गुरुवार, 28 अगस्त 2014

शनिवार, 23 अगस्त 2014

22,000 करोड़ की संपत्ति छुपाई नौकरशाहों ने

binod upadhyay/विनोद उपाध्याय
फ्लैग.....2012 के एक पर्चे के आधार पर हुई तहकीकात में हुआ खुलासा
- दिल्ली,मुंबई,चेन्नई ही नहीं सिंगापुर, दुबई में भी कई आईएएस अधिकारियों की अचल संपत्ति
- सबसे अधिक खेती और रियल स्टेट में इंवेस्ट किया अधिकारियां ने
- बड़ी-बड़ी कंपनियों और ठेकों में निवेश किया अवैध कमाई को
- देश में सबसे दबंग, तिकड़बाज, भ्रष्ट और अय्याश हैं मप्र के नौकरशाह
भोपाल। मप्र भले ही 100000 करोड़ के कर्ज में डूबा है...सूबे में हर व्यक्ति 14 हजार का कर्जदार है...44.30 फीसदी आबादी अभी भी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करती है...30.9 फीसदी आबादी भुखमरी की कगार पर है...लेकिन यहां के अफसर मालामाल है। प्रदेश के 309 आईएएस अफसरों में से अधिकांश के पास बेपनाह चल और अचल संपत्ति है। हालांकि हर साल जब प्रदेश के आईएएस अफसर अपनी संपत्ति का ब्यौरा देते हैं तो अपनी अधिकांश नामी और बेनामी संपत्ति को छुपा जाते हैं। इस बार भी 10 अगस्त तक प्रदेश के जिन 281 आईएएस अफसरों ने अपनी संपत्ति का ब्यौरा दिया है और जिन 28 ने नहीं दिया है ये सारे नौकरशाह पिछले कई साल से करीब 22,000 क रोड़ की संपत्ति का विवरण छुपा जाते हैं। इस बात का खुलासा अधिकारियों द्वारा दिए गए संपत्ति विवरण और 2012 के एक पर्चे के आधार पर हुई तहकीकात के बाद हुआ है। इस तहकीकात की रिपोर्ट पीएमओं (प्रधानमंत्री कार्यालय )और केंद्रीय कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग को मिल गई है। दरअसल, वर्ष 2012 के अगस्त महिने में प्रदेश के राज्य मंत्रालय वल्लभ भवन में एक पर्चा वितरित किया गया था। उस पर्चे में मध्यप्रदेश के ज्यादातर नौकरशाहों को अय्याश और महाभ्रष्ट बताया गया था। उसमें सविस्तार अफसरों के नाम भी छापे गए थे। उस पर्चे को कुछ अफसरों ने उसी साल केंद्रीय कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग और पीएमओ को भेज दिया। उस पर्चे के आधार पर वर्ष 2013 में पीएमओ ने जब विभिन्न स्रोतों से इसकी जांच कराई तो यह तथ्य सामने आया कि मप्र के अफसर केंद्र और राज्य सरकार ने विभिन्न योजनाओं के लिए मिलने वाले बजट में जमकर घपलाबाजी कर रहे हैं। इन नौकरशाहों ने अपनी अवैध कमाई का बड़ा हिस्सा खेती,रियल स्टेट, बड़ी-बड़ी कंपनियों और ठेकों में निवेश कर रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार भष्ट अफसरों ने प्रदेश की राजधानी भोपाल, इंदौर, होशंगाबाद, ग्वालियर, जबलपुर में खेती की जमीन तो सतना, कटनी, दमोह,छतरपुर और मुरैना में बिल्डर व खनन माफिया के पास करोड़ों रुपए का निवेश किया है। वहीं प्रदेश के बाहर मुंबई, दिल्ली, गुडग़ांव, हिमाचल प्रदेश, ओडिशा,पंजाब, शिमला, असम, आगरा के साथ ही विदेशों में ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, सिंगापुर, दुबई, मलेशिया, बैंकॉक, कनाडा, लंदन में भी संपत्ति जुटाई है।
कांग्रेस परस्त अफसरों ने तैयार की थी रिपोर्ट
