शनिवार, 31 मई 2014

नदियों के घाट पर लगेंगे बायोमैट्रिक टॉयलेट्स

नर्मदा, सोन, सिंध, चंबल, बेतवा, केन, धसान, तवा, ताप्ती, शिप्रा, काली सिंध,मंदाकिनी का होगा सर्वे
भोपाल। प्रदेश में बहने वाली नदियों के किनारे घाटों पर अत्याधुनिक बायोमैट्रिक टॉयलेट्स लगाए जाएंगे। मर्यादा अभियान अंतर्गत होने वाले इस कार्य के लिए जल्द ही नर्मदा, सोन, सिंध, चंबल, बेतवा, केन, धसान, तवा, ताप्ती, शिप्रा, काली सिंध,मंदाकिनी के घाटों का सर्वे होगा। सर्वे की जिम्मेदारी जिला प्रशासन को सौंपी जाएगी। फिलहाल बायोमैट्रिक टॉयलेट्स लगाने की शुरूआत नर्मदा किनारे स्थित पवित्र स्थल महेश्वर-मंडलेश्वर के घाटों से होगी। पर्यावरण प्रेमियों और नदियों में आस्था रखने वालों के लिए यह अच्छी खबर है। घाटों पर गंदगी और मल निकासी के पानी का नदियों में अनवरत मिलने का सिलसिला थम सकता है। उल्लेखनीय है कि पवित्र स्थलों के घाटों पर सामान्य टॉयलेट अथवा किनारों का लोग उपयोग मल त्यागने में करते हैं। मानव मल सहित गंदा पानी सीधे नदी जल में मिल रहा है। इससे नदियों में प्रदूषण बढऩे के साथ आस्था आहत हो रही है। अब इस पर अंकुश लगाने के लिए इस दिशा में सरकार ने बड़ा कदम उठाने का निर्णय लिया है। इस प्रक्रिया में महेश्वर व मंडलेश्वर के नर्मदा घाटों पर अत्याधुनिक बायोमैट्रिक टॉयलेट्स स्थापित करने की कवायद शुरू हो गई है। बकायदा इस काम के लिए विशेषज्ञों ने क्षेत्र का भ्रमण भी कर लिया है।
रक्षा मंत्रालय के तकनीकी विशेषज्ञ तैयार करेंगे रिपोर्ट प्रदेश की नदियों के घाटों पर बायोमैट्रिक टॉयलेट्स लगाने के लिए जबलपुर स्थित रक्षा मंत्रालय यूनिट अंतर्गत डीआरडीओ के तकनीकी विशेषज्ञ सर्वे कर रिपोर्ट तैयार करेंगे। यह रिपोर्ट सरकार के माध्यम से जिला प्रशासन को सौंप दी जाएगी। जिला प्रशासन उसके अनुसार कार्य करवाएगा। डीआरडीओ के तकनीकी विशेषज्ञ जगराज उपाध्याय ने महेश्वर व मंडलेश्वर के घाटों का दौरा कर जिला प्रशासन को अनुकूल स्थान बताकर प्रोजेक्ट रिपोर्ट सौंप दी। अब आगामी दिनों में डीआरडीओ के तकनीकी विशेषज्ञ अन्य नदियों के घाटों का दौरा करेंगे।
प्रत्येक घाट पर 4 यूनिट होगी स्थापित इस प्रक्रिया में प्रत्येक घाट पर चार यूनिट स्थापित की जाएगी। प्रत्येक यूनिट में 6 सीट उपलब्ध होगी। इसके निर्माण की लागत लगभग 1 लाख 20 हजार प्रति यूनिट है। यह प्रदेश का पहला प्रयोग होगा। उपाध्याय ने बताया कि इन टॉयलेट में मानव मल के साथ निर्धारित बैक्टीरिया छोड़े जाते हैं जो मानव मल को नष्ट कर देते हैं। यहां से मिथेन गैस के रूप में अशुद्धि बाहर हो जाती है और शेष पानी लगभग 98 प्रतिशत शुद्ध हो जाता है। यह पानी मवेशियों के पेयजल उपयोग के साथ ही हार्टिकल्चर व अन्य उपयोग में लिया जा सकता है। वैज्ञानिकों का दावा है कि यदि यह पानी सीधे नदियों में भी मिल जाता है तो प्रदूषण का खतरा नगण्य रहता है। उल्लेखनीय है कि इन दिनों नर्मदा प्रदूषण को लेकर विशेषज्ञों की चिंता बढ़ रही है।
शीघ्र स्थापित करेंगे नदियों को प्रदूषण से बचाने के लिए यह प्रभावी प्रयास है। नदियों को प्रदूषण से बचाने के लिए सभी को जागरूक करना प्राथमिकता है। बायोमैट्रिक टॉयलेट्स की सुविधा इस दिशा में पहल है। प्रयास किए जा रहे हैं कि इन्हें शीघ्र स्थापित करवाया जाए।
-रजनीश वैश,उपाध्यक्ष एनवीडीए

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