पूर्व मंत्री व निगम के अध्यक्ष सहित सभी आईएएस अधिकारियों (मोहंती को छोड़ कर) के खिलाफ अदालत में चालान पेश कर चुका है। मोहंती के खिलाफ चालान जबलपुर हाईकोर्ट के कारण पेश नहीं किया गया था। अब तक 14 कंपनियों को दोषी माना गया है और उनके खिलाफ चालान पेश किया जा चुका है। उल्लेखनीय है कि मोहंती के खिलाफ केंद्र सरकार ने 28 जून 2011 को अभियोजन स्वीकृति जारी की थी, लेकिन मोहंती ने इस मामले में ईओडब्ल्यू की कार्रवाई को गलत ठहराते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। मामले की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने ईओडब्ल्यू को नए सिरे से जांच करने के निर्देश दिए। हाल ही में ईओडब्ल्यू ने दोबारा मामले की जांच कर पाया है कि इस पूरे घपले में मोहंती दोषी हैं इसलिए एक बार फिर अभियोजन स्वीकृति जारी करने की मांग की है। ईओडब्ल्यू द्वारा अभियोजन स्वीकृति मांगे जाने की भनक लगते ही मोहंती ने मुख्यमंत्री को रिप्रजेंटेशन देकर अपनी बात कही। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जिन 13 बिंदुओं पर जांच करने के निर्देश दिए थे, ईओडब्ल्यू ने उनमें से केवल एक बिंदू पर जांच कर अपनी रिपोर्ट सरकार को दी है, जो कि सीधे-सीधे सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना है। मोहंती का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने ईओडब्ल्यू को मेरा पक्ष लेने के भी निर्देश दिए थे, जो नहीं लिया गया। मुझे फंसाने की साजिश हो रही है। मोहंती का पक्ष सुनने के बाद मुख्यमंत्री ने पूरे मामले को विधि विभाग को परीक्षण के लिए भेज दिया है। विधि विभाग से अभिमत आने के बाद ही कार्रवाई होगी। दो धड़े में बंटे मप्र के आईएएस बताते हैं कि मोहंती के भ्रष्टाचार की फाइल खुलते ही प्रदेश के आईएएस अफसर दो धड़ों में बंट गए हैं। एक धड़ा अभी भी एसीएस मोहंती को बचाने में लगा है तो जाहिर है कि दूसरा निपटाने में। एक धड़े के अफसरों का कहना है कि सुधि रंजन मोहंती आईसीडी लोन प्रकरण में अकेले दोषी कैसे हो सकते हैं। मोहंती आज भी और पहले भी उसी सरकार का हिस्सा रहे हैं जिसे शीर्ष पर बैठे राजनेता चलाते आए हैं। कोई भी अफसर अपने बॉस की नाफरमानी नहीं कर सकता। जाहिर है कि मोहंती अगर दोषी ठहराए जा रहे हैं तब इसके पीछे बड़ी राजनीति का हाथ है। राजनीति एक काबिल अफसर का भविष्य चौपट करने पर आमादा नजर आती है। वहीं दूसरे धड़े के अफसर गड़े मुर्दे उखाडऩे में लगे हुए हैं। अफसरों की नुराकुश्ती में यह बात निकलकर सामने आई है कि भ्रष्टाचार के प्रकरणों पर खासकर किसी आईएएस के खिलाफ लोकायुक्त या ईओडब्ल्यू को चालान पेश करने की अनुमति देने के बारे में कांग्रेस और भाजपा सरकार का ट्रेक रिकार्ड एक जैसा है। दोनों पार्टियों की सरकार अपने-अपने शासनकाल के दौरान बड़े अफसर के विरुद्ध बड़ी मुश्किल से मुकदमा चलाने के लिए इन संगठनों को हरी झंडी देती है। और फिर जब एसआर मोहंती जैसा अधिकारी हो तो यह निर्णय लेना सरकार के मुखिया के लिए भी सचमुच मुश्किल होगा। वर्ष 2005 में जब तत्कालीन मुख्य सचिव विजय सिंह और सामान्य प्रशासन की प्रमुख सचिव आभा अस्थाना ने मोहंती व अन्य के पक्ष में हाईकोर्ट को एफिडेविट देकर क्लीन चिट दिलवाई थी तब भी यह मामला उछला था। फिर कुछ दिनों के बाद मुख्यमंत्री पद पर पहली दफा काबिज होते ही शिवराज सिंह ने सीएस विजय सिंह को हटा दिया था और आभा अस्थाना तथा एक जीएडी अफसर को निलंबित कर दिया था। लेकिन बाद में मोहंती के सुप्रीम कोर्ट जाने से यह मसला लटक गया था और इस तरह तब वे ईओडब्ल्यू की चपेट में आने से बच गए थे। अब इतने अंतराल के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर नए सिरे से परीक्षण के उपरांत ईओडब्ल्यू ने इस प्रकरण में आगे बढ़ते हुए सरकार से चालान पेश करने की अनुमति मांगी है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2015 की शुरूआत में ही लोकायुक्त जस्टिस पीपी नावलेकर ने भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर मोहंती सहित 135 अफसरों-कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की अनुमति मांगी थी। 8 जनवरी को मुख्यमंत्री को लिखे खत में नावलेकर ने लिखा था कि कई शासकीय सेवक ऐसे हैं जिनके खिलाफ लोकायुक्त द्वारा चालान पेश किए दो साल से ज्यादा हो चुके हैं, लेकिन संबंधित को निलंबित किया है अथवा नहीं, इसकी जानकारी प्राप्त नहीं हुई है। चि_ी में लिखा है 'भ्रष्टÓ शासकीय सेवकों के विरुद्ध त्वरित एवं प्रभावी कार्यवाही की शासन की मंशा के प्रति समाज में जहां प्रतिकूल छवि निर्मित होती है वहीं भ्रष्ट सेवकों के यथावत पद पर बने रहने से साक्ष्य/साक्षियों को प्रभावित करने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। दिग्विजय के साथ उमा-गौर भी रहे हैं मोहंती के रक्षक कांग्रेस शासन काल में हुए इस घोटाले के आरापी मोहंती को पहले पांच साल दिग्विजय सिंह का संरक्षण मिलता रहा, उसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती और बाबूलाल गौर भी उनके रक्षक रहे। हालांकि मोहंती के खिलाफ 2004 में उमा भारती के निर्देश पर ही ईओडब्ल्यू में मामला दर्ज हुआ था। उसके बाद बाबूलाल गौर ने भी मोहंती को बचाने की भरपूर कोशिश की। उल्लेखनीय है कि जब आईसीडी घोटाले के आरोपी सुधि रंजन मोहंती को क्लीन चिट देने के मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तत्कालीन मुख्य सचिव विजय सिंह को हटा दिया था। इसके अलावा प्रमुख पद पर बैठे मोहंती को भी हटा दिया गया था। इस दौरान फरवरी 2006 में जब कांग्रेस विधायक आरिफ अकील ने तत्कालीन वाणिज्य कर मंत्री बाबूलाल गौर से एक लिखित सवाल में पूछा था कि क्या आईसीडी घोटाले में अनुसंधान ब्यूरो ने कोई मुकदमा दर्ज किया है? अगर मुकदमा दर्ज हुआ तो किन अफसरों और उद्योगपतियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया? तब गौर ने यह बताकर पल्ला झाडऩे की कोशिश की कि इस मामले में जानकारी एकत्र की जा रही है जबकि मामले के पूरे तथ्य स्वयं औद्योगिक विकास निगम 2004 में ही सार्वजनिक कर चुका है। 