शनिवार, 16 फ़रवरी 2013

टीम तोमर से मठाधीशों का मौन विरोध

भोपाल। नरेन्द्र सिंह तोमर के भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष बनने के बाद उनके नेतृत्व में पार्टी की पहली कार्यसमिति की बैठक से आधा दर्जन ज्यादा वरिष्ठ मंत्री की गायब रहे। एक दर्जन से ज्यादा बड़े पदाधिकारियों ने भी बिना किसी ठोस कारण के बैठक से दूरी बनाए रखी। इनमें बड़ी संख्या नरेन्द्र सिंह तोमर के प्रभाव वाले ग्वालियर-चंबल संभाग के पदाधिकारियों और मंत्रियों की है। राजनीतिक वैज्ञानिक इसे टीम तोमर का मौन विरोध मान रहे हैं। उधर प्रभात झा और प्रदेश प्रभारी अनंत कुमार की मीटिंग को गंभीरता से लिया जा रहा है। अनूप मिश्रा और कैलाश विजयवर्गीय चाह रहे हैं कि प्रभात झा का पुर्नवास केन्द्र में हो दबाव की राजनीति के चलते अनूप मिश्रा और कैलाश विजयवर्गीय ने बैठक में हिस्सा नहीं लिया। भोपाल में रविवार को आयोजित इस एक दिवसीय बैठक का शुभारंभ पार्टी के प्रदेश प्रभारी अनंत कुमार ने किया था। बैठक से ग्वालियर-चंबल संभाग से आने वाले संसदीय कार्यमंत्री नरोत्तम मिश्रा, चिकित्सा शिक्षा मंत्री अनूप मिश्रा, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, आदिम जाति कल्याण मंत्री विजय शाह, लोक निर्माण मंत्री नागेन्द्र सिंह, वित्त मंत्री राघवजी, चिकित्सा शिक्षा राज्य मंत्री महेंन्द्र हार्डिया, राजस्व मंत्री करण सिंह वर्मा, सामान्य प्रशासन राज्यमंत्री केएल अग्रवाल, राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त राज्य योजना आयोग के उपाध्यक्ष बाबूलाल जैन बैठक में नहीं पहुंचे। नहीं आने वालों में गृहमंत्री उमाशंकर गुप्ता भी शामिल थे, लेकिन वे अपने रिश्तेदार और भाजपा के वरष्ठि नेता नारायण प्रसाद गुप्ता (नानाजी) के निधन के कारण शामिल नहीं हुए थे। वहीं कैलाश विजयवर्गीय भोपाल में ही मौजूद रहेने के बाद भी बैठक में नहीं आए। वे रविवार रात इंदौर के लिए रवाना हो गए। इसके साथ ही हाल ही में नई कार्यकारिणी में प्रदेश उपाध्यक्ष बनाई गईं सांसद यशोधरा राजे सिंधिया, जबलपुर से सांसद और पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष राकेश सिंह, प्रदेश उपाध्यक्ष माया सिंह, विशेष आमंत्रित सदस्य विदिशा से सांसद और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज, इंदौर की सांसद सुमित्रा महाजन, विधायक अरविंद भदौरिया, प्रहलाद पटेल, पूर्व सांसद लक्ष्मीनारायण पांडे, पार्टी के राष्ट्रीय चुनाव कार्यक्रम के प्रभारी रहे थावरचंद गेहलोत जैसे बड़े नाम भी कार्यसमिति की बैठ में शामिल नहीं हुए।

चंबल से आगाज महाराजा को बनाओ आवाज

भोपाल। प्रदेश में एक तरफ कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया एकला चलो सिद्धांत को अपनाते हुए दौरा कर जनाधार बढ़ाने का (असफल) प्रयास कर रहे हैं,वहीं दूसरी तरफ चंबल संभाग के नेता गुटबाजी को दरकिनार कर केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्स सिंधिया को आगामी चुनावों में कांग्रेस की आवाज बनाने की मांग बुलंद कर रहे हैं। भोपाल और दिल्ली तक सुनाई दी गूंज मेहगांव में राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के शुभारंभ मौके पर विधानसभा के उपनेता प्रतिपक्ष चौधरी राकेश सिंह ने जब सिंधिया से यह गुजारिश की कि,अब ढीली-ढीली राजनीति नहीं चलेगी, समय बहुत कम है, जबकि प्रदेश की साढ़े सात करोड़ जनता आपके मार्गदर्शन का इंतजार कर रही है। सिंधिया जी आप आगे बढ़ो, पूरे प्रदेश का दौरा करो और आने वाले चुनाव के लिए कांग्रेस की कमान संभालो। तो इसकी गूंज भोपाल और दिल्ली तक सुनाई दी। प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष डॉ. गोविंद सिंह ने भी जहां सिंधिया की जमकर तारीफ की वहीं भाजपा सरकार को भ्रष्ट करार दिया है। मेहगांव और करहिया की सभा में कांग्रेस ने गजब की एकता दिखाई। दिग्विजय के करीबी डॉ. गोविंद सिंह तथा पचौरी के करीबी चौधरी राकेश सिंह सिंधिया समर्थकों के साथ दिखे। इससे कांग्रेस में एक नई ऊर्जा का संचार दिखा है। पार्टी के अधिकांश लोगों को मानना है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ अधिक से अधिक लोग जुड़ सकते हैं। कांतिलाल भूरिया की तुलना में वो अधिक लोकप्रिय हैं। लेकिन कांग्रेस हाई कमान इस बात को तूल नहीं देना चाहता। हाल के विवाद से यही जाहिर होता है। ऐसा भी हो सकता है कि कांग्रेस हाई कमान अभी कांग्रेस के अंदर के विरोध को और देखना चाहता है, उसके बाद ही ज्योतिरादित्य को प्रदेश की कमान सौंपे, लेकिन एक बात तो साफ हो गई है कि कांग्रेस के दूसरे बड़े नेताओं के समर्थक भी ज्योतिरादित्य की ओर अभी से लुढ़कने लगे हैं। नहीं भा रहा भूरिया का एकला चलो सिद्धांत बताया जाता है कि भूरिया का एकला चलो सिद्धांत कांग्रेस नेताओं को नहीं भा रहा है। इस चुनावी वर्ष में जहां नेताओं को एक साथ नजर आना चाहिए वहां भूरिया अकेले प्रदेश का दौरा कर रहे हैं। भूरिया के इस कदम से नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह राहुल अत्यधिक नाराज हैं। वहीं भूरिया के अनुशासन के नाम पर की गई कार्रवाई और एक जिलाध्यक्ष को थमाए गए नोटिस से केंद्रीय मंत्री कमलनाथ के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया भी नाराज हो गए हैं। पीसीसी ने पिछले दिनों ग्वालियर कांग्रेस के जिलाध्यक्ष डॉ. दर्शन सिंह को अनुशासनहीनता के आरोप में नोटिस थमाया है। उनसे सात दिन में जवाब मांगा है। लेकिन अभी तक डॉ. सिंह ने जवाब नहीं दिया है। सूत्र बताते हैं कि डॉ. सिंह केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक हैं और उन्हीं के कोटे से जिलाध्यक्ष बने हैं। उन्हें नोटिस दिए जाने से सिंधिया पीसीसी अध्यक्ष से नाराज हो गए हैं। सिंधिया की पहले से पीसीसी में उनके समर्थकों को पर्याप्त स्थान नहीं दिए जाने की शिकायत रही है। पार्टी सूत्र बताते हैं कि इसके साथ ही वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मंत्री हजारीलाल रघुवंशी को भी प्रदेश अनुशासन समिति से हटाने की घटना भी गुटबाजी को बढ़ावा देने के रूप में ली जा रही है।

भाजपा का नया फार्मूला 'पांच हजारीÓ को नहीं देंगे टिकट

भोपाल । भाजपा चुनाव नजदीक आने के साथ ही अत्यधिक घबराहट में हैं वह महसूस कर रही है कि उसके खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर काम कर रहा है। विगत दिनों पार्टी की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक के पश्चात कोर कमेटी ने यह निर्णय लिया है कि पांच हजार से कम मतों से जीतने वाले मंत्री एवं विधायकों को टिकट नहीं दिए जाएंगे। यह फार्मूला अनंत कुमार एवं अरविंद मेनन का है। प्रदेश अध्यक्ष नरेन्द्रसिंह तोमर एवं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह भी इस बात से सहमत हैं। उधर सोमवार को भाजपा प्रदेशाध्यक्ष नरेन्द्रसिंह तोमर ने कहा है कि चुनाव के समय एक-एक सीट पर आकलन करके टिकट बांटेगें। अगर किसी मंत्री, विधायक के हारने की आशंका होगी तो उसके टिकट पर भी विचार किया जाएगा। उन्होंने कहा चुनाव में हर सीट जीतना है, लेकिन उन पर ज्यादा मेहनत होगी, जिसमें पिछली बार हारे थे। इस बार बीते चुनाव से ज्यादा सींटे जीतने का लक्ष्य है। पार्टी के बड़े मठाधीश यह महसूस करने लगे हैं कि मंत्री, विधायक और नेताओं को अब सत्तासुख छोड़कर कार्यकर्ताओं के साथ जनता के बीच ज्यादा समय देना चाहिए। पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा का कहना है कि नेता कार्यकर्ताओं के बीच और ज्यादा समय रहें। ये सलाह सभी के लिए है, जो यहां हैं वहां काम करें। बाबूलाल गौर फरमाते हैं कि नेता हमेशा मैदान में नहीं रहता, इसीलिए तो हार जाते हैं, मंत्री तक हार जाते हैं। इसलिए जो लोग चार साल से मैदान में नहीं रहे, उन्हें मैदान में जाने की नसीहत देना जरूरी है। कप्तान सिंह सोलंकी बोले के अच्छी चीज बार-बार दोहरानी पड़ती है, नहीं तो लोग उसे भूल जाते हैं। व्यक्ति आलस्य करता है, काम नहीं करता और दिखावा ज्यादा करता है।

कांग्रेस में ऊपर से तय नहीं होंगे उम्मीदवार

भोपाल। कांग्रेस में अब चुनावों के लिए पार्टी प्रत्याशियों के नाम अब ऊपर से तय नहीं हो सकेंगे। किसी भी राज्य में उम्मीदवार का फैसला प्रदेश अध्यक्ष और विधायक दल के नेता की सहमति पर आलाकमान तय करेगा। पार्टी की इस नई व्यवस्था को लागू करने से पहले कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने 15 फरवरी को एक बैठक नई दिल्ली में बुलाई है। राज्य की रिपोर्ट भी देंगे भूरिया बताया जाता है कि चुनावों में उम्मीदवारों पर फैसला करने के लिए राज्यों की ओर से एक पंक्ति का प्रस्ताव पारित किया जाना कांग्रेस में अब बीते दिनों की बात हो सकती है। कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी पार्टी का कामकाज दुरुस्त करने की तैयारी में हैं। इस बैठक में प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया,नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह,प्रदेश प्रभारी बीके हरिप्रसाद सहित महासचिव दिग्विजय सिंह भी शामिल होंगे। इस बैठक में भूरिया प्रदेश संगठन द्वारा चुनाव के मद्देनजर की जा रही तैयारियों के साथ ही अभी तक के हालात की रिपोर्ट भी प्रस्तुत करेंगे। इस रिपोर्ट में गत दिनों कांग्रेस कार्यालय में विधायक आरिफ अकील और साजिद अली के बीच हुए झगड़े का भी विवरण होगा। टिकट वितरण की प्रक्रिया होगी पारदर्शी बताया जाता है कि इस बैठक में टिकट वितरण प्रक्रिया को पारदर्शी करने के साथ ही राहुल गांधी टिकट वितरण को भरोसेमंद और पक्का मामला बनाने के लिए विस्तृत प्रक्रिया अपनाने को कह सकते हैं। कांग्रेस उपाध्यक्ष बनने के बाद राहुल की राज्यों के नेताओं के साथ यह पहली और एक दिवसीय बैठक होगी। उन्होंने अक्सर संगठन को चलाने वाले नियमों और नियमनों की गैरमौजूदगी की बात उठाई है। यह बैठक ऐसे समय होगी, जब पार्टी सदस्य टिकट वितरण की प्रक्रिया पर लगातार चिंता जता रहे हैं। जयपुर चिंतन शिविर में भी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने टिकट वितरण की खामियों पर खासी चिंता जताई थी। संगठन के ढांचे में भाई-भतीजावाद पर चिंता जताने के साथ ही इसे रोकने की जरूरत बताई गई। प्रदेश की गुटबाजी पर होगी विशेष चर्चा बताया जा रहा है कि इस बैठक में राहुल मप्र के नेताओं को एकजुटता की सीख देने के साथ-साथ कार्यकर्ताओं को महत्व देने को कह सकते हैं। क्योंकि प्रदेश में कांग्रेस इस समय गुटबाजी से जूझ रही है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया के अनुशासन के नाम पर की गई कार्रवाई और एक जिलाध्यक्ष को थमाए गए नोटिस से केंद्रीय मंत्री कमलनाथ के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया भी नाराज हो गए हैं। उधर नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह राहुल भी भूरिया से अत्यधिक नाराज हैं। नाराजगी का कारण भूरिया का एकला चलो सिद्धांत है। इधर वरिष्ठ नेताओं को भूरिया और सुरेश पचौरी की नजदीकियां भी पसंद नहीं आ रही हैं। पचौरी चुनाव के ऐन वक्त पर अपने समर्थकों को टिकट दिलाने के लिए सक्रिय हो गये हैं।

110 सीटों पर खिसका भाजपा का जनाधार

भोपाल। आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा में भी चिन्ता की लकीरें हैं। पार्टी के माथे पर बल लगातार गहरा हो रहा है। मुख्यमंत्री भले ही कितने भी लोकप्रिय क्यों न हो किन्तु सत्ता विरोधी रुझान कम नहीं हो रहा। इसके अलावा विधायकों के प्रति नाराजगी भी बढ़ती जा रही है। पार्टी के आंतरिक सर्वे और खुफिया एजेंसी के सर्वेक्षण ने प्रदेश नेतृत्व को सोचने पर मजबूर कर दिया है। इन सर्वे के अनुसार भाजपा का 110 सीटों पर जनाधार खिसका है। 2003 में दिग्विजय सिंह को गद्दी से उतारकर भाजपा ने जिन मुद्दों पर सरकार बनाई थी, वह मुद्दे आज उसके खिलाफ जा रहे हैं। खुफिया एजेंसी का सर्वे कहता है कि 230 सीटों वाली मध्यप्रदेश विधानसभा की 110 सीटों पर भाजपा की हालत बेहद खराब है। सरकार विरोधी अंडरकरंट बहुत तेज है। 2013 के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर सरकार ने एक खुफिया एजेंसी से सर्वे कराया है। इसमें सिर्फ वास्तविक राजनीतिक स्थिति का आकलन करने का काम सौंपा गया था। रिपोर्ट के अनुसार,भाजपा के खिलाफ ग्वालियर-चंबल, विंध्य और बुंदेलखंड में जबरदस्त अंडरकरंट हैं। मालवा के कई आदिवासी क्षेत्रों में जहां भाजपा अपना जनाधार बढ़ाने के लिए तेजी से सक्रिय है वहां बेरोजगारी के चलते तेजी से पलायन हो रहा है। विंध्य में कुपोषण और भुखमरी के कारण लोगों में सरकार के प्रति आक्रोस है तो बुंदेलखंड में बेरोजगारी उसकी मुश्किल बढ़ा सकती है। चुनाव से पहले सड़कों को ठीक करने की सरकार की मंशा भी उसके लिए उल्टा-दांव पड़ सकती है। सड़कों की दुर्दशा से भाजपा के शहरी मतदाता भी उससे नाराज हैं। इन मतदाताओं की माने तो वे भी जानते हैं कि चुनाव से पहले सरकार इन सड़कों को ठीक कर एक बार फिर वोटर को ठगने का जतन करेगी। चुनाव के समय किसानों को भरपूर बिजली देने के लिए बिजली की खरीदी भी होगी, इसके बाद फिर पांच साल तक किसान खाद, बीज, पानी और सड़क के लिए तरसेगा। इन इलाकों में भाजपा की हालत खराब दिमनी, अम्बाह, अटेर, मेहगांव, ग्वालियर पूर्व, सेवढ़ा, शिवपुरी, कोलारस, बामोरी, चंदेरी, जतारा, चंदला (अजा), बिजावर, पथरिया, दमोह, पवई, गुन्नौर (अजा), चित्रकूट, रैगांव (अजा), अमरपाटन, देवतालाब, मनगवां (अजा), सिहावल, कोतमा, पुष्पराजगढ़ (अजजा), निवास (अजजा), बैहर (अजजा), लखनादौर (अजजा), अमरवाड़ा (अजजा), सौंसर, परासिया (अजा), बैतूल, घोड़ाडोंगरी (अजजा), नरेला, भोपाल मध्य, नरसिंहगढ़, हाट पिपलिया, खातेगांव, पंधना (अजजा), नेपानगर (अजजा), अलीराजपुर (अजजा), मनावर, धार, इंदौर-5, राऊ, मंदसौर, मल्हारगढ़, जावद, बीना (अजा), सेमरिया, बडनग़र। रंग लाएगा भूरिया का असर झाबुआ, धार, बडवानी, खरगोन, खंडवा जैसे महाराष्ट्र-गुजरात से लगे जिलों में उमा भारती की लहर 2003 में दिखाई दी थी, वैसा असर 2008 के चुनावों में नहीं दिखी। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि कांतिलाल भूरिया के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने का फायदा भी उनकी पार्टी को मिल सकता है। 31 सीटों पर बसपा दमदार विंध्य क्षेत्र के जिलों रीवा, सतना, सिंगरौली, त्योंथर में बसपा का असर दिखाई दे रहा है। ग्वालियर-चंबल संभाग में भी बसपा अपना असर दिखा सकती है। इस क्षेत्र में फूलसिंह बरैया की पार्टी भी अच्छा-खासा जनाधार रखती है। रीवा से मुरैना तक 31 सीटें ऐसी हैं, जहां बसपा ने दमदार उपस्थिति दर्ज कराई है। महाराष्ट की सीमा से लगे छिंदवाड़ा व आसपास के जिलों में एनसीपी का प्रभाव है। यहां यह पार्टियां भले ही सीटें जीत न पाए, लेकिन बड़ी संख्या में वोट काटने में कामयाब जरूर रहेंगी।

