शनिवार, 28 फ़रवरी 2015

मंत्रियों के खिलाफ अब लोकायुक्त में दर्ज नहीं होगी शिकायत!

विनोद उपाध्याय
10 साल में 18 मंत्रियों के खिलाफ हुई शिकायत...जांच में 14 निकली गलत
सरकार और लोकायुक्त संगठन की किरकिरी रोकने हो रही तैयारी
भोपाल। पिछले 10 साल में मंत्रियों और वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों के खिलाफ केस दर्ज करने के बाद भी उनके खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रहा लोकायुक्त संगठन अब मंत्रियों के खिलाफ केस दर्ज नहीं करेगा। क्योंकि पिछले सालों में संगठन ने जिन 18 मंत्रियों के खिलाफ केस दर्ज किया था उनमें से जांच के दौरा 14 के खिलाफ मामले बेबुनियादी निकले। इसको देखते हुई हाईकोर्ट ने भी लोकायुक्त को निर्देश दिया है की वह जांच-परख कर ही केस दर्ज करे। उधर, विपक्ष इन जांचों को सरकार और लोकायुक्त संगठन की मिलीभगत मान रही है। इससे पिछले सात-आठ सालों से सरकार की जमकर किरकिरी हो रही है। उल्लेखनीय है कि मप्र लोकायुक्त संगठन शुरू से विवादों में रहा है। प्रदेश में लोकायुक्त की नियुक्ति पर हमेशा सवाल उठते रहते हैं। जबकि 1982 से लेकर अब तक लोकायुक्त संगठन ने भ्रष्ट अधिकारियों-कर्मचारियों के पास से लगभग 4 अरब 17 करोड़ 27 लाख 87 हजार 773 रुपए की संपत्ति जब्त की है। इसके बावजुद संगठन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठते रहे हैं। खासकर भाजपा के शासनकाल में तो मप्र लोकायुक्त को देश सबसे नकारा संगठन माना जा रहा है। उसकी मुख्य वजह है मंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई करने में विभाग की विफलता। दरअसल, भाजपा शासन काल में जिन मंत्रियों के खिलाफ जांच प्रकरण दर्ज किए गए उनके खिलाफ जांच करने में संगठन ने इतनी देरी कर दी की, कई बार हाईकोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा। इससे जनता में यह संदेश गया की सरकार के इशारे पर लोकायुक्त जांच को लंबित कर रहा है। लगभग 10 साल तक ऐसे मामले में अपनी फजीहत कराने के बाद लोकायुक्त ने अब मंत्रियों के मामलों में सतर्कता बरतने की तैयारी शुरू कर दी है। इसके तहत लोकायुक्त में अब मंत्रियों के खिलाफ आसानी से जांच प्रकरण दर्ज नहीं होंगे। शिकायत मिलने पर पहले इस बात का परीक्षण किया जाएगा कि मंत्री की संबंधित मामले में सीधी भूमिका है या नहीं। अभी होता ये है कि शिकायत का परीक्षण करने पर पहली नजर में जांच प्रकरण दर्ज करने के आधार समझ में आने पर मामला दर्ज कर लिया जाता है पर ये बारीकी से नहीं देखा जाता कि उसमें मंत्री की भूमिका कितनी है। इसकी वजह से जांच के बाद मंत्री के खिलाफ विलोपन और खात्मे की कार्रवाई करनी पड़ती है। इससे अनावश्यक विवाद की स्थिति बनती है। इसलिए नई व्यवस्था लागू करने का फैसला किया गया है। उल्लेखनीय है कि हाल ही में हाईकोर्ट में लोकायुक्त ने एक याचिका के जवाब में स्वीकार किया है कि कुछ मामलों की जांच में मंत्रियों की संलिप्तता नहीं पाई गई। इसके आधार पर तत्कालीन उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री बाबूलाल गौर और खनिज राज्यमंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा के नाम प्रकरण से विलोपित कर दिए। अफसरों से जुड़े कुछ और प्रकरणों में भी इसी तरह के तथ्य सामने आए। इसके आधार पर खात्मा रिपोर्ट कोर्ट में पेश की गई और प्रकरण समाप्त हो गए पर इसको लेकर जो आरोप-प्रत्यारोप के दौर चलते हैं वे संस्था के साथ-साथ संबंधित व्यक्ति की साख को प्रभावित करते हैं। यही वजह है कि लोकायुक्त संगठन ने तय किया है कि मंत्रियों से जुड़ी शिकायत का बारीकी से परीक्षण किया जाएगा। इसमें ये देखा जाएगा कि शिकायत से जुड़ी प्रक्रिया में मंत्री की भूमिका कितनी है। यदि मामले की फाइल मंत्री तक ही नहीं जाती है और निर्णय लेने का स्तर कुछ और है तो फिर मंत्री का नाम हटाकर शिकायत पर जांच प्रकरण दर्ज किया जाएगा। इसकी पुष्टि करते हुए लोकायुक्त पीपी नावलेकर कहते हैं कि जांच प्रकरण दर्ज कराने के पहले ये देखना जरूरी है कि उसमें मंत्री का इन्वॉलमेंट कितना है। कई बार शिकायत को वजनदार बनाने के लिए भी मंत्री का नाम शामिल कर दिया जाता है। जब भूमिका प्रमाणित नहीं होती तो खात्मा लगाना पड़ता है। इस प्रक्रिया से बचने के लिए नई व्यवस्था बनाई जा रही है। अब पुख्ता परीक्षण के बाद ही मंत्री के खिलाफ प्राथमिक जांच दर्ज की जाएगी।
भाजपा शासनकाल में इनके खिलाफ दर्ज थी शिकायत भाजपा के विगत दस साल के शासनकाल में 18 मंत्रियों के खिलाफ लोकायुक्त में मामले दर्ज किए गए। अनियमितता, भ्रष्टाचार और पद के दुरुपयोग को लेकर मंत्रियों के खिलाफ चल रही लोकायुक्त जांच में ज्यादातर को क्लीनचिट मिल गई है। संगठन ने आठ मौजूदा और पूर्व मंत्रियों के जांच प्रकरण बंद कर दिए हैं। हालांकि, दो पूर्व और इतने ही मौजूदा मंत्रियों के खिलाफ जांच चल रही हैं। कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन के मामले में सुप्रीम कोर्ट की अंतरिम रोक होने की वजह से कार्रवाई रोक दी गई है। बीते पांच सालों में लोकायुक्त ने शिकायतों के आधार पर 11 मंत्रियों के खिलाफ मामले दर्ज किए थे। आठ मामलों का करीब पांच साल तक परीक्षण करने के बाद इन्हें नस्तीबद्ध कर मंत्रियों को क्लीनचिट दे दी गई है। हालांकि, इनमें से दो-तीन मामले अदालतों में विचाराधीन हैं।
: कब से लंबित है जांच :
मंत्री- शिकायत दिनांक एवं आरोप -जुगल किशोर बागरी 2004 शिक्षाकर्मी की भर्ती में घपला -मोती कश्यप 4 जून 2005 मछली ठेकेदारों को पांच करोड़ का लाभ - लक्ष्मीकांत शर्मा 25 जुलाई 2005 खनिज लीज घोटाला -ओम प्रकाश धुर्वे 4 मई 2006 अनाज परिवहन में ठेकेदार को लाभ पहुंचाया -जयंत मलैया 19 मार्च 2007 पद का दुरूपयोग - अनूप मिश्रा 3 अप्रेल 2007 जल संसाधन में ठेकेदारों को अनुचित लाभ -कैलाश विजयवर्गीय 10 अप्रेल 2007 -हिम्मत कोठारी 14 मई 2007 मोरों के दाना पानी में घपला -कैलाश विजयवर्गीय 20 जून 2007 ट्यूबवेल खनन में पद का दुरूपयोग -बाबूलाल गौर 30 जून 2007 खनिज लीज घोटाला -अजय विश्रोई 23 जुलाई 2007 नर्सिंग कॉलेज में पद का दुरूपयोग - शिवराज सिंह चौहान 15 नवम्बर 2007 डम्पर कांड -कमल पटेल 26 नवम्बर 2007 भू माफिया को 25 करोड़ का लाभ पहुंचाया -चौधरी चन्द्र भान सिंह 25 जनवरी 2008 पद का दुरूपयोग कर सम्पत्ति एकत्रित करना - जयंत मलैया 31 मार्च 2008 बिल्डर को 20 करोड़ का लाभ पहुंचाया - शिवराज सिंह चौहान 29 अप्रेल 2008 दवा खरीदी में घोटाला -जयंत मलैया 2 मई 2008 श्रीराम बिल्डर को अवैध लाभ पहुंचाया -जयंत मलैया 9 जून 2008 पद का दुरूपयोग