बताया जाता है प्रदेश के नौकरशाह अपनी संपत्ति की घोषणा करने में जिस तरह की कोताही और देरी करते थे, उसको देखते हुए मप्र कैडर के ही कुछ कांग्रेस परस्त अधिकारियों ने करीब 227 आईएएस अधिकारियों की चल और अचल संपत्ति का विवरण तैयार कर 2013 में पीएमओ को दिया था। इस रिपोर्ट में वर्ष 2004 से 2012 के बीच उनकी अवैध कमाई का विवरण है। इस रिपोर्ट को तैयार करवाने में कांग्रेस के कुछ नेताओं का भी हाथ था। पी एमओ के सूत्र बताते हैं कि इस रिपोर्ट का इस्तेमाल विधानसभा और लोकसभा चुनाव में प्रदेश में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने के लिए उदाहरण के तौर पर होना था। लेकिन कांग्रेस के रणनीतिकारों ने यह कह कर इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने से मना कर दिया की इससे नौकरशाही खुलकर कांग्रेस के खिलाफ हो जाएगी और इसके परिणाम पार्टी के लिए गंभीर हो सकते हैं। अब वहीं रिपोर्ट केंद्र की भाजपा सरकार के हाथ लग गई है और वह इसको व्यवस्था सुधार के लिए सबक के तौर पर इस्तेमाल कर रही है।
अब चल संपत्ति का भी देना होगा ब्यौरा
मप्र के नौकरशाहों की कमाई की रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद केंद्र सरकार ने सभी अधिकारियों को अब अपनी चल-संपत्ति का ब्यौरा देने का फरमान जारी कर दिया है। केंद्र सरकार ने इस संबंध में मुख्य सचिव को पत्र लिखकर समय सीमा तय कर दी है। पत्र के मुताबिक अधिकारियों को एक अगस्त से 15 सितंबर के बीच ये ब्यौरा ऑनलाइन देना होगा। इसे प्रशासन में पारदर्शिता लाने की कवायद में अहम पहल माना जा रहा है। अखिल भारतीय सेवा और राज्य सेवा के अधिकारी अभी तक प्रॉपर्टी रिटर्न में अपनी अचल संपत्तियों की जानकारी ही सरकार को देते रहे हैं। माना जा रहा है कि इससे अधिकारियों की मुश्किलें बढ़ेंगी। सरकार के नए निर्देश के अनुसार अब अधिकारियों को नकद राशि, बैंक जमा, शेयर और अन्य निवेश की जानकारी के साथ वाहनों की संख्या और उनकी मौजूदा कीमत भी बतानी होगी। अधिकारियों को सोना, चांदी और हीरे के गहनों की अलग-अलग जानकारी देनी होगी। देनदारियों की जानकारी भी देनी होगी। इसके अलावा पत्नी, बच्चों और अन्य आश्रितों के नाम की संपत्तियों का ब्यौरा भी देना होगा। पुराने कानून में अधिकारियों को अचल संपत्ति का ब्यौरा देना होता था। इसमें भवन और भूखंडों का ब्यौरा और उनकी अनुमानित कीमत शामिल होती थी। वैसे अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों को अचल संपत्ति अर्जित लेने से पहले सरकार से अनुमति भी लेनी होती है। इस तरह का ब्यौरा देना अपेक्षाकृत आसान था।
मप्र के 28 अफसरों ने नहीं दी संपत्ति की जानकारी
प्रदेश के 309 आईएएस अफसरों में से अभी तक 281 ने अपनी संपत्ति की 2013-14 की जानकारी पुराने फॉर्मेट में भेज दी है,जबकि 28 ने अभी तक ब्यौरा नहीं भेजा है। अब इन सभी अधिकारियों को पत्र जारी कर अचल के साथ ही चल संपत्तियों का ब्यौरा देने को कहा गया है। यह जानकारी कार्मिक और प्रशिक्षण आंकड़ा विभाग ने दी है। अचलसंपत्ति का रिटर्न नहीं भरने वालों में सबसे अधिक 58 उत्तर प्रदेश कैडर के हैं। आंध्र प्रदेश के 26, उडीसा और पश्चिम बंगाल के 13-13 नौकरशाहों ने अपनी रिटर्न नहीं दी है। विभाग के अनुसार जम्मू कश्मीर से दस, मणिपुर, त्रिपुरा और अरूणाचल प्रदेश, गोवा, मिजोरम केन्द्र शासित कैडर से सात-सात आईएएस इस श्रेणी में हैं। सिकिकम से पा ंच, हरियाणा, झारखंड, मेघालय, असम, राजस्थान और नगालैंड प्रत्येक से चार-चार, गुजरात, बिहार, तमिलनाडु और उत्तराखंड