शनिवार, 28 फ़रवरी 2015

फर्जी कागजों पर बांट दिया 7200 करोड़ का लोन!

-प्रदेश में बैंकों की 2207 शाखाएं शक के दायरे में
-सरकारी बैंकों के लोन प्रक्रिया पर सीबीआई की नजर
-सीबीआई कर रही सरकारी बैंकों के एनपीए की निगरानी
विनोद उपाध्याय
भोपाल। 2 नवंबर को जब लोकायुक्त पुलिस ने ग्वालियर में नागरिक सहकारी बैंक में चपरासी कुलदीप यादव के ठिकानों पर छापामारा तो सबकी आंखें फटी की फटी रह गई। वर्ष 1983 में सहकारी बैंक की सेवा में आया आए यादव की समस्त सेवा की पगार जोड़ी जाए तो वह 20 लाख रूपए से ज्यादा की नहीं होगी, लेकिन इसके बावजूद वह करोड़ों रूपए की संपत्ति का मालिक निकला। शहर के पॉश इलाके में पांच मकान, दो लक्जरी कार सहित घर व बैंक लॉकर में लाखों के जेवरात मिले हैं। शहर के बाहर 15 बीघा जमीन के दस्तावेज व लाइसेंसी पिस्टल भी बरामद हुए। एक बैंक में चपरासी के ऐसे ठाठ, हर कमरे में एसी इस बात के संकेत है कि बैंकों में किस तरह काली कमाई की जा रही है। दरअसल मप्र सहित देशभर की बैंकों में फर्जी कागजात से लोन बांटकर हर साल सरकार को चार खरब से अधिक का चूना लगाया जा रहा है। यह तथ्य अगस्त के पहले सप्ताह में सिंडीकेट बैंक में लोन घोटाले का प्रकरण सामने आने के बाद विभागीय और सीबीआई की जांच में भी सामने आया है। अकेले मप्र में पांच साल में करीब 7200 करोड़ रूपए अवैध तरीके से अपात्र लोगों या कंपनियों को लोन बांट दिया गया है। इस मामले में प्रदेश की 2207 शाखाओं को शक के दायरे में लिया गया है। मामला सीबीआई ने अपने हाथ में लिया है और वह सरकारी बैंकों के लोन प्रक्रिया पर नजर गड़ाए हुए है और बैंकों के एनपीए (नान परफार्मिंग एसेट्स यानी डूब सकने वाले कर्ज ) की निगरानी कर रही है। इस मामले में जल्दी ही कई बैंक अधिकारी, उद्योगपति, राजनेता और दलालों के नाम सामने आने वाले हैं। बैंकों में हो रहे घपलों की बात करें तो फर्जी कागजात से लोन हड़पने के मामले सर्वाधिक हैं। एसबीआई के एक अधिकारी के मुताबिक विभागीय जांचों में इसी तरह के मामले सबसे ज्यादा हैं। वह भी ऐसे जिनमें अधिकारियों, कर्मचारियों ने फर्जी नाम से लोन अप्रुव कराए और फिर उन्हें 'बैड लोनÓ में दिखा दिया। एनपीए यानी नान परफार्मिंग एसेट्स की आड़ में खेल काफी समय से हो रहा है। सीबीआई इसकी जांच कर रहा है। ग्वालियर लोकायुक्त पुलिस अधीक्षक सुरेंद्र राय शर्मा के मुताबिक, कुलदीप यादव के खिलाफ लगातार आय से अधिक की संपत्ति होने की शिकायतें आ रही थीं। शिकायतों की पुष्टि के बाद लोकायुक्त के दल ने जब उसके ठिकानों पर छापामारा तो वहां से करोड़ों की चल-अचल संपत्तियों के अलावा कई ऐसे दस्तावेज मिले हैं जो इस बात का खुलाशा करते हैं कि बैंकों में किस तरह लोन दिलाने के नाम पर हेराफेरी हो रही है। दरअसल, सहकारी और सरकारी बैंकों में सुनियोजित तरीके से लोन के नाम पर फर्जीवाड़ा किया जा रहा है। अगस्त के प्रथम सप्ताह में जब सीबीआई ने सिंडीकेट बैंक के चेयरमैन और एमडी सुधीर जैन को उनके रिश्तेदार समेत चार अन्य लोगों के साथ गिरफ्तार किया तो यह तथ्य पूरे देश के सामने आया था की किस तरह नियमों को ताक पर रख रसूखदारों को लोन देने का खेल खेला जा रहा है। सीबीआई ने पहली बार आंतरिक जांच के आधार पर ऐसा कदम उठाया था और दो निजी कंपनियों प्रकाश इंडस्ट्रीज और भूषण स्टील की क्रेडिट लिमिट बढ़ाने के लिए 50 लाख की रिश्वत मामले में सिंडीकेट बैंक के चेयरमैन और एमडी सुधीर जैन को उनके दो रिश्तेदारों, प्रकाश इंडस्ट्रीज के चेयरमैन वीपी अग्रवाल समेत भूषण स्टील के नीरज सिंघल को भी हिरासत में ले लिया। सिंडिकेट बैंक में लोन की धांधली आने के बाद के बाद अब यूको बैंक में बड़ी धांधली का पर्दाफाश हुआ है। यूको बैंक में करीब 6000 करोड़ रुपए के लोन बांटने में घोटाला हुआ है। इस घोटाले के सामने आते ही सरकार ने बैंकों पर नजर रखने और लोन मामलों की जांच करने की जिम्मेदारी सीबीआई को सौंप दी है। यही नहीं सरकार ने बैंकों की कुछ गैर निष्पादित आस्तियों (एनपीए) की सीमित फारेंसिक ऑडिट का आदेश दिया है, ताकि ऋण स्वीकृति में किसी तरह की अनियमितता का पता लगाया जा सके।
पांच साल में डूब चुके हैं 2,04,549 करोड़
देश में बैंकों में लोन का खेल किस तरह चल रहा है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले पांच वर्षो में बैंक 2,04,549 करोड़ रुपए के कर्ज को बट्टेखाते(डूबत खाते ) में डाल चुके हैं। इसका अर्थ है कि हर साल बैंकों का चार खरब से ज्यादा पैसा डूब जाता है। अकेले मप्र में ही इन पांच साल में करीब 7200 करोड़ का लोन डूबत खाते में पहुंच गया है। अब इन मामलों की फाइल फिर से खुली है। आल इंडिया बैंक इंप्लाइज एसोसिएशन का कहना है कि भ्रष्टाचार और राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण बैंकिंग सेक्टर लहूलुहान है। पिछले पांच साल में सार्वजनिक बैंकों की अनुत्पादक परिसंपत्तियों (एनपीए) में चार गुना इजाफा हो चुका है। अकेले वर्ष 2012-13 में बैंकों के 1.64 लाख करोड़ रुपए फंसे पड़े थे जो कोयला और टूजी घोटाले की रकम को टक्कर देते हैं। फिलहाल बैंकों के पास जनता के कुल 78,67,970 करोड़ रुपए जमा हैं जिनमें से 60,36,080 करोड़ रुपए उन्होंने बतौर कर्ज दे रखा है। कर्जे का बड़ा भाग कॉरपोरेट घरानों और बड़े उद्योगों के पास है। अनेक बड़े उद्योगों ने बैंकों से अरबों रुपए का ऋण ले रखा है जिसे वे लौटा नहीं रहे हैं। इसी कारण बैंकों की एनपीए 4.4 फीसद के खतरनाक स्तर पर पहुंच चुकी है। आल इंडिया बैंक इंप्लाइज एसोसिएशन ने हाल ही में एक सूची जारी की जिसमें एक करोड़ रुपए से ज्यादा रकम के 406 बकाएदारों के नाम हैं। इस सूची में अनेक प्रतिष्ठित लोगों और संगठनों के नाम शामिल हैं। सार्वजनिक बैंक किसान, मजदूर या अन्य गरीब वर्ग को कर्ज देते समय कड़ी शर्त लगाते हैं और वसूली बड़ी बेदर्दी से करते हैं। लेकिन जिन बड़े घरानों पर अरबों रुपए की उधारी बकाया है उनसे नरमी बरती जाती है। सीबीआई के निदेशक रंजीत सिन्हा ने तो यह बात सार्वजनिक मंच से कही है। उन्होंने कहा कि बैंक अपने बड़े अकाउंट धारकों की जालसाजी बताने में हिचकिचाते हैं, ऋण पुनर्निर्धारित कर उन्हें बचाने का प्रयास किया जाता है। बैंकों में जालसाजी के बढ़ते मामले इस बात का प्रमाण हैं कि यह धंधा सुनियोजित है। पिछले तीन साल में गलत कर्ज मंजूरी और जालसाजी से बैंकों को 22,743 करोड़ रुपए का चूना लग चुका है। मतलब यह कि हर दिन बैंकों का 20.76 करोड़ रुपया डूब जाता है।
एक तरफ घोटाले दूसरी तरफ बढ़ रही शाखाएं
लोन घोटालों में सामने आने के बाद मप्र की 2207 बैंक शाखाएं सीबीआई की राडार पर हैं। इन सब के बावजुद प्रदेश में बैंक शाखाओं में लगातार वृद्धि हो रही है। वर्ष 2013 की तुलना में वर्ष 2014 के मार्च तक 466 नई बैंक शाखा खुलीं। इनमें ग्रामीण क्षेत्रों में 182, अर्ध-शहरी क्षेत्रों में 136 तथा शहरी क्षेत्रों में 148 शाखा शामिल हैं। वर्तमान में प्रदेश में कुल 6415 बैंक शाखा हैं। इनमें 2730 ग्रामीण क्षेत्रों में, 1975 अर्ध-शहरी तथा 1710 शहरी क्षेत्रों में हैं। बैंक शाखाओं में से 4102 वाणिज्यिक बैंक, 1121 सहकारी बैंक तथा 1192 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक हैं। प्रदेश की इन बैंक शाखाओं में मार्च 2014 की स्थिति में 2 लाख 49 हजार 525 करोड़ रुपए जमा हैं। यह पिछले वर्ष 2013 में जमा 2 लाख 20 हजार 689 करोड़ की तुलना में 28 हजार 836 करोड़ अधिक है। यह प्रदेश की आर्थिक प्रगति का सूचक है। इससे यह भी पता चलता है कि लोगों के पास पहले की तुलना में ज्यादा पैसा आ रहा है। घरेलू बचत के प्रोत्साहन तथा बैकिंग के जरिए उसके वित्तीय बाजार में संचार में वृद्धि का भी पता चलता है। यही नहीं मप्र में मार्च 2014 की स्थिति में साख जमा अनुपात 66 प्रतिशत है, जो राष्ट्रीय मानक 60 प्रतिशत से अधिक है। इसी तरह कुल अग्रिम का प्राथमिक क्षेत्र में अग्रिम राष्ट्रीय मानक 40 प्रतिशत की तुलना में 59 प्रतिशत है। कुल अग्रिम में कृषि अग्रिम राष्ट्रीय मानक 18 प्रतिशत की तुलना में 34 प्रतिशत है। प्रदेश में कुल अग्रिम में कमजोर वर्गों को दिया गया अग्रिम कुल अग्रिम का 13 प्रतिशत है, जबकि इसका राष्ट्रीय मानक 10 प्रतिशत है। प्रदेश में मार्च 2014 तक एक लाख 64 हजार 877 करोड़ का अग्रिम दिया गया इसमें 55 हजार 681 करोड़ कृषि क्षेत्र को, 22 हजार 937 लघु उद्योग क्षेत्र को तथा 21 हजार 271 करोड़ कमजोर वर्गों को दिया गया अग्रिम शामिल है। प्रदेश में जिस तेजी से बैंकों का विस्तार हो रहा है उसी तेजी से इनमें घपले-घोटाले भी हो रहे हैं। बैंकों की शाखाओं का विस्तार आम आदमी के लिए हो रहा है, लेकिन उसका फायदा रसूखदार उठाते हैं। आम आदमी को लोन के लिए वेरिफिकेशन के नाम पर एडिय़ां घिसवा देने वाले बैंकों में गड़बडिय़ों का ग्राफ जांचने चलेंगे तो चौंक जाएंगे। अपने रीजन में ही विभिन्न बैंकों में छोटी-बड़ी गड़बडिय़ों की ढाई हजार से अधिक विभागीय जांचें चल रही हैं। कई पूरी भी हो चुकी हैं। सीबीआई तक तो एक करोड़ से अधिक के घोटाले ही पहुंचते हैं। जानकार बताते हैं कि लोन प्रभारी, मैनेजर की मिलीभगत के बगैर घोटाला बेहद मुश्किल है। सर्वेयर की रिपोर्ट पर भी सवाल उठते रहे हैं। कई घोटाले उच्चाधिकारियों के इशारे पर किसी न किसी लालच में अंजाम दिए जाते हैं। ऐसे में बैंकों की शाखाओं के विस्तार पर भी सवाल उठने लगे हैं। जानकारों को कहना है कि जान-बूझकर बड़े कर्जदारों को बचाने की बैंकों की कोशिश पर अंकुश लगाने के लिए वित्त मंत्रालय को जरूरी कदम उठाने चाहिए। बड़े कर्जदार ऋण लेते वक्त जो परिसम्पत्ति रहन रखते हैं उसे लोन न चुकाने पर तुरंत जब्त किया जाना चाहिए। ऋण लेने वाले के समर्थन में गारंटी देने वालों के खिलाफ भी कार्रवाई की जानी चाहिए। बड़ी बात यह है कि बैंकों के हर मोटे कर्जे को उनका बोर्ड मंजूरी देता है इसलिए वसूली न होने पर बोर्ड के सदस्यों की जवाबदेही तय की जानी चाहिए। अपना मुनाफा बढ़ाने की होड़ में अक्सर बैंक किसी प्रोजेक्ट का मूल्यांकन करते वक्त उसकी कई खामियों की अनदेखी कर देते हैं, जिसका दुष्परिणाम उन्हें बाद में भुगतना पड़ता है।
सहकारी बैंकों के 286 करोड़ डूब गए
प्रदेश के सभी जिलों में कार्यरत जिला सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंकों के 286 करोड़ रूपए से अधिक की रकम डूब गई है। एनपीए के दायरे में आ चुकी इस मोटी रकम को वसूलने में बैंकों की लाचारी के चलते अब इन बैंकों का प्रदेश कार्यालय राज्य सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंक वसूली के नए रास्ते तलाशने में जुटा है। इस बैंक का एनपीए अमाउंट घटने के बजाय बढ़ रहा है जो वर्तमान में 286 करोड़ 48 लाख रुपए हो चुका है। इसकी रिकवरी की संभावना नहीं है। इसलिए इस राशि को डूबती राशि के दायरे में शामिल कर लिया गया है। इतना ही नहीं यह तथ्य भी सामने आया है कि वर्ष 2012-13 में बैंक को 139.88 करोड़ रुपए की हानि का सामना करना पड़ा है, जिसकी भरपाई नहीं हो पा रही है। माना जा रहा है कि सहकारी बैंकों में राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते यह राशि डूब रही है और वसूली के विकल्प तलाशने में अफसरों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। बैंक की वसूली की डिमांड 1189 करोड़ 44 लाख रुपए है,जबकि 30 जून तक सिर्फ 4 फीसदी वसूली की जा सकी है। बैंक इस अवधि में कुल 25 करोड़ 77 लाख रुपए ही वसूल पाया है।
लोकायुक्त में शिकायतों की भरमार
प्रदेश के सहकारी और सरकारी बैंकों के अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ शिकायतों की भरमार है। इसमें सबसे अधिक शिकायत लोन के नाम पर घूस मांगने की है। पिछले एक साल में लोकायुक्त ने घूस मांगने के मामले में प्रदेश भर में करीब 21 बैंक अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की है। यही नहीं बैंक अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ आय से अधिक संपति की भी शिकायत लोकायुक्त में की गई है। लोकायुक्त पुलिस इनकी जांच में जुटा हुआ है।
हर दिन 5 कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई
लोन की आड़ में बैंकों में पैसा हड़पने का गोरखधंधा किस तेजी से पनप रहा है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले 3 साल में बैंकों में जालसाजी और पद के दुरुपयोग के आरोप में 6000 अधिकारियों-कर्मचारियों को निलंबित किया जा चुका है। यानी हर दिन पांच से ज्यादा कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई हुई है। इन कर्मचारियों में बैंक अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक तक शामिल हैं। पिछले साल इंडियन ओवरसीज बैंक के चेयरमैन व सीएमडी को दोषी ठहराया गया था और इस साल सिंडीकेट बैंक के चेयरमैन और एमडी सुधीर जैन पकड़े गए हैं। एक बात तो तय है कि बिना राजनीतिक संरक्षण के इतने बड़े पैमाने पर हेराफेरी असंभव है। रिजर्व बैंक के पूर्व डिप्टी गवर्नर केसी चक्रवर्ती ने अपने शोध पत्र में बताया है कि अधिकांश सार्वजनिक बैंक कर्ज वसूल न कर पाने के कारण आज भारी घाटा उठा रहे हैं। एनपीए को कम करने के लिए ऋण पुनर्निर्धारण (लोन रीस्ट्रक्चरिंग) का मार्ग अपनाया जा रहा है जो बैंकों की सेहत के लिए ठीक नहीं है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, पंजाब नेशनल बैंक, इलाहाबाद बैंक, बैंक ऑफ इंडिया, सेंट्रल बैंक और बैंक ऑफ बडौदा की अनुत्पादक परिसंपत्तियों में पिछले तीन साल में तेजी से वृद्धि हुई है। बैंकों की बैलेंस शीट देखकर वित्त मंत्रालय के कान खड़े हो गए और सरकार ने सीबीआई को मामले की जांच का जिम्मा सौंपा।
महाघोटाले में कई रसूखदार भी शामिल
इस महाघोटाले में बैंकों के बड़े अधिकारी, प्रभावशाली नौकरशाह और राजनेता शामिल हैं। इसी कारण कर्ज लेकर न लौटाने वाले लोगों और उद्योगों का नाम छुपाया जाता है। देश के सभी बैंकों का नियामक रिजर्व बैंक है और कायदे से उसे ही बड़े कर्जदारों की सूची जारी करनी चाहिए। लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है। केंद्र सरकार से वसूली कानून सख्त बनाने की मांग भी लंबे समय से की जा रही है। साथ ही जान-बूझकर या आदतन बैंक कर्ज न लौटाने को दंडनीय अपराध घोषित किए जाने का मुद्दा भी उठाया जा रहा है। पानी सिर से गुजर जाने के बाद अब वित्त मंत्रालय ने इनकम टैक्स विभाग को दोषी लोगों की संपत्ति की जानकारी बैंको को देने का आदेश दिया है। आशा है इस कदम से स्थिति कुछ सुधरेगी।
सीबीआई की अब सीडीआर पर नजर!
