मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

3 साल में 1000 करोड़ की काली कमाई






भ्रष्टाचार के खिलाफ राष्ट्रीय परिदृश्य में सार्वजनिक मंचों पर भाजपा भले अण्णा हजारे के सुर में सुर मिलाती नजर आए लेकिन उसके अपने राज्य मध्य प्रदेश में यह लाइलाज नासूर बन चुका है। पार्टी अपने मंत्रियों और पदाधिकारियों को तो लगातार सबक दे रही है कि वे कोटा-परमिट, मकान-दुकान, खदान से दूर रहें पर नौकरशाही की मुश्कें कसना राज्य सरकार के लिए भी बेहद मुश्किल भरा साबित हो रहा है। भ्रष्टाचार का नजारा यह है कि भ्रष्ट अरबपति अफसरों और करोड़पति क्लर्को, बाबुओं, चपरासियों में एक-दूसरे को पछाडऩे की होड़-सी चल रही है।
मध्य प्रदेश में आयकर, लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू ने पिछले तीन सालों में करीब तीन सौ से ज्यादा जगह छापे मारे और करीब एक हजार करोड़ रुपये की काली कमाई उजागर की है। आयकर विभाग ने तीन सालों में एक दर्जन से ज्यादा अफसरों के यहां छापा मारकर करीब 700 करोड़ रुपये से ज्यादा की अघोषित संपत्ति का खुलासा किया है। आयकर वसूली के मामले में देश में मध्य प्रदेश दूसरे स्थान पर है जबकि राजस्थान पहले स्थान पर है। मध्य प्रदेश को 9 सौ करोड़ का लक्ष्य दिया गया था।
भ्रष्टाचार का नजारा यह है कि भ्रष्ट अरबपति अफसरों और करोड़पति क्लर्को, बाबुओं, चपरासियों में एक-दूसरे को पछाडऩे की होड़-सी चल रही है। लोकायुक्त संगठन द्वारा पिछले ढाई वर्ष में प्रदेश में 203 रिश्वतखोर अधिकारी-कर्मचारियों को पकड़ा। 81 के यहाँ छापामार कार्रवाई कर 103 करोड़़ की संपत्ति जब्त की है।
इन सरकारी आंकड़ों से मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है, जिसे लेकर विपक्ष ने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी पर हमले तेज कर दिये हैं। सूबे में लोकायुक्त पुलिस और आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) ने भ्रष्टाचार की शिकायतों के मद्देनजर पिछले दो साल में 67 सरकारी कारिंदों के ठिकानों पर छापे मारकर करीब 348 करोड़ रुपये की काली कमाई जब्त की।
इन कारिंदों में चपरासी, क्लर्क, अकाउन्टेन्ट और पटवारी से लेकर भारतीय प्रशासनिक सेवा के बड़े अफसर शामिल हैं। प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इंदौर के क्षेत्र क्रमांक एक के भाजपा विधायक सुदर्शन गुप्ता के विधानसभा में उठाये गये सवाल पर यह जानकारी दी थी। गुप्ता ने मुख्यमंत्री के हालिया जवाब के हवाले से बताया कि प्रदेश में पिछले दो साल के दौरान लोकायुक्त पुलिस ने 52 सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के ठिकानों पर छापे मारे।
वहीं ईओडब्ल्यू ने 15 अधिकारियों और कर्मचारियों के ठिकानों पर छापेमारी की। उन्होंने सरकारी आंकड़ों के आधार पर बताया कि दोनों जांच एजेंसियों के छापों में इन 67 सरकारी कारिंदों के ठिकानों से करीब 348 करोड़ रुपये की रकम जब्त की गयी। भाजपा विधायक गुप्ता ने पूछा कि प्रदेश सरकार भ्रष्टाचार के आरोप झेल रहे इन कारिंदों के खिलाफ क्या कार्रवाई कर रही है तो मुख्यमंत्री ने बताया कि शासन के निर्देश हैं कि लोकायुक्त संगठन और ईओडब्ल्यू के छापों के बाद संबंधित लोक सेवक को मैदानी तैनाती (फील्ड पोस्टिंग) से हटाकर कहीं और स्थानांतरित किया जाये या महत्वपूर्ण दायित्वों से मुक्त किया जाये।
उधर, प्रदेश के प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस की मानें तो लोकायुक्त पुलिस और ईओडब्ल्यू की कार्रवाई से बड़े मगरमच्छ अब भी बचे हुए हैं। प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता नरेंद्र सलूजा ने कहा, सूबे में क्लर्क और पटवारी जैसे अदने कर्मचारियों के ठिकानों पर इन जांच एजेंसियों के छापों में करोड़ों रुपये की मिल्कियत उजागर हो रही है। इससे बड़े नौकरशाहों और मंत्रियों की काली कमाई का अंदाजा लगाया जा सकता है।Ó उन्होंने दावा किया, 'वर्ष 2013 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश की भाजपा सरकार के इशारे पर छोटे कर्मचारियों के ठिकानों पर लगातार छापेमारी की जा रही है, ताकि बड़े अधिकारियों में भय का माहौल बनाया जा सके और उनसे मोटा चुनावी चंदा वसूल किया जा सके।
प्रदेश के लोकायुक्त पीपी नावलेकर कहते हैं कि लोकायुक्त संगठन द्वारा पिछले ढाई वर्ष में प्रदेश में 203 रिश्वतखोर अधिकारी-कर्मचारियों को पकड़ा। 81 के यहाँ छापामार कार्रवाई कर 103 करोड़़ की संपत्ति जब्त की है। संगठन की नजरों में कोई भी बड़़ा या छोटा नहीं है। शिकायत मिलने पर सभी श्रेणी के अफसर व कर्मचारियों पर कार्रवाई की जा रही है। प्रदेश में कर्नाटक जैसे मामले सामने नहीं आए हैं।
उन्होंने कहा कि छोटे स्तर के अधिकारियों पर कार्रवाई करने का मतलब यह नहीं है कि प्रथम श्रेणी के अफसरों पर कार्रवाई नहीं होती है। आम आदमी निचले स्तर के अफसर व कर्मचारी द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार से परेशान है। यही शिकायतें भी अधिक आती हैं। प्रारंभिक स्तर पर परीक्षण के बाद ही कार्रवाई की जाती है।
उन्होंने बताया कि मैंने 2009 में कार्यभार संभाला था। तब से लगातार कार्रवाई की जा रही है। जनवरी-2012 तक विभाग ने 203 रिश्वतखोरी व 49 पद के दुरुपयोग के मामले पकड़़े। जबकि 81 अफसरों के यहाँ छापे मारकर 103.7 करोड़़ की संपत्ति जब्त की है।
ईओडब्ल्यू ने पिछले तीन सालों में सौ से ज्यादा अफसरों को अपने घेरे में लिया है। इनके पास से करीब 50 करोड़ रुपये से ज्यादा काली कमाई का खुलासा हुआ।
मध्यप्रदेश गले-गले तक भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है। राज्य के नौकरशाह से लेकर पटवारी तक किसी न किसी रूप में भ्रष्टाचार की परिधि में आकर खड़े हो चुके है। पिछले दिनों उज्जैन नगर निगम के एक चपरासी के घर मिली करोड़ों की संपत्ति और अब मंदसौर के एक सब इंजीनियर के घर बरामद हुए करोड़ों रू. सरकार के इतिहास को बयान कर रहे है।
लूट का यह सिलसिला वर्ष 1998 के बाद से बहुत तेजी से आगे बढ़ा है। सरकारी योजनाओं की सभी कमजोरियों का पहले लाभ उठाकर हर स्तर पर कमीशन खोरी का धंधा तेजी से जारी है। एक अनुमान के अनुसार भ्रष्टाचार की अब तक वसूली गई रकम को यदि सरकार इन अधिकारी, कर्मचारियों से बाहर निकाल दे तो मध्यप्रदेश को अपने विकास कार्यो के लिए आने वाले बीस सालों तक किसी टैक्स की जरूरत नही रहेगी। आम आदमी पर प्रतिदिन लगने वाले टैक्स और सरकारी खजाने में प्रतिदिन पड़ रही डकैती का अनुपात कुछ ऐसा है कि विकास की गतिविधियां सिर्फ कागजों तक सीमित होकर रह गई है।
