गुरुवार, 14 मार्च 2013

भाजपा तलाश कर रही है जीतने वाले चेहरे

भोपाल। खुफिया महकमें से प्रदेश के हर जिले में विधानसभावार उम्मीदवारों को तलाशने में लगी है भाजपा। भाजपा उन चेहरों को तलाश रही है, जो जीत सकते हैं तथा उन मंत्रियों और विधायकों की वर्तमान स्थिति भी तलाशी जा रही है। यह रिपोर्ट सत्ता और संगठन तक पहुंचेगी। संघ के लोग इस प्रक्रिया को लेकर अंदरखाने नाराज हैं। अभी तक यह काम संघ करता रहा है। बताया जाता है कि सूची पर सत्ता का शिखर नेतृत्व जिलों के कलेक्टरों से भी राय ले सकता है। सत्ता और संगठन ने समन्वय की दृष्टि से इस बार यह नई प्रक्रिया अपनाई है। खुफिया सोर्स से पार्टियां अपने लिए सूचनाएं मंगाती रहती है, यह कोई नई बात नहीं है। कांग्रेस में यह परम्परा बहुत पुरानी है। पहली बार संघ के अलावा भी भाजपा ऐसे सूत्रों से जीतने वाले उम्मीदवार तलाश रही है। संगठन का सीधे खुफिया स्रोतों से कोई सीधा वास्ता नहीं पड़ता और सत्ता के कई ध्रुव है जो संपर्क में रहते। संघ के एक प्रचारक इस बात की जांच करने इंदौर संभाग पर निकले हैं। धार और झाबुआ के बीच में रुकते-रुकते वे इस खबर की तफ्तीश कर रहे थे। अचानक वे झाबुआ जिला पंचायत के एक अधिकारी की बात से चौंक गए। उन्होंने जिले के तमाम भाजपा नेताओं से कहा कि प्रशासन बड़ी ताकत होती है। हमसे आपकी पार्टी के लोग कई सूचनाएं लेते हैं, अच्छा व्यवहार करो अन्यथा आपका टिकट कट सकता है। उसने पूछा कि क्यों और कैसे। तब उसने राज खोला कि हम लोग एक रिपोर्ट पर काम कर रहे हैं, जिसमें जितने वालों की जानकारी इक_ा की हुई है। संघ का वह प्रचारक चौंक पड़ा। जब वह इंदौर से निकला था तो उसके कान पर इस तरह की वार्ता पुराने संघ से सम्पर्क रखने वाले लोगों द्वारा सुनाई दी थी। उसे तब तो विश्वास नहीं हुआ, लेकिन जब वह झाबुआ में उक्त अधिकारी के संपर्क में आया तो फिर उसे दाल में काला दिखा। लौटते समय आलीराजपुर, बड़वानी, खंडवा, खरगोन, बुरहानपुर और धार होते हुए उसने सही तथ्य जुटाए। अब वे इस जानकारी को किस तरह संघ से संगठन तक पहुंचाते हैं, यह देखने वाली बात होगी। पिछले दिनों एक बात अंदरखाने तेजी से चल रही है कि प्रदेश में प्रशासन राज चल रहा है। भोजशाला के संदर्भ में संघ ने यही कुछ महसूस किया। हालांकि उसके पुख्ता प्रमाण अभी तक नहीं मिले हैं। कहा जा रहा है कि सत्ता और संघ के बीच एक हल्की नाराजी की लकीर खिंच आई है। संगठन के नवनियुक्त कप्तान इस खाई को पाटने में लगे हैं। उनकी कोशिश यह है कि चुनाव इतने नजदीक है, तब भोजशाला के नाम पर प्रशासन से कोई नया पंगा भी न हो और कार्यकर्ताओं की नाराजी को भी दूर कर लिया जाए, मगर यह यक्ष प्रश्न तमाम नेताओं और कार्यकर्ताओं के सामने खड़ा हो गया है कि क्या उनके जिले में विधानसभा की टिकट प्रशासन की हरी झंडी पर आधारित होगी? 60 से 80 भाजपा विधायक खतरे के निशान पर भाजपा के जिस आंतरिक सर्वे ने मुख्यमंत्री तक की नींद उड़ाई हुई है उसमें मंत्रियों को भी निशाना बनाया गया है। एक डेढ़ दर्जन से अधिक मंत्रियों के हारने की आशंका जताई गई है। महाकोशल के दो मंत्रियों पर संदेह का साया दिखाया गया है। कई विधायक भी खतरे के निशान पर है और यही वजह है कि निकट भविष्य में मुख्यमंत्री स्वंय प्रदेश का दौरा करने निकलेंगे। सूत्रों का कहना है कि पिछले दिनों भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) भोपाल आये थे और उन्हें भी इस सर्वे रिपोर्ट से अवगत कराया गया। दावा यह भी हो रहा है कि राष्ट्रीय महामंत्री ने खुद उन नेताओं से चर्चा किया जिन्होंने यह सर्वे कराया। एक एनजीओ तथा कुछ इंटेलिजेंस अधिकारियों से सर्वे कराने की बात कही गई। यह भी राष्ट्रीय महामंत्री को बताया गया कि सर्वे