शिवपुरी की पांचो सीट पर भाजपा की स्थिति खराब

भोपाल। विधानसभा चुनावों में अब ज्यादा समय शेष नहीं है लेकिन भाजपा ने भोपाल से एक प्रायवेट कंपनी से अपने स्तर से शिवपुरी जिले की पांच विधानसभा सीटों का जो सर्वे कराया है। उस सर्वे रिपोर्ट ने भाजपा की नींद उड़ा दी है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जिले की पांचों विधानसभा सीटों पर सत्ताधारी दल भाजपा की स्थिति ठीक नहीं है। वर्तमान में भाजपा के पास पांच में से चार विधानसभा क्षेत्र पर पार्टी का कब्जा है। एक सीट पिछोर विधानसभा क्षेत्र कांग्रेस के पास है मगर बीते एक महीने पहले हुए नए सर्वे में भाजपा के पास जो चार सीटें मौजूद है उन पर वर्तमान स्थिति में विधायकों की स्थिति खराब है और सर्वे में इन विधायकों को हारा हुआ उम्मीदवार बताया गया है। सर्वे की यह रिपोर्ट भोपाल पहुंच चुकी है और प्रदेश नेतृत्व के प्रमुख नेताओं के माथे पर इस रिपोर्ट से चिंता की लकीरें देखी जा रही है। उल्लेखनीय है कि जिले की शिवपुरी, पोहरी, करैरा, कोलारस विधानसभा सीट पर अभी वर्तमान में भाजपा का कब्जा है। एक सीट पिछोर विधानसभा क्षेत्र पर कांग्रेस का कब्जा है। पांच में से चार सीट भाजपा पर है जबकि एक सीट कांग्रेस पर है। बीते महीने भोपाल स्तर से एक प्रायवेट कंपनी से भाजपा ने जो सर्वे कराया है उस सर्वे ने जो रिपोर्ट दी है उसने पांचों सीटों पर भाजपा की स्थिति खराब है। कोलारस विधानसभा क्षेत्र में पिछली बार भाजपा के देवेन्द्र जैन 250 मतों से जीते थे। इस बार सर्वे रिपोर्ट ने जहां भाजपा की स्थिति खराब बताई है। इसी तरह शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र में भाजपा की स्थिति खराब बताई गई है यदि वर्तमान में माखन लाल राठौर को पुन: टिकिट दिया जाता है तो यहां भाजपा को जीतने में पसीने आ सकते है। इसी तरह पोहरी विधानसभा क्षेत्र में भाजपा विधायक का अंदरूनी तौर पर विरोध सर्वे में आया है और यहां भी भाजपा की हालत पतली बताई जा रही है। करैरा में विधायक रमेश खटीक का सीडी काण्ड सहित अन्य अंर्तकलहों को भाजपा के लिए मुसीबत का कारण बताया गया है। जहां तक पिछोर की बात है तो पिछोर में भाजपा के लिए दमदार उम्मीदवार कांग्रेस के के.पी.सिंह के खिलाफ नहीं मिल रहा है। सर्वे रिपोर्ट कुछ दिनों पहले भोपाल पहुंच चुकी है। कुछ मतदाताओं से बातचीत के आधार पर एक प्रायवेट कंपनी ने इस रिपोर्ट को तैयार किया है। टिकट आबंटन में होगा बदलाव भोपाल से जुड़े सूत्रों ने बताया है कि सर्वे रिपोर्ट के बाद शिवपुरी जिले की चार विधानसभा सीटों पर प्रत्याशी बदले जाने की अटकलें है। खबर आ रही है कि शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र से माखन लाल का टिकिट कट सकता है इनकी जगह यशोधरा राजे सिंधिया को भाजपा मैदान में उतारेगी। इसी प्रकार से कोलारस, पोहरी और करैरा में नए उम्मीदवारों को भाजपा मैदान में उतारकर माहौल अपने पक्ष में कर सकती है। सूत्रों का कहना है कि सर्वे रिपोर्ट मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा प्रदेशाध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर के पास पहुंच गई है। अब आने वाले समय में इस सर्वे रिपोर्ट के आधार पर भाजपा के चार विधायकों का भविष्य टिका हुआ है। विधायको की निगेटिव रिपोर्ट भाजपा ने भोपाल की जिस निजी कंपनी से सर्वे तैयार करवाया है उसमें कार्यकर्ताओं के रूझान के बारे में भी रिपोर्ट तैयार की गई है। इस रिपोर्ट में शिवपुरी के कोलारस विधायक देवेन्द्र जैन, पोहरी विधायक प्रहलाद भारती, शिवपुरी विधायक माखन लाल राठौर, करैरा विधायक रमेश खटीक का व्यवहार भाजपा कार्यकर्ताओं के प्रति कैसा है इस बारे में भी पड़ताल की गई है। जिसमें चारों विधायकों में से दो विधायकों की रिपोर्ट निगेटिव आई है। कार्यकर्ताओं के बीच इन विधायकों के प्रति बढ़ रहा असंतोष

प्रदेश में कांग्रेस 130 सीटों पर मजबूत

भोपाल। प्रदेश में एक निजी कम्पनी के सर्वे में जहां भाजपा की 110 सीटों पर स्थिति दयनीय बताई गई है वहीं कांग्रेस आलाकमान द्वारा बंगलुरू की एक निजी कंपनी से कराए गए सर्वे में कांग्रेस को 130 सीटों पर मजबूत स्थिति में होना बताया गया है। सर्वे की इस रिपोर्ट से प्रदेश कांग्रेस के नेता गदगद हैं। रिपोर्ट मिलते ही अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया ने प्रदेश भर का दौरा कर उम्मीदवार तलाशने का कार्यक्रम तैयार करवा लिया है। कांग्रेस पदाधिकारियों के हवाले से मिली जानकारी के अनुसार पर्वेक्षकों की रिपोर्ट मिलने के बाद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ( राष्ट्रीय महासचिव थे तब) और उनकी टीम ने प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों का खाका खिंचवाया था। बंगलुरू की एक निजी कंपनी को सर्वे की जिम्मेदारी दी गई थी। इस कंपनी ने सर्वे की सेम्पल रिपोर्ट नई दिल्ली में उस ग्रुप को सौंप दी है जो पर्दे के पीछे सक्रिय है। सेम्पल रिपोर्ट में दावा किया गया था कि कांग्रेस अपनी वर्तमान सीट में 70 से 80 का इजाफा कर सकती है। यानी अगर प्रदेश में अभी चुनाव होता है तो पार्टी को 130 सीटों से अधिक पर विजय प्राप्त हो सकती है। सर्वे पर सर्वे कराएगा प्रदेश संगठन प्रदेश में नियत समय पर ही विधानसभा चुनाव होंगे। इसलिए प्रदेश संगठन किसी गलतफहमी में नहीं रहना चाहता है। बताया जाता है कि बंगलुरू की जिस निजी कम्पनी ने सर्वे किया है उसकी रिपोर्ट प्रदेश कांग्रेस के पास भी पहुंच गई और अब उसके द्वारा सर्वे पर सर्वे कराया जाएगा। इतना ही नहीं अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया खुद हर विधानसभा क्षेत्र में जाकर पार्टी की नब्ज टटोलेंगे। उनके साथ कुछ बड़े शहर में अन्य बड़े नेता भी जा सकते हैं। रिपोर्ट के अनुसार भोपाल संभाग में 5 से 6 सीटें बढऩे का संकेत है तो जबलपुर संभाग में 15 से 20 सीटों पर कांग्रेस को कुछ शर्त के साथ बढ़त मिलने की संभावना है। यहां ग्रामीण व नगर की दो सीट यलो जोन यानि मेहनत करो तो जीत लो का फार्मूला दिया गया। पिछले दिनों भोपाल में प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने सर्वे रिपोर्ट का अध्ययन दिया और यह फैसला लिया कि इसके आधार पर एक और सर्वे कराया जाए। यह भी तय किया गया कि कुछ बड़े नेताओं के साथ भूरिया स्वयं हर विधानसभा क्षेत्र में जाकर पार्टी कार्यकर्ताओं की राय जानेंगे। दिल्ली वाले सर्वे में जो टिप्स दिए गए हैं उसके बारे में भी स्थानीय नेताओं व टिकिट दावेदारों को बताया जाएगा। संभाग स्तर पर भूरिया के साथ कमलनाथ दिग्विजय सिंह, सुरेश पचौरी, ज्योतिरादित्य आदि रह सकते हैं। भूरिया इसी महीने या फिर मार्च में प्रदेश भ्रमण के लिए निकलेंगे। तीन माह पहले होगा टिकट वितरण पार्टी से मिली जानकारी के अनुसार अलाकमान ने प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया को निर्देशित किया है कि चुनाव से तीन महीने पहले ही उम्मीदवारों की घोषणा करने की तैयारी करें। आलाकमान इसके फायदे और नुकसान पर गंभीरता से विचार विमर्श कर रहा है। कुल मिलाकर कांग्रेसियों के लिए आने वाले दिन मेहनत मशक्कत के हैं।

युवाओं और महिलाओुं के लिए कटेगा मठाधीशों का टिकट

भोपाल। प्रदेश के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के मठाधीशों का टिकट खतरे में है। युवाओं को मौका देने के लिए राहुल गांधी की मंशा से युकां प्रदेशाध्यक्ष प्रियवृत सिंह ने प्रदेश के लिए 25 से 30 टिकट की मांग करने की रणनीति बनाई है। इस पर राहुल गांधी की भी मुहर लग गई है। वहीं महिला कांग्रेस ने भी 50 सीटों पर दावा किया है। विधानसभा चुनावों में युवाओं की भागीदारी के लिए ऊपरी स्तर पर हरी झंडी मिलने के बाद युवाओं की टिकटों पर दावेदारी बढ़ गई है। इससे कांग्रेस के मठाधीशों की जड़ें हिल रही हैं। युवा कांग्रेस में हारी हुई सीटों पर युवा उम्मीदवार को उतारने का प्रयास किया जा सकता है। खासतौर पर वे सीटें जिन पर कांग्रेस लगातार हारती आ रही है उन पर युकां की नजर है। प्रदेश में विधानसभा चुनाव के पहले युकां पदाधिकारियों के चुनाव मई-जून में कराए जाएंगे। ग्रामीण क्षेत्र पर नजर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों पर युकां के प्रत्याशी लगभग तय हो चुके हैं। युंका हाईकमान अगले माह से मप्र में अपने उम्मीदवारों के लिए सर्वे शुरू करने जा रहा है। इसको देखते हुए युकां नेताओं ने अपनी सरगर्मी बढ़ा दी है। बताया जाता है कि प्रदेश में इस बार विधानसभा चुनाव में युवा कांग्रेस को लगभग तीन दर्जन सीटों से चुनाव लड़ाने की योजना है। युकां की टिकटों की दावेदारी को लेकर वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं में हलचल शुरू हो गई है। सूत्रों के अनुसार युकां की टिकट काटने के लिए कुछ कांग्रेस नेताओं ने ही जोड़तोड़ शुरू कर दी है। महिलाएं भी कर रही तैयारी विधानसभा चुनाव को देखते हुए महिला कांग्रेस सशक्त तैयारी में जुटा हुआ है जिससे कांग्रेस पूरे सम्मान के साथ भारी जनसमर्थन हासिल कर सत्ता में काबिज होगी। संगठन ने आलाकमान से 50 सीटों की मांग की है। इसके लिए राजीव गांधी बूथ संपर्क मिशन शुरु करके प्रत्येक बूथ तक महिला कार्यकर्ता को तैनात करने की प्रक्रिया शुरु की गई है। इनका कहना है प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में हम 25-30 टिकटों का दावा करेंगे। इस पर ऊपरी स्तर पर सहमति है। हमारे पास ग्रामीण क्षेत्र व शहर के लिए अच्छे उम्मीदवार हैं। इसके पहले जिन जिलों में युकां की टर्म पूरी हो चुकी है वहां मई-जून में चुनाव कराया जाएगा। इसके अलावा युकां ने जो युवा सदस्य बनाए हैं उनकी डायरेक्ट्री का भी मई में विमोचन होगा। -प्रियवृत सिंह युकां, प्रदेशाध्यक्ष

मप्र में किसके भरोसे होगी चुनावी नैया पार

भोपाल। कांग्रेस में राहुल गांधी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनने के बाद मप्र में राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। क्या राज्य ईकाई में कोई बदलाव होगा, या नेतृत्व बदले बिना ही पार्टी चुनावी समर मेें कूदेगी? इस तरह के सवाल इन दिनों पार्टी में उठ रहे हैं। राहुल गांधी ने उपाध्यक्ष पद संभालने के बाद यह संकेत तो दे दिया था कि उनका फोकस अब मप्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान और दिल्ली में इस साल होने वाले विधानसभा के चुनावों पर होगा। राहुल इन चारों राज्यों के संगठन की मौजूदा स्थिति का आकलन कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ के लिए तो उन्होंने साफ संकेत दे दिया है कि वहां कांग्रेस आपसी गुटबाजी का शिकार है और उसमें बदलाव की जरूरत है। माना जा रहा है कि फरवरी के अंतिम दौर तक छत्तीसगढ़ में कोई न कोई बदलाव हो सकता है। जहां तक मप्र की बात है तो स्थिति यहां भी कोई अच्छी नहीं दिखती। प्रदेश कांग्रेस लचर-ढचर हालत में है, नेताओं की आपसी गुटबाजी के चलते पार्टी का जनाधार लगातार गिर रहा है। गुटबाजी तो इस कदर यहां हावी हो चुकी है कि कुछ माह पहले सोनिया गांधी तक को पार्टी नेताओं की बैठक बुलाकर हस्तक्षेप करना पड़ा था। मप्र में कांग्रेस ने ऐसा कोई कार्यक्रम पिछले पांच साल में नहीं चलाया जिससे पार्टी का जनाधार बढ़ सके। प्रदेश नेतृत्व की कठपुतली वाली स्थिति से सभी वाकिफ हैं। संगठन कितना कमजोर है इसका अंदाजा राज्य में पार्टी की चुनाव दर चुनाव में हो रही हार से लगाया जा सकता है। प्रदेश अध्यक्ष के गृह जिले तक में भी मंडी के चुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। ऐसी हालत में क्या विधानसभा का चुनाव जीता सकता है? पार्टी सूत्रों की माने तो राहुल गांधी और उनकी टीम मप्र में संगठन में बदलाव चाहती है और ऐसे को नेतृत्व देने के पक्ष में है जो सबको मान्य हो। लेकिन नेताओं की टांग खिचौव्वल के चलते यह संभव नहीं दिख रहा। यह इस बात से जाहिर हो जाता है कि राहुल गांधी ने केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रदेश में सक्रिय तो कर दिया, परंतु अभी तक वह यह तय नहीं कर पाए कि उनको जिम्मेदारी क्या दी जाए। क्या उनको प्रदेश में चुनाव प्रचार की कमान सौंपी जाए या फिर संगठन का मुखिया घोषित किया जाए या मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किया जाए। बताया जाता है कि राहुल प्रदेश में युवाओं को आगे करने के पक्ष में हैं, लेकिन ऐन चुनाव के वक्त बड़ो को दरकिनार करने का साहस भी वे उठा नहीं पा रहे हैं। प्रदेश की वरिष्ठ नेताओं की लॉबी उनके सामने रोड़ा अटकाए है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि मप्र में पार्टी चुनावी नैया किसके बूते पार कर पाएगी? कौन दावेदार और क्यों कमलनाथ केंद्र में मंत्री होने के साथ प्रदेश के महाकोशल अंचल में खासा प्रभाव रखते हैं। एफडीआई के मुद्दे पर संसद में कांग्रेस को जीत दिलवाकर सप्रंग अध्यक्ष सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का विश्वास हासिल कर चुके हैं। कमजोर पक्ष यह है कि राज्य में कंट्रोल तो पूरा चाहते है लेकिन नेतृत्व संभालने से पीछे हटते हैं। कांतिलाल भूरिया प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के रूप मे इनका कार्यकाल कोई खास नहीं रहा है। इनकी कमजोरी यह रही कि कठपुतली अध्यक्ष के रूप में इन्होंने कार्य किया और जनप्रिय नेता की छबि नहीं बना पाए। इनका पक्ष इसलिये मजबूत है कि आदिवासी वोट बैंक के चलते पार्टी इनको इग्रोर नहीं कर सकती साथ ही 10 जनपथ में इनका सीधा संपर्क है। दिग्विजय सिंह राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रहे और वर्तमान में कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव के रूप में काम कर रहे हैं। कमजोर पक्ष यह है कि इनके मुख्यमंत्री कार्यकाल में ही मप्र में पार्टी बुरी तरह से हारी थी। विवादास्पद बयान देने के कारण हमेशा चर्चाओं में तो बने रहते हैं लेकिन जनाधार नहीं बढ़ा सकते। मप्र की जनता अभी तक इनसे नाराज है। राहुल गांधी का रणनीतिकार और संघ का घोर विरोधी होना इनका मजबूत पक्ष माना जाता है। सत्यव्रत चतुर्वेदी इस समय राज्यसभा के सदस्य हैं। प्रखर वक्ता और बुंदेलखण्ड के दबदबे वाले नेता की रूप में पहचाने जाते हैं। कांग्रेस में दिग्विजय सिंह के घोर विरोधी माने जाते हैं। सोनिया गांधी से सीधा संपर्क है तथा ब्राम्öण वर्ग से हैं। कमजोर पक्ष पूरे प्रदेश में न जनाधार न ही समर्थक। सुरेश पचौरी- पार्टी की कमान पिछले विधानसभा चुनावों में संभाली थी, लेकिन बुरी तरह से हार मिली। कई तरह के आरोपों से भी घिरे। जनाधार विहीन नेता की छवि से उबर नहीं पाए। अभी पार्टी में सक्रिय ही नहीं। ज्योतिरादित्य सिंधिया केंद्र में मंत्री हैं और गांधी परिवार के निकट माने जाते हैं, प्रदेश की राजनीति में इनकी खासी दखलंदाजी भी है। पिता की विरासत को संभालते हुए कार्यकत्र्ताओं व जनता में विश्श्वास जमा चुके हैं, युवा व स्वच्छ छवि के होने का लाभ मिल सकता है। कमजोर पक्ष यह है कि प्रदेश कांग्रेस में सर्वमान्य नहीं। अजय सिंह वर्तमान में विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और युवा। कांग्रेस दिग्गज अर्जुन सिंह के पुत्र तथा दिग्विजय सिंह के निकट हैं, लेकिन प्रदेश सरकार की खामियों को उजागर करने में सफल नहीं हो पाना इनका कमजोर पक्ष है। भाजपा सरकार के खिलाफ प्रभावी भूमिका सदन में नहीं निभाने का आरोप। मीनाक्षी नटराजन- राहुल गांधी की युवा ब्रिगेड में शामिल तथा उनकी विश्वासपात्र। भाजपा दिग्गज लक्ष्मीनारायण पांडे को हराकर संसद में पहुंचने के कारण पार्टी में साख बनी। लेकिन प्रदेश तो दूर मालवा क्षेत्र में ही कार्यकर्ताओं की पसंद नहीं।

दिग्गजों को आइना दिखाया यशोधरा ने

भोपाल। भाजपा के दमदार नेताओं वाले ग्वालियर-चंबल संभाग में गुटों में बंटे नेताओं के समर्थकों को अपने आगे नतमस्तक कर प्रदेश उपाध्यक्ष बनाई गई यशोधरा राजे सिंधिया ने दिग्गज नेताओं को आइना दिखाया है कि अगर पार्टी गाइड लाइन पर काम किया जाए तो विरोधी भी समर्थक बन कर सामने आएगा। हालांकि पूर्व में यशोधरा पर संगठन से दूरी बनाकर व्यक्तिपरक राजनीति करने के आरोप लगते थे मगर इस बार इन आरोपों से मुक्त होकर संगठन के जरिए आगे की राजनीति करने की उनकी इच्छा साफ तौर पर देखी जा रही है। वे अब संगठन पर भी अपनी पकड़ बनाने में जुट गई है। बीते दिनों ग्वालियर और शिवपुरी का यशोधरा को प्रभारी बनाया गया है और इन दोनों जिलों में भाजपा को मजबूत करने के लिए यशोधरा को कमान प्रदेश नेतृत्व द्वारा सौंपी गई है। ग्वालियर और शिवपुरी की कमान मिलने के बाद यशोधरा राजे सिंधिया इस मौके को अब पूरी तरह से भुनाने के मूड में है और संगठन पर उनकी पूरी नजर है। शिवपुरी दौरे के दौरान यशोधरा राजे सिंधिया ने भाजपा कार्यकर्ताओं की बैठक ली। इस बैठक में भाजपा के महामंत्री लाल सिंह आर्य भी मौजूद थे। जिला बैठक से पहले जिस प्रकार से ग्वालियर से शिवपुरी के बीच यशोधरा राजे सिंधिया का उनके समर्थकों के अलावा उनके घुर विरोधी नेताओं ने स्वागत किया है। उससे अब साफ तौर पर जाहिर हो रहा है कि शिवपुरी की राजनीति में यशोधरा की दखलदांजी कुछ ज्यादा ही होगी। भाजपा में पहले संगठन के जरिए राजनीति करने वाले नेताओं में यशोधरा की उपेक्षा की थी और संगठन के जरिए यह भाजपा नेता आगे बढ़े थे मगर अब प्रदेश नेतृत्व में जिस प्रकार से यशोधरा को सन् 2013 से पहले बेटेज दिया है उससे साफ तौर पर जाहिर हो गया है कि भाजपा में यशोधरा की वजनदारी पहले की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही होगी। शिवपुरी में जिस प्रकार से यशोधरा के घुर विरोधी रहे नेता देवेन्द्र जैन, जितेेन्द्र जैन, पूर्व विधायक गणेश गौतम, नरेन्द्र बिरथरे आदि ने शरणम् गच्छामि जैसी पोजीशन अख्तियार की उससे साफ तौर पर जाहिर होता है कि यह नेता भी अब यशोधरा के बैनर तले आगे की राजनीति करने के मूड में है। जिलाध्यक्ष के चयन से होगी आगे की राजनीति तय ग्वालियर और शिवपुरी के भाजपा जिलाध्यक्ष का नाम अभी तक तय नहीं हो पाया है। नए प्रदेशाध्यक्ष के रूप में बागडोर संभाले नरेन्द्र सिंह तोमर को लगभग दो महीने से ज्यादा समय हो गया है मगर ग्वालियर और शिवपुरी के भाजपा जिलाध्यक्ष का नाम तय नहीं हो पाया है। जिस प्रकार से ग्वालियर शिवपुरी का प्रभारी यशोधरा राजे सिंधिया को बनाया गया है उस हिसाब से क्या यशोधरा की सलाह पर ही भाजपा के नए जिलाध्यक्ष तय होंगें, यह आने वाला समय बताएगा। यदि यशोधरा की सलाह पर ही नए जिलाध्यक्ष बनाए गए तो आगे की राजनीति इन दोनों जिलों में यशोधरा के हिसाब से ही चलेगी, इस बात में कोई दो राय नहीं है।

