शनिवार, 16 फ़रवरी 2013

कबीला संस्कृति हरवा रही कांग्रेस को

पर्यवेक्षक रिपोर्ट में नेताओं की कमियों ने आलाकमान को डाला चिंता में भोपाल। प्रदेश में कांग्रेस आलाकमान सरकार बनाने का सपना बुन रहा है लेकिन पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट में नेताओं की कमियों के हुए खुलासे ने उनको चिंता में डाल दिया है। रिपोर्ट के अनुसार मप्र में नेता कबीलों में बंटे हुए हैं। नेताओं की यही कबिला संस्कृति प्रदेश में कांग्रेस को हरवा रही है। कांग्रेस के राष्ट्रीय पर्यवेक्षक उत्तराखंड के एक नेता किशोर उपाध्याय ने भी कबीला संस्कृति को स्वीकार किया है। इन्होंने अपनी रिपोर्ट पार्टी आलाकमान को दे दी है। रिपोर्ट के अनुसार,दिग्विजय सिंह पट्ठा बनाने में व्यस्त हैं। राज्य सभा शैली में काम करने के आदी सुरेश पचौरी मध्य प्रदेश में मरणासन्न कांग्रेस को कोमा से बाहर नहीं निकाल सके। कांतिलाल भूरिया नगरीय निकाय चुनाव में कांग्रेस को अपेक्षित जीत नहीं दिला सके। उपचुनाव में भी कांग्रेस का हाथ खाली रहा। सुभाष यादव दिग्विजय की नजरों में किरकिरी बने और धीरे धीरे सियासी पर्दे से बाहर हो गये। ज्योतिरादित्य सिंधिया क्षेत्र से बाहर नहीं निकल सके । नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह अपने पिता अर्जुन सिंह की आभा मंडल से बाहर नहीं निकल पाये हैं। चुनाव जीतने के लिए नया प्रयोग राष्ट्रीय पर्यवेक्षक ने अपनी रिपोर्ट में कुछ महत्वपूर्ण सुझाव भी दिये गये हैं। सुझाया गया है कि कांग्रेस को प्रदेश चुनाव जीतने के लिए नया प्रयोग करना चाहिए। जीत को मुश्किल माना गया है मगर नामुमकिन नहीं। बताया जाता है कि एक डेढ़ महीने के बाद कुछ और पर्यवेक्षक आएंगे जो नए सिरे से यहां कांग्रेस की हालत का अध्ययन करेंगे और चुनाव जीतने के नए प्रयोग का भौतिक सत्यापन कर उस पर मुहर लगाएंगे। उल्लेखनीय है कि कुछ दिनों पूर्व लोकसभा चुनाव के बारे में जानकारी लेने उत्तराखंड के एक नेता किशोर उपाध्याय यहां आये थे। प्रदेश के विभिन्न लोकसभा क्षेत्रों में जाकर उन्होंने कांग्रस की स्थिति का जायजा लिया था। मेन टू मेन कुछ नेताओं से आमने-सामने बातचीत की गई थी। शहर के अलावा ग्रामीण के नेताओं का इंटरव्यू भी उपाध्याय ने लिया था। जो-जो नेता लोकसभा का चुनाव लडऩा चाहते हैं उनसे भी पूछताछ की गई। जिसमें यह बात निकल कर सामने आई थी कि कबिला संस्कृति में बंटे कांग्रेस के नेता अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए दूसरे नेता या उनके अनुयायी को हराने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। हाथ को साथ कैसे मिले रिपोर्ट के अनुसार, दिग्विजय सिंह केवल बयानबाजी तक ही सिमट कर रह गये हैं। कमलनाथ छिंदवाड़ा से बाहर निकलते नहीं, कांतिलाल भूरिया आदिवासी जिले तक ही सिमट गए। ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर से बाहर नहीं जाते। पिछले कुछ माह से कुछ जिलों का दौरा किया है। लेकिन इससे क्या होता है। अजय सिंह ने ठाकुर बाहुल्य क्षेत्र तक अपने को सिमटा लिया। सुभाष यादव खंडवा से बाहर नहीं निकलते। पूर्व विधान सभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी विंध्य क्षेत्र के नेता बन कर रह गये। सभी बड़े नेता अपना अपना क्षेत्र तय कर रखे हैं। ऐसे में हाथ को साथ कैसे मिले। 