सीबीआई की नजर सभी सरकारी बैंको की कर्ज प्रकिया पर है। सिंडिकेट बैंक मामले के बाद सीबीआई उन कंपनियों और कॉरपोरेट की जानकारी जुटा रही है जिन्हें बैंकों से कॉरपोरेट डेट रीस्ट्रकचरिंग (सीडीआर) की मंजूरी मिली है। सीबीआई की नजर सरकारी बैंकों के लोन प्रक्रिया पर है। सीबीआई सरकारी बैंकों के एनपीए की निगरानी कर रही है। सीबीआई ने बैंकों से सीडीआर में जाने वाली कंपनियों की जानकारी मांगी है। 2-3 सालों में जिन कंपनियों को सीडीआर में भेजा गया उन पर सीबीआई की नजर है। सूत्रों का कहना है कि सीबीआई को सीडीआर के गलत इस्तेमाल का शक है। सीबीआई को सीडीआर के जरिए पैसे कहीं और भेजने का शक है। सीबीआई जानना चाहती है कि लोन माफ करने की वजह क्या है।
बड़े अफसरों पर सीबीआई की नजर
हालांकि नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स यानी डूब सकने वाले कर्ज की मात्रा और भारी-भरकम घोटालों के सरकारी बैंकों के टॉप अधिकारियों पर सीबीआई की नजर है। सीबीआई का कहना है कि बैंकों में फर्जीवाड़ा आम हो चुका है। पिछले साल सीबीआई ने ऐसे 13 बड़े मामले दर्ज किए, जिनमें सरकारी बैंकों के मैनेजर लेवल के अधिकारियों ने नियमों को धता बताकर लोन दिए थे। सीबीआई के शिकंजे में एसबीआई, पीएनबी, बैंक ऑफ बड़ौदा, केनरा बैंक, इंडियन ओवरसीज बैंक, इलाहाबाद बैंक और यूबीआई के अधिकारी फंसे थे। 2010 में इन बैंकों का कुल एनपीए 59,924 करोड़ रुपए था, जो 2012 में 1,17,262 करोड़ रुपए हो गया। संसद में हाल ही दी गई जानकारी के मुताबिक इस वर्ष 31 मार्च को यह रकम 1,55,000 करोड़ रुपए थी, जो जून के अंत में 1,76,000 करोड़ रुपए हो गई। सीबीआई के मुताबिक बैंकों ने धोखाधड़ी के कारण जो रकम गंवाई, उसमें पिछले तीन वर्षों में 324 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। 50 करोड़ रुपए से अधिक रकम वाले बैंक धोखाधड़ी के मामलों में दस गुना बढ़ोतरी हुई है। यह सब इतने बड़े पैमाने पर हो और वर्षों तक अनियंत्रित जारी रहे, तो संदेह पैदा होना लाजिमी है। यह तो साफ है कि बैंक अधिकारी कर्जदार की चुकाने की क्षमता या इच्छा का बिना ठोस आकलन किए कर्ज मंजूर करते चले गए। सीबीआई के मुताबिक बैंक अधिकारी लक्षण साफ दिखने के बावजूद डूबे कर्जों को धोखाधड़ी घोषित करने में जरूरत से ज्यादा देर करते रहे हैं, जिससे समय पर कार्रवाई शुरू नहीं हो पाती। गौरतलब है, बैंक आम लोगों के धन से कारोबार करते हैं। लोग भरोसे के आधार पर अपना पैसा वहां रखते हैं। बैंक अधिकारी अगर उन पैसों को लेकर घपले में शामिल होने लगें, तो यह देश में बैंकिंग व्यवस्था की साख पर घातक प्रहार होगा। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष सी. रंगराजन का कहना है कि जब अर्थव्यवस्था बदहाल हो तो सारे डूबे कर्ज को घपला मान लेना सही नहीं होगा। इस बात में भी दम हो सकता है, लेकिन अब अगर सीबीआई ने जांच शुरू की है तो उसे इसमें पूरी स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। कर्ज न चुकाने के उचित कारणों और बदनीयती में फर्क जरूरी है, लेकिन बदहाल अर्थव्यवस्था की आड़ में रसूखदार लोग बच न निकलें, इसे सुनिश्चित करना होगा।
3,000 करोड़ लूट ले गई चिटफंड कंपनियां
एक तरफ जहां बैंकों में फर्जी लोन के नाम पर घोटाला हो रहा है वहीं प्रदेश में पिछले एक दशक में चिटफंड कंपनियां करीब 3,000 करोड़ रूपए लूट ले गईं। जनता की गाढ़ी कमाई हड़पकर चंपत होने वाली चिटफंड कंपनियों के खिलाफ शासन ने शिकंजा कसना शुरु कर दिया है। अब तक ऐसे दो बड़े मामले सामने आए हैं, जिनमें पीएसीएल और ईव मिरेकल नामक चिटफंड कंपनियों ने रकम दोगुनी करने के नाम पर करोड़ों रुपए की धोखाधड़ी की है। दोनों प्रकरणों में सीआईडी जांच जारी है। ऐसे मामले दोबारा सामने न आएं इसके लिए राज्य शासन ने गैर बैंकिंग वित्तीय स्थापनाओं एवं अनिगमित निकाय कहलाने वाली चिटफंड कंपनियों की नियमित रुप से निगरानी करने का फैसला लिया है। चिटफंड कंपनियों की गतिविधियों की निगरानी के लिए गठित समिति का अध्यक्ष मुख्य सचिव अंटोनी जेसी डिसा को बनाया गया है, जबकि पुलिस महानिदेशक सुरेंद्र सिंह सहित 14 अन्य विभाग प्रमुख सदस्य मनोनीत किए गए हैं। बीते एक माह के दौरान समिति ने विभिन्न स्रोतों से प्रदेश में गुपचुप चल रही ऐसी 25 निजी फर्मों का चि_ा तैयार कर लिया है। टैक्स चोरी और रकम हजम कर गायब होने वाली इन कंपनियों की पड़ताल की जा रही है। अभी तक प्रदेश में चिटफंड कंपनियों की जांच और निगरानी के लिए व्यवस्था नहीं थी। आमतौर पर ऐसे मामलों में थाने में एफआईआर और सीआईडी जांच का प्रावधान रहा। शासकीय निगरानी समिति का गठन होने से ऐसे अपराध में एक्सपर्ट पैनल मामले की समीक्षा करेगा। चिटफंड कंपनियों का ब्यौरा हर वित्तीय वर्ष में कंपनी के लाभ हानि खातों के साथ सार्वजनिक किया जाएगा।
स्मॉल और पेमेंट बैंक
सूदखारों और चिटफड कंपनियों के रसूख को चुनौती देने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक स्मॉल और पेमेंट बैंक खोलने की तैयारी कर रहा है। आने वाले दिनों में आपको कस्बों, शहरों और गांवों में मोबाइल फोन कंपनियां, रिटेल कंपनियां, छोटी फाइनेंस कंपनियां चलाने वाले बड़े नाम बैंक के रूप में काम करते दिखेंगे। यह बैंक खास तौर से छोटे कारोबारियों, किसानों, प्रवासी श्रमिकों को अपने ग्राहक के रूप में जोड़ेंगे। जो कि उनकी जरूरत के मुताबिक छोटे कर्ज और छोटी-छोटी जमाएं ग्राहकों से लेंगे। भारतीय रिजर्व बैंक ने स्मॉल और पेमेंट बैंक के लिए गाइडलाइन जारी कर ऐसे बैंकों के लिए राह आसान कर दी है। रिजर्व बैंक इन बैंकों के जरिए सूदखोरों या दूसरे असंगठित क्षेत्रों पर निर्भर तबके को सीधे तौर पर बैंकिंग सेवाओं से जोडऩा चाहता है। जिससे कि वह आधुनिक बैंकिंग सेवाओं का लाभ उठा सके। भारतीय स्टेट बैंक के रिटायर्ड चीफ जनरल मैनेजर सुनील पंत के अनुसार स्मॉल और पेमेंट बैंक के लिए सबसे बड़ी चुनौती अपने कारोबार को प्रॉफिटेबल बनाने की होगी। ऐसे में यह बैंक ज्यादा से ज्यादा ग्राहकों को अपने साथ जोडऩे की कोशिश करेंगे। जिसका फायदा बचत खातों पर ऊंची ब्याज दर के रूप में ग्राहकों को मिलेगा। जैसे कि अभी निजी क्षेत्र के कई बैंक बचत खाते पर 6-7 फीसदी तक ब्याज दे रहे हैं। इसके अलावा वह तबका जो कि असंगठित क्षेत्र का है, जिसके पास अपनी जरूरतों के लिए बैंकिंग सेवाएं पाना आसान नहीं है, उसके लिए बैंक का एक मजबूत विकल्प खड़ा होगा।
छोटे कारोबारियों और किसानों को मिलेगा आसानी से कर्ज
पंजाब नेशनल बैंक के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार स्मॉल बैंक के वजह से छोटे कारोबारियों और किसानों को आसानी से कर्ज मिल सकेगा। रिजर्व बैंक के अनुसार स्मॉल बैंक को अपने कुल कर्ज का 75 फीसदी प्राथमिकता क्षेत्र को देना है, ऐसे में सबसे ज्यादा फायदा माइक्रो और स्मॉल कैटेगरी के कारोबारियों को होगा। पीएनबी के अधिकारी के मुताबिक सरकारी बैंकों का खास तौर से कृषि क्षेत्र और एमएसएमई सेक्टर पर फोकस है। स्मॉल और पेमेंट बैंक ज्यादातर छोटे कस्बों में ही बैंकों को चुनौती देंगे। ऐसे में वहां के ग्राहकों को बनाए रखना मौजूदा बैंकों के लिए चुनौती होगा। अधिकारी के मुताबिक रिटेल बैंकिंग में ग्रामीण क्षेत्रों का शेयर तेजी से बढ़ रहा है, ऐसे में नए बैंकों के आने से मौजूदा बैंकों को चुनौती मिलेगी।
सहकारी संस्थाओं से एमएलए-एमपी की होगी छुट्टी
प्रदेश की सहकारी संस्थाओं के दरवाजे सांसद और विधायकों के लिए सरकार हमेशा के लिए बंद करेगी। संस्थाओं को राजनीतिक दखलंदाजी से मुक्त रखने के लिए सरकार ये संशोधन सहकारी अधिनियम में करने जा रही है। इस प्रावधान के लागू होने के बाद कोई भी सदस्य सांसद या विधायक बनने के बाद सहकारी संस्था में एक दिन भी नहीं रह सकेगा। अभी विधायक भंवर सिंह शेखावत अपेक्स बैंक और विश्वास सारंग लघु वनोपज संघ के अध्यक्ष हैं। सहकारिता विभाग के अधिकारियों के अनुसार सहकारी अधिनियम में अभी ये प्रावधान है कि कोई सांसद, विधायक, जिला व जनपद पंचायत का अध्यक्ष या उपाध्यक्ष सहकारी संस्था का पदाधिकारी बनने चुनाव नहीं लड़ सकता है लेकिन सहकारी संस्था का पदाधिकारी यदि बाद में सांसद या विधायक बन जाए तो क्या होगा, इसका अधिनियम में कोई प्रावधान नहीं है। इसकी वजह से धार के बदनावर से विधायक भंवर सिंह शेखावत अपेक्स बैंक और भोपाल की नरेला सीट से विधायक विश्वास सारंग लघु वनोपज संघ के अध्यक्ष बने हुए हैं। सूत्रों का कहना है कि संविधान के मूल अधिकारों में सहकारिता को जोड़ा जा चुका है। केंद्र सरकार ने अपने कानून में संशोधन करके ये अपेक्षा की है कि सहकारिता के क्षेत्र में राजनीतिक दखलंदाजी न हो। संस्थाएं गुण-दोष के आधार पर अपने भविष्य का फैसला करें। प्रदेश में इस मंशा का आधा-अधूरा पालन तो हो गया है, अब इसे पूर्ण रूप देने की तैयारी है। निर्वाचन प्राधिकारी की जगह आयोग बनाने का प्रस्ताव भी तैयार किया जा रहा है।

कंगाल हो गया मध्य प्रदेश 90,000 करोड़ के कर्ज में डूबा

बेहिसाब खर्च ने बिगाड़ा गणित...बेहाल हुआ हुई सरकार
धन की तंगी से लोक कल्याणकारी योजनाएं अटकी
इस वर्ष ही सरकार ने साढ़े 6 हजार करोड़ से अधिक का ले लिया है कर्ज
11 वर्ष के भाजपा सरकार के कार्यकाल में पहली बार आर्थिक संकट
विनोद उपाध्याय
भोपाल। 26 मई को जब केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र की सरकार गठित हुई थी तो उसके कुछ दिन बाद मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों से कहा था कि वे अपने विभाग से संबंधित केंद्रीय मंत्रियों से मुलाकात कर विकास कार्यों के लिए फंड मांगने जाएं। उस समय मुख्यमंत्री की इस पहल को विकास के प्रति समर्पण माना जा रहा था। लेकिन अब जाकर यह खुलासा हुआ है कि प्रदेश में वित्तीय संकट आ खड़ा हुआ है। आलम यह है कि दिखावे के लिए सरकार द्वारा किए गए बेहिसाब खर्च से इस वित्तीय वर्ष में प्रदेश 90,000 करोड़ रूपए के कर्ज तले दब गया है। प्रदेश सरकार की आर्थिक स्थिति इतनी बदतर हो गई है कि धन की तंगी से लोक कल्याणकारी योजनाएं अटक गई हैं। लगभग 11 वर्ष के भाजपा सरकार के कार्यकाल में पहली बार प्रदेश में आर्थिक संकट का हालात निर्मित हुए हैं। यही नहीं मुख्यमंत्री की लगातार कोशिश के बावजुद केंद्र से जो पैसा आना चाहिए, आ ही नहीं रहा है। ऐसे में प्रदेश सरकार कर्ज पर कर्ज ले रही है। अक्टूबर में लिए गए एक हजार करोड़ के कर्ज को मिलाकर इस वर्ष ही सरकार लगभग साढ़े 6 हजार करोड़ कर्ज के रूप में ले चुकी है। वित्त विभाग के अधिकारियों का कहना है कि वित्तीय कुप्रबंधन और बेहिसाब खर्च ने सरकार का खजाना खाली कर दिया है। आलम यह है,कि प्रदेश के कर्मचारियों का वेतन बांटने के लिए भी सरकार को कर्ज लेना पड़ रहा है। संभवतया यह पहला मौका है,जब किसी एक ही सरकार के लगातार 11 साल के कार्यकाल के बावजूद प्रदेश में इस तरह की कंगाली के हालात बने। अधिकारियों का कहना है की प्रदेश पर लगातार बढ़ते कर्ज की एक वजह यह भी है की सरकार की सोच है की प्रदेश की साख बढ़ी है और मप्र अब कर्ज पाने के मामले में ए ग्रेड की श्रेणी में आ गया है। इसके तहत प्रदेश की क्षमता और अधिक कर्ज ले पाने की है। इसी कर्ज के सहारे प्रदेश की माली हालत को दुरुस्त कर लिया जाएगा। सरकार की इसी सोच ने प्रदेश को 90 हजार करोड़ रूपए से अधिक के कर्ज में डूबो दिया है। 11 साल में कर्ज का यह सबसे बड़ा आंकड़ा है। अप्रैल से नवंबर तक सरकार ने दस साल के लिए अपनी सिक्योरिटी गिरवी रखकर बाजार से 6,500 करोड़ का कर्ज उठाया है, जबकि पिछले साल सितंबर तक सरकार ने केवल 1500 करोड़ का कर्ज बाजार से लिया था। वित्त विभाग के अधिकारियों का कहना है कि खर्चों में बेहताशा बढ़ोतरी के चलते प्रदेश सरकार की माली हालात डगमगाने लगी है। स्थिति इतनी बदहाल है कि एक महीने में दो-दो बार कर्ज लिया जा रहा है। वित्त विभाग के एक अफसर के अनुसार संभव है कि प्रदेश की भाजपा सरकार इस वित्तीय वर्ष में एक वर्ष में कर्ज लेने का रिकार्ड तोड़ दे।
चुनावी घोषणाओं से बिगड़ी स्थिति वित्त विभाग के अधिकारी भी समझ नहीं पा रहे हैं कि अचानक प्रदेश में ऐसे कौन से खर्च बढ़ गए हैं, जिससे खजाने पर बोझ पड़ रहा है। जानकार बताते हैं ओला-पाला पीडि़तों को बांटे गए 2,000 करोड़ रूपए से भी सरकार का गणित गड़बड़ाया है। लेकिन सबसे अधिक स्थिति चुनावी घोषणाओं से बिगड़ी है। लोकसभा और विधानसभा चुनावों के दौरान राज्य सरकार द्वारा की गई घोषणाएं राज्य की वित्तीय हालत पर भारी पड़ रही है। हालत यह है कि सरकारी खजाने की हालत खस्ता है। चालू वित्तीय वर्ष में अकेले लोक निर्माण विभाग पर 7000 करोड़ रुपए की देनदारी बकाया है। जो विभाग के कुल बजट का दोगुना है। निर्माण विभाग के अफसरों की मानें तो इनमें ज्यादातर कार्य लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान ही कराए गए थे। खराब आर्थिक हालत के कारण ही राज्य सरकार ने पीडब्ल्यूडी में नए काम कराए जाने पर अघोषित रुप से प्रतिबंध लगा रखा है। इसमें नई सड़के और भवन दोनों शामिल है।
बड़े भुगतानों पर लगी रोक वित्त विभाग नए सिरे से विभागों की फिजूलखर्ची रोकने की रणनीति बना रहा है। कारण सरकार ने बजट में सिक्योरिटी गिरवी रखकर बाजार से कर्ज उठाने की सीमा 10 हजार करोड़ तय की है। ऐसे में यदि खर्च पर अंकुश नहीं लगाया तो दिसंबर तक ही बाजार से कर्ज उठाने की सीमा इससे ऊपर जा सकती है। प्रदेश में वित्तीय संकट के चलते सरकार ने 25 करोड़ से अधिक के फंड के आहरण पर रोक लगा दी गई है। अब इससे अधिक की राशि आहरण करने के लिए विभागीय अधिकारियों को वित्त विभाग से अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया गया है। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के बाद यह पहला मौका होगा जब राज्य सरकार को ओवर ड्राफ्ट की स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि राज्य के वित्तीय अधिकारी अधिकारिक तौर पर ऐसे किसी भी संकट से इंकार कर रहे है, लेकिन वह भी मानते है कि संकेत अच्छे नही है। खासकर अक्टूबर-नवंबर में ऐसी स्थिति कभी देखने को नही मिली। बताया जाता है कि वित्त विभाग की ओर से बीते माह सभी महकमों को एक पत्र भेजा गया है। इसमें एक बार में 25 करोड़ से अधिक चेक, नगदी के आहरण पर रोक लगाई गई है। विशेष परिस्थति में वित्त विभाग की अनुमति के बाद यह राशि निकाली जा सकती है। वित्त विभाग का पत्र मिलने के बाद से राज्य के बड़े महकमों में हड़कंप की स्थिति है। उल्लेखनीय है की वित्तीय वर्ष 2013-14 समाप्त होते-होते राज्य सरकार की माली हालत लडख़ड़ा गई थी। वित्त विभाग ने आनन-फानन में 26 मार्च 14 को सभी विभागों को आदेश जारी कर 10 करोड़ से अधिक के खर्च की अनुमति लेने को कहा। जनवरी 13 में विभाग ने 25 करोड़ से अधिक की खरीदी के लिए आदेश जारी कर राजकोषीय घाटा 3 प्रतिशत से अधिक होने से रोका था। इस बार हालात कुछ नाजुक बताए जा रहे हैं, इसी कारण वेतन छोड़ 5 करोड़ तक के भुगतान पर रोक लगी है।
साख बचाने कर्ज पर कर्ज ले रही सरकार
