रविवार, 4 मई 2014

मप्र के 42 जिलों में अकाल की दस्तक

फसलों की बर्बादी के बाद अब सूखे की संभावना
भोपाल। फरवरी-मार्च में हुई बारिश और ओलावृष्टि से 30,000 गांवों के किसान तबाह हुई फसलों का मातम अभी ठीक से मना भी नहीं पाए हैं कि मप्र में सूखे ने दस्तक देनी शुरू कर दी है। इससे प्रदेश के करीब 42 जिलों में अकाल-सी स्थिति निर्मित होने के आसार हैं।
मप्र स्टेट ग्राउंड वॉटर सर्वे डिपार्टमेंट के अनुसार, लगातार दोहन के कारण दिनों दिन भूजल स्तर गिर रहा है। जैसे-जैसे पारा ऊपर चढ़ रहा है। वैसे ही भूजल स्तर तेजी से पालात की ओर जाने लगा है। इस साल अभी तक कुछ जिलों में जलस्तर 45 से 62 मीटर तक नीचे खिसक चुका है। भूजल स्तर इसी तेजी से गिरता रहा तो गर्मी के मई-जून माह में लोगों को गंभीर पेयजल संकट से जूझना पड़ सकता है। जिन जिलों में तेजी से भूजल स्तर गिर रहा है उनमें रीवा, सतना, सीधी, सिंगरौली, शहडोल, अनूपपुर, उमरिया, डिंडौरी, जबलपुर, कटनी, छिंदवाड़ा,बालाघाट, नरसिंहपुर, मंडला, सागर, पन्ना, टीकमगढ, छतरपुर, रायसेन, विदिशा, दमोह, सिहोर, ग्वालियर, गुना, अशोकनगर, शिवपुरी, दतिया, भिंड, मुरैना,श्योपुर,इंदौर,धार, मंदसौर,उज्जैन शाजापुर, देवास, रतलाम, खंडवा, बुरहानपुर, बडवानी, झाबुआ और अलीराजपुर जिले हैं। ये जिले इस बार सूखे की चपेट में आ सकते हैं।
70 मीटर की लेयर निर्भर भूजल स्तर की पहली लेयर 35 मीटर की होती है। जिसका पानी अब खत्म हो चुका है। वर्तमान में 70 मीटर वाली दूसरी लेयर का पानी हैंडपंपों और नलकूपों के माध्यम से मिल रहा है। गर्मी के दिनों में ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को पेयजल संकट का समाना करना पड़ सकता है।
52 फीसदी कुओं में भूजल स्तर गिरा केंद्रीय भूमि जल बोर्ड की ताजा रिपोर्ट ने मध्यप्रदेश सहित सभी राज्यों की भूजल का गिरता स्तर ने सबको अवाक कर दिया है। केंद्रीय भूमि जल बोर्ड के अनुसार मध्यप्रदेश के 1031 विशेषित कुओं में से 612 कुओं में भूजल का स्तर गिरा है। चौकाने वाले रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि 2.13 मीटर प्रति वर्ष की दर से सूबे के कुओं में भूजल का स्तर में गिरावट हो रहा है।
46 हजार जल स्त्रोत सूखे
केंद्रीय भूमि जल बोर्ड के अनुसार,प्रदेश में जल संकट गंभीर रूप ले चुका है क्योंकि यहां भू जल स्तर 35 से 50 मीटर नीचे तक चला गया है। हाल यह है कि प्रदेश के 46,689 जल स्त्रोत सूख गए हैं। सबसे ज्यादा जल स्तर 50 मीटर सीहार जिले में नीचे गया है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में 46,689 जल स्त्रोत सूख चुके हैं। इनमें 46094 हैंडपंप और 595 लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के कुएं भी शामिल हैं। भिंड जिले को छोड़कर प्रदेश का एक भी जिला ऐसा नहीं है जहां जल स्त्रोत न सूखे हों। इंदौर का जल स्त्रोत सूखने के मामले में सबसे बुरा हाल है जहां 3662 हैंडपंपों ने पानी देना बंद कर दिया है। इसी तरह उज्जैन में 3113, रतलाम में 3091, देवास में 3038 जल स्त्रोत सूख गए हैं। केंद्रीय जल संसाधन विभाग के भू जल बोर्ड द्वारा तैयार किए गए आंकड़ों के आधार पर प्रदेश में टीकमगढ़ को छोड़कर हर जिले में भूजल स्तर नीचे चला गया है और भिंड के अलावा सभी जिलों में जल स्त्रोत सूखे हैं। उधर,मप्र में जमीन के भीतर का पानी और नीचे पहुंचने से सरकार