शनिवार, 16 फ़रवरी 2013

गढ़ से निकल चुनावी मोर्चा संभालेंगे दिग्गज

भोपाल। कभी कांग्रेस का अभेद किला रहे मप्र में लगातार 10 साल सत्ता से बाहर रहने के बाद पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव में हर हाल में जीत दर्ज करने की योजना बना रहा है। इसके लिए दिग्गज नेताओं को अपने गढ़ से निकल कर पूरे प्रदेश में सक्रिय होने की रणनीति बनाई जा रही है। इस नीति के तहत सभी दिग्गज नेता चुनाव से चार माह पहले प्रदेश में डेरा डालना होगा। राज्य में कांग्रेस के दिग्गजों को संभावित जिम्मेदारी अपनी दमदार राजनीतिक शैली के से भीड़ का रूख अपनी ओर करने का मद्दा रखने वाले दिग्विजय सिंह पर पूरे प्रदेश की जिम्मेदारी होगी। साथ ही इन्हें टीकमगढ़,छत्तरपुर,राजगढ़,मंदसौर पर विशेष ध्यान देना होगा। कमलनाथ को छिंदवाड़ा के साथ ही जबलपुर,मंडला,कटनी,बालाघाट,अनुपपुर,डिंडोरी,उमरिया,शहडोल आदि क्षेत्रों की जिम्मेदारी रहेगी। ज्योतिरादित्य ग्वालियर के साथ भिंड,मुरैना,शिवपुरी,दतिया,गुना,इंदौर,उज्जैन,शाजापुर की जिम्मेदारी रहेगी। कांतिलाल भूरिया पर मुख्यत: आदिवासी क्षेत्रों की जिम्मेदारी रहेगी। जिनमें बुरहानपुर,खंडवा,खरगौन,बड़वानी,झाबुआ,बैतुल,रतलाम,धार आदि शामिल है। .सुरेश पचैरी को भोपाल,होशंगाबाद,विदिशा,सिहोर,देवास आदि क्षेत्रों की जिम्मेदारी दी जा सकती हैं। श्रीनिवास तिवारी और अजय सिंह पर पूरे विंध्य क्षेत्र के साथ ही सागर,दमोह और बुंदेलखंड के जिलों की जिम्मेदारी रहेगी। कांग्रेस को चाहिए दमदार नेतृत्व लोकसभा क्षेत्रों का सर्वे कर पर्यवेक्षकों ने आलोमान को जो रिपोर्ट सौंपी है उसमें सवाल उठाया गया है कि क्षेत्रवाद में बंटी कांग्रेस भाजपा को चुनौती कैसे देगी। गुटबाजी से कांग्रेस को फिर नुकसान होने का अंदेशा है। राज्य में ऐसा कोई नेता नहीं है जो पूरे प्रदेश के कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को लेकर चल सके। पार्टी को एक जुट कर सके। प्रदेश में एक सशक्त और लोकप्रिया नेता की जरूरत है। भले दिग्विजय सिंह को राहुल गांधी के चुनावी रथ का सारथी बना दिया गया है, लेकिन ऐसा नहीं लगता कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस की नैया अकेले दिग्विजय सिंह के दम पर पार हो जायेगी। पार्टी के अधिकांश लोगों को मानना है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ अधिक से अधिक लोग जुड़ सकते हैं। कांतिलाल भूरिया की तुलना में वो अधिक लोकप्रिय हैं। लेकिन कांग्रेस हाई कमान इस बात को तूल नहीं देना चाहता। हाल के विवाद से यही जाहिर होता है। ऐसा भी हो सकता है कि कांग्रेस हाई कमान अभी कांग्रेस के अंदर के विरोध को और देखना चाहता है, उसके बाद ही ज्योतिरादित्य को प्रदेश की कमान सौंपे, लेकिन एक बात तो साफ हो गई है कि कांग्रेस के दूसरे बड़े नेताओं के समर्थक भी ज्योतिरादित्य की ओर अभी से लुढ़कने लगे हैं। कांग्रेस के वोट बैंक भाजपा के कब्जे में 2008 का चुनाव हारने के बाद कांग्रेस कुपोषित हो गई। शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री बनने के बाद कांग्रेस के जो वोट बैंक थे, उस पर धीरे धीरे भाजपा का कब्जा हो गया। शिवराज चूंकि ओबीसी की राजनीति करते हैं और कांग्रेस के जीत का यही वोट बैंक है जो कि उसके हाथ से सत्ता के जाते ही खिसक गया। भूरिया के खिलाफ सुलग रही बगावत की आग आदिवासी वोट बैंक को पुन: कबजाने के लिए कांतिलाल भूरिया को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया, लेकिन गुटबाजी की गांठ ने उन्हें आगे नहीं बढऩे दिया। नतीजा पार्टी के अंदर उनका जमकर विरोध शुरू हो गया। मामला प्रदेश से दस जनपथ तक पहुंचा। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह राहुल और कांतिलाल भूरिया को दिल्ली बुलाया गया। कांतिलाल वर्सेस ज्योतिरादित्य सिंधिया के मामले की विवेचना का दायित्व फर्नांडिस को देकर विरोध के गुबार को दबाने का प्रयास हाई कमान ने किया। लेकिन अब भी माना जा रहा है कि कांग्रेस के अंदर कांतिलाल को लेकर विरोध दबा नहीं है। पार्टी के अंदर बगावत की आग सुलग रही है। विधायक कल्पना पारूलेकर सहित बीस विधायकों ने दमदारी के साथ कांतिलाल की खिलाफत करके बता दिया कि कांतिलाल नहीं चलेंगे। चुनाव में कांग्रेस के मुद्दे आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रदेश में भ्रष्टाचार,बिजली,सड़क, कुपोषण, महिला उत्पीडऩ, मुस्लिम और आदिवासियों के खिलाफ हो रहे अत्याचार, किसानों को खाद नहीं मिलना, किसानों की समस्या, दलित महिलाओं पर बढ़ता जुल्म, अवैध उत्खनन, आदि ऐसे मामलों को उठाकर भाजपा के खिलाफ सड़कों पर उतरेगी।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें