शनिवार, 31 मई 2014

प्रोफेसर तय करेंगे छात्र चुनाव लड़ेगा या नहीं !

उच्च शिक्षा विभाग तैयार कर रहा नया ड्रॉफ्ट
भोपाल। छात्र संगठनों के बढ़ते दबाव के कारण इस बार सरकार ने छात्रसंघ चुनाव कराने की तैयारी शुरू कर दी है। छात्रसंघ चुनाव इस बार प्रत्यक्ष प्रणाली से होंगे। यानि छात्र अपने प्रतिनिधि को सीधे वोट देकर चुनेंगे। अभी तक मेरिट होल्डर ही प्रतिनिधित्व करने के लिए पात्र थे। चुनाव का नया ड्रॉफ्ट उच्च शिक्षा विभाग तैयार कर रहा है। इसमें चुनाव लडऩे के लिए छात्र पात्र हैं या नहीं यह कॉलेज के प्रोफेसर तय करेंगे। उनकी मंजूरी के बिना चुनाव में उम्मीदवारी नहीं हो पाएगी। छात्र संघ चुनाव को लेकर तैयार हो रहे ड्रॉफ्ट में यह विशेष नियम जोड़ा जा रहा है। अनुशासन का हवाला देते हुए सरकार हर कॉलेज में तीन प्रोफेसरों की एक कमेटी गठित करेगी। जो छात्र की उम्मीदवारी को लेकर पात्रता तय करेंगे। यदि कमेटी ने छात्र को चुनाव के लिए अपात्र करार दिया तो वह चुनाव नहीं लड़ पाएगा। विभाग आपराधिक प्रवृत्ति के छात्रों को भी चुनाव से दूर रखने का प्रयास कर रहा है। वहीं चुनाव लडऩे के लिए न्यूनतम 50 फीसदी अंक से अंतिम परीक्षा उत्तीर्ण करना अनिवार्य किया गया है। यदि छात्र खेल, सांस्कृतिक या साहित्यिक, एनसीसी, एनएसएस गतिविधियों से जुड़ा है तो उसके 50 फीसदी से परीक्षा में कम अंक है तो निर्धारित प्रमाणपत्रों के लिए उसे अतिरिक्त अंक का भी लाभ दिया जाएगा। प्रचार के तीन दिन उच्च शिक्षा विभाग एडमिशन के साथ ही चुनाव कराने की मंशा बना रहा है। राज्यमंत्री दीपक जोशी के अनुसार- नए ड्रॉफ्ट में हम चाहते हैं कि हफ्ते भर के भीतर छात्रसंघ चुनाव हो जाए। इसके लिए एडमिशन खत्म होने के बाद ही वोटर लिस्ट कॉलेज में लगाई जाएगी। नामांकन भरने और वापस लेने के लिए समय दिया जाएगा। इसके बाद तीन दिन प्रचार के लिए समय दिया जाएगा। प्रत्याशी प्रचार के लिए होर्डिंग, बैनर का उपयोग नहीं करेगा। कॉलेज की दीवारों को भी प्रचार में इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा। छात्र कर सकता है अपील तीन प्रोफेसर यदि किसी छात्र को चुनाव के लिए अयोग्य करार देते हैं और छात्र को लगता है कि निर्णय गलत है तो वह इसकी अपील कर कर सकता है। प्राचार्य अथवा अधिष्ठाता छात्र कल्याण के पास वह अपील करने का अधिकारी होगा। 3 साल बाद जागी उम्मीद मप्र में प्रत्यक्ष प्रणाली से छात्रसंघ चुनाव 1987 के बाद से बंद हो गए थे। इसके बाद 1994 तक यह चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से आयोजित किए जाते रहे। वर्ष 2003 में तत्कालीन दिग्विजय सरकार ने चुनाव के दौरान होने वाली हिंसा को देखते हुए इस पर प्रतिबंध लगा दिया था। इस प्रतिबंध के बाद 2005 में मेरिट के आधार पर चुनाव हुए थे, जो अगले दो साल तक चले। वर्ष 2007 में उज्जैन में हुए प्रो. सभरवाल कांड के कारण सरकार ने एक बार फिर छात्रसंघ चुनाव पर रोक लगा दी थी। बाद में छात्र संगठनों की मांग पर सरकार ने सत्र 2010-11 और 2011-12 में चुनाव कराए थे। इसके बाद से अभी तक चुनाव नहीं हुए हैं। उल्लेखनीय है कि राज्यमंत्री दीपक जोशी ने छात्र राजनीति से ही प्रदेश स्तरीय राजनीति तक का सफर तय किया है। वे शिक्षा सत्र 1984-85 में हुए छात्रसंघ चुनाव में हमीदिया कॉलेज के अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे। इनका कहना है छात्रसंघ चुनाव को लेकर ड्रॉफ्ट बनाया जा रहा है। अभी प्रोफेसर, छात्र संगठनों से चर्चा कर सलाह मांगी जा रही है। डेढ़ माह का वक्त पूरी तैयारी में लगेगा। फिर भी काफी कुछ तैयार कर लिया गया है। -दीपक जोशी, राज्यमंत्री उच्च शिक्षा विभाग

अब कवरेज क्षेत्र के बाहर नहीं रहेेंगे पुलिस जवान

पीएचक्यू ने जारी किया सिम,आज से आला अधिकारियों के नंबर बदलेंगे
भोपाल। प्रदेश पुलिस के अधिकारी और जवान अब कवरेज क्षेत्र के बाहर नहीं रहेंगे,क्योंकि पीएचक्यू ने इनके लिए शनिवार को आइडिया की सिम जारी किया है। ये सिम जिलों में पुलिस की संख्या के अनुपात से वितरित किए गए हैं। साथ ही उन अधिकारियों के लिए भी 50 हजार सिम जारी किया है जिनके पास पहले से बीएसएनएन के सिम हैं। दरअसल,बीएसएनएल के पुअर नेटवर्क के कारण जब सरकार को यह कदम उठाना पड़ा है। उल्लेखनीय है कि अब तक इंवेस्टिगेशन अफसरों और आला अधिकारियों को ही सरकार की तरफ से सिम दी जाती थीं। अब हर थाने के स्टाफ को सिम देने का प्रयास किया जा रहा है। अब तक खुद के खर्च पर मोबाइल फोन चलाने वाले सिपाहियों के लिए यह राहत भरी खबर है। सरकार की तरफ से बांटी गई सिम में कई प्लान भी रहेंगे, जिसके जरिए कर्मचारी अपनी बात एक-दूसरे तक पहुंचा सकेंगे। इससे आला अफसरों से लेकर अधीनस्थ लगातार संपर्क में रहेंगे। इसका अच्छा प्रभाव भी देखने को मिलेगा। बीएसएनएल के बजाय अब आइडिया की सिम सरकार ने पुलिस अफसरों और जवानों के लिए बीएसएनएल के बजाय अब आइडिया की सिम जारी किया है। इस कारण जिन आला अधिकारियों के पास बीएसएनएल का नंबर है वह रविवार से बदल जाएगा। हालांकि निरीक्षक से लेकर निचले स्तर के पुलिस कर्मचारियों के मोबाइल नंबर में कोई परिवर्तन नहीं होगा। क्योंकि आम आदमी से जुड़े होने के कारण निरीक्षक से लेकर थाने में मौजूद एचसीएम के नंबरों की पोर्टेबिलिटी कराई जा रही है। वहीं पुलिस अफसरों के नए नंबर जल्द ही वेबसाइट पर डालने की तैयारी की जा रही है। इनका कहना है बीएसएनएल कंपनी के नेटवर्क की गड़बड़ी को देखते हुए कंपनी से नाता तोड़ लिया गया है। एक जून से आइडिया की सेवाएं शुरू की जा रही हैं। पिछली सिम जो बीएसएनएल की थीं, उनकी पॉर्टबिलिटी चेंज कर आइडिया में कंवर्ट किया जा रहा है। सभी एक ही सीयूजी (क्लोज्ड यूजर ग्रुप) में जुड़ जाएंगे। शशिकांत शुक्ला, एसपी मुख्यालय, भोपाल ये रहेंगे फायदे - इस सिम का उपयोग करने वाला व्यक्ति कभी मोबाइल