के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच गई हैं। मप्र स्टेट ग्राउंड वॉटर सर्वे डिपार्टमेंट के अनुसार,इस बार सूखे का असर सबसे ज्यादा मालवा अंचल के जिलों पर पड़ेगा। विभाग की इस रिपोर्ट से प्रदेश में जहां सूखे की आशंका बढ़ गई है। वहीं सरकारी महकमे में इस बात पर चर्चा भी तेज हो गई है कि ऐसे में भूजल दोहन को कैसे रोका जाए। ओवर एक्साप्लाटेड एरिया (सबसे ज्यादा प्रभावित) में इंदौर, उज्जैन और ग्वालियर संभाग के जिले शामिल हैं। रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है, इन संभागों के रहवासियों की भूजल पर निर्भरता अधिक है। अधिकारियों की माने तो इन जिलों में अन्य जल स्त्रोतों के उपयोग को बढ़ाने के भी सुझाव विभाग ने दिए हैं। इस रिपोर्ट के जारी होने के बाद पानी को लेकर सरकार की मुश्किलें और बढ़ती दिखाई दे रही है। मालवा में बीते पांच सालों से गिरते जल स्तर को देखते हुए विभाग ने भीषण सूखे की आंशका जाहिर की है।
मप्र स्टेट ग्राउंड वॉटर सर्वे डिपार्टमेंट के अनुसार प्रदेश के दस जिलों के 24 ब्लॉकों को ओवर एक्सप्लावटेड एरिया घोषित किया गया है। अर्थात यहां भूजल का दोहन अत्यधिक खतरनाक स्तर को भी पार कर गया है। इसके अलावा चार ब्लॉकों को क्रिटिकल घोषित किया गया है। जबकि वर्ष 2009 की तुलना में सेमी क्रिटिकल ब्लॉकों की संख्या में 6 का इजाफा हो गया है। वर्तमान में प्रदेश में सेमी क्रिटिकल ब्लॉकों की संख्या 61 से बढ़कर 67 पहुंच गई है। भूजल स्तर की सबसे खराब स्थिति मालवां क्षेत्र की आंकी गई है। ओवर एक्सप्लावटेड एरिया में मालवां क्षेत्र के 22 ब्लॉक शामिल है। प्रभावित जिलों में इंदौर, देवास, धार, मंदसौर रतलाम, सीहोर, शाजापुर, बड़वानी के साथ उज्जैन नाम आता है।
सेमी क्रिटिकल ब्लॉकों की बढ़ी संख्या रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में सेमी क्रिटिकल ब्लॉकों की संख्या में इजाफा हो गया है। वर्तमान में ऐसे की ब्लॉकों की संख्या 67 है, इसमें राजपुर, थिकरी, बैतूल, बैरसिया, फंदा, बुरहानपुर, बक्सवाह, छतरपुर, नौगांव, राजनगर, छिंदवाड़ा, हटा, पथरिया, दतिया, खातेंगांव, मनावर, त्रिरला, गुना, महू, मोरार, शाहपुरा, बड़वाह, खरगोन, महेश्वर, छिगांव माखन, भानपुरा, मल्हारगढ़, कैलारस, मरैना, पोरसा, सबलगढ़, जवा, नीमच, छनवार पाठा, गोटेगांव, करेली, अजयगढ़, ब्यावरा, खिलचीपुर, नरसिंहगढ़, सारंगपुर, सैलना, गंगेव, सिरमौर, मैहर, नागौद, बंडा, सागर, आष्ठा, सीहोर, बरौद, कालापीपल, शाजापुर, बदरवास, करेरा, कन्हैयाधाना, नरवार, पिछोर, सीधी, बलदेवगढ़, जतारा, निवाड़ी, पलेरा, टीकमगढ़, खचरोद, महीदपुर शामिल है। क्रिटिकल ब्लॉक में नरसिंहपुर, अमरपाटन, सोहावल, आगर का नाम शामिल है।
करोड़ों खर्च, नहीं बढ़ा जल स्तर मध्यप्रदेश सरकार ने भू जल स्तर को बढ़ाने के लिए करोड़ों रूपए की लागत से भू-जल स्तर को बढ़ाने के लिए वाटर सेट योजना ग्रामीण क्षेत्रों में लागू की थी। जिसके तहत हरियाली परियोजना के नाम से इस योजना को ग्रामीण क्षेत्र में लागू किया गया। जिसमें उन स्थानों का चयन किया गया था। जिन किसानों के खेतों में सिंचाई के साधन नहीं है उन स्थानों का भू-जल स्तर तेजी से नीचे जा रहा है।