एक ओर बेहिसाब खर्च तो दूसरी ओर सरकार अपनी साख बनाए रखने के लिए कर्ज पर कर्ज लेने को मजबूर है। राज्य सरकार ने एक माह के दरम्यान ही दूसरी बार पुन: एक हजार करोड़ रुपए का कर्ज बाजार से उठाया। बताया जाता है,कि इसे मिलाकर इसी वित्तीय वर्ष में राज्य सरकार 6500 करोड़ रुपए से अधिक का लोन ले चुकी है। जबकि वित्तीय वर्ष समाप्त होने में पांच माह बाकी है। ऐसे में कर्ज लेने के मामले में किसी एक वित्तीय वर्ष का सभी पिछले रिकार्ड इस वर्ष टूट जाने की संभावना है। प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष लक्ष्मण सिंह का कहना है कि भाजपा सरकार का वित्तीय प्रबंधन इतना गड़बड़ा गया है कि हमारे समय का 27 हजार करोड़ रुपए का कर्ज अब बढ़कर 92 हजार करोड़ रुपए हो गया है। प्रदेश के वित्तीय हालात इतने बदतर हो गए हैं कि सरकार को अपने कर्मचारियों को वेतन बांटने के लिए भी बाहर से कर्ज लेना पड़ रहा है। जानकारों के मुताबिक, इस वर्ष कर्ज लेने का यह आंकड़ा दस हजार करोड़ रुपए को पार कर सकता है। हालांकि राज्य शासन भी इस आशय के संकेत गत दिनों दे चुकी है,कि मप्र की मौजूदा साख को देखते हुए उसकी कर्ज लेने की क्षमता इससे कहीं अधिक है। सूत्रों के मुताबिक, राज्य सरकार प्रदेश की आर्थिक सेहत को लेकर दोहरे संकट के दौर से गुजर रही है। विभिन्न योजनाओं को लेकर जो केंद्रीय अंश राज्य सरकार को मिलना चाहिए, वह समय पर नहीं मिल रहा है। इस कारण प्रदेश को न सिर्फ विकास योजनाओं के लिए राशि की तंगी हो रही है बल्कि लोक कल्याणकारी योजनाओं के लिए भी पर्याप्त राशि का बंदोबस्त करना सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन गई है। इस बीच कर्मचारियों का महंगाई भत्ता बढऩे से सरकारी खजाने पर बोझ और बढ़ गया है। इन हालातों में सरकार का फायनेंस मेनेजमेंट गड़बड़ा गया है।
कर्ज लो और घी पीओ की नीति पर चल रही शिवराज सरकार कांग्रेस का आरोप है कि शिवराज की सरकार 'कर्ज लो और घी पीओÓ की नीति पर चलती रही है। उनके कार्यकाल के हर वर्ष में कर्ज के आंकड़े में भारी इजाफा हुआ है। यह कर्ज ऊंची ब्याज दर पर बाजार से लिया गया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरूण यादव कहते है कि शिवराज सरकार का वित्तीय कुप्रबंधन उजागर हो गया है। सरकार अपने खर्चे लगातार बढ़ाती रही है इस कारण यह स्थिति निर्मित हुई है। वहीं कांग्रेस उपाध्यक्ष मानक अग्रवाल प्रदेश सरकार की वित्तीय स्थिति के अचानक गंभीर संकट में पड़ जाने पर गहरी चिंता प्रगट करते हुए सरकार से राज्य की वित्तीय स्थिति पर तत्काल श्वेत पत्र जारी करने की मांग की है। वह कहते हैं कि प्रदेश की जनता जो कि विभिन्न प्रकार के टैक्सों का भुगतान कर सरकार का खजाना भरती है, को यह जानने का पूरा अधिकार है कि आखिर सरकार की वित्तीय हालत इस तरह अचानक बिगड़ जाने के पीछे कौन से कारण रहे हैं? क्या यह सच है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निर्देश पर एक उद्योगपति को भारी भुगतान किया जाने के कारण प्रदेश सरकार का खजाना अचानक खाली होने की यह नौबत आई है? सुशासन की बात करने वाली भाजपा सरकार का वित्तीय कुप्रबंधन इस घटना से उजागर हो गया है। वह कहते हैं कि कांगे्रस ने कई बार सरकार को चेताया था कि उसकी फिजूलखर्ची एक दिन प्रदेश को गंभीर वित्तीय संकट में डाल देगी, किंतु सरकार ने इस चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया। अब नतीजा सबके सामने है। अग्रवाल कहते हैं कि सरकार की वित्तीय स्थिति किस सीमा तक बिगड़ चुकी है, उसका अनुमान कोषालयों और उप कार्यालयों को वेतन के अलावा अन्य भुगतानों पर लगाई गई रोक से साफ जाहिर हो जाता है। सरकार को तत्काल खुलासा करना चाहिए कि क्या वह अपने कर्मचारियों को वेतन का भुगतान करने की स्थिति में हैं? मुख्यमंत्री को विदेशों के दौरों और उद्योगपतियों की मनुहार से समय ही नहीं मिलता कि वे प्रदेश के वित्तीय प्रबंधन की चिंता करें। वित्त मंत्री जयंत मलैया के पास वित्त विभाग के अलावा जो अन्य मलाईदार विभाग हैं, उनकी फिक्र करने से ही उनको फुर्सत नहीं मिलती मुख्यमंत्री की फिजूलखर्ची की तो इन्तहा हो चुकी है। कांग्रेस उपाध्यक्ष ने कहा कि खजना खाली होने की यह स्थिति निर्मित होने के पीछे एक कारण यह भी है कि राज्य सरकार को विभिन्न स्त्रोतों से जो राजस्व मिलता है, उसमें भारी गोलमाल चल रहा है। जितनी वसूलियां होती हैं, उसका काफी कम हिस्सा खजाने में जमा होता है। प्रदेश भर में भारी लूटमार मची हुई है। अवैध उत्खनन के प्रकरणों में करोड़ों के जुर्माने की धनराशि की वसूली रसूखदार खनिज माफियाओं से नहीं हो रही है।
क्रेडिट रेटिंग की आड़ में सरकार कर रही कर्जखोरी प्रदेश के विकास योजनाओं को गति देने के लिए बाजार से कर्ज लेने के अलावा अब सरकार के पास कोई विकल्प नहीं है। लिहाजा अब सरकार आर्थिक मोर्चे पर प्रदेश की बढ़ती साख को भुनाने में लग गई है। इसके चलते बीते सप्ताह ही राज्य सरकार ने बाजार से फिर एक हजार करोड़ रुपए का लोन लिया है। यह लगातार पांचवां मौका है, जब सरकार ने मौजूदा वित्तीय वर्ष में लोन लिया है। यह लोन भी प्रदेश की विकास योजनाओं के नाम पर लिया गया है। यह लोन दस वर्ष की अवधि के लिए लिया गया है। बताया जा रहा है कि यह लोन देने के लिए कर्जदारों ने पूरी दरियादिली दिखाई है और करीब 8.50 फीसदी ब्याज दर पर यह राशि ली गई। मप्र की क्रेडिट रेटिंग पहली बार ए निगेटिव मार्क की गई है। यह पहली बार है, कि प्रदेश की रेकिंग को ए श्रेणी में शामिल किया गया है। अब तक प्रदेश की रेटिंग बी प्लस में थी। यानि मप्र की साख अपेक्षाकृत कमजोर थी। इस कारण वित्तीय संस्थान ऐसे राज्यों में निवेश करने या अन्य योजनाओं में पैसा फंसाने का जोखिम उठाने से बचते हैं। रेटिंग संस्थाएं भी निवेशकों के लिये बाकायदा चेतावनी जारी करती है, कि प्रदेश की परियोजनाओं में राशि फंसाने पर रिस्क ज्यादा है। लेकिन अब प्रदेश की रेटिंग ए होने से प्रदेश की साख में बढ़ोत्तरी हो गई है। इस कारण निवेशकों में यह विश्वास बढ़ गया है कि प्रदेश में राशि लगाना अब जोखिम का सौदा नहीं है। ऐसे में सरकार को बाजार से पैसा जुटाने में कोई दिक्कत नहीं हो रही है। प्रदेश इस वित्तीय वर्ष में कर्ज के मामले में एक लाख करोड़ कर्ज वाले राज्यों में शामिल होने के करीब पहुंच सकती है। इस समय महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, तमिलानाडू, गुजरात जैसे राज्यों के कर्ज का आंकड़ा एक लाख करोड़ से अधिक है। मप्र भी बहुत जल्द इस क्लब में शामिल हो सकता है। अधिकारिक तौर पर प्रदेश पर 90 हजार करोड़ से अधिक का कर्ज है। राज्य सरकार ने लोन के लिए जो 31 मार्च 2013 की स्थिति का ही ब्यौरा दिया है, उस हिसाब से प्रदेश पर उस अवधि में 77,413 करोड़ रुपए का कर्ज हो चुका था। वर्ष 2003 में प्रदेश में जब भाजपा ने सत्ता संभाली थी तब राज्य पर कर्ज महज 27 हजार करोड़ था। इसी कर्ज के लिए तब विपक्षी दल में बैठी भाजपा ने तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को आड़े हाथों लिया था।
शिवराज ने दो बार लगाई गुहार पर नहीं सुनी केंद्र सरकार
मप्र में वित्तीय संकट गहराने के बाद से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रधानमंत्री सहित केंद्रीय मंत्रियों से दो बार मुलाकात करके योजनाओं के लिए फंड की मांग की, लेकिन उनकी अभी तक नहीं सुनी गई है। मुख्यमंत्री 7 नवंबर को केन्द्रीय जल-संसाधन मंत्री उमा भारती और सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी से मुलाकात की। मुख्यमंत्री ने नदी जोड़ो परियोजना के नाम पर उमा भारती से 26 हजार करोड़ रुपए देने का आग्रह किया। फिर उन्होंने गडकरी से मनरेगा योजना में मजदूरी के लिए 1500 करोड़ रुपए की राशि उपलब्ध करवाने का आग्रह किया है। साथ ही मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री ग्राम-सड़क परियोजना में 2800 करोड़ और इंदिरा आवास योजना में शेष राशि 600 करोड़ भी तत्काल जारी करने का आग्रह किया, लेकिन करीब एक पखवाड़ा बितने के बाद भी केंद्र ने प्रदेश सरकार को फंड मुहैया नहीं कराया। वित्त विभाग के अधिकारियों का कहना है की प्रदेश में लगातार बढ़ रहे कर्ज से राहत की थोड़ी बहुत आस इंदौर ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के दौरान केंद्र सरकार ने मप्र में निवेश के लिए सवा लाख करोड़ से ज्यादा के जो प्रस्ताव दिए है उससे है। केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों की इस दिलदारी ने राज्य सरकार की ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट को तो सफलता के शिखर पर पहुंचाया ही खास बात यह कि इस निवेश से भविष्य में प्रदेश की माली हालत में भी सुधार होगा। केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने दिल्ली, मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर में पीथमपुर-धार-महू क्षेत्र में सबसे बड़ा इंडस्ट्रियल हब बनाने की घोषणा की है। इसी परियोजना में उज्जैन के पास स्मार्ट इंडस्ट्रियल सिटी विकसित की जाएगी। कृषि क्षेत्र में मूल्य संवर्धन के लिए खाद्य प्र-संस्करण संयंत्र स्थापित किए जाएंगे। वहीं केंद्रीय इस्पात मंत्रालय का सार्वजनिक उपक्रम सेल मध्यप्रदेश में 50 मिलियन टन आयरन खनिज का निवेश करेगा। इसके पॉयलट प्लांट में 1500 करोड़ रुपए का निवेश होगा। यदि 140 मिलियन टन तक आयरन खनिज एसेस होता है तो 12 हजार करोड़ की लागत से स्टील प्लांट लगाने का भरोसा मंत्रालय ने राज्य सरकार को दिलाया है। नाल्को बॉक्साइट रिजर्व क्षेत्र में एल्यूमीनियम रिफायनरी के लिए 6000 करोड़ का निवेश करेगा। सौर ऊर्जा के लिए एचसीएल 100 करोड़ तथा मैग्नीज संयंत्र के लिए मॉइल 250 करोड़ रुपए का निवेश करेगा। इसी तरह एनएमडीसी टीकमगढ़ में हीरा उत्खनन के लिए 1000 करोड़ का निवेश करेगा। कोल ब्लॉक पर आधारित पॉवर प्लांट के लिए नाल्को 19 हजार करोड़ रुपए तथा एनएमडीसी 3000 करोड़ रुपए का निवेश करेगा। इसी तरह, रासायनिक व उर्वरक मंत्रालय ने बीना रिफायनरी के क्षेत्र में एक लाख करोड़ की लागत से पेट्रो केमिकल पेट्रो इन्वेस्टमेंट रीजन बनाने का प्रस्ताव राज्य सरकार को दिया है। बीना के पास देश का पहला लेंड लॉक पेट्रो केमिकल काम्पलेक्स भी बनेगा। मंत्रालय बीना रिफायनरी की क्षमता 6 मिलियन टन से बढ़ाकर 8 मिलियन टन तक करेगा। इसमें 25 हजार करोड़ रुपए का निवेश बीपीसीएल द्वारा किया जाएगा। बाद में इस क्षमता को 15 मिलियन टन तक बढ़ाने का लक्ष्य है। मध्यप्रदेश में गैस अथारिटी ऑफ इंडिया (गेल) 10 हजार करोड़ के निवेश से गैस ग्रिड बनाएगा। जबलपुर और शहडोल में 12 हजार करोड़ रुपए के निवेश से उर्वरक संयंत्र स्थापित होंगे। मंडीदीप में प्लास्टिक पार्क और ग्वालियर में पॉलीमर पार्क के अलावा भोपाल में नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ फार्मा एज्यूकेशन एंड रिसर्च का सेंटर ऑफ एक्सीलेंस खुलेगा। इस निवेश को जल्द से जल्द जमीन पर लाने के प्रयास शुरु हो गए हैं। इसी तरह ऊर्जा, कोयला और नवीन ऊर्जा मंत्रालय ने भी प्रदेश में पचास हजार करोड़ रुपए के निवेश की घोषणा की। दरअसल,एनटीपीसी का सबसे ज्यादा केपिटल इंवेस्टमेंट मध्यप्रदेश में 75 हजार करोड़ का है। एनटीपीसी गाडरवारा में 1320 मेगावॉट का पॉवर प्लांट बनाने जा रहा है। मंत्रालय से नवकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में 50 हजार करोड़ के निवेश के प्रस्ताव मिले हैं। स्वच्छ भारत अभियान में ऊर्जा मंत्रालय के सार्वजनिक उपक्रम मध्यप्रदेश में 125 करोड़ की लागत से 12 हजार 477 स्कूल में शौचालय बनाएगा। कापोर्रेट सोशल रिस्पांसबिलिटी के तहत 300 करोड़ रुपए और खर्च करेंगे। इधर,पर्यटन क्षेत्र में निवेश को बढ़ाने के लिए भी राज्य सरकार ने अपनी नीतियों को और अधिक सरल बनाया है। जानकार सूत्रों के मुताबिक, प्रदेश में पर्यटन विकास की गतिविधियों के लिए सरकार से ली गई जमीन को अब बैंक में गिरवी रखकर पर्यटन कारोबारी लोन ले सकेंगे। इसके लिए उन्हें कुछ शर्तों का पालन करना होगा। अभी तक भी तक सरकार द्वारा दी गई जमीन को बैंक में गिरवी नहीं रखने की सुविधा नहीं थी। प्रदेश में पर्यटन कारोबार को प्रोत्साहित करने के लिए हाल में जारी पर्यटन नीति में सरकार ने भूमि आवंटन की प्रक्रिया का काफी सरलीकरण किया है। राज्य सरकार पर्यटन विभाग को निशुल्क भूमि आवंटित करेगी। इसके लिए मप्र राज्य पर्यटन विकास निगम को प्रोसेस मैनेजर नियुक्त किया जाएगा। प्रोसेस मैनेजर की हैसियत से निगम इस जमीन को पर्यटन विकास के निजी कारोबारियों को आवंटित करेगा। भूमि आवंटन की आरक्षित मूल्य भी बहुत कम कर दिया गया है। जमीन के लीज रेंट में भी भारी कमी की गई है। भूमि आवंटन के लिए स्वीकार किए गए प्रीमियम का एक प्रतिशत वार्षिक होगा। जमीन से जुड़े मामले पहले राज्य मंत्रिपरिषद की समिति के पास जाते थे। अब इन मामलों का निराकरण मप्र राज्य पर्यटन विकास निगम ही करेगा। एक अन्य फैसला यह भी है, कि आवंटित भूमि का उपयोग नहीं हो पाने की स्थिति में इस भूमि को सरेंडर भी किया जा सकेगा। एक साल में सरेंडर पर दस प्रतिशत, दूसरे साल में बीस प्रतिशत और तीसरे साल में 30 प्रतिशत राशि काट ली जाएगी। शर्त यह,कि आवंटित जमीन का उपयोग केवल पर्यटन विकास के लिए ही किया जा सकेगा।
विदेश से भी कर्ज की तैयारी प्रदेश की सड़कों को सुधारने के लिए सरकार अब विदेश से कर्ज लेगी। सड़कों की मरम्मत के लिए करीब 11 हजार 500 करोड़ रूपए की जरूरत है, लेकिन केंद्र से इतनी राशि नहीं मिल पा रही है। लोक निर्माण विभाग ने सड़कों की मरम्मत को लेकर बैठक की थी, जिसमें केंद्र से राशि नहीं मिलने पर वैकल्पिक इंतजाम के निर्देश दिए थे। इसके तहत विभाग द्वारा राष्ट्रीयकृत बैंकों से लेकर एशियाई विकास बैंक तक को प्रस्ताव भेजे जाना है। इस राशि से आगामी चार साल में सभी जिला मुख्य मार्गो को चमकाने का लक्ष्य रखा गया है। करीब साढ़े दस हजार किमी से ज्यादा सड़कों को मरम्मत की जरूरत है। 500 करोड़ ही मिले अब तक इस साल सड़कों की मरम्मत के लिए विभाग ने करीब 1500 करोड़ मांगे थे, लेकिन अब तक बजट में केवल पांच सौ करोड़ रूपए ही मिले हैं, जबकि पिछले साल 1100 करोड़ रूपए मिले थे। सरकार के विजन-2018 में सड़कों को सुधारना शामिल हैं, किंतु सरकार के सामने इस पर अमल बड़ी चुनौती है। हर दिन दो किमी सड़क बनाने के दावे पर भी सरकार ने इसी कारण कदम रोक दिए हैं।
केंद्र ने मांगी वित्तीय स्थिति की रिपोर्ट उधर, प्रदेश में बदहाल वित्तीय स्थिति को गंभीरता से लेते हुए केंद्र सरकार ने प्रदेश की वित्तीय हालात की रिपोर्ट मांगी है। वित्त विभाग के अधिकारी पिछले 10 साल की वित्तीय स्थिति की रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं। संभवत: तैयार हो रही रिर्पोट में सरकार द्वारा की गई फिजुलखर्ची को दूसरे कार्यो में एडजस्ट किया जा रहा है। बताया जाता है की जल्द ही केंद्र का एक दल आकर प्रदेश की खस्ताहालत का जायजा लेगा। उसके बाद ही राज्य सरकार को किसी तरह का अनुदान दिया जाएगा।
कर्ज पर एक नजर बाजार का कर्ज-31,407 एलआईसी से 94.37 जीआईसी से 9.92 नाबार्ड से 4172.03 एनसीडीसी से 96.74 अन्य बांडस 1412.69 अन्य वित्तीय संस्थाएं 189.89 केन्द्र सरकार से कर्ज व अग्रिम 12267.81 प्रोविडेंट फंड से 10836.73 एसबीआई व अन्य बैंकों से 120.68 एनएसएसएफ से 1680.6 (सारी राशि करोड़ रुपए में) नोट- चालू वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से सितंबर तक 4250 करोड़ रुपए का कर्ज सिक्योरिटी बांड गिरवी रखकर लिया गया।

मंत्रियों के खिलाफ अब लोकायुक्त में दर्ज नहीं होगी शिकायत!