18 जनवरी को जबलपुर हाई कोर्ट द्वारा मोहंती के खिलाफ दर्ज याचिका खारिज किए जाने के बाद यह मामला उछला था। उसके बाद सामान्य प्रशासन विभाग की प्रमुख सचिव आभा अस्थाना, उप सचिव सुभाष डाफणे, मुख्य सचिव विजय सिंह पद से हटाए गए थे और मोहंती का विभाग बदला गया था। गौर ने ही मुख्यमंत्री बनने पर आरोपी अधिकारी मोहंती को प्रमुख विभाग में नियुक्त कर उनके खिलाफ मामला वापस लिए जाने की स्वीकृति दी थी। गौर ने मुख्य सचिव को हटाने का भी विरोध किया था। महाधिवक्ता ने सीबीआई जांच की मांग की थी कर्ज वितरण का यह मामला कितना गंभीर यह यह इसी बात से समझा जा सकता है कि प्रदेश के तत्कालीन महाधिवक्ता ने स्पष्ट लिखा है कि यह मामला इतना गंभीर है कि राज्य सरकार को तत्काल सीबीआई जांच के आदेश देने चाहिए क्योंकि बड़े पदों पर बैठे लोगों ने एक सुनियोजित आपराधिक षड्यंत्र के तहत जनता की गाढ़ी कमाई का अरबों रुपया लुटा दिया। निगम सूत्रों के मुताबिक सीआईआई से जुड़े उद्योगपति खासतौर से इस लूट में भागीदार रहे हैं। इनके मुताबिक, इस पूरे घोटाले का सूत्रधार और निगम के तत्कालीन महाप्रबंधक एमपी राजन स्वयं करीब चार साल तक सीआईआई मध्य प्रदेश के अध्यक्ष रहे। उस दौरान उन्होंने सीआईआई से जुड़े उद्योगपतियों को सभी नियमों को ताक पर रखकर पैसे दिए दिए गए। सीआईआई मध्य प्रदेश से जुड़े लोग ही निगम का करोड़ों रुपया दबाए बैठे हैं। राजन नौकरी छोड़ चुके हैं और पेंशन ले रहे हैं। सीआईआई के सदस्य- एनबी ग्रुप, स्टील ट्यूबस ऑफ इंडिया, अल्पाइन ग्रुप, एसार ग्रुप , सोम ग्रुप , जमना ऑटो, सिद्धार्थ ट्यूब , गिल्ट पैक लि. आदि उद्योगों को राजन ने सबसे ज्यादा फायदा पहुंचाया था। इस घोटाले की ओर मीडिया का ध्यान न जाए इसके लिए सीआईआई ने मध्य प्रदेश के कुछ पत्रकारों को लंदन का दौरा भी करवाया था। इनका खर्चा सीआईआई के एक सदस्य ने ही उठाया था। उस सदस्य को अभी निगम को करीब 33 करोड़ रुपए लौटाने हैं लेकिन वह नहीं दे रहा है। निगम का रिकॉर्ड इस बात का गवाह है कि किस तरह मनमाने ढंग से पैसा बांटा गया। कई तो ऐसे मामले है जिनमें पुराना पैसा वापस न मिलने पर भी आगे इंटर कॉरपोरेट डिपॉजिट दिया जाता रहा। यह काम एसआर मोहंती के प्रबंध संचालक बनने तक जारी रहा। सूत्रों के मुताबिक 14 मई 1998 को संचालक मंडल द्वारा प्रबंध संचालक को ऋण लेने और उसे आगे उधार देने का फैसला ही पूरी तरह नियमों के खिलाफ था। उन्हें ऐसा करने का अधिकार ही नहीं था लेकिन उद्योगपतियों को सरकारी संरक्षण के कारण ऐसा हुआ। सरकार जानबूझ कर आंख बंद किए रही। आज निगम की हालत खस्ता है। वह करीब 600 करोड़ के घाटे में है। जिन लोगों से पैसा उधार लिया गया था, वे अब निगम पर मुकदमे कर रहे हैं। देश की विभिन्न संस्थाओं के कर्मचारियों के प्रॉविडेंट फंड, ऑर्गनाइजेशन , पेंशन फंड , छोटे निवेशकों और बैंक आदि से बॉन्ड के तहत निगम ने करीब 81 करोड़ रुपए लिए थे। इनको वापस चुकाने की मियाद पूरी हो चुकी है। फलस्वरूप कई मुकदमे दर्ज कराए जा चुके हैं। दोराहे पर प्रदेश सरकार वर्तमान सरकार दोराहे पर खड़ी है। एक ओर उसे करीब 719 करोड़ उद्योगपतियों से वसूलने हैं तो दूसरी ओर वह चाहती है कि प्रदेश का औद्योगीकरण हो। अरबों रुपए दबाए बैठे उद्योगपति वसूली के लिए हो रही सख्ती को अपना उत्पीडऩ मानकर विरोध कर रहे हैं। चारों ओर से इन डिफॉल्टरों को बचाने की कोशिशें हो रही हैं। इसके चलते वसूली मुहिम चलाने वाले अफसर परेशान हैं। यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि जो लोग बड़े डिफॉल्टर हैं, वे पूर्व सरकार के काफी करीब रहे हैं। एक सज्जन तो केंद्र में सत्तारूढ़ दल के राज्यसभा सदस्य भी रहे हैं। सबसे ज्यादा पैसा करीब 117 करोड़ उन्हें ही वापस करना है। वही वसूली की इस मुहिम का विरोध कर रहे हैं। भ्रष्ट अफसरों पर अड़ीबाजी करती हैं जांच एजेंसियां! ईओडब्ल्य ने सरकार से जैसे ही चालान पेश करने की अनुमति मांगी है वैसे ही प्रदेश की जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर आईएएस सहित अन्य अफसर सवाल उठाने लगे हैं। अफसरों का कहना है कि ईओडब्ल्यू, लोकायुक्त, आयकर विभाग, क्राइम ब्रांच, एसटीएफ और ऐसी ही तमाम ऐजेंसियों को समाज में ईमानदार और शक्तिशाली जांच ऐजेन्सियों की मान्यता प्राप्त है परंतु लगतार कुछ इस तरह के मामले सामने आ रहे हैं, जिससे संदेह होता है कि इन जांच ऐजेन्सियों के अधिकारी भ्रष्ट अफसरों पर अड़ीबाजी करते हैं और जो अफसर इनकी मुराद पूरी नहीं करता, केवल उसी के खिलाफ कार्रवाई करते हैं। अपना पक्ष रखते हुए मोहंती ने कहा है कि ' सुप्रीम कोर्ट ने जिन 13 बिंदुओं पर जांच करने के निर्देश दिए थे, ईओडब्ल्यू ने उनमें से केवल एक बिंदू पर जांच कर अपनी रिपोर्ट सरकार को दी है, जो कि सीधे-सीधे सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना है। मोहंती ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने ईओडब्ल्यू को मेरा पक्ष लेने के भी निर्देश दिए थे, जो नहीं लिया गया। मुझे फंसाने की साजिश हो रही है।Ó इसके अलावा मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार के ब्रांच एम्बेसडर योगीराज शर्मा के मामले में भी ईओडब्ल्यू सस्पेक्टेड है। यदि आप भोपाल पुलिस के एक सिपाही को भी योगीराज शर्मा की काली कमाई पता लगाने का जिम्मा सौंपे तो वो 7 दिन में जांच पूरी कर लेगा परंतु ईओडब्ल्यू लगतार योगीराज शर्मा के खिलाफ जांच को टालती जा रही है। कभी-कभी एक हुड़की भरा प्रेस बयान जारी होता है और फिर मामला शांत हो जाता है। धीमी जांच यह संदेह पैदा करती है कि योगीराज शर्मा के साथ ईओडब्ल्यू के अफसरों की सेटिंग हो गई है। जब तक किश्तें आ रहीं हैं ईओडब्लयू की जांच ठंडी ही रहेगी। संभव है यह नस्तीबद्ध भी हो जाए। अभी तक समाज में ईओडब्ल्यू की बड़ी ईमानदार छवि है। आर्थिक अपराधों के मामले में ईओडब्ल्यू को आम आदमी सीबीआई के समतुल्य मानते हैं और यदि ईओडब्ल्यू अपनी जांच में किसी अफसर या कारोबारी को भ्रष्टाचार का दोषी प्रमाणित करता है तो लोग बिना न्यायालय के निर्णय की प्रतीक्षा किए, संबंधित को दोषी मान लेते हैं परंतु अब कुछ ऐसे मामले सामने आने लगे हैं जो ईओडब्ल्यू की छवि को धूमिल कर रहे हैं। कंपनियों को वितरित ऋण की सूची 1. एस. कुमार पॉवर कार्पोरेशन 4475.00 लाख, 2. मोडक रबर एंड टेक्सरीज 325.00 लाख, 3.प्रोग्रेसिव इक्सटेंशन एंड एक्सपोर्ट 675.00 लाख, 4. सूर्या एग्रो लिमि. 1475 लाख, 5. एलपिन इंडस्ट्रीज लिमि. 2845 लाख, 6. स्नोकम इंडिया लिमि. 2800 लाख, 7. किलिक निक्सोन लिमि. 1500 लाख, 8. स्टील ट्यूब ऑफ इंडिया लिमि. 1700 लाख, 9. एसटीआई प्रोड्क्स 800 लाख, 10. सोम डिस्टलरीज लिमि. 1475 लाख, 11. सोम डिस्टलरीज एंड बेवरीज 700 लाख, 12. सोम पॉवर लिमि. 