मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

3 साल में 1000 करोड़ की काली कमाई






भ्रष्टाचार के खिलाफ राष्ट्रीय परिदृश्य में सार्वजनिक मंचों पर भाजपा भले अण्णा हजारे के सुर में सुर मिलाती नजर आए लेकिन उसके अपने राज्य मध्य प्रदेश में यह लाइलाज नासूर बन चुका है। पार्टी अपने मंत्रियों और पदाधिकारियों को तो लगातार सबक दे रही है कि वे कोटा-परमिट, मकान-दुकान, खदान से दूर रहें पर नौकरशाही की मुश्कें कसना राज्य सरकार के लिए भी बेहद मुश्किल भरा साबित हो रहा है। भ्रष्टाचार का नजारा यह है कि भ्रष्ट अरबपति अफसरों और करोड़पति क्लर्को, बाबुओं, चपरासियों में एक-दूसरे को पछाडऩे की होड़-सी चल रही है।
मध्य प्रदेश में आयकर, लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू ने पिछले तीन सालों में करीब तीन सौ से ज्यादा जगह छापे मारे और करीब एक हजार करोड़ रुपये की काली कमाई उजागर की है। आयकर विभाग ने तीन सालों में एक दर्जन से ज्यादा अफसरों के यहां छापा मारकर करीब 700 करोड़ रुपये से ज्यादा की अघोषित संपत्ति का खुलासा किया है। आयकर वसूली के मामले में देश में मध्य प्रदेश दूसरे स्थान पर है जबकि राजस्थान पहले स्थान पर है। मध्य प्रदेश को 9 सौ करोड़ का लक्ष्य दिया गया था।
भ्रष्टाचार का नजारा यह है कि भ्रष्ट अरबपति अफसरों और करोड़पति क्लर्को, बाबुओं, चपरासियों में एक-दूसरे को पछाडऩे की होड़-सी चल रही है। लोकायुक्त संगठन द्वारा पिछले ढाई वर्ष में प्रदेश में 203 रिश्वतखोर अधिकारी-कर्मचारियों को पकड़ा। 81 के यहाँ छापामार कार्रवाई कर 103 करोड़़ की संपत्ति जब्त की है।
इन सरकारी आंकड़ों से मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है, जिसे लेकर विपक्ष ने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी पर हमले तेज कर दिये हैं। सूबे में लोकायुक्त पुलिस और आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) ने भ्रष्टाचार की शिकायतों के मद्देनजर पिछले दो साल में 67 सरकारी कारिंदों के ठिकानों पर छापे मारकर करीब 348 करोड़ रुपये की काली कमाई जब्त की।
इन कारिंदों में चपरासी, क्लर्क, अकाउन्टेन्ट और पटवारी से लेकर भारतीय प्रशासनिक सेवा के बड़े अफसर शामिल हैं। प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इंदौर के क्षेत्र क्रमांक एक के भाजपा विधायक सुदर्शन गुप्ता के विधानसभा में उठाये गये सवाल पर यह जानकारी दी थी। गुप्ता ने मुख्यमंत्री के हालिया जवाब के हवाले से बताया कि प्रदेश में पिछले दो साल के दौरान लोकायुक्त पुलिस ने 52 सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के ठिकानों पर छापे मारे।
वहीं ईओडब्ल्यू ने 15 अधिकारियों और कर्मचारियों के ठिकानों पर छापेमारी की। उन्होंने सरकारी आंकड़ों के आधार पर बताया कि दोनों जांच एजेंसियों के छापों में इन 67 सरकारी कारिंदों के ठिकानों से करीब 348 करोड़ रुपये की रकम जब्त की गयी। भाजपा विधायक गुप्ता ने पूछा कि प्रदेश सरकार भ्रष्टाचार के आरोप झेल रहे इन कारिंदों के खिलाफ क्या कार्रवाई कर रही है तो मुख्यमंत्री ने बताया कि शासन के निर्देश हैं कि लोकायुक्त संगठन और ईओडब्ल्यू के छापों के बाद संबंधित लोक सेवक को मैदानी तैनाती (फील्ड पोस्टिंग) से हटाकर कहीं और स्थानांतरित किया जाये या महत्वपूर्ण दायित्वों से मुक्त किया जाये।
उधर, प्रदेश के प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस की मानें तो लोकायुक्त पुलिस और ईओडब्ल्यू की कार्रवाई से बड़े मगरमच्छ अब भी बचे हुए हैं। प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता नरेंद्र सलूजा ने कहा, सूबे में क्लर्क और पटवारी जैसे अदने कर्मचारियों के ठिकानों पर इन जांच एजेंसियों के छापों में करोड़ों रुपये की मिल्कियत उजागर हो रही है। इससे बड़े नौकरशाहों और मंत्रियों की काली कमाई का अंदाजा लगाया जा सकता है।Ó उन्होंने दावा किया, 'वर्ष 2013 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश की भाजपा सरकार के इशारे पर छोटे कर्मचारियों के ठिकानों पर लगातार छापेमारी की जा रही है, ताकि बड़े अधिकारियों में भय का माहौल बनाया जा सके और उनसे मोटा चुनावी चंदा वसूल किया जा सके।
प्रदेश के लोकायुक्त पीपी नावलेकर कहते हैं कि लोकायुक्त संगठन द्वारा पिछले ढाई वर्ष में प्रदेश में 203 रिश्वतखोर अधिकारी-कर्मचारियों को पकड़ा। 81 के यहाँ छापामार कार्रवाई कर 103 करोड़़ की संपत्ति जब्त की है। संगठन की नजरों में कोई भी बड़़ा या छोटा नहीं है। शिकायत मिलने पर सभी श्रेणी के अफसर व कर्मचारियों पर कार्रवाई की जा रही है। प्रदेश में कर्नाटक जैसे मामले सामने नहीं आए हैं।
उन्होंने कहा कि छोटे स्तर के अधिकारियों पर कार्रवाई करने का मतलब यह नहीं है कि प्रथम श्रेणी के अफसरों पर कार्रवाई नहीं होती है। आम आदमी निचले स्तर के अफसर व कर्मचारी द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार से परेशान है। यही शिकायतें भी अधिक आती हैं। प्रारंभिक स्तर पर परीक्षण के बाद ही कार्रवाई की जाती है।
उन्होंने बताया कि मैंने 2009 में कार्यभार संभाला था। तब से लगातार कार्रवाई की जा रही है। जनवरी-2012 तक विभाग ने 203 रिश्वतखोरी व 49 पद के दुरुपयोग के मामले पकड़़े। जबकि 81 अफसरों के यहाँ छापे मारकर 103.7 करोड़़ की संपत्ति जब्त की है।
ईओडब्ल्यू ने पिछले तीन सालों में सौ से ज्यादा अफसरों को अपने घेरे में लिया है। इनके पास से करीब 50 करोड़ रुपये से ज्यादा काली कमाई का खुलासा हुआ।
मध्यप्रदेश गले-गले तक भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है। राज्य के नौकरशाह से लेकर पटवारी तक किसी न किसी रूप में भ्रष्टाचार की परिधि में आकर खड़े हो चुके है। पिछले दिनों उज्जैन नगर निगम के एक चपरासी के घर मिली करोड़ों की संपत्ति और अब मंदसौर के एक सब इंजीनियर के घर बरामद हुए करोड़ों रू. सरकार के इतिहास को बयान कर रहे है।