प्रदेश में केंद्र और राज्य के बजट से अरबों की योजनों और कार्यक्रम चल रहे हैं, विश्वबैंक और डीएफआइडी पोषित योजनाओं ने भी सरकारी विभागों के खजाने भर रखे हैं। तीन सालों में आयकर विभाग उन सभी स्त्रोत और माध्यमों का खुलासा कर चुका है जहां ब्लैक से व्हाइट का खेल चलता है, लिहाजा अब उन स्त्रोतों और माध्यमों को छोड़कर किसी दूसरे तरीके से इसे ठिकाने लगाने के लिए मंथन में यह गठजोड़ जुटा है। यह गठजोड़ अब तक पैसा कमाने के नए-नए तरीकों को खोजने में व्यस्त रहता था लेकिन अब इसे बचाने की जुगत में जुटा हुआ है। आयकर विभाग की आंखों में धूल झोंकने के नए-नए तरीके ईजाद किए जा रहे हैं।
करोड़पति चपरासी और क्लर्को के राज्य में आला अधिकारियों के हाल यह है कि उनके यहां छापा मारने पर पैसा गिनने के लिए मशीनों का इस्तेमाल करना पड़ता है। भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चा खोलने वाली राज्य और केंद्र सरकार की एजेंसियों ने पिछले तीन साल के दौरान करीब एक हजार करोड़ रुपये की काली कमाई उजागर की है। इन विभागों के छापों से यह बात सामने आई है कि सरकारी दफ्तरों का सारा अमला भ्रष्टाचार में डूबा है। अफसरों के पास नगदी और सोना रखने के लिए जगह नहीं है। कोई अपनी काली कमाई बिस्तर में छिपा रहा है तो किसी ने बैंक लॉकर नोटों से भर रखे हैं।
मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार की एक-एक कहानी धीरे-धीरे सामने आने लगी है। राज्य सरकार के सबसे निचले स्तर के कर्मचारियों के पास से करोड़ो रूपये की बरामदगी का सिलसिला जारी है। राज्य के प्रमुख सचिव से लेकर पटवारी तक सरकारी कर्मचारी इन दिनों करोड़पति बन चुके है। अनुमान के अनुसार पिछले दस वर्षो के दौरान मध्यप्रदेश में पचास हजार करोड़ से अधिक की हेराफेरी सरकारी खजाने में की गई है। मध्यप्रदेश को एक सुशासन देने का दावा करने वाली सरकार इस भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने में असफल रही है।
इंदौर में परिवहन विभाग के एक मामूली बाबू रमण धूलधोए के यहां छापा मारने पहुंची ईओडब्लू की टीम की आंखें तब फटी की फटी रह गईं, जब उसे करोड़ों की बेनामी संपत्ति मिली। इंदौर में परिवहन विभाग के एक मामूली बाबू रमण धूलधोए के यहां छापा मारने पहुंची ईओडब्लू की टीम की आंखें तब फटी की फटी रह गईं, जब उसे करोड़ों की बेनामी संपत्ति मिली।
क्लर्क रमण धूलधोए के यहां से 75 करोड़ रुपये की काली कमाई उजागर हुई। इसमें एक किलो सोने के जेवरात, पचास बीघा जमीन पर आलीशान फार्म हाउस समेत कई और मकान और लक्जरी गाडिय़ां शामिल हैं। 15 दिसंबर को मंदसौर के सब इंजीनियर शीतल प्रसाद पांडे के विकानों पर मारे गए लोकायुक्त के छापे में बारह करोड़ की काली कमाई सामने आई। उज्जैन नगर निगम का चपरासी नरेन्द्र देशमुख पंद्रह करोड़ रुपये का मालिक निकला। देशमुख भले ही चपरासी के पद पर कार्यरत हो, लेकिन उसने जमीन में करोड़ों रुपये निवेश कर रखे थे। वह जलगांव में एक होटल में बराबर का भागीदार भी पाया गया। इसके अलावा 12 नवंबर को हरदा के सब-रजिस्ट्रार माखनलाल पटेल के इंदौर के तीन ठिकानों पर मारे गए छापे में तीन करोड़ की काली कमाई का खुलासा हुआ।