भोपाल की चार सीटों पर भाजपा मुश्किल में

भोपाल। विधानसभा चुनावों में अब ज्यादा समय शेष नहीं है लेकिन भाजपा ने भोपाल से एक प्रायवेट कंपनी से अपने स्तर से जिले की सात विधानसभा सीटों का जो सर्वे कराया है। उस सर्वे रिपोर्ट ने भाजपा की नींद उड़ा दी है। जानकारी के अनुसार जिले की सातों विधानसभा सीटों में से चार पर सत्ताधारी दल भाजपा की स्थिति ठीक नहीं है। वर्तमान में भाजपा के पास सात में से छह विधानसभा क्षेत्र पर पार्टी का कब्जा है। एक सीट उत्तर विधानसभा क्षेत्र कांग्रेस के पास है। मगर बीते एक महीने पहले हुए नए सर्वे में भाजपा के पास जो छह सीटें मौजूद है उनमें से भोपाल दक्षिण पश्चिम और बैरसिया विधानसभा सीट को छोड़ कर शेष पर वर्तमान स्थिति में विधायकों की स्थिति खराब है। सर्वे की इस रिपोर्ट से प्रदेश नेतृत्व के प्रमुख नेताओं के माथे पर चिंता की लकीरें देखी जा रही है। नरेला,भोपाल मध्य,हुजूर और गोविंदपुरा में भाजपा कमजोर कुछ मतदाताओं से बातचीत के आधार पर तैयार इस सर्वे रिपोर्ट में नरेला विधानसभा सीट से भाजपा के विधायक विश्वास सारंग की स्थिति खराब बताई है। यहां विश्वास सारंग ने कांग्रेस प्रत्यासी सुनील सूद को 3273 के अंतर से हराया था। रिपोर्ट की भनक मिलते ही कांग्रेस ने नरेला में सक्रियता बढ़ा दी है। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुरेश पचौरी ने गत दिनों कार्यकताओं का सम्मेलन आयोजित कर उन्हें अभी से चुनावी मोर्चा संभालने का निर्देश दिया है। इसी तरह भोपाल मध्य विधानसभा क्षेत्र में भाजपा की स्थिति खराब बताई गई है यदि वर्तमान में ध्रुवनारायण सिंह को पुन: टिकिट दिया जाता है तो यहां भाजपा को जीतने में पसीने आ सकते है। यहां ध्रुवनारायण ने कांग्रेस के नासिर इस्लाम को 2519 वोट से हराया था। शहला मसूद हत्या काण्ड सहित अन्य अंतर्कलहों को भाजपा के लिए मुसीबत का कारण बताया गया है। इसी तरह हुजूर विधानसभा क्षेत्र में भाजपा विधायक का अंदरूनी तौर पर विरोध सर्वे में आया है और यहां भी भाजपा की हालत पतली बताई जा रही है। बीडीए सीओ की मौत मामले में फंसने के बाद से ही डागा की लोकप्रियता कम होती जा रही है। इस विधानसभा सीट से जितेन्द्र डागा ने निर्दलीय भगवान दास सबनानी 16980 मतों से मात दी थी। जहां तक गोविंदपुरा की बात है तो यहां अभी तक अजेय रहे बाबूलाल गौर द्वारा क्षेत्र की लगातार उपेक्षा के कारण जनता में असंतोष फैल रहा है। लेकिन यहां भाजपा के खिलाफ दमदार प्रत्याशी नहीं मिल रहा है। इससे पार्टी थोड़ी राहत महशुस कर रही है। गोविंदपुरा विधानसभा सीट से 8वीं बार अविजित रहते हुए बाबूलाल गौर ने कांग्रेस की विभा पटेल को 33754 वोट से हराया था। उमाशंकर और रत्नाकर कर स्थिति बेहतर भोपाल दक्षिण पश्चिम विधानसभा सीट पर भाजपा की स्थिति बेहतर है। इस विधानसभा सीट पर गृह मंत्री उमाशंकर गुप्ता ने बसपा के संजीव सक्सेना को 26002 मतों से हराया था। सक्सेना अब कांग्रेस में आ गए हैं। लेकिन कार्यकर्ताओं के दम पर राजनीति करने वाले उमाशंकर गुप्ता ने क्षेत्र में अपना जलवा कायम रखा है। इसी प्रकार बैरसिया (अजा)विधानसभा क्षेत्र में भी भाजपा की स्थिति अच्छी है। पिछली बार भाजपा के ब्रह्मानंद रत्नाकर ने कांग्रेस के हीरालाल यादव 23076 मतों से हराया था। कांग्रेस गढ़ में कमजोर कांग्रेस का गढ़ रहे भोपाल उत्तर विधानसभा सीट पर कांग्रेस दिन पर दिन कमजोर होती जा रही है। यहां पर भाजपा के आलोक शर्मा को कांग्रेस के आरिफ अकील ने 4026 मतों से पटखनी दी है। लेकिन हार के बावजुद आलोक शर्मा ने अपनी सक्रियता जारी रखी। क्षेत्र में विभिन्न आयोजनों के माध्यम से हर घर में उनकी दस्तक देने की नीति ने भाजपा को मजबूती प्रदान की है। क्षेत्र में मुस्लिम मतदाता भी अकील के खिलाफ हैं। प्रत्याशियों के बदले जाने की अटकलें सर्वे रिपोर्ट के बाद जिले की चार विधानसभा सीटों पर प्रत्याशी बदले जाने की अटकलें है। सूत्रों का कहना है कि सर्वे रिपोर्ट मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा प्रदेशाध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर के पास पहुंच गई है। अब आने वाले समय में इस सर्वे रिपोर्ट के आधार पर भाजपा के चार विधायकों का भविष्य टिका हुआ है।

पैसा नहीं दिला पाएगा टिकट

भोपाल। पैसे के दम पर बसपा से विधायक का टिकट जुगाडऩे का माद्दा रखने वाले नेताओं के सपने टूट सकते हैं। इसमें रोड़ा बनेगी विधानसभा चुनावों की तैयारी में जुटे बसपा नेतृत्व द्वारा तय की गई गाइड लाइन। पैसे लेकर टिकट वितरण के आरोपों से घिरने वाली बसपा कार्यकर्ताओं को साधने में जुट गई है। इसके तहत उम्मीदवार का चयन और क्षेत्रीय समीकरण के आधार पर किया जाएगा। उत्तर प्रदेश और गुजरात चुनावों में पराजय के बाद बसपा की नजरें मध्यप्रदेश में टिक गई हैं। प्रदेश की सत्ता में धाक बनाने पार्टी नेताओं की प्रदेश में बढ़ती चहल-कदमी इसलिए भी है कि लाख कवायदों के बाद भी बसपा सुप्रीमों मायावती को मध्यप्रदेश से अपेक्षा अनुरूप परिणाम नहीं मिले हैं। बावजूद इसके प्रदेश में पार्टी सभी 230 विधानसभा सीटों में चुनाव लडऩे की तैयारी में है। ग्वालियर, सतना और रीवा जैसे इलाकों से बसपा नेताओं को उम्मीदें अधिक है। वह इसलिए भी कि सीमावर्ती यह क्षेत्र उत्तरप्रदेश से सटे हैं और उत्तरप्रदेश की बसपा राजनीति इन क्षेत्रों को प्रभावित भी करती है। लेकिन पूर्ववर्ती चुनावों में बसपा ने कार्यकर्ताओं को नजर अंदाज कर जिस तरह धनपतियों को टिकट वितरित किए उससे प्रदेश में संगठन आज हॉशिए पर चला गया है। चार राज्यों का प्रभार देख रहे राजाराम इसको लेकर राजधानी में आयोजित संभागीय पदाधिकारियों की बैठक में नाराजगी भी जाहिर कर चुके हैं। यही वजह है कि बैठक के दौरान ही उन्हें साफ करना पड़ा कि पैसे से टिकट लेकर चुनाव लडऩे का भ्रम पदाधिकारी न पाले। टिकट वितरण में समीकरण, सिटिंग विधायक, सामाजिक फिगर को महत्वपूर्ण बताते हुए यह कहना कि सत्ता विस्तार के लिए धन आवश्यक है। लेकिन इसके साथ ही संबंधित का संगठनात्मक गतिविधियों में शामिल रहना भी जरूरी हैं, बताता है कि बसपा पूर्व में हुई गलतियों को दोहराने के मूड़ में नहीं है। बसपा की इन सीटों पर नजर: सुमावली, दिमनी, अम्बाह, लहार, डबरा, दतिया, करेरा, पोहरी, पृथ्वीपुर, खरगापुर, राजनगर, छतरपुर, पथरिया, गुन्नौर, रैगांव, सेमरिया, देवतालाब, रीवा, ब्योहारी, श्योपुर, विजयपुर, सबलगढ़, भिंड, मेहगांव, गोहद, ग्वालियर पूर्व एवं दक्षिण, भितरवार, कैलारस, बामोरी, अशोकनगर, चंदेरी, बीना, मुंगावली, नारायवली, निवाड़ी, चांदला, पनागर, सिहोरा, लांजी, बालाघाट, बारासिवनी, कटंगी, बोहरीबंद, मुडवारा, विजयराघवगढ़, मानपुर, कोतमा, सिंगरौली, चितरंगी, सिंहावल, सीधी, गुढ़, मनगवां, मउगंज, अमरपाटन, सतना, चित्रकूट, हटा और बिजावर आदि शामिल हैं।

गढ़ से निकल चुनावी मोर्चा संभालेंगे दिग्गज

भोपाल। कभी कांग्रेस का अभेद किला रहे मप्र में लगातार 10 साल सत्ता से बाहर रहने के बाद पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव में हर हाल में जीत दर्ज करने की योजना बना रहा है। इसके लिए दिग्गज नेताओं को अपने गढ़ से निकल कर पूरे प्रदेश में सक्रिय होने की रणनीति बनाई जा रही है। इस नीति के तहत सभी दिग्गज नेता चुनाव से चार माह पहले प्रदेश में डेरा डालना होगा। राज्य में कांग्रेस के दिग्गजों को संभावित जिम्मेदारी अपनी दमदार राजनीतिक शैली के से भीड़ का रूख अपनी ओर करने का मद्दा रखने वाले दिग्विजय सिंह पर पूरे प्रदेश की जिम्मेदारी होगी। साथ ही इन्हें टीकमगढ़,छत्तरपुर,राजगढ़,मंदसौर पर विशेष ध्यान देना होगा। कमलनाथ को छिंदवाड़ा के साथ ही जबलपुर,मंडला,कटनी,बालाघाट,अनुपपुर,डिंडोरी,उमरिया,शहडोल आदि क्षेत्रों की जिम्मेदारी रहेगी। ज्योतिरादित्य ग्वालियर के साथ भिंड,मुरैना,शिवपुरी,दतिया,गुना,इंदौर,उज्जैन,शाजापुर की जिम्मेदारी रहेगी। कांतिलाल भूरिया पर मुख्यत: आदिवासी क्षेत्रों की जिम्मेदारी रहेगी। जिनमें बुरहानपुर,खंडवा,खरगौन,बड़वानी,झाबुआ,बैतुल,रतलाम,धार आदि शामिल है। .सुरेश पचैरी को भोपाल,होशंगाबाद,विदिशा,सिहोर,देवास आदि क्षेत्रों की जिम्मेदारी दी जा सकती हैं। श्रीनिवास तिवारी और अजय सिंह पर पूरे विंध्य क्षेत्र के साथ ही सागर,दमोह और बुंदेलखंड के जिलों की जिम्मेदारी रहेगी। कांग्रेस को चाहिए दमदार नेतृत्व लोकसभा क्षेत्रों का सर्वे कर पर्यवेक्षकों ने आलोमान को जो रिपोर्ट सौंपी है उसमें सवाल उठाया गया है कि क्षेत्रवाद में बंटी कांग्रेस भाजपा को चुनौती कैसे देगी। गुटबाजी से कांग्रेस को फिर नुकसान होने का अंदेशा है। राज्य में ऐसा कोई नेता नहीं है जो पूरे प्रदेश के कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को लेकर चल सके। पार्टी को एक जुट कर सके। प्रदेश में एक सशक्त और लोकप्रिया नेता की जरूरत है। भले दिग्विजय सिंह को राहुल गांधी के चुनावी रथ का सारथी बना दिया गया है, लेकिन ऐसा नहीं लगता कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस की नैया अकेले दिग्विजय सिंह के दम पर पार हो जायेगी। पार्टी के अधिकांश लोगों को मानना है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ अधिक से अधिक लोग जुड़ सकते हैं। कांतिलाल भूरिया की तुलना में वो अधिक लोकप्रिय हैं। लेकिन कांग्रेस हाई कमान इस बात को तूल नहीं देना चाहता। हाल के विवाद से यही जाहिर होता है। ऐसा भी हो सकता है कि कांग्रेस हाई कमान अभी कांग्रेस के अंदर के विरोध को और देखना चाहता है, उसके बाद ही ज्योतिरादित्य को प्रदेश की कमान सौंपे, लेकिन एक बात तो साफ हो गई है कि कांग्रेस के दूसरे बड़े नेताओं के समर्थक भी ज्योतिरादित्य की ओर अभी से लुढ़कने लगे हैं। कांग्रेस के वोट बैंक भाजपा के कब्जे में 2008 का चुनाव हारने के बाद कांग्रेस कुपोषित हो गई। शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री बनने के बाद कांग्रेस के जो वोट बैंक थे, उस पर धीरे धीरे भाजपा का कब्जा हो गया। शिवराज चूंकि ओबीसी की राजनीति करते हैं और कांग्रेस के जीत का यही वोट बैंक है जो कि उसके हाथ से सत्ता के जाते ही खिसक गया। भूरिया के खिलाफ सुलग रही बगावत की आग आदिवासी वोट बैंक को पुन: कबजाने के लिए कांतिलाल भूरिया को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया, लेकिन गुटबाजी की गांठ ने उन्हें आगे नहीं बढऩे दिया। नतीजा पार्टी के अंदर उनका जमकर विरोध शुरू हो गया। मामला प्रदेश से दस जनपथ तक पहुंचा। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह राहुल और कांतिलाल भूरिया को दिल्ली बुलाया गया। कांतिलाल वर्सेस ज्योतिरादित्य सिंधिया के मामले की विवेचना का दायित्व फर्नांडिस को देकर विरोध के गुबार को दबाने का प्रयास हाई कमान ने किया। लेकिन अब भी माना जा रहा है कि कांग्रेस के अंदर कांतिलाल को लेकर विरोध दबा नहीं है। पार्टी के अंदर बगावत की आग सुलग रही है। विधायक कल्पना पारूलेकर सहित बीस विधायकों ने दमदारी के साथ कांतिलाल की खिलाफत करके बता दिया कि कांतिलाल नहीं चलेंगे। चुनाव में कांग्रेस के मुद्दे आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रदेश में भ्रष्टाचार,बिजली,सड़क, कुपोषण, महिला उत्पीडऩ, मुस्लिम और आदिवासियों के खिलाफ हो रहे अत्याचार, किसानों को खाद नहीं मिलना, किसानों की समस्या, दलित महिलाओं पर बढ़ता जुल्म, अवैध उत्खनन, आदि ऐसे मामलों को उठाकर भाजपा के खिलाफ सड़कों पर उतरेगी।

