शनिवार, 28 फ़रवरी 2015

व्यापमं महाघोटाला... राज्यपाल का विकेट गिरते ही प्रदेश की राजनीति में आएगा भूचाल

हाईकोर्ट में प्रस्तुत दस्तावेज के बावजूद 3195 छात्रों की आज तक जांच नहीं, अब एसआईटी करेगी पूछताछ
विनोद उपाध्याय
भोपाल। देश के सबसे बड़े घोटाले में मप्र के राज्यपाल रामनरेश यादव के खिलाफ एसटीएफ द्वारा एफआईआर दर्ज किए जाने के बाद प्रदेश की राजनीति में भूचाल आ गया है। यह इस बात का संकेत है कि इस महाघोटाले में संलिप्त अब वीवीआईपी पर भी गाज गिरनी शुरू हो गई है। व्यापमं महाघोटाले का जो पिटारा फिर से खुला है उसमें राज्यपाल का विकेट अगर गिरता है तो प्रदेश की राजनीति में भूचाल आ जाएगा। शिवराज सरकार ने राज्यपाल को बचाने के लिए तो एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था, मगर हाईकोर्ट में सुनवाई होने और धारा 120बी में राज्यपाल के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने पर उनके पास इस्तीफा देने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा है। इधर पुलिस विभाग के कई अफसर भी इस महाघोटाले की चपेट में आ रहे हैं। उल्लेखनीय है की 24 फरवरी को रामनरेश यादव के खिलाफ वन रक्षक भर्ती में सिफारिश करने के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई है। एसटीएफ सूत्रों ने जानकारी दी है कि रामनरेश यादव पर आरोप है कि उन्होंने 2012 में वन रक्षक परीक्षा में तीन लोगों को भर्ती करने के लिए चि_ी लिखी थी। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट और एसआईटी से हरी झंडी मिलने के बाद एसटीएफ ने राज्यपाल के खिलाफ एफआईआर दर्ज की। व्यापमं घोटाले को सबसे पहले उजागर करने वाले अभय चोपड़ा ने मय प्रमाण एसआईटी को व्यापमं से जुड़े सबूत सौंपे हैं, जिसमें इंदौर के तत्कालीन एसपी पश्चिम अनिलसिंह कुशवाह की भूमिका संदिग्ध बताई गई है और संभवत: एसआईटी उनके साथ अन्य अफसरों से भी पूछताछ कर सकती है। व्यापमं महाघोटाले की जांच कर रहे एसटीएफ पर यह भी आरोप लगाया गया है कि उसने हाईकोर्ट में प्रस्तुत दस्तावेजों के आधार पर संदिग्ध पाए गए 3195 छात्रों से आज तक पूछताछ ही नहीं की। सबसे पहले इंदौर पुलिस ने 2013 में पीएमटी परीक्षा में होने वाली गड़बड़ी को पकड़ा था, जो बाद में व्यापमं का महाघोटाला साबित हुआ। हालांकि कांग्रेस इस मुद्दे को पहले विधानसभा और फिर लोकसभा और यहां तक कि अभी हुए नगरीय निकायों के चुनावों में भी पूरी ताकत से नहीं उठा सकी। अलबत्ता मीडिया में अवश्य यह घोटाला सुर्खियों में रहा, क्योंकि पंकज त्रिवेदी से लेकर नितिन महिंद्रा और पूर्व जनसम्पर्क मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा और खनन माफिया सुधीर शर्मा जैसों की गिरफ्तारी के कारण यह मामला निरंतर चर्चा में तो रहा, मगर प्रदेश की भाजपा सरकार को जोरदार तरीके से जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सका। लेकिन जब पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के महासचिव दिग्विजयसिंह के पास यह मामला पहुंचा तो उन्होंने गंभीरता से दस्तावेजों की जांच-पड़ताल की और उसके बाद पूरी ताकत झोंक दी इस महाघोटाले को उजागर करने में। दिग्विजयसिंह के कारण ही प्रदेश की शिवराज सरकार कठघरे में खड़ी हुई और पिछले दिनों कांग्रेस के बड़े नेताओं और ख्यातनाम अधिवक्ताओं के साथ पत्रकार वार्ता लेकर सीधे-सीधे मुख्यमंत्री पर ही आरोप लगाए, जिसके बाद भोपाल से लेकर दिल्ली तक हंगामा मच गया। इसके बाद पूरी शिवराज सरकार कांग्रेसी राज्यपाल रामनरेश यादव को बचाने में जुट गई, क्योंकि राज्यपाल के बेटे शैलेष का नाम स्पष्ट होने के बाद राज्यपाल ने अभिभाषण के वक्त ही इस्तीफा देने का मन बना लिया था, लेकिन अगर राज्यपाल इस्तीफा दे देते तो फिर शिवराज की मुसीबत कई गुना बढ़ जाती। लिहाजा उनके साथ-साथ पूरी भाजपा सरकार ने राज्यपाल को मनाया कि वे अभी इस्तीफा ना दें। मगर अभी पिछली सुनवाई में हाईकोर्ट ने अतिविशिष्टों के खिलाफ भी सख्ती से कार्रवाई करने के निर्देश एसआईटी को दे दिए, उसके बाद सूत्रों का कहना है कि हाईकोर्ट में जो 17 लोगों की सूची वाले सीलबंद लिफाफे सौंपे गए हैं उसमें राज्यपाल के अलावा 4 मंत्री, 2 पूर्व मंत्री, 5 पावरफुल नेता के अलावा कई अफसरों के नाम भी हैं। राज्यपाल को धारा 120बी में आरोपी बनाया गया है। यहां तक कि मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को नई दिल्ली जाकर आलाकमान सहित प्रधानमंत्री और अन्य नेताओं को सफाई भी देना पड़ी।