से निर्धारित समय सीमा के भीतर तीन-तीन अधिकारियों ने ब्यौरा जमा नहीं कराया है। हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र और केरल कै डर के दो-दो अधिकारियों ने यह रिटर्न नहीं दी है। देश में भारतीय प्रशासनिक सेवा के कुल अधिकृत संख्या 6270 हैं जबकि 4619 अधिकारी ही काम कर रहे हैं। इससे पहले के तीन वर्षो के दौरान भी 239 अधिकारियों ने अपनी रिपोर्ट जमा नहीं क राई। इनमें से 152 ने 2012 और 49 ने 2011 की रिपोर्ट नहीं दी है। वर्ष 2010 की अचल संपत्ति रिपोर्ट अभी तक 38 आईएएस नहीं दे पाए हैं।
मप्र इन अधिकारियों ने नहीं दी संपत्ति की जानकारी
1. एसपीएस परिहार (1986)
2. एम मोहन राव (1987)
3. अनुराग जैन (1989)
4. टी. धर्माराव (1989)
5. मुकेश चंद गुप्ता (1998)
6. कामता प्रसाद राही (1998)
7. शशि कर्नावत (1999)
8. संतोष कुमार मिश्रा (1999)
9. श्यामसिंह कुर्मी (2000)
10. चतुर्भुज सिंह (2001)
11. अशोक कुमार भार्गव (2002)
12. सुरेन्द्र के उपाध्याय (2002)
13. एम. सेलवेन्द्रन (2002)
14. निसार अहमद (2003)
15. राजीव शर्मा (2004)
16. रघुराज एम आर (2004)
17. लोकेश कुमार जाटव (2004)
18. अजय सिंह गंगवार (2005)
19. अशोक कुमार वर्मा (2005)
20. शशांक मिश्रा (2007)
21. नागरगोजे मदन विभिषण (2007)
22. शिल्पा गुप्ता (2008)
23. सुफिया फारूकी (2009)
24. अजय गुप्ता (2009)
25. अविनाश लावनिया (2009)
26. कमवीर शर्मा (2010)
27. आशीष सिंह (2010)
28. बी. विजय दत्ता (2011)
दबंग और तिकड़बाज भी हैं मप्र के नौकरशाह
पीएमओं पहुंची रिपोर्ट के अनुसार,मप्र के नौकरशाहों को दबंग, तिक ड़बाज और अय्याश भी बताया गया हैं। रिपोर्ट के अनुसार, अपनी संपत्ति का ब्यौरा देने में मप्र के अफसर सबसे अधिक परेशान करते हैं। मध्यप्रदेश में संपत्ति का ब्यौरा देने में आनाकानी करने वाले आईएएस अफसरों से सरकार तंग आ चुकी है। इतना ही नहीं, जिन अफसरों के ब्यौरे आए भी हैं उनमें लगभग सवा सौ अफसरों का ब्यौरा तय फॉर्मेट में नहीं है या उसमें कुछ गलतियां हैं। सरकार इनकी जांच कर रही है। बताया जा रहा है कि ऐसी स्थिति में सरकार द्वारा संपत्ति का ब्यौरा नहीं देने वाले अफसरों का विजिलेंस क्लीयरेंस या पदोन्नति रोके जाने जैसी कार्रवाई की जा सकती है। लेकिन फिर भी अफसर ब्यौरा देने में लापरवाही बरत रहे हैं। कई अफसरों ने खुद की संपत्ति को 'निलÓ बताया है। इनमें लगभग एक दर्जन बड़े अफसर शामिल हैं। इनके ब्यौरे में मकान का जिक्र भी नहीं किया गया है। इसके पहले भी कई वरिष्ठ अफसर अपनी संपत्ति का ब्यौरा 'निलÓ बताते रहे हैं। अधिकारियों की कारस्तानी को देखते हुए केंद्रीय कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग द्वारा हर अफसर के संपत्ति ब्यौरे का मिलान उनके पिछले साल के ब्यौरे से किया जा रहा है। मालूम हो कि अफसरों को हर साल जनवरी में संपत्ति ब्यौरा देना होता है। ब्यौरा नहीं देने पर कारर्वाइयों का प्रावधान है और केंद्र भी इस दिशा में कड़े निर्देश जारी कर चुका है। लेकिन अक्सर ऐसे मामलों में सरकारें कु छ कर नहीं पातीं।
सरकार की नजर संपत्ति का ब्यौरा न देने वालों पर
मोदी सरकार ने उन नौकरशाहों पर अपनी नजर तिरछी कर दी है जिन्होंने अपनी चल और अचल संपत्तियों का ब्यौरा सरकार के पास जमा नहीं कराया है। डीओपीटी ने अधिकारियों की एक सूची तैयार कर उन्हें जल्द से जल्द अपनी अचल सम्पति का ब्यौरा जमा करने का निर्देश जारी किया है। डीओपीटी के 20 जून को भेजे गए इस पत्र के साथ अधिकारियों के नामों की सूची भी है। साल 2013 के लिए अब तक अचल संपत्ति का ब्यौरा न भरने वाले इन अधिकारियों को हिदायत दी गई है। उनसे कहा गया है कि अगर उन्होंने जल्द से जल्द ऑनलाइन आईपीआर नहीं भरा, तो किसी भी संवेदनशील पद पर उनकी नियुक्ति, इम्पैनलमेंट, प्रमोशन और डेपुटेशन जैसे मामलों में उनकी विजलेंस जांच रोक दी जाएगी। इससे पहले इन अधिकारयों को इस मामले में अब तक पांच बार रिमाइंडर भेजे जा चुके हैं। पीएमओ के एक और अहम निर्देश पर डीओपीटी अब सभी मंत्रालयों में ऐसे अधिकारियों की नियुक्ति करेगा, जिनको सम्बधित मंत्रालय के बारे में पहले से कुछ जानकारी हो। जानकार मानते हैं कि इस आदेश का आशय यह है कि सिर्फ जान-पहचान और जुगाड़ से आईएएस और आईपीएस मलाईदार पद नहीं पा सकेंगे। उधर,एसीसी यानी अपॉइंटमेंट कमेटी ऑफ कैबिनेट ने संपत्ति का ब्यौरा न देने वाले आईएएस और आईपीएस अधिकारियों को महत्वपूर्ण पद न देने की तैयारी की है। इसके लिए प्रदेशों के मुख्य सचिवों को भी जल्द निर्देश भेज दिए जाएंगे।
अफसरों को नहीं पता अपनी हैसियत
केन्द्र और राज्य सेवा के ज्यादातर अफसरों को यह पता नहीं है कि उनकी संपत्ति की मौजूदा बाजार कीमत क्या है? ऊपर से सरकार ने अब उनसे निर्माण लागत की भी जानकारी मांगी है। इससे वे कशमकश में हैं कि क्या करें। इन अफसरों ने पिछले साल जो रिटर्न भरी है, उसमें कुछ ने वर्तमान मूल्य का कॉलम खाली छोड़ दिया तो कुछ ने पता नहीं, लिखा। काफी अफसर ऐसे भी हैं जिन्होंने वर्तमान मूल्य में खरीद मूल्य ही लिखा है। सूत्रों के अनुसार केन्द्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग भी संपत्ति का वर्तमान मूल्य पता करने का मैकेनिज्म खोजने में लगा है। प्रॉपर्टी रिटर्न के लिए केन्द्रीय कार्मिक विभाग ने निर्धारित प्रपत्र में मामूली संशोधन भी किया है। इसमें कहा गया है कि यदि किसी अधिकारी के लिए संपत्ति का वास्तविक मूल्य बताना संभव नहीं हो तो वे अनुमानित कीमत तो लिख ही सकते हैं। इसमें यह भी कहा गया है कि ऑल इंडिया सर्विसेज (कंडक्ट) रूल्स 1968 के नियम 16(2) के तहत प्रत्येक अधिकारी के लिए वार्षिक विवरणी में अचल संपत्ति के बारे में पूरी जानकारी देना अनिवार्य है। भले संपत्ति स्वयं के नाम या परिवार के सदस्य के नाम हो। यह भी बताना होगा कि वह संपत्ति पैतृक, खरीदी, लीज, या रहन रखी हुई है। यह विवरण हर साल देना होगा, संपत्ति की स्थिति में चाहे बदलाव हुआ हो या नहीं। देश के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी एमएल मेहता का मानना है कि अधिकारियों से उनकी संपत्ति का वर्तमान पूछना ही गलत है। वर्तमान मूल्य लिखने से ईमानदार अफसर भी बेईमान नजर आएगा, जबकि सर्वविदित है कि संपत्ति का मूल्य आसपास होने वाले विकास के आधार पर बढ़ता रहता है।
खेती और किराए से भी कमाई
