मप्र से दिग्गी की बिदाई के बाद अब समर्थकों को भी किया जा रहा किनारे
भोपाल। मप्र की राजनीति में दिग्विजय सिंह को ऐसा अमीबा कहा जाता है जिसे जितना काटो-छांटो वह उतना अधिक फलता-फूलता है। लेकिन पिछले तीन-चार माह में घटे राजनीतिक घटनाक्रमों पर नजर डाली जाए तो हम पाते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री अपने दौर के सबसे बुरे समय को जी रहे हैं। लोकसभा चुनावों के दौरान जिस तरह से उनकी और उनके समर्थकों की उपेक्षा शुरू हुई है, उसने टीम दिग्गी को अंदर से हिला कर रख दिया है। फिलहाल दिग्गी के पास अब सिर्फ प्रेशर पॉलिटिक्स का सहारा ही बचा है, वो भी उनके समर्थकों के जरिए। लेकिन फिलहाल उनका बस चलता दिखाई नहीं दे रहा है।
दरअसल, गुटबाजी की शिकार कांग्रेस अभी भी इस बीमारी से उबर नहीं पाई है। इसके चलते पहले जहां विधानसभा चुनावों में जहां उसे सत्ता गंवानी पड़ी वहीं लोकसभा सिर पर होने के बाद भी ये समस्या हल नहीं हो पा रही है। इस समय बड़े नेताओं की कांग्रेस छोडऩे की अफवाहें गर्म हैं। भागीरथ प्रसाद ने जिस तरह से ऐन मौके पर धोखा दिया है, उसके बाद संभावना बनी हुई है कि कुछ और नेता भी भाजपा का दामन थाम सकते हैं।
हालांकि धुंधली छंट रही है, उम्मीद कम ही है कि कोई बड़ा नाम अब भाजपा का दामन थामेगा। उसके पीछे वजहें हैं, जिस तरह से दिग्गी और उनके समर्थकों को पार्टी ने किनारे किया है। उनके अंदर बौखलाहट बढ़ गई है या कहें कि उनके लिए पार्टी के अंदर राजनीतिक जीवन बचाने की चुनौती खड़ी हो गई है।
इसी चुनौती की वजह से दिग्गी समर्थकों ने एक साथ हल्ला बोल दिया। एक तरफ जहां गोविंद सिंह का भाजपा में जाने की अफवाह उड़ी तो वहीं आरिफ अकील और अजय सिंह ने पार्टी पर जोरदारी से हमला बोला। मतलब साफ थे, पार्टी के अंदर ही अपना वजूद दिखाने की कोशिश भर थी।
भागीरथ प्रसाद के कांग्रेस छोडऩे से लेकर गोविंद सिंह और आरिफ अकील की नाराजगी तक हर घटना के तार कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह से जुड़ रहे हैं। विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश कांग्रेस में जो बदलाव हुआ वह दिग्विजय और उनके समर्थकों के अनुकूल नहीं है। नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक हैं और अरुण यादव भी सिंधिया से ग्रीन सिग्नल के बाद ही प्रदेशाध्यक्ष बने हैं। इससे पहले इन दोनों पदों पर दिग्विजय गुट का ही कब्जा था। कांतिलाल भूरिया और अजय सिंह दोनों ही दिग्विजय के करीबी थे। शायद यही वजह है कि दिग्विजय के समर्थक या तो प्रदेश नेतृत्व पर उंगली उठा रहे हैं या पार्टी छोड़ कर जा रहे हैं।
नहीं कर पा रहे समर्थकों की मदद
कांग्रेस के भीतर लोग इस बात को मान रहे हैं कि दिग्विजय अब अपने समर्थकों की मदद नहीं कर पा रहे हैं। पूर्व आईएएस अफसर भागीरथ प्रसाद दिग्विजय सिंह से जुड़े हुए थे। वे यह बात समझ गए थे कि ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में सिंधिया की मर्जी के बिना कांग्रेस की राजनीति संभव नहीं है।
पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह सीधी से टिकट चाह रहे थे, लेकिन वहां से इंद्रजीत पटेल को उम्मीदवार बनाया गया है। इंद्रजीत इन दिनों सिंधिया के साथ हैं। सत्यदेव कटारे को 'हिटलरÓ कहने वाले गोविंद सिंह दिग्विजय समर्थक हैं, वे लोक लेखा समिति के अध्यक्ष नहीं बन पाए।
शुक्रवार, 21 मार्च 2014
प्रेशर पॉलिटिक्स के सहारे दिग्विजय!