99999999999 भाजपा : मिशन 2013 के लिए संगठन को तैयार करने में जुटे मेनन भोपाल। भाजपा प्रदेश कार्यसमिति के गठन के बाद प्रदेश अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर और महामंत्री संगठन अरविंद मेनन ने अपने-अपने मोर्चे संभाल लिए हैं। श्री तोमर जहां राजनीतिक मोर्चे पर जुट गए हैं वहीं महामंत्री संगठन अरविंद मेनन ने संगठन को पहले से अधिक सक्रिय और प्रभावी बना कर चुनावी मोर्चे को फतह की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। श्री मेनन जब जबलपुर क्षेत्र के संगठन मंत्री थे तब उनके क्षेत्र में 2008 में भाजपा ने अधिकांश क्षेत्रों में परचम लहराया था। जबलुपर संभाग की 40 में से 25 और रीवा संभाग में कांग्रेस महज 2 और बसपा 2 स्थान ही जीत पाए थे बाकी के विधायक भाजपा के ही निर्वाचित हुए थे। ऐसे में श्री मेनन की संगठन क्षमता और प्रत्याशी चयन को लेकर क्षमता गजब की मानी जाती है। ऐसा तभी हो पाता है जब क्षेत्र में काम करने वाले कार्यकर्ता की संगठन और राजनीतिक क्षमता का सही मूल्यांकन किया जाए। इसलिए अरविंद मेनन ने जिलों की संरचना, मंडलों के गठन से लेकर नीचे तक के कार्यकर्ता की टीम खड़ी करने के लिए नियमित बैठकें करने का आग्रह किया है। भाजपा एक कार्यकर्ता आधारित राजनीतिक दल है। जहां हर कार्यकर्ता को काम और उसकी क्षमता के आधारित दायित्व देने के लिए संगठन महामंत्री और जिलों के संगठन मंत्री बराबर प्रयास करते रहते हैं। ऐसे में जब चुनावी वर्ष हो तो कार्यकर्ता का महत्व और बढ़ जाता है। इसी को ध्यान में रखकर अरविंद मेनन ने संगठन को अधिक सक्रिय और गतिशील बनाकर चुनावी मिशन को पूरा करने के लिए काम करना शुरू कर दिया है। श्री मेनन ने कार्य प्रदेश कार्यसमिति के गठन के बाद से अपने को सक्रिय बना लिया और वे चाहते हैं कि सभी जिलों का गठन शीघ्र हो जाए। मंडलों के साथ ग्राम केन्द्रों और मतदान केन्द्रों तक कर्मठ कार्यकर्ता सक्रिय हो जाए। कार्यसमिति के गठन के बाद हालांकि कहीं से भी असंतोष की बात सामने नहीं आ रही है फिर से बड़े और कार्यकर्ता आधारित संगठन में छिटपुट बातें सामने आ सकती हैं ऐसे में तत्काल सक्रिय होकर कार्यकर्ता से मिलकर तथा संगठन की बैठकें करके इस प्रकार की नाराजगी को थामा जा सकता है। इसी लिए मेनन चाहते हैं कि सभी जिलों में जल्दी ही बठकें हो जाए। श्री मेनन की एक बात और संगठन के हित की दिखाई देती है। वे अपने कार्यकर्ता के यहां विवाह आदि के कार्यक्रम में तो जाना ही चाहते हैं लेकिन वहां कार्यकर्ताओं के साथ बैठने का मौका मिल जाए तो क्या बात है? इसलिए वे ऐसा आग्रह उन नेताओं से करते हैं जो उनसे विवाह आदि कार्यक्रमों में शामिल होने का आग्रह करते हैं। संगठनात्मक व्यवस्था में निपुण महामंत्री संगठन अरविंद मेनन का यह प्रयास है कि वे चुनाव के समय से पहले सभी विधानसभा क्षेत्रों से दो-तीन नाम छांट लें ताकि चुनावी रणनीति और अन्य समीकरणों के आधार पर किसी एक को टिकिट देकर जीत को पक्का किया जा सके। अरविंद मेनन अपने पास आए कार्यकर्ता और पत्रकारों को प्राय: यह बात कहते हैं कि यह चुनावी वर्ष है तथा अब हमारे पास चुनाव की तैयारियों के लिए समय कम ही बचा है। ऐसे में महामंत्री संगठन की यह जिम्मेदारी होती है कि वे कार्यकर्ताओं को चुनाव को फतह करने के लिहाज से तैयार करे। साथ में विधानसभा में पहुंचने की क्षमता रखने वाले कार्यकर्ताओं की सूची तैयार करके राजनीतिक क्षेत्र में काम करने वालों के साथ सांझा करे। विधानसभा चुनाव जीत कर हैट्रिक लगाने की इस योजना में शिवराज तोमर और मेनन का ट्रेंगल इस बार मध्यप्रदेश में इतिहास रचने की तैयार कर रहा है। 999999999999999 एकता के लिए होगा प्रदेश का बंटवारा पांच राजनीतिक क्षेत्रों में बंटे प्रदेश की अलग-अलग कमान संभालेंगे दिग्विजय,कमलनाथ, ज्योतिरादित्य, भूरिया और अजय सिंह -जयपुर अधिवेशन में रणनीति पर होगा विचार भोपाल। बिहार,उत्तरप्रदेश और गुजरात में हार की हैट्रिक के बाद मध्यप्रदेश को लेकर कांग्रेस में चिंता और चिंतन का दौर शुरू हो गया है। कांग्रेस नेता भी मानते हैं कि इस बार मध्यप्रदेश में पार्टी के लिए चुनाव जितना निहायत जरूरी हो गया है। इसके लिए आलाकमान मप्र को पांच राजनीतिक क्षेत्रों में बांट कर दिग्विजय सिंह,कमलनाथ,ज्योतिरादित्य,कांतिलाल भूरिया और अजय सिंह को एक-एक क्षेत्र की जिम्मेदारी सौंपेगा। कांग्रेस रणनीतिकारों की इस योजना पर जयपुर अधिवेशन में विचार-विमर्श कर अमलीजामा पहुंचाया जाएगा। मप्र की जीत जरूरी कांग्रेस हाईकमान भी इस बात से वाकिफ है कि यदि इस बार मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार नहीं बनी तो आने वाले कई सालों तक कांग्रेस प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य से बाहर हो जाएगी। कांग्रेस ने 2013 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए मप्र में पार्टी और संगठन स्तर पर प्रयोग भी किए लेकिन इसमें कोई खास सफलता नहीं मिल सकी। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि मप्र में सभी क्षत्रपों को एक साथ साधना टेढ़ी खीर है। ये क्षत्रप अपने क्षेत्र में किसी और बड़े नेता के दौरों, जनसंपर्क, कार्यकताओं की बैठक आदि को पचा नहीं पाते। नेताओं की गुटीय राजनीति के कारण कार्यकर्ता भी गुटों में बंटे हुए हैं। पिछले दो विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस की पराजय की समीक्षा में ये बात सामने आ चुकी है कि कांग्रेस, भाजपा से नहीं बल्कि कांग्रेस से ही हारी। लेकिन, अब कार्यकर्ताओं में ऊर्जा फूंकने, गुटबाजी पर नकेल कसने सभी क्षत्रपों को एक साथ लाने की कवायद शुरू हो गई है। कांग्रेस हाईकमान ने पार्टी स्तर पर मप्र में गोपनीय सर्वे भी कराया था और सुझाव भी मांगे थे। इन्हीं सुझावों में मध्यप्रदेश को चार-पांच हिस्सों या जोन में बांट दिया जाए। इससे गुटीय सामंजस्य बिठाया जा सकेगा और दिग्गज नेता अपने-अपने क्षेत्र में पर्याप्त वक्त भी दे पाएंगे। सभी नेता अपने-अपने इलाकों में काम करेंगे और कांग्रेस को जिताने की जिम्मेदारी भी इन्हीं की होगी। कांग्रेस में इन नेताओं का भविष्य भी मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के परिणामों पर निर्भर होगा। 9999999999999 भाजपा का मुखड़ा बनेंगे शिवराज शिवराज के हाथ लोकसभा चुनाव की कमान संघ और संगठन तैयार कर रहा खाका भोपाल। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के विकासवादी चेहरे का मुकाबला करने में बेशक कांग्रेस के मुख्यमंत्री सफल न हो रहे हों, लेकिन शिवराज सिंह चौहान ने उनकी छवि में सेंध लगा दी है। निर्विवाद छवि,टीम भावना,विकासशील व्यक्तिव और पार्टी लाइन को सर्वोपरि मानने के कारण शिवराज भाजपा में नायक के रूप में उभरे हैं। इसलिए आलाकमान उन्हें लोकसभा चुनाव में पार्टी का मुख्य चेहरा बनाने जा रहा है। 2013 के विधानसभा चुनाव को फतह करने के साथ ही मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर 2014 में होने वाले लोकसभा चुनााव की जिम्मेदारी रहेगी। इसके लिए संघ और भाजपा संगठन खाका तैयार कर रहा है। भाजपा पार्लियामेंट्री कमेटी का मानना है कि जिस तरह से गुजरात में नरेन्द्र मोदी के नाम भाजपा को वोट मिले उसी तर्ज पर देश में शिवराज के नाम पर पार्टी को वोट मिलेंगे, इस बात को आसानी से नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। कांग्रेस की गोपनीय रिपोर्ट मप्र की सीमाओं से निकलकर देश के अन्य राज्यों में पहुंची शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता पर कांग्रेस आलाकमान ने एक गोपनीय रिपोर्ट तैयार करवाई है। इस रिपोर्ट की समीक्षा दिल्ली में भी हो चुकी है। रिपोर्ट में बताया गया कि मध्यप्रदेश में मुकाबला भाजपा से नहीं बल्कि शिवराज सिंह से है। कई ऐसी विधानसभा