प्रदेश के नौकरशाहों के लिए वेतन के अलावा खेती और मकान किराए इत्यादि इनकी अतिरिक्त कमाई का जरिया है। नौकरशाहों की सम्पत्ति का ब्यौरा देखकर तो यही पता चलता है। सम्पत्ति का ब्यौरा देखकर स्पष्ट होता है कि प्रदेश के नौकरशाह कृषक भी हैं। कई तो करोड़ों की संपत्ति के मालिक हैं। मलाईदार पद पर काबिज रहे अफसर करोड़पति बन चुके हैं, लेकिन इन्होंने सम्पत्ति का खुलासा क रने में बेहद सावधानी बरती है। सभी आईएएस अफसर निवेश के मामले में काफी समझदार हैं और इन्होंने धन को मकान और प्लॉट में निवेश किया है। हालांकि कुछ अफसरों ने अपनी संपत्ति के वतर्मान मूल्य का उल्लेख करने से परहेज किया है।
71 आईएफएस ने छिपाई अपनी संपत्ति
प्रदेश के आईएएस ही नहीं बल्कि 71 आईएफएस अफसरों ने अपनी संपत्ति का खुलासा नहीं किया है। सरकार के निर्देश हैं कि हर कर्मचारी और अधिकारी को अपनी संपत्ति का ब्यौरा प्रत्येक साल उपलब्ध कराना होगा तथा ब्यौरे को विभागीय वेबसाइट पर भी अपलोड किया जाएगा। लेकिन वन महकमे के हरेक अफसर ने ऐसा नहीं किया है। इनमें दो ऐसी महिला अधिकारी हैं जिन्होंने 2012 बैच की होते हुए भी अपनी संपत्ति बताई है। पीसीसीएफ वर्ग के लगभग सभी अधिकारियों ने वर्ष 2014 के लिए अपनी संपत्ति का ब्यौरा दिया है लेकिन जिन एपीसीसीएफ स्तर के अफसरों ने संपत्ति नहीं बताई है उनमें रविन्द्र कुमार सक्सेना, सुरेन्द्र पाल सिंह, अमर सिंह अहलावत, सुहाष कुमार, जीए किन्हाल, रतन पुरवार, एके सपरा, शेषमणि पाण्डेय, एके जैन, एसके पनवार, एके भट्टाचार्य, मंगेश कुमार त्यागी, आरके गुप्ता, टीसी लेहानी, वाई सत्यम और प्रकाशम हैं। मुख्य वन संरक्षक - सीसीएफ स् तर के 17 अधिकारियों में अशोक भाटिया, देवेश कोहली, सुरेन्द्र कुमार सिंह, वीपीएस परिहार, प्रशांत कुमार, अखिलेश अर्गल, राकेश कुमार गुप्ता, अनुराग श्रीवास्तव, सुरेन्द्र सिंह राजपूत, चन्द्रकांत पाटिल, एसडी पटैरिया, एसएस गौर, रमेश कुमार श्रीवास्तव, कमलेश चतुव्रेदी, विजय एम अंबाडे, सागर शर्मा, और शमशेर सिंह प्रापर्टी नहीं बताने की सूची में हैं।
एक दर्जन वन संरक्षक - स्मिता राजारा, विश्वनाथ एस होतगी, बिन्दु शर्मा, बीएस अनिगेरी, एके नागर, सनत कुमार शर्मा, श्रीमती कमलिका मोहन्ता, अजय कुमार यादव, अशोक कुमार जोशी और डीके अग्रवाल, केपी शर्मा, अजयपाल सिंह, पीएस मेश्रम, पीएस चंपावत, विकास कुमार वर्मा, बीबी शर्मा, बीएस बघेल, नाहर सिंह, बिनसेंट रहीम, आरएस कोरी, जेआर वास्कले, एसके सिंह सिंगरौली, एके सिंह बुरहानपुर, अमित कुमार दुबे, देवा प्रसाद जे, एके वंसल, अनुपम सहाय पन्ना हैं। प्रोवेशनल अधिकारियों में रिपुदमन सिंह भदौरिया, रविन्द्र मनि त्रिपाठी, बासु कन्नोजिया और गौरव चौधरी महू हैं। ट्रेनिंग ले रहे 2010 बैच के आईएफएस अफसरों में अनुराग कुमार, देवांशु शेखर, संजय कुमार, विजय सिंह और संध्या भी शामिल हैं।
7 माह में 265 करोड़ की अवैध कमाई का खुलासा
प्रदेश में एक तरफ अधिकारी अपनी संपत्ति का ब्यौरा देने में कतरा रहे हैं, वहीं इस साल जुलाई तक प्रदेश के भ्रष्ट अफसरों की 265 करोड़ की अवैध कमाई लोकायुक्त के छापे में सामने आई है। लोकायुक्त के छापे में अफसरों के घर, बैंक और तिजोरियों ने करोडों की संपत्ति उगली हैं। छापों में करोड़ों के सोने-चांदी के जेवरात, लाखों रुपए की नकदी और अकूत मात्रा में अचल संपत्ति मिली है। यही नहीं अदने से सरकारी कर्मचारियों से लेकर अधिकारियों के घर-परिवार में ऐसे ऐशोआराम-भोगविलासिता के सामान मिले हैं जो शायद अरबपति घरानों के यहां मिलते हैं। इंदौर संभाग के अलग-अलग सरकारी महकमों में भ्रष्टाचार का खुलासा करते हुए लोकायुक्त पुलिस ने पिछले 7 महीने में 46 कारिंदों को रिश्वत लेते रंगे हाथों धर दबोचा। एसपी (लोकायुक्त) वीरेन्द्र सिंह ने बताया, हमने जनवरी से जुलाई के बीच मिली शिकायतों के आधार पर 15 पटवारियों और 9 पुलिसकर्मियों समेत 46 सरकारी कर्मचारियों को रिश्वत लेेते रंगे हाथों गिरफ्तार किया। उन्होंने बताया कि पिछले 7 महीने में लोकायुक्त पुलिस की इंदौर शाखा ने पांच सरकारी कर्मचारियों के ठिकानों पर छापे मारे और उनकी कुल 16 करोड़ रुपए की बेहिसाब संपत्ति का खुलासा किया। सिंह ने बताया कि लोकायुक्त पुलिस की इंदौर शाखा ने जनवरी से जुलाई के बीच भ्रष्टाचार के कुल 68 मामले दर्ज किए। इनमें सरकारी कर्मचारियों के आय के ज्ञात स्त्रोतों से ज्यादा संपत्ति रखने के पांच मामले शामिल हैं।
क्या था 2012 के पर्चे में
वर्ष 2012 में मध्य प्रदेश सहित देशभर के प्रशासनिक हलकों में महिनों तक तहलका मचाने वाले आठ पेज का वह पर्चा एक बार फिर चर्चा का विषय बना हुआ है। क्योंकि इस पर्चे के आधार पर ही प्रदेश के आईएएस अधिकारियों की चल और अचल संपत्ति का आकलन किया गया है। उल्लेखनीय है कि उक्त पर्चे में प्रदेश के 195 आईएएस अफसरों के नाम शामिल थे। इन अफसरों को अलग-अलग पांच श्रेणियों में रखा गया था। पहली श्रेणी ईमानदार अफसरों की, दूसरी श्रेणी भ्रष्ट अफसरों की, तीसरी श्रेणी महाभ्रष्ट अफसरों की, चौथी श्रेणी अय्याश अफसरों की तथा पांचवीं श्रेणी अत्यंत धनी अफसरों की थी। ईमानदार अफसरों की श्रेणी में एक दर्जन अफसर भी जगह नहीं बना पाए थे। जबकि आधा दर्जन से अधिक महिला आईएएस अफसरों को मर्दों की शौकीन करार दिया गया था। बहुत सारे अफसर ऐसे भी है जिन्हें आखिरी की तीन श्रेणियों में जगह दी गई थी।
इन्हें बताया ईमानदार
पर्चे में बताए इमानदार अफसरों में प्रदेश के तात्कालीन मुख्य सचिव आर परशुराम को शामिल किया गया था। इनके अलावा स्नेहलता कुमार, डीके सामंतरे, अजय नाथ, जेएस माथुर, स्नेहलता श्रीवास्तव, सुरंजना रे, वीपी सिंह, विजया श्रीवास्तव, आलोक श्रीवास्तव, एपी श्रीवास्तव, दीपक खांडेकर, एसपीएस परिहार, मनोज झालानी, मनोज गोविल, दीप्ति मुखर्जी, मनोहर अगनानी, रश्मि शमी, मनीष रस्तोगी, एसएस बंसल, कवीन्द्र कियावत और सुनीता त्रिपाठी को रखा गया था। इन अफसरों को पूरी तरह ईमानदार बताया गया था। इनके अलावा कुछ और अफसरों को भी ईमानदार तो करार दिया गया था लेकिन उन्हें साथ में अय्याश भी बताया गया था। इन अफसरों पर साधा निशाना
1978 बैच के एक अफसर को जहां महाभष्ट्र और अय्याश बताया गया था वहीं 1979 बैच के एक अफसर को महाभ्रष्ट, अय्याश और धनकुबेर और एक अन्य को सिर्फ भ्रष्ट करार दिया गया था। इसी तरह 1980 बैच के दो अफसरों को भ्रष्ट तो एक अफसर को महाभ्रष्ट, अय्याश और धनकुबेर बताया गया है। वहीं 1981 बैच के एक अफसर को महाभ्रष्ट और धनकुबेर तो एक अफसर को आखिरी की तीनों श्रेणियों में जगह दी गई थी। इसी बैच की दो महिला अफसरों को मर्दों का शौकीन भी बताया गया था। 1982 बैच के एक दर्जन अफसरों के नाम पर्चे में दर्ज थे। इनमें चार अपसरों को ईमानदार की श्रेणी में रखा गया था और बाकी को अन्य श्रेणियों में जगह दी गई थी। 1983 बैच के एक अफसर को नाम पर्चे में शामिल किया गया था, उन्हें महाभ्रष्ट की श्रेणी में रखा गया था। 