उज्जैन में परिवहन विभाग के एक इंस्पेक्टर सेवाराम खाडेगर के यहां दस करोड़ की संपत्ति का पाया जाना भी पुलिस टीम को चकरा देने वाला था। परिवहन ऐसा कमाऊ विभाग है जिसमें सिपाही तक की नियुक्ति मुख्यमंत्री सचिवालय की मंजूरी के बगैर नामुमकिन होती है। भ्रष्टाचार की यह कथा अंतहीन है। पिछली 31 दिसंबर को आयकर महकमें ने अनुपातहीन संपत्ति के मामले में कुछ आइएएस अफसरों और कॉलेज चलाने वाले शिक्षा संस्थानों को नौ सौ करोड़ रुपये टैक्स वसूली के नोटिस जारी किए हैं।
लोकायुक्त में लंबित प्रकरण मुख्यमंत्री, राज्य के मंत्रीगण, विधायक सहित पटवारी स्तर तक के अधिकारियों एवं कर्मचारियों को अपने गिरफ्त में ले रहे है। इसके बाद भी सरकार का दावा है कि भ्रष्टाचार से दूर स्वच्छ प्रशासन देने के उसके प्रयास कामयाब रहे है। एक अनुमान के अनुसार भ्रष्टाचार की अब तक वसूली गई रकम को यदि सरकार इन चोर अधिकारी, कर्मचारियों से बाहर निकाल दे तो मध्यप्रदेश को अपने विकास कार्यो के लिए आने वाले बीस सालों तक किसी टैक्स की जरूरत नही रहेगी। आम आदमी पर प्रतिदिन लगने वाले टैक्स और सरकारी खजाने में प्रतिदिन पड़ रही डकैती का अनुपात कुछ ऐसा है कि विकास की गतिविधियां सिर्फ कागजों तक सीमित होकर रह गई है।
करोड़पति चपरासी और क्लर्को के राज्य में आला अधिकारियों के हाल यह है कि उनके यहां छापा मारने पर पैसा गिनने के लिए मशीनों का इस्तेमाल करना पड़ता है। भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चा खोलने वाली राज्य और केंद्र सरकार की एजेंसियों ने पिछले तीन साल के दौरान करीब एक हजार करोड़ रुपये की काली कमाई उजागर की है। इन विभागों के छापों से यह बात सामने आई है कि सरकारी दफ्तरों का सारा अमला भ्रष्टाचार में डूबा है। अफसरों के पास नगदी और सोना रखने के लिए जगह नहीं है। कोई अपनी काली कमाई बिस्तर में छिपा रहा है तो किसी ने बैंक लॉकर नोटों से भर रखे हैं।
तत्कालीन गृह सचिव डॉ. राजेश राजौरा के यहां 30 मई 2008 को छापा पड़ा। साढ़े पांच करोड़ टैक्स की काली कमाई उजागर हुई। डेढ़ करोड़ रुपये से अधिक की टैक्स डिमांड निकाली। तत्कालीन स्वास्थ्य संचालक, योगीराज शर्मा और कुछ कर्मचारियों के यहां 8 सितंबर 2007 को छापे पड़े। इसमें करीब 60 करोड़ रुपये की अघोषित आय का खुलासा हुआ। इन्हें साढ़े 12 करोड़ रुपये से अधिक का आयकर चुकाना होगा। नगर निगम भोपाल के तत्कालीन अपर आयुक्त केके सिंह चौहान के यहां 5 अप्रैल 2007 छापा पड़ा। 6 करोड़ काली कमाई उजागर। आयकर विभाग ने दो करोड़ से अधिक टैक्स डिमांड निकाली है।
आयकर, लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू ने पिछले तीन सालों में करीब ढाई सौ से ज्यादा जगह छापे मारे और करीब एक हजार करोड़ रुपये की काली कमाई उजागर की। अकेले लोकायुक्त संगवन ने पिछले दो साल में प्रदेश में 63 सरकारी मुलाजिमों पर शिकंजा कसा और इनसे करीब सौ करोड़ रुपये की काली कमाई उजागर हुई। पिछले साल 25 अधिकारी-कर्मचारियों के पास 24 करोड़ रुपये की बेहिसाब संपत्ति मिली। मौजूदा वर्ष में 38 सरकारी