लूट का यह सिलसिला वर्ष 1998 के बाद से बहुत तेजी से आगे बढ़ा है। सरकारी योजनाओं की सभी कमजोरियों का पहले लाभ उठाकर हर स्तर पर कमीशन खोरी का धंधा तेजी से जारी है। एक अनुमान के अनुसार भ्रष्टाचार की अब तक वसूली गई रकम को यदि सरकार इन अधिकारी, कर्मचारियों से बाहर निकाल दे तो मध्यप्रदेश को अपने विकास कार्यो के लिए आने वाले बीस सालों तक किसी टैक्स की जरूरत नही रहेगी। आम आदमी पर प्रतिदिन लगने वाले टैक्स और सरकारी खजाने में प्रतिदिन पड़ रही डकैती का अनुपात कुछ ऐसा है कि विकास की गतिविधियां सिर्फ कागजों तक सीमित होकर रह गई है।
प्रदेश में केंद्र और राज्य के बजट से अरबों की योजनों और कार्यक्रम चल रहे हैं, विश्वबैंक और डीएफआइडी पोषित योजनाओं ने भी सरकारी विभागों के खजाने भर रखे हैं। तीन सालों में आयकर विभाग उन सभी स्त्रोत और माध्यमों का खुलासा कर चुका है जहां ब्लैक से व्हाइट का खेल चलता है, लिहाजा अब उन स्त्रोतों और माध्यमों को छोड़कर किसी दूसरे तरीके से इसे ठिकाने लगाने के लिए मंथन में यह गठजोड़ जुटा है। यह गठजोड़ अब तक पैसा कमाने के नए-नए तरीकों को खोजने में व्यस्त रहता था लेकिन अब इसे बचाने की जुगत में जुटा हुआ है। आयकर विभाग की आंखों में धूल झोंकने के नए-नए तरीके ईजाद किए जा रहे हैं।
करोड़पति चपरासी और क्लर्को के राज्य में आला अधिकारियों के हाल यह है कि उनके यहां छापा मारने पर पैसा गिनने के लिए मशीनों का इस्तेमाल करना पड़ता है। भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चा खोलने वाली राज्य और केंद्र सरकार की एजेंसियों ने पिछले तीन साल के दौरान करीब एक हजार करोड़ रुपये की काली कमाई उजागर की है। इन विभागों के छापों से यह बात सामने आई है कि सरकारी दफ्तरों का सारा अमला भ्रष्टाचार में डूबा है। अफसरों के पास नगदी और सोना रखने के लिए जगह नहीं है। कोई अपनी काली कमाई बिस्तर में छिपा रहा है तो किसी ने बैंक लॉकर नोटों से भर रखे हैं।
मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार की एक-एक कहानी धीरे-धीरे सामने आने लगी है। राज्य सरकार के सबसे निचले स्तर के कर्मचारियों के पास से करोड़ो रूपये की बरामदगी का सिलसिला जारी है। राज्य के प्रमुख सचिव से लेकर पटवारी तक सरकारी कर्मचारी इन दिनों करोड़पति बन चुके है। अनुमान के अनुसार पिछले दस वर्षो के दौरान मध्यप्रदेश में पचास हजार करोड़ से अधिक की हेराफेरी सरकारी खजाने में की गई है। मध्यप्रदेश को एक सुशासन देने का दावा करने वाली सरकार इस भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने में असफल रही है।
इंदौर में परिवहन विभाग के एक मामूली बाबू रमण धूलधोए के यहां छापा मारने पहुंची ईओडब्लू की टीम की आंखें तब फटी की फटी रह गईं, जब उसे करोड़ों की बेनामी संपत्ति मिली। इंदौर में परिवहन विभाग के एक मामूली बाबू रमण धूलधोए के यहां छापा मारने पहुंची ईओडब्लू की टीम की आंखें तब फटी की फटी रह गईं, जब उसे करोड़ों की बेनामी संपत्ति मिली।
क्लर्क रमण धूलधोए के यहां से 75 करोड़ रुपये की काली कमाई उजागर हुई। इसमें एक किलो सोने के जेवरात, पचास बीघा जमीन पर आलीशान फार्म हाउस समेत कई और मकान और लक्जरी गाडिय़ां शामिल हैं। 15 दिसंबर को मंदसौर के सब इंजीनियर शीतल प्रसाद पांडे के विकानों पर मारे गए लोकायुक्त के छापे में बारह करोड़ की काली कमाई सामने आई। उज्जैन नगर निगम का चपरासी नरेन्द्र देशमुख पंद्रह करोड़ रुपये का मालिक निकला। देशमुख भले ही चपरासी के पद पर कार्यरत हो, लेकिन उसने जमीन में करोड़ों रुपये निवेश कर रखे थे। वह जलगांव में एक होटल में बराबर का भागीदार भी पाया गया। इसके अलावा 12 नवंबर को हरदा के सब-रजिस्ट्रार माखनलाल पटेल के इंदौर के तीन ठिकानों पर मारे गए छापे में तीन करोड़ की काली कमाई का खुलासा हुआ।
उज्जैन में परिवहन विभाग के एक इंस्पेक्टर सेवाराम खाडेगर के यहां दस करोड़ की संपत्ति का पाया जाना भी पुलिस टीम को चकरा देने वाला था। परिवहन ऐसा कमाऊ विभाग है जिसमें सिपाही तक की नियुक्ति मुख्यमंत्री सचिवालय की मंजूरी के बगैर नामुमकिन होती है। भ्रष्टाचार की यह कथा अंतहीन है। पिछली 31 दिसंबर को आयकर महकमें ने अनुपातहीन संपत्ति के मामले में कुछ आइएएस अफसरों और कॉलेज चलाने वाले शिक्षा संस्थानों को नौ सौ करोड़ रुपये टैक्स वसूली के नोटिस जारी किए हैं।
लोकायुक्त में लंबित प्रकरण मुख्यमंत्री, राज्य के मंत्रीगण, विधायक सहित पटवारी स्तर तक के अधिकारियों एवं कर्मचारियों को अपने गिरफ्त में ले रहे है। इसके बाद भी सरकार का दावा है कि भ्रष्टाचार से दूर स्वच्छ प्रशासन देने के उसके प्रयास कामयाब रहे है। एक अनुमान के अनुसार भ्रष्टाचार की अब तक वसूली गई रकम को यदि सरकार इन चोर अधिकारी, कर्मचारियों से बाहर निकाल दे तो मध्यप्रदेश को अपने विकास कार्यो के लिए आने वाले बीस सालों तक किसी टैक्स की जरूरत नही रहेगी। आम आदमी पर प्रतिदिन लगने वाले टैक्स और सरकारी खजाने में प्रतिदिन पड़ रही डकैती का अनुपात कुछ ऐसा है कि विकास की गतिविधियां सिर्फ कागजों तक सीमित होकर रह गई है।
करोड़पति चपरासी और क्लर्को के राज्य में आला अधिकारियों के हाल यह है कि उनके यहां छापा मारने पर पैसा गिनने के लिए मशीनों का इस्तेमाल करना पड़ता है। भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चा खोलने वाली राज्य और केंद्र सरकार की एजेंसियों ने पिछले तीन साल के दौरान करीब एक हजार करोड़ रुपये की काली कमाई उजागर की है। इन विभागों के छापों से यह बात सामने आई है कि सरकारी दफ्तरों का सारा अमला भ्रष्टाचार में डूबा है। अफसरों के पास नगदी और सोना रखने के लिए जगह नहीं है। कोई अपनी काली कमाई बिस्तर में छिपा रहा है तो किसी ने बैंक लॉकर नोटों से भर रखे हैं।
तत्कालीन गृह सचिव डॉ. राजेश राजौरा के यहां 30 मई 2008 को छापा पड़ा। साढ़े पांच करोड़ टैक्स की काली कमाई उजागर हुई। डेढ़ करोड़ रुपये से अधिक की टैक्स डिमांड निकाली। तत्कालीन स्वास्थ्य संचालक, योगीराज शर्मा और कुछ कर्मचारियों के यहां 8 सितंबर 2007 को छापे पड़े। इसमें करीब 60 करोड़ रुपये की अघोषित आय का खुलासा हुआ। इन्हें साढ़े 12 करोड़ रुपये से अधिक का आयकर चुकाना होगा। नगर निगम भोपाल के तत्कालीन अपर आयुक्त केके सिंह चौहान के यहां 5 अप्रैल 2007 छापा पड़ा। 6 करोड़ काली कमाई उजागर। आयकर विभाग ने दो करोड़ से अधिक टैक्स डिमांड निकाली है।