विनोद उपाध्याय
10 साल में 18 मंत्रियों के खिलाफ हुई शिकायत...जांच में 14 निकली गलत
सरकार और लोकायुक्त संगठन की किरकिरी रोकने हो रही तैयारी
भोपाल। पिछले 10 साल में मंत्रियों और वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों के खिलाफ केस दर्ज करने के बाद भी उनके खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रहा लोकायुक्त संगठन अब मंत्रियों के खिलाफ केस दर्ज नहीं करेगा। क्योंकि पिछले सालों में संगठन ने जिन 18 मंत्रियों के खिलाफ केस दर्ज किया था उनमें से जांच के दौरा 14 के खिलाफ मामले बेबुनियादी निकले। इसको देखते हुई हाईकोर्ट ने भी लोकायुक्त को निर्देश दिया है की वह जांच-परख कर ही केस दर्ज करे। उधर, विपक्ष इन जांचों को सरकार और लोकायुक्त संगठन की मिलीभगत मान रही है। इससे पिछले सात-आठ सालों से सरकार की जमकर किरकिरी हो रही है। उल्लेखनीय है कि मप्र लोकायुक्त संगठन शुरू से विवादों में रहा है। प्रदेश में लोकायुक्त की नियुक्ति पर हमेशा सवाल उठते रहते हैं। जबकि 1982 से लेकर अब तक लोकायुक्त संगठन ने भ्रष्ट अधिकारियों-कर्मचारियों के पास से लगभग 4 अरब 17 करोड़ 27 लाख 87 हजार 773 रुपए की संपत्ति जब्त की है। इसके बावजुद संगठन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठते रहे हैं। खासकर भाजपा के शासनकाल में तो मप्र लोकायुक्त को देश सबसे नकारा संगठन माना जा रहा है। उसकी मुख्य वजह है मंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई करने में विभाग की विफलता। दरअसल, भाजपा शासन काल में जिन मंत्रियों के खिलाफ जांच प्रकरण दर्ज किए गए उनके खिलाफ जांच करने में संगठन ने इतनी देरी कर दी की, कई बार हाईकोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा। इससे जनता में यह संदेश गया की सरकार के इशारे पर लोकायुक्त जांच को लंबित कर रहा है। लगभग 10 साल तक ऐसे मामले में अपनी फजीहत कराने के बाद लोकायुक्त ने अब मंत्रियों के मामलों में सतर्कता बरतने की तैयारी शुरू कर दी है। इसके तहत लोकायुक्त में अब मंत्रियों के खिलाफ आसानी से जांच प्रकरण दर्ज नहीं होंगे। शिकायत मिलने पर पहले इस बात का परीक्षण किया जाएगा कि मंत्री की संबंधित मामले में सीधी भूमिका है या नहीं। अभी होता ये है कि शिकायत का परीक्षण करने पर पहली नजर में जांच प्रकरण दर्ज करने के आधार समझ में आने पर मामला दर्ज कर लिया जाता है पर ये बारीकी से नहीं देखा जाता कि उसमें मंत्री की भूमिका कितनी है। इसकी वजह से जांच के बाद मंत्री के खिलाफ विलोपन और खात्मे की कार्रवाई करनी पड़ती है। इससे अनावश्यक विवाद की स्थिति बनती है। इसलिए नई व्यवस्था लागू करने का फैसला किया गया है। उल्लेखनीय है कि हाल ही में हाईकोर्ट में लोकायुक्त ने एक याचिका के जवाब में स्वीकार किया है कि कुछ मामलों की जांच में मंत्रियों की संलिप्तता नहीं पाई गई। इसके आधार पर तत्कालीन उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री बाबूलाल गौर और खनिज राज्यमंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा के नाम प्रकरण से विलोपित कर दिए। अफसरों से जुड़े कुछ और प्रकरणों में भी इसी तरह के तथ्य सामने आए। इसके आधार पर खात्मा रिपोर्ट कोर्ट में पेश की गई और प्रकरण समाप्त हो गए पर इसको लेकर जो आरोप-प्रत्यारोप के दौर चलते हैं वे संस्था के साथ-साथ संबंधित व्यक्ति की साख को प्रभावित करते हैं। यही वजह है कि लोकायुक्त संगठन ने तय किया है कि मंत्रियों से जुड़ी शिकायत का बारीकी से परीक्षण किया जाएगा। इसमें ये देखा जाएगा कि शिकायत से जुड़ी प्रक्रिया में मंत्री की भूमिका कितनी है। यदि मामले की फाइल मंत्री तक ही नहीं जाती है और निर्णय लेने का स्तर कुछ और है तो फिर मंत्री का नाम हटाकर शिकायत पर जांच प्रकरण दर्ज किया जाएगा। इसकी पुष्टि करते हुए लोकायुक्त पीपी नावलेकर कहते हैं कि जांच प्रकरण दर्ज कराने के पहले ये देखना जरूरी है कि उसमें मंत्री का इन्वॉलमेंट कितना है। कई बार शिकायत को वजनदार बनाने के लिए भी मंत्री का नाम शामिल कर दिया जाता है। जब भूमिका प्रमाणित नहीं होती तो खात्मा लगाना पड़ता है। इस प्रक्रिया से बचने के लिए नई व्यवस्था बनाई जा रही है। अब पुख्ता परीक्षण के बाद ही मंत्री के खिलाफ प्राथमिक जांच दर्ज की जाएगी।
भाजपा शासनकाल में इनके खिलाफ दर्ज थी शिकायत भाजपा के विगत दस साल के शासनकाल में 18 मंत्रियों के खिलाफ लोकायुक्त में मामले दर्ज किए गए। अनियमितता, भ्रष्टाचार और पद के दुरुपयोग को लेकर मंत्रियों के खिलाफ चल रही लोकायुक्त जांच में ज्यादातर को क्लीनचिट मिल गई है। संगठन ने आठ मौजूदा और पूर्व मंत्रियों के जांच प्रकरण बंद कर दिए हैं। हालांकि, दो पूर्व और इतने ही मौजूदा मंत्रियों के खिलाफ जांच चल रही हैं। कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन के मामले में सुप्रीम कोर्ट की अंतरिम रोक होने की वजह से कार्रवाई रोक दी गई है। बीते पांच सालों में लोकायुक्त ने शिकायतों के आधार पर 11 मंत्रियों के खिलाफ मामले दर्ज किए थे। आठ मामलों का करीब पांच साल तक परीक्षण करने के बाद इन्हें नस्तीबद्ध कर मंत्रियों को क्लीनचिट दे दी गई है। हालांकि, इनमें से दो-तीन मामले अदालतों में विचाराधीन हैं।
: कब से लंबित है जांच :
मंत्री- शिकायत दिनांक एवं आरोप -जुगल किशोर बागरी 2004 शिक्षाकर्मी की भर्ती में घपला -मोती कश्यप 4 जून 2005 मछली ठेकेदारों को पांच करोड़ का लाभ - लक्ष्मीकांत शर्मा 25 जुलाई 2005 खनिज लीज घोटाला -ओम प्रकाश धुर्वे 4 मई 2006 अनाज परिवहन में ठेकेदार को लाभ पहुंचाया -जयंत मलैया 19 मार्च 2007 पद का दुरूपयोग - अनूप मिश्रा 3 अप्रेल 2007 जल संसाधन में ठेकेदारों को अनुचित लाभ -कैलाश विजयवर्गीय 10 अप्रेल 2007 -हिम्मत कोठारी 14 मई 2007 मोरों के दाना पानी में घपला -कैलाश विजयवर्गीय 20 जून 2007 ट्यूबवेल खनन में पद का दुरूपयोग -बाबूलाल गौर 30 जून 2007 खनिज लीज घोटाला -अजय विश्रोई 23 जुलाई 2007 नर्सिंग कॉलेज में पद का दुरूपयोग - शिवराज सिंह चौहान 15 नवम्बर 2007 डम्पर कांड -कमल पटेल 26 नवम्बर 2007 भू माफिया को 25 करोड़ का लाभ पहुंचाया -चौधरी चन्द्र भान सिंह 25 जनवरी 2008 पद का दुरूपयोग कर सम्पत्ति एकत्रित करना - जयंत मलैया 31 मार्च 2008 बिल्डर को 20 करोड़ का लाभ पहुंचाया - शिवराज सिंह चौहान 29 अप्रेल 2008 दवा खरीदी में घोटाला -जयंत मलैया 2 मई 2008 श्रीराम बिल्डर को अवैध लाभ पहुंचाया -जयंत मलैया 9 जून 2008 पद का दुरूपयोग
इनकी जांच चल रही विगत पांच 5 वर्ष में जिन मंत्रियों की शिकायत लोकायुक्त में दर्ज की गई थी उनमें से अधिकांश को लोकायुक्त ने अपनी जांच में गलत पाया और उनको बंद कर दिया है। इस मामले में लोकायुक्त पीपी नावलेकर कहते हैं कि बीते पांच साल के दौरान जो शिकायतें मिली थीं उनकी जांच कराई गई। तथ्यों के आधार पर विधिसम्मत निर्णय लिए गए हैं। लोकायुक्त से प्राप्त जानकारी के अनुसार, अभी लोकायुक्त में पूर्व मंत्री अर्चना चिटनीस, बृजेन्द्र प्रताप सिंह और मंत्री पारसचंद जैन के खिलाफ जांच चल रही है, जबकि कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन का मामला अभी लंबित है। अर्चना चिटनीस पूर्व स्कूल शिक्षा मंत्री के खिलाफ विद्या भारती की सरस्वती शिशु मंदिर में पढ़ाई जाने वाली देवपुत्र पत्रिका की एकमुश्त खरीदी और अगले 15 सालों की सप्लाई का एडवांस पेमेंट लगभग 13 करोड़ दिए जाने के मामले की शिकायत कांग्रेस विधायक डॉ। गोविन्द सिंह ने की थी और इसी तरह सरकारी स्कूलों के ब्लैक बोर्ड को ग्रीन बोर्ड में तब्दील कर करोड़ों की हेराफेरी करने की भी शिकायत चिटनीस के खिलाफ की गई थी। मामले की जांच चल रही है। बृजेन्द्र प्रताप सिंह पूर्व कृषि राज्यमंत्री पर आय से अधिक संपत्ति और पद के दुरुपयोग की जांच चल रही है। कांग्रेस के पूर्व मंत्री मुकेश नायक और अन्य की शिकायत पर लोकायुक्त ने जांच शुरू की है। सिंह पर अवैध खनन, सरकारी योजनाओं का खुद के लिए बेजा फायदा लेना सहित कई प्रकरण हैं। पारसचंद जैन, स्कूल शिक्षा मंत्री जैन के खिलाफ उज्जैन में जमीन का एक मामला भी लंबित है। इन पर रजिस्ट्री में परिवारजनों को फायदा पहुंचाए जाने का आरोप है। गौरीशंकर बिसेन, कृषि मंत्री इनके खिलाफ जबलपुर हाईकोर्ट के आदेश पर विशेष स्थापना पुलिस, जबलपुर ने प्राथमिक जांच दर्ज की है। बिसेन ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और जिस पर अंतरिम रोक का आदेश दिया गया है। लिहाजा, लोकायुक्त ने जांच की कार्रवाई अभी शुरू ही नहीं की है। इससे पहले दो शिकायतों पर लोकायुक्त ने जांच की थी। बालाघाट के सुधाकर शर्मा और पन्ना के प्रहलाद लोधी ने शिकायत की थी। लोकायुक्त ने दोनों ही शिकायतें यह कहकर खारिज कर दीं कि शिकायत के साथ साक्ष्य नहीं हैं। इन्हें मिली राहत कैलाश विजयवर्गीय- इन्दौर के तत्कालीन महापौर को सुगनी देवी जमीन घोटाले में लोकायुक्त से क्लीनचिट मिल गई है। 2007 में पूर्व विधायक सुरेश सेठ की शिकायत पर विशेष न्यायालय के आदेश पर यह प्रकरण दर्ज हुआ था। 29 अगस्त 2013 को प्रकरण समाप्त कर दिया गया। जयंत मलैया- तत्कालीन आवास एवं पर्यावरण मंत्री इंदौर में जमीन के व्यावसायिक उपयोग को लेकर 2007 में प्रकरण दर्ज हुआ था। 2014 की शुरुआत में क्लीनचिट मिल गई। एक अन्य मामला नगरीय प्रशासन मंत्री रहते 2007 में ही दर्ज हुआ था। इसमें भी 19 जून 2013 को क्लीनचिट मिली। बाबूलाल गौर गुजरात यात्रा को लेकर शिकायत दर्ज हुई थी। साढ़े चार या पांच हजार रुपए का मामला था। पड़ताल के बाद गुजरात सरकार के इस जवाब कि खर्चा राज्य सरकार ने उठाया था, जांच नस्तीबद्ध हो गई। पारसचंद जैन खाद्य नागरिक आपूर्ति मंत्री रहते हुए अस्थायी कैप को लेकर शिकायत हुई थी पर इसे परीक्षण के बाद लोकायुक्त ने दो जनवरी 2013 को नस्तीबद्ध कर दिया। पूर्व मंत्री कमल पटेल- तत्कालीन राजस्व मंत्री की 2007 में इन्दौर की खजराना मंदिर जमीन मामले में शिकायत हुई थी। परीक्षण के बाद 2010 में प्रकरण दर्ज हुआ। 30 अगस्त 2013 को संगठन स्तर पर समाप्त हो गया। चौधरी चन्द्रभान सिंह- तत्कालीन कृषि मंत्री के खिलाफ योजनाओं को लेकर 2007 में प्रकरण दर्ज हुआ था। जांच के बाद संगठन स्तर पर समाप्त हो गया। हाईकोर्ट में अभी ये मामला लंबित है। लक्ष्मीकांत शर्मा- तत्कालीन खनिज राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार के खिलाफ 2006 और 08 में खनिज के दो मामले दर्ज हुए। एक 2010 और अगस्त 2012 को समाप्त हो गए। 2006 में दर्ज प्रकरण से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट में रिट पिटीशन लगी हुई है। अजय विश्नोई- तत्कालीन चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्नोई और नगरीय प्रशासन मंत्री जयंत मलैया के खिलाफ 2007 में पद का दुरूपयोग और भ्रष्टाचार का प्रकरण दर्ज हुआ था। मामला नर्सिंग कॉलेजों में खुद के परिजनों को लाभ पहुंचाए जाने से जुड़ा था। जांच के बाद 2013 में दोनों को क्लीनचिट दे दी गई। रमाकांत तिवारी- 2007 में पशुपालन मंत्री रहने के दौरान प्रकरण दर्ज हुआ था। परीक्षण में मालूम पड़ा कि प्रकरण मंत्री के विरुद्ध पंजीबद्ध होना ही नहीं पाया गया। लिहाजा, 22 नवंबर 2011 को उन्हें क्लीनचिट मिल गई।
दलित व आदिवासी नेताओं पर होती है कार्यवाही प्रदेश में लोकायुक्त संगठन का कार्यकाल विवादों से भरा रहा है। इस कार्यकाल में लोकायुक्त ने प्रदेश के जिन दो मंत्रियों व पूर्व मंत्रियों के खिलाफ चालान पेश किया उनमें एक आदिवासी तथा एक दलित वर्ग का है। जबकि राज्य के कई प्रभावशाली मंत्रियों के खिलाफ जितनी भी शिकायतें लोकायुक्त संगठन में की गईं उन्हें या तो जांच के नाम से लंबित रखा गया अथवा क्लीन चिट दे दी गई है। लोकायुक्त संगठन ने सूचना के अधिकार के तहत बताया था कि लोकायुक्त संगठन में प्रदेश के मुख्यमंत्री सहित 13 मंत्रियों के खिलाफ शिकायतें मिली हैं। इनमें से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, जुगलकिशोर बागरी एवं ओमप्रकाश धुर्वे के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत आपराधिक प्रकरण कायम किया गया था। जबकि अजय विश्रोई, बाबूलाल गौर, लक्ष्मीकांत शर्मा, जयंत मलैया, हिम्मत कोठारी, चौधरी चन्द्रभान सिंह, कमल पटेल, कैलाश विजयवर्गीय, अनूप मिश्रा, मोती कश्यप के खिलाफ शिकायतों की जांच की गई और उन्हें क्लीन चिट दे दी गई। लोकायुक्त संगठन ने दलित गर्व के जुगल किशोर बागरी को रीवा में शिक्षाकर्मी चयन समिति के सदस्य के रूप में गलत नियुक्तियों का आरोप लगाकर उनके खिलाफ कोर्ट में चालान पेश कर दिया। चालान पेश होने के तत्काल बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बागीरी से त्यागपत्र मांग लिया। इसी प्रकार ओमप्रकाश धुर्वें जब प्रदेश के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री थे तब राज्य सरकार ने उन्हें मप्र नागरिक आपूर्ति निगम का अध्यक्ष भी बना दिया था। निगम में अनाज के परिवहन की दरों को लेकर धुर्वे पर आरोप लगा था कि उन्होंने जानबूझकर परिवहन ठेके संबंधी फाइल अपने पास रखी, ताकि नए ठेकेदार के बजाय पुराना ठेकेदार ही परिवहन का काम कर सके। नए ठेकेदार ने परिवहन की दरें कम थीं। जिससे निगम को लाखों रुपए का नुक्सान हुआ। धुर्वे के मामले में जिस तरह लोकायुक्त संगठन ने रूचि ली वह चौंकाने वाली है। जिस लोकायुक्त संगठन में मंत्रियेां के खिलाफ वर्षों से जांच लंबित है, वहां ओमप्रकाश धुर्वें के मामले में प्रारंभिक जांच करने के बाद 4 मई 2006 को उनके खिलाफ प्रकरण कायम किया गया और 10 जनवरी 2007 को कोर्ट में उनके खिलाफ चालान पेश कर दिया गया। उल्लेखनीय है कि ओमप्रकाश धुर्वें ने भोपाल के श्यामला हिल्स थाने में लिखित शिकायत में आरोप लगाया था कि तत्कालीन लोकायुक्त रिपुसूदन दयाल के बेटे के पीए के नाम से एक अज्ञात व्यक्ति ने उन्हें फोन करके उक्त मामले को निबटाने के लिए पांच लाख रुपए मांगे थे। लेकिन उन्होंने यह राशि नहीं दी। यद्यपि पुलिस ने धुर्वें की शिकायत को जांच के बाद खारिज कर दिया था।
अदालत की तर्ज पर होगी लोकायुक्त में सुनवाई मध्यप्रदेश लोकायुक्त के कार्यालय में अब अदालत की तर्ज पर सुनवाई होगी। डायस पर लोकायुक्त जस्टिस पीपी नावलेकर होंगे तो सामने फरियादी। कार्यवाही को देखने वाले बीस लोगों के बैठने का इंतजाम भी। इसमें उन मामलों की सुनवाई होगी, जिसमें ये लगता है कि फरियादी को और सुना जाना चाहिए। इसके बाद आरोपी को अपनी बात रखने का मौका भी इसी सिस्टम में दिया जाएगा। लोकायुक्त संगठन के नए दफ्तर में बकायदा अदालती कोर्ट रूमों की तरह डायस, रीडर और फरियादी या आरोपी के खड़े होने के लिए स्थान बनाए गए हैं। संगठन के अधिकारियों का कहना है कि कई मर्तबा जो शिकायतें आती हैं वे अनियमितताओं की ओर इशारा तो करती हैं पर दस्तावेजी साक्ष्य नहीं होते हैं। ऐसी सूरत में शिकायतकर्ता को बुलाकर सुनने की इच्छा होती है। खासतौर पर ये उन मामलों में होता है जिनमें संगठन को शासन को सिफारिश करनी होती है। इसके लिए कोर्ट रूम की व्यवस्था बनाई गई है। अधिनियम में लोकायुक्त संगठन को जिला अदालत के पॉवर दिए गए हैं। किसी को बुलाने समन और वारंट तक जारी किया जा सकता है। हालांकि, इसकी नौबत अभी तक नहीं आई है।
हर साल आती हैं 2500 से 3000 शिकायतें बताया जाता है कि इसकी जरूरत बढ़ती शिकायतों के चलते महसूस की गई। हर वर्ष औसतन ढाई से तीन हजार शिकायतें सीधे या डाक के माध्यम से मिलती हैं। पिछले सालों के आंकडों पर नजर दौड़ाएं तो 500 से ज्यादा पद के दुरुपयोग के मामले दर्ज किए जा चुके हैं। इन प्रकरणों में शासन को विभागीय जांच या अन्य दण्ड दिए जाने की अनुशंसा की जाती है। शासन विधानसभा में पालन प्रतिवेदन प्रस्तुत कर बताता है कि उसने कितनी सिफारिशों का पालन किया। लोकायुक्त जस्टिस पीपी नावलेकर कहते हैं कि अधिनियम में लोकायुक्त को जिला अदालत के अधिकार दिए गए हैं। किसी को बुलाने समन, वारंट जारी करने का अधिकार भी है। ऐसे प्रकरण, जिसमें लगता है कि शिकायतकर्ता को और सुना जाना चाहिए उसे सुनवाई के लिए बुला सकते हैं। कोर्ट रूम काम को व्यवस्थित तरीके से अंजाम देने के लिए बनाया गया है। मौका आने पर इसका उपयोग किया जाएगा।
लोकायुक्त को पॉवरफल बनाओ लोकायुक्त संगठन पर लगातार भेदभाव और निष्क्रियता का आरोप लगता रहा है। जबकि लोकायुक्त पीपी नावलेकर शुरू से कह रहे हैं कि लोकायुक्त के पास वह अधिकार नहीं है की वह बिना सरकार की अनुमति के किसी के ऊपर कार्रवाई कर सके। अभी हान ही में भ्रष्टाचार के आरोपों में फंसे प्रदेश के 8 मंत्रियों और कई अफसरों के खिलाफ कई वर्षों से जांच लंबित रहने को चुनौती देने वाली जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान इस मामले में लोकायुक्त संगठन की ओर से जवाब देकर प्रदेश सरकार पर भेदभाव का आरोप लगाया गया है। जवाब में दावा किया गया है कि तुलनात्मक रूप से काम कम होने के बाद भी प्रदेश सरकार आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) के कर्मचारियों को ज्यादा सुविधाएं दे रही है। इस मामले पर हाईकोर्ट में अब जल्द सुनवाई होगी। जबलपुर के डॉ. पीजी नाजपाण्डे ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर करके कहा है कि लोकायुक्त के सामने मंत्रियों और वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के कई मामले लंबित हैं, लेकिन पिछले 7 से करीब 10 वर्षों में उनकी जांच पूरी नहीं हो सकी है। याचिका में आरोप है कि इतने वर्षों से जांच लंबित रहने के कारण भ्रष्टाचार के आरोपों में शामिल मंत्री और अफसर अपने पदों पर बने हुए हैं, जो अवैधानिक है। इन आधारों के साथ दायर याचिका में राहत चाही गई है कि सरकार को निर्देशित किया जाए कि लोकायुक्त संगठन को पर्याप्त सुविधाएं मुहैया कराई जाएं, ताकि लंबित मामलों की जांच जल्द से जल्द पूरी हो सकें।
