गुरुवार, 14 मार्च 2013

प्रदेश में राजनीतिक भूमिका तलाश रहीं उमा!

भोपाल। 2003 में प्रदेश में दस साल पुरानी दिग्विजय सिंह सरकार को उखाड़ कर भाजपा का सरकार लाने वाली उमा भारती अब स्वयं के लिए मध्य प्रदेश में राजनीतिक भूमिका तलाश रहीं है। इसके लिए वे प्रदेश संगठन के साथ ही अपने प्रिय नेता और पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह से निरंतर संपर्क में हैं। यही कारण है कि जो उमा कभी शिवराज सिंह चौहान पर कई गंभीर आरोप लगाती थीं वही अब उनके गले लगते दिखाई देती हैं। उमा इस बात को जानती हैं कि वापसी के समय जिन शर्तों को उन्होंने स्वीकार किया उनमें सबसे बड़ी यही थी कि वे मध्य प्रदेश की राजनीति से दूर रहेंगी। ऐसे में एक चीज स्पष्ट है कि भले ही उमा की और कहीं कोई भूमिका निकल सकती हो लेकिन मध्य प्रदेश के राजनीतिक कपाट उनके लिए बंद हो चुके हैं। यहां के भाजपा नेताओं ने उमा की वापसी का सबसे ज्यादा विरोध किया था। जानकारों का मानना है कि उमा इस बात को अच्छी तरह समझ चुकी हैं कि मध्य प्रदेश में अब उनके लिए कोई राजनीतिक जमीन बची नहीं है और राष्ट्रीय स्तर पर नेताओं के बीच ऐसे ही पद और वर्चस्व को लेकर सिर-फुटौव्वल मची हुई है। उमा के एक अत्यंत करीबी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, देखिए, दीदी जानती हैं कि उनके पास विकल्प नहीं है। मध्य प्रदेश वे आ नहीं सकती। फिर भी राजनाथ सिंह के अध्यक्ष बनने पर उन्हें एक उम्मीद की किरण नजर आ रही है। वे आगे कहते हैं कि राजनाथ जी भी चाहेंगे की दीदी केंद्र में रह कर राजनीति करें। कुछ राजनीतिक विश्लेषक यह भी मानते हैं कि उमा आगे क्या करेंगी, पार्टी में उन्हें क्या नई जिम्मेदारी मिलेगी, उनकी राजनीतिक हैसियत कितनी कमजोर या मजबूत होगी यह इस बात पर भी निर्भर करेगा कि राजनाथ उन्हें कितना महत्व देते हंै। राजनीतिक टिप्पणीकारों का मानना है कि खुद को स्थापित करने और खोई हैसियत पाने के साथ ही पार्टी को स्थापित करने के लिए भी यह जरूरी है कि उमा उत्तर प्रदेश में रहकर काम करें क्योंकि वर्तमान चुनाव परिणामों ने बता दिया है कि जब तक दिल दिल्ली में लगा रहेगा तब तक उत्तर प्रदेश में जीत नामुमकिन है। उत्तर प्रदेश में नहीं चली बताते हैं कि भाजपा में वापसी के बाद जब उमा भारती को उत्तर प्रदेश भेजा गया तब किसी को भी यह भ्रम नहीं था कि वे वहां जाकर क्रांति करने वाली हैं। भाजपा और उसके खुद उमा भारती भी जानती थीं कि पार्टी में वापसी के बाद यूपी में उन्हें मिली पहली पोस्टिंग का क्या मतलब है। खैर, कार्यकर्ता, संगठन और नेतृत्व विहीन या कहें मरणासन्न उत्तर प्रदेश भाजपा के साथ उन्होंने काम किया। नतीजा सामने है। पार्टी बुरी तरह चुनाव हार चुकी है। 2007 के मुकाबले न उसे चार सीटें कम मिली हैं बल्कि वोट प्रतिशत में भी कमी आया। हां, उमा चरखारी विधानसभा से अपनी सीट जीतने में कामयाब हुईं। अब फिर से वही यक्ष प्रश्न सामने है कि उमा भारती का अगला राजनीतिक कदम क्या होगा। कम हुई शिव और उमा की दूरिया राजनीति में कोई किसी का दुश्मन नहीं होता है। वक्त-वक्त के साथ राजनीति भी अपना चेहरा बदलती रहती है। इसका नजारा 9 फरवरी को होशंगाबाद में नर्मदा समग्र के सेमीनार में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उमा भारती एक मंच पर थे। इस दौरान चौहान और भारती के बीच गुप्तगू भी हुई। दोनों खूब खिल-खिलाए भी। राजनीतिक पंडितों को इस पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ। क्योंकि राजनीति में हर पल तो बदलाव होता है। भाजपा में वापसी के बाद उमा भारती और शिवराज की प्रदेश में पहली बार एक मंच पर मौजूदगी थी। इससे साफ जाहिर है कि कहीं न कहीं मामला भीतर ही भीतर कुछ पक रहा है। उमा भारती संघ परिवार से बेहद निकट से जुड़ी हुई हैं और संघ परिवार अब उमा भारती को मुख्य धारा में लाने के लिए हरसंभव कोशिश कर रहा है। ऐसी स्थिति में उमा भारती ने भी पुराने गिला-शिकवा भुलाकर अब फिर से अपनी नई राजनीतिक जमीन तैयार करने की कोशिश कर रही हैं। निश्चित रूप से मप्र की राजनीति में उमा और शिव की जोड़ी अगर भविष्य में बनती भी है, तो यह भाजपा के लिए सुखद ही होगा, जो कि चुनाव में भी वोट प्रतिशत तो बढ़ाएगा ही।

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