प्रदेश में चुनावी तैयारी में जनरेशन नेक्स्ट

विनोद उपाध्याय भोपाल। प्रदेश में विधानसभा चुनाव की सुगबुगाहट के साथ ही सियासी घरानों ने अपने वारिसों को के लिए मैदान तलाशना शुरू कर दिया है। दिग्विजय सिंह ने बेटे की राजनीतिक शुरुआत जमीनी स्तर से कर कई नेताओं को राह दिखा दी है। संभव है कि चुनाव से पहले कई नेता पुत्र प्रदेश में पैदल यात्रा या रैलियां करते नजर आएं। वैसे जयवर्धन ने जमीनी काम की शुरुआत काफी पहले ही कर दी थी। माना जा रहा है कि प्रदेश का अगला विधानसभा चुनाव इसी जनरेशन नेक्स्ट के नाम पर होगा। जयवर्धन सिंह, 24 वर्ष, दिग्विजय सिंह के वारिस कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह के पुत्र जयवर्धन सिंह अपने पिता की परंपरागत विधानसभा सीट राघोगढ़ से चुनाव लडऩे की तैयारी में है। कोलंबिया यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल ऐंड पब्लिक अफेयर से एमबीए कर रहे हैं। इससे पहले मुंबई में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत थे। लोकप्रियता के लिए गृह क्षेत्र राघोगढ़ और राजगढ़ में बेसहारा बच्चों के लिए शिशु सदन स्कूल खुलवाए। राघोगढ़ से 21 दिसंबर को 150 किमी की सात दिन की पदयात्रा शुरू कर सक्रिय राजनीति में कदम रखा। राजगढ़ के जिला कांग्रेस अध्यक्ष रामचंद्र डांगी कहते हैं, जयवर्धन हमारे जिले में नए नहीं हैं। सही भी है, क्योंकि पिछले दो साल से वे राजगढ़ और राघोगढ़ में बेसहारा बच्चों को स्कूली शिक्षा देने के लिए प्रगति मानव सेवा नाम के एनजीओ की मदद से शिशु सदन स्कूल का संचालन कर रहे हैं। अक्षय राजे भंसाली, 26 वर्ष, यशोधरा राजे सिंधिया के वारिस ग्वालियर की भाजपा सांसद यशोधरा राजे सिंधिया के बेटे अक्षयराजे भंसाली का नाम प्रदेश की राजनीति में उस वक्त सुर्खियों में आया था जब पांच साल पहले लोकसभा चुनाव में अपनी मां के प्रचार के लिए वे न्यूयॉर्क से खासतौर से यहां आए थे। एमटीवी चैनल में प्रोड्यसर और लेखक भंसाली के साथ भाषा की दिक्कत जरूर रही लेकिन इसे उन्होंने अपनी राजनीतिक सक्रियता में बाधा नहीं बनने दिया। यशोधरा राजे के समर्थक और ग्वालियर मेला प्राधिकरण के अध्यक्ष अनुराग बंसल कहते हैं, पिछले दिनों शिवपुरी के नगरपालिका चुनाव में अक्षय ने पार्टी प्रत्याशी सीता आस्थाना के समर्थन में प्रचार किया था, और हमेशा की तरह अपनी सहजता से कार्यकर्ताओं का दिल जीत लिया। कैप्टन मंदार महाजन, 40 वर्ष, सुमित्रा महाजन के वारिस इंदौर से सात बार सांसद रह चुकीं भाजपा की सुमित्रा महाजन (ताई) के बेटे मंदार महाजन वैसे तो मध्य प्रदेश फ्लाइंग क्लब में फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर हैं लेकिन पिछले दस साल से राजनैतिक तौर पर भी खासे सक्रिय हैं। पिछले दो विधानसभा चुनावों में वे दावेदार के तौर पर उभरे हैं। संभावना है कि आगामी विधानसभा चुनाव में इंदौर की एक सीट उनके दावे में शामिल होगी। ताई के बड़े बेटे और आइटी कंपनी मिराश इंफोटिक्स के मालिक मिलिंद अपनी मां के थिंक टैंक के तौर पर जाने जाते हैं। सूत्रों की मानें तो अगर सुमित्रा महाजन 2014 का चुनाव नहीं लड़ती हैं तो उनकी ओर से इस सीट के प्रमुख दावेदार मिलिंद ही होंगे। 40 वर्षीय मंदार और 47 वर्षीय मिलिंद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि से हैं। अपने बेटों के बारे में सुमित्रा महाजन की स्पष्ट राय है,उनमें काबिलियत है तो मौका जरूर मिलना चाहिए। देवेंद्र प्रताप तोमर मध्यप्रदेश भाजपा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के पुत्र देवेंद्र प्रताप उर्फ रामो अपने पिता की परंपरागत विधानसभा सीट ग्वालियर से चुनाव लडऩे की तैयारी में हैं। यहां से खुद नरेंद्र सिंह तोमर दो बार विधायक रह चुके है। वर्तमान में यहां से कांग्रेस के प्रद्युमन सिंह तोमर विधायक है। लेकिन तोमर के प्रदेश अध्यक्ष बनने के साथ ही अभी इनकी उम्मीदों पर विराम-सा लग गया है। क्योंकि तोमर अभी कोई रिस्क उठाना नहीं चाहते। आकाश विजयवर्गीय उद्योग मंत्री विजयवर्गीय के पुत्र अपने पिता की परंपरागत इंदौर-2 नंबर सीट से चुनाव लडऩे की तैयारी में हैं। 2008 में विजयवर्गीय के महू से चुनाव लडऩे के कारण इंदौर-2 से उनके विश्वस्त रमेश मेंदोला चुनाव जीते थे। विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक इस बार मेंदोला को इंदौर-3 नंबर सीट से लगातार चुनाव जीतते आ रहे कांग्रेस विधायक अश्विन जोशी के खिलाफ चुनाव लड़ाए जाने की रणनीति पर विचार चल रहा है। इससे आकाश के इंदौर-2 नंबर सीट से चुनाव लडऩे का रास्ता भी साफ हो जाएगा। अभिषेक भार्गव पंचायत मंत्री गोपाल भार्गव के पुत्र अभिषेक प्रदेश भाजयुमो में मंत्री पद पर सक्रिय हैं और बुंदेलखंड की देवरी, सागर और बंडा क्षेत्र में जमीन तलाशने में जुटे हैं। इसमें उनके पिता और समर्थकों का बराबर सहयोग मिल रहा है। सिद्धार्थ मलैया मंत्री जयंत मलैया के पुत्र सिद्धार्थ भाजयुमो की प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य के तौर पर सक्रिय हैं। क्षेत्र के युवाओं में उनकी अच्छी पैठ है। जयंत मलैया सिद्धार्थ को दमोह या सागर से चुनाव लड़ाने की तैयारी कर रहे हैं। नकुल नाथ, 37 वर्ष, कमलनाथ के वारिस बोस्टन यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन कर चुके नकुल एविएशन क्षेत्र के स्पान ग्रुप और कई शैक्षणिक संस्थानों की कंपनियों का संचालन कर रहे हैं। वे पिता के निर्वाचन क्षेत्र छिंदवाड़ा में भी खासे सक्रिय हैं। चर्चा में जनवरी 2008 में उस वक्त आए जब भोपाल में उन्हें आधिकारिक तौर पर लांच किया गया। लाइफ स्टाइल पूरी तरह हाइटेक। ब्लेक बैरी और आइपैड का इस्तेमाल करते हैं। मृदुभाषी और मिलनसार माने जाते हैं। कमलनाथ के नजदीकी लक्ष्मण ढोली कहते हैं, नकुल हर कार्यकर्ता का ध्यान रखते हैं। जहां कमलनाथ जी चुनाव प्रचार में नहीं पहुंच पाते वहां वे मौजूदगी दर्ज करवाते हैं। विक्रांत भूरिया, कांतिलाल भूरिया के वारिश कांग्रेस महासचिव एवं पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की तर्ज पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया भी अपने डॉक्टर बेटे विक्रांत भूरिया को राजनीति में लांच कर दिया है। इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में भूरिया के स्थान पर विक्रांत चुनाव लड़ सकते हैं। दरअसल भूरिया ने पिछले दिनों जयपुर में हुए चिंतन शिविर में कांग्रेस के नवनियुक्त राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा सुझाए गए फार्मूले के मद्देनजर इसी चुनाव से बेटे को लांच करने का मन बना लिया है। डॉ. विक्रांत छात्र जीवन से ही राजनीति में हैं और वे जूडा के प्रदेशाध्यक्ष रह चुके हैं। सूत्रों ने बताया कि वे अगला विधानसभा चुनाव अपने पिता के संसदीय क्षेत्र की थांदला विधानसभा सीट से लड़ेंगे। यहां से भूरिया भी विधायक रह चुके हैं। राजनीति में कदम रखने कई नेताओं के रिश्तेदार बेकरार केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया का भतीजा आशीष भूरिया, सांसद सज्जन सिंह वर्मा का भतीजा रिंकू वर्मा, सांसद सत्यव्रत चतुर्वेदी का बेटा नितिन चतुर्वेदी, पूर्व मंत्री महेश जोशी का बेटा पिंटू जोशी, पूर्व मंत्री स्व. लिखीराम कांवरे की बेटी सुश्री हिना कांवरे लोकसभा चुनाव लडऩे की तैयारी कर रही हैं, पूर्व विधान सभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी के नाती विवेक तिवारी बाबला विधान सभा चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहे हैं। दर्जनों विधायक और सांसदों के बेटा और बेटी राजनीति में अपना कॅरियर अजमाने को तत्पर हैं। पूर्व मुख्यमंत्री सुन्दरलाल पटवा के दत्तक पुत्र सुरेन्द्र पटवा भोजपुर से विधायक कैलाश जोशी के बेटे दीपक जोशी हाटपिपल्यिा से विधायक पूर्व मुख्यमंत्री वीरेन्द्र कुमार सखलेचा के बेटे ओमप्रकाश सखलेचा जावद से विधायक वरिष्ठ मंत्री बाबूलाल गौर की पुत्रवधु कृष्णा गौर भोपाल की महापौर हैं। पूर्व मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह के पुत्र धु्रवनारायण सिंह भोपाल मध्य से विधायक हैं। स्व. दिलीप भटेरे बेटे रमेश भटेरे लंाजी से विधायक नरेश गुप्ता की पुत्रवधु समीक्षा गुप्ता ग्वालियर की महापौर हैं। महिला बाल विकास मंत्री रंजना बघेल के पति मुकाम सिंह किराड़े को कुक्षी से विधायक हैं। सोनकच्छ से पूर्व सांसद फूलचंद वर्मा के बेटे राजेन्द्र को टिकट दिया गया था, वो चुनाव जीतने के बाद एमएलए बन गये। पूर्व केन्द्रीय मंत्री विक्रम वर्मा की पत्नी नीना वर्मा धार से विधायक हैं। पूर्व केन्द्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते के अनुज राम प्यारे मंडला से विधायक हैं। लोक स्वास्थ्य मंत्री गौरीशंकर बिसेन की पत्नी रेखा बिसेन बालाघाट जिला पंचायत की अध्यक्ष हैं। आदिम जाति कल्याण मंत्री विजय शाह की पत्नी भावना शाह खंडवा में महापौर हैं। पूर्व मंत्री किशोरीलाल वर्मा के बेटे देवेन्द्र खंडवा से विधायक हैं। पूर्व मंत्री लक्ष्मण सिंह गौंड की धर्मपत्नी मालिनी इंदौर से विधायक हैं। भाजपा के दिग्गज नेता कैलाश सारंग के बेटे विश्वास सारंग नरेला से विधायक हैं पूर्व विधायक डॉ. पंचूलाल प्रजापति की पत्नी श्रीमती पन्नी बाई प्रजापति मनगवां से विधायक हैं। पूर्व विधान सभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी के पुत्र सुन्दरलाल तिवारी प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष हैं, सांसद भी रह चुके हैं। पूर्व केन्द्रीय मंत्री स्व. अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह राहुल नेता प्रतिपक्ष है। वहीं विधायक गिरीश गौतम के पुत्र राहुल गौतम जिला पंचायत के उपाध्यक्ष हंै। विधायक नागेन्द्र सिंह के पुत्र सहकारी बैंक के अध्यक्ष हैं। केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ अपनी पत्नी अलकानाथ को सांसद बना चुके हैं। नेता प्रतिपक्ष स्व.जमुना देवी के भतीजे उमंग ंिसंघार को विधायक बनने का मौका मिला स्व. माधवराव सिंधिया के पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया केन्द्रीय मंत्री हैं। पूर्व मंत्री महेश जोशी की विरासत इंदौर में उनके भतीजे अश्विनी जोशी संभाल रहे हैं। पूर्व मंत्री सत्येन्द्र पाठक की पत्नी महापौर है और बेटा संजय विधायक है।

कांग्रेस को सबक सिखाने के लिए जनता तैयार: राजनाथ

भोपाल। महंगाई और भ्रष्टाचार से पीडि़त देश की जनता कांग्रेस को सबक सिखाने का मन बना चुकी है। यूपीए सरकार ने देश को जिस बुरे मुकाम पर ला खड़ा किया है उससे जनता त्रस्त है। भाजपा जनता की व्यथा को समझती है और समय-समय पर हम केन्द्र सरकार को उसका समाधान करने के लिए कहते हंै लेकिन सत्ता ने आंख और कान बंद कर रखे हैं। यह बात अग्रिबाण से बातचीत में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह न कही। प्र- आपने तीसरी बार भाजपा की कमान थामी है। इस बार आप क्या-क्या मुख्य चुनौतियां मान रहे हैं ? उ- किसी भी दल के सामने सबसे बड़ी चुनौती चुनाव होते हैं और चुनाव में सफलता पाने के लिए जन सामान्य का विश्वास पाना जरूरी होता है। इसलिए भाजपा जनता से जुड़े मुद्दों पर जोर देगी। जनता के प्रश्नों का समाधान तलाशेगी। इसके साथ ही कार्यकर्ताओं को अपने आचरण, आचार व व्यवहार को लेकर भी जनता में संदेश देना होगा कि भाजपा हमेशा ही मूल्यों की राजनीति करती है। आज कांग्रेस ने देश में जो हालात कर दिए हैं, उससे राजनेता, राजनीतिक पार्टियों व राजनीतिक व्यवस्था के प्रति लोगों का विश्वास घट रहा है। इसे भी मै चुनौती मानता हूं और भाजपा इस चुनौती को स्वीकार करके लोगों का विश्वास लौटाने का प्रयास करेगी। प्र- अब इस साल नौ राज्यों के चुनाव हैं और फिर भाजपा को लोकसभा के चुनाव में भी कूदना है। लगभग नौ साल से केंद्र की सत्ता से बाहर भाजपा की वापसी के लिए आपके पास क्या योजना है ? उ- कांग्रेस के कुशासन, महंगाई, भ्रष्टाचार, आतंक आदि से लोग पहले से ही बेहाल हैं। यह सही है कि मैं भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गया हूं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं अकेले ही रातों रात सब कुछ बदल दूंगा। मैं पार्टी संगठन और कार्यकर्ताओं के सहयोग से कोशिश करूंगा और हम सब मिलकर ही लोगों की आशाओं को पूरा करेंगे। आज जनता भाजपा की ओर उम्मीद भरी निगाह से देख रही है। प्र- नितिन गडकरी की टीम में युवा वर्ग को काफी प्रतिनिधित्व मिला था, अब कांग्रेस ने भी राहुल गांधी को आगे कर दिया है। आप अपनी टीम में युवा वर्ग को शामिल करने को लेकर क्या सोचते हैं? उ- कांग्रेस की तुलना में भाजपा में ज्यादा युवा वर्ग पहले से ही सक्रिय है, लेकिन वह मध्यम या गरीब वर्गों से हैं। किसानों के बच्चे हैं। इसलिए उन पर किसी का ज्यादा ध्यान नहीं जाता है जबकि कांग्रेस में बड़े बाप के बच्चे हैं। प्र- भाजपा ने पार्टी का अध्यक्ष चुनने का मामला तो सुलझा लिया है। अब क्या भाजपा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार भी तय कर देगी? उ- प्रधानमंत्री के उम्मीदवार को लेकर पार्टी का संसदीय बोर्ड फैसला करेगा। भाजपा में यह भी परंपरा है कि केंद्र में चुनाव के बाद चुने सांसद प्रधानमंत्री चुनते हैं और राज्यों में विधायक मुख्यमंत्री तय करते हैं। प्र- केंद्र में सरकार बनाने के लिए भाजपा को एनडीए का कुनबा भी बढ़ाना होगा, इसके लिए आप क्या करेंगे? उ- पार्टी मजबूत होने पर एनडीए का कुनबा भी बढ़ जाएगा। मोदी भाजपा में लोकप्रिय नेता हैं, लेकिन भाजपा में कोई नेता किसी पद पर के लिए दावा पेश नहीं करता। पीएम पद के उम्मीदवार का निर्णय संसदीय बोर्ड की बैठक में लिया जाएगा।

मोदी को मिलकर रोकेंगे शिवराज और सुषमा स्वराज

भारतीय जनता पार्टी के अंदरखाने मे सत्ता संघर्ष और प्रधानमंत्री पद को लेकर मचे घमासान का केन्द्र मध्य प्रदेश भी बन गया है। संघ और पार्टी के उच्च पदस्थ सूत्रों के हवाले से खबर है कि दिल्ली भाजपा में मचे सत्ता संघर्ष और भविष्य की राजनीति की पटकथा भोपाल मे लिखी जा रही है। पार्टी के उच्च पदस्थ सूत्रों के हवाले से खबर है कि मोदी बनाम सुषमा को लेकर मची खींचतान में मोदी को रोकने और पार्टी के भीतर सुषमा के पक्ष मे माहौल बनाने की रणनीति का खाका खींचने में मध्य प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे है। विदिशा से सुषमा स्वराज को लोकसभा भेजने वाले शिवराज सिह चौहान ने मोदी के मुकाबले सुषमा स्वराज को समर्थन देने और समर्थन जुटाने का जिम्मा उठाया है। विश्वस्त सूत्र बताते है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिह चौहान, प्रदेश अध्यक्ष नरेन्द्र सिह तोमर और विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज के बीच दिल्ली और भोपाल में हो रही बैठकों का मकसद भी यही है। मोदी नही सुषमा को स्टार प्रचारक बनाने की तैयारी ! केन्द्रीय चुनाव समिति का प्रमुख बनाने और इसी साल होने वाले विधानसभा चुनावो और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों में नरेन्द्र मोदी को स्टार प्रचारक बनाने की संभावनाओ के चलते पार्टी के भरोसेमंद सूत्रों के हवाले से खबर है कि मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव मे मोदी की जगह सुषमा स्वराज शिवराज सिह चौहान के साथ स्टार प्रचारक की जिम्मेदारी निभाएगी। विश्वस्त सूंत्रों कि मानें तो सत्ता और संगठन के प्रदेश प्रमुख नरेन्द्र मोदी को प्रदेश के प्रचार में ज्यादा तवज्जो देने के मूड में नही है। औपचारिकता निभाने के लिए मोदी की कुछ ही सभाएं प्रदेश मे आयोजित करने का प्रस्ताव भेजे जाने की तैयारी है। असल में अगर शिवराज को साधकर सुषमा स्वराज मोदी का रथ रोकने की कोशिश कर रही हैं तो शिवराज सिंह चौहान भी सुषमा स्वराज को आगे करके मोदी को मैसेज भेज रहे हैं कि अगर वे अपने गुजरात में आलाकमान हैं तो मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह की हैसियत मोदी से कम नहीं है। अभी तक के जो हालात हैं वो प्रदेश में तीसरी बार भाजपा की सरकार बनने का संकेत कर रहे हैं। जब से शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बने हैं कम से कम प्रदेशभर की सहानुभूति जुटाने में उन्होंने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। ऐसे में अगर तीसरी बार उन्हें अपने नेतृत्व में जीत पक्की नजर आ रही है तो वे नहीं चाहते कि इसका श्रेय कहीं से भी नरेन्द्र मोदी को मिले। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के करीबी लोगों में गिने जाते हैं इसलिए स्वाभाविक तौर पर पार्टी फोरम के भीतर वे नरेन्द्र मोदी के समकक्ष गिने जाते हैं। हाल के दिनों में खुद आडवाणी ने बार बार मध्य प्रदेश जाकर शिवराज का कद बढ़ाने की कोशिश भी की है। ऐसे में सुषमा स्वराज और शिवराज की यह जोड़ी मोदी के खिलाफ जिस रास्ता रोको अभियान को अंजाम देने जा रही है उससे कौन जाने सबसे ज्यादा फायदा उन दोनों के पितातुल्य लालकृष्ण आडवाणी को हो जाए। कौन जाने? शिवराज की हर दिल पर राज की कवायद राज्य में विधानसभा चुनाव इसी वर्ष होने वाले हैं। शिवराज हर कीमत पर जीत की हैट्रिक बनाकर इतिहास रचना चाहते हैं, क्योंकि राज्य में किसी गैर कांग्रेसी दल ने लगातार 15 वर्ष तक शासन नहीं किया है। शिवराज लगातार जनता को यह भरोसा दिलाते रहे हैं कि उनका मकसद जनता को समस्याओं से मुक्त कराकर उसे खुशहाल जीवन जीने का अवसर प्रदान करना है। यही कारण है कि वह हर वर्ग के कल्याण की योजनाएं बनाने से नहीं हिचकते और उनका प्रचार भी पूरे जोर-शोर से करते है। मुख्यमंत्री ने चुनावी वर्ष के पहले माह जनवरी में ही तीन पंचायतें करके यह बता दिया है कि वे चुनाव जीतने की हर संभव कोशिश करने से नहीं चूकेंगे। चौहान के आठ वर्षों के कार्यकाल पर नजर दौड़ाई जाए तो पता चलता है कि उन्होंने हर वर्ग के करीब पहुंचने के लिए पंचायतों को आधार बनाया है। बीते आठ वर्षों में चौहान अब तक विभिन्न वर्गो की 29 पंचायतें आयोजित कर चुके हैं। ये पंचायतें सिर्फ आयोजनों तक ही सीमित नहीं रही हैं, बल्कि इनके जरिए सरकार की भावना को हर दिल में उतारने की कोशिश की है। हम योजनाएं वल्लभ भवन के कमरे में नहीं बनाना चाहते, लिहाजा पंचायतों में विभिन्न वर्गों को बुलाकर उनसे संवाद करते हैं। एक नेता को मिलेगा 10 पंचायतों का जिम्मा प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने प्रदेश पदाधिकारियों और जिलाध्यक्षों की पहली बैठक में कहा कि पार्टी 2300 नेता चुनकर उन्हें दस दस पंचायतों का जिम्मा सौंपेगी। नाम तय होते ही इन नेताओं को प्रभार की पंचायतों में संपर्क पर निकलना होगा। अप्रैल से जून तक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के विधानसभा क्षेत्रों में दौरे होंगे, संगठन को इस दौरान भी उन क्षेत्रों में सपोर्ट के लिए तत्पर रहेगा। जुलाई और अगस्त में मतदान केंद्रों की तैयारी होगी। दीनदयाल उपाध्याय जयंती पर प्रदेश स्तर पर बड़ा कार्यक्रम होगा। उन्होंने कहा कि सभी जिला अध्यक्ष और मोर्चा अध्यक्ष फरवरी के पहले हफ्ते में अपनी कार्यकारिणी घोषित कर दें। प्रदेश पदाधिकारियों की बैठक आठ फरवरी को और कार्यसमिति बैठक 9 और 10 फरवरी को भोपाल में होगी। इसमें विधानसभा चुनाव की तैयारी की रणनीति का विस्तृत कार्यक्रम तैयार होगा। सभी विधानसभा चुनाव क्षेत्रों में विकास यात्राएं निकाली जाएंगी। इनका कार्यक्रम विधानसभा के बजट सत्र की तारीखों को ध्यान में रखकर तय किया जाएगा। संगठन महामंत्री अरविंद मेनन ने जिला अध्यक्षों ने कहा कि वे कार्यकारिणी गठन के लिए नाम जल्द दे दें।