मुख्यमंत्री से मंत्रियों तक की शिकायत गठन से लेकर अब तक लोकायुक्त ने सतत और मेहनत के साथ अपने काम को अंजाम दिया है। यह अलग बात है कि राज्य सरकार के असहयोग की वजह से पकड़े गए मामलों को अंजाम तक पहुंचाने में शत प्रतिशत कामयाब नहीं हुई है। 1982-2013 तक के 31 वर्षों में लोकायुक्त ने मुख्यमंत्री और मंत्रियों के खिलाफ 520 शिकायतें प्राप्त की थी इनमें से 335 शिकायतें झूठी पाई गई, 185 में प्रकरण दर्ज कर जांच की गई। इनमें से 161 जांच के उपरांत कार्रवाई योग्य नहीं पाई गई। 21 को कार्रवाई के लिए भेजा गया है। उक्त प्रकरणों के अलावा लोकायुक्त ने 3077 प्रकरण दर्ज किए। इसमें 5080 शासकीय सेवक और 134 अन्य व्यक्ति है।
शायद मिलें नाखून या दांत लोकायुक्त का गठन 1982 में किया गया था और इसके द्वारा लगातार कार्रवाई की जा रही है। यह अलग बात है कि हाल ही के वर्षों में अधिकारी से लेकर चपरासी तक के पकड़े जाने और उनसे करोड़ों की संपत्ति मिलने के कारण सरकार की नींद उड़ चुकी है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने जो आदेश जारी किया है उसके बाद माना जा रहा है कि लोकायुक्त कुछ मजबूत होगा। गौरतलब है कि लोकायुक्त द्वारा पकड़े जाने वाले अधिकारियों-कर्मचारियों पर तेजी से प्रभावी कार्रवाई नहीं होने के मामले में कुछ समय पूर्व लोकायुक्त पी पी नावलेकर ने कहा था कि लोकायुक्त बगैर दांत और बिना नाखून का शेर है। सुप्रीम कोर्ट ने जो आदेश दिये हैं और सरकार अभियोजन के मामले में बदलाव की जो तैयारी कर रही है इसके बाद कम से कम लोकायुक्त को नाखून या दांत में से कुछ एक जरूर मिल जाएगा।
पकड़ी अरबों की संपत्ति भ्रष्ट अधिकारियों पर नकेल डालने के उ_ेश्य से लोकायुक्त में प्रकरण दर्ज कराने के साथ साथ अरबों की संपत्ति भी पकड़ी है। 1982 से 2013 तक लोकायुक्त पुलिस ने विभिन्न धाराओं में प्रकरण दर्ज करते हुए 4 अरब 17 करोड़ 27 लाख 87 हजार 773 रुपये की संपत्ति जब्त की है। 2001-02 से लेकर 2012-13 तक सबसे अधिक संपत्ति वर्ष 2011-12 में 1 अरब 6 करोड़ 80 लाख 49 हजार 503 रुपये की पकड़ी थी।
11 मंत्रियों की है शिकायत सुप्रीम कोट के रूख को देखते हुए मध्य प्रदेश सरकार लोकायुक्त को और अधिक सशक्त बनाने जा रही है। पिछले दस साल में लोकायुक्त की छापामार कार्रवाई से चपरासी से लेकर अफसरों तक के करोड़पति होने का खुलासा होने पर पूरी सरकार की किरकिरी हो रही है। मध्यप्रदेश लोकायुक्त के पास 11 मंत्रियों, 49 आईएएस, 11 आईपीएस और 100 से अधिक पीसीएस अधिकारियों के खिलाफ शिकायतें हैं लेकिन सरकार की ओर से इन मामलों में इनके खिलाफ अभियोजन की अनुमति नहीं दी गई है। बीते तीन साल में लोकायुक्त ने मध्यप्रदेश में रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़े जाने के 361 मामलों, पद का दुरुपयोग करने के 66 और अनुपातहीन संपत्ति के 114 मामलों में कार्यवाही की है। लोकायुक्त ने अब तक लगभग 663 करोड़ रुपए की बकाया राशि भी वसूल की है।
लोकायुक्त के पत्र और सिफारिशें गायब! लोकायुक्त संगठन की ओर से शासन को भेजी सिफारिशें और भृत्य, पेंशन सहित अन्य सुविधाओं के लिए लिखे पत्र सरकारी रिकॉर्ड से गायब हैं। इतना ही नहीं लोकायुक्त ने विदेश दौरा करने के बाद जो रिपोर्ट शासन को सौंपी थी वो और लोकायुक्त सम्मेलन से जुड़ी सिफारिशें भी रिकार्ड में नहीं हैं। लोकायुक्त संगठन ने भी साफ कर दिया है कि इन मुद्दों से जुड़ा कोई रिकार्ड उनके पास नहीं है। सामान्य प्रशासन विभाग ने अजय दुबे के सूचना का अधिकार आवेदन की अपील पर आदेश पारित कर यह खुलासा किया है। आदेश में कहा गया है कि संबंधित शाखा में चाही गई जानकारी रिकॉर्ड में नहीं है। लोकायुक्त संगठन के पास ही ये संधारित हैं, जबकि लोकायुक्त संगठन की लोक सूचना अधिकारी और उप सचिव मनीषा सेंतिया ने 28 अगस्त को पत्र लिखकर एक बार फिर विभाग से ये बात कही। उन्होंने पत्र में साफ कहा कि सूचना का अधिकार में जो जानकारी मांगी जा रही है वो विभाग से ही संबंधित है। बताया जाता है कि फिनलैंड और स्वीडन के दौरे से लौटने के बाद पूरी रिपोर्ट बनाकर लोकायुक्त कार्यालय ने शासन को सौंपी थी। इसी तरह 2010 में हुए देशभर के लोकायुक्तों के सम्मेलन की सिफारिशें भी शासन को भेजी गई थीं।

चित्रकूट दर्शन

अपने कनिष्ठ साथी आशिष शर्मा की शादी में शामिल होने अपनी पत्नी के साथ मझगंवा पहुंचे तो, वहां से हम लोगों ने भगवान राम की तपोभूमि चित्रकूट का भी दर्शन किया। उस समय के कुछ चित्र। ताकि कभी यह यात्रा विस्मृत होने लगे तो ये चित्र उसकी याद दिलाते रहें।

मप्र के 160 दागी नौकरशाहों को मिलेगा मोदी का साथ

भ्रष्ट अफसरों को बचाने वाला कानून ला रही केंद्र सरकार
जांच के लिए लेनी होगी लोकपाल की मंजूरी
विनोद उपाध्याय
भोपाल। सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की सीबीआई या अन्य एजेंसियों से जांच के लिए लोकपाल की पूर्व अनुमति को अनिवार्य किया जा सकता है। केंद्र सरकार इस संबंध में भ्रष्टाचार रोधी कानून में परिवर्तन करने पर विचार कर रही है। इस कदम को भ्रष्ट कर्मचारियों को बचाने वाला बताया जा रहा है। अगर यह कानून परिवर्तित होकर लागू होता है तो मप्र के 160 से अधिक दागी नौकरशाहों सहित 776 अफसरों को राहत मिल सकती है। हालांकि सरकार का कहना है कि कर्मचारियों के कामकाज में कुशलता और पारदर्शता लाने के लिए ऐसा किया जा रहा है। लोकपाल और लोकायुक्त कानून के प्रस्तावित प्रावधानों के अनुसार, अभियोजन की अनुमति देने का अधिकार लोकपाल को होगा। अधिकारियों के अनुसार, इसका अर्थ यह है कि सीबीआई और अन्य जांच एजेंसियों को भ्रष्टाचार के किसी आरोप की जांच से पहले केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त अथवा समान निकाय से अनुमति लेनी होगी।
सुप्रीम कोर्ट कर चुकी है ऐसे कानून पर टिप्पणी वहीं, आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 197 या दिल्ली स्पेशल पुलिस स्थापना अधिनियम की धारा 6ए कहती है कि भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत कथित रूप से होने वाले किसी भी अपराध की जांच केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति के बिना नहीं की जा सकती है। सीआरपीसी और भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम में भी इस तरह का प्रावधान है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल मार्च में ऐसे सभी कानूनी प्रावधानों को अवैध और असंवैधानिक बताया था, जिनमें भ्रष्ट अफसर की जांच से पहले सीबीआई के लिए मंजूरी लेना अनिवार्य था। शीर्ष अदालत का कहना था कि इसे भ्रष्ट अफसरों का बचाव होता है। इस संबंध में संपर्क किए जाने पर केंद्रीय कार्मिक मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि ऐसा कर्मचारियों के काम में पारदर्शिता और दक्षता लाने के लिए किया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि 6 मई 2014 को जैसे ही सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने एतिहासिक फैसला सुनाते हुए दिल्ली पुलिस एक्ट की धारा 6-ए को खारिज किया वैसे ही भ्रष्ट नौकरशाहों तथा उन्हें संरक्षण देने वालों के होश उड़ गए थे। इसका सबसे अधिक असर मप्र के उन 160 से अधिक नौकरशाहों पर पड़ा ,जो किसी न किसी भ्रष्टाचार के मामले में दागी हैं और उनकी फाइल सरकार की मेहरबानी से बंद पड़ी थी। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद मप्र सरकार भी अपने नौकरशाहों से कानूनी कवच छीनने की तैयारी कर रही थी। उधर,लोकायुक्त,इओडब्ल्यू के साथ ही सीबीआई ने भी इन भ्रष्ट अफसरों की फाइल खगाल रही है। लेकिन केंद्र सरकार ने दागी अफसरों को बचाने के लिए कानून में परिवर्तन का जो संकेत दिया है उससे जांच एजेंसियों ने भी फिलहाल अपने हाथ रोक लिए हैं।
776 अफसर थे पीएमओ के निशाने पर पिछले 10 साल में भ्रष्टाचार के मामलें में फंसे मप्र के 32 अधिकारियों सहित 776 नौकरशाहों पीएमओ के निशाने पर थे। केंद्र और विभिन्न राज्यों में पदस्थ इन अफसरों द्वारा किए गए भ्रष्टाचार की फाइल प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ ) और डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनेल ऐंड ट्रेनिंग (डीओपीटी)में खंगाली गई हंै। खासकर कांग्रेस नीत यूपीए सरकार के 10 साल के शासनकाल में हुए 38 घोटालों की जांच गंभीरता से हो रही है। इन तमाम घोटालों के सूत्रधार रहे नौकरशाहों की कुंडली पीएमओ द्वारा बना ली गई है। केंद्र सरकार ने उन नाकारा अफसरों को घर बैठाने का मानस बना लिया था, जो कि किसी भी प्रकार के कामकाज करने की जरूरत तक महसूस नहीं करते। केंद्र सरकार के इस रूख से अफसरों में दहशत की स्थिति थी। लेकिन केंद्र सरकार ने ऐसे अफसरों को सजा की बजाय समझाईस देकर सुधारने का मानस बना रही है। उल्लेखनीय है कि केंद्र के साथ ही विभिन्न राज्यों में पदस्थ 4619 आईएएस अफसरों में से 1476 किसी न किसी भ्रष्टाचार में लिप्त पाए गए हैं। सबसे पहले केंद्र में हुए भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों लिस्ट तैयार की गई है, उसके बाद राज्यों की। पहली लिस्ट में यूपीए सरकार के शासनकाल के मोस्ट करप्ट 34 अफसर मोदी सरकार के निशाने पर आए हैं। इसमें से दो अफसर मप्र कैडर के हैं। उसके बाद प्रदेशों में हुए भ्रष्टाचार के दोषी पाए गए अधिकारियों में से 738 को छांटा गया है जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर मामले सामने आए हैं। इसमें मप्र के 32 अधिकारियों के नाम शामिल हैं। अगर पिछले दस साल का रिकार्ड देखें तो इस दौरान 157 आईएएस अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया गया है, जिसमें से 71 की जांच सीबीआई कर रही है। अपने लगभग नौ माह के शासनकाल में मोदी सरकार ने अभी तक कोई बड़ी उपलब्धि भले ही हासिल न की है,लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ एक्शन लेना शुरू कर जनता को भविष्य के लिए शुभ संकेत जरूर दिया है। पीएमओ और डीओपीटी द्वारा 1476 भ्रष्ट अधिकारियों में से जिन 776 अधिकारियों को दोबारा जांच के लिए जो सूची बनाई गई है उसमें सबसे अधिक उत्तर प्रदेश के अधिकारी हैं, जबकि दूसरे स्थान पर महाराष्ट्र के और तीसरे स्थान पर मप्र के अफसर हैं। उल्लेखनीय है कि भ्रष्टाचार के मामले में प्रदेश के 160 आईएएस अधिकारियों की फाइल को जांच के लिए पीएमओ और डीओपीटी द्वारा तलब की गई थी। प्रारंभिक जांच में प्रदेश के 32 अफसरों के मामलों को दूसरी जांच के लिए लिया गया है। यहां यह बताना उचित होगा कि केंद्र की मोदी सरकार ने सभी जांच एजेंसियों के साथ मिलकर नौकरशाहों की बेनामी और अवैध कमाई वाली संपत्ति जब्त करने की तैयारी कर रही थी। इसके तहत मप्र के 302 आईएएस अधिकारियों की करीब 22,000 करोड़ की संपत्ति भी थी, जिसका जिक्र इन अधिकारियों ने अपनी संपत्ति के ब्यौरे में नहीं दिया है। अधिकारियों की देश-विदेश में स्थित संपत्ति की पड़ताल के लिए आईबी, आयकर विभाग, सीबीआई सहित अन्य प्रादेशिक ईकाइयों को सक्रिय कर दिया गया है। उल्लेखनीय है कि मप्र के नौकरशाहों में से जिन 289 अफसरों ने अपनी संपत्ति का ब्यौरा दिया है उससे पीएमओं और केंद्रीय कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग संतुष्ट नहीं है। इसलिए जांच एजेंसियों से पड़ताल कराई गई कि आखिरकार ये अफसर रातों-रात अमीर कैसे बन गए और इन्होंने अपनी संपत्ति कहां और किसके नाम से दबाई है। ज्ञातव्य है कि पिछले तीन साल में देश भर में 39 आईएएस, 7आईपीएस समेत अब तक 54 नौकरशाह विभिन्न मामलों में दोषी पाए जा चुके हैं जबकि 260 से अधिक नौकरशाहों के खिलाफ मुकदमें चल रहे हैं। यह आकड़े 2010 से लेकर 17 फरवरी 2015 तक के हैं। इनमें ज्यादातर मामले भ्रष्टाचार से जुड़े हैं। 117 फरवरी तक भारतीय प्रशासनिक सेवा के 19, भारतीय पुलिस सेवा के 3 और संबद्ध केन्द्रीय सेवाओं के 67 अधिकारियों के खिलाफ जांच लंबित है। इसके अलावा भारतीय प्रशासनिक सेवा के 154, भारतीय पुलिस सेवा के 15 और अन्य संबद्ध केंद्रीय सेवाओं के 102 अधिकारियों के खिलाफ 180 मामलों में मुकदमें चल रहे हैं। उधर, मप्र के लोकायुक्त पीपी नावलेकर के अनुसार, प्रदेश में लोकायुक्त के पास 923 मामले अभी भी जांच में हैं, कुल 2839 शिकायतें जांच में ली गईं। 1108 लोगों को रंगे हाथों रिश्वत लेते पकड़ा,169 छापों में 339 करोड़ की अवैध सम्पत्ति का पता लगाया। 852 मामलों में चालान पेश किए गए, 792 शिकायतों का निवारण किया। वह कहते हैं कि लोकायुक्त को छापामार कार्यवाही में जप्त अनुपातहीन सम्पत्ति को राजसात करने तथा किसी अधिकारी-कर्मचारी या संस्थान पर कार्यवाही के लिए सर्च वारंट जैसी शक्तियों से लैस करने की जरूरत है, इससे भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रभावी व त्वरित कार्यवाही होगी। अभी संसाधन कम हैं, फिर भी बेहतर काम कर रहे हैं।
12 माह में 407 करोड़ की अवैध कमाई का खुलासा एक तरफ केंद्र की मोदी सरकार यूपीए शासनकाल के दौरान हुए भ्रष्टाचार की जांच में जुटी हुई है, वही मप्र में पिछले 12 माह में 174 अधिकारियों-कर्मचारियों पर की गई छापामार कार्रवाई में 407 करोड़ की अवैध कमाई सामने आई है। लोकायुक्त के छापे में अफसरों के घर, बैंक और तिजोरियों ने करोडों की संपत्ति उगली हैं। छापों में करोड़ों के सोने-चांदी के जेवरात, लाखों रुपए की नकदी और अकूत मात्रा में अचल संपत्ति मिली है। यही नहीं अदने से सरकारी कर्मचारियों से लेकर अधिकारियों के घर-परिवार में ऐसे ऐशोआराम-भोगविलासिता के सामान मिले हैं जो शायद अरबपति घरानों के यहां मिलते हैं। इंदौर संभाग के अलग-अलग सरकारी महकमों में भ्रष्टाचार का खुलासा करते हुए लोकायुक्त पुलिस ने पिछले 12 महीने में 52 कारिंदों को रिश्वत लेते रंगे हाथों धर दबोचा।
सरकारी संरक्षण में भ्रष्ट अधिकारियों की संख्या बढ़ी पीएमओ और डीओपीटी की अब तक की पड़ताल में यह बात सामने आई है कि यूपीए शासनकाल में सरकारी संरक्षण में भ्रष्टाचार की राह चलने वाले अफसरों की संख्या बढ़ती गई। साल 2013 में ऐसे अधिकारियों की संख्या तीन गुना से भी ज्यादा बढ़ गई। ये वे भ्रष्ट अधिकारी हैं जिनके खिलाफ जांच पूरी कर सीबीआई आरोप पत्र दाखिल करना चाहती थी, लेकिन यूपीए सरकार ने इसके लिए जरूरी अनुमति नहीं दी। इसके बाद सीबीआई ने 31 दिसंबर 2013 को ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों की सूची जारी की, जिनमें उनकी संख्या बढ़कर 99 हो गई। ये सभी अधिकारी कुल 117 मामलों में फंसे हुए थे। लेकिन सीबीआई द्वारा सूची जारी कर देने भर से भ्रष्ट अधिकारियों को मिल रहा सरकारी संरक्षण कम नहीं हुआ। सीबीआई की ताजा सूची में ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों की संख्या बढ़कर 165 हो गई है। इन 165 अधिकारियों के खिलाफ कुल 331 केस दर्ज हैं, जिनकी जांच पूरी हो चुकी है। यदि भ्रष्ट अधिकारियों और उनके खिलाफ दर्ज मामलों का अनुपात निकाला जाए तो एक भ्रष्ट अधिकारी औसतन भ्रष्टाचार के दो मामलों में लिप्त है। जांच एजेंसी को ठेंगा दिखाने वाले भ्रष्ट अधिकारियों में कस्टम व एक्साइज विभाग के अधिकारी अव्वल हैं। 165 अधिकारियों की सूची में अकेले कस्टम व एक्साइज विभाग के 70 अधिकारी हैं।
