शनिवार, 16 फ़रवरी 2013

बुंदेलखंड की उपेक्षा भाजपा पर पड़ न जाए भारी

26 विधानसभा सीटों वाले क्षेत्र को भाजपा की कार्यकारिणी में दो को मिला प्रतिनिधित्व भोपाल। मध्य प्रदेश के दोनों प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को जब भी मौका मिलता है, वे अपने को बुंदेलखंड का हिमायती होने का ढिंढोरा पीटने में पीछे नहीं रहते, मगर सच्चाई इससे अलग है। इन दलों के लिए इस इलाके का मतदाता तो महत्वपूर्ण है, मगर अपने ही दल के नेताओं की योग्यता पर ज्यादा भरोसा नहीं है। इसे हाल ही में भाजपा की घोषित कार्यकारिणी में मिले महत्व को देखकर समझा जा सकता है। बुंदेलखंड के खाते में सिर्फ दो जिम्मेदारियां आई हैं, इनमें से एक उपाध्यक्ष और एक प्रकोष्ठ का संयोजक है। बुंदेलखंड में मध्य प्रदेश के छतरपुर, सागर, दमोह, पन्ना व टीकमगढ़ कुल पांच जिले आते हैं। यह इलाका उपलब्धियों के लिए नहीं, बल्कि समस्याओं के लिए जाना जाता है। यहां पानी के लिए लोग तरसते हैं, तो बिजली, सड़क का भी हाल ठीक नहीं है। इतना ही नहीं, सिंचाई के लिए पानी भी आसानी से सुलभ नहीं है। रोजगार के अवसर न होने से यहां के हजारों परिवार हर वर्ष अपना पेट भरने के लिए पलायन को मजबूर होते हैं। इस इलाके की समस्याएं राजनीतिक दलों के लिए वोट पाने का जरिया भर है। चुनाव के मौके पर दावों और वादों की पोटरी खोल दी जाती है, मगर हाथ आता सिर्फ शून्य । यही कारण है कि आजादी के 65 वर्ष बाद भी इस इलाके के हालात ज्यादा नहीं बदले हैं। राजनीतिक दल हर वक्त अपने को बुंदेलखंड का हिमायती होने का वक्त दावा करते हैं। वे अपनी प्राथमिकताओं में बुदेलखंड को सबसे ऊपर बताने तक से नहीं हिचकते, विकास की कसमें खाते हैं, मगर जल्द ही भूल जाते हैं। इन दलों के लिए यह इलाका कोई राजनीतिक अहमियत नहीं रखता है, शायद यही वजह है कि कांग्रेस ने कोई बड़ी जवाबदारी यहां के नेताओं को नहीं सौंपी और अब भाजपा ने भी यही किया है। भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर द्वारा तय किए गए 50 नामों में सिर्फ दो ही बुंदेलखंड से आते हैं। इनमें से एक हैं सागर के सांसद भूपेंद्र सिंह, जिन्हें उपाध्यक्ष बनाया गया है और दूसरे हैं टीकमगढ़ के केके श्रीवास्तव जिन्हें नगर पालिका प्रकोष्ठ के संयोजक की जिम्मेदारी दी गई है। विधानसभा की 230 सीटों में से इस इलाके से 26 सीटें आती हैं, इस तरह कुल सीटों में से लगभग 12 फीसदी विधायक इस इलाके से आते हैं, मगर पार्टी में महज चार फीसदी को प्रतिनिधित्व मिला। भाजपा ने यहां की 26 में से 17 सीटें जीती हैं। कार्यकारिणी के गठन के बाद क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व को लेकर उठे सवाल पर तोमर ने साफ कर दिया है कि कार्यकारिणी में सामाजिक व क्षेत्रीय संतुलन को ध्यान में रखा गया है। उन्होंने कहा की इस वर्ष विधानसभा चुनाव में भारी जीत हासिल करना हमारा लक्ष्य है। एक तरफ जहां भाजपा की कार्यकारिणी में बुंदेलखंड की उपेक्षा हुई है, वहीं अन्य क्षेत्रों- मालवा, महाकौशल, ग्वालियर-चंबल तथा मध्य क्षेत्र को पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिया गया है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें