शनिवार, 31 मई 2014

प्रोफेसर तय करेंगे छात्र चुनाव लड़ेगा या नहीं !

उच्च शिक्षा विभाग तैयार कर रहा नया ड्रॉफ्ट
भोपाल। छात्र संगठनों के बढ़ते दबाव के कारण इस बार सरकार ने छात्रसंघ चुनाव कराने की तैयारी शुरू कर दी है। छात्रसंघ चुनाव इस बार प्रत्यक्ष प्रणाली से होंगे। यानि छात्र अपने प्रतिनिधि को सीधे वोट देकर चुनेंगे। अभी तक मेरिट होल्डर ही प्रतिनिधित्व करने के लिए पात्र थे। चुनाव का नया ड्रॉफ्ट उच्च शिक्षा विभाग तैयार कर रहा है। इसमें चुनाव लडऩे के लिए छात्र पात्र हैं या नहीं यह कॉलेज के प्रोफेसर तय करेंगे। उनकी मंजूरी के बिना चुनाव में उम्मीदवारी नहीं हो पाएगी। छात्र संघ चुनाव को लेकर तैयार हो रहे ड्रॉफ्ट में यह विशेष नियम जोड़ा जा रहा है। अनुशासन का हवाला देते हुए सरकार हर कॉलेज में तीन प्रोफेसरों की एक कमेटी गठित करेगी। जो छात्र की उम्मीदवारी को लेकर पात्रता तय करेंगे। यदि कमेटी ने छात्र को चुनाव के लिए अपात्र करार दिया तो वह चुनाव नहीं लड़ पाएगा। विभाग आपराधिक प्रवृत्ति के छात्रों को भी चुनाव से दूर रखने का प्रयास कर रहा है। वहीं चुनाव लडऩे के लिए न्यूनतम 50 फीसदी अंक से अंतिम परीक्षा उत्तीर्ण करना अनिवार्य किया गया है। यदि छात्र खेल, सांस्कृतिक या साहित्यिक, एनसीसी, एनएसएस गतिविधियों से जुड़ा है तो उसके 50 फीसदी से परीक्षा में कम अंक है तो निर्धारित प्रमाणपत्रों के लिए उसे अतिरिक्त अंक का भी लाभ दिया जाएगा। प्रचार के तीन दिन उच्च शिक्षा विभाग एडमिशन के साथ ही चुनाव कराने की मंशा बना रहा है। राज्यमंत्री दीपक जोशी के अनुसार- नए ड्रॉफ्ट में हम चाहते हैं कि हफ्ते भर के भीतर छात्रसंघ चुनाव हो जाए। इसके लिए एडमिशन खत्म होने के बाद ही वोटर लिस्ट कॉलेज में लगाई जाएगी। नामांकन भरने और वापस लेने के लिए समय दिया जाएगा। इसके बाद तीन दिन प्रचार के लिए समय दिया जाएगा। प्रत्याशी प्रचार के लिए होर्डिंग, बैनर का उपयोग नहीं करेगा। कॉलेज की दीवारों को भी प्रचार में इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा। छात्र कर सकता है अपील तीन प्रोफेसर यदि किसी छात्र को चुनाव के लिए अयोग्य करार देते हैं और छात्र को लगता है कि निर्णय गलत है तो वह इसकी अपील कर कर सकता है। प्राचार्य अथवा अधिष्ठाता छात्र कल्याण के पास वह अपील करने का अधिकारी होगा। 3 साल बाद जागी उम्मीद मप्र में प्रत्यक्ष प्रणाली से छात्रसंघ चुनाव 1987 के बाद से बंद हो गए थे। इसके बाद 1994 तक यह चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से आयोजित किए जाते रहे। वर्ष 2003 में तत्कालीन दिग्विजय सरकार ने चुनाव के दौरान होने वाली हिंसा को देखते हुए इस पर प्रतिबंध लगा दिया था। इस प्रतिबंध के बाद 2005 में मेरिट के आधार पर चुनाव हुए थे, जो अगले दो साल तक चले। वर्ष 2007 में उज्जैन में हुए प्रो. सभरवाल कांड के कारण सरकार ने एक बार फिर छात्रसंघ चुनाव पर रोक लगा दी थी। बाद में छात्र संगठनों की मांग पर सरकार ने सत्र 2010-11 और 2011-12 में चुनाव कराए थे। इसके बाद से अभी तक चुनाव नहीं हुए हैं। उल्लेखनीय है कि राज्यमंत्री दीपक जोशी ने छात्र राजनीति से ही प्रदेश स्तरीय राजनीति तक का सफर तय किया है। वे शिक्षा सत्र 1984-85 में हुए छात्रसंघ चुनाव में हमीदिया कॉलेज के अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे। इनका कहना है छात्रसंघ चुनाव को लेकर ड्रॉफ्ट बनाया जा रहा है। अभी प्रोफेसर, छात्र संगठनों से चर्चा कर सलाह मांगी जा रही है। डेढ़ माह का वक्त पूरी तैयारी में लगेगा। फिर भी काफी कुछ तैयार कर लिया गया है। -दीपक जोशी, राज्यमंत्री उच्च शिक्षा विभाग

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