बंद नहीं रख सकता। - इस सिम में 300 मैसेज, 12000 सेकंड आइडिया-टू-आइडिया और 33000 सेकंड अदर मोबाइल कॉलिंग फ्री रहेगी। - हर किसी के पास सरकारी नंबर रहेगा। इससे यह तय रहेगा कि उस जिम्मेदारी को निर्वाह करने वाला व्यक्ति बदल सकता है, लेकिन नंबर नहीं। - हर पुलिसकर्मी को सुविधा मिलेगी और वह भी सरकारी खर्च पर। - 200 एमबी इंटरनेट डाटा भी मिलेगा, जिससे वे फोटो या वीडियो बनाकर ग्रुप पर डाल सकते हैं। - अपने जिले के वॉट्स-ऐप ग्रुप पर एक साथ जुड़ सकेंगे। ये रहते हैं नुकसान - इसमें हर किसी कर्मचारी या टीआई का रिकॉर्ड चेक किया जा सकता है। उसकी रिकॉंिर्डंग भी कराई जा सकती है। इससे निजी बातें भी सामने आ सकती हैं। - नाइट गश्त करने वाले पुलिसकर्मी को भी सरकारी सिम पर आया फोन उठाना पड़ेगा। - एक लिमिट तक इसमें फोन कॉलिंग और मैसेज फ्री है, लेकिन उसके बाद चार्ज लगेगा। - पहले से दो-दो मोबाइल धारक पुलिसकर्मियों को अब तीसरा मोबाइल भी रखना पड़ेगा। - मोबाइल पर झूठ बोलने वाले व्यक्ति की लोकेशन भी ट्रेस हो सकती है। यदि वह अपनी लोकेशन गलत बता रहा है तो।

नदियों के घाट पर लगेंगे बायोमैट्रिक टॉयलेट्स

नर्मदा, सोन, सिंध, चंबल, बेतवा, केन, धसान, तवा, ताप्ती, शिप्रा, काली सिंध,मंदाकिनी का होगा सर्वे
भोपाल। प्रदेश में बहने वाली नदियों के किनारे घाटों पर अत्याधुनिक बायोमैट्रिक टॉयलेट्स लगाए जाएंगे। मर्यादा अभियान अंतर्गत होने वाले इस कार्य के लिए जल्द ही नर्मदा, सोन, सिंध, चंबल, बेतवा, केन, धसान, तवा, ताप्ती, शिप्रा, काली सिंध,मंदाकिनी के घाटों का सर्वे होगा। सर्वे की जिम्मेदारी जिला प्रशासन को सौंपी जाएगी। फिलहाल बायोमैट्रिक टॉयलेट्स लगाने की शुरूआत नर्मदा किनारे स्थित पवित्र स्थल महेश्वर-मंडलेश्वर के घाटों से होगी। पर्यावरण प्रेमियों और नदियों में आस्था रखने वालों के लिए यह अच्छी खबर है। घाटों पर गंदगी और मल निकासी के पानी का नदियों में अनवरत मिलने का सिलसिला थम सकता है। उल्लेखनीय है कि पवित्र स्थलों के घाटों पर सामान्य टॉयलेट अथवा किनारों का लोग उपयोग मल त्यागने में करते हैं। मानव मल सहित गंदा पानी सीधे नदी जल में मिल रहा है। इससे नदियों में प्रदूषण बढऩे के साथ आस्था आहत हो रही है। अब इस पर अंकुश लगाने के लिए इस दिशा में सरकार ने बड़ा कदम उठाने का निर्णय लिया है। इस प्रक्रिया में महेश्वर व मंडलेश्वर के नर्मदा घाटों पर अत्याधुनिक बायोमैट्रिक टॉयलेट्स स्थापित करने की कवायद शुरू हो गई है। बकायदा इस काम के लिए विशेषज्ञों ने क्षेत्र का भ्रमण भी कर लिया है।
रक्षा मंत्रालय के तकनीकी विशेषज्ञ तैयार करेंगे रिपोर्ट प्रदेश की नदियों के घाटों पर बायोमैट्रिक टॉयलेट्स लगाने के लिए जबलपुर स्थित रक्षा मंत्रालय यूनिट अंतर्गत डीआरडीओ के तकनीकी विशेषज्ञ सर्वे कर रिपोर्ट तैयार करेंगे। यह रिपोर्ट सरकार के माध्यम से जिला प्रशासन को सौंप दी जाएगी। जिला प्रशासन उसके अनुसार कार्य करवाएगा। डीआरडीओ के तकनीकी विशेषज्ञ जगराज उपाध्याय ने महेश्वर व मंडलेश्वर के घाटों का दौरा कर जिला प्रशासन को अनुकूल स्थान बताकर प्रोजेक्ट रिपोर्ट सौंप दी। अब आगामी दिनों में डीआरडीओ के तकनीकी विशेषज्ञ अन्य नदियों के घाटों का दौरा करेंगे।