अभय चोपड़ा ने एसआईटी को सौंपा सबूत
इधर इस पूरे घोटाले को सबसे पहले उजागर करने वाले नागदा निवासी अभय चोपड़ा ने अभी एसआईटी के चेयरमैन और रिटायर्ड जस्टिस चन्द्रभूषण को कई सबूत सौंपे हैं। चोपड़ा के मुताबिक व्यापमं की 6 सदस्यीय कम्प्यूटर कमेटी ने 3195 छात्र 11 डिजीट से मिसमैच पाए थे और 2 डिजीट से 876 छात्र मिसमैच निकले और एसटीएफ को इसका पूरा ब्यौरा 30.09.2013 को व्यापमं द्वारा दे दिया गया था, लेकिन एसटीएफ ने गिरोह सरगना की डायरी से प्राप्त 317 और 52 छात्रों के संदिग्ध होने का ही पत्र दिया और 3195 छात्रों से आज तक पूछताछ ही नहीं की, जबकि इंदौर हाईकोर्ट में प्रस्तुत किए गए दस्तावेजों में भी इन तमाम सबूतों का खुलासा किया गया था। उन्होंने इंदौर के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक पश्चिम अनिलसिंह कुशवाह की भूमिका भी संदिग्ध बताई। उनके साथ ही एसटीएफ पर भी आरोप लगाए गए कि सारे दस्तावेजी सबूत होने के बावजूद न्यायालय तक को गुमराह किया गया। संभव है कि इंदौर के तत्कालीन एसपी सहित अन्य अफसरों से इस मामले में नए सिरे से पूछताछ हो सकती है। फिलहाल तो सबकी निगाह राजभवन पर टिकी है, क्योंकि पहले गृहमंत्री बाबूलाल गौर ने भी राज्यपाल से मुलाकात की, वहीं एसटीएफ के एडीजी सुधीर शाही दो दिन तक नईदिल्ली में ही डेरा डाले रहे। वहां से आते ही उन्होंने राज्यपाल के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली।
इंदौर आईजी ने ही पकड़ा था व्यापमं घोटाला यह भी उल्लेखनीय है कि व्यापमं का जो महाघोटाला उजागर हुआ उसकी शुरुआत इंदौर से ही हुई थी। आईजी विपिन माहेश्वरी को सूचना मिली थी कि पीएमटी परीक्षा 2013 के लिए कुछ गिरोह शहर की होटलों में ठहरे हैं जो मुन्नाभाई बनकर परीक्षा में बैठते हैं। इस पर आईजी ने दबिश डलवाकर कई फर्जी परीक्षार्थी यानी मुन्नाभाइयों को पकड़ा और डॉ. जगदीश सागर सहित अन्य नाम उजागर हुए। बाद में पंकज त्रिवेदी, नितिन महिंद्रा और अन्य घोटालेबाजों की गिरफ्तारियां भी हुई, लेकिन मामले में जब पुलिस प्रशासन के साथ-साथ बड़े राजनेता घिरने लगे तब इंदौर पुलिस ने भी अपनी कार्रवाई ना सिर्फ ढीली की, बल्कि दोषी छात्रों से पूछताछ भी नहीं हो सकी और इस मामले में एसटीएफ ने तो राजनीतिक दबाव-प्रभाव के चलते पूरे घोटाले को ही दबाने का प्रयास किया, मगर बाद में जबलपुर हाईकोर्ट ने जब इसकी मॉनिटरिंग अपने हाथ में ली, उसके बाद लक्ष्मीकांत शर्मा से लेकर सुधीर शर्मा और अन्य की गिरफ्तारियां भी हुईं। अफसर पिता की बजाय चाचा को बना डाला अभियुक्त एक तरफ एसटीएफ ने कई बेकसूर छात्रों और उनके अभिभावकों को पकड़कर जेल में ठूंस दिया, तो कई बड़े घोटालेबाज और दोषी बाहर घूम रहे हैं। दरअसल व्यापमं घोटाले में सबसे ज्यादा हल्ला इस बात को लेकर भी मचा कि इसमें सैकड़ों बेकसूर छात्र-छात्राओं को ना सिर्फ जेल जाना पड़ा, बल्कि उनका पूरा कॅरियर ही चौपट कर दिया गया। इनमें से कई छात्र और उनके पालक तो सिर्फ मौजूदा सिस्टम के ही शिकार बन गए। इस पूरे मामले में एक बड़ा फर्जीवाड़ा यह भी सामने आया कि जहां एसटीएफ ने ताबड़तोड़ कई छात्रों और उनके पालकों की गिरफ्तारियां कीं और दोषी छात्रों के पिता को अभियुक्त बनाया, लेकिन एक आला अफसर जो कि उज्जैन के संभागायुक्त रहे के.सी. जैन के मामले में उनके लड़के के फर्जी प्रवेश के चलते उसके चाचा को अभियुक्त बना डाला। उल्लेखनीय है कि के.