हरियाली परियोजना में जल स्तर ऊपर लाने के लिए छोटे-छोटे चेक डेम एंव नदी, नालों पर स्टाप डेम बनाकर पानी को रोका जाने का काम किया जाता है। पांच वर्ष में भूमि का जल स्तर ऊपर उठाने के लिए हरियाली परियोजना के माध्यम से करोड़ों रूपए खर्च किए जा चुके है। लेकिन जल स्तर नहीं बढ़ सका। हरियाली परियोजना ने किए जल स्तर बढ़ाने के सारे कार्य मात्र एक औपचारिकता बनकर रह गए है। जिन नालों पर चेक डेम और स्टाप डेमों का निर्माण किया गया। उन डेमो में विगत पांच वर्षो से पानी रूका ही नहीं है क्योंकि इन डेमों में पानी रोकने वाले गेटों को लगाया ही नहीं गया। इसके कारण सारा पानी व्यर्थ बहजाता है। जिससे लाखों की लागत से बने स्टाप डेमों का फायदा किसानों को नहीं मिल पा रहा है।
बांधों में कैद हुआ पानी मप्र में हर साल गर्मी में गहराते जल संकट के पीछे नदियों पर बनने वाले बांध और डैम हैं। नर्मदा, सोन, सिन्ध, चम्बल, बेतवा, केन, धसान, तवा, ताप्ती, शिप्रा, काली सिंध आदि नदियों का पानी मैदानी इलाकों में पहुंचने की बजाय बांध और डैम में कैद होकर रह जाता है। एक अनुमान के अनुसार बाणसागर, मणीखेड़ा,कोलार, केरवा,बरगी, तवा,संजय सरोवर,इंदिरा सागर, ओंकारेश्वर,सरदार सरोवर,बरना,भीमगढ़,गांधीसागर,हलाली,हरसी,बांध,महेश्वर,राजघाट,तिघरा आदि बांध और डैम ऐसे हैं जिनमें मप्र का एक तिहाई पानी कैद रहता है। बरसात में तो ये सब लबालब हो जाते हैं,लेकिन गर्मी में इनका पानी एक सीमित क्षेत्र में ही जमा रहता है। जिसके कारण नदियों के माध्यम से मैदानी इलाकों में पानी पहुंच नहीं पाता है और वहां जल स्तर दिन पर दिन नीचे सरकता जा रहा है।
नहीं बिगडग़ी स्थिति...1402 परियोजना पूरी उधर, जल संसाधन मंत्री जयंत मलैया का कहना है कि बीते 5 साल में प्रदेश में 1402 लघु सिंचाई परियोजना पूरी की गई हैं। 6,662 करोड़ लागत की इन परियोजनाओं से 4 लाख 83 हजार 424 हेक्टेयर में सिंचाई सुविधा उपलब्ध हुई है। किसानों के खेतों के लिए पर्याप्त पानी मिलेगा। वह बताते हैं कि फिलहाल प्रदेश में 701 लघु सिंचाई परियोजना का निर्माण कार्य चल रहा है। इनमें से 300 जून तक पूरी कर ली जाएंगी। जल संसाधन मंत्री ने बताया कि आगामी पांच साल में 40 लाख हेक्टेयर में सिंचाई सुविधा मुहैया करवाने के लक्ष्य को पाने के लिए सुनियोजित प्रयास किए जा रहे हैं। बालाघाट जिले में बेनगंगा परियोजना में केनाल लाइनिंग का काम शुरू कर दिया गया है। राजगढ़ जिले की मोहनपुर योजना का काम जल्द शुरू हो जाएगा। टीकमगढ़ जिले की बानसुजरा परियोजना पर भी काम शुरू हो गया है। इन परियोजनाओं में स्प्रिंकलर आधारित सूक्ष्म सिंचाई क्षेत्र को बढ़ाया जाएगा। इसी तरह रीवा के बाणसागर में त्योंथर फ्लो परियोजना पर काम शुरू किया गया है, जिससे 40 हजार हेक्टेयर में सिंचाई सुविधा उपलब्ध होगी। राजगढ़ की कुंडलिया परियोजना का काम हाथ में लिया जा रहा है। देवास की दतुनी परियोजना मंजूर की गई है। धार में उरीबाग, पन्ना में रूंझ, मिडासान, पवई तथा मझगांव परियोजनाएं भी स्वीकृत की गई हैं। सागर में 60 हजार हेक्टेयर सिंचाई क्षमता वाली बीना परियोजना तथा दमोह में 15 हजार हेक्टेयर क्षमता की पंचमनगर परियोजना को भी मंजूरी दी गई है। जल संसाधन मंत्री के अनुसार विदिशा-गंजबासौदा में संजयसागर बाह्य, सगड़, बघर्रु तथा राजगढ़ में कुशलपुर मध्यम परियोजना पूरी की गई है। बालाघाट जिले में बावनथड़ी (राजीव सागर), छतरपुर जिले में बरियापुर तथा धार जिले में माही परियोजना का बांध कार्य पूरा किया गया है। इनकी नहरों का काम जारी है।

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