शिव राज के आठ मंत्रियों की साख गिरी

भोपाल। चुनाव जीतना है तो जनता का दिल पहले जीतना होगा, यह बात मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बखूबी जानते हैं। यही वजह है कि उन्होंने हर वर्ग को लुभाने के लिए सौगातों की झड़ी लगा दी है और उनसे निरंतर सीधे संवाद कर रहे हैं लेकिन उनके 8 मंत्री ऐसे हैं जो क्षेत्रीय जनता से जुड़ाव रखने में असफल रहे हैं इससे उनके विधानसभा क्षेत्र में उनकी साख गिरी है। इसका खुलासा भाजपा द्वारा हाल ही में कराए गए एक सर्वेक्षण में हुआ। इनकी गिरी साख सर्वेक्षण के अनुसार, जिन मंत्रियों की साख उनके संसदीय क्षेत्र में गिरी है, उनमें नगरीय प्रशासन एवं विकास मंत्री बाबूलाल गौर, चिकित्सा शिक्षा मंत्री अनूप मिश्रा, वित्तमंत्री राघवजी भाई, लोक निर्माण मंत्री नागेंद्र सिंह, आवास एवं पर्यावरण मंत्री जयंत मलैया, कृषि मंत्री रामकृष्ण कुसमरिया, वन मंत्री सरताज सिंह और खेल एवं युवक कल्याण मंत्री तुकोजीराव पवार शामिल हैं। सर्वेक्षण में यह बात भी सामने आई है कि यदि उन्हें पार्टी टिकट देती है तो आगामी विधानसभा चुनाव में वे चुनाव हार सकते हैं। उनके चुनाव जीतने की उम्मीद कम ही है। जानकारों का कहना है कि भाजपा बाबूलाल गौर को इस बार चुनाव में उतारना नहीं चाहती। वहीं तुकोजीराव पवार को भी आगामी चुनाव लड़ाने पर पसोपेश में है, क्योंकि वे गंभीर रूप से बीमार हैं। उनका लिवर ट्रांसप्लांट सिंगापुर में होना है। राघवजी एवं अनूप मिश्रा सारी स्थितियों को भापते हुए पहले ही कह चुके हैं कि वे आगामी विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। उधर, जयंत मलैया स्वयं चुनाव लडऩे के मूड में नहीं हैं और पार्टी में भी अपनी अनिच्छा प्रकट कर चुके हैं, क्योंकि वे पुत्र सिद्धार्थ को चुनाव लड़वाना चाहते हैं। नागेंद्र सिंह एवं कुसमरिया को अपने-अपने क्षेत्रों में सत्ता विरोधी लहर का सामना अभी से करना पड़ रहा है। सरताज सिंह अपनी वृद्धावस्था के चलते अपने चुनाव क्षेत्र में ज्यादा सक्रिय न होने के कारण वहां की जनता से जीवंत संपर्क में नहीं हैं। भाजपा के साथ ही सरकार ने भी पूरे प्रदेश में सर्वेक्षण के माध्यम से अपने मंत्रियों और विधायकों की उनके चुनाव क्षेत्र में पकड़ पता लगाई थी। हालांकि अभी तो मंत्रियों के बारे में खुलासा किया गया है, विधायकों के बारे में बाद में होगा। एक वरिष्ठ मंत्री ने कहा कि पार्टी को भावनात्मक या दिल के बजाय दिमाग से काम लेते हुए सिर्फ जिताऊ उम्मीदवारों को ही टिकट देना चाहिए। भाजपा का आदिवासी क्षेत्रों में धीरे-धीरे खिसक रहा जनाधार 20 फीसदी वोट के लिए नीति है नेतृत्व नहीं प्रदेश में सरकार बनाने में आदिवासी वोट का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। प्रदेश में कुल मतों का 5वां हिस्सा यानी 20 प्रतिशत से अधिक आदिवासी वोट बैंक है। प्रदेश में लगातार तीसरी बार सरकार बनाने की तैयारी कर रही भाजपा ने इसके लिए नीति तो बना ली है,लेकिन नेतृत्व के अभाव में एक बड़ा वोट बैंक उसके हाथ से छिटकता नजर आ रहा है। भूरिया के मुकाबले आदिवासी मुखौटा नहीं पिछले दो विधानसभा चुनावों में आदिवासी वोट बैंक की उपयोगिता को समझते हुए कांग्रेस ने इस बार पार्टी की कमान आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया को सौंपी है। हालांकि अभी तक आदिवासियों के बीच भूरिया अपनी पैठ नहीं जमा पाए हैं। फिर भी आदिवासियों का मूड भाजपा के तरफ ही रखने के लिए पार्टी के पास भूरिया के मुकाबले के लिए कोई आदिवासी चेहरा नहीं है। मंत्री क्षेत्र तक सिमटे प्रदेश की भाजपा सरकार में विजय शाह, रंजना बघेल, जगन्नाथ सिंह, जय सिंह मरावी, देवी सिंह सैयाम जैसे नेताओं को मंत्री बनने का मौका मिला, लेकिन अपने क्षेत्र तक सिमटे नजर आए। वहीं भाजपा के टिकट पर सांसद बने ज्योति ध्रुवे और माखन सिंह सोलंकी भी आदिवासियों का मुखौटा नहीं बन सके। यही नहीं, अपने ही आदिवासी वर्ग में अलग-थलग पड़े नजर आए। मुख्यमंत्री के करिश्माई व्यक्तित्व और संगठन की क्षेत्र में पकड़ के चलते ही आदिवासी नेताओं को मंत्री और सांसद बनने का अवसर मिला। साय के बाद कोई बड़ा नेता नहीं अविभाजित मप्र में भाजपा नंदकुमार साय जैसे आदिवासी नेतृत्व को सामने लाई, लेकिन विभाजित मप्र के अस्तित्व में आने के बाद भाजपा सरकार में आई तो प्रदेश में कोई बड़ा आदिवासी नेता सामने न ला पाई। हालांकि पार्टी ने आदिवासी नेताओं को सत्ता और संगठन में बराबर महत्व दिया है, लेकिन साय के बाद प्रदेश का अध्यक्ष बनने का मौका किसी आदिवासी को नहीं मिला। पूर्व केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने पिछले दो चुनाव में अध्यक्ष के लिए अपनी दावेदारी पेश की, लेकिन सहमति नहीं बन सकी। कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए प्रेमनारायण ठाकुर का उपयोग पार्टी ने कमलनाथ के क्षेत्र में किया, लेकिन उन्हें मंत्री बनाने का दांव नहीं खेला। दिलीप सिंह भूरिया और उनकी पुत्री निर्मला भूरिया हार के बाद अलग-थलग पड़े हैं। खास बात आदिवासियों बहुल 47 विधानसभा क्षेत्रों में से 30 पर आदिवासियों का वोट प्रतिशत करीब 50 से 90 है तो अन्य 17 सीटों पर 31 से 45 प्रतिशत आदिवासी हैं। 2008 विधानसभा चुनाव में 2003 की तुलना में सीटें और मत कम हुए, जिसमें आदिवासियों के भाजपा से छिटकने ने अहम भूमिका निभाई। 2009 लोकसभा चुनाव में भी आदिवासियों ने भाजपा से काफी हद तक दूरी बनाई, जिसके चलते कांग्रेस की सीटों में इजाफा हुआ।

शिवराज को घेरेंगे कांग्रेस के वेटिंग सीएम..

भाजपा को हराने दिल्ली में आज रणनीति बनाएंगे राहुल भोपाल। भाजपा और कांग्रेस विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी की सरकार बनाने एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। लगातार दो बार राज्य सरकार बनाकर मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी सम्हालने वाले शिवराज सिंह चौहान अपनी पार्टी को तीसरी बार सत्ता में लाने में प्रयत्नशील हैं। वहीं कांग्रेस में अभी तक न तो कोई नेता दिखाई दे रहा है और न ही नेतृत्व। इसलिए पार्टी नेतृत्व शिवराज सिंह चौहान को घेरने के लिए अपने उन तमाम नेताओं को जिम्मेदारी देने जा रहा है कि जो सीएम इन वेटिंग हैं। इस संदर्भ में आज कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की अध्यक्षता में होने वाली महासचिवों और प्रदेश प्रभारियों की बैठक में रणनीति बनाई जाएगी। जिस तरह भाजपा में शिवराज सिंह चौहान का एक छत्र नेतृत्व दिखाई दे रहा है और भाजपा की ओर से अगले मुख्यमंत्री के रूप में वे स्वाभाविक उम्मीदवार हैं। ऐसा कांग्रेस में दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रहा है। पार्टी में न तो तय है कि चुनाव किसके नेतृत्व में लड़ा जाएगा और न ही कांगे्रस ने अभी तक मुख्यमंत्री के रूप में किसी को प्रोजेक्ट किया है। यूं तो प्रदेश में कांग्रेस की ओर से कथित तौर पर प्रदेश कांतिलाल भूरिया ही मुख्यमंत्री के दावेदार हैं, लेकिन वेटिंग सीएम की लंबी कतार है। ऐसे में पार्टी एकजुट नहीं हो पा रही है। कांग्रेस की गुटबाजी के कारण ही वर्ष 2003 में कांग्रेस भाजपा की उमा भारती के हाथों चुनाव हार गई थी। वर्ष 2008 में कांग्रेस भारी गुटबाजी के चलते शिवराज सिंह चौहान के हाथों चुनाव हारी थी। वर्ष 2013 में भी कांग्रेस गुटबाजी से अलग दिखाई नहीं दे रही है। प्रदेश में सत्ता परिवर्तन की लहर इधर कांग्रेस मानकर चल रही है कि प्रदेश में सत्ता परिवर्तन की लहर चल रही है। प्रदेश सरकार का भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा है। किसान, सरकारी कर्मचारी, शिक्षाकर्मी,दैवेभो,अध्यापक,संविदाकर्मी,गुरूजी आदि सरकार से नाराज है। इन पर होगी जिम्मेदारी प्रदेश में भाजपा की सरकार को तीसरी बार सत्ता में आने से रोकने के लिए पार्टी का एक सूत्रीय मंत्र है शिवराज की घेराबंदी। इसके लिए कांग्रेस नेतृत्व ने सीएम इन वेटिंग दिग्विजय सिंह,ज्योतिरादित्य सिंधिया,कमलनाथ,सुरेश पचौरी, कांतिलाल भूरिया और अजय सिंह को क्षेत्रवार जिम्मेदारी सौंपेगा। शिवराज का व्यक्तिगत वोटबैंक सबसे बड़ा टेंशन मध्यप्रदेश में एक दशक बाद सत्ता में वापसी की कोशिश में कांग्रेस शिवराज के व्यक्तिगत वोटबैंक को अपने मिशन में बाधक मान रही है। चुनावों की तैयारियों से पहले जमीनी हकीकत की समीक्षा के बाद कांग्रेस हाईकमान ने इन हालात को देखते हुए तय किया है कि प्रदेश में पार्टी बिना चेहरे के नहीं दिखेगी। दिग्विजय सिंह, सुरेश पचौैरी, ज्योतिरादित्य सिंधिया आदि तमाम क्षत्रपों के गुटों में बंटी कांग्रेस कहीं से भी शिवराज के सामने खड़ी नहीं दिख रही है। लिहाजा, पार्टी ने तय किया कि यहां पर युवा चेहरे के रूप में ज्योतिरादित्य सिंधिया को आगे बढ़ाया जाएगा। सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और महासचिव राहुल गांधी ने इस पर मुहर लगा दी है। सिंधिया को इस बात के संकेत भी दिए जा चुके हैं। गुटबाजी और अनुशासनहीनता रोकने सख्त फैसले कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी बीके हरिप्रसाद कहते हैं कि प्रदेश में गुटबाजी और अनुशासनहीनता रोकने पार्टी नेतृत्व सख्त कदम उठाएगा। नेता चाहें बड़ा हो या छोटा सबको एक नजरिए से देखा जाएगा। उधर प्रदेश कांग्रेस में साफ तौर पर पांच गुट दिखाई दे रहे हैं। इनमें सबसे ताकतवर और प्रभावी गुट पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का है। पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुरेश पचौरी का अपना गुट है। फिलहाल पचौरी खेमा दिग्विजय सिंह समर्थकों के साथ कदमताल कर सक्रिय बना हुआ है,लेकिन कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया और अरुण यादव गुट प्रदेश संगठन में अपने समर्थकों की कथित उपेक्षा के कारण पूरी तरह निष्क्रिय हैं।

145 सीटों के लिए कांगे्रस पास प्रत्याशी नहीं

टिकट की टाइमिंग पर कांग्रेस में बढ़ी सरगर्मी में सामने आई हकीकत भोपाल। प्रदेश के पांच नगर पालिका चुनाव के नतीजों से कांग्रेस के नेता फूले नहीं समा रहे। कांग्रेस के छोटे-बड़े सभी नेता ऐसे उछल रहे हैं जैसे विधानसभा में बहुमत मिल गया हो। लेकिन हकीकत यह है की कांग्रेस के पास 145 विधानसभा सीटों के लिए ऐसे प्रत्याशी नहीं हैं जो अपने विपक्षी को चुनाव में टक्कर दे सके। ऐन चुनावी वर्ष में सामने आई इस हकीकत ने कांग्रेस हाईकमान और रणनीतिकारों की बेचैनी बढ़ा दी है। एक तरफ कांग्रेस विधानसभा चुनाव के छह महीने पहले ही उम्मीदवार घोषित करने का फार्मूला लागू करने के प्रयास पर विचार कर रही है,वहीं दूसरी तरफ रिपोर्ट यह है कि प्रदेश में 85 विधानसभा सीटें ही ऐसी हैं जहां पार्टी अगर उम्मीदवार खड़ा करती है तो उसकी स्थिति बेहतर रहेगी,जबकि 145 सीटें ऐसी हैं जहां टिकट के लिए नेताओं में घमासान बेकाबू हो सकता है। निर्विवाद सीटें 40-50 ही जानकार सूत्रों का कहना है कि समय पूर्व वही उम्मीदवार तय हो सकते हैं, जिनका दावा निर्विवाद है। ऐसी सीटें मप्र में बमुश्किल चालीस-पचास ही हैं। शेष पौने दो सौ सीटों पर टिकट के लिए कांग्रेस में घमासान के हालात बनना तय हैं। लिहाजा इस फार्मूले को लेकर कई नेता अनमने भी हैं। उनका दबी जुबान मानना है कि एकाधिक दावेदार वाली सीटों पर जिसे उम्मीदवार घोषित किया जाएगा,उसके खिलाफ तीन चार महीने में विरोधी गुट परेशानियां भी खड़ा कर सकता है। एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि टिकट वितरण पंद्रह बीस दिन पहले ज्यादा सटीक रह सकता है। अथवा पार्टी खामोशी से किसी एक नेता को टिकट देने का संकेत दे दे ताकि वह तैयारियों में जुटा रहे। वहीं एक वर्ग मान रहा है कि जल्द टिकट देने से नुकसान पहुंचाने वाले नेताओं की पहचान में आसानी होगी और उन पर कार्रवाई कराई जा सकती है। उम्मीदवारों की खोज शुरू कांग्रेस ने उम्मीदवारों की तलाश अपने स्तर पर शुरू कर दी है। लेकिन यह बहुत प्राथमिक प्रक्रिया है। हाइकमान ने उत्तराखंड के पूर्व मंत्री किशोर उपाध्याय को हाल में मप्र के भोपाल समेत कुछ संभागों के हालात की जानकारी जुटाने भेजा था। इस दौरान वे कांग्रेस नेताओं कार्यकर्ताओं से मुलाकात करके तमाम जरूरी फीडबैक ले गए हैं। हालांकि जाहिर तौर पर वे लोकसभा उम्मीदवारों की संभावना तलाशने भेजे गये थे, लेकिन जानकारों का मानना है कि इसी दौरान उन्होंने विधानसभा सीटों का गणित भी पूरी दिलचस्पी से समझा है। तीन दर्जन सीट युवा कांग्रेस के लिए बताया जाता है कि प्रदेश में इस बार विधानसभा चुनाव में युवा कांग्रेस को लगभग तीन दर्जन सीटों से चुनाव लड़ाने की योजना है। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह प्रदेश में अधिक से अधिक युवाओं को मौका देने की सिफारिश सोनिया और राहुल गांधी से कर चुके हैं। दिग्विजय की सिफारिश पर राहुल गांधी ने युंका नेताओं को आजमाने का फार्मूला यह कहकर बनाया है कि युवा हारता भी है तो वह बाकी पांच साल क्षेत्र में सक्रिय रहता है, उम्रदराज ऐसा नहीं कर पाता। गांधी ने गत माह युंका पदाधिकारियों की बैठक में टिकट का आश्वासन दिया है। अधिकार पदयात्रा पर युकां युंका हाईकमान अगले माह से मप्र में अपने उम्मीदवारों के लिए सर्वे शुरू करने जा रहा है। इसको देखते हुए युकां नेताओं ने अपनी सरगर्मी बढ़ा दी है। आधार कार्ड के लाभ बताने और केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही जन कल्याणकारी योजनाओं के प्रचार-प्रसार के लिए युवक कांग्रेस की अधिकार पद यात्रा बनखेड़ी ब्लॉक के मालनवाड़ा से शुरू हुई। युवक कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव सातव, प्रदेश अध्यक्ष प्रियव्रत सिंह, प्रदेश प्रभारी सैय्यद हजमत उल्ला खां की उपस्थिति में शरू हुई अधिकार पदयात्रा में हजारों कार्यकर्ता शामिल हुए। पदयात्रा हर ब्लॉक में तीन-तीन दिन भ्रमण करेगी।

बुंदेलखंड की उपेक्षा भाजपा पर पड़ न जाए भारी

26 विधानसभा सीटों वाले क्षेत्र को भाजपा की कार्यकारिणी में दो को मिला प्रतिनिधित्व भोपाल। मध्य प्रदेश के दोनों प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को जब भी मौका मिलता है, वे अपने को बुंदेलखंड का हिमायती होने का ढिंढोरा पीटने में पीछे नहीं रहते, मगर सच्चाई इससे अलग है। इन दलों के लिए इस इलाके का मतदाता तो महत्वपूर्ण है, मगर अपने ही दल के नेताओं की योग्यता पर ज्यादा भरोसा नहीं है। इसे हाल ही में भाजपा की घोषित कार्यकारिणी में मिले महत्व को देखकर समझा जा सकता है। बुंदेलखंड के खाते में सिर्फ दो जिम्मेदारियां आई हैं, इनमें से एक उपाध्यक्ष और एक प्रकोष्ठ का संयोजक है। बुंदेलखंड में मध्य प्रदेश के छतरपुर, सागर, दमोह, पन्ना व टीकमगढ़ कुल पांच जिले आते हैं। यह इलाका उपलब्धियों के लिए नहीं, बल्कि समस्याओं के लिए जाना जाता है। यहां पानी के लिए लोग तरसते हैं, तो बिजली, सड़क का भी हाल ठीक नहीं है। इतना ही नहीं, सिंचाई के लिए पानी भी आसानी से सुलभ नहीं है। रोजगार के अवसर न होने से यहां के हजारों परिवार हर वर्ष अपना पेट भरने के लिए पलायन को मजबूर होते हैं। इस इलाके की समस्याएं राजनीतिक दलों के लिए वोट पाने का जरिया भर है। चुनाव के मौके पर दावों और वादों की पोटरी खोल दी जाती है, मगर हाथ आता सिर्फ शून्य । यही कारण है कि आजादी के 65 वर्ष बाद भी इस इलाके के हालात ज्यादा नहीं बदले हैं। राजनीतिक दल हर वक्त अपने को बुंदेलखंड का हिमायती होने का वक्त दावा करते हैं। वे अपनी प्राथमिकताओं में बुदेलखंड को सबसे ऊपर बताने तक से नहीं हिचकते, विकास की कसमें खाते हैं, मगर जल्द ही भूल जाते हैं। इन दलों के लिए यह इलाका कोई राजनीतिक अहमियत नहीं रखता है, शायद यही वजह है कि कांग्रेस ने कोई बड़ी जवाबदारी यहां के नेताओं को नहीं सौंपी और अब भाजपा ने भी यही किया है। भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर द्वारा तय किए गए 50 नामों में सिर्फ दो ही बुंदेलखंड से आते हैं। इनमें से एक हैं सागर के सांसद भूपेंद्र सिंह, जिन्हें उपाध्यक्ष बनाया गया है और दूसरे हैं टीकमगढ़ के केके श्रीवास्तव जिन्हें नगर पालिका प्रकोष्ठ के संयोजक की जिम्मेदारी दी गई है। विधानसभा की 230 सीटों में से इस इलाके से 26 सीटें आती हैं, इस तरह कुल सीटों में से लगभग 12 फीसदी विधायक इस इलाके से आते हैं, मगर पार्टी में महज चार फीसदी को प्रतिनिधित्व मिला। भाजपा ने यहां की 26 में से 17 सीटें जीती हैं। कार्यकारिणी के गठन के बाद क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व को लेकर उठे सवाल पर तोमर ने साफ कर दिया है कि कार्यकारिणी में सामाजिक व क्षेत्रीय संतुलन को ध्यान में रखा गया है। उन्होंने कहा की इस वर्ष विधानसभा चुनाव में भारी जीत हासिल करना हमारा लक्ष्य है। एक तरफ जहां भाजपा की कार्यकारिणी में बुंदेलखंड की उपेक्षा हुई है, वहीं अन्य क्षेत्रों- मालवा, महाकौशल, ग्वालियर-चंबल तथा मध्य क्षेत्र को पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिया गया है।