प्रत्येक घाट पर 4 यूनिट होगी स्थापित इस प्रक्रिया में प्रत्येक घाट पर चार यूनिट स्थापित की जाएगी। प्रत्येक यूनिट में 6 सीट उपलब्ध होगी। इसके निर्माण की लागत लगभग 1 लाख 20 हजार प्रति यूनिट है। यह प्रदेश का पहला प्रयोग होगा। उपाध्याय ने बताया कि इन टॉयलेट में मानव मल के साथ निर्धारित बैक्टीरिया छोड़े जाते हैं जो मानव मल को नष्ट कर देते हैं। यहां से मिथेन गैस के रूप में अशुद्धि बाहर हो जाती है और शेष पानी लगभग 98 प्रतिशत शुद्ध हो जाता है। यह पानी मवेशियों के पेयजल उपयोग के साथ ही हार्टिकल्चर व अन्य उपयोग में लिया जा सकता है। वैज्ञानिकों का दावा है कि यदि यह पानी सीधे नदियों में भी मिल जाता है तो प्रदूषण का खतरा नगण्य रहता है। उल्लेखनीय है कि इन दिनों नर्मदा प्रदूषण को लेकर विशेषज्ञों की चिंता बढ़ रही है।
शीघ्र स्थापित करेंगे नदियों को प्रदूषण से बचाने के लिए यह प्रभावी प्रयास है। नदियों को प्रदूषण से बचाने के लिए सभी को जागरूक करना प्राथमिकता है। बायोमैट्रिक टॉयलेट्स की सुविधा इस दिशा में पहल है। प्रयास किए जा रहे हैं कि इन्हें शीघ्र स्थापित करवाया जाए।
-रजनीश वैश,उपाध्यक्ष एनवीडीए

रविवार, 4 मई 2014

मप्र के 42 जिलों में अकाल की दस्तक

फसलों की बर्बादी के बाद अब सूखे की संभावना
भोपाल। फरवरी-मार्च में हुई बारिश और ओलावृष्टि से 30,000 गांवों के किसान तबाह हुई फसलों का मातम अभी ठीक से मना भी नहीं पाए हैं कि मप्र में सूखे ने दस्तक देनी शुरू कर दी है। इससे प्रदेश के करीब 42 जिलों में अकाल-सी स्थिति निर्मित होने के आसार हैं।
मप्र स्टेट ग्राउंड वॉटर सर्वे डिपार्टमेंट के अनुसार, लगातार दोहन के कारण दिनों दिन भूजल स्तर गिर रहा है। जैसे-जैसे पारा ऊपर चढ़ रहा है। वैसे ही भूजल स्तर तेजी से पालात की ओर जाने लगा है। इस साल अभी तक कुछ जिलों में जलस्तर 45 से 62 मीटर तक नीचे खिसक चुका है। भूजल स्तर इसी तेजी से गिरता रहा तो गर्मी के मई-जून माह में लोगों को गंभीर पेयजल संकट से जूझना पड़ सकता है। जिन जिलों में तेजी से भूजल स्तर गिर रहा है उनमें रीवा, सतना, सीधी, सिंगरौली, शहडोल, अनूपपुर, उमरिया, डिंडौरी, जबलपुर, कटनी, छिंदवाड़ा,बालाघाट, नरसिंहपुर, मंडला, सागर, पन्ना, टीकमगढ, छतरपुर, रायसेन, विदिशा, दमोह, सिहोर, ग्वालियर, गुना, अशोकनगर, शिवपुरी, दतिया, भिंड, मुरैना,श्योपुर,इंदौर,धार, मंदसौर,उज्जैन शाजापुर, देवास, रतलाम, खंडवा, बुरहानपुर, बडवानी, झाबुआ और अलीराजपुर जिले हैं। ये जिले इस बार सूखे की चपेट में आ सकते हैं।