आयकर, लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू ने पिछले तीन सालों में करीब ढाई सौ से ज्यादा जगह छापे मारे और करीब एक हजार करोड़ रुपये की काली कमाई उजागर की। अकेले लोकायुक्त संगवन ने पिछले दो साल में प्रदेश में 63 सरकारी मुलाजिमों पर शिकंजा कसा और इनसे करीब सौ करोड़ रुपये की काली कमाई उजागर हुई। पिछले साल 25 अधिकारी-कर्मचारियों के पास 24 करोड़ रुपये की बेहिसाब संपत्ति मिली। मौजूदा वर्ष में 38 सरकारी मुलाजिमों के पास 75 करोड़ से अधिक यानी औसत दो करोड़ रुपये की बेहिसाब संपत्ति मिली। ईओडब्ल्यू ने पिछले तीन सालों में सौ से ज्यादा अफसरों को अपने घेरे में लिया है। इनके पास से करीब 50 करोड़ रुपये से ज्यादा काली कमाई का खुलासा हुआ। आयकर विभाग ने तीन सालों में एक दर्जन से ज्यादा अफसरों के यहां छापा मारकर करीब 700 करोड़ रुपये से ज्यादा की अघोषित संपत्ति का खुलासा किया है। सबसे बड़ा मामला प्रमुख सचिव स्तर अरविंद जोशी और उनकी पत्नी टीनू जोशी का है। इनके बंगले में तीन करोड़ 11 लाख रुपये नगद मिले थे।
आयकर विभाग ने निलंबित आइएएस अधिकारी अरविंद-टीनू जोशी, उनके पिता रिटायर्ड डीजीपी एचएम जोशी और अन्य परिजनों व संबंधितों को लगभग 200 करोड़ रुपये की अघोषित आय पर टैक्स चुकाने का नोटिस इसी 31 दिसंबर को जारी किया है। इसमें जोशी दंपती के करीबी एसपी कोहली भी शामिल हैं। इस आय पर 30 प्रतिशत के हिसाब से करीब 60 करोड़ रुपये का टैक्स चुकाना होगा। अकेले जोशी दंपती की आय 150 करोड़ रुपये आंकी गई है। उन्हें करीब 45 करोड़ रुपये टैक्स चुकाना होगा। विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि जोशी परिवार का असेसमेंट ऑर्डर एक हजार से भी अधिक पन्नों का है। छापे के बाद तैयार की गई एप्रेजल रिपोर्ट में इन्वेस्टिगेशन विंग ने पूरे समूह की अघोषित संपत्ति की मौजूदा कीमत करीब 360 करोड़ रुपये आंकी थी। इसमें अघोषित आय लगभग 180 करोड़ रुपये बताई गई थी। असेसमेंट विंग ने अपनी पड़ताल के बाद इसमें इजाफा कर इसे 200 करोड़ रुपये पर पहुंचा दिया।
मनरेगा स्कीम में गड़बड़ी को लेकर एक दर्जन दागी कलेक्टर भी अभी तक अछूते हैं। जांच रिपोर्ट इनके खिलाफ होने के बावजूद इन्हें बेहतर पोस्टिंग मिल रही है। हाल ही में हाइकोर्ट में एक दागी कलेक्टर के मामले में फौरन कार्रवाई के निर्देश सरकार को दिए हैं। टीकमगढ़ कलेक्टर केपी राही को नरेगा में भ्रष्टाचार के आरोप में निलंबित किया गया है। भिंड एवं टीकमगढ़ कलेक्टरों पर एक जैसे आरोप थे, लेकिन भिंड कलेक्टर सुहैल अली को बचा लिया गया। बाद में बहाली कर दी गई। आयकर विभाग की रिपोर्ट मिलने के बाद आइएएस अधिकारी राजेश राजौरा को निलंबित किया। इनकी बहाली हो चुकी है। लोकायुक्त 1 जनवरी 2004 के बाद अभी तक 17 आइएएस अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप में कोर्ट में चालान पेश कर चुका है। यह अभी तक कि सबसे बड़ी संख्या है। लोकायुक्त प्रदेश के लगभग 36 आइएएस अधिकारियों के खिलाफ जांच कर रहा है। ईओडब्ल्यू प्रदेश के करीब 25 आइएएस अधिकारियों की जांच कर रहा है।
मिली भगत की इस राजनीति का दुष्परिणाम राज्य भोग रहा है। समूची शासन व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लगाने वाले सब इंजीनियर और चपरासी सहित राज्य के बड़े अधिकारी अंधी कमाई को व्यय करने के लिए चोरी-छिपे ही सही माध्यमों की खोज कर रहे है। इसी काली कमाई से होने वाले कार्यों को राज्य सरकार विकास के कार्यों की संज्ञा ले रही है। दूसरी ओर यह सत्य है कि मध्यप्रदेश विकास की गतिविधियों से दूर छोटे और बड़े सभी स्तर के प्रभावशील लोगों की अवैध आमदनी को बार-बार देखकर अपने विकास की कल्पना कर रहा है।?
'दूसरी पारी के करीब साढ़े तीन साल गुजार चुकी शिवराज सिंह सरकार जैसे-जैसे चुनाव के मुहाने पर पहुंच रही है, लोगों को उसके वायदे याद आने लगे हैं। एक तरफ भ्रष्ट नौकरशाही और लापरवाह बदजुबान मंत्री राज्य सरकार के लिए परेशानी का सबब बन गए हैं तब दूसरी और पिछले छ: सालों से किए जा रहे है अधूरे वायदे चुनौती बन चुके हैं। जाहिर है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अग्निपरीक्षा का दौर अब शुरू होने जा रहा है।
पिछले सालों में मध्य प्रदेश में लोकायुक्त व राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो ने छापों के दौरान सात सौ करोड़ रुपये से ज्यादा की अनुपातहीन संपत्ति उजागर की है। भोपाल में आईएएस दंपति अरविंद-टीनू जोशी के यहां आयकर छापे के बाद लोकायुक्त पुलिस ने छापा मारा था।जोशी दंपति के यहां से इनकम टैक्स ने तीन करोड़ रुपये नकद बरामद किए थे। बाद में लोकायुक्त व ईओडब्ल्यू ने इनकम टैक्स से मिली रिपोर्ट के आधार पर जांच शुरू की। अभी तक उनकी करीब ढाई सौ करोड़ रुपये की संपत्ति का पता चल चुका है। इसमें उनके डीमेट अकाउंट, कृषि भूमि, बैंक अकाउंट, फार्म हाउस आदि का पता चला। यह दंपति अभी निलंबित है एवं उनकी विभागीय जांच चल रही है। लोकायुक्त में उनके खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज है। अकेले इंदौर-उज्जैन संभाग की बात करें तो पिछले एक साल में लोकायुक्त व ईओडब्ल्यू के छापे में 270 करोड़ रुपये की संपत्ति का खुलासा हो चुका है। बीत 6 माह में ईओडब्ल्यू व लोकायुक्त की बड़ी कार्रवाई पर नजर डालें तो आंकड़े चौंकाने वाले हैं।