मप्र से दिग्गी की बिदाई के बाद अब समर्थकों को भी किया जा रहा किनारे
भोपाल। मप्र की राजनीति में दिग्विजय सिंह को ऐसा अमीबा कहा जाता है जिसे जितना काटो-छांटो वह उतना अधिक फलता-फूलता है। लेकिन पिछले तीन-चार माह में घटे राजनीतिक घटनाक्रमों पर नजर डाली जाए तो हम पाते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री अपने दौर के सबसे बुरे समय को जी रहे हैं। लोकसभा चुनावों के दौरान जिस तरह से उनकी और उनके समर्थकों की उपेक्षा शुरू हुई है, उसने टीम दिग्गी को अंदर से हिला कर रख दिया है। फिलहाल दिग्गी के पास अब सिर्फ प्रेशर पॉलिटिक्स का सहारा ही बचा है, वो भी उनके समर्थकों के जरिए। लेकिन फिलहाल उनका बस चलता दिखाई नहीं दे रहा है।
दरअसल, गुटबाजी की शिकार कांग्रेस अभी भी इस बीमारी से उबर नहीं पाई है। इसके चलते पहले जहां विधानसभा चुनावों में जहां उसे सत्ता गंवानी पड़ी वहीं लोकसभा सिर पर होने के बाद भी ये समस्या हल नहीं हो पा रही है। इस समय बड़े नेताओं की कांग्रेस छोडऩे की अफवाहें गर्म हैं। भागीरथ प्रसाद ने जिस तरह से ऐन मौके पर धोखा दिया है, उसके बाद संभावना बनी हुई है कि कुछ और नेता भी भाजपा का दामन थाम सकते हैं।
हालांकि धुंधली छंट रही है, उम्मीद कम ही है कि कोई बड़ा नाम अब भाजपा का दामन थामेगा। उसके पीछे वजहें हैं, जिस तरह से दिग्गी और उनके समर्थकों को पार्टी ने किनारे किया है। उनके अंदर बौखलाहट बढ़ गई है या कहें कि उनके लिए पार्टी के अंदर राजनीतिक जीवन बचाने की चुनौती खड़ी हो गई है।
इसी चुनौती की वजह से दिग्गी समर्थकों ने एक साथ हल्ला बोल दिया। एक तरफ जहां गोविंद सिंह का भाजपा में जाने की अफवाह उड़ी तो वहीं आरिफ अकील और अजय सिंह ने पार्टी पर जोरदारी से हमला बोला। मतलब साफ थे, पार्टी के अंदर ही अपना वजूद दिखाने की कोशिश भर थी।
भागीरथ प्रसाद के कांग्रेस छोडऩे से लेकर गोविंद सिंह और आरिफ अकील की नाराजगी तक हर घटना के तार कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह से जुड़ रहे हैं। विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश कांग्रेस में जो बदलाव हुआ वह दिग्विजय और उनके समर्थकों के अनुकूल नहीं है। नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक हैं और अरुण यादव भी सिंधिया से ग्रीन सिग्नल के बाद ही प्रदेशाध्यक्ष बने हैं। इससे पहले इन दोनों पदों पर दिग्विजय गुट का ही कब्जा था। कांतिलाल भूरिया और अजय सिंह दोनों ही दिग्विजय के करीबी थे। शायद यही वजह है कि दिग्विजय के समर्थक या तो प्रदेश नेतृत्व पर उंगली उठा रहे हैं या पार्टी छोड़ कर जा रहे हैं।
नहीं कर पा रहे समर्थकों की मदद
कांग्रेस के भीतर लोग इस बात को मान रहे हैं कि दिग्विजय अब अपने समर्थकों की मदद नहीं कर पा रहे हैं। पूर्व आईएएस अफसर भागीरथ प्रसाद दिग्विजय सिंह से जुड़े हुए थे। वे यह बात समझ गए थे कि ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में सिंधिया की मर्जी के बिना कांग्रेस की राजनीति संभव नहीं है।
पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह सीधी से टिकट चाह रहे थे, लेकिन वहां से इंद्रजीत पटेल को उम्मीदवार बनाया गया है। इंद्रजीत इन दिनों सिंधिया के साथ हैं। सत्यदेव कटारे को 'हिटलरÓ कहने वाले गोविंद सिंह दिग्विजय समर्थक हैं, वे लोक लेखा समिति के अध्यक्ष नहीं बन पाए।
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