200 लाख, 13. सिद्धार्थ ट्यूब्स लिमि.1450 लाख, 14. भानू आयरन एंड स्टील कम्पनी 1000 लाख, 15. रिस्टसपिन साइट्रिक्स लिमि. 1100 लाख, 16 आईसर आलोयस एंड स्टील 1050 लाख, 17. आइसर एग्रो लिमि. 200 लाख, 18. हेरीटेज इंवेस्टमेंट 70 लाख, 19. आइसर फाइनेंस प्राइवेट लिमि. 250 लाख, 20. एईसी इंटरप्राइज लिमि. 1010 लाख, 21. एईसी इंडिया लिमि. 150 लाख, 22. राजेंद्र स्टील लिमि. 855 लाख, 23. भास्कर इंडस्ट्रीज लिमि. 669.50 लाख, 24. अर्चना एयरवेज लिमि. 300 लाख, 25. माया स्पिनरर्स 200 लाख, 26. गजरा बेवल गेयर्स 100 लाख, 27. बीएसआई लिमि. 100 लाख, 28. पसुमाई ऐरीगेशन 50 लाख, 29. जीके एक्जिम 2400 लाख, 30. गिल्ट पैक लिमि. 150 लाख। कुल- 30074.50 लाख। जांच में दोषी पाई गईं कंपनियां 1. एनबी इंडस्ट्रीज लिमि. 3000 लाख, 2. सूर्या एग्रो आइल्स लिमि. 1500 लाख, 3. फ्लोर एंड फूड्स लिमि. 40 लाख, 4. स्टील ट्यूब्स ऑफ इंडिया लिमि. 878.11 लाख, 5. एसटीआई प्रोड्क्स लिमि. 155 लाख, 6. एसटीएल एक्सपोर्ट लिमि. 165.86 लाख, 7. भानू आयरन एंड स्टील कम्पनी 440 लाख, 8. जमुना ऑटो इंडस्ट्रीज 400 लाख, 9. वेस्टर्न टोबेको 350 लाख, 10. सरिता साफ्टवेयर इंडस्ट्रीज 300 लाख, 11. केएन रिसोर्सेज 27.01 लाख, 12. इटारसी ऑयल एंड फ्लोर्स लिमि. 126.13 लाख, 13. गजरा बेवल गेयर्स 50 लाख, 14. गरहा यूटीब्रोक्सेस लिमि. 134.55 लाख, 15. बैतूल आयल एंड फ्लोर्स 80 लाख, 16. पोद्दार इंटरनेशनल 72.60 लाख, 17. महामाया स्टील 100 लाख। कुल-7819.26 लाख। इधर, हाईकोर्ट ने दिया मोहंती को नोटिस स्कूल शिक्षा विभाग में एरिया एज्यूकेशन अधिकारी की भर्ती मामले में हाईकोर्ट के आदेश का पालन नहीं करने पर शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव एसआर मोहंती को कोर्ट ने शोकाज नोटिस जारी किया है। साथ ही कहा है कि 6 हफ्ते के भीतर आदेश का पालन कर ओर कोर्ट को सूचित को सूचित किया जाए। कोर्ट के आदेश का पालन नहीं करने पर याचिकाकर्ता की ओर से कोर्ट में अर्जी लगाई गई थी। जबलपुर हाईकोर्ट की डबल बैंच ने 8 सितंबर 2014 को आदेश दिया था कि शिक्षा विभाग द्वारा वर्ष 2010-11 में व्यापमं के माध्यम से एरिया एज्यूकेशन अधिकारियों की भर्ती की गईं, जिन्होंने परीक्षा उत्तीर्ण की उन्हें नियुक्ति दी जाए। इस मामले में सरकार की ओर से रखी गईं सभी दलीलें कोर्ट में खारिज हो चुकी है। 9 महीने में आदेश का पालन नहीं होने पर कोर्ट ने सख्त नाराजगी जताई है, इस संबंध में शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव एसआर मोहंती को शोकाज नोटिस भेजा है। ज्ञात हो कि शिक्षा विभाग ने स्कूलों के कामकाज की निगरानी के लिए एरिया एज्यूकेशन अधिकारी के पद पर भर्ती की गई थी। जिसमें अध्यापक वर्ग से सिलेक्ट हुए। जिस पर पुराने शिक्षकों ने आपत्ति जताई और वे कोर्ट गए। इसके बाद सरकार ने परीक्षा पास करने वालों की नियुक्ति पर रोक लगाई। कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलों के सुनने के बाद परीक्षा पास करने वालों को नियुक्ति करने का फैसला सुनाया था, जिस पर सरकार ने अमल नहीं किया।

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