से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान व नये प्रदेश अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर भी वाकिफ हैं। मुख्यमंत्री ने सर्वे के मुताबिक कार्य भी शुरू कर दिया है और वे अफसरों तथा मंत्रियों से वन-टू-वन विचार विमर्श भी कर रहे हैं। श्री चौहान पूरे प्रदेश का दौरा भी करेंगे। जिन मंत्रियों पर लाल यानि हार जायेंगे या पीला यानि हार सकते हंै का निशान लगा है की भी जानकारी दी गई। तकरीबन 6 से ज्यादा केबिनेट मंत्रियों की हालत खराब है और इतने से ही अधिक राज्यमंत्रियों से भी क्षेत्र की जनता नाराज है। यह भी राष्ट्रीय महामंत्री को फीड किया गया। महाकोशल क्षेत्र के दो मंत्रियों के नाम उनमें शामिल बताये गये जो मंत्री हार जायेंगे या हार सकते हैं। 60 से 80 ऐसे विधायक का भी खुलासा किया गया जो सत्ता विरोधी और स्वंय के कारनामे से पार्टी की साख पर बट्टा लगा देंगे। दबी जुबान से यह भी कहा गया कि इस बार सर्वे के आधार पर प्रत्याशी चयन किया जाये तथा ज्यादा से ज्यादा नये चेहरे उतारे जायें। आखिर में यह तय किया गया कि जल्द ही चुनाव की रणनीति बनाई जाये और पार्टी को एकजुट करने के प्रयास हों। 25 फरवरी का महा जनसम्पर्क अभियान भी इसी कड़ी में देखा जा रहा है। इसके बाद प्रभारी मंत्रियों की गुद्दी कसी जायेगी और जिला व संभाग स्तर पर संगठन द्वारा विधायक कार्य की समीक्षा होगी। कलेक्टर्स से मंगवाए जिताऊ नेताओं के नाम मध्यप्रदेश में इन दिनों ठीक वैसा ही प्रशासनिक चुनावी प्रबंधन दिखाई दे रहा है जैसा कि कभी इंदिरा गांधी के समय दिखाई दिया करता था। सीएम के सचिवालय ने कलेक्टरों से भाजपा के ऐसे नेताओं के नाम मांगे हैं जो आगामी विधानसभा चुनावों में जिताऊ प्रत्याशी हो सकते हैं। सामान्यत: प्रशासनिक अधिकारी चुनावों पर अपनी रायशुमारी दिया ही करते हैं और वो हमेशा अनआफिसीयल ही होती है परंतु उनकी रायशुमारी का यूज नहीं किया जाता। कम से कम भाजपा में तो यह कल्चर कतई नहीं रहा कि प्रशासनिक अधिकारियों की राय को वेल्यू दी जाए। भाजपा में वेल्यू आरएसएस के सुझावों को दी जाती है, परंतु टीम शिवराज ने भाजपा की परंपरा के इतर वही पेटर्न यूज करने का मन बनाया है जो इंदिरा गांधी यूज किया करतीं थीं। सीएम का सचिवालय इन दिनों कलेक्टरों से रायशुमारी कर रहा है कि इलाके में जमीनी लेवल पर किस भाजपा नेता की पकड़ मजबूत है और कौन आगामी विधानसभा चुनावों में जिताऊ प्रत्याशी हो सकता है। इसके लिए बाकायदा सूची बनाई जा रही है और कई जिलों के कलेक्टर्स गंभीरतापूर्वक अपनी रिपोर्टस भी भेज रहे हैं। ब्यूरोक्रेट्स और शिवराज सिंह की जुगलबंदी किसी से छिपी नहीं है और मध्यप्रदेश में तीसरी बार सरकार बनाने के लिए भाजपा में शिवराज सिंह को फ्रीहेंड भी मिला हुआ है अत: माना जा रहा है कि कलेक्टर्स की इस रिपोर्ट्स का बेहतर यूज किया जाएगा। सनद रहे कि इसी तरह की प्रक्रिया इंदिरा गांधी भी आजमाया करतीं थीं। उन्होंने पीएम आफिस को देश का सबसे ताकतवर आफिस बना दिया था और पीएम आफिस का दखल भारत के सभी जिलों तक होता था। कांग्रेस में प्रत्याशियों को टिकिट से पहले संबंधित जिलों के कलेक्टर्स की रिपोर्ट पर भी गंभीरता से विचार किया जाता था, इसी प्रक्रिया के चलते कई बार कांग्रेस में इंदिरा गांधी को तानाशाह भी कहा गया। भाजपा ने इस पेटर्न का यूज कभी नहीं किया। भाजपा का मानना रहा है कि आफिसों में बंद वरिष्ठ अधिकारियों को जमीनी स्तर की जानकारी नहीं होती जबकि आरएसएस इसका सबसे बेहतर सोर्स है। मध्यप्रदेश में भी आरएसएस की योजना से भाजपा में भेजे गए नेताओं की कमी नहीं है परंतु टिकिट वितरण में किसकी चलेगी यह तो समय ही बताएगा।

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