इनकी जांच चल रही विगत पांच 5 वर्ष में जिन मंत्रियों की शिकायत लोकायुक्त में दर्ज की गई थी उनमें से अधिकांश को लोकायुक्त ने अपनी जांच में गलत पाया और उनको बंद कर दिया है। इस मामले में लोकायुक्त पीपी नावलेकर कहते हैं कि बीते पांच साल के दौरान जो शिकायतें मिली थीं उनकी जांच कराई गई। तथ्यों के आधार पर विधिसम्मत निर्णय लिए गए हैं। लोकायुक्त से प्राप्त जानकारी के अनुसार, अभी लोकायुक्त में पूर्व मंत्री अर्चना चिटनीस, बृजेन्द्र प्रताप सिंह और मंत्री पारसचंद जैन के खिलाफ जांच चल रही है, जबकि कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन का मामला अभी लंबित है। अर्चना चिटनीस पूर्व स्कूल शिक्षा मंत्री के खिलाफ विद्या भारती की सरस्वती शिशु मंदिर में पढ़ाई जाने वाली देवपुत्र पत्रिका की एकमुश्त खरीदी और अगले 15 सालों की सप्लाई का एडवांस पेमेंट लगभग 13 करोड़ दिए जाने के मामले की शिकायत कांग्रेस विधायक डॉ। गोविन्द सिंह ने की थी और इसी तरह सरकारी स्कूलों के ब्लैक बोर्ड को ग्रीन बोर्ड में तब्दील कर करोड़ों की हेराफेरी करने की भी शिकायत चिटनीस के खिलाफ की गई थी। मामले की जांच चल रही है। बृजेन्द्र प्रताप सिंह पूर्व कृषि राज्यमंत्री पर आय से अधिक संपत्ति और पद के दुरुपयोग की जांच चल रही है। कांग्रेस के पूर्व मंत्री मुकेश नायक और अन्य की शिकायत पर लोकायुक्त ने जांच शुरू की है। सिंह पर अवैध खनन, सरकारी योजनाओं का खुद के लिए बेजा फायदा लेना सहित कई प्रकरण हैं। पारसचंद जैन, स्कूल शिक्षा मंत्री जैन के खिलाफ उज्जैन में जमीन का एक मामला भी लंबित है। इन पर रजिस्ट्री में परिवारजनों को फायदा पहुंचाए जाने का आरोप है। गौरीशंकर बिसेन, कृषि मंत्री इनके खिलाफ जबलपुर हाईकोर्ट के आदेश पर विशेष स्थापना पुलिस, जबलपुर ने प्राथमिक जांच दर्ज की है। बिसेन ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और जिस पर अंतरिम रोक का आदेश दिया गया है। लिहाजा, लोकायुक्त ने जांच की कार्रवाई अभी शुरू ही नहीं की है। इससे पहले दो शिकायतों पर लोकायुक्त ने जांच की थी। बालाघाट के सुधाकर शर्मा और पन्ना के प्रहलाद लोधी ने शिकायत की थी। लोकायुक्त ने दोनों ही शिकायतें यह कहकर खारिज कर दीं कि शिकायत के साथ साक्ष्य नहीं हैं। इन्हें मिली राहत कैलाश विजयवर्गीय- इन्दौर के तत्कालीन महापौर को सुगनी देवी जमीन घोटाले में लोकायुक्त से क्लीनचिट मिल गई है। 2007 में पूर्व विधायक सुरेश सेठ की शिकायत पर विशेष न्यायालय के आदेश पर यह प्रकरण दर्ज हुआ था। 29 अगस्त 2013 को प्रकरण समाप्त कर दिया गया। जयंत मलैया- तत्कालीन आवास एवं पर्यावरण मंत्री इंदौर में जमीन के व्यावसायिक उपयोग को लेकर 2007 में प्रकरण दर्ज हुआ था। 