शुक्रवार, 21 मार्च 2014

डूब जाएगा 5,000 करोड़ का क्रॉप लोन

किसानों को नहीं मिल पाएगा उचित मुआवजा
केंद्र से मप्र सरकार ने मांगा 5,900 करोड़ और मिला 495 करोड़
भोपाल। फरवरी में कई बार आंधी, बारिश और ओलावृष्टि से फसलें खत्म-सी हो गई हैं। मप्र की तरह महाराष्ट्र में भी इस आपदा से फसल पूरी तरह तबाह हो गई है। इन दोनों राज्यों में फसलें बर्बाद होने से इस साल 5,000 करोड़ रुपए से ज्यादा का क्रॉप लोन या कहें कि खेती के लिए दिया जाने वाला कर्ज डूब सकता है। वहीं इस बार हालात ऐसे हैं कि किसानों को उनकी बर्बाद फसल का उचित मुआवजा भी नहीं मिल सकेगा। क्योंकि राज्य सरकार ने मुआवजे के लिए 5,900 करोड़ रूपए केंद्र से मांगा था,लेकिन 495 करोड़ ही मिल सका।
सरकारी आंकलन के अनुसार मप्र के 51 जिलों के 30,000 गांवों की 26 लाख हेक्टेयर से अधिक फसल चौपट हो गई। जिसमें 13000 करोड़ रूपए से अधिक का नुकसान हुआ है। वहीं महाराष्ट्र के 28 जिलों में लगभग 8 लाख एकड़ की खेती को बारिश और ओलों की वजह से भारी नुकसान हुआ है। लगभग 50,000 हेक्टेयर में फलों की फसल, जिसमें अंगूर, संतरे, केले और अनार शामिल हैं, बरबाद हुई है। गेहूं, ज्वार और कपास की खेती को भी नुकसान हुआ है।
एक प्राइवेट बैंकर ने कहा, 'हमने दोनों प्रदेश के इलाकों का दौरा शुरू कर दिया है। प्याज और टमाटर की फसल पर भी बुरा असर हुआ है। अंगूर, अनार और संतरे जैसे नकदी फसलों के लिए दिए गए लोन पर नेगेटिव असर होगा। Ó बैंकर ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा, 'इन फसलों का बीमा तो है लेकिन इंश्योरेंस का दावा तभी किया जा सकेगा, जब डिस्ट्रिक्ट अथॉरिटीज इसे आपदा घोषित करेंगी। चुनाव वाले साल में ऐसे एडमिनिस्ट्रेटिव फैसलों में आमतौर पर देरी हो जाती है। ऐसा होने पर किसानों और बैंकों दोनों को नुकसान होगा।Ó एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कंपनी के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर पी जे जोसफ कहते हैं, 'हमने दो इंश्योरेंस स्कीमों के तहत ढाई लाख हेक्टेयर खेती की जमीन का बीमा किया है। वेदर बेस्ड स्कीम और नेशनल एग्रीकल्चर इंश्योरेंस स्कीम में लगभग 3 लाख किसानों को कवर किया गया है। पूरी फसल बरबाद नहीं हुई है और हम नुकसान का आकलन करने में जुटे हुए हैं।Ó एक प्राइवेट बैंक के एग्जिक्यूटिव ने बताया कि मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के किसानों की हालत बहुत खराब है। इस एग्जिक्यूटिव ने महाराष्ट्र और मप्र के कई इलाकों का दौरा किया था। उन्होंने कहा कि सरकार से राहत नहीं मिलने पर किसान और बैंकर दोनों मुश्किल में पड़ जाएंगे।
सर्वे से किसान खुश नहीं
किसानों का मुआवजा तय करने के लिए सरकारी सर्वे भी हुआ, पर इससे किसान खुश नहीं हैं। किसान इस पर सवालिया निशान लगा रहे हैं। उनका कहना है कि पटवारियों ने मौके पर नहीं पहुंचकर अपने हिसाब से ही सर्वे कर लिया है। मुआवजा वितरण कब शुरू होगा, इसकी जानकारी कोई भी देने को तैयार नहीं है। भोपाल जिले में सरकारी सर्वे में लगभग 160 गांवों और मंदसौर जिले में 175 गांवों में 15-100 प्रतिशत तक फसलों की बर्बादी सामने आई है।
