गुरुवार, 14 मार्च 2013

गढ़ से निकल चुनावी मोर्चा संभालेंगे दिग्गज

भोपाल। कभी कांग्रेस का अभेद किला रहे मप्र में लगातार 10 साल सत्ता से बाहर रहने के बाद पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव में हर हाल में जीत दर्ज करने की योजना बना रहा है। इसके लिए दिग्गज नेताओं को अपने गढ़ से निकल कर पूरे प्रदेश में सक्रिय होने की रणनीति बनाई जा रही है। इस नीति के तहत सभी दिग्गज नेता चुनाव से चार माह पहले प्रदेश में डेरा डालना होगा। 2008 का चुनाव हारने के बाद कांग्रेस कुपोषित हो गई। उमा के बाद बाबूलाल गौर और उसके बाद शिवराज के सीएम बनने के बाद कांग्रेस के जो वोट बैंक थे, उस पर धीरे धीरे भाजपा का कब्जा हो गया। शिवराज चूंकि ओबीसी की राजनीति करते हैं, और कांग्रेस के जीत का यही वोट बैंक है। जो कि उसके हाथ से सत्ता के जाते ही खिसक गया। आज आदिवासी वोट बैंक को पुन: कबजाने के लिए कांतिलाल भूरिया को प्रदेश अध्यक्ष बना कर भेजा गया, लेकिन वो भी गुटबाजी की गांठ को और भी कस दिये। नतीजा पार्टी के अंदर उनका जमकर विरोध शुरू हो गया। मामला प्रदेश से दस जनपथ तक पहुंचा। केन्द्रीय मंत्रिमंडल का विस्तार होने की वजह से मामला दब गया। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह राहुल और कांतिलाल भूरिया को दिल्ली बुलाया गया। कांतिलाल वर्सेस ज्योतिरादित्य सिंधिया के मामले की विवेचना का दायित्व फर्नांडिस को देकर विरोध के गुबार को दबाने का प्रयास हाई कमान ने किया। लेकिन अब भी माना जा रहा है कि कांग्रेस के अंदर कांतिलाल को लेकर विरोध दबा नहीं है। पार्टी के अंदर बगावत की आग सुलग रही है। विधायक कल्पना पारूलेकर सहित बीस विधायकों ने दमदारी के साथ कांतिलाल की खिलाफत करके बता दिया कि कांतिलाल नहीं चलेंगे। कल्पना पारूलेकर कहती हैं, ''कांतिलाल भूरिया की वजह से कांग्रेस रसातल में जा रही है। कांग्रेस को मजबूत करने की बजाय उन्होंने उसे गुटों में बांट दिया है। उन्हें मुद्दे उठाना नहीं आता। कई मामले में ऐसा लगता है कि उनकी सांठ गांठ सत्ता पक्ष से है। केवल प्रवक्ताओं की फौज खड़ी करने से काम नहीं चलेगा। यदि 2013 का चुनाव कांग्रेस जीतना चाहती है तो ज्योतिरादित्य सिंधिया को कमान सौंपना ही होगा। अन्यथा कांग्रेस एक बार फिर औंधे मुंह गिर जायेगी''। यह अकेले कल्पना की ही आवाज नहीं है। देखा जा रहा है कि कमलनाथ के आदमी हों या फिर दिग्गी के समर्थक सभी ज्योतिरादित्य के साथ खड़े होने को आतुर हैं। विधायक अमृतलाल जायसवाल कहते हैं, '' कांतिलाल भूरिया के आने से कांग्रेस में तेजी आई है। अभी कांग्रेस में जैसा चल रहा है उसे ठीक ठाक कहा जा सकता है। चुनाव का जहां तक सवाल है, तो राजनीति हमेशा लोकप्रियता पर चलती है। लोकप्रिय व्यक्ति की ही बात सुनी जाती है। ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के स्टार प्रचारक की भूमिका निबाह सकते हैं। उनमें युवाओं को जोडऩे का आकर्षण है। जितने युवा जुड़ेंगे वो कांग्रेस के लिए प्लस होगा''। एक विधायक कहते हैं, ''कमलनाथ छिंदवाड़ा से बाहर निकलते नहीं, कांतिलाल भूरिया आदिवासी जिले तक ही सिमट गये। अजय सिंह राहुल ने ठाकुर बाहुल्य क्षेत्र तक अपने को सिमटा लिया। सुभाष यादव खंडवा से बाहर नहीं निकलते। ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर से बाहर नहीं जाते। पिछले कुछ माह से कुछ जिलों का दौरा किया है। लेकिन इससे क्या होता है। पूर्व विधान सभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी विंध्य क्षेत्र के नेता बन कर रह गये। दिग्विजय सिंह केवल बयानबाजी तक ही सिमट कर रह गये हैं। कमलनाथ को केवल छिंदवाड़ा दिखता है। सभी बड़े नेता अपना अपना क्षेत्र तय कर रखे हैं। ऐसे में हाथ को साथ कैसे मिले। कांग्रेस को मजबूत करने की जवाबदारी किसी एक नेता पर क्यों थोपी जा रही है। जब नेता अपने अपने ठिकाने से बाहर नहीं आयेंगे,कांग्रेस में गिरावट आती जायेगी''। दरअसल आज कांग्रेस गुटों में बंटी है। जो सामंती पृष्ठ भूमि से नहीं आये उन्होंने भी अपना गुट बना लिया है। हर जिले में गुट हैं। हर नेता के आका हैं। लेकिन बड़े नेता अपना क्षेत्र छोड़कर दूसरे के क्षेत्र में झांकते तक नहीं। यह अलग बात है कि उनके समर्थक अपने जिले में दूसरे गुट से भिड़ते रहते हैं। कमलनाथ, ज्योतिरादित्य, सुभाष यादव, सुरेश पचौरी, दिग्विजय सिंह, कांतिलाल भूरिया, अजय सिंह, श्रीनिवास तिवारी आदि के नाम से आज कांग्रेस जानी जाती है। आज हर गुट ने अपने आदमियों को पदों पर बिठा रखा है। जिन्हें पद मिला वो खुश, जिन्हें नहीं मिला वो हाथ का साथ देने को तैयार नहीं। पार्टी में रहकर लोग पार्टी की नहीं पहले अपना देख रहे हैं। विंध्य क्षेत्र में सियासत की नंगी पीठ पर कांग्रेस हंटर सी तुड़ी मुड़ी है। ऐसा लगता है कांग्रेस जो एक क्रांति के नाम से जानी जाती थी, उसका दौर ही खत्म हो गया है। कांग्रेस के हाथ में कुछ भी नहीं है। रीवा ओर शहडोल संभाग को मिलाकर मात्र दो विधायक। इसे देखकर ही, रीवा के जिला भाजपा अध्यक्ष जनार्दन मिश्रा चहक कर कहते हैं,'' तीसरी बार तो हम आठों विधान सभा जीत लेंगे और कांग्रेस को मिली दोनों सीटें भी छीन लेंगें। जानकारों का कहना है कि भाजपा के एक जिलाध्यक्ष के ऐसा कहने के पीछे वजह साफ है। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह राहुल जब से नेता प्रतिपक्ष बने हैं देखा जाये तो अभी तक उन्होंने एक भी कार्यक्रम संभागीय मुख्यालय में नहीं किया। पिछले दिनों उन्होंने जनचेतना यात्रा निकाली तो बुंदेलखंड तक ही यात्रा सिमट कर रह गई। बुंदेलखंड के ठाकुर नेताओं को रिझाने के लिए ऐसा किया। राजा राम की नगरी ओरछा से चेतना यात्री निकाली। रीवा संभाग में राहुल को लगता है कि ऐसी यात्रा की जरूरत नहीं है। राहुल बोले थे, सोनिया जी का कहना है कि मैं सारा ध्यान विंध्य क्षेत्र पर दूं, यदि पिछली बार यहां से कांग्रेस 25 सीट भी निकाल लेती तो प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनाने की दिशा में पहल करती। विंध्य क्षेत्र दूर तक खाली है। अब सवाल यह उठता है कि अजय सिंह किस क्षेत्र में कांग्रेस को मजबूत कर रहे है। जानकारों का कहना है कि राहुल के लिए सीधी का चुरहट ही कठिन होता जा रहा है, इसलिए वो विंध्य क्षेत्र को भूलकर अपना सारा ध्यान चुरहट में लगा रहे हैं। कांग्रेस में गुटबाजी की परंपरा कोई नई नहीं है, गांधी नेहरू के समय से चली आ रही है। अंतर सिर्फ इतना आया है कि पहले विचारों को लेकर गुटबाजी थी, और अब स्वार्थ की पूर्ति के लिए गुटबाजी है। दिग्विजय सिंह, फिर सुरेश पचैरी और कांतिलाल भूरिया ने भी गुटबाजी की परंपरा को जीवंत रखा। नतीजा आज कांग्रेस की देह टुकड़े में टुकड़े मे हर जिले में अलग अलग नामों से जानी जाती हैं। तभी तो विधायक आरिफ अकील कहते हैं,'' जब तक प्रदेश कांग्रेस को जमीन से जुड़ा सबको साथ लेकर चलने वाला नेता नहीं मिलेगा प्रदेश में कांग्रेस के अंदर के हालात नहीं सुधरेंगे। और कांग्रेस का नुकसान होता जायेगा। आज सभी कहते हैं कि हाथ को चाहिए साथ। लेकिन कौन दे साथ। हाथ बढ़ाते भी हैं तो कमान संभालने के लिए। गुटबाजी के कांटो से लहुलूहान है हाथ। कांग्रेस में भडफ़ोड़ मची है। हर जिले में कांग्रेसियों का हाथ, खिलाफ है हाथ के। कांग्रेस की देह कटी हुई है। जादूगर चाहिए,जो कांग्रेस की कटी देह को जोड़ दे।

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