सी. जैन इंदौर विकास प्राधिकरण के भी लगभग 5 साल तक सीईओ रह चुके हैं और बाद में उन्हें आईएएस अवॉर्ड पारित हुआ, जिसके चलते वे कुछ जिलों के कलेक्टर और उसके बाद उज्जैन के संभागायुक्त भी बने। उनके पुत्र के फर्जी प्रवेश का खुलासा होने के बाद अपराधी के रूप में के.सी. जैन की बजाय उनके भाई यानी छात्र के चाचा को अभियुक्त बना दिया, जबकि अन्य किसी भी प्रकरण में ऐसा नहीं किया गया। हालांकि बाद में केसी जैन का नाम भी शामिल किया गया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से उन्हें और उनके पुत्र को अग्रिम जमानत मिल गई। दिल्ली दरबार से शिवराज को फिलहाल राहत मौजूदा घटनाक्रम को लेकर भोपाल से लेकर दिल्ली तक सरगर्मी है और मीडिया में रोजाना अटकलें लगाई जा रही हंै कि राज्यपाल का विकेट कब तक गिरेगा और उसके बाद मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की स्थिति क्या रहेगी? सोशल मीडिया में भी इसको लेकर पिछले दो-तीन दिनों से कई तरह के मैसेज चल रहे हैं। नईदिल्ली जाकर मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने भाजपा के बड़े नेताओं से चर्चा की और व्यापमं के मामले में खुद को निर्दोष भी बताया। इधर शिवराज को घेरने वाले दिग्विजयसिंह के कार्यकाल में हुई नियुक्तियों और अन्य मामलों की फाइलों की धूल भी वल्लभ भवन में झाड़ी जा रही है, ताकि दिग्गी को भी घेरा जा सके।
पंकज त्रिवेदी की गिरफ्तारी भी दो माह बाद की
व्यापमं घोटाले के सबसे बड़े मास्टरमाइंड रहे पंकज त्रिवेदी की गिरफ्तारी भी एसटीएफ ने दो माह बाद की, जबकि इंदौर हाईकोर्ट में उनके खिलाफ तमाम दस्तावेज प्रस्तुत किए जा चुके थे। अभी एसआईटी को जो मयप्रमाण दस्तावेज सौंपे गए हैं उनमें यह मुद्दा भी उठाया गया है। दरअसल एक्सल शीट सहित अन्य दस्तावेजों में छेड़छाड़ करने के आरोप लगे हैं। लिहाजा एसआईटी से मांग की गई है कि पंकज त्रिवेदी की गिरफ्तारी दो माह बाद क्यों की गई? तब तक उन्होंने कई दस्तावेज गायब कर दिए। लिहाजा इस मामले में भी एसटीएफ की भूमिका की जांच की जाए।
एसटीएफ कर रही 11 पर एफआईआर करने की तैयारी
व्यापमं घोटाले में एसटीएफ ने कोर्ट को बंद लिफ़ाफ़े में 17 लोगों के नाम सौंपे हैं। लेकिन, पहली कड़ी में 11 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो सकती है। सूत्रों के मुताबिक़ इसकी तैयारी कर ली गई है और फंड कलेक्शन किस तरह से किया जाता था, इसकी डिटेलिंग करने के बाद इनके खिलाफ जुर्म रजिस्टर किया जाएगा। गौरतलब है कि राज्यपाल रामनरेश यादव के बेटे शैलेश का नाम भी इस घोटाले में शामिल है। संभावना है कि पहले क्रम में ही उनके खिलाफ प्रकरण दर्ज कर लिया जाए। हालांकि, अभी इसका खुलासा नहीं किया गया है कि ये 11 लोग कौन होंगे, लेकिन घोटाले में शामिल अतिविशिष्ट लोगों पर कार्रवाई की बात से वीवीआईपी शख्यिसत में हलचल मच गई है। सूत्रों की माने तो एसटीएफ एडीजी सुधीर कुमार शाही इस बात की लिस्टिंग करवा रहे हैं कि किस तरह से फंड कलेक्शन किया जाता था और सबसे पहले किस मामले को लेकर फंड कलेक्शन किया गया। ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि केस को सही तरीके से कोर्ट में पेश किया जा सके। व्यावसायिक परीक्षा मंडल का घोटाला 2012 की प्री मेडीकल टेस्ट की पोस्ट ग्रेजुएट परीक्षा से सामने आया। इस परीक्षा में बैठने वाले छात्रों से 6 महीनेे पहले पैसे जमा कर लिए गए थे। एसटीएफ की पूछताछ में कुछ आरोपियों के बयान हैं, जिसमें कहा गया है कि 2012 की पीएमटी पीजी में पास होने के लिए पैसे दिए गए थे।
करीब 17 भर्तियों से जुड़े हैं घोटाले के तार
व्यापमं मध्य प्रदेश में इंजीनियरिंग-मेडिकल के कोर्स और अलग-अलग सरकारी नौकरियों में नियुक्ति के लिए परीक्षाओं का आयोजन करने वाली संस्था है। पिछले 10 सालों में व्यापमं ने पीएमटी से लेकर पुलिस आरक्षक, उपनिरीक्षक, परिवहन निरीक्षक, संविदा शिक्षक भर्ती सहित कई परीक्षाएं आयोजित की। इन परीक्षाओं में गड़बड़ी पर 17 एफआईआर हुई हैं। 10 सालों में आयोजित 100 से अधिक परीक्षाओं के जरिए बड़ी तादाद में अयोग्य लोगों को नौकरियां या डिग्रियां दिलवाई गईं।
