शनिवार, 16 फ़रवरी 2013

मप्र में किसके भरोसे होगी चुनावी नैया पार

भोपाल। कांग्रेस में राहुल गांधी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनने के बाद मप्र में राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। क्या राज्य ईकाई में कोई बदलाव होगा, या नेतृत्व बदले बिना ही पार्टी चुनावी समर मेें कूदेगी? इस तरह के सवाल इन दिनों पार्टी में उठ रहे हैं। राहुल गांधी ने उपाध्यक्ष पद संभालने के बाद यह संकेत तो दे दिया था कि उनका फोकस अब मप्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान और दिल्ली में इस साल होने वाले विधानसभा के चुनावों पर होगा। राहुल इन चारों राज्यों के संगठन की मौजूदा स्थिति का आकलन कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ के लिए तो उन्होंने साफ संकेत दे दिया है कि वहां कांग्रेस आपसी गुटबाजी का शिकार है और उसमें बदलाव की जरूरत है। माना जा रहा है कि फरवरी के अंतिम दौर तक छत्तीसगढ़ में कोई न कोई बदलाव हो सकता है। जहां तक मप्र की बात है तो स्थिति यहां भी कोई अच्छी नहीं दिखती। प्रदेश कांग्रेस लचर-ढचर हालत में है, नेताओं की आपसी गुटबाजी के चलते पार्टी का जनाधार लगातार गिर रहा है। गुटबाजी तो इस कदर यहां हावी हो चुकी है कि कुछ माह पहले सोनिया गांधी तक को पार्टी नेताओं की बैठक बुलाकर हस्तक्षेप करना पड़ा था। मप्र में कांग्रेस ने ऐसा कोई कार्यक्रम पिछले पांच साल में नहीं चलाया जिससे पार्टी का जनाधार बढ़ सके। प्रदेश नेतृत्व की कठपुतली वाली स्थिति से सभी वाकिफ हैं। संगठन कितना कमजोर है इसका अंदाजा राज्य में पार्टी की चुनाव दर चुनाव में हो रही हार से लगाया जा सकता है। प्रदेश अध्यक्ष के गृह जिले तक में भी मंडी के चुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। ऐसी हालत में क्या विधानसभा का चुनाव जीता सकता है? पार्टी सूत्रों की माने तो राहुल गांधी और उनकी टीम मप्र में संगठन में बदलाव चाहती है और ऐसे को नेतृत्व देने के पक्ष में है जो सबको मान्य हो। लेकिन नेताओं की टांग खिचौव्वल के चलते यह संभव नहीं दिख रहा। यह इस बात से जाहिर हो जाता है कि राहुल गांधी ने केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रदेश में सक्रिय तो कर दिया, परंतु अभी तक वह यह तय नहीं कर पाए कि उनको जिम्मेदारी क्या दी जाए। क्या उनको प्रदेश में चुनाव प्रचार की कमान सौंपी जाए या फिर संगठन का मुखिया घोषित किया जाए या मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किया जाए। बताया जाता है कि राहुल प्रदेश में युवाओं को आगे करने के पक्ष में हैं, लेकिन ऐन चुनाव के वक्त बड़ो को दरकिनार करने का साहस भी वे उठा नहीं पा रहे हैं। प्रदेश की वरिष्ठ नेताओं की लॉबी उनके सामने रोड़ा अटकाए है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि मप्र में पार्टी चुनावी नैया किसके बूते पार कर पाएगी? कौन दावेदार और क्यों कमलनाथ केंद्र में मंत्री होने के साथ प्रदेश के महाकोशल अंचल में खासा प्रभाव रखते हैं। एफडीआई के मुद्दे पर संसद में कांग्रेस को जीत दिलवाकर सप्रंग अध्यक्ष सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का विश्वास हासिल कर चुके हैं। कमजोर पक्ष यह है कि राज्य में कंट्रोल तो पूरा चाहते है लेकिन नेतृत्व संभालने से पीछे हटते हैं। कांतिलाल भूरिया प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के रूप मे इनका कार्यकाल कोई खास नहीं रहा है। इनकी कमजोरी यह रही कि कठपुतली अध्यक्ष के रूप में इन्होंने कार्य किया और जनप्रिय नेता की छबि नहीं बना पाए। इनका पक्ष इसलिये मजबूत है कि आदिवासी वोट बैंक के चलते पार्टी इनको इग्रोर नहीं कर सकती साथ ही 10 जनपथ में इनका सीधा संपर्क है। दिग्विजय सिंह राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रहे और वर्तमान में कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव के रूप में काम कर रहे हैं। कमजोर पक्ष यह है कि इनके मुख्यमंत्री कार्यकाल में ही मप्र में पार्टी बुरी तरह से हारी थी। विवादास्पद बयान देने के कारण हमेशा चर्चाओं में तो बने रहते हैं लेकिन जनाधार नहीं बढ़ा सकते। मप्र की जनता अभी तक इनसे नाराज है। राहुल गांधी का रणनीतिकार और संघ का घोर विरोधी होना इनका मजबूत पक्ष माना जाता है। सत्यव्रत चतुर्वेदी इस समय राज्यसभा के सदस्य हैं। प्रखर वक्ता और बुंदेलखण्ड के दबदबे वाले नेता की रूप में पहचाने जाते हैं। कांग्रेस में दिग्विजय सिंह के घोर विरोधी माने जाते हैं। सोनिया गांधी से सीधा संपर्क है तथा ब्राम्öण वर्ग से हैं। कमजोर पक्ष पूरे प्रदेश में न जनाधार न ही समर्थक। सुरेश पचौरी- पार्टी की कमान पिछले विधानसभा चुनावों में संभाली थी, लेकिन बुरी तरह से हार मिली। कई तरह के आरोपों से भी घिरे। जनाधार विहीन नेता की छवि से उबर नहीं पाए। अभी पार्टी में सक्रिय ही नहीं। ज्योतिरादित्य सिंधिया केंद्र में मंत्री हैं और गांधी परिवार के निकट माने जाते हैं, प्रदेश की राजनीति में इनकी खासी दखलंदाजी भी है। पिता की विरासत को संभालते हुए कार्यकत्र्ताओं व जनता में विश्श्वास जमा चुके हैं, युवा व स्वच्छ छवि के होने का लाभ मिल सकता है। कमजोर पक्ष यह है कि प्रदेश कांग्रेस में सर्वमान्य नहीं। अजय सिंह वर्तमान में विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और युवा। कांग्रेस दिग्गज अर्जुन सिंह के पुत्र तथा दिग्विजय सिंह के निकट हैं, लेकिन प्रदेश सरकार की खामियों को उजागर करने में सफल नहीं हो पाना इनका कमजोर पक्ष है। भाजपा सरकार के खिलाफ प्रभावी भूमिका सदन में नहीं निभाने का आरोप। मीनाक्षी नटराजन- राहुल गांधी की युवा ब्रिगेड में शामिल तथा उनकी विश्वासपात्र। भाजपा दिग्गज लक्ष्मीनारायण पांडे को हराकर संसद में पहुंचने के कारण पार्टी में साख बनी। लेकिन प्रदेश तो दूर मालवा क्षेत्र में ही कार्यकर्ताओं की पसंद नहीं।

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