गुरुवार, 14 मार्च 2013

जनाधार वाले मुस्लिम नेताओं को साधेगी कांग्रेस

भोपाल। विधानसभा चुनाव की चुनौती का सामना करने के लिए खुद को तैयार कर रही कांग्रेस के पास मुस्लिम मतदाताओं को एकजुट करने के लिए अब मुस्लिम नेता के नाम पर सिर्फ भोपाल से आरिफ अकील बचे हैं। ऐसे में पार्टी प्रदेश में मुस्लिम नेतृत्व को तरस गई है। नेतृत्व के अभाव से जूझ रही पार्टी की मुसीबत उन मुस्लिम नेताओं ने और बढ़ा दी है जो उसके पाले में मौजूद हैं। उनमें से पूर्व सांसद गुफराने आजम और असलम शेर खां ने लंबे अरसे से पार्टी नेतृत्व के खिलाफ बागी तेवर अख्तियार कर रखे हैं। ऐसी ही तेवर दिखाने वाले पूर्व सांसद अजीज कुरैशी उत्तराखंड के राज्यपाल बनकर प्रदेश से बाहर हो गए हैं। लेकिन अब इस चुनावी साल में पार्टी सभी मतभेद भुलाकर जनाधार वाल मुस्लिम नेताओं को साधने की तैयारी कर रही है। उपचुनावों में कांग्रेस से बिछड़ गए मुस्लिम प्रदेश में कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक रहे मुस्लिम मतदाता पिछले 5 सालों में भाजपा के खेमें में आ गए हैं। 2003 की अपेक्षा 2008 के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं ने भाजपा के पक्ष में कुछ हद तक अधिक मतदान किया तो उसके बाद हुए 5 उपचुनावों के तो उन्होंने कांग्रेस से नाता तोडऩे का संकेत दे दिया। अब इस चुनावी साल में जब कांग्रेस ने इसका विश£ेषण किया तो उसके होश ही उड़ गए। साल 2011 में हुए तीन विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनाव में मुस्लिम बहुल मतदान केंद्रों पर भाजपा को कांग्रेस से ज्यादा वोट हासिल हुए। जबेरा उपचुनाव में मुस्लिम बहुल 29 मतदान केंद्रों पर कांग्रेस के 6,506 के मुकाबले भाजपा को 8,665 वोट मिले। इसी तरह हाई प्रोफाइल सीट कुक्षी के 40 मुस्लिम बहुल मतदान केंद्रों पर कांग्रेस को 8,699 और भाजपा को 15,058 एवं सोनकच्छ सीट के 53 मुस्लिम बहुल मतदान केंद्रों पर कांग्रेस को 15,800 और भाजपा को 18,308 वोट मिले। 2008 के विधानसभा चुनाव में सोनकच्छ में उन 53 केंद्रों पर भाजपा को महज 12,939 और कांग्रेस को 16,167 वोट मिले थे। शिवराज की छवि बनी बाधा कांग्रेस और मुस्लिम मतदाओं के बीच लगातार बढ़ रही दूरी की मुख्य वजह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की धर्मनिरपेक्ष छवि है। मध्यप्रदेश अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष हिदायतुल्ला शेख कहते हैं,प्रदेश में कांग्रेस के पक्ष में मुसलमानों का मतदान अब इतिहास की बात है। भाजपा केवल लुभावने नारों एवं बातों तक ही सीमित नहीं है। मुस्लिम समुदाय के नेताओं को तरजीह देते हुए पार्टी ने उन्हें विभिन्न पदों से नवाजा है। मध्यप्रदेश राज्य अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष पद लगभग ढाई साल तक खाली रहने पर कांग्रेस ने भाजपा पर आरोप लगाया था कि वह अल्पसंख्यकों की उपेक्षा कर रही है.भाजपा ने तत्काल अनवर मोहम्मद खान को राज्य अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष बनाया। मध्यप्रदेश मदरसा बोर्ड, मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी एवं मध्यप्रदेश हज कमिटी में अध्यक्ष पद पर भाजपा ने राजनीतिक नियुक्ति करने के अलावा मध्यप्रदेश कुक्कुट विकास निगम, भोपाल विकास प्राधिकरण एवं देवास विकास प्राधिकरण में उपाध्यक्ष पद पर भी मुस्लिम समुदाय के नेताओं को ही बिठाया है। मुस्लिम नेताओं में समन्वय नहीं कांग्रेस में जितने भी मुस्लिम नेता हैं उनमें समन्वय नहीं है। 230 सदस्यों वाली मप्र विधानसभा में अकेले मुसलिम विधायक आरिफ अकील अपनी मर्जी के मालिक हैं। उनका गुफराने आजम से भी 36 का आंकड़ा है। मुसलिम नेतृत्व के संकट से जूझ रही कांग्रेस की परेशानी वरिष्ठ नेता गुफराने आजम और असलम शेर खां ने और बढ़ा दी है। गुफराने लोकसभा, राज्यसभा व कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य, पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष और युवा कांग्रेस के प्रदेश महामंत्री और असलम पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री व हाकी के ओलंपिक खिलाड़ी रहे हैं। दोनों नेता पार्टी में अल्पसंख्यकों व जमीनी मुद्दों की अनदेखी का आरोप लगाते हुए लगातार कांग्रेस नेतृत्व को कोस रहे हैं। गुफराने ने तो पार्टी प्रदेशाध्यक्ष कांतिलाल भूरिया को नकारा करार देते हुए यहां तक कह दिया कि 2003 और 2008 की तरह 2013 का विधानसभा चुनाव भी कांग्रेस नहीं जीत पाएगी। असलम भी कह चुके हैं कि पार्टी का यही हाल रहा तो उसका बेड़ा पार होना मुश्किल होगा। वहीं प्रदेश कांग्रेस इब्राहिम कुरैशी,सचिव अब्दुल रज्जाक, प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य निजामुद्दीन अंसारी 'चांदÓ,सईद अहमद सुरूर,नासीर इस्लाम,हफीज कुरैशी,शबाना सोहेल व पार्टी के अल्पसंख्यक विभाग के प्रदेशाध्यक्ष हाजी हारुन भी अपनी डफली अपना राग अलाप रहे हैं।

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