राजनेता, नौकरशाह और दलाल का बना त्रिगुट
साल 2004 से इसकी शुरुआत हुई। इस गोरखधंधे में कई राजनेता, नौकरशाह, दलाल, छात्र और शिक्षण संस्?थान के बड़े अधिकारियों का बड़ा नेटवर्क शामिल था। यहां तक कि फर्जी नियुक्तियां करवाने के लिए कई सरकारी नियमों को ढीला किया गया। कई नियम बदल दिए गए तो कइयों को हटा ही दिया गया। पीएमटी परीक्षा 2012 में अपराध क्रमांक 12/13 धारा 420,467,468,471, 120 बी आईपीसी , 65,66 आईटी एक्ट की धारा, धारा 3 घ 1, 2/4 मप्र मान्यता प्राप्त परीक्षा अधिनियम के तहत दर्ज किया गया। इसके बाद पीएमटी परीक्षा 2013 में एफआईआर दर्ज की गई। दोनों एफआईआर में 104 स्टूडेंट को एसटीएफ ने पकड़ा था।
और खुलती गई सारी परत
इसके बाद व्यापमं के तहत हुई परीक्षाओं में हो रहे फर्जीवाड़े की पोल खुलती चली गई। जांच शुरू हुई तो पटवारी भर्ती परीक्षा, संविदा शिक्षक भर्ती परीक्षा, पुलिस आरक्षी भर्ती परीक्षा, बीडीएस भर्ती परीक्षा, वन रक्षक भर्ती परीक्षा और संस्कृत बोर्ड भर्ती परीक्षा में फर्जी कारनामे सामने आए। इसकी जद में प्रदेश के कई बड़े नेता, मंत्री, नौकरशाह, रिटायर्ड जज, डॉक्टर्स आ गए। यहां तक कि घोटाले के तार राजभवन तक चले गए। इधर एसटीएफ बरकतउल्ला विश्वविद्यालय में हुए बीडीएस घोटाले को उजागर कर चुकी थी। इसलिए पीएमटी घोटाले की जांच स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) को सौंप दी। एसटीएफ ने जब इस मामले में हाथ डाला तो व्यापमं घोटाले के सूत्र खुलते चले गए। अब एसटीएफ, हाईकोर्ट के निर्देश बर बनी एसआईटी की निगरानी में जांच कर रही है।
ये हैं घोटाले के मुख्य किरदार जो जेल में हैं
लक्ष्मीकांत शर्मा, डॉ विनोद भंडारी, ओपी शुक्ला,पंकज त्रिवेदी, सुधीर शर्मा, सीके मिश्रा, नितिन महेंद्रा, डॉ जगदीश सागर, अनिमेश आकाश सिंह, जितेंद्र मालवीय, आरके शिवहरे, रविकांत द्विवेदी, वंदना द्विवेदी, जीएस खानूजा, मोहित चौधरी, नरेंद्र देव आजाद।
क्या है व्यापमं घोटाला
व्यापमं व्यावसायिक परीक्षा मंडल है जो मेडिकल कालेज से दंत चिकित्सा कालेजों में, इंजीनियरिंग कालेजों में प्रवेश के लिए परीक्षायें आयोजित करता था, मध्यप्रदेश सरकार के भ्रष्ट करतूतों ने इस मंडल को नौकरियों की परीक्षाओं और हेर-फेर का अड्डा बना दिया। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह की भाजपा सरकार ने व्यापमं के महाघोटाले के माध्यम से करोड़ों छात्रों का भविष्य बर्बाद कर दिया। घोटाला यह हैं पीएमटी मेडीकल प्रवेश परीक्षा में 50-50 लाख लेकर अपात्र छात्रों को एडमीशन। पात्र छात्र आज भी दर-दर भटक रहे है। मुन्ना भाइयों को नहीं हटा पाई मेडीकल कालेज से सरकार। 18 लाख शिक्षा कर्मी वर्ग- 2 एवं वर्ग- 3 परीक्षाओं में भारी भ्रष्टाचार। बिना कापी में कुछ लिखे ही पैसे वाले पास। पात्र लोग बेरोजगार। विधानसभा में शान से मुख्यमंत्री बोले केवल 1000 फर्जी नियुक्तियां की हैं। संसकृत बोर्ड के बच्चों की नकली अंक सूचियां राज्यमंत्री के प्रेस में छापी गई। 25 हजार से लेकर 2 लाख में बेचीं। ओपन स्कूल के बच्चों की नकली अंक सूचियां बनी फेल बच्चे पास और पास बच्चे फेल। टाइपिंग बोर्ड परीक्षा में बेचीं गई मार्कशीटे हजारों सुपात्र फेल। दुग्ध संघ भर्ती घोटाला। परिवहन आरक्षक घोटाला। डेन्टल कॉलेज (दंत चिकित्सा) प्रवेश में घोटाला भारी भ्रष्टाचार। डी-मेट घोटाला। बी.एड./डी.एड. परीक्षा घोटाला।
एसटीएफ जांच के घेरे में आए 4 मंत्री, 2 पूर्व मंत्री, 5 पावरफुल नेता