70 मीटर की लेयर निर्भर भूजल स्तर की पहली लेयर 35 मीटर की होती है। जिसका पानी अब खत्म हो चुका है। वर्तमान में 70 मीटर वाली दूसरी लेयर का पानी हैंडपंपों और नलकूपों के माध्यम से मिल रहा है। गर्मी के दिनों में ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को पेयजल संकट का समाना करना पड़ सकता है।
52 फीसदी कुओं में भूजल स्तर गिरा केंद्रीय भूमि जल बोर्ड की ताजा रिपोर्ट ने मध्यप्रदेश सहित सभी राज्यों की भूजल का गिरता स्तर ने सबको अवाक कर दिया है। केंद्रीय भूमि जल बोर्ड के अनुसार मध्यप्रदेश के 1031 विशेषित कुओं में से 612 कुओं में भूजल का स्तर गिरा है। चौकाने वाले रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि 2.13 मीटर प्रति वर्ष की दर से सूबे के कुओं में भूजल का स्तर में गिरावट हो रहा है।
46 हजार जल स्त्रोत सूखे
केंद्रीय भूमि जल बोर्ड के अनुसार,प्रदेश में जल संकट गंभीर रूप ले चुका है क्योंकि यहां भू जल स्तर 35 से 50 मीटर नीचे तक चला गया है। हाल यह है कि प्रदेश के 46,689 जल स्त्रोत सूख गए हैं। सबसे ज्यादा जल स्तर 50 मीटर सीहार जिले में नीचे गया है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में 46,689 जल स्त्रोत सूख चुके हैं। इनमें 46094 हैंडपंप और 595 लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के कुएं भी शामिल हैं। भिंड जिले को छोड़कर प्रदेश का एक भी जिला ऐसा नहीं है जहां जल स्त्रोत न सूखे हों। इंदौर का जल स्त्रोत सूखने के मामले में सबसे बुरा हाल है जहां 3662 हैंडपंपों ने पानी देना बंद कर दिया है। इसी तरह उज्जैन में 3113, रतलाम में 3091, देवास में 3038 जल स्त्रोत सूख गए हैं। केंद्रीय जल संसाधन विभाग के भू जल बोर्ड द्वारा तैयार किए गए आंकड़ों के आधार पर प्रदेश में टीकमगढ़ को छोड़कर हर जिले में भूजल स्तर नीचे चला गया है और भिंड के अलावा सभी जिलों में जल स्त्रोत सूखे हैं। उधर,मप्र में जमीन के भीतर का पानी और नीचे पहुंचने से सरकार के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच गई हैं। मप्र स्टेट ग्राउंड वॉटर सर्वे डिपार्टमेंट के अनुसार,इस बार सूखे का असर सबसे ज्यादा मालवा अंचल के जिलों पर पड़ेगा। विभाग की इस रिपोर्ट से प्रदेश में जहां सूखे की आशंका बढ़ गई है। वहीं सरकारी महकमे में इस बात पर चर्चा भी तेज हो गई है कि ऐसे में भूजल दोहन को कैसे रोका जाए। ओवर एक्साप्लाटेड एरिया (सबसे ज्यादा प्रभावित) में इंदौर, उज्जैन और ग्वालियर संभाग के जिले शामिल हैं। रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है, इन संभागों के रहवासियों की भूजल पर निर्भरता अधिक है। अधिकारियों की माने तो इन जिलों में अन्य जल स्त्रोतों के उपयोग को बढ़ाने के भी सुझाव विभाग ने दिए हैं। इस रिपोर्ट के जारी होने के बाद पानी को लेकर सरकार की मुश्किलें और बढ़ती दिखाई दे रही है। मालवा में बीते पांच सालों से गिरते जल स्तर को देखते हुए विभाग ने भीषण सूखे की आंशका जाहिर की है।