क्षेत्र हैं जहां लोग अपने विधायक से खुश नहीं हैं, लेकिन फिर भी वो भाजपा को ही वोट करेंगे क्योंकि सीएम शिवराज सिंह हैं। मप्र में शिवराज बनाम कांग्रेस शिवराज सिंह चौहान ने हर वर्ग के लिए योजनाएं बनाई और लागू भी की। इन योजनाओं के कारण उनकी लोकप्रियता भी बढ़ी। संभवत: उनकी इसी लोकप्रियता के कारण पार्टी और संगठन में शिवराज का कोई विकल्प नहीं है। राजनीतिक विश्लेषकों का भी कहना है कि मंत्री और विधायकों ने अपने क्षेत्र के विकास में उन्हीं योजनाओं और कार्यों पर निर्भर रहे जिसे राज्य सरकार ने क्रियान्वित या मंजूर किया। इन्होंने अपने क्षेत्र के विकास के लिए अलग से कोई प्रयास किया हो, ऐसा दावे के साथ नहीं कहा जा सकता। बावजूद इसके मतदाताओं का एक वर्ग भले ही मंत्रियों और भाजपा विधायकों से नाराज हो लेकिन वो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नाम पर भाजपा को वोट करेगा। शिवराज के पुरस्कारों से कांग्रेस आहत कांग्रेस के तमाम विरोध के बावजूद विकास के मामले में मध्यप्रदेश का मॉडल एक अनूठे रूप में उभर रहा है। इसका प्रमाण है कि केंद्र सरकार द्वारा शिवराज सिंह की सरकार को कई पुरस्कार पिछले चार सालों में दिए जा चुके हैं। इससे कांग्रेस के रणनीतिकार आहत हैं। शिवराज मॉडल के विपक्षी भी मुरीद मोदी मॉडल के अलावा अब शिवराज मॉडल की भी चर्चा शुरू हो गई है। उनके विरोधी दलों के नेता भी उनके मुरीद होते जा रहे हैं। हाल ही में सामाजिक विकास के लिए केंद्रीय ग्रामिण विकास मंत्री जयराम रमेश ने उनके विकास मॉडल की तारीफ की थी। पोस्टर पर अटल-अटवाणी के साथ शिवराज भी लोकसभा चुनाव में भाजपा के पोस्टरों पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के साथ शिवराज सिंह चौहान का भी चित्र रहेगा। इसपर भाजपा पार्लियामेंट्री कमेटी विचार कर रही है। इनका कहना है जो नेता होता है वो मन की गांठे खोलना वाला होता है और पार्टी में जो बहुमत होता है उसके हिसाब से चलने वाला होता है। आजकल देखा जाता है कि जिसको पद मिल जाता है वह टीम प्लेयर नहीं होता। देश चलाने के लिए निर्विवाद नेतृत्व की जरूरत है। सुषमा स्वराज, नेता प्रतिपक्ष लोकसभा प्रधानमंत्री का दावेदार बना कर लोकसभा चुनाव में उतरने का निर्णय भाजपा की पार्लियामेंट्री कमेटी लेगी। जहां तक शिवराज सिंह चौहान का सवाल है तो इस साल के अंत में होने वाले चुनाव तक हम उन्हें नहीं छोडऩे वाले। नरेंद्र सिंह तोमर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मेरी सीमा मेरा मप्र है यहां मुझे अभी बहुत कुछ करना है। शिवराज सिंह, मुख्यमंत्री शिवराज देश में उदारवादी नेता के रूप में उभरकर सामने आए हैं। सभी धर्मों के लोग उनके मुरीद हैं। अगर भाजपा लोकसभा चुनाव में उन्हें आगे करती हैं तो पार्टी को फायदा मिलेगा। इंद्रेश कुमार, राष्ट्रीय संगठक राष्ट्रीय मुस्लिम मोर्चा 999999999999999 कांग्रेस में सिफारिश सिस्टम होगा खत्म जयपुर घोषणा पत्र ने नेताओं को चिंता में डाला अब जमीनी नेताओं और कार्यकर्ताओं की बढ़ेगी पूछ-परख भोपाल। कांग्रेस में अब जमीनी नेताओं और कार्यकर्ताओं की पूछ-परख बढ़ेगी और बड़े नेताओं के यहां दरबार नहीं सजेगा,क्योंकि पार्टी सिफारिश सिस्टम खत्म करने जा रही है। जयपुर में कांग्रेस चिंतन शिविर के बाद जारी जयपुर घोषणा पत्र के लागू किए जाने की खबर ने नेताओं को चिंता में डाल दिया है। क्या है जयपुर घोषणा पत्र कांग्रस हाईकमान के निर्देश पर पार्टी के रणनीतिकारों ने पार्टी को मजबूती प्रदान करने के नजरिए से नियमों का एक ऐसा पत्रक तैयार किया है जिसको लागू करने के बाद पार्टी में कार्यकर्ताओं की न केवल पूछ-परख बढ़ेगी बल्कि उनको योग्यतानुसार पद भी बिना