5 साल में 25,840 भ्रष्ट अफसरों पर मामला केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) में वर्ष 2009 से लेकर 2013 तक 25,840 अधिकारियों के खिलाफ शिकायत पहुंची। जिनकी जांच में ये दोषी पाए गए और सीवीसी ने इनके विभागों को कार्रवाई करने का निर्देश दिया था। लेकिन कई विभागों ने भ्रष्ट अफसरों के प्रति नरम रवैया अपनाया। खास कर विदेश मंत्रालय और ओएनजीसी समेत कई सरकारी संस्थानों द्वारा भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ नरमी बरतने पर सीवीसी ने नाराजगी जताई। सीवीसी ने कहा कि भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ उचित कार्रवाई नहीं होने से अन्य अफसरों के हौसले भी बुलंद होंगे। सीवीसी द्वारा वर्ष 2013 के लिए तैयार की गई रिपोर्ट के मुताबिक गत वर्ष 17 मामलों में संबंधित संस्थानों ने भ्रष्ट अधिकारियों को दंडित नहीं किया या हल्की-फुल्की कार्रवाई कर छोड़ दिया। इनमें चार दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए), तीन रेल मंत्रालय, दो-दो दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) व ओएनजीसी के अधिकारी शामिल हैं। इसके अलावा केंद्रीय लोक निर्माण विभाग, दिल्ली जल बोर्ड, एलआइसी हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड, विदेश मंत्रालय, एसबीआई और भारतीय मानक ब्यूरो के एक-एक भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ भी पक्षपाती रवैया अपनाया गया। नौकरशाहों पर भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर मप्र भले ही तीसरे स्थान पर है लेकिन यहां के हर चौथे अधिकारी-कर्मचारी पर कोई न कोई आरोप है। पिछले 10 साल से जिस तरह के मामले उजागर हो रहे हैं, उनसे इतना तो साफ है कि चाहे नौकरशाही हो या फिर अन्य अधिकारी-कर्मचारी सबके सब भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं। पंचायत के सचिव से लेकर सरकार के बड़े अफसरों तक के यहां पड़े छापों में जो सच्चाई सामने आई है वह आंखें खोलने के लिए काफी है। हजारों कमाने वाला पंचायत सचिव करोड़ों का मालिक निकला तो लाखों कमाने वाला अफसर अरबों का। इस तरह के कर्मचारियों और राज्य स्तर के अधिकारियों की एक लंबी सूची है। राज्य सरकार दावा करती है कि प्रदेश में भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कदम उठाए जा रहे हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि अपने छापों को लेकर चर्चा में रहने वाला लोकायुक्त भी भ्रष्टाचार के मामलों में खुद को असहाय पाता है। आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों में तो लोकायुक्त के हाथ वैसे ही बंधे हुए हैं। इन वर्गों के अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए उसे केंद्र सरकार से अनुमति लेनी पड़ती है। लेकिन राज्य सरकार के कर्मचारियों और अधिकारियों के मामले में भी हालात कमोबेश ऐसे ही हैं। लोकायुक्त के ताजा आंकड़े बताते हैं कि करीब 150 मामलों में भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए उसे प्रशासनिक स्वीकृति का इंतजार है। लोकायुक्त द्वारा समय-समय पर याद दिलाए जाने के बाद भी राज्य सरकार की तरफ से मंजूरी न दिया जाना सरकार की नीयत पर सवाल खड़ा करता है।
एक बार फिर पत्र लिखा लाकायुक्त ने लोकायुक्त जस्टिस पीपी नावलेकर ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को एकबार फिर लिखकर 135 प्रकरणों का जिक्र करते हुए संकेतों में भ्रष्टाचार के दोषियों को बचाने का अंदेशा जता दिया है। लोकायुक्त जस्टिस नावलेकर ने 8 जनवरी 15 को मुख्यमंत्री को यह खत लिखा है। खत में लोकायुक्त ने भ्रष्ट आचरण वाले अधिकारी-कर्मचारी के खिलाफ चालान पेश होने की स्थिति में निलंबन के प्रावधान का स्मरण कराया है। इसके बाद उन्होंने लिखा है 31 दिसंबर 2014 की स्थिति में लोकायुक्त पुलिस के समक्ष कुल 135 ऐसे प्रकरण हैं जिनमें आरोपित शासकीय सेवकों के खिलाफ सक्षम प्राधिकारी से अभियोजन स्वीकृति मिल चुकी है और इनके खिलाफ चालान भी पेश किए जा चुके हैं। पत्र में लिखा है कि कई शासकीय सेवक ऐसे हैं जिनके खिलाफ लोकायुक्त द्वारा चालान पेश किए दो साल से ज्यादा हो चुके हैं, लेकिन संबंधित को निलंबित किया है अथवा नहीं, इसकी जानकारी प्राप्त नहीं हुई है। चि_ी में लिखा है 'भ्रष्टÓ शासकीय सेवकों के विरुद्ध त्वरित एवं प्रभावी कार्यवाही की शासन की मंशा के प्रति समाज में जहां प्रतिकूल छवि निर्मित होती है वहीं भ्रष्ट सेवकों के यथावत पद पर बने रहने से साक्ष्य/साक्षियों को प्रभावित करने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। खत के साथ लोकायुक्त ने सभी 135 प्रकरणों में आरोपित अफसरों और कर्मचारियों के नाम भी सीएम को भेजे हैं और इन सेवकों को शीघ्र निलंबित करने के संबंध में प्रभावी कार्रवाई करने का मशविरा दिया है।
आईएएस पर नकेल कसने विवेकानंद फार्मूला अपनाएगी सरकार नौकरशाहों पर अंकुश लगाने के लिए मोदी सरकार विवेकानंद फार्मूला अपनाने जा रही है। जिस तरह विवेकानंद ने विद्यालय में श्यामपट्ट पर अंकित सीधी रेखा को बिना छुए श्यामपट्ट पर एक और सीधी रेखा खींच कर पहली रेखा को छोटी कर दिया था उसी तरह अब केंद्र सरकार आईएएस अधिकारियों के बढ़ते दबदबेको विवेकानंद फॉर्मूले से कम करेगी। यानी योग्य अधिकारियों को तव्वजो दी जाएगी और नकारा को हासिए पर डाल दिया जाएगा। सरकार का मानना है कि मंत्रालय के भीतर और बाहर तमाम अवसरों के अतिरिक्त नियामकीय पदों पर आईएएस अधिकारियों के तकरीबन एकाधिकार सरीखी स्थिति के कई कारण हो सकते हैं। समय-समय पर सरकार ने भी ने ऐसे वर्चस्व पर चिंता जाहिर की है जिसका नतीजा यही निकलता है कि उतने ही प्रतिभाशाली और कुशल गैर-आईएएस अधिकारी उन पदों से वंचित रह जाते हैं। मगर यह समस्या बड़े स्तर पर अनसुलझी ही रही है। इसलिए, आखिर एक शक्तिशाली सेवा का सृजन क्यों नहीं किया जाए जिसमें प्रतिभाशाली लोगों को लुभाने का आकर्षण हो और उन्हें अहम पदों पर नियुक्त किया जा सके? पीएमओ के एक अधिकारी कहते हैं कि जब तक अधिकारियों का अधिक शक्तिशाली काडर नहीं बनाएंगे तब तक आईएएस बिरादरी का दबदबा लगातार बढ़ता रहेगा। यदि पूरे देश में महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक पदों पर आईएएस अपनी पकड़ बनाए रखने में कामयाब हुए हैं तो इसकी बड़ी वजह यही है कि इसके सदस्यों ने मंत्रालयों के अहम पदों या फिर सरकार की पेशेवर संस्थाओं पर किसी दूसरे काडर के सदस्यों को काबिज नहीं होने दिया। इस तरह सांख्यिकी विभाग की कमान शायद ही भारतीय सांख्यिकी सेवा के किसी अधिकारी के हाथ में होगी। यहां तक कि राजस्व विभाग में सचिव पद पर परंपरागत रूप से आईएएस अधिकारी की ही नियुक्ति होती रही है जिसमें भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारियों के दावे की अनदेखी होती रही। विधि मंत्रालय में भी कमोबेश यही कहानी है। भारतीय विधि सेवा के अधिकारी कहां हैं और उन्हें इस तरह से प्रशिक्षित क्यों नहीं किया जाना चाहिए कि वे मंत्रालय में शीर्ष पद संभाल सकें? भारतीय आर्थिक सेवा में भी लगातार पराभव हुआ है, उसके कुछ अधिकारी ही देश की वृहद आर्थिक स्थिति के अवलोकन के लिए आर्थिक मामलों के विभाग में पदस्थापित हुए हैं। यह सूची बहुत लंबी हो सकती है लेकिन इसका मुख्य बिंदु एकदम स्पष्ट है। अत: इसी सोच के साथ सरकार विवेकानंद की तरह एक नई सेवा शुरू करने पर विचार कर रही है जो आईएएस से भी शक्तिशाली हो। विवेकानंद फॉर्मूला तभी कामयाब हो सकता है जब सरकार बतौर आईएएस विकल्प आंतरिक तौर पर प्रतिभाशाली अधिकारियों का वर्ग तैयार करने की जरूरत पर ध्यान देना शुरू करे। हर नियामकीय संस्था को अधिकारियों का अपना काडर विकसित करने पर समय और ऊर्जा खर्च करनी चाहिए जो शीर्ष पदों पर भी पहुंच सकें। यही दबाव आईएएस के बढ़ते दबदबे को कम करने का सबसे बेहतर तरीका होगा। सरकार को कई ऐसी सीधी रेखाएं खींचनी होंगी जो आईएएस की रेखा से लंबी हो जो काफी पहले खींची गई थी और अभी भी उसे कोई चुनौती नहीं मिल रही है।
सुस्त नौकरशाही को बनाया जाएगा डायनामिक सुस्त नौकरशाही को डायनामिक बनाने के लिए मोदी सरकार ने कुछ इस तरह का खाका तैयार कर लिया है कि अब उन्हें गतिशील होना ही होगा। लालफीताशाही की सुस्त रफ्तार का असर देश के विकास पर पड़ता है। पर नौकरशाही अपने पारम्परिक अंदाज में काम करने से बाज नहीं आती। यही कारण है कि भारत की नौकरशाही विश्व के काहिल नौकरशाही में शुमार की जाती रही है। इतना ही नहीं हॉंगकॉंग स्थित संस्था, 'पॉलिटिकल एन्ड इकनॉमिक रिस्क कंसलटेंसीÓ ने 2012 की अपनी रिपोर्ट में एशियाई देशों में नौकरशाही को एक से 10 तक क्रमबद्ध किया था। इसमें 10 सबसे बुरी स्थिति का सूचक है। भारत को इस 9.21 अंक मिले थे यानी सभी देशों में सबसे कम। भारत में नौकरशाही की स्थिति वियतनाम, इंडोनेशिया, फिफलिपीन्स और चीन से भी बदतर है। पर मोदी सरकार ने इसमें नयी धार लाने के लिए कई महत्वपूर्ण उपाय किये हैं।
ऐसे आएगी जिम्मेदारी नौकरशाहों को उनके काम के प्रति जिम्मेदार बनाने के लिए मोदी सरकार ने आला सचिवों के लिए फाइलों को निपटाने के साथ ही कैबिनेट से जुड़े नोट और अंतर मंत्रालय विचार-विमर्श के लिए डेडलाइन तय करने का फैसला किया है। कैबिनेट सचिव अजित सेठ को इस काम पर लगाया गया है। नतीजा यह है कि अंतर मंत्रालय नोट और कैबिनेट से जुड़े मुद्दों पर 15 दिन की मियाद के अंदर ही फैसला करना होगा। अगर कोई मंत्रालय या विभाग इन पंद्रह दिनों की मियाद के भीतर नोट पर अपनी सहमति नहीं देता तो संबंधित मंत्रालय या विभाग आगे की कार्यवाही के लिए स्वतंत्र होगा। मोदी सरकार के इस फैसले का सीधा मतलब हुआ कि अगर कोई विभाग काम में आनाकानी करता है तो उसका महत्व खुद ही समाप्त हो जाएगा और उन नौकरशाहों की उपयोगिता भी बेमानी हो कर रह जाएगी। इतना ही नहीं इस कवायद के तहत अगर कोई मंत्रालय काम करने में या फैसला लेने में कोताही करता है तो निर्धारित 15 दिनों के भीतर खुद ब खुद यह मान लिया जाएगा कि पीएमओ ने इसे मंजूरी दे दी है। इतना ही नहीं इस मामले में अगर किसी मंत्रालय का सचिव निश्चित समय सीमा में काम नहीं करते या जवाब नहीं देते तो उन्हें कैबिनेट के सामने पेश होकर इसकी वजह बतानी होगी। सचिवालय का कहना है कि इस कवायद का असली मकसद फैसला लेने की प्रक्रिया में तेजी लाना है। इन तमाम प्रक्रियाओं के बाद पीएमओ तमाम मंत्रालयों की प्रगति पर नजर रखेगा इसके लिए तमाम मंत्रालय अपनी फाइलों को पीएमओ को भेजना होगा
रिटायर्ड अधिकारियों का बनेगा पूल सरकार रिटायर हो चुके बेहतरीन अधिकारियों की फिर सेवा लेने का रास्ता तलाश रही है। मोदी सरकार नियमों में बदलाव कर ऐसे रिटायर्ड अफसरों को जरूरत पडऩे पर अहम विभागों में नीतिगत पदों पर तैनात कर सकती है। डीओपीटी को ट्रैक रेकॉर्ड के साथ ऐसे अफसरों की पहचान को कहा गया है। पीएमओ में तो इसकी शुरूआत पहले ही हो चुकी है।
गुजरात मॉडल की तर्ज पर ब्रेन स्टॉर्मिंग सेशन सूत्रों के अनुसार, गुजरात की तर्ज पर प्रधानमंत्री दिल्ली में भी सीनियर अफसरों के साथ ब्रेन स्टॉर्मिंग सेशन पर जा सकते हैं। पीएमओ और डीओपीटी साथ मिलकर इसके स्वरूप को तैयार कर रहे हैं। गुजरात में मुख्यमंत्री के रूप में मोदी सभी विभागों के प्रमुख अफसरों के साथ साल में एक बार दो दिनों के लिए ब्रेन स्टॉर्मिंग सेशन में जाते थे। इसमें विभागीय मंत्री नहीं आते थे। इस दौरान मुख्यमंत्री और अधिकारी लगातार साथ होते थे और आपस में तमाम बातों पर खुलकर बात करते थे। इसके पीछे मोदी का एक ही मकसद होता समिलित विकास। अब यही फार्मूला केंद्र में भी अपनाया जाएगा। इसीलिए प्रधानमंत्री गंभीर मामलों को छोड़कर अन्य मामलों में फंसे अफसरों को राहत देने की तैयारी कर रहे हैं।
मप्र के इन अफसरों को उनके आरोप से मिल सकती है मुक्ति - एंटोनी डिसा - निविदा स्वीकृति में अनियमितताएं - राकेश साहनी - पुत्र को 5 लाख रूपए कम में विमान प्रशिक्षण दिलाया - मनीष श्रीवास्तव त्रैमासिक अर्धवार्षिक परीक्षा के मुद्रण कार्य में घोटाला - अरूण पांडे खनिज लीज में ठेकेदारों को अवैध लाभ पंहुचाना - प्रभात पाराशर - वाहनों के क्रय में 5 लाख से अधिक का भ्रष्टाचार - गोपाल रेड्डी - कालोनाईजरों को अनुचित लाभ पहुंचाना, शासन को आर्थिक हानि पहुंचाना - अनिता दास - ऊन तथा सिल्क साडिय़ों के क्रय में भ्रष्टाचार - दिलीप मेहरा - कार्यपालन यंत्री से अधीक्षण यंत्री की पदोन्नति में अनियमितताएं - मोहम्मद सुलेमान - कालोनाईजरों को अवैध लाभ पंहुचाना - टी राधाकृष्णन - दवा खरीदी में अनियमितताएं - एसएस उप्पल - पांच लाख रूपए लेकर भूमाफियाओं को अनुज्ञा दी - अस्ण भट्ट - भारी रिश्वत लेकर निजी भूमि में अदला बदली - निकुंज श्रीवास्तव - पद का दुरूपयोग एवं भ्रष्टाचार, दो शिकायतें - एमके सिंह - तीन करोड़ रूपए का मुद्रण कार्य आठ करोड़ रूपए में कराया - एमए खान - भ्रष्टाचार एवं वित्तिय अनियमितताएं, तीन शिकायतें - संजय दुबे - शिक्षाकर्मियों के चयन में अनियमितताएं - रामकिंकर गुप्ता - इंदौर योजना क्रमांक 54 में निजी कंपनी को सौ करोड़ रूपए का अवैध लाभ पंहुचाया - एमके वाष्र्णेय - सम्पत्तिकर का अनाधिकृत निराकरण करने से निगम को अर्थिक हानि - आरके गुप्ता - निविदा स्वीकृति में अनियमितताएं - केदारलाल शर्मा - सेन्ट्रीफयूगल पम्प क्रय में अनियमितताएं - शशि कर्णावत - पद का दुरूपयोग, दो शिकायतें - केके खरे - पद का दुरूपयोग कर भ्रष्टाचार - विवेक अग्रवाल - 21 लाख रूपए की राशि का मनमाना उपयोग - एसके मिश्रा - खनिज विभाग में एमएल, पीएल आवंटन में भ्रष्टाचार - महेन्द्र सिंह भिलाला - 75 लाख रूपए की खरीदी में अनियमितताएं - अल्का उपाध्याय - भारी धन राशि लेकर छह माह तक दवा सप्लाई के आदेश जारी नहीं किए - सोमनाथ झारिया - 4 वर्षों से भ्रष्टाचार एवं पद का दुरूपयोग करना - डा. पवन कुमार शर्मा - बगैर रोड़ बनाए ठेकेदार को पांच लाख का भुगतान करना - पी नरहरि - सड़क निर्माण व स्टाप डेम में गड़बड़ी - तरूण गुप्ता - फर्जी यात्रा देयक - आरके गुप्ता - इंदौर में मैंकेनिक नगर में गलत तरीके से लीज - डीके तिवारी - ट्रेजर आईलैंड की भूमि उपांतरित करने में गड़बड़ी - एवी सिंह - ट्रेजर आईलैंड की भूमि उपांतरित करने में गड़बड़ी - एसएस अली - फर्जी फर्मों के द्वारा सर्वे सामग्री एवं कम्प्यूटर खरीदी - एमके अग्रवाल - फर्जी फर्मों के द्वारा सर्वे सामग्री एवं कम्प्यूटर खरीदी - राजेश मिश्रा - फर्जी दस्तावजों के आधार पर आचार सत्कार शाखा में गड़बड़ी - शिखा दुबे - अनुसूचित जाति, जनजाति के विधार्थियों की गणवेश खरीदी में अनियमितता - जीपी सिंघल - सेमी ओटोमेटिक प्लांट की जगह प्राइवेट डिस्टलरी से देशी शराब की वाटलिंग कराने का आरोप -स्व. टी धर्माराव - सेमी ओटोमेटिक प्लांट की जगह प्राइवेट डिस्टलरी से देशी शराब की वाटलिंग कराने का आरोप - योगेन्द्र कुमार - शराब की दूकान बंद कराने की धमकी देकर लाईसेंसधारियों से अवैध वसूली - आरएन बैरवा - अनुसूचित जाति के छात्रों के भोजन बजट में गड़बड़ी - मनीष रस्तोगी - सतना में रोजगार गारंटी योजना में 10 करोड़ की अनियमितता - विवेक पोरवाल - सतना में रोजगार गारंटी योजना में 10 करोड़ की अनियमितता - हरिरंजन राव - रायल्टी का भुगतान नहीं करने से शासन को लाखों की चपत लगाई - अंजू सिंह बघेल - मनरेगा में भुगतान की गडगड़़ी - एसएस शुक्ला - बाल श्रमिक प्रशिक्षण में आठ करोड़ रूपए का दुरूपयोग - सीबी सिंह - बिल्डर्स को लाभ पहुंचाने के लिए अवैध निर्माण व बिक्रय - प्रमोद अग्रवाल - औधोगिक केन्द्र विकास निगम में अनियमितताएं - आशीष श्रीवास्तव - एमपीएसआईडीसी की राशि का एक मुश्त उपयोग कर बैंक लोन पटाने का मामला - संजय गोयल - मनरेगा में कुंआ निर्माण में अनियमितता - निकुंज श्रीवास्तव - रेडक्रास सोसाइटी में आर्थिक गड़बड़ी - एसएन शर्मा - ट्रांसफर के बाद बंगले पर फाइलें बुलाकर आम्र्स लायसेंस स्वीकृत किए - मनीष श्रीवास्तव - चार शिकायतें, शिवपुरी, टीमकगढ़ में अर्धवार्षिक परीक्षा में गलत भुगतान, राजीव गांधी शिक्षा मिशन में निर्माण में अनियमितता, दवा व बिस्तर खरीदी में गड़बड़ी, उत्तर पुस्तिका छपाई और गणवेश खरीदी और खदानों का गलत तरीके से आवंटन आदि।
इनको भी मिलेगी राहत
प्रदेश के उन कुछ चर्चित मामलों में भी दागदारों को राहत मिल सकती है, जो वर्षों से लंबित है। उनमें से मप्र विद्युत मंडल में विद्युत मीटर खरीदी मामले में लोकायुक्त में पुन: जांच शुरू हो गई है। मप्र विद्युत मंडल में सदस्य (वित्त) रहते हुए अजीता वाजपेयी ने विद्युत मीटर खरीदी की थी जिसमें कई करोड़ों के घोटाले का आरोप है। उल्लेखनीय है कि लोकायुक्त पुलिस में दस साल में 19 आईएएस अफसरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो चुकी हैं लेकिन पांच वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य नहीं होने का कारण बताकर अदालत में उनके मामलों का खात्मा भेज दिया गया। दो अधिकारियों के मामले में विशेष न्यायालयों के निर्णय को लेकर लोकायुक्त पुलिस की ओर से हाईकोर्ट में अपील की गई है। इनमें से सर्वाधिक तीन-तीन मामले सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी यूके सामल और आरके गुप्ता के खिलाफ हैं। रमेश थेटे के खिलाफ भी दो मामले दर्ज हो चुके हैं जिनमें से रिश्वत लेते पकड़े जाने के एक मामले में थेटे को विशेष न्यायालय ने सजा दी थी। इसके बाद उन्हें सेवा से पृथक कर दिया गया। फिर उन्हें हाईकोर्ट ने बरी किया लेकिन लोकायुक्त पुलिस इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील में गई है। इसके अलावा दो प्रशासनिक अधिकारी अशोक देशवाल और लक्ष्मीकांत द्विवेदी के खिलाफ जब प्रकरण दर्ज हुआ था तब उन्हें आईएएस नहीं मिला था। अभी वे आईएएस अधिकारी हैं। उनके खिलाफ भी लोकायुक्त पुलिस में दो एफआईआर दर्ज हैं। एक अन्य आईएएस संजय शुक्ला ने नगर निगम आयुक्त के कार्यकाल में दो करोड़ रुपए की खरीदी की थी जिसमें सामग्री की कीमत केवल 96 लाख रुपए पाया जाना प्रमाणित हुआ है। इस प्रकार उन पर बिना टेंडर, कोटेशन के एक करोड़ चार लाख रुपए का एक फर्म को लाभ पहुंचाया। हैरानी की बात यह है कि वे इस समय प्राइम पोस्ट पर हैं। रतलाम कलेक्टर और नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष की हैसियत से विनोद सेमवाल ने विनोद पारिख नाम के व्यक्ति को शहरी क्षेत्र की जमीन दे दी। कटनी में हाउसिंग बोर्ड के प्रोजेक्ट के लिए ज्यादा कीमत पर जमीन खरीदी का मामला तत्कालीन आयुक्त हाउसिंग बोर्ड राघवचंद्रा और कटनी कलेक्टर शहजाद खान के अब तक गले पड़ा हुआ है। वहीं शिवपुरी भू-अर्जन अधिकारी के रूप में एलएस केन ने आईटीबीपी के लिए अधिग्रहित जमीन का मुआवजा किसानों को नहीं देकर मध्यस्थ को दे दिया था। हालांकि 26 मार्च 2014 को शिवपुरी के जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने छत्तीसगढ़ में पदस्थ आईएएस अधिकारी एलएस केन और डिप्टी कलेक्टर आरएन शर्मा को का दोषी मानते हुए दो-दो साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई है। दोषियों पर 10-10 हजार रुपए का अर्थदंड भी लगाया गया है। सजा सुनाने के बाद अदालत ने एलएस केन की जमानत भी मंजूर कर ली।