आयकर विभाग की गोपनीय रिपोर्ट के मुताबिक मप्र-छग में पिछले एक साल में सौ कंपनियों के नाम सामने आए हैं जिन्होंने सात हजार करोड़ से अधिक रुपए को ब्लैक मनी से व्हाइट में बदल दिया है। ये कंपनियां बड़े ग्रुप की काली कमाई को कैश में लेकर उन्हें लोन या शेयर कैपिटल के रूप में चेक से लौटा रही हैं। ये आंकड़े असेसमेंट में पकड़े गए हैं। विभागीय अधिकारियों का मानना है कि इनसे कई गुना अधिक मामलों में तो फर्जी कंपनी की पड़ताल ही नहीं हो पाती। यदि किसी रियल इस्टेट ग्रुप को अपनी सौ करोड़ की काली कमाई बिना आयकर चुकाए वैध करनी है तो वे शहर में फायनेंस, इन्वेस्टमेंट,मार्केटिंग के नाम पर चल रहे ग्रुप ऑफ कंपनीज से संपर्क करते हैं। कर्ताधर्ताओं के पास बड़ी संख्या में कागजी कंपनी और उनके बैंक अकाउंट होते हैं। इन कंपनियों में डायरेक्टर ड्रायवर,चौकीदार जैसे लोगों को बनाकर उन्हें लिस्टेड करा लिया जाता है। रियल इस्टेट ग्रुप से सौ करोड़ रुपए कैश में लेकर कई कागजी कंपनियों के माध्यम से उतनी कीमत के कई अकाउंट पेयी चैक रियल इस्टेट ग्रुप को दे दिए जाते है। यह चैक रियल इस्टेट ग्रुप खाते के माध्यम से कैश करा लेता है। बुक्स ऑफ अकाउंट में इसकी इंट्री लोन के रुप में दर्शायी जाती है जिससे उस पर आयकर की देनदारी नहीं होती। कमीशन के रूप में रियल इस्टेट को दो करोड़ रुपए कर्ताधर्ताओं को देने पड़ते है लेकिन उनके आयकर के तीस करोड़ रुपए बच जाते है। अग्रवाल कोल कॉपरेरेशन ने अपनी कमाई में शामिल हिंदुस्तान कॉन्टिनेंटल व ऑप्टीमेट टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज कंपनियों के शेयर केपिटल गेन से इनकम टैक्स में छूट मांगी। विभाग को शक होने पर दोनों कंपनियों को उनके दिए गए पते इंदौर, मंदसौर, मुंबई और जबलपुर में ढूंढा। न तो कंपनी मिली और न ही नोटिस की तामीली हुई। इनकम टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल ने आखिरकार यह माना कि दोनों की कंपनी बोगस है और कोल कॉरपोरेशन ने गलत ढंग से शेयर केपिटल गेन के माध्यम से खुद की ही काली कमाई को वैध करने का प्रयास किया है।
496 भ्रष्ट अधिकारियों पर लोकायुक्त कार्रवाई की तलवार
मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार की एक-एक कहानी धीरे-धीरे सामने आने लगी है। राज्य सरकार के सबसे निचले स्तर के कर्मचारियों के पास से करोड़ो रूपये की बरामदगी का सिलसिला जारी है। राज्य के प्रमुख सचिव से लेकर पटवारी तक सरकारी कर्मचारी इन दिनों करोड़पति बन चुके है। अनुमान के अनुसार पिछले दस वर्षो के दौरान मध्यप्रदेश में पचास हजार करोड़ से अधिक की हेराफेरी सरकारी खजाने में की गई है। मध्यप्रदेश को एक सुशासन देने का दावा करने वाली सरकार इस भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने में असफल रही है।

सरकारी संरक्षण में खनन माफिया




ईमानदार होने की कीमत जब-तब देश और समाज को चुकानी ही पड़ती है। एक बार फिर एक आइपीएस अधिकारी को अपनी जान देकर ईमानदारी की कीमत चुकानी पड़ी है। मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में पुलिस अनुमंडल अधिकारी यानी एसडीपीओ के पद पर तैनात 2009 बैच के आइपीएस अधिकारी नरेंद्र कुमार सिंह को बामौर में अवैध खनन से जुड़े माफियाओं ने मार डाला। बताया जा रहा है कि उन्होंने बामौर में जाकर अवैध खनन को रोकने की हिम्मत दिखाई तो ट्रैक्टर चालक गाड़ी लेकर भागने लगा। जब उन्होंने ट्रैक्टर चालक को बीच रास्ते में रोकने की कोशिश की तो उसने नरेंद्र कुमार पर ट्रैक्टर चढ़ा दिया। अस्पताल में नरेंद्र की मौत हो गई। यह हृदयविदारक घटना इस बात की तस्दीक करती है कि देश में अवैध खनन से जुड़े माफिया की ताकत चरम पर है और सरकारें उनके आगे लाचार और पंगु हैं। यह घटना चाक-चौबंद कानून-व्यवस्था की मुनादी पीटने वाली मध्य प्रदेश सरकार के माथे पर कलंक है। अभी तक मध्य प्रदेश में काली कमाई करने वालों का ही भंडाफोड़ हो रहा था, लेकिन आइपीएस अधिकारी की हत्या ने राज्य की डांवाडोल होती कानून-व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी है।

मध्यप्रदेश में पुलिस अधिकारी नरेन्द्र कुमार की हत्या के संदर्भ में राजनेताओं और खनन माफियाओं को अलग-अलग करके नहीं देखा जा सकता, बल्कि यह राजनेताओं के माफिया के रूप में बदलने और अपराधियों से उनके गठजोड़ को उजागर करता है. राज्य में धन कमाने के व्यापक अवसर वाले कई व्यापार-व्यवसाय होते हैं, जिनमें खनन, शराब के ठेके, और परिवहन आदि प्रमुख है. जब इन व्यवसायों में सत्ता से जुड़े राजनेता या उनके परिजन शामिल हो जाते हैं तो इन व्यवसायों से अवैध रूप से कमाई की तरीके रोक पाना प्रशासन के लिए कठिन होता है. ऐसे में नरेन्द्र कुमार जैसे अधिकारियों को अपना कर्तव्य निभाने के लिए अपनी जान गंवानी पड़ती है.
मध्यप्रदेश के मुरैना में अनुविभागीय पुलिस अधिकारी के पद पर पदस्थ आईपीएस अधिकारी नरेन्द्र कुमार को यहां पदस्थ हुए ज्यादा समय नहीं हुआ था और निश्चित रूप से उनमें ईमानदारी से कर्तव्य निर्वहन का जज्बा था, जो किसी भी समाज के विकास और सुरक्षा के लिए अत्यन्तक जरूरी है. यह स्पष्ट, है कि उनकी हत्या के पीछे उन लोगों का हाथ है, जिनके हित उनके कर्तव्य निर्वहन से प्रभावित हो रहे थे.
उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश में अवैध खनन के कई मामले लगातार सामने आते रहे हैं और इससे न सिर्फ सरकार को करोड़ों का नुकसान हो रहा है, बल्कि पर्यावरण का संकट भी खड़ा हो गया है.
मध्यप्रदेश में टीकमगढ़, छतरपुर, दतिया, ग्वालियर और शिवपुरी तक फैला बुन्देलखण्ड पठार खनन माफियाओं के कारण ही खत्म होने के कगार पर है. इस पठार से निकलने वाले ग्रेनाईट का सरकारी तौर पर तो प्रतिवर्ष मात्र 65 करोड़ रूपयों का व्यवसाय हो रहा है, किन्तु वास्तव में ढाई सौ करोड़ रुपये प्रतिवर्ष का व्यवसाय अवैध रूप से किए जाने की बात सामने आती है. इसके बावजूद सरकार उसे नहीं रोक पा रही है.
पूरे प्रदेश में इस तरह चल रहे अवैध खनन से राज्य को रहे नुकसान के बारे में भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट से पता चलता है, जिसके अनुसार मध्यप्रदेश में अवैध खनन के कारण पिछले पांच सालों में राज्य को 1500 करोड़ रूपए का नुकसान हुआ है. यही नहीं, मध्यप्रदेश विधानसभा में प्रस्तुत की गई विभिन्न रिपोर्टों से भी प्रदेश में अवैध खनन की बात उजागर होती है.
विधानसभा में प्रस्तुत सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में 2005 से 2010 के बीच राज्य में 6906 अवैध खनन के मामले सामने आए, जिनसे राज्य को 1496 करोड़ रूपयों का नुकसान हुआ. हालांकि खनन मंत्रालय के आकड़ों के अनुसार प्रदेश में 2009-10 में 9701 करोड़ रूपयों के खनिज एवं 440 करोड़ रूपए के उप खनिज का उत्पादन किया गया. किन्तु अवैध रूप से उत्पादित खनिज इससे भी कई गुना ज्यादा है, जिसका लाभ सीधे तौर पर खनन माफिया उठा रहे हैं.