सिफारिश के मिल सकेगा। भाई-भतीजावाद चिंता का विषय घोषणा पत्र में कहा गया है कि भाई-भतीजावाद पार्टी के लिए चिंता का विषय है। इसे कड़ाई से दूर करना होगा। जानकारों का कहना है कि ऐसा होता है तो सबसे पहले नेताओं के रिश्तेदारों पर गाज गिरेगी। साथ ही पद या टिकट दिलाने के नाम पर होने वाला भ्रष्टाचार भी खत्म हो सकेगा। कांग्रेस चिंतन शिविर के बाद जारी जयपुर घोषणा पत्र में कहा गया है कि कोई वरिष्ठ नेता अगर किसी की सिफारिश करता है तो सिफारिशी नेता के फेल होने पर जिम्मेदारी वरिष्ठ नेता को लेनी होगी। पार्टी में अभी तक का जो सिस्टम है, उसमें सिफारिश की भूमिका सबसे खास होती है। चाहे पदाधिकारियों की नियुक्ति हो या टिकट बांटने का मामला, वरिष्ठ नेताओं के बायोडाटा ले कर पहुंचने वालों की भीड़ बढ़ जाती है। नेता भी चेहतों को खुलकर फायदा पहुंचाते हैं। चिंतन शिविर में यह व्यवस्था पार्टी के लिए बेहद घातक मानी गई है। ये हैं प्रस्ताव पदाधिकरियों के कामकाज की समीक्षा हो। अग्रिम संगठनों के वरिष्ठ पदाधिकारी कांग्रेस में शामिल हों। चुनाव में जीत ही नहीं वफादारी को भी महत्व मिले। ब्लॉक और जिला कमेटियों का गठन निश्चित समय में किया जाए। प्रदेश व जिला कांग्रेस अध्यक्षों का कार्यकाल तीन साल हो। दो बार से ज्यादा मौका न मिले। ब्लॉक व जिला कार्यकारिणी के सदस्य चुने जाएं। मौजूदा हालात ऐसे सभी जिला इकाइयों को निष्क्रिय पदाधिकारियों की सूची भेजने को कहा गया है, लेकिन जवाब नहीं आया, क्योंकि कोई नाराजगी मोल नहीं लेना चाहता। प्रदेश कार्यकारिणी में अभी ऐसे कुछ पदाधिकारी हैं जो अग्रिम संगठनों से हैं। यह संख्या भविष्य में बढ़ सकती है। अभी ब्लॉक व जिला कार्यकारिणी में ज्यादातर पदाधिकारी स्थानीय विधायक और सांसद के चहेते होते हैं। 999999999999999 जयवर्धन बनेंगे मप्र के राहुल मप्र युवक कांग्रेस के अध्यक्ष बनेंगे दिग्गी पुत्र भोपाल। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की पहल पर उनके पुत्र जयवर्धन सिंह को मप्र का राहुल बनाने की कवायद की जा रही है। इसके लिए जयवर्धन को मप्र के युवा कांग्रेस की कमान सौंपने की तैयारी की जा रही है। हालांकि अभी यह पद दिग्गी राजा के रिश्तेदार विधायक प्रियव्रत सिंह के पास है। उल्लेखनीय है कि वर्तमान मेें जयवर्धन विदेश मे पढ़ रहे हैं। उनकी चार माह की पढ़ाई शेष है। वे शीघ्र ही लौटेंगे। ऐसे में दिग्विजय सिंह चाहते है कि उनके बेटे जयवर्धन सिंह मप्र के युवा कांग्रेस की कमान संभाले, इस संदर्भ में उन्होंने जमावट शुरू कर दी है। दिग्विजय सिंह कैंप इस बात की पुष्टि भी कर रहा है। प्रियव्रत बनेंगे राष्ट्रीय अध्यक्ष उधर राहुल गांधी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनने के पश्चात दिग्विजय सिंह ने मप्र के युवा विधायक प्रियव्रत सिंह को युवक कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने की कवायद शुरू कर दी है। प्रियव्रत सिंह वर्तमान में मप्र युवक कांग्रेस के अध्यक्ष है। कांग्रेस के जयपुर चिंतन शिविर के बाद युवक कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का बदलाव होना है। युवा कांग्रेस के मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष युवक कांग्रेस की निर्धारित उम्र 37 वर्ष से अधिक के हो चुके हैं। इस पद पर अंतिम निर्णय कांग्रेस के नए उपाध्यक्ष राहुल गांधी को करना है। दिग्विजय सिंह को राहुल गांधी का सलाहकार माना जाता है। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि वे अपने प्रभाव का उपयोग कर प्रियव्रत सिंह को यह पद दिलाने में सफल होंगे। 