बाबुओं को इस वर्ष दो बार देना होगा संपत्ति का विवरण
सरकार किसी भी स्तर पर किसी भी कर्मचारी के खिलाफ भेदभाव नहीं करना चाहती। केंद्र सरकार ने अभी तक भ्रष्टाचार निरोधक निकाय लोकपाल का गठन नहीं किया है। इस संबंध में एक संशोधन विधेयक की एक संसदीय समिति द्वारा पड़ताल की जा रही है। लोकपाल-लोकायुक्त और इससे संबंधित अन्य संशोधन विधेयक गत वर्ष आठ दिसंबर को लोकसभा में पेश किए गए थे। केंद्र सरकार के सभी अधिकारियों को इस साल अपनी संपति और जिम्मेदारियों से संबंधित ब्योरा दो बार देना होगा। लोकपाल अधिनियम के कार्यान्वयन के मद्देनजर यह फैसला लिया गया है। लोकपाल-लोकायुक्त अधिनियम के तहत अधिकारियों को पहली अगस्त, 2014 तक का पहला रिटर्न इस साल 30 अप्रैल से पहले जमा करना होगा। अधिनियम के तहत 31 मार्च 2015 को समाप्त हो रहे मौजूदा वित्तीय वर्ष के लिए रिटर्न 31 जुलाई से पहले देना होगा। केंद्रीय कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग द्वारा जारी आदेश में यह जानकारी दी गई है।

व्यापमं महाघोटाला... राज्यपाल का विकेट गिरते ही प्रदेश की राजनीति में आएगा भूचाल

हाईकोर्ट में प्रस्तुत दस्तावेज के बावजूद 3195 छात्रों की आज तक जांच नहीं, अब एसआईटी करेगी पूछताछ
विनोद उपाध्याय
भोपाल। देश के सबसे बड़े घोटाले में मप्र के राज्यपाल रामनरेश यादव के खिलाफ एसटीएफ द्वारा एफआईआर दर्ज किए जाने के बाद प्रदेश की राजनीति में भूचाल आ गया है। यह इस बात का संकेत है कि इस महाघोटाले में संलिप्त अब वीवीआईपी पर भी गाज गिरनी शुरू हो गई है। व्यापमं महाघोटाले का जो पिटारा फिर से खुला है उसमें राज्यपाल का विकेट अगर गिरता है तो प्रदेश की राजनीति में भूचाल आ जाएगा। शिवराज सरकार ने राज्यपाल को बचाने के लिए तो एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था, मगर हाईकोर्ट में सुनवाई होने और धारा 120बी में राज्यपाल के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने पर उनके पास इस्तीफा देने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा है। इधर पुलिस विभाग के कई अफसर भी इस महाघोटाले की चपेट में आ रहे हैं। उल्लेखनीय है की 24 फरवरी को रामनरेश यादव के खिलाफ वन रक्षक भर्ती में सिफारिश करने के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई है। एसटीएफ सूत्रों ने जानकारी दी है कि रामनरेश यादव पर आरोप है कि उन्होंने 2012 में वन रक्षक परीक्षा में तीन लोगों को भर्ती करने के लिए चि_ी लिखी थी। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट और एसआईटी से हरी झंडी मिलने के बाद एसटीएफ ने राज्यपाल के खिलाफ एफआईआर दर्ज की। व्यापमं घोटाले को सबसे पहले उजागर करने वाले अभय चोपड़ा ने मय प्रमाण एसआईटी को व्यापमं से जुड़े सबूत सौंपे हैं, जिसमें इंदौर के तत्कालीन एसपी पश्चिम अनिलसिंह कुशवाह की भूमिका संदिग्ध बताई गई है और संभवत: एसआईटी उनके साथ अन्य अफसरों से भी पूछताछ कर सकती है। व्यापमं महाघोटाले की जांच कर रहे एसटीएफ पर यह भी आरोप लगाया गया है कि उसने हाईकोर्ट में प्रस्तुत दस्तावेजों के आधार पर संदिग्ध पाए गए 3195 छात्रों से आज तक पूछताछ ही नहीं की। सबसे पहले इंदौर पुलिस ने 2013 में पीएमटी परीक्षा में होने वाली गड़बड़ी को पकड़ा था, जो बाद में व्यापमं का महाघोटाला साबित हुआ। हालांकि कांग्रेस इस मुद्दे को पहले विधानसभा और फिर लोकसभा और यहां तक कि अभी हुए नगरीय निकायों के चुनावों में भी पूरी ताकत से नहीं उठा सकी। अलबत्ता मीडिया में अवश्य यह घोटाला सुर्खियों में रहा, क्योंकि पंकज त्रिवेदी से लेकर नितिन महिंद्रा और पूर्व जनसम्पर्क मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा और खनन माफिया सुधीर शर्मा जैसों की गिरफ्तारी के कारण यह मामला निरंतर चर्चा में तो रहा, मगर प्रदेश की भाजपा सरकार को जोरदार तरीके से जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सका। लेकिन जब पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के महासचिव दिग्विजयसिंह के पास यह मामला पहुंचा तो उन्होंने गंभीरता से दस्तावेजों की जांच-पड़ताल की और उसके बाद पूरी ताकत झोंक दी इस महाघोटाले को उजागर करने में। दिग्विजयसिंह के कारण ही प्रदेश की शिवराज सरकार कठघरे में खड़ी हुई और पिछले दिनों कांग्रेस के बड़े नेताओं और ख्यातनाम अधिवक्ताओं के साथ पत्रकार वार्ता लेकर सीधे-सीधे मुख्यमंत्री पर ही आरोप लगाए, जिसके बाद भोपाल से लेकर दिल्ली तक हंगामा मच गया। इसके बाद पूरी शिवराज सरकार कांग्रेसी राज्यपाल रामनरेश यादव को बचाने में जुट गई, क्योंकि राज्यपाल के बेटे शैलेष का नाम स्पष्ट होने के बाद राज्यपाल ने अभिभाषण के वक्त ही इस्तीफा देने का मन बना लिया था, लेकिन अगर राज्यपाल इस्तीफा दे देते तो फिर शिवराज की मुसीबत कई गुना बढ़ जाती। लिहाजा उनके साथ-साथ पूरी भाजपा सरकार ने राज्यपाल को मनाया कि वे अभी इस्तीफा ना दें। मगर अभी पिछली सुनवाई में हाईकोर्ट ने अतिविशिष्टों के खिलाफ भी सख्ती से कार्रवाई करने के निर्देश एसआईटी को दे दिए, उसके बाद सूत्रों का कहना है कि हाईकोर्ट में जो 17 लोगों की सूची वाले सीलबंद लिफाफे सौंपे गए हैं उसमें राज्यपाल के अलावा 4 मंत्री, 2 पूर्व मंत्री, 5 पावरफुल नेता के अलावा कई अफसरों के नाम भी हैं। राज्यपाल को धारा 120बी में आरोपी बनाया गया है। यहां तक कि मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को नई दिल्ली जाकर आलाकमान सहित प्रधानमंत्री और अन्य नेताओं को सफाई भी देना पड़ी।
अभय चोपड़ा ने एसआईटी को सौंपा सबूत
इधर इस पूरे घोटाले को सबसे पहले उजागर करने वाले नागदा निवासी अभय चोपड़ा ने अभी एसआईटी के चेयरमैन और रिटायर्ड जस्टिस चन्द्रभूषण को कई सबूत सौंपे हैं। चोपड़ा के मुताबिक व्यापमं की 6 सदस्यीय कम्प्यूटर कमेटी ने 3195 छात्र 11 डिजीट से मिसमैच पाए थे और 2 डिजीट से 876 छात्र मिसमैच निकले और एसटीएफ को इसका पूरा ब्यौरा 30.09.2013 को व्यापमं द्वारा दे दिया गया था, लेकिन एसटीएफ ने गिरोह सरगना की डायरी से प्राप्त 317 और 52 छात्रों के संदिग्ध होने का ही पत्र दिया और 3195 छात्रों से आज तक पूछताछ ही नहीं की, जबकि इंदौर हाईकोर्ट में प्रस्तुत किए गए दस्तावेजों में भी इन तमाम सबूतों का खुलासा किया गया था। उन्होंने इंदौर के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक पश्चिम अनिलसिंह कुशवाह की भूमिका भी संदिग्ध बताई। उनके साथ ही एसटीएफ पर भी आरोप लगाए गए कि सारे दस्तावेजी सबूत होने के बावजूद न्यायालय तक को गुमराह किया गया। संभव है कि इंदौर के तत्कालीन एसपी सहित अन्य अफसरों से इस मामले में नए सिरे से पूछताछ हो सकती है। फिलहाल तो सबकी निगाह राजभवन पर टिकी है, क्योंकि पहले गृहमंत्री बाबूलाल गौर ने भी राज्यपाल से मुलाकात की, वहीं एसटीएफ के एडीजी सुधीर शाही दो दिन तक नईदिल्ली में ही डेरा डाले रहे। वहां से आते ही उन्होंने राज्यपाल के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली।
इंदौर आईजी ने ही पकड़ा था व्यापमं घोटाला यह भी उल्लेखनीय है कि व्यापमं का जो महाघोटाला उजागर हुआ उसकी शुरुआत इंदौर से ही हुई थी। आईजी विपिन माहेश्वरी को सूचना मिली थी कि पीएमटी परीक्षा 2013 के लिए कुछ गिरोह शहर की होटलों में ठहरे हैं जो मुन्नाभाई बनकर परीक्षा में बैठते हैं। इस पर आईजी ने दबिश डलवाकर कई फर्जी परीक्षार्थी यानी मुन्नाभाइयों को पकड़ा और डॉ. जगदीश सागर सहित अन्य नाम उजागर हुए। बाद में पंकज त्रिवेदी, नितिन महिंद्रा और अन्य घोटालेबाजों की गिरफ्तारियां भी हुई, लेकिन मामले में जब पुलिस प्रशासन के साथ-साथ बड़े राजनेता घिरने लगे तब इंदौर पुलिस ने भी अपनी कार्रवाई ना सिर्फ ढीली की, बल्कि दोषी छात्रों से पूछताछ भी नहीं हो सकी और इस मामले में एसटीएफ ने तो राजनीतिक दबाव-प्रभाव के चलते पूरे घोटाले को ही दबाने का प्रयास किया, मगर बाद में जबलपुर हाईकोर्ट ने जब इसकी मॉनिटरिंग अपने हाथ में ली, उसके बाद लक्ष्मीकांत शर्मा से लेकर सुधीर शर्मा और अन्य की गिरफ्तारियां भी हुईं। अफसर पिता की बजाय चाचा को बना डाला अभियुक्त एक तरफ एसटीएफ ने कई बेकसूर छात्रों और उनके अभिभावकों को पकड़कर जेल में ठूंस दिया, तो कई बड़े घोटालेबाज और दोषी बाहर घूम रहे हैं। दरअसल व्यापमं घोटाले में सबसे ज्यादा हल्ला इस बात को लेकर भी मचा कि इसमें सैकड़ों बेकसूर छात्र-छात्राओं को ना सिर्फ जेल जाना पड़ा, बल्कि उनका पूरा कॅरियर ही चौपट कर दिया गया। इनमें से कई छात्र और उनके पालक तो सिर्फ मौजूदा सिस्टम के ही शिकार बन गए। इस पूरे मामले में एक बड़ा फर्जीवाड़ा यह भी सामने आया कि जहां एसटीएफ ने ताबड़तोड़ कई छात्रों और उनके पालकों की गिरफ्तारियां कीं और दोषी छात्रों के पिता को अभियुक्त बनाया, लेकिन एक आला अफसर जो कि उज्जैन के संभागायुक्त रहे के.सी. जैन के मामले में उनके लड़के के फर्जी प्रवेश के चलते उसके चाचा को अभियुक्त बना डाला। उल्लेखनीय है कि के.सी. जैन इंदौर विकास प्राधिकरण के भी लगभग 5 साल तक सीईओ रह चुके हैं और बाद में उन्हें आईएएस अवॉर्ड पारित हुआ, जिसके चलते वे कुछ जिलों के कलेक्टर और उसके बाद उज्जैन के संभागायुक्त भी बने। उनके पुत्र के फर्जी प्रवेश का खुलासा होने के बाद अपराधी के रूप में के.सी. जैन की बजाय उनके भाई यानी छात्र के चाचा को अभियुक्त बना दिया, जबकि अन्य किसी भी प्रकरण में ऐसा नहीं किया गया। हालांकि बाद में केसी जैन का नाम भी शामिल किया गया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से उन्हें और उनके पुत्र को अग्रिम जमानत मिल गई। दिल्ली दरबार से शिवराज को फिलहाल राहत मौजूदा घटनाक्रम को लेकर भोपाल से लेकर दिल्ली तक सरगर्मी है और मीडिया में रोजाना अटकलें लगाई जा रही हंै कि राज्यपाल का विकेट कब तक गिरेगा और उसके बाद मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की स्थिति क्या रहेगी? सोशल मीडिया में भी इसको लेकर पिछले दो-तीन दिनों से कई तरह के मैसेज चल रहे हैं। नईदिल्ली जाकर मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने भाजपा के बड़े नेताओं से चर्चा की और व्यापमं के मामले में खुद को निर्दोष भी बताया। इधर शिवराज को घेरने वाले दिग्विजयसिंह के कार्यकाल में हुई नियुक्तियों और अन्य मामलों की फाइलों की धूल भी वल्लभ भवन में झाड़ी जा रही है, ताकि दिग्गी को भी घेरा जा सके।
पंकज त्रिवेदी की गिरफ्तारी भी दो माह बाद की
व्यापमं घोटाले के सबसे बड़े मास्टरमाइंड रहे पंकज त्रिवेदी की गिरफ्तारी भी एसटीएफ ने दो माह बाद की, जबकि इंदौर हाईकोर्ट में उनके खिलाफ तमाम दस्तावेज प्रस्तुत किए जा चुके थे। अभी एसआईटी को जो मयप्रमाण दस्तावेज सौंपे गए हैं उनमें यह मुद्दा भी उठाया गया है। दरअसल एक्सल शीट सहित अन्य दस्तावेजों में छेड़छाड़ करने के आरोप लगे हैं। लिहाजा एसआईटी से मांग की गई है कि पंकज त्रिवेदी की गिरफ्तारी दो माह बाद क्यों की गई? तब तक उन्होंने कई दस्तावेज गायब कर दिए। लिहाजा इस मामले में भी एसटीएफ की भूमिका की जांच की जाए।
एसटीएफ कर रही 11 पर एफआईआर करने की तैयारी
व्यापमं घोटाले में एसटीएफ ने कोर्ट को बंद लिफ़ाफ़े में 17 लोगों के नाम सौंपे हैं। लेकिन, पहली कड़ी में 11 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो सकती है। सूत्रों के मुताबिक़ इसकी तैयारी कर ली गई है और फंड कलेक्शन किस तरह से किया जाता था, इसकी डिटेलिंग करने के बाद इनके खिलाफ जुर्म रजिस्टर किया जाएगा। गौरतलब है कि राज्यपाल रामनरेश यादव के बेटे शैलेश का नाम भी इस घोटाले में शामिल है। संभावना है कि पहले क्रम में ही उनके खिलाफ प्रकरण दर्ज कर लिया जाए। हालांकि, अभी इसका खुलासा नहीं किया गया है कि ये 11 लोग कौन होंगे, लेकिन घोटाले में शामिल अतिविशिष्ट लोगों पर कार्रवाई की बात से वीवीआईपी शख्यिसत में हलचल मच गई है। सूत्रों की माने तो एसटीएफ एडीजी सुधीर कुमार शाही इस बात की लिस्टिंग करवा रहे हैं कि किस तरह से फंड कलेक्शन किया जाता था और सबसे पहले किस मामले को लेकर फंड कलेक्शन किया गया। ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि केस को सही तरीके से कोर्ट में पेश किया जा सके। व्यावसायिक परीक्षा मंडल का घोटाला 2012 की प्री मेडीकल टेस्ट की पोस्ट ग्रेजुएट परीक्षा से सामने आया। इस परीक्षा में बैठने वाले छात्रों से 6 महीनेे पहले पैसे जमा कर लिए गए थे। एसटीएफ की पूछताछ में कुछ आरोपियों के बयान हैं, जिसमें कहा गया है कि 2012 की पीएमटी पीजी में पास होने के लिए पैसे दिए गए थे।
करीब 17 भर्तियों से जुड़े हैं घोटाले के तार
व्यापमं मध्य प्रदेश में इंजीनियरिंग-मेडिकल के कोर्स और अलग-अलग सरकारी नौकरियों में नियुक्ति के लिए परीक्षाओं का आयोजन करने वाली संस्था है। पिछले 10 सालों में व्यापमं ने पीएमटी से लेकर पुलिस आरक्षक, उपनिरीक्षक, परिवहन निरीक्षक, संविदा शिक्षक भर्ती सहित कई परीक्षाएं आयोजित की। इन परीक्षाओं में गड़बड़ी पर 17 एफआईआर हुई हैं। 10 सालों में आयोजित 100 से अधिक परीक्षाओं के जरिए बड़ी तादाद में अयोग्य लोगों को नौकरियां या डिग्रियां दिलवाई गईं।
राजनेता, नौकरशाह और दलाल का बना त्रिगुट
साल 2004 से इसकी शुरुआत हुई। इस गोरखधंधे में कई राजनेता, नौकरशाह, दलाल, छात्र और शिक्षण संस्?थान के बड़े अधिकारियों का बड़ा नेटवर्क शामिल था। यहां तक कि फर्जी नियुक्तियां करवाने के लिए कई सरकारी नियमों को ढीला किया गया। कई नियम बदल दिए गए तो कइयों को हटा ही दिया गया। पीएमटी परीक्षा 2012 में अपराध क्रमांक 12/13 धारा 420,467,468,471, 120 बी आईपीसी , 65,66 आईटी एक्ट की धारा, धारा 3 घ 1, 2/4 मप्र मान्यता प्राप्त परीक्षा अधिनियम के तहत दर्ज किया गया। इसके बाद पीएमटी परीक्षा 2013 में एफआईआर दर्ज की गई। दोनों एफआईआर में 104 स्टूडेंट को एसटीएफ ने पकड़ा था।
और खुलती गई सारी परत
इसके बाद व्यापमं के तहत हुई परीक्षाओं में हो रहे फर्जीवाड़े की पोल खुलती चली गई। जांच शुरू हुई तो पटवारी भर्ती परीक्षा, संविदा शिक्षक भर्ती परीक्षा, पुलिस आरक्षी भर्ती परीक्षा, बीडीएस भर्ती परीक्षा, वन रक्षक भर्ती परीक्षा और संस्कृत बोर्ड भर्ती परीक्षा में फर्जी कारनामे सामने आए। इसकी जद में प्रदेश के कई बड़े नेता, मंत्री, नौकरशाह, रिटायर्ड जज, डॉक्टर्स आ गए। यहां तक कि घोटाले के तार राजभवन तक चले गए। इधर एसटीएफ बरकतउल्ला विश्वविद्यालय में हुए बीडीएस घोटाले को उजागर कर चुकी थी। इसलिए पीएमटी घोटाले की जांच स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) को सौंप दी। एसटीएफ ने जब इस मामले में हाथ डाला तो व्यापमं घोटाले के सूत्र खुलते चले गए। अब एसटीएफ, हाईकोर्ट के निर्देश बर बनी एसआईटी की निगरानी में जांच कर रही है।
ये हैं घोटाले के मुख्य किरदार जो जेल में हैं
लक्ष्मीकांत शर्मा, डॉ विनोद भंडारी, ओपी शुक्ला,पंकज त्रिवेदी, सुधीर शर्मा, सीके मिश्रा, नितिन महेंद्रा, डॉ जगदीश सागर, अनिमेश आकाश सिंह, जितेंद्र मालवीय, आरके शिवहरे, रविकांत द्विवेदी, वंदना द्विवेदी, जीएस खानूजा, मोहित चौधरी, नरेंद्र देव आजाद।
क्या है व्यापमं घोटाला
व्यापमं व्यावसायिक परीक्षा मंडल है जो मेडिकल कालेज से दंत चिकित्सा कालेजों में, इंजीनियरिंग कालेजों में प्रवेश के लिए परीक्षायें आयोजित करता था, मध्यप्रदेश सरकार के भ्रष्ट करतूतों ने इस मंडल को नौकरियों की परीक्षाओं और हेर-फेर का अड्डा बना दिया। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह की भाजपा सरकार ने व्यापमं के महाघोटाले के माध्यम से करोड़ों छात्रों का भविष्य बर्बाद कर दिया। घोटाला यह हैं पीएमटी मेडीकल प्रवेश परीक्षा में 50-50 लाख लेकर अपात्र छात्रों को एडमीशन। पात्र छात्र आज भी दर-दर भटक रहे है। मुन्ना भाइयों को नहीं हटा पाई मेडीकल कालेज से सरकार। 18 लाख शिक्षा कर्मी वर्ग- 2 एवं वर्ग- 3 परीक्षाओं में भारी भ्रष्टाचार। बिना कापी में कुछ लिखे ही पैसे वाले पास। पात्र लोग बेरोजगार। विधानसभा में शान से मुख्यमंत्री बोले केवल 1000 फर्जी नियुक्तियां की हैं। संसकृत बोर्ड के बच्चों की नकली अंक सूचियां राज्यमंत्री के प्रेस में छापी गई। 25 हजार से लेकर 2 लाख में बेचीं। ओपन स्कूल के बच्चों की नकली अंक सूचियां बनी फेल बच्चे पास और पास बच्चे फेल। टाइपिंग बोर्ड परीक्षा में बेचीं गई मार्कशीटे हजारों सुपात्र फेल। दुग्ध संघ भर्ती घोटाला। परिवहन आरक्षक घोटाला। डेन्टल कॉलेज (दंत चिकित्सा) प्रवेश में घोटाला भारी भ्रष्टाचार। डी-मेट घोटाला। बी.एड./डी.एड. परीक्षा घोटाला।