मध्यप्रदेश के कटनी जिले में संगमरमर के खनन पर भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा रोक लगाए जाने के बावजूद यहां उत्खनन जारी है और करोड़ों रूपए का अवैध कारोबार संचालित किया जा रहा है.
इसी तरह प्रदेश के निमाड़ क्षेत्र में नर्मदा नदी के घाटों पर रेत के अवैध खनन का सिलसिला भी जारी है. प्रदेश के इसी क्षेत्र के अलीराजपुर जिले में सोप स्टोन, रेत, केलसाईट तथा डोलोमाईट स्टोन की 150 खदानों में से 116 खदानों पर उच्चतम न्यायालय द्वारा खनन पर रोक लगाई गई है. इसके बावजूद यहां चोरी-छुपे खनन की घटनाएं होती रही हैं.
इस प्रकार मध्यप्रदेश में अवैध खनन की बात न सिर्फ सामाजिक कार्यकर्ता या मीडिया से जुड़े लोग ही कहते आए हैं, बल्कि भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक और सीएजी की रिपोर्ट में भी इसे स्वीकार किया गया है. पुलिस अधिकारी नरेन्द्र कुमार की हत्या के बाद अब यह बात और भी पुख्ता हो गई है.
विभिन्न रिपोर्टों के जरिये सरकार के सामने अवैध खनन की बात रखे जाने के बावजूद अब तक सरकार द्वारा इस दिशा में कोई ठोस कदम न उठाने से कई सवाल खडे होते हैं. इससे यह संदेह उत्पन्न होना स्वाभाविक है कि अवैध खनन के मामले में कहीं राजनीति और सरकार से जुड़े लोग तो शामिल नहीं हैं?
यह देखा गया है कि खनन, शराब, और परिवहन जैसे व्यवसायों के ठेके सरकार की ओर से जिन लोगो को मिलते हैं, वे अपने वैध धंधों के पीछे उसका अवैध रूप से भी फायदा उठाते हैं और यह प्रवृति बढती जा रही है. मध्यप्रदेश के अवैध खनन के मामलों की पड़ताल में इस बात को भी जांच का प्रमुख बिन्दु बनाया जाना चाहिए कि पिछले करीब एक दशक में जिन लोगों, फर्मो या कंपनियों को खनन के पटटे या ठेके दिए गए, उनमें ऐसे कितने लोग, फर्म या कंपनियां हैं, जो किसी न किसी रूप में राजनेताओं के रिश्तेदार या सत्ताधारी दल के शीर्ष लोगों के संबंधी हैं? यही जांच इस बात का राज खोलेगी कि आखिर एक पुलिस अधिकारी की हत्या और राज्य में चल रहे खनन माफिया के पीछे किन लोगों का संरक्षण हासिल है.
आइपीएस की हत्या के दो दिन बाद पन्ना जिले में पूर्व डकैत कुबेर सिंह ने अजयगढ़ के एसडीएम नाथूराम गौड़ और अनुविभागीय पुलिस अधिकारी (एसडीओपी) जगन्नाथ सिंह पर उस समय हमला कर दिया, जब वे रेत के अवैध खनन को रोकने की कोशिश कर रहे थे. पिछले वर्ष सतना जिले के उचेहरा और नागौद वन क्षेत्र में अवैध खनन के खिलाफ कार्रवाई करने वाले वनकर्मियों पर जो हमला हुआ उसमें लोक निर्माण मंत्री नागेंद्र सिंह के भतीजे रूपेंद्र सिंह उर्फ बाबा राजा का नाम भी सामने आया.
नागेंद्र सिंह के अलावा मुरैना से भाजपा सांसद नरेंद्र सिंह तोमर का नाम भी अवैध खनन को संरक्षण देने में उछला है. अवैध खनन के खिलाफ पुलिस की हाल ही की कार्रवाई में उनके करीबी भाजपा नेता हमीर सिंह पटेल भी पकड़े गए. पटेल ने जनवरी में खनिज निरीक्षक राजकुमार बरेठा पर उस समय हमला कर दिया था, जब वे पत्थरों से भरी ट्राली जब्त करने की कार्रवाई कर रहे थे. तोमर ने भी माना है कि इलाके में बड़े पैमाने पर रेत और पत्थर की अवैध खुदार्ई हो रही है और इस पर कार्रवार्ई जरूरी है. मुरैना में पांच साल पहले तत्कालीन कलेक्टर आकाश त्रिपाठी और एसपी हरिसिंह यादव पर भी फायरिंग हुई थी. प्रदेश के जबलपुर से ही सियासत की शुरुआत करने वाले एनडीए संयोजक और जदयू अध्यक्ष शरद यादव तो साफ-साफ आरोप लगाते हैं कि मध्य प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस दोनों के संरक्षण में अवैध खनन चल रहा है.
ग्वालियर-चंबल अंचल में एक अनुमान के मुताबिक सालाना 2,000 करोड़ रुपए से ज्यादा के सैंडस्टोन और रेत का अवैध खनन हो रहा है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक यहां की खदानों से हर साल 3.5 लाख घन मीटर पत्थर निकलता है, लेकिन अवैध खनन के चलते इससे ढाई गुना पत्थर (करीब 8 से 9 लाख घन मीटर) निकाला गया है. सरकार को इस पत्थर से मुश्किल से 12 करोड़ रु. बतौर रायल्टी के रूप में मिलते हैं. ग्वालियर के पास घाटीगांव वन क्षेत्र में भी 4,000 से ज्यादा ऐसे पिट्स पाए गए हैं, जिनसे अवैध खनन हुआ है. खनन माफिया की गतिविधियों के चलते घाटीगांव का सोन चिरैया अभयारण्य वीरान हो गया.
मुरैना के मनोज पाल सिंह की आरटीआइ पर मिली आधिकारिक जानकारी के मुताबिक जबलपुर जिले की सिहोरा तहसील के गांव झींटी में करीब 51 हेक्टेयर पर खनन करने के लिए कटनी के पेसिफिक एक्सपोर्ट्स और नरसिंह लक्ष्मी माइंस, ग्वालियर के मायाराम सिंह तोमर और एक अन्य निवेदक भारद्वाज को खदानें दी गईं. पैसिफिक एक्सपोर्ट्स को अनुबंध के मुताबिक साल भर में करीब 81,000 टन आयरन, ब्लू डस्ट और लैटेराइट आदि खनिज निकालने थे. लेकिन इसने तो पांच महीने में ही धरती से 12 लाख टन खनिज निचोड़ लिया. इतना ही नहीं, उसने आयरन खनिज विशाखापत्तनम के रास्ते चीन तक में बेचा. बाकियों की खदान पर भी मिलीभगत कर पैसिफिक ने ही खुदाई की. लोकायुक्त के पास इसकी शिकायत हुई है. सरकार जांच दल की रिपोर्ट को दबाकर बैठ गई है. इस रिपोर्ट के बाद किसी भी कंपनी के खिलाफ न तो कोई कार्रवाई की गई और न ही खनन पर रोक लगाई गई. कटनी जिले में विजय राघवगढ़ के कांग्रेसी विधायक संजय पाठक पर भी आरोप लगा है कि सिहोरा इलाके में उनकी खनन कंपनियों ने क्षमता से ज्यादा खनन किया. एक अनुमान के मुताबिक लीज समाप्त होने के बाद भी यहां से करीब 50 लाख टन लौह खनिज निकाला गया, जिसकी कीमत करीब 5,000 करोड़ रुपए बैठती है.