150 गांवों की कर चुके हैं पदयात्रा कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव राहुल गांधी की तरह आम आदमी का नेता बनने के लिए जयवर्धन ने दिसंबर 2011 में गुना जिले के कुलुआ गांव से 150 गांवों का दो पदयात्रा के माध्यम से दौरा कर अपनी राजनीति की शुरुआत की थी। इसके पीछे कांग्रेस के रणनीतिकारों का कहना था कि देश की 70 फीसदी आबादी गांव में रहती है लिहाजा इस वर्ग की स्थिति को जानना जरुरी हैं, किसी को मजबूत नेता बनना है तो इस वर्ग को करीब से जानना ही होगा। इस साल होगी कई नेता-पुत्रों लांचिंग प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस के नेता इस बार के विधानसभा चुनावों में अपने पुत्रों उतरने की तैयारी कर रहे हैं। इसकी शुरूआत हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुए पूर्व सांसद लक्ष्मण सिंह के पुत्र आदित्य विक्रम सिंह कांग्रेस के टिकट पर राघोगढ़ नगर पालिका अध्यक्ष पद का चुनाव लडऩे के साथ हुई है। दिग्विजय सिंह के पुत्र जयवर्धन सिंह, राघोगढ़ कांतिलाल भूरिया के पुत्र डॉ. विक्रांत,क्षेत्र तय नहीं नरेंद्र सिंह तोमर के पुत्र देवेंद्र प्रताप, ग्वालियर कैलाश विजयवर्गीय के पुत्र आकाश,इंदौर-2 गोपाल भार्गव के पुत्र अभिषेक,देवरी जयंत मलैया के पुत्र सिद्धार्थ,क्षेत्र तय नहीं 99999999999999 5 जीत ने बढ़ाया विधानसभा जीत का भरोशा आलाकमान हुआ सक्रिय,भूरिया ने तेज किया दौरा,अन्य नेता भी संभालेंगे मैदानी मोर्चा भोपाल। प्रदेश में पिछले 9 साल से विभिन्न चुनावों में हार का मुंह देखती आ रही कांग्रेस जब मिशन 2013 में पिछड़ती जा रही थी ऐसे में उसे पांच नगर पंचायत चुनावों में जीत की ऐसी संजीवनी मिली है कि पार्टी नेताओं को आगामी विधानसभा चुनाव में जीत नजर आने लगी है। इसको देखते हुए कांग्रेस आलाकमान ने मप्र पर अपना विशेष ध्यान देना शुरू कर दिया है। वहीं प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया ने जिलों का दौरा तेज कर दिया है। भूरिया की देखादेखी अन्य नेता भी मैदानी मोर्चा संभालने की तैयारी कर रहे हैं। कांग्रेस-भाजपा बराबर की स्थिति में बताया जाता है कि कांग्रेस के रणनीतिकारों ने आलाकमान को एक रिपोर्ट दी है कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी इस बार बराबर की स्थिति में है। कांग्रेस कमलनाथ,दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के गुटों में जरूर बंटी है, लेकिन एंटी इनकंबेसी के चलते शिवराज सिंह चौहान सरकार के खिलाफ ये जीत की उम्मीद में अपने मतभेद भुला सकते हैं। इस रिपोर्ट के आधार पर आलाकमान ने कांग्रेस नेताओं को एकजुट होने का निर्देश दे दिया है। झा के मंत्र पर चले भूरिया भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा ने पदभार संभालने के साथ ही जिस तरह जिलों का तूफानी दौरा कर आदिवासी,दलित और पिछड़े जिलों का दौरा कर वहां के मतदाताओं की एक बड़ी संख्या को भाजपा के वोट बैंक के रूप में तब्दील किया था अब उसी मंत्र पर चलते हुए भूरिया ने दौरा तेज कर दिया है। भूरिया रोजाना एक-दो जिलों का दौरा कर वहां के लोगों से मुलाकात कर रहे हैं। राजस्थान के बाद मप्र आएंगे राहुल कांग्रेस में दूसरे नम्बर की कुर्सी संभालने के बाद अब राहुल गांधी पूरे देश का दौरा करेंगे। दौरे की शुरूआत राजस्थान के आदिवासी अंचल से शुरू करके मप्र में आएंगे। दौरे का मकसद कांग्रेस कार्यकर्ताओं में नया जोश भरना और पार्टी का जनाधार बढ़ाना होगा। दौरे के दौरान राहुल गांधी ब्लॉक एवं जिला कांग्रेस अध्यक्षों के साथ जिला मुख्यालयों पर बैठकर संवाद करेंगे। वे सभी संसदीय एवं विधानसभा क्षेत्रों का दौरा करेंगे। दौरे के समय राहुल के साथ सम्बन्धित प्रदेश के प्रभारी महासचिव, प्रदेश कांग्रेस और अग्रिम संगठनों के प्रदेश अध्यक्ष होंगे। यह दौरा केवल संगठन और पार्टी का जनाधार बढ़ाने के लिए होगा। ज्योतिरादित्य और मीनाक्षी का बढ़ेगा कद राहुल गांधी के साथ काम करने वाली युवाओं की टीम में प्रदेश के दो नेताओं का कद बढ़ेगा। केंदीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया सरकार के साथ-साथ संगठन में भी काम करने के लिए कहा जा सकता है। वहीं मप्र की तेजतर्रार नेत्री और सांसद मीनाक्षी नजराजन को राष्ट्रीय महासचिव बनाया जा सकता है। 