एसटीएफ जांच के घेरे में आए 4 मंत्री, 2 पूर्व मंत्री, 5 पावरफुल नेता
बहुचर्चित व्यापमं घोटाला मामले में एसटीएफ की जांच को हाईकोर्ट की हरी झंडी मिलने के बाद अब प्रदेश के चार मंत्री, दो पूर्व मंत्री और पांच पावरफुल नेता भी जांच के घेरे में आ गए हैं। एसटीएफ जांच की मानें तो अतिविशिष्ट के साथ विशिष्ट लोगों के दामन पर भी दाग है। साथ ही बड़े अधिकारी भी जांच की रडार पर हैं। हाईकोर्ट की हामी के बाद जल्द एसटीएफ कई माननीयों के चेहरे से नाकाब हटाएगी। पहली बार एसटीएफ ने मध्य प्रदेश के सबसे बड़े शिक्षा घोटाले की जांच में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। हाईकोर्ट की हरी झंडी के बाद एसटीएफ ने अपनी दबंग जांच शुरू कर दी है। प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा की गिरफ्तारी के बाद ये पहला मौका होगा, जब एसटीएफ रसूखदारों पर एफआईआर दर्ज कर उनकी गिरफ्तारी करेगी। व्यापमं घोटाले को लेकर प्रदेश में राजनीतिक घमासान जारी है। व्यापमं की जांच की मॉनीटिरिंग कर रही एसआईटी भी सियासी नौटंकी से परेशान है। सूत्रों ने बताया कि एसटीएफ की जांच लिस्ट में प्रदेश के 4 मंत्री, 2 पूर्व मंत्री और 5 पावरफुल नेताओं के नाम भी शामिल हैं। ये नाम व्यापमं के अधिकारी नितिन महिंद्रा से मिले दस्तावेज, मोबाइल फोन की कॉल डिटेल और आरोपियों के बयानों में सामने आए हैं। अभी तक एसटीएफ पर राजनीतिक दबाव था, लेकिन अब एसटीएफ की रडार पर सफेदपोश नेताओं के अलावा व्यापमं की दलाली करने वाले बड़े अफसर भी आ गए हैं। एसटीएफ के पास हर एक रसूखदार का काला चि_ा है। लेकिन अभी भी एसटीएफ की टीम इन रसूखदारों के खिलाफ और ठोस सबूत जुटा रही है, ताकी कोर्ट में आरोपियों को सजा दिलाई जा सके। एसआईटी के चेयरमैन चंद्रेष भूषण का कहना है कि जांच में हमारे लिए सब बराबर हैं। शिकायत छोटी हो या फिर बड़ी, सभी की जांच की जाती है।
किन नेताओं पर क्या है आरोप- एसआईटी सभी छोटी-बड़ी शिकायतों की जांच कर रही है। भले ही शिकायत अतिविशिष्ट के खिलाफ हो या फिर किसी रसूखदार के खिलाफ। जांच के बाद ही एसआईटी एसटीएफ को आगे की जांच के लिए निर्देशित करती है। मंत्री नंबर-1 आरोप - भाई के जरिए दो अपात्र छात्रों को पीएमटी परीक्षा में पास करवाया। मंत्री नंबर-2 आरोप - पीएमटी परीक्षा में तीन और सब इंस्पेक्टर परीक्षा में एक छात्र को पास करवाया। मंत्री नंबर-3 आरोप - सिफारिश के जरिए अपने एक रिश्तेदार को पीएमटी परीक्षा में पास करवाया। मंत्री नंबर-4 आरोप - अपने दम पर व्यापमं की परीक्षाओं में कई लोगों की सिफारिश की। पूर्व मंत्री नंबर-1 आरोप - परिवहन आरक्षक भर्ती परीक्षा में लाखों रुपए लेकर कई परीक्षार्थियों को पास करवाया। पूर्व मंत्री नंबर-2 आरोप - अपने रसूख के दम पर दो छात्रों को पीएमटी की परीक्षा में पास करवाया।
एसटीएफ की जांच के घेरे में 5 पावरफुल नेता-
आरोप - 5 प्रभावशाली नेताओं में 2 महिलाएं भी शामिल हैं। इनमें से एक पावरफुल नेता के बेटे ने पिता के रसूख के दम पर लाखों रुपए लिए और पीएमटी समेत दूसरी परीक्षाओं में एक दर्जन से ज्यादा अयोग्य अभ्यर्थियों को पास कराया। वहीं 4 पावरफुल नेताओं ने व्यापमं की परीक्षाओं में कई उम्मीदवारों के लिए सिफारिश की। व्यापमं घोटाले को लेकर प्रदेश में मचे राजनीति घमासान के बाद सभी नेता अपनी-अपनी दलीलें दे रहे हैं, लेकिन सच्चाई से पर्दा उठाने वाली एसटीएफ सब जानती है। ऐसे में हाईकोर्ट की हरी झंडी मिलने के बाद जल्द एसटीएफ कई सफेदपोश नेताओं को बेनकाब करेगी। व्यापमं में दिग्गज नेताओं का नाम आने पर पहले ही गृहमंत्री बाबूलाल गौर पहले ही कह चुके हैं कि कोई भी मंत्री हो या फिर बाबूलाल गौर क्यों न हो। अपराध किसी ने किया है, उसे छोड़ा नहीं जाएगा।
एसआईट की आफत बनी यूपी के मेडीकल कॉलेजों की चुप्पी
एसआईटी की धरपकड़ में यूपी के मेडीकल कॉलेजों की चुप्पी अखर रही है। रैकेटियर और सॉल्वर की तलाश में पुलिस को तमाम कोशिश के बाद भी सफलता हासिल नहीं हो रही है। अभी सही मायने में एसआईटी को साढ़े तीन सौ से ज्यादा गिरफ्तारी करना है। मेडीकल कॉलेज में दाखिला लेने के लिए मध्यप्रदेश में होने वाली पीएमटी में यूपी का रैकेट मोटी दलाली करता था। यहां के एजेंट हाईप्रोफाइल दलालों के जरिए सॉल्वर भेजने का इंतजाम करते थे। इसके एवज में सॉल्वर बनने वाले छात्रों को एक बड़ी रकम भी मिलती थी। पुलिस ने रैकेट में काम करने वाले सॉल्वर छात्रों की बड़ी मशक्कत के बाद शिनाख्त की। जबकि अब इनकी गिरफ्तारी के लिए एसआईटी को पसीना छूट रहा है। एसआईटी की टीमें लखनऊ और इलाहबाद के मेडीकल कॉलेज में सॉल्वर छात्रों की तलाश के लिए डेरा डाले हुए हैं। जबकि सॉल्वर छात्रों के बारे जानकारी देने के बजाय कॉलेज प्रबंधन चुप्पी साधे हुए हंै। ऐसे में कॉलेज से ग्वालियर एसआईटी को डाटा मिलाने में भी स्थानीय कॉलेज प्रबंधन सहयोग नहीं कर रहा है। सूत्रों की मानें तो यूपी के मेडीकल कॉलेज प्रबंधन अपनी बदनामी के डर से चुप्पी साधे हैं। लगातार सॉल्वर की धरपकड़ होने से उनकी साख पर बट्टा लगने का डर उन्हें सता रहा है। इसी के चलते एसआईटी को अब ऐसी हालत में कार्रवाई पूरी करने में काफी एहतियात बरतना पड़ रही है। ग्वालियर पुलिस की दो अलग अलग टीमें फिलहाल इलाहबाद और लखनऊ में सॉल्वर की धरपकड़ के इंतजार में बैठी है।
390 आरोपियों की गिरफ्तारी बाकी
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के 20 फरवरी को जारी निर्देश के पालन में व्यापमं फर्जीवाड़े की जांच एजेंसी एसटीएफ ने सोमवार को क्राइम नंबर 539/2013 और 12/2013 के सिलसिले में संख्यात्मक विवरण (ब्रेकअप) पेश किया। इसके तहत दोनों क्राइम नंबरों में कुल 390 आरोपियों की गिरफ्तारी फिलहाल बाकी होने की जानकारी दी गई। कोर्ट ने जानकारी को रिकॉर्ड पर लेने के साथ ही मामले की अगली सुनवाई 4 मार्च को निर्धारित कर दी। उस दिन एसटीएफ को आगे की कार्रवाई की स्टेटस रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा गया है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट की अटॉर्नी जनरल के स्टेटमेंट के आधार पर जारी गाइडलाइन के पालन में हर हाल में 15 मार्च तक सभी मामलों में फाइनल चार्जशीट ट्रायल कोर्ट में पेश करने हिदायत दी गई है। 773 आरोपी गिरफ्तार- इस पर गौर करने के बाद कोर्ट ने पाया कि क्राइम नंबर 539/2013 में अब तक 427 और 12/2013 में 346 आरोपी गिरफ्तार किए गए हैं। इस तरह दोनों क्राइम नंबरों में अरेस्ट किए गए आरोपियों की कुल संख्या 773 है।
90 पैरेंट्स बनाए गए आरोपी- इसके अलावा दोनों क्राइम नंबरों में 218 और 122 स्कोरर, 19 व 22 आवेदक छात्र और 62 व 28 पैरेंट्स भी आरोपी बनाए गए हैं। दूसरे राज्य व गलत पते समस्या- एसटीएफ की ओर से साफ किया गया कि जिन 390 गिरफ्तारी शेष है, उनमें व्यापमं द्वारा आयोजित पीएमटी परीक्षा में स्कोरर बतौर फर्जीवाड़ा करने वाले छात्र शामिल हैं। इनमें से अधिकतर मध्यप्रदेश से बाहर के राज्यों के निवासी हैं। इसके अलावा उनके द्वारा अपने परीक्षा फॉर्म में पते भी गलत लिखे गए थे। इसी वजह से उनकी गिरफ्तारी के लिए एसटीएफ को भारी मशक्कत करनी पड़ रही है। अनाधिकृत अदालतों से जमानतों को चुनौती के लिए समय लिया 23 फरवरी को सुनवाई के दौरान अनाधिकृत अदालतों से व्यापमं फर्जीवाड़े के कुछ आरोपियों को जमानत मिलने का मुद्दा एक बार फिर उठा। इसे लेकर हाईकोर्ट के सवाल के जवाब में राज्य की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता ने कुछ समय दिए जाने का निवेदन किया। ऐसा इसलिए क्योंकि एसटीएफ इस संबंध में अलग-अलग क्राइम नंबर के हिसाब से फिलहाल विस्तृत ब्यौरा एकत्र करने में जुटी है।
व्यापमं घोटाला की व्यापक पहुंच
मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार का सबसे बड़ा भर्ती घोटाला मतलब व्यापमं भर्ती घोटाला। व्यापमं मतलब मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल। इस घोटाले में कई बड़े नाम सलाखों के पीछे पहुंच चुके हैं। कई बाहर घूम रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज की पत्नी साधना सिंह और केंद्रीय मंत्री उमा भारती के नाम भी कांग्रेस की तरफ से उछाले जा रहे हैं। 100 से ज्यादा आरोपियों की गिरफ्तारी को कोशिश में एसटीएफ जुटी है। हाईकोर्ट इस मामले की जांच पुलिस की स्पेशल इनवेस्टीगेशन टीम से करवा रही है और हर खुलासा चौंकाने वाला साबित हो रहा है। व्यापमं घोटाले के अहम बिंदुओं पर गौर करें तो इसमें सरकारी नौकरी में 1000 फर्जी भर्तियां की गईं। मेडिकल कॉलेज में 514 फर्जी भर्तियों का शक है। इस घोटाले में पूर्व मंत्री उनके ओएसडी गिरफ्तार हो चुके हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का पूर्व ओएसडी जांच के घेरे में है। इस सबसे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कितना बड़ा है मध्य प्रदेश का यह भर्ती घोटाला। महज 11 महीने में एसटीएफ ने 100 से ज्यादा लोगों को आरोपी बनाया है और जांच जारी है। मंत्री से लेकर अधिकारियों तक, प्रिंसिपल, छात्र और दलाल एक के बाद एक गिरफ्तारियां हो रही हैं लेकिन ये एक ऐसा नेटवर्क है जिसका ओर-छोर अभी भी नहीं मिल पा रहा है। आखिर कौन है इस भर्ती घोटाले का मास्टरमाइंड और कैसे हुआ भर्तियों का फर्जीवाड़ा? 16 जून को मध्य प्रदेश के पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा को गिरफ्तार कर लिया गया। लक्ष्मीकांत शर्मा बतौर उच्च शिक्षा मंत्री मध्य प्रदेश के व्यावसायिक परीक्षा मंडल के भी मुखिया थे और आरोप ये था कि उनके ही आशीर्वाद से मध्य प्रदेश में बरसों से फर्जी भर्तियों का धंधा चल रहा है। लक्ष्मीकांत शर्मा की गिरफ्तारी तो सिर्फ शिक्षकों की भर्ती के मामले में हुई है और बाकी मामलों की जांच चल रही है। अब तक मिली जानकारी में मुताबिक मेडिकल कॉलेजों में ही भर्ती के 514 मामले शक के घेरे में हैं। वहीं सरकारी नौकरियों में 1000 भर्ती की बात खुद शिवराज सिंह चौहान विधानसभा में मान चुके हैं। 2008 से 2010 के बीच सरकारी नौकरियों के 10 इम्तिहानों में धांधली का भी आरोप है। भर्ती घोटाले का पर्दा करीब साल भर पहले उठा था जब 7 जुलाई, 2013 को मध्य प्रदेश के इंदौर में पीएमटी की प्रवेश परीक्षा में कुछ छात्र फर्जी नाम पर परीक्षा देते पकड़े गए। इनसे पूछताछ में डॉ. जगदीश सागर का नाम सामने आया था। ग्वालियर के रहने वाले जगदीश सागर ने पत्नी का मंगलसूत्र बेचकर डॉक्टरी की पढ़ाई की थी। 12वीं में ही शादी करने लेने वाले जगदीश ने देखते ही देखते जो साम्राज्य खड़ा किया उसके पीछे मेडिकल इंट्रेस में फर्जीवाड़े का बड़ा हाथ था। जगदीश सागर के घर पर छापेमारी में गद्दों के भीतर 13 लाख की नगदी मिली। इतना ही नहीं 20 प्रॉपर्टी और करीब चार किलो सोने के गहने भी मिले।
जगदीश सागर से पूछताछ में हुआ भर्ती घोटाले का पहला बड़ा खुलासा जिसके मुताबिक परिवहन विभाग में कंडक्टर पद के लिए 5 से 7 लाख, फूड इंस्पेक्टर के लिए 25 से 30 लाख और सब इंसपेक्टर की भर्ती के लिए 15 से 22 लाख रुपये लेकर फर्जी तरीके से नौकरियां बांटी जा रही थीं। शिवराज सिंह चौहान के चहेते मंत्री और आरएसएस के करीबी लक्ष्मीकांत शर्मा तक पहुंचने में सफल जगदीश सागर से पूछताछ के बाद एक ऐसे रैकेट का पता चला जिसमें मंत्री से लेकर अधिकारी और दलालों का नेटवर्क काम कर रहा था। पता चला कि मध्य प्रदेश का व्यावसायिक परीक्षा मंडल यानी व्यापम का दफ्तर इस धंधे का अहम अड्डा है। खुलासा हुआ है कि व्यापमं के परीक्षा विभाग के कंप्यूटर पर जो रोल नंबर मिले थे वो खुद लक्ष्मीकांत शर्मा ने ही भेजे थे। ये सब कुछ एक नेटवर्क के जरिए हो रहा था। लक्ष्मीकांत शर्मा से पहले इस मामले में गिरफ्तार हो चुके अहम चेहरों में शामिल थे- व्यासायिक परीक्षा मंडल के नियंत्रक पंकज त्रिवेदी, व्यापम के परीक्षा विभाग के सिस्टम एनालिस्ट यानी ऑनलाइन विभाग के सर्वेसर्वा नितिन महिंद्रा, पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत के ओएसडी ओपी शुक्ला और लक्ष्मीकांत शर्मा के करीबी खनन कारोबारी सुधीर शर्मा जो अब तक गिरफ्तार नहीं हुए हैं। मध्य प्रदेश में उच्च शिक्षा मंत्री बनते ही व्यासायिक परीक्षा मंडल यानी व्यापम लक्ष्मीकांत शर्मा के पास आ गया। लक्ष्मीकांत शर्मा ने ओपी शुक्ला को अपना ओएसडी तैनात किया जबकि उनके खिलाफ लोकायुक्त में भ्रष्टाटचार की शिकायत दर्ज थी। खनन मंत्री रहते हुए जिस सुधीर शर्मा को लक्ष्मीकांत शर्मा ने अपना ओएसडी बनाया था वो सक्रिय हो गए। सुधीर शर्मा के कहने पर उच्च शिक्षा विभाग में तैनात पंकज त्रिवेदी को व्यापम का कंट्रोलर बना दिया गया। पंकज त्रिवेदी ने अपने करीबी नितिन महिंद्रा को व्यापम के ऑनलाइन विभाग का हेड यानी सिस्टम एनालिस्ट बनाया। इस तरह से इतने बड़े फर्जीवाड़े की बुनियाद तैयार की गई जिसमें कई स्तरों पर और भी चेहरे शामिल थे। अब तक हुई जांच में जो खुलासे हुए हैं उसके मुताबिक पंकज सीधे लक्ष्मीकांत शर्मा के बंगले पर आता जाता था और वहां से उसे फर्जीवाड़े के उम्मीदवार की सूची और रोल नंबर मिलते थे। पूर्व मंत्री ओपी शुक्ला के ओएसडी भी पंकज त्रिवेदी के संपर्क में रहते थे जिन्हें भर्ती घोटाले के पैसों के साथ रंगे हाथ गिरफ्तार किया गया था। पंकज त्रिवेदी फर्जी भर्ती के लिए उम्मीदवार के नाम और रोल नंबर नितिन महिंद्रा को सौंप देता था। नितिन ने ही पूछताछ में खुलासा किया था कि उसके कंप्यूटर में मिले संदिग्ध रोल नंबर उसे मंत्री के जरिए मिले थे। जाहिर है व्यापम के आला अधिकारी और मंत्री तक इस घोटाले में शामिल थे। इस सबके बावजूद बड़ा सवाल यह कि ये सब गड़बड़ होती कैसे थी। आरोप है कि इसके लिए सबसे पहला कदम खुद पंकज त्रिवेदी की ओर से उठाए गए थे। छात्रों की पहचान के लिए थंब इंप्रेशन मशीन और ऑनलाइन फॉर्म की व्यवस्था ही खत्म कर दी गई थी। अब तक इस मामले में गिरफ्तार छात्रों से हुई पूछताछ के मुताबिक ये धंधा इम्तिहान से लेकर नतीजों में हेरफेर के जरिए चल रहा था। परीक्षार्थी को फर्जी परीक्षार्थी के करीब बिठाया जाता था ताकि वो नकल कर सके। परीक्षार्थी आंसरशीट खाली छोड़ देता था जिसे बाद में भरा जाता था। रिजल्ट के अंकों को बाद में बढ़ा दिया जाता था। कॉलेजों के प्रिंसिपल और दलाल भी इस खेल में शामिल थे। कई पुलिस अधिकारी, आईएएस और उनके रिश्तेदारों के नाम भी सामने आ रहे हैं। माना जा रहा है कि जल्द ही आरोपियों की तादाद 100 से बढ़कर 400 तक पहुंच सकती है। सीबीआई जांच की बात शिवराज सरकार नहीं मान रही है। हाईकोर्ट ने खुद ही एसटीएफ को जांच में लगाया है। उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही इस बड़े घोटाले के कुछ और बड़े खिलाडिय़ों के चेहरे से नकाब उठेगा।
संघ के करीबी नेताओं के भी नाम
मध्य प्रदेश में हुए इस महाघोटाले में एक के बाद एक संघ और भाजपा से जुड़े नेताओं के साथ आईएएस औऱ आईपीएस अफसरों के नाम भी सामने आ रहे हैं। माना जा रहा है कि गिरफ्तार पूर्व मंत्री औऱ संघ के करीबी लक्ष्मीकांत शर्मा ने मुंह खोला तो सूबे की राजनीति में भूचाल आ जाएगा। महाघोटाले के अब तक के सबसे बड़े किरदार हैं पूर्व तकनीकी शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा। मंदिर के पुजारी से सरस्वती शिशु मंदिर के शिक्षक बने। संघ से जुड़े और विदिशा जिले से भाजपा की राजनीति करते-करते बड़े नेता हो गए। घोटाले के दूसरे किरदार सुधीर शर्मा शिक्षक रह चुके हैं। लेकिन जब लक्ष्मीकांत शर्मा खनिज मंत्री बने तो सुधीर ओएसडी बनकर उनके साथ भोपाल आ गए। देखते ही देखते सुधीश शर्मा खनिज मंत्री के ओएसडी से खनन कारोबारी बन गए। फिलहाल सुधीर शर्मा फरार हैं। सुधीर शर्मा को आरएसएस नेता सुरेश सोनी का भी करीबी माना जाता है। माना जा रहा है कि भाजपा के दो सांसद, दो मंत्री औऱ 25 से 30 आईएएस व 20 आईपीएस अफसर व्यापमं घोटाले में शामिल हैं।
लक्ष्मीकांत शर्मा के ओएसडी ओपी शुक्ला तीसरे बड़े किरदार हैं जो एसटीएफ की गिरफ्त में हैं। शुक्ला पर आरोप है कि वो ही मंत्री और व्यापम के अधिकारी पूर्व परीक्षा नियंत्रक पंकज त्रिवेदी, सिस्टम एनालिस्ट नितिन महिंद्रा और अजय सेन औऱ कम्प्यूटर प्रोग्रामर सी के मिश्रा के बीच की कड़ी का काम करते थे। मुख्यमंत्री के करीबी औऱ जनअभियान परिषद के उपाध्यक्ष डॉ. अजय शंकर मेहता की भी गिरफ्तारी हुई है। आरोप है कि पैसा कमाने की इस रेस में कांग्रेस के कुछ लोगों का नाम भी शामिल है। भोपाल से लोकसभा चुनाव लड़ चुके कांग्रेसी नेता संजीव सक्सेना, राजभवन में राज्यपाल राम नरेश यादव के ओएसडी रहे धनराज यादव भी इस मामले में आरोपी हैं।