जब लूट इस पैमाने पर चल रही हो तो फिर साजिश और गठजोड़ के आरोपों से कोई तबका बाहर कैसे रह सकता है? दिवंगत नरेंद्र कुमार की पत्नी मधुरानी तेवतिया ने इसी ओर इशारा किया: मध्य प्रदेश की आइएएस और आइपीएस एसोसिएशन हमारे साथ अब तक खड़ी नहीं हुईं. क्या ये संगठन सिर्फ चाय पीने और पार्टी करने तक ही सीमित रह गए हैं. ध्यान रहे कि यह एक पत्नी का भावुक विलाप भर नहीं क्योंकि मधुरानी खुद आइएएस अफसर हैं. नरेंद्र के पिता और उत्तर प्रदेश पुलिस में इंस्पेक्टर केशव देव भी इसी में जोड़ते हैं, आइपीएस अफसर का काम सड़क पर जाकर अवैध कामों को रोकना नहीं होता. थाना प्रभारी उस समय कहां थे? पूरे मामले में मध्य प्रदेश पुलिस का रवैया सहयोग का नहीं है. साजिश साफ नजर आती है.'' देव कहते हैं कि मरने से एक दिन पहले भी उनके बेटे ने राजनैतिक दबाव की बात कही थी.
इस मोर्चे पर कुछ ठोस हो, न हो, सियासत जरूर जमकर हो रही है. मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर माफिया से सांठगांठ का आरोप लगाते हैं. नरेंद्र की हत्या की सीबीआइ जांच के अपनी सरकार के फैसले का जिक्र करते हुए चौहान कहते हैं, बहन मधुरानी के साथ मेरी पूरी संवेदना है. जहां तक अवैध खनन का सवाल है तो सरकार पहले ही इस पर सख्ती से कार्रवार्ई कर रही है. राज्य सरकार ने मुरैना जिले में जरूर अवैध खनन रोकने के लिए विशेष सशस्त्र बल (एसएएफ) की तीन कंपनियां और करीब तीन सौ जवान भेज दिए हैं. दरअसल मुख्यमंत्री को यह सफाई इसलिए देनी पड़ी क्योंकि राज्य की खदानों पर मुख्यमंत्री सचिवालय का सीधा नियंत्रण है और सचिवालय पर आरोप लग रहे हैं.
विधानसभा में विपक्ष के नेता अजय सिंह मुख्यमंत्री के रिश्तेदारों और खनिज सचिव मिश्र पर सवाल उठाते हैं, मिश्र चार साल से इस पद पर हैं और उनके प्रभाव के कारण ही खनिज माफिया के खिलाफ किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं हो पा रही है. सिंह चाहते हैं कि हत्या के साथ अवैध खनन की भी सीबीआइ जांच करवाई जाए. मिश्र हालांकि अपने ऊपर लगे आरोपों को राजनैतिक बताते हुए प्रतिक्रिया देने से इनकार करते हैं. दरअसल माइनिंग का मतलब ही लोग कालिख से भरा काम समझते हैं. अवैध खनन रोकने के लिए लगातार कार्रवाई हो रही है. चाहे वह सिहोरा का मामला हो या चंबल अंचल में पत्थर का खनन.
दरअसल, मध्य प्रदेश के सभी पचास जिलों में अवैध खनन हो रहा है. शहडोल और मालवा अंचल भी अवैध खनन से अछूता नहीं है. असल में खनन माफिया की दबंगई अभी पुलिस और प्रशासन पर भारी पड़ रही है. राजनेता बचे हुए हैं. लेकिन सब कुछ इसी तरह चलता रहा तो पहिया पूरा घूमते देर नहीं लगेगी. जिस दिन राजनेता शिकार होने लगे. तब क्या होगा?
सरकार दावा कर रही है कि वह खनन माफिया के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई करेगी और अवैध खनन के खेल पर रोक लगाएगी, लेकिन सरकार के दावे पर यकीन करना कठिन है। इसलिए कि खनन माफिया के खिलाफ कार्रवाई की मांग लंबे अरसे से की जा रही है, लेकिन सरकार हाथ पर हाथ धरी बैठी है। इसी का दुष्परिणाम है कि आज खनन माफिया के हौसले बुलंद हैं और ईमानदार लोग मारे जा रहे हैं, लेकिन त्रासदी का यह खेल मध्य प्रदेश तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अन्य राज्यों में भी अवैध खनन का काला कारोबार जारी है और संबंधित राज्य सरकारों ने मौन धारण किया हुआ है। राजनीतिक संरक्षण दरअसल, अवैध खनन के इस खेल में वही लोग शामिल हैं, जिनके पांव सत्ता के गलियारे तक जाते हैं। अमूमन अवैध खनन के खेल में सत्ता से जुड़े मंत्रियों, सांसदों और विधायकों का नाम सुना जाता है। कर्नाटक में रेड्डी बंधुओं की कारस्तानी जगजाहिर है। कर्नाटक सरकार पर उन्हें संरक्षण देने का आरोप भी लगता रहा है। मतलब साफ है, अवैध खनन से जुड़े माफियाओं को न केवल सत्ता का संरक्षण प्राप्त है, बल्कि सत्ता में उनकी सीधी भागीदारी है। अन्यथा, क्या मजाल कि अवैध खनन से जुड़े माफिया दिन-दहाड़े एक आइपीएस अधिकारी को ट्रैक्टर से कुचलकर मार डालते और सरकार शोक व्यक्त करती रह जाती। इस तरह की घटनाएं आए दिन मध्य प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों से सुनने को मिलती रहती हैं। खनन माफिया द्वारा सरकारी मुलाजिमों, आमजन और आरटीआइ कार्यकर्ताओं की हत्या आम बात हो गई है। अभी पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में पहाड़ धंसने से दर्जनों लोगों की जानें चली गई। इस घटना के लिए भी कसूरवार खनन माफिया ही बताए जा रहे हैं। सोनभद्र की यह घटना भी सत्ता पोषित भ्रष्टाचार का ही नतीजा है। हजारों एकड़ सुरक्षित वन भूमि को दुस्साहसिक ढंग से उत्तर प्रदेश सरकार की भूमि घोषित कर उसे मनचाहे पट्टेदारों को अलॉट कर दिया गया है और उस पर अवैध खनन जोरों पर है। दुर्भाग्य यह है कि दर्जनों लोगों के मारे जाने के बाद अब भी खनन का खेल जारी है। हाल ही में कर्नाटक में एक खनन माफिया के समर्थकों ने पत्रकारों पर हमला बोल दिया। दरअसल, ये हमले उन लोगों द्वारा किए और कराए जा रहे हैं, जो भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हुए हैं। वे नहीं चाहते कि प्रशासन, आमजन, मीडिया या आरटीआइ कार्यकर्ता उनकी काली करतूतों पर से पर्दा हटाएं। व्यवस्था को अराजकता में बदल चुके इन लोगों के लिए सरकारी मुलाजिम और आरटीआइ कार्यकर्ता राह के रोड़े नजर आते हैं। वे उन्हें रास्ते से हटाने के लिए हत्या तक पर उतारू हैं। सच तो यह है कि देश में भ्रष्ट नौकरशाहों, राजनेताओं और स्थानीय स्तर के भ्रष्ट कर्मचारियों, बिल्डरों, भू-खनन माफियाओं का एक ऐसा नेटवर्क तैयार हो गया है, जिसका मकसद अवैध तरीके से अकूत संपदा इक_ा करना है। दुर्भाग्य यह है कि सरकार उनके तंत्र को तोडऩे में नाकाम साबित हो रही है। जब तक इन भ्रष्टमंडलियों को छिन्न-भिन्न नहीं किया जाएगा, खनन माफिया और अराजक किस्म के धंधों से जुड़े लोग सरकारी मुलाजिमों और आरटीआइ कार्यकर्ताओं की हत्या करते रहेंगे। दुर्भाग्य यह है कि खनन माफिया के खिलाफ जो