मप्र स्टेट ग्राउंड वॉटर सर्वे डिपार्टमेंट के अनुसार प्रदेश के दस जिलों के 24 ब्लॉकों को ओवर एक्सप्लावटेड एरिया घोषित किया गया है। अर्थात यहां भूजल का दोहन अत्यधिक खतरनाक स्तर को भी पार कर गया है। इसके अलावा चार ब्लॉकों को क्रिटिकल घोषित किया गया है। जबकि वर्ष 2009 की तुलना में सेमी क्रिटिकल ब्लॉकों की संख्या में 6 का इजाफा हो गया है। वर्तमान में प्रदेश में सेमी क्रिटिकल ब्लॉकों की संख्या 61 से बढ़कर 67 पहुंच गई है। भूजल स्तर की सबसे खराब स्थिति मालवां क्षेत्र की आंकी गई है। ओवर एक्सप्लावटेड एरिया में मालवां क्षेत्र के 22 ब्लॉक शामिल है। प्रभावित जिलों में इंदौर, देवास, धार, मंदसौर रतलाम, सीहोर, शाजापुर, बड़वानी के साथ उज्जैन नाम आता है।
सेमी क्रिटिकल ब्लॉकों की बढ़ी संख्या रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में सेमी क्रिटिकल ब्लॉकों की संख्या में इजाफा हो गया है। वर्तमान में ऐसे की ब्लॉकों की संख्या 67 है, इसमें राजपुर, थिकरी, बैतूल, बैरसिया, फंदा, बुरहानपुर, बक्सवाह, छतरपुर, नौगांव, राजनगर, छिंदवाड़ा, हटा, पथरिया, दतिया, खातेंगांव, मनावर, त्रिरला, गुना, महू, मोरार, शाहपुरा, बड़वाह, खरगोन, महेश्वर, छिगांव माखन, भानपुरा, मल्हारगढ़, कैलारस, मरैना, पोरसा, सबलगढ़, जवा, नीमच, छनवार पाठा, गोटेगांव, करेली, अजयगढ़, ब्यावरा, खिलचीपुर, नरसिंहगढ़, सारंगपुर, सैलना, गंगेव, सिरमौर, मैहर, नागौद, बंडा, सागर, आष्ठा, सीहोर, बरौद, कालापीपल, शाजापुर, बदरवास, करेरा, कन्हैयाधाना, नरवार, पिछोर, सीधी, बलदेवगढ़, जतारा, निवाड़ी, पलेरा, टीकमगढ़, खचरोद, महीदपुर शामिल है। क्रिटिकल ब्लॉक में नरसिंहपुर, अमरपाटन, सोहावल, आगर का नाम शामिल है।
करोड़ों खर्च, नहीं बढ़ा जल स्तर मध्यप्रदेश सरकार ने भू जल स्तर को बढ़ाने के लिए करोड़ों रूपए की लागत से भू-जल स्तर को बढ़ाने के लिए वाटर सेट योजना ग्रामीण क्षेत्रों में लागू की थी। जिसके तहत हरियाली परियोजना के नाम से इस योजना को ग्रामीण क्षेत्र में लागू किया गया। जिसमें उन स्थानों का चयन किया गया था। जिन किसानों के खेतों में सिंचाई के साधन नहीं है उन स्थानों का भू-जल स्तर तेजी से नीचे जा रहा है।हरियाली परियोजना में जल स्तर ऊपर लाने के लिए छोटे-छोटे चेक डेम एंव नदी, नालों पर स्टाप डेम बनाकर पानी को रोका जाने का काम किया जाता है। पांच वर्ष में भूमि का जल स्तर ऊपर उठाने के लिए हरियाली परियोजना के माध्यम से करोड़ों रूपए खर्च किए जा चुके है। लेकिन जल स्तर नहीं बढ़ सका। हरियाली परियोजना ने किए जल स्तर बढ़ाने के सारे कार्य मात्र एक औपचारिकता बनकर रह गए है। जिन नालों पर चेक डेम और स्टाप डेमों का निर्माण किया गया। उन डेमो में विगत पांच वर्षो से पानी रूका ही नहीं है क्योंकि इन डेमों में पानी रोकने वाले गेटों को लगाया ही नहीं गया। इसके कारण सारा पानी व्यर्थ बहजाता है। जिससे लाखों की लागत से बने स्टाप डेमों का फायदा किसानों को नहीं मिल पा रहा है।
बांधों में कैद हुआ पानी मप्र में हर साल गर्मी में गहराते जल संकट के पीछे नदियों पर बनने वाले बांध और डैम हैं। नर्मदा, सोन, सिन्ध, चम्बल, बेतवा, केन, धसान, तवा, ताप्ती, शिप्रा, काली सिंध आदि नदियों का पानी मैदानी इलाकों में पहुंचने की बजाय बांध और डैम में कैद होकर रह जाता है। एक अनुमान के अनुसार बाणसागर, मणीखेड़ा,कोलार, केरवा,बरगी, तवा,संजय सरोवर,इंदिरा सागर, ओंकारेश्वर,सरदार सरोवर,बरना,भीमगढ़,गांधीसागर,हलाली,हरसी,बांध,महेश्वर,राजघाट,तिघरा आदि बांध और डैम ऐसे हैं जिनमें मप्र का एक तिहाई पानी कैद रहता है। बरसात में तो ये सब लबालब हो जाते हैं,लेकिन गर्मी में इनका पानी एक सीमित क्षेत्र में ही जमा रहता है। जिसके कारण नदियों के माध्यम से मैदानी इलाकों में पानी पहुंच नहीं पाता है और वहां जल स्तर दिन पर दिन नीचे सरकता जा रहा है।
नहीं बिगडग़ी स्थिति...1402 परियोजना पूरी उधर, जल संसाधन मंत्री जयंत मलैया का कहना है कि बीते 5 साल में प्रदेश में 1402 लघु सिंचाई परियोजना पूरी की गई हैं। 6,662 करोड़ लागत की इन परियोजनाओं से 4 लाख 83 हजार 424 हेक्टेयर में सिंचाई सुविधा उपलब्ध हुई है। किसानों के खेतों के लिए पर्याप्त पानी मिलेगा। वह बताते हैं कि फिलहाल प्रदेश में 701 लघु सिंचाई परियोजना का निर्माण कार्य चल रहा है। इनमें से 300 जून तक पूरी कर ली जाएंगी। जल संसाधन मंत्री ने बताया कि आगामी पांच साल में 40 लाख हेक्टेयर में सिंचाई सुविधा मुहैया करवाने के लक्ष्य को पाने के लिए सुनियोजित प्रयास किए जा रहे हैं। बालाघाट जिले में बेनगंगा परियोजना में केनाल लाइनिंग का काम शुरू कर दिया गया है। राजगढ़ जिले की मोहनपुर योजना का काम जल्द शुरू हो जाएगा। टीकमगढ़ जिले की बानसुजरा परियोजना पर भी काम शुरू हो गया है। इन परियोजनाओं में स्प्रिंकलर आधारित सूक्ष्म सिंचाई क्षेत्र को बढ़ाया जाएगा। इसी तरह रीवा के बाणसागर में त्योंथर फ्लो परियोजना पर काम शुरू किया गया है, जिससे 40 हजार हेक्टेयर में सिंचाई सुविधा उपलब्ध होगी। राजगढ़ की कुंडलिया परियोजना का काम हाथ में लिया जा रहा है। देवास की दतुनी परियोजना मंजूर की गई है। धार में उरीबाग, पन्ना में रूंझ, मिडासान, पवई तथा मझगांव परियोजनाएं भी स्वीकृत की गई हैं। सागर में 60 हजार हेक्टेयर सिंचाई क्षमता वाली बीना परियोजना तथा दमोह में 15 हजार हेक्टेयर क्षमता की पंचमनगर परियोजना को भी मंजूरी दी गई है। जल संसाधन मंत्री के अनुसार विदिशा-गंजबासौदा में संजयसागर बाह्य, सगड़, बघर्रु तथा राजगढ़ में कुशलपुर मध्यम परियोजना पूरी की गई है। बालाघाट जिले में बावनथड़ी (राजीव सागर), छतरपुर जिले में बरियापुर तथा धार जिले में माही परियोजना का बांध कार्य पूरा किया गया है। इनकी नहरों का काम जारी है।