9999999999999 अब भूरिया के बेटे की लांचिंग बेटे को उत्तराधिकारी बनाने की तैयारी भोपाल । कांग्रेस महासचिव एवं पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की तर्ज पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया भी अपने डॉक्टर बेटे विक्रांत भूरिया को राजनीति में लांच करने जा रहे हैं। इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में भूरिया के स्थान पर विक्रांत चुनाव लड़ सकते हैं। दरअसल भूरिया ने पिछले दिनों जयपुर में हुए चिंतन शिविर में कांग्रेस के नवनियुक्त राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा सुझाए गए फार्मूले के मद्देनजर इसी चुनाव से बेटे को लांच करने का मन बना लिया है। ज्ञात रहे कि गांधी ने प्रदेश अध्यक्ष सहित संगठन में काम करने वालों को चुनाव नहीं लडऩे का सुझाव दिया था। पार्टी सूत्र बताते हैं कि इस फर्मूले पर अमल हुआ तो भूरिया स्वयं विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। गांधी के सुझाव के बाद वे सार्वजनिक रूप यह बात कह भी चुके हैं। भूरिया के करीबी सूत्र बताते हैं कि प्रदेशाध्यक्ष ने अपने छोटे बेटे डॉ. विक्रांत को क्षेत्र में सक्रिय होने के निर्देश भी दे दिए हैं। डॉ. विक्रांत छात्र जीवन से ही राजनीति में हैं और वे जूडा के प्रदेशाध्यक्ष रह चुके हैं। सूत्रों ने बताया कि वे अगला विधानसभा चुनाव अपने पिता के संसदीय क्षेत्र की थांदला विधानसभा सीट से लड़ेंगे। यहां से भूरिया भी विधायक रह चुके हैं। डॉ. विक्रांत झाबुआ जिले में सक्रिय हो गए हैं, उन्होंने बुधवार को कार्यकर्ताओं का सम्मेलन बुलाया और उसमें अपना पहला भाषण दिया। डॉ. भूरिया ने कार्यकर्ताओं से संगठन के हित में काम करने का आह्वान करते हुए कहा कि उनकी पहली प्राथमिकता संगठन को मजबूत बनाना है। रहेंगे सीएम पद की दौड़ में भूरिया भले ही विधानसभा चुनाव नहीं लड़े लेकिन इसके बावजूद भी वे मुख्यमंत्री पद की दौड़ में रहेंगे। सूत्रों ने बताया कि कांग्रेस को बहुमत मिलने पर यदि पार्टी आलाकमान भूरिया को मुख्यमंत्री बनाना चाहेगा तो उन्हें बाद में किसी सीट से चुनाव लड़ाया जा सकता है। उनके चुनाव नहीं लडऩे की वजह से वे इस दौड़ से बाहर नहीं होंगे। जीतने पर उनके लिए डॉ. विक्रांत भी अपनी सीट छोड़ सकते हैं। बेटे को सक्रिय करने के मायने दरअसल भूरिया स्वयं विधानसभा चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहे थे। इसलिए इस साल बेटे को चुनाव लड़ाने की जगह वे संगठन में लाना चाहते थे। लेकिन जयपुर चिंतन शिविर में राहुल गांधी ने प्रदेशाध्यक्षों और संगठन पदाधिकारियों को चुनाव लडऩे की जगह लड़वाने और संगठन के हित में काम करने का फार्मूला सुझाया। यदि प्रदेशाध्यक्षों पर यह फार्मूला लागू होता है तो भूरिया चुनाव नहीं लड़ पाएंगे, इस कारण उन्होंने अभी से बेटे को सक्रिय कर दिया ताकि उनकी जगह वे चुनाव लड़ सके। भूरिया पार्टी प्रत्याशियों को जिताने के लिए काम करेंगे। 