मुलाजिमों के पास 75 करोड़ से अधिक यानी औसत दो करोड़ रुपये की बेहिसाब संपत्ति मिली। ईओडब्ल्यू ने पिछले तीन सालों में सौ से ज्यादा अफसरों को अपने घेरे में लिया है। इनके पास से करीब 50 करोड़ रुपये से ज्यादा काली कमाई का खुलासा हुआ। आयकर विभाग ने तीन सालों में एक दर्जन से ज्यादा अफसरों के यहां छापा मारकर करीब 700 करोड़ रुपये से ज्यादा की अघोषित संपत्ति का खुलासा किया है। सबसे बड़ा मामला प्रमुख सचिव स्तर अरविंद जोशी और उनकी पत्नी टीनू जोशी का है। इनके बंगले में तीन करोड़ 11 लाख रुपये नगद मिले थे।
आयकर विभाग ने निलंबित आइएएस अधिकारी अरविंद-टीनू जोशी, उनके पिता रिटायर्ड डीजीपी एचएम जोशी और अन्य परिजनों व संबंधितों को लगभग 200 करोड़ रुपये की अघोषित आय पर टैक्स चुकाने का नोटिस इसी 31 दिसंबर को जारी किया है। इसमें जोशी दंपती के करीबी एसपी कोहली भी शामिल हैं। इस आय पर 30 प्रतिशत के हिसाब से करीब 60 करोड़ रुपये का टैक्स चुकाना होगा। अकेले जोशी दंपती की आय 150 करोड़ रुपये आंकी गई है। उन्हें करीब 45 करोड़ रुपये टैक्स चुकाना होगा। विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि जोशी परिवार का असेसमेंट ऑर्डर एक हजार से भी अधिक पन्नों का है। छापे के बाद तैयार की गई एप्रेजल रिपोर्ट में इन्वेस्टिगेशन विंग ने पूरे समूह की अघोषित संपत्ति की मौजूदा कीमत करीब 360 करोड़ रुपये आंकी थी। इसमें अघोषित आय लगभग 180 करोड़ रुपये बताई गई थी। असेसमेंट विंग ने अपनी पड़ताल के बाद इसमें इजाफा कर इसे 200 करोड़ रुपये पर पहुंचा दिया।
मनरेगा स्कीम में गड़बड़ी को लेकर एक दर्जन दागी कलेक्टर भी अभी तक अछूते हैं। जांच रिपोर्ट इनके खिलाफ होने के बावजूद इन्हें बेहतर पोस्टिंग मिल रही है। हाल ही में हाइकोर्ट में एक दागी कलेक्टर के मामले में फौरन कार्रवाई के निर्देश सरकार को दिए हैं। टीकमगढ़ कलेक्टर केपी राही को नरेगा में भ्रष्टाचार के आरोप में निलंबित किया गया है। भिंड एवं टीकमगढ़ कलेक्टरों पर एक जैसे आरोप थे, लेकिन भिंड कलेक्टर सुहैल अली को बचा लिया गया। बाद में बहाली कर दी गई। आयकर विभाग की रिपोर्ट मिलने के बाद आइएएस अधिकारी राजेश राजौरा को निलंबित किया। इनकी बहाली हो चुकी है। लोकायुक्त 1 जनवरी 2004 के बाद अभी तक 17 आइएएस अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप में कोर्ट में चालान पेश कर चुका है। यह अभी तक कि सबसे बड़ी संख्या है। लोकायुक्त प्रदेश के लगभग 36 आइएएस अधिकारियों के खिलाफ जांच कर रहा है। ईओडब्ल्यू प्रदेश के करीब 25 आइएएस अधिकारियों की जांच कर रहा है।
मिली भगत की इस राजनीति का दुष्परिणाम राज्य भोग रहा है। समूची शासन व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लगाने वाले सब इंजीनियर और चपरासी सहित राज्य के बड़े अधिकारी अंधी कमाई को व्यय करने के लिए चोरी-छिपे ही सही माध्यमों की खोज कर रहे है। इसी काली कमाई से होने वाले कार्यों को राज्य सरकार विकास के कार्यों की संज्ञा ले रही है। दूसरी ओर यह सत्य है कि मध्यप्रदेश विकास की गतिविधियों से दूर छोटे और बड़े सभी स्तर के प्रभावशील लोगों की अवैध आमदनी को बार-बार देखकर अपने विकास की कल्पना कर रहा है।?