बहुचर्चित व्यापमं घोटाला मामले में एसटीएफ की जांच को हाईकोर्ट की हरी झंडी मिलने के बाद अब प्रदेश के चार मंत्री, दो पूर्व मंत्री और पांच पावरफुल नेता भी जांच के घेरे में आ गए हैं। एसटीएफ जांच की मानें तो अतिविशिष्ट के साथ विशिष्ट लोगों के दामन पर भी दाग है। साथ ही बड़े अधिकारी भी जांच की रडार पर हैं। हाईकोर्ट की हामी के बाद जल्द एसटीएफ कई माननीयों के चेहरे से नाकाब हटाएगी। पहली बार एसटीएफ ने मध्य प्रदेश के सबसे बड़े शिक्षा घोटाले की जांच में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। हाईकोर्ट की हरी झंडी के बाद एसटीएफ ने अपनी दबंग जांच शुरू कर दी है। प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा की गिरफ्तारी के बाद ये पहला मौका होगा, जब एसटीएफ रसूखदारों पर एफआईआर दर्ज कर उनकी गिरफ्तारी करेगी। व्यापमं घोटाले को लेकर प्रदेश में राजनीतिक घमासान जारी है। व्यापमं की जांच की मॉनीटिरिंग कर रही एसआईटी भी सियासी नौटंकी से परेशान है। सूत्रों ने बताया कि एसटीएफ की जांच लिस्ट में प्रदेश के 4 मंत्री, 2 पूर्व मंत्री और 5 पावरफुल नेताओं के नाम भी शामिल हैं। ये नाम व्यापमं के अधिकारी नितिन महिंद्रा से मिले दस्तावेज, मोबाइल फोन की कॉल डिटेल और आरोपियों के बयानों में सामने आए हैं। अभी तक एसटीएफ पर राजनीतिक दबाव था, लेकिन अब एसटीएफ की रडार पर सफेदपोश नेताओं के अलावा व्यापमं की दलाली करने वाले बड़े अफसर भी आ गए हैं। एसटीएफ के पास हर एक रसूखदार का काला चि_ा है। लेकिन अभी भी एसटीएफ की टीम इन रसूखदारों के खिलाफ और ठोस सबूत जुटा रही है, ताकी कोर्ट में आरोपियों को सजा दिलाई जा सके। एसआईटी के चेयरमैन चंद्रेष भूषण का कहना है कि जांच में हमारे लिए सब बराबर हैं। शिकायत छोटी हो या फिर बड़ी, सभी की जांच की जाती है।
किन नेताओं पर क्या है आरोप- एसआईटी सभी छोटी-बड़ी शिकायतों की जांच कर रही है। भले ही शिकायत अतिविशिष्ट के खिलाफ हो या फिर किसी रसूखदार के खिलाफ। जांच के बाद ही एसआईटी एसटीएफ को आगे की जांच के लिए निर्देशित करती है। मंत्री नंबर-1 आरोप - भाई के जरिए दो अपात्र छात्रों को पीएमटी परीक्षा में पास करवाया। मंत्री नंबर-2 आरोप - पीएमटी परीक्षा में तीन और सब इंस्पेक्टर परीक्षा में एक छात्र को पास करवाया। मंत्री नंबर-3 आरोप - सिफारिश के जरिए अपने एक रिश्तेदार को पीएमटी परीक्षा में पास करवाया। मंत्री नंबर-4 आरोप - अपने दम पर व्यापमं की परीक्षाओं में कई लोगों की सिफारिश की। पूर्व मंत्री नंबर-1 आरोप - परिवहन आरक्षक भर्ती परीक्षा में लाखों रुपए लेकर कई परीक्षार्थियों को पास करवाया। पूर्व मंत्री नंबर-2 आरोप - अपने रसूख के दम पर दो छात्रों को पीएमटी की परीक्षा में पास करवाया।
एसटीएफ की जांच के घेरे में 5 पावरफुल नेता-
आरोप - 5 प्रभावशाली नेताओं में 2 महिलाएं भी शामिल हैं। इनमें से एक पावरफुल नेता के बेटे ने पिता के रसूख के दम पर लाखों रुपए लिए और पीएमटी समेत दूसरी परीक्षाओं में एक दर्जन से ज्यादा अयोग्य अभ्यर्थियों को पास कराया। वहीं 4 पावरफुल नेताओं ने व्यापमं की परीक्षाओं में कई उम्मीदवारों के लिए सिफारिश की। व्यापमं घोटाले को लेकर प्रदेश में मचे राजनीति घमासान के बाद सभी नेता अपनी-अपनी दलीलें दे रहे हैं, लेकिन सच्चाई से पर्दा उठाने वाली एसटीएफ सब जानती है। ऐसे में हाईकोर्ट की हरी झंडी मिलने के बाद जल्द एसटीएफ कई सफेदपोश नेताओं को बेनकाब करेगी। व्यापमं में दिग्गज नेताओं का नाम आने पर पहले ही गृहमंत्री बाबूलाल गौर पहले ही कह चुके हैं कि कोई भी मंत्री हो या फिर बाबूलाल गौर क्यों न हो। अपराध किसी ने किया है, उसे छोड़ा नहीं जाएगा।
एसआईट की आफत बनी यूपी के मेडीकल कॉलेजों की चुप्पी
एसआईटी की धरपकड़ में यूपी के मेडीकल कॉलेजों की चुप्पी अखर रही है। रैकेटियर और सॉल्वर की तलाश में पुलिस को तमाम कोशिश के बाद भी सफलता हासिल नहीं हो रही है। अभी सही मायने में एसआईटी को साढ़े तीन सौ से ज्यादा गिरफ्तारी करना है। मेडीकल कॉलेज में दाखिला लेने के लिए मध्यप्रदेश में होने वाली पीएमटी में यूपी का रैकेट मोटी दलाली करता था। यहां के एजेंट हाईप्रोफाइल दलालों के जरिए सॉल्वर भेजने का इंतजाम करते थे। इसके एवज में सॉल्वर बनने वाले छात्रों को एक बड़ी रकम भी मिलती थी। पुलिस ने रैकेट में काम करने वाले सॉल्वर छात्रों की बड़ी मशक्कत के बाद शिनाख्त की। जबकि अब इनकी गिरफ्तारी के लिए एसआईटी को पसीना छूट रहा है। एसआईटी की