कबीला संस्कृति हरवा रही कांग्रेस को

पर्यवेक्षक रिपोर्ट में नेताओं की कमियों ने आलाकमान को डाला चिंता में भोपाल। प्रदेश में कांग्रेस आलाकमान सरकार बनाने का सपना बुन रहा है लेकिन पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट में नेताओं की कमियों के हुए खुलासे ने उनको चिंता में डाल दिया है। रिपोर्ट के अनुसार मप्र में नेता कबीलों में बंटे हुए हैं। नेताओं की यही कबिला संस्कृति प्रदेश में कांग्रेस को हरवा रही है। कांग्रेस के राष्ट्रीय पर्यवेक्षक उत्तराखंड के एक नेता किशोर उपाध्याय ने भी कबीला संस्कृति को स्वीकार किया है। इन्होंने अपनी रिपोर्ट पार्टी आलाकमान को दे दी है। रिपोर्ट के अनुसार,दिग्विजय सिंह पट्ठा बनाने में व्यस्त हैं। राज्य सभा शैली में काम करने के आदी सुरेश पचौरी मध्य प्रदेश में मरणासन्न कांग्रेस को कोमा से बाहर नहीं निकाल सके। कांतिलाल भूरिया नगरीय निकाय चुनाव में कांग्रेस को अपेक्षित जीत नहीं दिला सके। उपचुनाव में भी कांग्रेस का हाथ खाली रहा। सुभाष यादव दिग्विजय की नजरों में किरकिरी बने और धीरे धीरे सियासी पर्दे से बाहर हो गये। ज्योतिरादित्य सिंधिया क्षेत्र से बाहर नहीं निकल सके । नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह अपने पिता अर्जुन सिंह की आभा मंडल से बाहर नहीं निकल पाये हैं। चुनाव जीतने के लिए नया प्रयोग राष्ट्रीय पर्यवेक्षक ने अपनी रिपोर्ट में कुछ महत्वपूर्ण सुझाव भी दिये गये हैं। सुझाया गया है कि कांग्रेस को प्रदेश चुनाव जीतने के लिए नया प्रयोग करना चाहिए। जीत को मुश्किल माना गया है मगर नामुमकिन नहीं। बताया जाता है कि एक डेढ़ महीने के बाद कुछ और पर्यवेक्षक आएंगे जो नए सिरे से यहां कांग्रेस की हालत का अध्ययन करेंगे और चुनाव जीतने के नए प्रयोग का भौतिक सत्यापन कर उस पर मुहर लगाएंगे। उल्लेखनीय है कि कुछ दिनों पूर्व लोकसभा चुनाव के बारे में जानकारी लेने उत्तराखंड के एक नेता किशोर उपाध्याय यहां आये थे। प्रदेश के विभिन्न लोकसभा क्षेत्रों में जाकर उन्होंने कांग्रस की स्थिति का जायजा लिया था। मेन टू मेन कुछ नेताओं से आमने-सामने बातचीत की गई थी। शहर के अलावा ग्रामीण के नेताओं का इंटरव्यू भी उपाध्याय ने लिया था। जो-जो नेता लोकसभा का चुनाव लडऩा चाहते हैं उनसे भी पूछताछ की गई। जिसमें यह बात निकल कर सामने आई थी कि कबिला संस्कृति में बंटे कांग्रेस के नेता अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए दूसरे नेता या उनके अनुयायी को हराने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। हाथ को साथ कैसे मिले रिपोर्ट के अनुसार, दिग्विजय सिंह केवल बयानबाजी तक ही सिमट कर रह गये हैं। कमलनाथ छिंदवाड़ा से बाहर निकलते नहीं, कांतिलाल भूरिया आदिवासी जिले तक ही सिमट गए। ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर से बाहर नहीं जाते। पिछले कुछ माह से कुछ जिलों का दौरा किया है। लेकिन इससे क्या होता है। अजय सिंह ने ठाकुर बाहुल्य क्षेत्र तक अपने को सिमटा लिया। सुभाष यादव खंडवा से बाहर नहीं निकलते। पूर्व विधान सभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी विंध्य क्षेत्र के नेता बन कर रह गये। सभी बड़े नेता अपना अपना क्षेत्र तय कर रखे हैं। ऐसे में हाथ को साथ कैसे मिले। 99999999999 भाजपा : मिशन 2013 के लिए संगठन को तैयार करने में जुटे मेनन भोपाल। भाजपा प्रदेश कार्यसमिति के गठन के बाद प्रदेश अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर और महामंत्री संगठन अरविंद मेनन ने अपने-अपने मोर्चे संभाल लिए हैं। श्री तोमर जहां राजनीतिक मोर्चे पर जुट गए हैं वहीं महामंत्री संगठन अरविंद मेनन ने संगठन को पहले से अधिक सक्रिय और प्रभावी बना कर चुनावी मोर्चे को फतह की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। श्री मेनन जब जबलपुर क्षेत्र के संगठन मंत्री थे तब उनके क्षेत्र में 2008 में भाजपा ने अधिकांश क्षेत्रों में परचम लहराया था। जबलुपर संभाग की 40 में से 25 और रीवा संभाग में कांग्रेस महज 2 और बसपा 2 स्थान ही जीत पाए थे बाकी के विधायक भाजपा के ही निर्वाचित हुए थे। ऐसे में श्री मेनन की संगठन क्षमता और प्रत्याशी चयन को लेकर क्षमता गजब की मानी जाती है। ऐसा तभी हो पाता है जब क्षेत्र में काम करने वाले कार्यकर्ता की संगठन और राजनीतिक क्षमता का सही मूल्यांकन किया जाए। इसलिए अरविंद मेनन ने जिलों की संरचना, मंडलों के गठन से लेकर नीचे तक के कार्यकर्ता की टीम खड़ी करने के लिए नियमित बैठकें करने का आग्रह किया है। भाजपा एक कार्यकर्ता आधारित राजनीतिक दल है। जहां हर कार्यकर्ता को काम और उसकी क्षमता के आधारित दायित्व देने के लिए संगठन महामंत्री और जिलों के संगठन मंत्री बराबर प्रयास करते रहते हैं। ऐसे में जब चुनावी वर्ष हो तो कार्यकर्ता का महत्व और बढ़ जाता है। इसी को ध्यान में रखकर अरविंद मेनन ने संगठन को अधिक सक्रिय और गतिशील बनाकर चुनावी मिशन को पूरा करने के लिए काम करना शुरू कर दिया है। श्री मेनन ने कार्य प्रदेश कार्यसमिति के गठन के बाद से अपने को सक्रिय बना लिया और वे चाहते हैं कि सभी जिलों का गठन शीघ्र हो जाए। मंडलों के साथ ग्राम केन्द्रों और मतदान केन्द्रों तक कर्मठ कार्यकर्ता सक्रिय हो जाए। कार्यसमिति के गठन के बाद हालांकि कहीं से भी असंतोष की बात सामने नहीं आ रही है फिर से बड़े और कार्यकर्ता आधारित संगठन में छिटपुट बातें सामने आ सकती हैं ऐसे में तत्काल सक्रिय होकर कार्यकर्ता से मिलकर तथा संगठन की बैठकें करके इस प्रकार की नाराजगी को थामा जा सकता है। इसी लिए मेनन चाहते हैं कि सभी जिलों में जल्दी ही बठकें हो जाए। श्री मेनन की एक बात और संगठन के हित की दिखाई देती है। वे अपने कार्यकर्ता के यहां विवाह आदि के कार्यक्रम में तो जाना ही चाहते हैं लेकिन वहां कार्यकर्ताओं के साथ बैठने का मौका मिल जाए तो क्या बात है? इसलिए वे ऐसा आग्रह उन नेताओं से करते हैं जो उनसे विवाह आदि कार्यक्रमों में शामिल होने का आग्रह करते हैं। संगठनात्मक व्यवस्था में निपुण महामंत्री संगठन अरविंद मेनन का यह प्रयास है कि वे चुनाव के समय से पहले सभी विधानसभा क्षेत्रों से दो-तीन नाम छांट लें ताकि चुनावी रणनीति और अन्य समीकरणों के आधार पर किसी एक को टिकिट देकर जीत को पक्का किया जा सके। अरविंद मेनन अपने पास आए कार्यकर्ता और पत्रकारों को प्राय: यह बात कहते हैं कि यह चुनावी वर्ष है तथा अब हमारे पास चुनाव की तैयारियों के लिए समय कम ही बचा है। ऐसे में महामंत्री संगठन की यह जिम्मेदारी होती है कि वे कार्यकर्ताओं को चुनाव को फतह करने के लिहाज से तैयार करे। साथ में विधानसभा में पहुंचने की क्षमता रखने वाले कार्यकर्ताओं की सूची तैयार करके राजनीतिक क्षेत्र में काम करने वालों के साथ सांझा करे। विधानसभा चुनाव जीत कर हैट्रिक लगाने की इस योजना में शिवराज तोमर और मेनन का ट्रेंगल इस बार मध्यप्रदेश में इतिहास रचने की तैयार कर रहा है। 999999999999999 एकता के लिए होगा प्रदेश का बंटवारा पांच राजनीतिक क्षेत्रों में बंटे प्रदेश की अलग-अलग कमान संभालेंगे दिग्विजय,कमलनाथ, ज्योतिरादित्य, भूरिया और अजय सिंह -जयपुर अधिवेशन में रणनीति पर होगा विचार भोपाल। बिहार,उत्तरप्रदेश और गुजरात में हार की हैट्रिक के बाद मध्यप्रदेश को लेकर कांग्रेस में चिंता और चिंतन का दौर शुरू हो गया है। कांग्रेस नेता भी मानते हैं कि इस बार मध्यप्रदेश में पार्टी के लिए चुनाव जितना निहायत जरूरी हो गया है। इसके लिए आलाकमान मप्र को पांच राजनीतिक क्षेत्रों में बांट कर दिग्विजय सिंह,कमलनाथ,ज्योतिरादित्य,कांतिलाल भूरिया और अजय सिंह को एक-एक क्षेत्र की जिम्मेदारी सौंपेगा। कांग्रेस रणनीतिकारों की इस योजना पर जयपुर अधिवेशन में विचार-विमर्श कर अमलीजामा पहुंचाया जाएगा। मप्र की जीत जरूरी कांग्रेस हाईकमान भी इस बात से वाकिफ है कि यदि इस बार मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार नहीं बनी तो आने वाले कई सालों तक कांग्रेस प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य से बाहर हो जाएगी। कांग्रेस ने 2013 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए मप्र में पार्टी और संगठन स्तर पर प्रयोग भी किए लेकिन इसमें कोई खास सफलता नहीं मिल सकी। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि मप्र में सभी क्षत्रपों को एक साथ साधना टेढ़ी खीर है। ये क्षत्रप अपने क्षेत्र में किसी और बड़े नेता के दौरों, जनसंपर्क, कार्यकताओं की बैठक आदि को पचा नहीं पाते। नेताओं की गुटीय राजनीति के कारण कार्यकर्ता भी गुटों में बंटे हुए हैं। पिछले दो विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस की पराजय की समीक्षा में ये बात सामने आ चुकी है कि कांग्रेस, भाजपा से नहीं बल्कि कांग्रेस से ही हारी। लेकिन, अब कार्यकर्ताओं में ऊर्जा फूंकने, गुटबाजी पर नकेल कसने सभी क्षत्रपों को एक साथ लाने की कवायद शुरू हो गई है। कांग्रेस हाईकमान ने पार्टी स्तर पर मप्र में गोपनीय सर्वे भी कराया था और सुझाव भी मांगे थे। इन्हीं सुझावों में मध्यप्रदेश को चार-पांच हिस्सों या जोन में बांट दिया जाए। इससे गुटीय सामंजस्य बिठाया जा सकेगा और दिग्गज नेता अपने-अपने क्षेत्र में पर्याप्त वक्त भी दे पाएंगे। सभी नेता अपने-अपने इलाकों में काम करेंगे और कांग्रेस को जिताने की जिम्मेदारी भी इन्हीं की होगी। कांग्रेस में इन नेताओं का भविष्य भी मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के परिणामों पर निर्भर होगा। 9999999999999 भाजपा का मुखड़ा बनेंगे शिवराज शिवराज के हाथ लोकसभा चुनाव की कमान संघ और संगठन तैयार कर रहा खाका भोपाल। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के विकासवादी चेहरे का मुकाबला करने में बेशक कांग्रेस के मुख्यमंत्री सफल न हो रहे हों, लेकिन शिवराज सिंह चौहान ने उनकी छवि में सेंध लगा दी है। निर्विवाद छवि,टीम भावना,विकासशील व्यक्तिव और पार्टी लाइन को सर्वोपरि मानने के कारण शिवराज भाजपा में नायक के रूप में उभरे हैं। इसलिए आलाकमान उन्हें लोकसभा चुनाव में पार्टी का मुख्य चेहरा बनाने जा रहा है। 2013 के विधानसभा चुनाव को फतह करने के साथ ही मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर 2014 में होने वाले लोकसभा चुनााव की जिम्मेदारी रहेगी। इसके लिए संघ और भाजपा संगठन खाका तैयार कर रहा है। भाजपा पार्लियामेंट्री कमेटी का मानना है कि जिस तरह से गुजरात में नरेन्द्र मोदी के नाम भाजपा को वोट मिले उसी तर्ज पर देश में शिवराज के नाम पर पार्टी को वोट मिलेंगे, इस बात को आसानी से नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। कांग्रेस की गोपनीय रिपोर्ट मप्र की सीमाओं से निकलकर देश के अन्य राज्यों में पहुंची शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता पर कांग्रेस आलाकमान ने एक गोपनीय रिपोर्ट तैयार करवाई है। इस रिपोर्ट की समीक्षा दिल्ली में भी हो चुकी है। रिपोर्ट में बताया गया कि मध्यप्रदेश में मुकाबला भाजपा से नहीं बल्कि शिवराज सिंह से है। कई ऐसी विधानसभा क्षेत्र हैं जहां लोग अपने विधायक से खुश नहीं हैं, लेकिन फिर भी वो भाजपा को ही वोट करेंगे क्योंकि सीएम शिवराज सिंह हैं। मप्र में शिवराज बनाम कांग्रेस शिवराज सिंह चौहान ने हर वर्ग के लिए योजनाएं बनाई और लागू भी की। इन योजनाओं के कारण उनकी लोकप्रियता भी बढ़ी। संभवत: उनकी इसी लोकप्रियता के कारण पार्टी और संगठन में शिवराज का कोई विकल्प नहीं है। राजनीतिक विश्लेषकों का भी कहना है कि मंत्री और विधायकों ने अपने क्षेत्र के विकास में उन्हीं योजनाओं और कार्यों पर निर्भर रहे जिसे राज्य सरकार ने क्रियान्वित या मंजूर किया। इन्होंने अपने क्षेत्र के विकास के लिए अलग से कोई प्रयास किया हो, ऐसा दावे के साथ नहीं कहा जा सकता। बावजूद इसके मतदाताओं का एक वर्ग भले ही मंत्रियों और भाजपा विधायकों से नाराज हो लेकिन वो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नाम पर भाजपा को वोट करेगा। शिवराज के पुरस्कारों से कांग्रेस आहत कांग्रेस के तमाम विरोध के बावजूद विकास के मामले में मध्यप्रदेश का मॉडल एक अनूठे रूप में उभर रहा है। इसका प्रमाण है कि केंद्र सरकार द्वारा शिवराज सिंह की सरकार को कई पुरस्कार पिछले चार सालों में दिए जा चुके हैं। इससे कांग्रेस के रणनीतिकार आहत हैं। शिवराज मॉडल के विपक्षी भी मुरीद मोदी मॉडल के अलावा अब शिवराज मॉडल की भी चर्चा शुरू हो गई है। उनके विरोधी दलों के नेता भी उनके मुरीद होते जा रहे हैं। हाल ही में सामाजिक विकास के लिए केंद्रीय ग्रामिण विकास मंत्री जयराम रमेश ने उनके विकास मॉडल की तारीफ की थी। पोस्टर पर अटल-अटवाणी के साथ शिवराज भी लोकसभा चुनाव में भाजपा के पोस्टरों पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के साथ शिवराज सिंह चौहान का भी चित्र रहेगा। इसपर भाजपा पार्लियामेंट्री कमेटी विचार कर रही है। इनका कहना है जो नेता होता है वो मन की गांठे खोलना वाला होता है और पार्टी में जो बहुमत होता है उसके हिसाब से चलने वाला होता है। आजकल देखा जाता है कि जिसको पद मिल जाता है वह टीम प्लेयर नहीं होता। देश चलाने के लिए निर्विवाद नेतृत्व की जरूरत है। सुषमा स्वराज, नेता प्रतिपक्ष लोकसभा प्रधानमंत्री का दावेदार बना कर लोकसभा चुनाव में उतरने का निर्णय भाजपा की पार्लियामेंट्री कमेटी लेगी। जहां तक शिवराज सिंह चौहान का सवाल है तो इस साल के अंत में होने वाले चुनाव तक हम उन्हें नहीं छोडऩे वाले। नरेंद्र सिंह तोमर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मेरी सीमा मेरा मप्र है यहां मुझे अभी बहुत कुछ करना है। शिवराज सिंह, मुख्यमंत्री शिवराज देश में उदारवादी नेता के रूप में उभरकर सामने आए हैं। सभी धर्मों के लोग उनके मुरीद हैं। अगर भाजपा लोकसभा चुनाव में उन्हें आगे करती हैं तो पार्टी को फायदा मिलेगा। इंद्रेश कुमार, राष्ट्रीय संगठक राष्ट्रीय मुस्लिम मोर्चा 999999999999999 कांग्रेस में सिफारिश सिस्टम होगा खत्म जयपुर घोषणा पत्र ने नेताओं को चिंता में डाला अब जमीनी नेताओं और कार्यकर्ताओं की बढ़ेगी पूछ-परख भोपाल। कांग्रेस में अब जमीनी नेताओं और कार्यकर्ताओं की पूछ-परख बढ़ेगी और बड़े नेताओं के यहां दरबार नहीं सजेगा,क्योंकि पार्टी सिफारिश सिस्टम खत्म करने जा रही है। जयपुर में कांग्रेस चिंतन शिविर के बाद जारी जयपुर घोषणा पत्र के लागू किए जाने की खबर ने नेताओं को चिंता में डाल दिया है। क्या है जयपुर घोषणा पत्र कांग्रस हाईकमान के निर्देश पर पार्टी के रणनीतिकारों ने पार्टी को मजबूती प्रदान करने के नजरिए से नियमों का एक ऐसा पत्रक तैयार किया है जिसको लागू करने के बाद पार्टी में कार्यकर्ताओं की न केवल पूछ-परख बढ़ेगी बल्कि उनको योग्यतानुसार पद भी बिना सिफारिश के मिल सकेगा। भाई-भतीजावाद चिंता का विषय घोषणा पत्र में कहा गया है कि भाई-भतीजावाद पार्टी के लिए चिंता का विषय है। इसे कड़ाई से दूर करना होगा। जानकारों का कहना है कि ऐसा होता है तो सबसे पहले नेताओं के रिश्तेदारों पर गाज गिरेगी। साथ ही पद या टिकट दिलाने के नाम पर होने वाला भ्रष्टाचार भी खत्म हो सकेगा। कांग्रेस चिंतन शिविर के बाद जारी जयपुर घोषणा पत्र में कहा गया है कि कोई वरिष्ठ नेता अगर किसी की सिफारिश करता है तो सिफारिशी नेता के फेल होने पर जिम्मेदारी वरिष्ठ नेता को लेनी होगी। पार्टी में अभी तक का जो सिस्टम है, उसमें सिफारिश की भूमिका सबसे खास होती है। चाहे पदाधिकारियों की नियुक्ति हो या टिकट बांटने का मामला, वरिष्ठ नेताओं के बायोडाटा ले कर पहुंचने वालों की भीड़ बढ़ जाती है। नेता भी चेहतों को खुलकर फायदा पहुंचाते हैं। चिंतन शिविर में यह व्यवस्था पार्टी के लिए बेहद घातक मानी गई है। ये हैं प्रस्ताव पदाधिकरियों के कामकाज की समीक्षा हो। अग्रिम संगठनों के वरिष्ठ पदाधिकारी कांग्रेस में शामिल हों। चुनाव में जीत ही नहीं वफादारी को भी महत्व मिले। ब्लॉक और जिला कमेटियों का गठन निश्चित समय में किया जाए। प्रदेश व जिला कांग्रेस अध्यक्षों का कार्यकाल तीन साल हो। दो बार से ज्यादा मौका न मिले। ब्लॉक व जिला कार्यकारिणी के सदस्य चुने जाएं। मौजूदा हालात ऐसे सभी जिला इकाइयों को निष्क्रिय पदाधिकारियों की सूची भेजने को कहा गया है, लेकिन जवाब नहीं आया, क्योंकि कोई नाराजगी मोल नहीं लेना चाहता। प्रदेश कार्यकारिणी में अभी ऐसे कुछ पदाधिकारी हैं जो अग्रिम संगठनों से हैं। यह संख्या भविष्य में बढ़ सकती है। अभी ब्लॉक व जिला कार्यकारिणी में ज्यादातर पदाधिकारी स्थानीय विधायक और सांसद के चहेते होते हैं। 