'दूसरी पारी के करीब साढ़े तीन साल गुजार चुकी शिवराज सिंह सरकार जैसे-जैसे चुनाव के मुहाने पर पहुंच रही है, लोगों को उसके वायदे याद आने लगे हैं। एक तरफ भ्रष्ट नौकरशाही और लापरवाह बदजुबान मंत्री राज्य सरकार के लिए परेशानी का सबब बन गए हैं तब दूसरी और पिछले छ: सालों से किए जा रहे है अधूरे वायदे चुनौती बन चुके हैं। जाहिर है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अग्निपरीक्षा का दौर अब शुरू होने जा रहा है।
पिछले सालों में मध्य प्रदेश में लोकायुक्त व राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो ने छापों के दौरान सात सौ करोड़ रुपये से ज्यादा की अनुपातहीन संपत्ति उजागर की है। भोपाल में आईएएस दंपति अरविंद-टीनू जोशी के यहां आयकर छापे के बाद लोकायुक्त पुलिस ने छापा मारा था।जोशी दंपति के यहां से इनकम टैक्स ने तीन करोड़ रुपये नकद बरामद किए थे। बाद में लोकायुक्त व ईओडब्ल्यू ने इनकम टैक्स से मिली रिपोर्ट के आधार पर जांच शुरू की। अभी तक उनकी करीब ढाई सौ करोड़ रुपये की संपत्ति का पता चल चुका है। इसमें उनके डीमेट अकाउंट, कृषि भूमि, बैंक अकाउंट, फार्म हाउस आदि का पता चला। यह दंपति अभी निलंबित है एवं उनकी विभागीय जांच चल रही है। लोकायुक्त में उनके खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज है। अकेले इंदौर-उज्जैन संभाग की बात करें तो पिछले एक साल में लोकायुक्त व ईओडब्ल्यू के छापे में 270 करोड़ रुपये की संपत्ति का खुलासा हो चुका है। बीत 6 माह में ईओडब्ल्यू व लोकायुक्त की बड़ी कार्रवाई पर नजर डालें तो आंकड़े चौंकाने वाले हैं।
आयकर विभाग की गोपनीय रिपोर्ट के मुताबिक मप्र-छग में पिछले एक साल में सौ कंपनियों के नाम सामने आए हैं जिन्होंने सात हजार करोड़ से अधिक रुपए को ब्लैक मनी से व्हाइट में बदल दिया है। ये कंपनियां बड़े ग्रुप की काली कमाई को कैश में लेकर उन्हें लोन या शेयर कैपिटल के रूप में चेक से लौटा रही हैं। ये आंकड़े असेसमेंट में पकड़े गए हैं। विभागीय अधिकारियों का मानना है कि इनसे कई गुना अधिक मामलों में तो फर्जी कंपनी की पड़ताल ही नहीं हो पाती। यदि किसी रियल इस्टेट ग्रुप को अपनी सौ करोड़ की काली कमाई बिना आयकर चुकाए वैध करनी है तो वे शहर में फायनेंस, इन्वेस्टमेंट,मार्केटिंग के नाम पर चल रहे ग्रुप ऑफ कंपनीज से संपर्क करते हैं। कर्ताधर्ताओं के पास बड़ी संख्या में कागजी कंपनी और उनके बैंक अकाउंट होते हैं। इन कंपनियों में डायरेक्टर ड्रायवर,चौकीदार जैसे लोगों को बनाकर उन्हें लिस्टेड करा लिया जाता है। रियल इस्टेट ग्रुप से सौ करोड़ रुपए कैश में लेकर कई कागजी कंपनियों के माध्यम से उतनी कीमत के कई अकाउंट पेयी चैक रियल इस्टेट ग्रुप को दे दिए जाते है। यह चैक रियल इस्टेट ग्रुप खाते के माध्यम से कैश करा लेता है। बुक्स ऑफ अकाउंट में इसकी इंट्री लोन के रुप में दर्शायी जाती है जिससे उस पर आयकर की देनदारी नहीं होती। कमीशन के रूप में रियल इस्टेट को दो करोड़ रुपए कर्ताधर्ताओं को देने पड़ते है लेकिन उनके आयकर के तीस करोड़ रुपए बच जाते है। अग्रवाल कोल कॉपरेरेशन ने अपनी कमाई में शामिल हिंदुस्तान कॉन्टिनेंटल व ऑप्टीमेट टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज कंपनियों के शेयर केपिटल गेन से इनकम टैक्स में छूट मांगी। विभाग को शक होने पर दोनों कंपनियों को उनके दिए गए पते इंदौर, मंदसौर, मुंबई और जबलपुर में ढूंढा। न तो कंपनी मिली और न ही नोटिस की तामीली हुई। इनकम टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल ने आखिरकार यह माना कि दोनों की कंपनी बोगस है और कोल कॉरपोरेशन ने गलत ढंग से शेयर केपिटल गेन के माध्यम से खुद की ही काली कमाई को वैध करने का प्रयास किया है।
496 भ्रष्ट अधिकारियों पर लोकायुक्त कार्रवाई की तलवार
मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार की एक-एक कहानी धीरे-धीरे सामने आने लगी है। राज्य सरकार के सबसे निचले स्तर के कर्मचारियों के पास से करोड़ो रूपये की बरामदगी का सिलसिला जारी है। राज्य के प्रमुख सचिव से लेकर पटवारी तक सरकारी कर्मचारी इन दिनों करोड़पति बन चुके है। अनुमान के अनुसार पिछले दस वर्षो के दौरान मध्यप्रदेश में पचास हजार करोड़ से अधिक की हेराफेरी सरकारी खजाने में की गई है। मध्यप्रदेश को एक सुशासन देने का दावा करने वाली सरकार इस भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने में असफल रही है।

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