टीमें लखनऊ और इलाहबाद के मेडीकल कॉलेज में सॉल्वर छात्रों की तलाश के लिए डेरा डाले हुए हैं। जबकि सॉल्वर छात्रों के बारे जानकारी देने के बजाय कॉलेज प्रबंधन चुप्पी साधे हुए हंै। ऐसे में कॉलेज से ग्वालियर एसआईटी को डाटा मिलाने में भी स्थानीय कॉलेज प्रबंधन सहयोग नहीं कर रहा है। सूत्रों की मानें तो यूपी के मेडीकल कॉलेज प्रबंधन अपनी बदनामी के डर से चुप्पी साधे हैं। लगातार सॉल्वर की धरपकड़ होने से उनकी साख पर बट्टा लगने का डर उन्हें सता रहा है। इसी के चलते एसआईटी को अब ऐसी हालत में कार्रवाई पूरी करने में काफी एहतियात बरतना पड़ रही है। ग्वालियर पुलिस की दो अलग अलग टीमें फिलहाल इलाहबाद और लखनऊ में सॉल्वर की धरपकड़ के इंतजार में बैठी है।
390 आरोपियों की गिरफ्तारी बाकी
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के 20 फरवरी को जारी निर्देश के पालन में व्यापमं फर्जीवाड़े की जांच एजेंसी एसटीएफ ने सोमवार को क्राइम नंबर 539/2013 और 12/2013 के सिलसिले में संख्यात्मक विवरण (ब्रेकअप) पेश किया। इसके तहत दोनों क्राइम नंबरों में कुल 390 आरोपियों की गिरफ्तारी फिलहाल बाकी होने की जानकारी दी गई। कोर्ट ने जानकारी को रिकॉर्ड पर लेने के साथ ही मामले की अगली सुनवाई 4 मार्च को निर्धारित कर दी। उस दिन एसटीएफ को आगे की कार्रवाई की स्टेटस रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा गया है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट की अटॉर्नी जनरल के स्टेटमेंट के आधार पर जारी गाइडलाइन के पालन में हर हाल में 15 मार्च तक सभी मामलों में फाइनल चार्जशीट ट्रायल कोर्ट में पेश करने हिदायत दी गई है। 773 आरोपी गिरफ्तार- इस पर गौर करने के बाद कोर्ट ने पाया कि क्राइम नंबर 539/2013 में अब तक 427 और 12/2013 में 346 आरोपी गिरफ्तार किए गए हैं। इस तरह दोनों क्राइम नंबरों में अरेस्ट किए गए आरोपियों की कुल संख्या 773 है।
90 पैरेंट्स बनाए गए आरोपी- इसके अलावा दोनों क्राइम नंबरों में 218 और 122 स्कोरर, 19 व 22 आवेदक छात्र और 62 व 28 पैरेंट्स भी आरोपी बनाए गए हैं। दूसरे राज्य व गलत पते समस्या- एसटीएफ की ओर से साफ किया गया कि जिन 390 गिरफ्तारी शेष है, उनमें व्यापमं द्वारा आयोजित पीएमटी परीक्षा में स्कोरर बतौर फर्जीवाड़ा करने वाले छात्र शामिल हैं। इनमें से अधिकतर मध्यप्रदेश से बाहर के राज्यों के निवासी हैं। इसके अलावा उनके द्वारा अपने परीक्षा फॉर्म में पते भी गलत लिखे गए थे। इसी वजह से उनकी गिरफ्तारी के लिए एसटीएफ को भारी मशक्कत करनी पड़ रही है। अनाधिकृत अदालतों से जमानतों को चुनौती के लिए समय लिया 23 फरवरी को सुनवाई के दौरान अनाधिकृत अदालतों से व्यापमं फर्जीवाड़े के कुछ आरोपियों को जमानत मिलने का मुद्दा एक बार फिर उठा। इसे लेकर हाईकोर्ट के सवाल के जवाब में राज्य की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता ने कुछ समय दिए जाने का निवेदन किया। ऐसा इसलिए क्योंकि एसटीएफ इस संबंध में अलग-अलग क्राइम नंबर के हिसाब से फिलहाल विस्तृत ब्यौरा एकत्र करने में जुटी है।
व्यापमं घोटाला की व्यापक पहुंच
मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार का सबसे बड़ा भर्ती घोटाला मतलब व्यापमं भर्ती घोटाला। व्यापमं मतलब मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल। इस घोटाले में कई बड़े नाम सलाखों के पीछे पहुंच चुके हैं। कई बाहर घूम रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज की पत्नी साधना सिंह और केंद्रीय मंत्री उमा भारती के नाम भी कांग्रेस की तरफ से उछाले जा रहे हैं। 