999999999999999 जयवर्धन बनेंगे मप्र के राहुल मप्र युवक कांग्रेस के अध्यक्ष बनेंगे दिग्गी पुत्र भोपाल। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की पहल पर उनके पुत्र जयवर्धन सिंह को मप्र का राहुल बनाने की कवायद की जा रही है। इसके लिए जयवर्धन को मप्र के युवा कांग्रेस की कमान सौंपने की तैयारी की जा रही है। हालांकि अभी यह पद दिग्गी राजा के रिश्तेदार विधायक प्रियव्रत सिंह के पास है। उल्लेखनीय है कि वर्तमान मेें जयवर्धन विदेश मे पढ़ रहे हैं। उनकी चार माह की पढ़ाई शेष है। वे शीघ्र ही लौटेंगे। ऐसे में दिग्विजय सिंह चाहते है कि उनके बेटे जयवर्धन सिंह मप्र के युवा कांग्रेस की कमान संभाले, इस संदर्भ में उन्होंने जमावट शुरू कर दी है। दिग्विजय सिंह कैंप इस बात की पुष्टि भी कर रहा है। प्रियव्रत बनेंगे राष्ट्रीय अध्यक्ष उधर राहुल गांधी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनने के पश्चात दिग्विजय सिंह ने मप्र के युवा विधायक प्रियव्रत सिंह को युवक कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने की कवायद शुरू कर दी है। प्रियव्रत सिंह वर्तमान में मप्र युवक कांग्रेस के अध्यक्ष है। कांग्रेस के जयपुर चिंतन शिविर के बाद युवक कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का बदलाव होना है। युवा कांग्रेस के मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष युवक कांग्रेस की निर्धारित उम्र 37 वर्ष से अधिक के हो चुके हैं। इस पद पर अंतिम निर्णय कांग्रेस के नए उपाध्यक्ष राहुल गांधी को करना है। दिग्विजय सिंह को राहुल गांधी का सलाहकार माना जाता है। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि वे अपने प्रभाव का उपयोग कर प्रियव्रत सिंह को यह पद दिलाने में सफल होंगे। 150 गांवों की कर चुके हैं पदयात्रा कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव राहुल गांधी की तरह आम आदमी का नेता बनने के लिए जयवर्धन ने दिसंबर 2011 में गुना जिले के कुलुआ गांव से 150 गांवों का दो पदयात्रा के माध्यम से दौरा कर अपनी राजनीति की शुरुआत की थी। इसके पीछे कांग्रेस के रणनीतिकारों का कहना था कि देश की 70 फीसदी आबादी गांव में रहती है लिहाजा इस वर्ग की स्थिति को जानना जरुरी हैं, किसी को मजबूत नेता बनना है तो इस वर्ग को करीब से जानना ही होगा। इस साल होगी कई नेता-पुत्रों लांचिंग प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस के नेता इस बार के विधानसभा चुनावों में अपने पुत्रों उतरने की तैयारी कर रहे हैं। इसकी शुरूआत हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुए पूर्व सांसद लक्ष्मण सिंह के पुत्र आदित्य विक्रम सिंह कांग्रेस के टिकट पर राघोगढ़ नगर पालिका अध्यक्ष पद का चुनाव लडऩे के साथ हुई है। दिग्विजय सिंह के पुत्र जयवर्धन सिंह, राघोगढ़ कांतिलाल भूरिया के पुत्र डॉ. विक्रांत,क्षेत्र तय नहीं नरेंद्र सिंह तोमर के पुत्र देवेंद्र प्रताप, ग्वालियर कैलाश विजयवर्गीय के पुत्र आकाश,इंदौर-2 गोपाल भार्गव के पुत्र अभिषेक,देवरी जयंत मलैया के पुत्र सिद्धार्थ,क्षेत्र तय नहीं 99999999999999 5 जीत ने बढ़ाया विधानसभा जीत का भरोशा आलाकमान हुआ सक्रिय,भूरिया ने तेज किया दौरा,अन्य नेता भी संभालेंगे मैदानी मोर्चा भोपाल। प्रदेश में पिछले 9 साल से विभिन्न चुनावों में हार का मुंह देखती आ रही कांग्रेस जब मिशन 2013 में पिछड़ती जा रही थी ऐसे में उसे पांच नगर पंचायत चुनावों में जीत की ऐसी संजीवनी मिली है कि पार्टी नेताओं को आगामी विधानसभा चुनाव में जीत नजर आने लगी है। इसको देखते हुए कांग्रेस आलाकमान ने मप्र पर अपना विशेष ध्यान देना शुरू कर दिया है। वहीं प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया ने जिलों का दौरा तेज कर दिया है। भूरिया की देखादेखी अन्य नेता भी मैदानी मोर्चा संभालने की तैयारी कर रहे हैं। कांग्रेस-भाजपा बराबर की स्थिति में बताया जाता है कि कांग्रेस के रणनीतिकारों ने आलाकमान को एक रिपोर्ट दी है कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी इस बार बराबर की स्थिति में है। कांग्रेस कमलनाथ,दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के गुटों में जरूर बंटी है, लेकिन एंटी इनकंबेसी के चलते शिवराज सिंह चौहान सरकार के खिलाफ ये जीत की उम्मीद में अपने मतभेद भुला सकते हैं। इस रिपोर्ट के आधार पर आलाकमान ने कांग्रेस नेताओं को एकजुट होने का निर्देश दे दिया है। झा के मंत्र पर चले भूरिया भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा ने पदभार संभालने के साथ ही जिस तरह जिलों का तूफानी दौरा कर आदिवासी,दलित और पिछड़े जिलों का दौरा कर वहां के मतदाताओं की एक बड़ी संख्या को भाजपा के वोट बैंक के रूप में तब्दील किया था अब उसी मंत्र पर चलते हुए भूरिया ने दौरा तेज कर दिया है। भूरिया रोजाना एक-दो जिलों का दौरा कर वहां के लोगों से मुलाकात कर रहे हैं। राजस्थान के बाद मप्र आएंगे राहुल कांग्रेस में दूसरे नम्बर की कुर्सी संभालने के बाद अब राहुल गांधी पूरे देश का दौरा करेंगे। दौरे की शुरूआत राजस्थान के आदिवासी अंचल से शुरू करके मप्र में आएंगे। दौरे का मकसद कांग्रेस कार्यकर्ताओं में नया जोश भरना और पार्टी का जनाधार बढ़ाना होगा। दौरे के दौरान राहुल गांधी ब्लॉक एवं जिला कांग्रेस अध्यक्षों के साथ जिला मुख्यालयों पर बैठकर संवाद करेंगे। वे सभी संसदीय एवं विधानसभा क्षेत्रों का दौरा करेंगे। दौरे के समय राहुल के साथ सम्बन्धित प्रदेश के प्रभारी महासचिव, प्रदेश कांग्रेस और अग्रिम संगठनों के प्रदेश अध्यक्ष होंगे। यह दौरा केवल संगठन और पार्टी का जनाधार बढ़ाने के लिए होगा। ज्योतिरादित्य और मीनाक्षी का बढ़ेगा कद राहुल गांधी के साथ काम करने वाली युवाओं की टीम में प्रदेश के दो नेताओं का कद बढ़ेगा। केंदीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया सरकार के साथ-साथ संगठन में भी काम करने के लिए कहा जा सकता है। वहीं मप्र की तेजतर्रार नेत्री और सांसद मीनाक्षी नजराजन को राष्ट्रीय महासचिव बनाया जा सकता है। 9999999999999 अब भूरिया के बेटे की लांचिंग बेटे को उत्तराधिकारी बनाने की तैयारी भोपाल । कांग्रेस महासचिव एवं पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की तर्ज पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया भी अपने डॉक्टर बेटे विक्रांत भूरिया को राजनीति में लांच करने जा रहे हैं। इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में भूरिया के स्थान पर विक्रांत चुनाव लड़ सकते हैं। दरअसल भूरिया ने पिछले दिनों जयपुर में हुए चिंतन शिविर में कांग्रेस के नवनियुक्त राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा सुझाए गए फार्मूले के मद्देनजर इसी चुनाव से बेटे को लांच करने का मन बना लिया है। ज्ञात रहे कि गांधी ने प्रदेश अध्यक्ष सहित संगठन में काम करने वालों को चुनाव नहीं लडऩे का सुझाव दिया था। पार्टी सूत्र बताते हैं कि इस फर्मूले पर अमल हुआ तो भूरिया स्वयं विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। गांधी के सुझाव के बाद वे सार्वजनिक रूप यह बात कह भी चुके हैं। भूरिया के करीबी सूत्र बताते हैं कि प्रदेशाध्यक्ष ने अपने छोटे बेटे डॉ. विक्रांत को क्षेत्र में सक्रिय होने के निर्देश भी दे दिए हैं। डॉ. विक्रांत छात्र जीवन से ही राजनीति में हैं और वे जूडा के प्रदेशाध्यक्ष रह चुके हैं। सूत्रों ने बताया कि वे अगला विधानसभा चुनाव अपने पिता के संसदीय क्षेत्र की थांदला विधानसभा सीट से लड़ेंगे। यहां से भूरिया भी विधायक रह चुके हैं। डॉ. विक्रांत झाबुआ जिले में सक्रिय हो गए हैं, उन्होंने बुधवार को कार्यकर्ताओं का सम्मेलन बुलाया और उसमें अपना पहला भाषण दिया। डॉ. भूरिया ने कार्यकर्ताओं से संगठन के हित में काम करने का आह्वान करते हुए कहा कि उनकी पहली प्राथमिकता संगठन को मजबूत बनाना है। रहेंगे सीएम पद की दौड़ में भूरिया भले ही विधानसभा चुनाव नहीं लड़े लेकिन इसके बावजूद भी वे मुख्यमंत्री पद की दौड़ में रहेंगे। सूत्रों ने बताया कि कांग्रेस को बहुमत मिलने पर यदि पार्टी आलाकमान भूरिया को मुख्यमंत्री बनाना चाहेगा तो उन्हें बाद में किसी सीट से चुनाव लड़ाया जा सकता है। उनके चुनाव नहीं लडऩे की वजह से वे इस दौड़ से बाहर नहीं होंगे। जीतने पर उनके लिए डॉ. विक्रांत भी अपनी सीट छोड़ सकते हैं। बेटे को सक्रिय करने के मायने दरअसल भूरिया स्वयं विधानसभा चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहे थे। इसलिए इस साल बेटे को चुनाव लड़ाने की जगह वे संगठन में लाना चाहते थे। लेकिन जयपुर चिंतन शिविर में राहुल गांधी ने प्रदेशाध्यक्षों और संगठन पदाधिकारियों को चुनाव लडऩे की जगह लड़वाने और संगठन के हित में काम करने का फार्मूला सुझाया। यदि प्रदेशाध्यक्षों पर यह फार्मूला लागू होता है तो भूरिया चुनाव नहीं लड़ पाएंगे, इस कारण उन्होंने अभी से बेटे को सक्रिय कर दिया ताकि उनकी जगह वे चुनाव लड़ सके। भूरिया पार्टी प्रत्याशियों को जिताने के लिए काम करेंगे। 99999999999999 मध्यप्रदेश में 'चुनावी मोडÓ में भाजपा और कांग्रेस शिवराज-तोमर की जोड़ी को घेरेंगे ज्योतिरादित्य-भूरिया भोपाल। मध्यप्रदेश में करीब 10 माह बाद प्रस्तावित विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सत्तारूढ़ भाजपा और प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस 'चुनावी मोडÓ में आते जा रहे हैं। दोनों पार्टियां एक-दूसरे को घेरने के लिए रणनीति बना रही हैं। पिछले चार साल से सरकार को घेरने के मामले में बैकफुट पर रही कांग्रेस अब फ्रंटफुट पर आने की कवायद में जुट गई है। कांग्रेस की नई रणनीति के तहत केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया की जोड़ी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर को घेरेंगे। शिवराज-तोमर की जोड़ी से कार्यकर्ताओं में उत्साह राज्य की 230 विधानसभा सीटों के लिए होने वाले चुनाव को लेकर प्रदेश में चुनावी बुखार चढऩे लगा है। भाजपा सत्ता में हैट्रिक की पूरी जोर-आजमाइश करेगी, तो मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस उससे सत्ता छीनने की सारी कोशिशें करेगी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा चुनावों के लिए कमर कस चुकी है। दूसरी ओर धड़ेबाजी से त्रस्त कांग्रेस अपना मुख्यमंत्री का प्रत्याशी घोषित नहीं करेगी। फिलहाल, ऐसा लगता है कि भाजपा ने चुनावों के लिए काफी तैयारी कर ली है। पिछले ही महीने चौहान के सिपहसालार नरेंद्र तोमर को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया और प्रभात झा को इस पद से हटा दिया गया, जो अपने विवादास्पद बयानों से काफी सुर्खियों में रहे। इसमें चौहान की बड़ी भूमिका रही जिन्होंने तोमर के नाम पर संघ को राजी कर लिया। पार्टी कार्यकर्ताओं में उत्साह है और वे चौहान-तोमर की जोड़ी के चुनाव जीतने को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हैं। युवा मोर्चे के साथी शिवराज और नरेन्द्र सिंह तोमर की एक दूसरे के साथ अच्छी ट्यूनिंग है। और जहां तक पार्टी में प्रदर्शन की बात है तो ये जोड़ी 2008 के विधानसभा चुनाव में अपना इम्तेहान दे चुकी है। शिवराज और नरेन्द्र का दौर देख चुके भाजपाई जानते हैं कि तोमर की मौजुदगी से शिवराज की ताकत चौगुनी हो गई है। ज्योतिरादित्य-भूरिया पर दारोमदार कांग्रेस अपनी खोई जमीन को हासिल करने के लिए खूब जोर-आजमाइश कर रही है। इसके लिए पार्टी इस बार चुनाव की कमान केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया के हाथ सौंपने जा रही है। पार्टी की रणनीति के शिल्पकार हैं महासचिव दिग्विजय सिंह। बताया जा रहा है कि चुनाव से पहले राज्य सरकार का पर्दाफाश करने के लिए कांग्रेस कई दस्तावेज जुटाने में लगी है। और इसी क्रम में उसने पिछले साल दो बड़े प्रदर्शन किए हैं। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने कई बार राज्य का दौरा किया है और हाल ही में पार्टी ने कार्यकर्ताओं में उत्साह लाने के लिए ब्लॉक स्तर की बैठकें आयोजित की थीं। भाजपा की चिंता भाजपा की चिंता यह है कि सिंधिया की छवि को सीधे तौर पर प्रभावित करना उसके लिए आसान नहीं है, क्योंकि सिंधिया व उनके पिता माधवराव सिंधिया राज्य की राजनीति में कभी सक्रिय नहीं रहे है, लिहाजा उन पर उंगली उठाने के लिए कड़ी मेहनत करना होगी, इसके बावजूद भाजपा ने मोर्चा खोल दिया है। पिछली बार भाजपा ने चुनावों में एकता दिखाई थी जबकि कांग्रेस ऐसा नहीं कर सकी और उसे 76 सीटों से ही संतोष करना पड़ा। भाजपा को 143 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। उधर कांग्रेस जानती है कि सत्ता में आना है तो शिवराज की छवि को प्रभावित करना होगा। वहीं, दूसरी ओर भाजपा संगठन कभी दिग्विजय सिंह तो कभी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह व प्रदेशाध्यक्ष कांति लाल भूरिया को घेरने की कोशिश करता रहा है।
दूसरे नंबर को एक नंबर में बदलेगी बसपा विंध्य, बुंदेलखंड, ग्वालियर-चंबल एवं भोपाल संभाग पर पार्टी की नजर जनाधार बढ़ाने के लिए बसपा कर रही सम्मेलन और सभाएं भोपाल। 2008 के विधानसभा चुनाव में 7 सीटों पर कब्जा जमाने वाली बहुजन समाज पार्टी ने इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर तैयारियां शुरू कर दी है। समाजवादी पार्टी की सुगबुगाहट और तीसरे मोर्चे की तैयारियों के बावजूद अगले चुनावों में कांग्रेस-भाजपा के लिए बहुजन समाज पार्टी घातक रहेगी। पार्टी उन स्थानों पर सम्मेलन एवं सभाएं कर रही है। जहां पर वे विस चुनाव 2008 में दूसरे एवं तीसरे स्थान पर उनके उम्मीदवार रहे है। अभी तक दो दर्जन से अधिक सभाएं हो चुकी है। बंद कमरों में कार्यकत्र्ता सम्मेलन तो करीब तीन दर्जन से अधिक हो चुके है। मध्यप्रदेश में बसपा के वर्तमान में 7 विधायक और 1 सांसद हैं़ वे इससे संतुष्ट नहीं हैं़ अब प्रदेश में बसपा को सरकार बनाने के लिए काम करना चाहिए और लोकसभा में 1 नहीं बल्कि 11 सांसद मध्यप्रदेश से पहुंचना चाहिए़ बसपा इस बार आर पार की लड़ाई लडऩे की तैयारियों में है। पार्टी के कार्यक्रम बिना किसी शोरगुल और हंगामें के हो रहे है। दल ने रणनीति बनाई है कि चुनाव में परिणाम देना है इसलिए योजनाबद्व ढंग से कार्य किए जाएं। सूत्रों के अनुसार पार्टी ने चुनिंदा नेताओं को जिलों में सक्रिय कर दिया है जो कि उन्हें विधानसभा वार रिपोर्ट दे रहे है कि कहां पर मजबूत व कमजोर है। बसपा अचानक विध्ंय, बुंदेलखंड, ग्वालियर चंबल एवं भोपाल संभाग में सक्रिय हुई है। हाल में गोविंदपुरा एवं बैरसिया विधानसभा क्षेत्र में सभाओं का आयोजन किया गया है। इन सभाओं में बसपा विधायक दल के नेता रामलखन सिंह और प्रदेश अध्यक्ष आईएस मौर्य ने शिरकत की है। भोपाल जिला इकाई के अध्यक्ष अनिल पांडे के अनुसार पार्टी उन्हीं सीटों पर मशक्कत कर रही है जहां वे चुनाव में कड़ी टक्कर दे सकते है। दो विस क्षेत्रों में सभाएं करने के बाद तीसरी सभा दक्षिण विस क्षेत्र में होगी। जहां पर पिछले चुनाव में बसपा दूसरे नंबर पर थी। ताकत में इजाफा कर रहे बसपा अपनी ताकत में इजाफा करने के लिए जनता से सीधे संवाद कर रही है। कार्यक्रमों में कार्यकत्र्ताओं के साथ जनता भी आ रही है। आईएस मौर्य अध्यक्ष बसपा