1984 बैच के नौ अफसर के नाम पर्चे में शामिल थे। इनमें तीन अफसरों को पूरी तरह ईमानदार और बाकी के छह अफसरों को अलग-अलग श्रेणियों में रखा गया था। इसी तरह, 1985 बैच के दस अफसरों के नाम पर्चे में दर्ज थे। जिनमें से मात्र एक अफसर को पूर्णत: ईमानदार करार दिया गया था। वहीं एक अफसर को ईमानदार तो बताया गया था लेकिन उन्हें अय्याश भी बताया गया था। बाकी के अफसरों को भ्रष्ट, महाभ्रष्ट और धनकुबेर क रार दिया गया था। 1986 बैच के आधा दर्जन अफसरों में से एक अफसर को ईमानदारी का तमगा दिया गया था। बाकी के पांच अफसरों को अलग-अलग श्रेणिया दी गई थी। 1987 बैच के नौ अफसरों को पर्चे में जगह दी गई थी। इस बैच के एक अफसर को ईमानदार और एक अफसर को महाभ्रष्ट, पांच अफसरों को भ्रष्ट बाकी के तीन अफसरों को तीनों श्रेणियों में रखा गया था। 1988 बैच के चार अफसर, 1989 बैच के सात अफसरों, 1990 बैच के नौ अफसरों के नाम भी पर्चे में शामिल थे। वहीं 1991 बैच के दस अफसरों के नाम पर्चे में शामिल थे। इनमें से सिर्फ एक अफसर को ईमानदार अफसर का तमगा दिया गया था। 1992 बैच के 11 अफसर, 1993 बैच के आठ अफसर 1994 बैच के एक दर्जन अफसर, 1995 बैच के एक आधा दर्जन अफसर, 1996 बैच के नौ अफसर, 1997 बैच के आठ अफसर, 1998 बैच के दस अफसर, 1999 बैच के नौ अफसर, 2000 बैच के सोलह अफसर, 2001 बैच के छह अफसर, 2002 और 2003 बैच के एक-एक अफसर और 2004 बैच के छह अफसरों के नाम पर्चे में शामिल कर उन्हें भ्रष्ट, महाभ्रष्ट अय्याश और धनकुबेर की श्रेणी में रखा गया था। प्रदेश की नौ महिला आईएएस अफसरों पर इस पर्चे के माध्यम से गंभीर आरोप लगाए गए थे। उन्हें भ्रष्ट और महाभ्रष्ट की श्रेणी में तो रखा गया ही था, साथ ही उन्हें मर्दों का शौकीन भी बताया गया था। इन महिला अफसरों के बारे में कहा गया था कि इन महिला अफसरों के अपने आला-अफसरों के साथ अंतरंग संबंध हैं। इन महिला अफसरों में से कुछ को ईमानदार तो बताया गया था लेकिन साथ ही उन्हें मर्दखोर भी करार दिया गया था। तीन महिला अफसरों को महाभ्रष्ट और मर्दों का शौकीन, दो महिला अफसरों को भ्रष्ट और मर्दों की शौकीन बताया गया था।
नौकरशाहों के काम करने के लिए तय हुई गाइड लाइन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के विकास के लिए जनता से मिले 60 महीनों का अधिक से अधिक प्रभावी तरीके से इस्तेमाल करना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने नौकरशाहों को अपनी कार्यशैली में ढालना चाहते हैं। मोदी ने अपने वर्किग स्टाइल में ढालने के लिए नौकरशाहों के लिए 11 सूत्रीय निर्देश दिए हैं। कैबिनेट सचिव अजीत सेठ ने वर्किग कल्चर और कार्यालय के वातावरण को और बेहतर करने के लिए वे 11 सूत्र वाले निर्देश सभी केंद्रीय सचिवों और राज्यों के मुख्य सचिवों को भेजा है। पीएम मोदी के 11 निर्देश 1- सबसे पहला निर्देश है सभी कार्यालयों की सफाई। कार्यालयों के गलियारों-सीढियों की साफ-सफाई। इन जगहों पर कार्यालय संबंधी सामाग्री या आलमारी नहीं दिखनी चाहिए। 2- कार्यालयों के अंदर फाइलों और कागजो को व्यवस्थित करके रखा जाए, जिससे काम करने का सकारात्मक माहौल बने। 3- कार्यालयों के साज-सज्जा और उसकी सफाई के संदर्भ में की गई कार्रवाई की रिपोर्ट 6 जून से हर रोज कैबिनेट सचिव के पास पहुंचनी चाहिए। 