100 से ज्यादा आरोपियों की गिरफ्तारी को कोशिश में एसटीएफ जुटी है। हाईकोर्ट इस मामले की जांच पुलिस की स्पेशल इनवेस्टीगेशन टीम से करवा रही है और हर खुलासा चौंकाने वाला साबित हो रहा है। व्यापमं घोटाले के अहम बिंदुओं पर गौर करें तो इसमें सरकारी नौकरी में 1000 फर्जी भर्तियां की गईं। मेडिकल कॉलेज में 514 फर्जी भर्तियों का शक है। इस घोटाले में पूर्व मंत्री उनके ओएसडी गिरफ्तार हो चुके हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का पूर्व ओएसडी जांच के घेरे में है। इस सबसे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कितना बड़ा है मध्य प्रदेश का यह भर्ती घोटाला। महज 11 महीने में एसटीएफ ने 100 से ज्यादा लोगों को आरोपी बनाया है और जांच जारी है। मंत्री से लेकर अधिकारियों तक, प्रिंसिपल, छात्र और दलाल एक के बाद एक गिरफ्तारियां हो रही हैं लेकिन ये एक ऐसा नेटवर्क है जिसका ओर-छोर अभी भी नहीं मिल पा रहा है। आखिर कौन है इस भर्ती घोटाले का मास्टरमाइंड और कैसे हुआ भर्तियों का फर्जीवाड़ा? 16 जून को मध्य प्रदेश के पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा को गिरफ्तार कर लिया गया। लक्ष्मीकांत शर्मा बतौर उच्च शिक्षा मंत्री मध्य प्रदेश के व्यावसायिक परीक्षा मंडल के भी मुखिया थे और आरोप ये था कि उनके ही आशीर्वाद से मध्य प्रदेश में बरसों से फर्जी भर्तियों का धंधा चल रहा है। लक्ष्मीकांत शर्मा की गिरफ्तारी तो सिर्फ शिक्षकों की भर्ती के मामले में हुई है और बाकी मामलों की जांच चल रही है। अब तक मिली जानकारी में मुताबिक मेडिकल कॉलेजों में ही भर्ती के 514 मामले शक के घेरे में हैं। वहीं सरकारी नौकरियों में 1000 भर्ती की बात खुद शिवराज सिंह चौहान विधानसभा में मान चुके हैं। 2008 से 2010 के बीच सरकारी नौकरियों के 10 इम्तिहानों में धांधली का भी आरोप है। भर्ती घोटाले का पर्दा करीब साल भर पहले उठा था जब 7 जुलाई, 2013 को मध्य प्रदेश के इंदौर में पीएमटी की प्रवेश परीक्षा में कुछ छात्र फर्जी नाम पर परीक्षा देते पकड़े गए। इनसे पूछताछ में डॉ. जगदीश सागर का नाम सामने आया था। ग्वालियर के रहने वाले जगदीश सागर ने पत्नी का मंगलसूत्र बेचकर डॉक्टरी की पढ़ाई की थी। 12वीं में ही शादी करने लेने वाले जगदीश ने देखते ही देखते जो साम्राज्य खड़ा किया उसके पीछे मेडिकल इंट्रेस में फर्जीवाड़े का बड़ा हाथ था। जगदीश सागर के घर पर छापेमारी में गद्दों के भीतर 13 लाख की नगदी मिली। इतना ही नहीं 20 प्रॉपर्टी और करीब चार किलो सोने के गहने भी मिले।
जगदीश सागर से पूछताछ में हुआ भर्ती घोटाले का पहला बड़ा खुलासा जिसके मुताबिक परिवहन विभाग में कंडक्टर पद के लिए 5 से 7 लाख, फूड इंस्पेक्टर के लिए 25 से 30 लाख और सब इंसपेक्टर की भर्ती के लिए 15 से 22 लाख रुपये लेकर फर्जी तरीके से नौकरियां बांटी जा रही थीं। शिवराज सिंह चौहान के चहेते मंत्री और आरएसएस के करीबी लक्ष्मीकांत शर्मा तक पहुंचने में सफल जगदीश सागर से पूछताछ के बाद एक ऐसे रैकेट का पता चला जिसमें मंत्री से लेकर अधिकारी और दलालों का नेटवर्क काम कर रहा था। पता चला कि मध्य प्रदेश का व्यावसायिक परीक्षा मंडल यानी व्यापम का दफ्तर इस धंधे का अहम अड्डा है। खुलासा हुआ है कि व्यापमं के परीक्षा विभाग के कंप्यूटर पर जो रोल नंबर मिले थे वो खुद लक्ष्मीकांत शर्मा ने ही भेजे थे। ये सब कुछ एक नेटवर्क के जरिए हो रहा था। लक्ष्मीकांत शर्मा से पहले इस मामले में गिरफ्तार हो चुके अहम चेहरों में शामिल थे- व्यासायिक परीक्षा मंडल के नियंत्रक पंकज त्रिवेदी, व्यापम के परीक्षा विभाग के सिस्टम एनालिस्ट यानी ऑनलाइन विभाग के सर्वेसर्वा नितिन महिंद्रा, पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत के ओएसडी ओपी शुक्ला और लक्ष्मीकांत शर्मा के करीबी खनन कारोबारी सुधीर शर्मा जो अब तक गिरफ्तार नहीं हुए हैं। मध्य प्रदेश में उच्च शिक्षा मंत्री बनते ही व्यासायिक परीक्षा मंडल यानी व्यापम लक्ष्मीकांत शर्मा के पास आ गया। लक्ष्मीकांत शर्मा ने ओपी शुक्ला को अपना ओएसडी तैनात किया जबकि उनके खिलाफ लोकायुक्त में भ्रष्टाटचार की शिकायत दर्ज थी। खनन मंत्री रहते हुए जिस सुधीर शर्मा को लक्ष्मीकांत शर्मा ने अपना ओएसडी बनाया था वो सक्रिय हो गए। सुधीर शर्मा के कहने पर उच्च शिक्षा विभाग में तैनात पंकज त्रिवेदी को व्यापम का कंट्रोलर बना दिया गया। पंकज