2014 की शुरुआत में क्लीनचिट मिल गई। एक अन्य मामला नगरीय प्रशासन मंत्री रहते 2007 में ही दर्ज हुआ था। इसमें भी 19 जून 2013 को क्लीनचिट मिली। बाबूलाल गौर गुजरात यात्रा को लेकर शिकायत दर्ज हुई थी। साढ़े चार या पांच हजार रुपए का मामला था। पड़ताल के बाद गुजरात सरकार के इस जवाब कि खर्चा राज्य सरकार ने उठाया था, जांच नस्तीबद्ध हो गई। पारसचंद जैन खाद्य नागरिक आपूर्ति मंत्री रहते हुए अस्थायी कैप को लेकर शिकायत हुई थी पर इसे परीक्षण के बाद लोकायुक्त ने दो जनवरी 2013 को नस्तीबद्ध कर दिया। पूर्व मंत्री कमल पटेल- तत्कालीन राजस्व मंत्री की 2007 में इन्दौर की खजराना मंदिर जमीन मामले में शिकायत हुई थी। परीक्षण के बाद 2010 में प्रकरण दर्ज हुआ। 30 अगस्त 2013 को संगठन स्तर पर समाप्त हो गया। चौधरी चन्द्रभान सिंह- तत्कालीन कृषि मंत्री के खिलाफ योजनाओं को लेकर 2007 में प्रकरण दर्ज हुआ था। जांच के बाद संगठन स्तर पर समाप्त हो गया। हाईकोर्ट में अभी ये मामला लंबित है। लक्ष्मीकांत शर्मा- तत्कालीन खनिज राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार के खिलाफ 2006 और 08 में खनिज के दो मामले दर्ज हुए। एक 2010 और अगस्त 2012 को समाप्त हो गए। 2006 में दर्ज प्रकरण से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट में रिट पिटीशन लगी हुई है। अजय विश्नोई- तत्कालीन चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्नोई और नगरीय प्रशासन मंत्री जयंत मलैया के खिलाफ 2007 में पद का दुरूपयोग और भ्रष्टाचार का प्रकरण दर्ज हुआ था। मामला नर्सिंग कॉलेजों में खुद के परिजनों को लाभ पहुंचाए जाने से जुड़ा था। जांच के बाद 2013 में दोनों को क्लीनचिट दे दी गई। रमाकांत तिवारी- 2007 में पशुपालन मंत्री रहने के दौरान प्रकरण दर्ज हुआ था। परीक्षण में मालूम पड़ा कि प्रकरण मंत्री के विरुद्ध पंजीबद्ध होना ही नहीं पाया गया। लिहाजा, 22 नवंबर 2011 को उन्हें क्लीनचिट मिल गई।
दलित व आदिवासी नेताओं पर होती है कार्यवाही प्रदेश में लोकायुक्त संगठन का कार्यकाल विवादों से भरा रहा है। इस कार्यकाल में लोकायुक्त ने प्रदेश के जिन दो मंत्रियों व पूर्व मंत्रियों के खिलाफ चालान पेश किया उनमें एक आदिवासी तथा एक दलित वर्ग का है। जबकि राज्य के कई प्रभावशाली मंत्रियों के खिलाफ जितनी भी शिकायतें लोकायुक्त संगठन में की गईं उन्हें या तो जांच के नाम से लंबित रखा गया अथवा क्लीन चिट दे दी गई है। लोकायुक्त संगठन ने सूचना के अधिकार के तहत बताया था कि लोकायुक्त संगठन में प्रदेश के मुख्यमंत्री सहित 13 मंत्रियों के खिलाफ शिकायतें मिली हैं। इनमें से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, जुगलकिशोर बागरी एवं ओमप्रकाश धुर्वे के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत आपराधिक प्रकरण कायम किया गया था। जबकि अजय विश्रोई, बाबूलाल गौर, लक्ष्मीकांत शर्मा, जयंत मलैया, हिम्मत कोठारी, चौधरी चन्द्रभान सिंह, कमल पटेल, कैलाश विजयवर्गीय, अनूप मिश्रा, मोती कश्यप के खिलाफ शिकायतों की जांच की गई और उन्हें क्लीन चिट दे दी गई। लोकायुक्त संगठन ने दलित गर्व के जुगल किशोर बागरी को रीवा में शिक्षाकर्मी चयन समिति के सदस्य के रूप में गलत नियुक्तियों का आरोप लगाकर उनके खिलाफ कोर्ट में चालान पेश कर दिया। चालान पेश होने के तत्काल बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बागीरी से त्यागपत्र मांग लिया। इसी प्रकार ओमप्रकाश धुर्वें जब प्रदेश के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री थे तब राज्य सरकार ने उन्हें मप्र नागरिक आपूर्ति निगम का अध्यक्ष भी बना दिया था। निगम में अनाज के परिवहन की दरों को लेकर धुर्वे पर आरोप लगा था कि उन्होंने जानबूझकर परिवहन ठेके संबंधी फाइल अपने पास रखी, ताकि नए ठेकेदार के बजाय पुराना ठेकेदार ही परिवहन का काम कर सके। नए ठेकेदार ने परिवहन की दरें कम थीं। जिससे निगम को लाखों रुपए का नुक्सान हुआ। धुर्वे के मामले में जिस तरह लोकायुक्त संगठन ने रूचि ली वह चौंकाने वाली है। जिस लोकायुक्त संगठन में मंत्रियेां के खिलाफ वर्षों से जांच लंबित है, वहां ओमप्रकाश धुर्वें के मामले में प्रारंभिक जांच करने के बाद 4 मई 2006 को उनके खिलाफ प्रकरण कायम किया गया और 10 जनवरी 2007 को कोर्ट में उनके खिलाफ चालान पेश कर दिया गया। उल्लेखनीय है कि ओमप्रकाश धुर्वें ने भोपाल के श्यामला हिल्स थाने में लिखित शिकायत में आरोप लगाया था कि तत्कालीन लोकायुक्त रिपुसूदन दयाल के बेटे के पीए के नाम से एक अज्ञात व्यक्ति ने उन्हें फोन करके उक्त मामले को निबटाने के लिए पांच लाख रुपए मांगे थे। लेकिन उन्होंने यह राशि नहीं दी। यद्यपि पुलिस ने धुर्वें की शिकायत को जांच के बाद खारिज कर दिया था।
अदालत की तर्ज पर होगी लोकायुक्त में सुनवाई मध्यप्रदेश लोकायुक्त के कार्यालय में अब अदालत की तर्ज पर सुनवाई होगी। डायस पर लोकायुक्त जस्टिस पीपी नावलेकर होंगे तो सामने फरियादी। कार्यवाही को देखने वाले बीस लोगों के बैठने का इंतजाम भी। इसमें उन मामलों की सुनवाई होगी, जिसमें ये लगता है कि फरियादी को और सुना जाना चाहिए। इसके बाद आरोपी को अपनी बात रखने का मौका भी इसी सिस्टम में दिया जाएगा। लोकायुक्त संगठन के नए दफ्तर में बकायदा अदालती कोर्ट रूमों की तरह डायस, रीडर और फरियादी या आरोपी के खड़े होने के लिए स्थान बनाए गए हैं। संगठन के अधिकारियों का कहना है कि कई मर्तबा जो शिकायतें आती हैं वे अनियमितताओं की ओर इशारा तो करती हैं पर दस्तावेजी साक्ष्य नहीं होते हैं। ऐसी सूरत में शिकायतकर्ता को बुलाकर सुनने की इच्छा होती है। खासतौर पर ये उन मामलों में होता है जिनमें संगठन को शासन को सिफारिश करनी होती है। इसके लिए कोर्ट रूम की व्यवस्था बनाई गई है। अधिनियम में लोकायुक्त संगठन को जिला अदालत के पॉवर दिए गए हैं। किसी को बुलाने समन और वारंट तक जारी किया जा सकता है। हालांकि, इसकी नौबत अभी तक नहीं आई है।
हर साल आती हैं 2500 से 3000 शिकायतें बताया जाता है कि इसकी जरूरत बढ़ती शिकायतों के चलते महसूस की गई। हर वर्ष औसतन ढाई से तीन हजार शिकायतें सीधे या डाक के माध्यम से मिलती हैं। पिछले सालों के आंकडों पर नजर दौड़ाएं तो 500 से ज्यादा पद के दुरुपयोग के मामले दर्ज किए जा चुके हैं। इन प्रकरणों में शासन को विभागीय जांच या अन्य दण्ड दिए जाने की अनुशंसा की जाती है। शासन विधानसभा में पालन प्रतिवेदन प्रस्तुत कर बताता है कि उसने कितनी सिफारिशों का पालन किया। लोकायुक्त जस्टिस पीपी नावलेकर कहते हैं कि अधिनियम में लोकायुक्त को जिला अदालत के अधिकार दिए गए हैं। किसी को बुलाने समन, वारंट जारी करने का अधिकार भी है। ऐसे प्रकरण, जिसमें लगता है कि शिकायतकर्ता को और सुना जाना चाहिए उसे सुनवाई के लिए बुला सकते हैं। कोर्ट रूम काम को व्यवस्थित तरीके से अंजाम देने के लिए बनाया गया है। मौका आने पर इसका उपयोग किया जाएगा।
लोकायुक्त को पॉवरफल बनाओ लोकायुक्त संगठन पर लगातार भेदभाव और निष्क्रियता का आरोप लगता रहा है। जबकि लोकायुक्त पीपी नावलेकर शुरू से कह रहे हैं कि लोकायुक्त के पास वह अधिकार नहीं है की वह बिना सरकार की अनुमति के किसी के ऊपर कार्रवाई कर सके। अभी हान ही में भ्रष्टाचार के आरोपों में फंसे प्रदेश के 8 मंत्रियों और कई अफसरों के खिलाफ कई वर्षों से जांच लंबित रहने को चुनौती देने वाली जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान इस मामले में लोकायुक्त संगठन की ओर से जवाब देकर प्रदेश सरकार पर भेदभाव का आरोप लगाया गया है। जवाब में दावा किया गया है कि तुलनात्मक रूप से काम कम होने के बाद भी प्रदेश सरकार आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) के कर्मचारियों को ज्यादा सुविधाएं दे रही है। इस मामले पर हाईकोर्ट में अब जल्द सुनवाई होगी। जबलपुर के डॉ. पीजी नाजपाण्डे ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर करके कहा है कि लोकायुक्त के सामने मंत्रियों और वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के कई मामले लंबित हैं, लेकिन पिछले 7 से करीब 10 वर्षों में उनकी जांच पूरी नहीं हो सकी है। याचिका में आरोप है कि इतने वर्षों से जांच लंबित रहने के कारण भ्रष्टाचार के आरोपों में शामिल मंत्री और अफसर अपने पदों पर बने हुए हैं, जो अवैधानिक है। इन आधारों के साथ दायर याचिका में राहत चाही गई है कि सरकार को निर्देशित किया जाए कि लोकायुक्त संगठन को पर्याप्त सुविधाएं मुहैया कराई जाएं, ताकि लंबित मामलों की जांच जल्द से जल्द पूरी हो सकें।
मुख्यमंत्री से मंत्रियों तक की शिकायत गठन से लेकर अब तक लोकायुक्त ने सतत और मेहनत के साथ अपने काम को अंजाम दिया है। यह अलग बात है कि राज्य सरकार के असहयोग की वजह से पकड़े गए मामलों को अंजाम तक पहुंचाने में शत प्रतिशत कामयाब नहीं हुई है। 1982-2013 तक के 31 वर्षों में लोकायुक्त ने मुख्यमंत्री और मंत्रियों के खिलाफ 520 शिकायतें प्राप्त की थी इनमें से 335 शिकायतें झूठी पाई गई, 185 में प्रकरण दर्ज कर जांच की गई। इनमें से 161 जांच के उपरांत कार्रवाई योग्य नहीं पाई गई। 21 को कार्रवाई के लिए भेजा गया है। उक्त प्रकरणों के अलावा लोकायुक्त ने 3077 प्रकरण दर्ज किए। इसमें 5080 शासकीय सेवक और 134 अन्य व्यक्ति है।