दिग्गजों की अनुशंसा में फंसी जिलाध्यक्षों की सूची तोमर दो माह बाद भी नहीं कर सके 12 जिलों में अध्यक्ष का चयन भोपाल। नीमच, इंदौर नगर, उज्जैन नगर, शाजापुर, ग्वालियर नगर और ग्वालियर ग्रामीण, धार, शिवपुरी, अशोक नगर, दमोह, शहडोल और खरगोन भाजपा जिलाध्यक्षों की नियुक्ति दिग्गजों की अनुशंसा में अटक कर रह गई है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर को पद संभाले करीब दो माह का समय बीत गया है लेकिन वे अभी तक 12 जिलाध्यक्षों का चयन नहीं कर सके। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार पार्टी के दिग्गज नेताओं के हस्तक्षेप के कारण प्रदेश संगठन भी अब तक इन जिलों में नियुक्ति के लिए सर्वसम्मति नहीं बना पाया। तोमर को सबसे अधिक शिवपुरी,ग्वालियर नगर और ग्वालियर ग्रामीण,खरगोन और दमोह जिलाध्यक्ष नियुक्त करने दिक्कत आ रही है। शिवपुरी शिवपुरी जिलाध्यक्ष की बात करें तो रणवीर रावत का नाम लगभग तय माना जा रहा है। नरेन्द्र सिंह तोमर व प्रभात झा रणवीर रावत के पक्ष में है लेकिन वहीं दूसरी ओर ग्वालियर सांसद यशोधरा राजे सिंधिया द्वारा रणवीर रावत का विरोध दर्ज किए जाने के कारण फायनल किसी नाम की घोषणा लटक गई। रणवीर का विरोध करने वाले जैन ब्रदर्स यानि की कोलारस विधायक देवेन्द्र जैन व उनके अनुज जितेन्द्र जैन गोटू दिल्ली से लेकर भोपाल तक अपने संपर्कों का इस्तेमाल कर चुके है। इसी तरह ग्वालियर सांसद यशोधरा राजे सिंधिया भी रणवीर का नाम रूकवाने के लिए दम से लगी हुई हैं। यशोधरा के स्थानीय समर्थक कई पार्टी नेता भी पूरा जोर लगा रहे हैं कि जिलाध्यक्ष की ताजपोशी से रणवीर को रोका जाए। वहीं दूसरी ओर नरेन्द्र सिंह तोमर और प्रभात झा का हाथ रणवीर के साथ होने के कारण उनका नाम इस पद पर फायनल माना जा रहा है। खरगोन खरगोन जिले में भाजपा जिलाध्यक्ष की दौड़ में वर्तमान भाजपा जिलाध्यक्ष राजेन्द्र यादव,भाजपा के सहकारी नेता रणजीतसिंह डंडीर तथा किसान नेता भगवानसिंह गिन्नारे भी शामिल है। भाजपा सूत्रों के अनुसार एक या दो दिन में भाजपा जिलाध्यक्ष की घोषणा हो सकती है। सूत्रों की मानें तो भाजपा जिलाध्यक्ष की दौड़ में नंबर वन पर भाजपा के सहकारी नेता रणजीतसिंह डंडीर है। अगर जिले के पॉवरफुल खरगोन विधायक बालकृष्ण पाटीदार की चली तो राजेन्द्र यादव पुन: भाजपा जिलाध्यक्ष का ताज पहन सकते हैं। वहीं किसान नेता भगवानसिंह गिन्नारे भी संगठन में जिलाध्यक्ष का पद पाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। ग्वालियर नगर शीर्ष संगठन ने जिलाध्यक्ष नियुक्ति का जिम्मा प्रदेश उपाध्यक्ष एवं स्थानीय सांसद यशोधरा राजे सिंधिया को दे दिया है। सांसद से जुड़े जानकारों का कहना है कि वह अभय चौधरी तीसरी बार जिले की कमान सौंपने के मूड में नहीं है। उनकी पसंद पूर्व महापौर विवेक शेजवलकर है। इसके अलावा जीडीए उपाध्यक्ष राकेश जादौन को भी वह मौका दे सकती है। ग्वालियर जिलाध्यक्ष पद को लेकर चल रही रस्साकशी के फाइनल राउण्ड में एक दर्जन नामों में से केवल अभय चौधरी, विवेक शेजवलकर व राकेश जादौन के नाम बचे हैं, जिनमें से एक पर मोहर लगनी है। इसके लिए सांसद यशोधरा राजे को प्रदेशाध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर, चिकित्सा शिक्षा मंत्री अनूप मिश्रा व संगठन के शीर्ष पदाधिकारियों ने पूर्ण रुप से आश्वस्त कर कमान सौंप दी हैं। जिसका मुख्य कारण आने वाले चुनाव परिणाम को लेकर चौंकन्ना होना है। ग्वालियर ग्रामीण जिला ग्रामीण अध्यक्ष का चुनाव धीरे-धीरे डबरा वनाम ग्वालियर होता जा रहा है । वर्तमान जिला ग्रामीण अध्यक्ष भारत सिंह कुशवाह की जातिगत स्थिति जिले में काफी मजबूत है।भाजपा में ग्वालियर जिले में तीन धड़ स्पष्ट नजर आ रहे हैं। डबरा की ओर से बंटी गौतम,बज्जरसिंह और कौशल शर्मा तीनों ही उम्मीदवार है। दमोह दमोह जिला अध्यक्ष के लिए पूर्व जिलाध्यक्ष बिहारी लाल गौतम विजय सिंह राजपूत, देवनारायण श्रीवास्तव, रमन खत्री और किशोर अग्रवाल भी प्रमुख दावेदार थे। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ गौतम के पक्ष में है, वहीं मलैया राजपूत के पक्ष में बताए जाते हैं। भाजपा के राष्ट्रीय चुनाव प्रभारी सांसद थावरचंद गहलोत के गृह जिले शाजापुर में भी भाजपा नेताओं की आपसी गुटबाजी के कारण जिलाध्यक्ष की घोषणा का मामला लटका पड़ा है । इनका कहना है शेष जिलाध्यक्षों की घोषणा शीघ्र कर दी जाएगी और जहां जिला कार्यकारिणी का गठन नहीं हुआ है, उनमें फरवरी तक कार्यकारिणी का गठन कर लिया जाएगा। इसका निर्देश जिलाध्यक्षों को दे दिया गया है नरेंद्र सिंह तोमर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष
विदिशा में तय होगा भूरिया-अजय का कद संभागीय बैठक की रिपोर्ट पर आलाकमान तैयार करेगा आगामी रणनीति कांग्रेस के सभी मोर्चा-प्रकोष्ट जुटे तैयाारी में भोपाल। मप्र में विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस किस हद तक तैयार है इसका नजारा 17 फरवरी को विदिशा में होने वाले संभागीय सम्मेलन में दिखाई देगा। इस संभागीय बैठक में सभी दिग्गज नेताओं के आने की संभावना है। नेताओं की मौजुदगी,पदाधिकारियों की सादगी और कार्यकर्ताओं की भीड़ कांग्रेस की चुनावी तैयारियों की हकीकत तो बयां करेंगे ही साथ ही प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया और नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह के कद को भी तय करेंगे। आलाकमान इस बैठक की रिपोर्ट के बाद आगामी चुनावी रणनीति तैयार करेगा। दो लाख कार्यकर्ताओं को जुटाने का लक्ष्य राजधानी से महज 85 किलोमीटर दूर विदिशा में 17 फरवरी को होने जा रहे कांग्रेस के महासम्मेलन में दो लाख कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को जुटाने की कवायद चल रही है। इसमें विदिशा के आसपास स्थित भोपाल, रायसेन, राजगढ़ एवं सीहोर के कांग्रेसियों को बुलाया गया है। पार्टी के सभी मोर्चा-प्रकोष्ट के नेता तैयारी में जुट गए हैं। संभाग के जिलों,ब्लाक और वार्ड स्तर पर बैठकें चल रही हैं। कौमी एकता प्रकोष्ट के प्रदेश अध्यक्ष मुश्ताक मलिक ने बताया कि प्रकोष्ट द्वारा सम्मेलन को सफल बनाने के लिए जारदार तैयारियां चल रही है। रीवा और सागर के बाद पार्टी का तीसरा महासम्मेलन कांग्रेस ने मिशन-2013 को फतह करने और भाजपा सरकार की विफलताओं को जनता के बीच ले जाने के लिए रीवा और सागर में दो महाअभियान किया है लेकिन वहां अपेक्षित सफलता नहीं मिली। कांग्रेस नेताओं को उम्मीद है कि विदिशा में होने वाला तीसरा संभागीय महासम्मलेन पार्टी की दिशा और दशा तय करेगा। अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष पर नजर इस महासम्मेलन की सफलता या विफलता की रिपोर्ट पर प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया और नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह का कद तय होना है। बताया जाता है कि अगर यह महासम्मेलन सफल हुआ तो प्रदेश की चुनावी कमान इन दोनों को दे दी जाएगी। साथ ही यह सम्मेलन पूर्व मंत्री एवं विधान सभा के उपाध्यक्ष हरवंशसिंह के लिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि महासम्मेलन संचालन समिति का अध्यक्ष होने के नाते इसकी सफलता की जिम्मेदारी उन पर है। भूरिया उवाच मिशन-2013 की सफलता और पार्टी की मजबूती के लिए सख्त फैसले लेने और कड़े कदम उठाने के लिए हाई कमान ने अपनी ओर से अनुमति दे दी है। विदिशा का महासम्मेलन कई अर्थ में अधिक महत्वपूर्ण है। यहां के संभागीय महासम्मेलन का राजनीतिक संदेश बहुत दूर तक जाएगा और इसकी सफलता 2013 के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस की पुन: सत्ता में वापसी सुनिश्चित करेगी। प्रदेश भर में कांग्रेस कार्यकर्ताओं में विधान सभा चुनाव को लेकर जो उत्साह है उसके बल पर यह सुनिश्चित है कि अगले विधान सभा चुनाव में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनेगी। जनता भी सत्ता परिवर्तन के लिए मन बना चुकी है। मंत्रियों और विधायकों का भविष्य तय करेगा महाजनसंपर्क राज्य में सत्ता की हैट्रिक लगाने की तैयारी कर रही भाजपा का चुनावी लिहाज से 25 फरवरी से शुरू होने वाला 25 दिनी महाजनसंपर्क अभियान काफी अहम माना जा रहा है। दरअसल, 20 मार्च को खत्म होने वाले इस अभियान की 23 और 24 मार्च को भोपाल में समीक्षा की जाएगी। दरअसल यह उपक्रम इसलिए किया जा रहा है कि इस बहाने सत्ता और संगठन की जमीन तलाशी जा सके। चंूकि नगर, ग्राम केन्द्र तक चलने वाले इस अभियान का जिम्मा सांसदों और विधायकों पर ही होगा, इसलिए फीडबैक के आधार पर लगभग यह तय हो जाएगा कि कितने विधायकों को दोबारा विधानसभा चुनाव का टिकट दिया जाना है और कितने ऐसे सांसद हैं, जो विस चुनाव लडऩे के लिए फिट हैं। प्रदेश अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर की ताजपोशी के बाद उनकी अगुवाई में होने वाला यह पहला बड़ा कार्यक्रम है। इस अभियान के बाद पार्टी लगातार कार्यंक्रम आयोजित करेगी, जबकि मुख्यमंत्री सितंबर और अक्टूबर में हर विधानसभा क्षेत्र में पहुंचकर जमीनी हकीकत जानेंगे। बताया जाता है कि नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए सरकार और पार्टी अलग-अलग स्त्रोंतो से सांसद, विधायक समेत निर्वाचित जनप्रतिनिधियों का फीडबैक जुटा रही है। इसके लिए फीडबैक जहां गोपनीय रिपोर्ट कार्ड तैयार कराया जा रहा है, वहीं कार्यकर्ताओं के अलावा पार्टी के कार्यक्रमों के जरिए भी क्षेत्रीय स्तर पर फीडबैक लिया जा रहा है। इसी तहर जिला अध्यक्ष, संभागीय और जिला संगठन मंत्री भी विधायकों के परफॉरमेंस पर पैनी नजर रखे हुए हैं।
8 साल की उपलब्धियां गिनाकर अपना दाग धोएंगे विधायक जनसंपर्क यात्रा में संगठन की एंट्री से माननीय डर रहे भोपाल। चार साल तक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और संगठन की हिदायतों को दरकिनार कर अपने विधानसभा क्षेत्र में विकास कार्यो की उपेक्षा करने वाले विधायकों को अब महाजनसंपर्क अभियान के तहत अपने क्षेत्र में जाने से घबराहट होने लगी है। उस पर इस अभियान में संगठन की एंट्री से माननीय डर गए हैं। ऐसे में अब विधायकों ने मुख्यमंत्री की 8 साल की उपलब्धियों को गिनाकर अपना दाग धोने की योजना बनाई है। अब महीने में वे क्या कर लेंगे चार साल में जो काम विधायक नहीं करा पाए तो अब छह महीने में वे क्या कर लेंगे। विधानसभा चुनाव को देखते हुये जनता को पटाने की खातिर भाजपा प्रदेश नेतृत्व के कहने पर 25 फरवरी से 20 मार्च के बीच सभी विधानसभा में विधायक द्वारा महाजनसंपर्क अभियान के तहत विकास यात्राएं निकाली जाएगी। विकास यात्रा में विधायक घर-घर दस्तक देकर जनता से उनकी समस्या जानेंगे और उनको प्रदेश सरकार के काम-काज और योजनाओं से भी अवगत कराएंगे। यात्रा के दौरान विधायकों से कहा गया है कि वे अपनी विधानसभा के हर मंडल और बूथ तक जाए। कहा जा सकता है कि महाजनसंपर्क यात्रा के बहाने भाजपा ने चुनाव प्रचार की शुरूआत कर दी है। सत्र के दौरान दो दिन यात्रा करेंगे विधायक इस जनसंपर्क अभियान की अनूठी बात यह रहेगी कि शायद पहली बार बिना विधायकों के यात्रा होगी। 18 फरवरी से विधानसभा शुरू हो रही है और इसी सत्र में शिवराज सरकार का आखिरी बजट भी पेश होगा। विधायकों के विधानसभा सत्र में होने के कारण सोम, मंगल, बुध, गुरू और शुक्र को विधायकों की गैर मौजूदगी में जनसंपर्क अभियान के प्रभारी, मंडल और वार्ड प्रभारी के साथ नगर पदाधिकारी यात्रा में रहेंगे और नागरिकों से उनकी समस्याओं को जानेंगे और फिर विधायकों तक जनसंपर्क यात्रा में मिली शिकायतों-समस्याओं को रखेंगे। शनिवार-रविवार को छुट्टी होने के कारण विधायक जनसंपर्क यात्रा में रहेंगे। वैसे तो जनसंपर्क यात्रा में विधायक के साथ संगठन का भी सहयोग रहेगा लेकिन विधायकों के चार दिन विस सत्र में होने के कारण जनसंपर्क यात्रा पूरी तरह संगठन के भरोसे रहेगी और विधायकों को यही खतरा रहा है कि उनके न रहने पर उनका काला चि_ा संगठन तक सीधे पहुंच जायेगा और कहीं रिपोर्ट बनाकर प्रदेश नेतृत्व को भेज दी गई तो उनकी टिकिट पर आंच न आ जाये। इस डर से विधायकों की यही कोशिश है कि वे ज्यादा से ज्यादा यात्रा में रहे। इसके अलावा वे जनसंपर्क यात्रा प्रभारी के साथ मंडल और वार्ड प्रभारी को भी पटाने तैयारी में है । वैसे यह बताने की जरूरत नहीं है कि यहां किस विधायक ने क्या काम किया। कौन जीतेगा और कौन हार जायेगा यह भी जगजाहिर है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के जादू के कारण पिछले चुनाव में कई हारने वाले विधायक भी जीत जाये तो आश्चर्य नहीं। यदि अपने भरोसे विधायक चुनाव मैदान में उतरे तो तीसरी बार भाजपा की सरकार बनना मुश्किल है। इन योजनाओं पर फोकस लाड़ली लक्ष्मी- बेटी बचाओ योजना जीरो प्रतिशत ब्याज पर कर्ज योजना मुख्यमंत्री कन्यादान योजना मुख्यमंत्री तीर्थदर्शन योजना मुफ्त दवा-जांच योजना स्वरोजगार कर्ज योजन
श्योपुर और मुरैना में बढ़ा भाजपा का जनाधार भोपाल। आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा में चिन्ता की लकीरों के बीच एक सुखद खबर यह है कि पार्टी के आंतरिक सर्वे में श्योपुर और मुरैना में जनाधार बढऩे की खबर है। इस सर्वे में परम्परागत सीटें छोड़ कर बाकी जगह प्लस-मायनस का जो गुणा भाग सामने आया है उसके अनुसार श्योपुर में पार्टी को एक और मुरैना में चार सीट मिलने का अनुमान है। वर्तमान में पार्टी के पास इन दोनों जिले की 8 सीटों में से केवल दो पर कब्जा है। श्योपुर जिले की दोनों विधानसभा सीट वर्तमान में कांग्रेस के पास है। 2008 के विधानसभा चुनाव में श्योपुर विधानसभा सीट कर भाजपा के दुर्गालाल विजय को कांग्रेस के बृजराज सिंह चौहान ने 9452 से हराया था। भाजपा के सर्वे में अब इस सीट पर भाजपा का पलड़ा भारी है। वहीं विजयपुर विधानसभा सीट पर अभी भी कांग्रेस मजबुत है। यहां भाजपा के सीताराम आदिवासी को कांग्रेस के रामनिवास रावत ने 3011 मतों से पराजित किया था। उधर मुरैना जिले की 6 विधानसभा सीटों में से वर्तमान में दो भाजपा,दो कांग्रेस और दो बसपा के पास है। भाजपा के सर्वे में पार्टी यहां मुरैना,जौरा,सबलगढ़ और सुमावली सीट पर मजबुत नजर आ रही है। जबकि यह चारों सीटें भाजपा के पास नहीं थी। सबलगढ़ विधानसभा सीट पर कांग्रेस के सुरेश चौधरी ने भाजपा के मेहरबान सिंह रावत 9041 से हराया था। वहीं जौरा से बसपा के मणिराम धाकड़ ने कांग्रेस के बृंदावन सिंह सिकरवार को 8595,सुमावली से बसपा के अजब सिंह को कांग्रेस के ऐदल सिंह कंसाना ने 9651,मुरैना बसपा के परसुराम मुदगल ने कांग्रेस के सोबरन सिंह मावई 5336,दिमनी से भाजपा के शिवमंगल सिंह ने बसपा के रविंद्र सिंह तोमर 256 तथा अम्बाह (अजा)भाजपा के कमलेश जाटव ने बसपा के सत्यप्रकाश को 3927 मतों से मात दी है। बताया जाता है कि उत्तर प्रदेश में बदले राजनीतिक समीकरण के कारण इन दोनों जिलों में भाजपा को फिलहाल मजबुती मिलती नजर आ रही है।