त्रिवेदी ने अपने करीबी नितिन महिंद्रा को व्यापम के ऑनलाइन विभाग का हेड यानी सिस्टम एनालिस्ट बनाया। इस तरह से इतने बड़े फर्जीवाड़े की बुनियाद तैयार की गई जिसमें कई स्तरों पर और भी चेहरे शामिल थे। अब तक हुई जांच में जो खुलासे हुए हैं उसके मुताबिक पंकज सीधे लक्ष्मीकांत शर्मा के बंगले पर आता जाता था और वहां से उसे फर्जीवाड़े के उम्मीदवार की सूची और रोल नंबर मिलते थे। पूर्व मंत्री ओपी शुक्ला के ओएसडी भी पंकज त्रिवेदी के संपर्क में रहते थे जिन्हें भर्ती घोटाले के पैसों के साथ रंगे हाथ गिरफ्तार किया गया था। पंकज त्रिवेदी फर्जी भर्ती के लिए उम्मीदवार के नाम और रोल नंबर नितिन महिंद्रा को सौंप देता था। नितिन ने ही पूछताछ में खुलासा किया था कि उसके कंप्यूटर में मिले संदिग्ध रोल नंबर उसे मंत्री के जरिए मिले थे। जाहिर है व्यापम के आला अधिकारी और मंत्री तक इस घोटाले में शामिल थे। इस सबके बावजूद बड़ा सवाल यह कि ये सब गड़बड़ होती कैसे थी। आरोप है कि इसके लिए सबसे पहला कदम खुद पंकज त्रिवेदी की ओर से उठाए गए थे। छात्रों की पहचान के लिए थंब इंप्रेशन मशीन और ऑनलाइन फॉर्म की व्यवस्था ही खत्म कर दी गई थी। अब तक इस मामले में गिरफ्तार छात्रों से हुई पूछताछ के मुताबिक ये धंधा इम्तिहान से लेकर नतीजों में हेरफेर के जरिए चल रहा था। परीक्षार्थी को फर्जी परीक्षार्थी के करीब बिठाया जाता था ताकि वो नकल कर सके। परीक्षार्थी आंसरशीट खाली छोड़ देता था जिसे बाद में भरा जाता था। रिजल्ट के अंकों को बाद में बढ़ा दिया जाता था। कॉलेजों के प्रिंसिपल और दलाल भी इस खेल में शामिल थे। कई पुलिस अधिकारी, आईएएस और उनके रिश्तेदारों के नाम भी सामने आ रहे हैं। माना जा रहा है कि जल्द ही आरोपियों की तादाद 100 से बढ़कर 400 तक पहुंच सकती है। सीबीआई जांच की बात शिवराज सरकार नहीं मान रही है। हाईकोर्ट ने खुद ही एसटीएफ को जांच में लगाया है। उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही इस बड़े घोटाले के कुछ और बड़े खिलाडिय़ों के चेहरे से नकाब उठेगा।
संघ के करीबी नेताओं के भी नाम
मध्य प्रदेश में हुए इस महाघोटाले में एक के बाद एक संघ और भाजपा से जुड़े नेताओं के साथ आईएएस औऱ आईपीएस अफसरों के नाम भी सामने आ रहे हैं। माना जा रहा है कि गिरफ्तार पूर्व मंत्री औऱ संघ के करीबी लक्ष्मीकांत शर्मा ने मुंह खोला तो सूबे की राजनीति में भूचाल आ जाएगा। महाघोटाले के अब तक के सबसे बड़े किरदार हैं पूर्व तकनीकी शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा। मंदिर के पुजारी से सरस्वती शिशु मंदिर के शिक्षक बने। संघ से जुड़े और विदिशा जिले से भाजपा की राजनीति करते-करते बड़े नेता हो गए। घोटाले के दूसरे किरदार सुधीर शर्मा शिक्षक रह चुके हैं। लेकिन जब लक्ष्मीकांत शर्मा खनिज मंत्री बने तो सुधीर ओएसडी बनकर उनके साथ भोपाल आ गए। देखते ही देखते सुधीश शर्मा खनिज मंत्री के ओएसडी से खनन कारोबारी बन गए। फिलहाल सुधीर शर्मा फरार हैं। सुधीर शर्मा को आरएसएस नेता सुरेश सोनी का भी करीबी माना जाता है। माना जा रहा है कि भाजपा के दो सांसद, दो मंत्री औऱ 25 से 30 आईएएस व 20 आईपीएस अफसर व्यापमं घोटाले में शामिल हैं।
लक्ष्मीकांत शर्मा के ओएसडी ओपी शुक्ला तीसरे बड़े किरदार हैं जो एसटीएफ की गिरफ्त में हैं। शुक्ला पर आरोप है कि वो ही मंत्री और व्यापम के अधिकारी पूर्व परीक्षा नियंत्रक पंकज त्रिवेदी, सिस्टम एनालिस्ट नितिन महिंद्रा और अजय सेन औऱ कम्प्यूटर प्रोग्रामर सी के मिश्रा के बीच की कड़ी का काम करते थे। मुख्यमंत्री के करीबी औऱ जनअभियान परिषद के उपाध्यक्ष डॉ. अजय शंकर मेहता की भी गिरफ्तारी हुई है। आरोप है कि पैसा कमाने की इस रेस में कांग्रेस के कुछ लोगों का नाम भी शामिल है। भोपाल से लोकसभा चुनाव लड़ चुके कांग्रेसी नेता संजीव सक्सेना, राजभवन में राज्यपाल राम नरेश यादव के ओएसडी रहे धनराज यादव भी इस मामले में आरोपी हैं।

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