सरकारी अधिकारी-कर्मचारी अभियान छेड़े हुए हैं, उन्हें सरकार सुरक्षा दे पाने में भी असमर्थ है। लिहाजा, उन्हें अपनी जान गंवानी पड़ रही है। लूट तंत्र के शिकार हुए कई जांबाज याद होगा, महाराष्ट्र में मालेगांव के अपर जिलाधिकारी यशवंत सोनवाने को तेल माफिया ने दिनदहाड़े जिंदा जला दिया था। जब उन्होंने तेल के काले धंधे से जुड़े लोगों को रंगे हाथ पकडऩा चाहा तो मौके पर ही तेल माफिया के गुर्गो ने उन्हें जलाकर मार डाला। राष्ट्रीय राजमार्ग अथॉरिटी (एनएचएआइ) के परियोजना निदेशक सत्येंद्र दुबे की बिहार में गया के निकट गोली मारकर हत्या कर दी गई। सत्येंद्र दुबे अपनी ईमानदारी के लिए विख्यात थे। उन्होंने एनएचएआइ में बरती जा रही अनियमितताओं के संबंध में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को पत्र लिखा था। इसी तरह इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन के मार्केटिंग मैनेजर शणमुगम मंजूनाथ को उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में गोली मारकर खत्म कर दिया गया। शणमुगम ने तेल ईधन में मिलावट करने वाले तेल माफिया का पर्दाफाश किया था। इसी तर्ज पर देश में आरटीआइ कार्यकर्ताओं की भी हत्या की जा रही है। आरटीआइ कार्यकर्ता भी निशाने पर महज एक साल के दौरान ही एक दर्जन से अधिक आरटीआइ कार्यकर्ताओं की जानें ली जा चुकी हैं। अहमदाबाद के आरटीआइ कार्यकर्ता अमित जेठवा की इसलिए हत्या कर दी गई कि उन्होंने गीर के जंगलों में अवैध खनन का पर्दाफाश किया था। कई रसूखदार लोगों का चेहरा सामने आना तय था, लेकिन उससे पहले ही जेठवा की जान ले ली गई। हत्यारों ने गुजरात हाईकोर्ट के सामने ही उन्हें गोली मार दी। महाराष्ट्र के दत्ता पाटिल आरटीआइ का इस्तेमाल कर भ्रष्टाचार के कई मामले उजागर किए थे। उनकी कोशिश की बदौलत ही एक भ्रष्ट पुलिस उपाधीक्षक और एक वरिष्ठ पुलिस इंस्पेक्टर को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा था। उनकी पहल पर ही नगर निगम के अफसरों के खिलाफ कार्रवाई शुरू हुई थी, लेकिन सच और ईमानदारी की लड़ाई लडऩे की कीमत उन्हें भी जान देकर चुकानी पड़ी। इसी तरह महाराष्ट्र के आरटीआइ कार्यकर्ता वि_ल गीते, अरुण सावंत तथा आंध्र प्रदेश के सोला रंगाराव और बिहार के शशिधर मिश्रा को अपनी जान गंवानी पड़ी। जम्मू-कश्मीर के मुजफ्फर बट, मुंबई के अशोक कुमार शिंदे, अभय पाटिल तथा पर्यावरणवादी सुमेर अब्दुलाली पर भी जानलेवा हमला किया गया। देश के पहले केंद्रीय सूचना आयुक्त रह चुके वजाहत हबीबुल्ला की मानें तो कार्यकर्ताओं पर हो रहे हमले यह पुख्ता करते हैं कि आरटीआइ एक्ट देश में प्रभावी रूप ले रहा है, लेकिन क्या यह दिल दहलाने वाली बात नहीं है कि इसकी कीमत उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ रही है? आज मौंजू सवाल यह है कि सरकारी मुलाजिमों और आरटीआइ कार्यकर्ताओं पर होने वाले हमले कब बंद होंगे? सरकार उन्हें सुरक्षा कब मुहैया कराएगी? सच तो यह है कि सरकार की लापरवाही से ही ईमानदार अधिकारी और आरटीआइ कार्यकर्ताओं की जान सांसत में है। आज जरूरत इस बात की है कि केंद्र और राज्य सरकारें अवैध खनन रोकने के लिए सख्त कानून बनाएं और उस पर अमल भी करें। अन्यथा, खनन माफिया पर अंकुश लगाना कठिन हो जाएगा और ईमानदार लोगों की जान जाती रहेगी।
युवा और तेजतरार्र आइपीएस अधिकारी नरेंद्र कुमार की निर्मम हत्या ने यह साबित कर दिया है कि इस देश में ईमानदार अधिकारियों के लिए काम कर पाना बेहद मुश्किल हो गया है। इसके साथ ही भ्रष्ट और बेईमान लोगों के लिए अपना काला धंधा चलाना कितना आसान है। यह पहली घटना नहीं है, जब किसी ईमानदार पुलिस अधिकारी ने फर्ज की खातिर अपनी जान की बाजी लगाई है। आइपीएस नरेंद्र कुमार की चिता की आग अभी ठंडी भी नहीं हुई थी कि मध्य प्रदेश के पन्ना जिले में खनन माफिया ने वहां तैनात एक एसडीएम और एसडीपीओ पर जानलेवा हमला कर दिया। राज्य में हो रही ऐसी घटनाएं शिवराज सिंह चौहान सरकार की नाकामी जाहिर करने के लिए काफी है। फर्ज की राह में शहीद होने वाले ऐसे ईमानदार और निडर अधिकारियों की फेहरिस्त काफी लंबी है। वर्षो पहले बिहार के सहरसा-खगडिय़ा जिले के दियारा में दस्यु गिरोह का मुकाबला करते हुए डीएसपी सतपाल सिंह ने भी अपनी शहादत दी थी। हालांकि सतपाल सिंह की मौत के बाद यह बात चर्चा में रही कि स्थानीय जिला प्रशासन अगर समय रहते पर्याप्त पुलिस बल मौके पर भेजता तो शायद उनकी जान बचाई जा सकती थी। इसके बाद बिहार के बहुचर्चित गोपालगंज के डीएम जी. कृष्णैया हत्याकांड का मामला सामने आया, जिसके नामजद अभियुक्त बाहुबली नेता आनंद मोहन फिलहाल उम्रकैद की सजा काट रहे हैं। ऐसी ही एक और घटना झारखंड के चतरा जिले में कुछ साल पहले हुई थी, जिसमें वन माफिया और नक्सलियों ने मिलकर एक डीएफओ की निर्मम हत्या कर दी। ईमानदार पुलिस अधिकारियों की हत्या का सिलसिला यही नहीं थमा, बल्कि साल दर साल बीतने पर इसमें और इजाफा हुआ। पिछले साल महाराष्ट्र में तेल माफिया के खिलाफ कार्रवाई करने पर एक एसडीएम को जिंदा आग के हवाले कर दिया गया। दिनदहाड़े ऐसी घटनाएं होने के बावजूद संबंधित राज्य सरकारें उन लोगों पर कार्रवाई नहीं करती। सरकार की इस अनदेखी की सबसे बड़ी वजह कुछ और नहीं, बल्कि कहीं न कहीं इस काले धंधे में उनके लोगों और नाते-रिश्तेदारों की भागीदारी है। बीते कुछ वर्षो से देश के कई हिस्सों में अवैध खनन का कारोबार बेरोक-टोक चल रहा है। हिंदुस्तान के लगभग उन सभी राज्यों में जहां पहाड़ मौजूद हैं, वहां खनन माफिया सक्रिय हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि धन की इस धार में राजनीतिक दलों के नेता पूरी तरह शामिल हैं या इस तरह कहें कि राज्य सरकारें ऐसे खनन माफियाओं को पूरी तरह अपना संरक्षण दे रही है। कर्नाटक, गोवा में भाजपा और कांग्रेस की सरकार इस मामले में पूरी तरह बेनकाब भी हो चुकी है। आइपीएस अधिकारी नरेंद्र कुमार की जिस बेरहमी के साथ हत्या की गई, उससे कई सवाल पैदा हो रहे हैं। जिस मुरैना में उनकी