खंडवा जिले में हुई नुकसानी का प्रशासन ने दो चरणों में आकलन कर शासन को 24 करोड़ 35 लाख रु. का प्रस्ताव भेज कर दायित्वों की इतिश्री कर ली है। बुरहानपुर जिले में शासकीय मापद़ंड़ों के आधार पर चार करोड़ रु. मांगे गए हैं। झाबुआ जिले में सर्वे में 440 किसानों को प्रभावित माना गया, लेकिन इन सभी का नुकसान 25 प्रतिशत से कम आया। राहत शाखा के अनुसार खरगोन जिले में 848 ग्राम प्रभावित हुए हैं। जिला प्रशासन ने इस बड़े नुकसान की भरपाई के लिए शासन से 2539 लाख रुपए की मांग की है। वहीं प्रभावित क्षेत्र की अनुमानित राशि का आंकड़ा 7367 लाख तक पहुंच गया है। बड़वानी जिले में 14653 हेक्टेयर में फसलें प्रभावित हुई हैं। 1217 लाख रु. मांगें गए हैं। क्षति का अनुमानित मूल्य 4348 लाख है। भारतीय किसान संघ ने उचित मुआवजे की मांग करते हुए आंदोलन की चेतावनी दी है। शाजापुर जिले में ओलावृष्टि से प्रभावित हुई फसलों के सर्वे का कार्य जारी है। किसानों को मुआवजे के लिए जिला प्रशासन द्वारा 23 करोड़ का प्रस्ताव भेजा गया है। रतलाम जिले में सर्वे अभी भी चल रहा है। आठ तहसीलों में हुए सर्वे के अनुसार 270 गांवों में 37 हजार 740 किसानों की फसलें प्रभावित हुई हैं। करीब 2651 लाख रुपए की नुकसानी का आकलन किया गया है। मुआवजा राशि के लिए रिपोर्ट शासन को भेजी जा रही है। यानी अभी सबकुछ हवा-हवाई चल रहा है। करीब ढाई महिने तो अभी किसानों को कुछ भी नहीं मिलने वाला है।
राहुल का बुंदेलखंड भगवान भरोसे
सालों से सूखे की मार झेलते आ रहे बुंदेलखंड पर पिछले महीने ऐसा आसमानी वज्रपात हुआ कि समूची खेती बर्बाद हो गई। सालभर की कमाई नष्ट होने से लोग निराशा के गर्त में जाने लगे हैं। लेकिन राहुल गांधी की सियासत का केंद्र रहे इस क्षेत्र में बारिश और ओलावृष्टि से हलकान लोगों के आंसू पोंछने वाला कोई नहीं है। केंद्र सरकार ने 20 मार्च को कृषि मंत्री शरद पवार के गृह राज्य महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश को राहत पैकेज दे दिया। इसके तहत मध्य प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड के छह जिलों को तो राहत देने का प्रावधान कर दिया गया, लेकिन उसी बुंदेलखंड से जुड़े उत्तर प्रदेश के सात जिलों पर किसी की नजर ही नहीं गई।
उत्तर प्रदेश की सियासत में पार्टी का पांव जमाने के लिए राहुल गांधी ने शुरुआत बुंदेलखंड से की थी। इसके साथ वहां के लोगों के दु:ख-दर्द सुनने के बहाने वह अपनी राजनीतिक जमीन पुख्ता करने निकले थे। उन्होंने वहां के अनेक दौरे किए। बुंदेलखंड के लिए बड़ा पैकेज भी घोषित हुआ। हालांकि केंद्र व राज्यों के बीच तालमेल की कमी के चलते पैकेज का पूरा लाभ वहां के लोगों को नहीं मिल पाया। फरवरी और मार्च के पहले सप्ताह में बारिश और ओले से खेतों में खड़ी रबी सीजन की फसल चौपट हो गई है। हताशा के चलते कई परिवारों से आत्महत्या की भी खबरें आने लगी हैं। लेकिन सहानुभूति के दो बोल भी राजनीतिक दलों की तरफ से नहीं पहुंचे। उत्तर प्रदेश और केंद्र की सरकार तो फसलों के नुकसान की बात मानने को राजी तक नहीं हैं।
कृषि मंत्रालय के अधिकारियों की उत्तर प्रदेश के अधिकारियों से इस बाबत कई मर्तबा वीडियो कांफ्रेंसिंग हो चुकी है। बातचीत में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से हुए नुकसान की चर्चा भी हुई। लेकिन नियम-कायदे के चक्कर में बुंदेलखंड के लोग तबाह हैं। बुंदेलखंड के जिलों में 30 अप्रैल को आम चुनाव के लिए मतदान है। चुनाव के दौरान पीडि़तों का गुस्सा राजनीतिक दलों पर निकलने भी लगा है। दिल्ली में बैठे कांग्रेस पार्टी के नेताओं के पास बुंदेलखंड के लिए समय नहीं है। कमोबेश यही हाल भाजपा का भी है। राज्य में सत्तारुढ़ समाजवादी पार्टी ने तो नुकसान के बारे में केंद्र को ज्ञापन तक भेजना मुनासिब नहीं समझा है। इसी को आधार बनाकर केंद्र की हाई लेवल कमेटी में इस पर विचार ही नहीं हुआ है।

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