शायद मिलें नाखून या दांत लोकायुक्त का गठन 1982 में किया गया था और इसके द्वारा लगातार कार्रवाई की जा रही है। यह अलग बात है कि हाल ही के वर्षों में अधिकारी से लेकर चपरासी तक के पकड़े जाने और उनसे करोड़ों की संपत्ति मिलने के कारण सरकार की नींद उड़ चुकी है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने जो आदेश जारी किया है उसके बाद माना जा रहा है कि लोकायुक्त कुछ मजबूत होगा। गौरतलब है कि लोकायुक्त द्वारा पकड़े जाने वाले अधिकारियों-कर्मचारियों पर तेजी से प्रभावी कार्रवाई नहीं होने के मामले में कुछ समय पूर्व लोकायुक्त पी पी नावलेकर ने कहा था कि लोकायुक्त बगैर दांत और बिना नाखून का शेर है। सुप्रीम कोर्ट ने जो आदेश दिये हैं और सरकार अभियोजन के मामले में बदलाव की जो तैयारी कर रही है इसके बाद कम से कम लोकायुक्त को नाखून या दांत में से कुछ एक जरूर मिल जाएगा।
पकड़ी अरबों की संपत्ति भ्रष्ट अधिकारियों पर नकेल डालने के उ_ेश्य से लोकायुक्त में प्रकरण दर्ज कराने के साथ साथ अरबों की संपत्ति भी पकड़ी है। 1982 से 2013 तक लोकायुक्त पुलिस ने विभिन्न धाराओं में प्रकरण दर्ज करते हुए 4 अरब 17 करोड़ 27 लाख 87 हजार 773 रुपये की संपत्ति जब्त की है। 2001-02 से लेकर 2012-13 तक सबसे अधिक संपत्ति वर्ष 2011-12 में 1 अरब 6 करोड़ 80 लाख 49 हजार 503 रुपये की पकड़ी थी।
11 मंत्रियों की है शिकायत सुप्रीम कोट के रूख को देखते हुए मध्य प्रदेश सरकार लोकायुक्त को और अधिक सशक्त बनाने जा रही है। पिछले दस साल में लोकायुक्त की छापामार कार्रवाई से चपरासी से लेकर अफसरों तक के करोड़पति होने का खुलासा होने पर पूरी सरकार की किरकिरी हो रही है। मध्यप्रदेश लोकायुक्त के पास 11 मंत्रियों, 49 आईएएस, 11 आईपीएस और 100 से अधिक पीसीएस अधिकारियों के खिलाफ शिकायतें हैं लेकिन सरकार की ओर से इन मामलों में इनके खिलाफ अभियोजन की अनुमति नहीं दी गई है। बीते तीन साल में लोकायुक्त ने मध्यप्रदेश में रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़े जाने के 361 मामलों, पद का दुरुपयोग करने के 66 और अनुपातहीन संपत्ति के 114 मामलों में कार्यवाही की है। लोकायुक्त ने अब तक लगभग 663 करोड़ रुपए की बकाया राशि भी वसूल की है।
लोकायुक्त के पत्र और सिफारिशें गायब! लोकायुक्त संगठन की ओर से शासन को भेजी सिफारिशें और भृत्य, पेंशन सहित अन्य सुविधाओं के लिए लिखे पत्र सरकारी रिकॉर्ड से गायब हैं। इतना ही नहीं लोकायुक्त ने विदेश दौरा करने के बाद जो रिपोर्ट शासन को सौंपी थी वो और लोकायुक्त सम्मेलन से जुड़ी सिफारिशें भी रिकार्ड में नहीं हैं। लोकायुक्त संगठन ने भी साफ कर दिया है कि इन मुद्दों से जुड़ा कोई रिकार्ड उनके पास नहीं है। सामान्य प्रशासन विभाग ने अजय दुबे के सूचना का अधिकार आवेदन की अपील पर आदेश पारित कर यह खुलासा किया है। आदेश में कहा गया है कि संबंधित शाखा में चाही गई जानकारी रिकॉर्ड में नहीं है। लोकायुक्त संगठन के पास ही ये संधारित हैं, जबकि लोकायुक्त संगठन की लोक सूचना अधिकारी और उप सचिव मनीषा सेंतिया ने 28 अगस्त को पत्र लिखकर एक बार फिर विभाग से ये बात कही। उन्होंने पत्र में साफ कहा कि सूचना का अधिकार में जो जानकारी मांगी जा रही है वो विभाग से ही संबंधित है। बताया जाता है कि फिनलैंड और स्वीडन के दौरे से लौटने के बाद पूरी रिपोर्ट बनाकर लोकायुक्त कार्यालय ने शासन को सौंपी थी। इसी तरह 2010 में हुए देशभर के लोकायुक्तों के सम्मेलन की सिफारिशें भी शासन को भेजी गई थीं।

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