हत्या हुई, उस जिले में अवैध खनन का धंधा कई वर्षो से चल रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कथित सुशासन में यह धंधा थमने की बजाय बढ़ता ही चला गया। बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि जिस संसद भवन को देखकर हम उसकी वास्तुकला पर खुशी से इठलाते हैं, असल में उसे बनाने की प्रेरणा मुरैना स्थित मितावली चौंसठ योगिनी मंदिर से ली गई थी। यह मंदिर आठवीं सदी में बनाया गया था। इसे देखने के बाद हर कोई इसे नई दिल्ली स्थित संसद भवन का प्रतिरूप कहे बिना नहीं रह सकता। हालांकि ऊंची पहाडिय़ों पर स्थित इस ऐतिहासिक धरोहर का वजूद अवैध खनन के चलते खतरे में पड़ गया है। इस अवैध खनन में कोई और नहीं, बल्कि मध्य प्रदेश में सरकार चला रही भाजपा के कई माननीय विधायक और नेता शामिल हैं। बोली और गोली के लिए मशहूर मुरैना में इन दिनों अवैध खनन का धंधा भ्रष्ट नेताओं और उनके गुर्गो के लिए बेहद फायदेमंद साबित हो रहा है। एक तरफ वन एवं पर्यावरण मंत्रालय व प्राकृतिक संसाधन विभाग जंगल और पहाड़ों के रक्षार्थ नित्य नए उपाय तलाशने में जुटा है, वहीं संबंधित राज्य सरकारों में मौजूद लोग बिना किसी भय के अपना गोरखधंधा चला रहे हैं। भारत में जो हालात पैदा हो रहे हैं, उसके प्रति संसद और विधानसभा में बैठे लोगों को आज नहीं तो कल सोचना ही पड़ेगा, क्योंकि भ्रष्टाचार से बेहाल और एक अदद रोटी के लिए जद्दोजहद करने वाले करोड़ों लोग आने वाले दिनों में निश्चित तौर पर अपने जन प्रतिनिधियों का गला काटेंगे। आइपीएस नरेंद्र कुमार और अभियंता सत्येंद्र दुबे जैसे ईमानदार अफसरों की कुर्बानी कभी बेकार नहीं जाने वाली। ऐसी घटना उन भ्रष्ट अधिकारियों के लिए भी एक सबक है, जो अपने ईमान का सौदा कर रहे हैं।

गुरुवार, 5 अप्रैल 2012

आदित्य उपाध्याय ने ठोका 112 रन




मनीपाल की विशाल जीत
भोपाल लक्ष्मीपति इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलाजी द्वारा आयोजित प्रथम लक्ष्मीपति टी-20 इंटर स्कूल क्रिकेट टूर्नामेंट में मनीपाल एकेडमी ने आरडी कान्वेंट को 177 रनों से पराजित किया। टॉस जीतकर मनीपाल एकेडमी ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 256 रनों का विशाल स्कोर खड़ा किया। आदित्य उपाध्याय ने 112 और सूरज ने 65 रनों का महत्वपूर्ण योगदान दिया। आरडी कान्वेंट के अजीत और रिची ने 1-1 विकेट लिए। जवाब में आरडी कान्वेंट की टीम 12 ओवरों में 80 रन बनाकर आल आउट हो गई। दीपक ने 12 न और मनप्रीत ने 11 रन बनाए। मनीपाल एकेडमी के आकाश ने 5 और सूरज ने 2 विकेट लिए। लक्ष्मीपति इंस्टीट्यूट के मैनेजिंग डायरेक्टर इंजीनियर शिव कुमार बंसल तथा सेंट जॉर्ज स्कूल के संस्थापक बी. थॉमस ने आदित्य उपाध्याय को मैन ऑफ द मैच का खिताब दिया।

मंगलवार, 3 अप्रैल 2012


भेड़ाघाट में नर्मदा का सौंदर्य देखने उमड़ती है भीड़

मध्य प्रदेश में जबलपुर शहर के बगल में नर्मदा नदी के गोद में बसा एक जगह जहाँ घुमती सड़कें उचाइयों की तरफ बढ रही थी,पेड़ों से पटी झुरमुठ के पिछे से झांकती झाड़ियाँ,जो उस जगह के लिए किसी नवविवाहिता के द्वारा प्रयुक्त श्रिंगार प्रशाधन से कम न थी.
चारों तरफ फैली बड़ी-बड़ी चट्टानें खुद में अटल एवं आभायुक्त चरित्र को समेटे हुए थी.उन चरित्रों को उभारनें का कार्य वहाँ के शिल्पकार कर रहे थे,जो उनकी जीविका का साधन एवं आगन्तुकों के आकर्षण के केन्द्र भी थे.कलाक्रितियाँ ऐसी जो बरबस ही आगन्तुकों की भीड़ को अपनी ओर खींच रही थी.
आगे बढने पर नीचे उतरते पथरीले -संकड़े रास्ते,जहाँ सुरज की किरणें चारों तरफ व्याप्त संगमरमर के वास्तविक चरित्र के प्रदर्शन में अपना योगदान दे रही थी.नदजल की कलकल ध्वनी जो उँचाई से गिरने पर कर्णप्रिय संगित के रुप में हमारे कानों तक पहुँच रही थी तथा जल की बुंदे उँचाई से गिरने पर फुहरों में परिवर्तित हो कपासी प्रतिरुप प्रदर्शित कर रही थी.
नर्मदा एवं बैण-गंगा की सम्मिलित तेज धारा एवं गहरी खाई,जो हमारे दिल की धड़कनों को तेज कर रही थी और अनजान खतरे से आगाह भी.कुल मिलाकर एक ऐसा मनोरम जगह जो हमारे मन को आह्लादित एवं नयनों को त्रिप्ती की परकाष्ठा तक ले जा रहा था.
हम धुआंधार के सामने खड़े हैं। सामने यानी रेलिंग पर। नर्मदा यहां कोई 10-12 फीट नीचे खड्ड में गिरती है और फुहारों के साथ ऊपर उछलती है, मचलती है। गेंद की तरह टप्पा खाकर फब्वारों साथ ऊपर कूदती है । यहां नर्मदा का मनोरम सौंदर्य अपने चरम पर होता है। घंटों निहारते रहो, फिर भी मन न भरे। जल प्रपात का ऐसा नजारा शायद ही कहीं और देखने को मिले।
धुआंधार के सामने दोनों ओर कतारबद्ध संगमरमर की चटानें हैं, जो नर्मदा का रास्ता रोकती हैं। इन मार्बल राक्स की बनावट ऐसी है कि लगता है इन्हें किसी धारदार छेनी से तराशा गया हो। चट्टानों की बीच नर्मदा सिकुड़ती जाती है पर वह अपने वेग में बलखाती, इठलाती और अठखेलियां करती आगे बढ़ती जाती है। मानो कह रही हो "मुझे कोई नहीं रोक सकता।
यहां ’रोपवे’ भी हैं लेकिन मेरे बेटे ने इस पर यह कहकर जाने से मना कर दिया कि यह विकलांगों के लिए है। हम तो पैदल चलकर ही जाएंगे। यानी यह जेब ढीली करने का ही साधन है।
संझा आरती का समय है। भक्तजन नर्मदा मैया की आरती कर रहे हैं। दीया जलाकर लोग आरती कर रहे हैं और कुछ लोग नर्मदा में दीप प्रवाह कर रहे हैं। कर्तल ध्वनि के साथ आरती में बहुत से लोग शामिल हो गए हैं। आरती के पशचात प्रसाद वितरण हो रहा है।
कुछ परिक्रमावासी ’हर-हर नर्बदे’ का जयकारा कर रहे हैं। पहले लोग नर्मदा के एक छोर से दूसरे छोर तक और वापस उसी स्थान तक पैदल ही परिक्रमा करते थे। अब भी कुछ लोग करते हैं। लेकिन अब बस या ट्रेन से भी परिक्रमा करने लगे हैं।
जीवनदायिनी नर्मदा की महिमा युगों-युगों से लोग गाते आ रहे हैं। लेकिन अब नर्मदा संकट में है। बरसों से नर्मदा बचाओ की लड़ाई लड़ी जा रही है। इस पर बड़े-बड़े बांध बनाए जा रहे हैं। मैं वापस लौटते समय सोच रहा था कि क्या इस जीवनदायिनी मनोरम सौंदर्य की नदी को बचाया नहीं जा सकता?