99999999999999 मध्यप्रदेश में 'चुनावी मोडÓ में भाजपा और कांग्रेस शिवराज-तोमर की जोड़ी को घेरेंगे ज्योतिरादित्य-भूरिया भोपाल। मध्यप्रदेश में करीब 10 माह बाद प्रस्तावित विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सत्तारूढ़ भाजपा और प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस 'चुनावी मोडÓ में आते जा रहे हैं। दोनों पार्टियां एक-दूसरे को घेरने के लिए रणनीति बना रही हैं। पिछले चार साल से सरकार को घेरने के मामले में बैकफुट पर रही कांग्रेस अब फ्रंटफुट पर आने की कवायद में जुट गई है। कांग्रेस की नई रणनीति के तहत केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया की जोड़ी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर को घेरेंगे। शिवराज-तोमर की जोड़ी से कार्यकर्ताओं में उत्साह राज्य की 230 विधानसभा सीटों के लिए होने वाले चुनाव को लेकर प्रदेश में चुनावी बुखार चढऩे लगा है। भाजपा सत्ता में हैट्रिक की पूरी जोर-आजमाइश करेगी, तो मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस उससे सत्ता छीनने की सारी कोशिशें करेगी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा चुनावों के लिए कमर कस चुकी है। दूसरी ओर धड़ेबाजी से त्रस्त कांग्रेस अपना मुख्यमंत्री का प्रत्याशी घोषित नहीं करेगी। फिलहाल, ऐसा लगता है कि भाजपा ने चुनावों के लिए काफी तैयारी कर ली है। पिछले ही महीने चौहान के सिपहसालार नरेंद्र तोमर को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया और प्रभात झा को इस पद से हटा दिया गया, जो अपने विवादास्पद बयानों से काफी सुर्खियों में रहे। इसमें चौहान की बड़ी भूमिका रही जिन्होंने तोमर के नाम पर संघ को राजी कर लिया। पार्टी कार्यकर्ताओं में उत्साह है और वे चौहान-तोमर की जोड़ी के चुनाव जीतने को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हैं। युवा मोर्चे के साथी शिवराज और नरेन्द्र सिंह तोमर की एक दूसरे के साथ अच्छी ट्यूनिंग है। और जहां तक पार्टी में प्रदर्शन की बात है तो ये जोड़ी 2008 के विधानसभा चुनाव में अपना इम्तेहान दे चुकी है। शिवराज और नरेन्द्र का दौर देख चुके भाजपाई जानते हैं कि तोमर की मौजुदगी से शिवराज की ताकत चौगुनी हो गई है। ज्योतिरादित्य-भूरिया पर दारोमदार कांग्रेस अपनी खोई जमीन को हासिल करने के लिए खूब जोर-आजमाइश कर रही है। इसके लिए पार्टी इस बार चुनाव की कमान केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया के हाथ सौंपने जा रही है। पार्टी की रणनीति के शिल्पकार हैं महासचिव दिग्विजय सिंह। बताया जा रहा है कि चुनाव से पहले राज्य सरकार का पर्दाफाश करने के लिए कांग्रेस कई दस्तावेज जुटाने में लगी है। और इसी क्रम में उसने पिछले साल दो बड़े प्रदर्शन किए हैं। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने कई बार राज्य का दौरा किया है और हाल ही में पार्टी ने कार्यकर्ताओं में उत्साह लाने के लिए ब्लॉक स्तर की बैठकें आयोजित की थीं। भाजपा की चिंता भाजपा की चिंता यह है कि सिंधिया की छवि को सीधे तौर पर प्रभावित करना उसके लिए आसान नहीं है, क्योंकि सिंधिया व उनके पिता माधवराव सिंधिया राज्य की राजनीति में कभी सक्रिय नहीं रहे है, लिहाजा उन पर उंगली उठाने के लिए कड़ी मेहनत करना होगी, इसके बावजूद भाजपा ने मोर्चा खोल दिया है। पिछली बार भाजपा ने चुनावों में एकता दिखाई थी जबकि कांग्रेस ऐसा नहीं कर सकी और उसे 76 सीटों से ही संतोष करना पड़ा। भाजपा को 143 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। उधर कांग्रेस जानती है कि सत्ता में आना है तो शिवराज की छवि को प्रभावित करना होगा। वहीं, दूसरी ओर भाजपा संगठन कभी दिग्विजय सिंह तो कभी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह व प्रदेशाध्यक्ष कांति लाल भूरिया को घेरने की कोशिश करता रहा है।

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