4- सभी विभागों से कहा गया है कि वे उन 10 नियमों को बताएं या खत्म करें, जो अनावश्यक हैं, जिनका कोई मतलब नहीं है और उनको हटाने से कामकाज पर कोई प्रभाव नहीं पडेगा। 5- सभी विभागों के सचिवों को फॉर्म को छोटा करने का निर्देश दिया गया है। हो सके तो संबंधित विभागों के फॉर्म एक पेज का किया जाए। 6- किसी भी काम पर निर्णय लेने की प्रक्रिया चार चरण से अधिक नहीं होनी चाहिए। 7- काम को लटकाने की प्रवृत्ति खत्म की जाए। किसी भी फाइल या पेपर को तीन से चार सप्ताह के अंदर क्लियर किया जाए। 8- नौकरशाह पावर प्वाईंट प्रजेंटेशन बनाएं, संक्षिप्त व प्रभावी नोट तैयार करें। फाइलों को भारी भरकम बनाने से बचें। 9- सभी सचिवों से 2009-14 के लिए तय किए गए लक्ष्य और उसकी वर्तमान स्थिति के बारे में विश्लेषण करने को कहा गया है। इसकी रिपोर्ट प्रधानमंत्री को दी जाएगी। 10- सभी विभागों को एक टीम की तरह काम करने को कहा गया है। सभी स्तर पर नए विचारों का स्वागत किया जाए। 11- सचिवों से सहयोगपूर्ण निर्णय लेने की प्रक्रिया की आवश्यकता बताई गई है। जैसे अगर कोई विभाग किसी मसले को सुलझा नहीं पाता है तो वे कैबिनेट सचिव या प्रधानमंत्री कार्यालय से संपर्क करें।
निष्पक्षता के लिए नियमावली में संशोधन
नौकरशाह राजनीतिक रूप से निष्पक्ष रहें, किसी के साथ भेदभाव न करें और सिर्फ जनहित में रखकर फैसले लें, यह सुनिश्चित करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बड़ा कदम उठाया है। आइएएस, आइपीएस और भारतीय वन सेवा के अधिकारियों पर लागू वर्ष 1968 में बनी अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियमावली संशोधित हो गई है। इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि वे कर्तव्य पालन के दौरान उच्च आचार नीति और राजनीतिक निष्पक्षता बनाए रखें। नई नियमावली में कहा गया है कि अधिकारियों को जनता के प्रति खासकर कमजोर वर्ग के प्रति जवाबदेह होने की जरूरत है। अधिकारी जनता के साथ नम्र और अच्छा व्यवहार सुनिश्चित करें व केवल जनता के हित और इस्तेमाल को देखते हुए फैसले लें। नियमावली में कहा गया है कि इस सेवा के प्रत्येक सदस्य अपने कर्तव्य पालन के दौरान उच्च आचारनीति, ईमानदारी, राजनीतिक निष्पक्षता, सचाई, जवाबदेही और पारदर्शिता का पालन करेंगे और उत्कृष्टता को बढ़ावा देंगे। व्यक्ति या संस्थान से न लें कोई आर्थिक सहयोग कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने जिस अखिल भारतीय सेवा (आचरण) संशोधन नियमावली, 2014 की अधिसूचना जारी की है उसमें अधिकारियों के लिए यह अनिवार्य बना दिया गया है कि उनके कर्तव्य निर्वहन से उनका कोई निजी हित जुड़ा हो तो उसे घोषित करें और जनहित की रक्षा के मार्ग में आने वाले विवादों के समाधान के लिए कदम उठाएं। यह भी कहा गया है कि अधिकारियों को ऐसे किसी व्यक्ति या संस्थान से कोई आर्थिक या अन्य एहसान नहीं लेना चाहिए जो उन्हें उनके काम को प्रभावित कर सकते हैं। यह भी कहा गया है कि लोक सेवक के रूप में कोई सदस्य अपने पद का दुरुपयोग नहीं करेगा और अपने, अपने परिवार या दोस्त को पैसे या सामान आदि से लाभ पहुंचे ऐसे फैसले नहीं लेगा। इस नियमावली में आईएएस, आईपीएस और आईएफएस के अधिकारियों की यह अनिवार्य जिम्मेदारी हो गई है कि वे अपने क र्तव्य पालन के दौरान गोपनीयता को बनाए रखें।