गुरुवार, 14 मार्च 2013

प्रत्यासी ढूंढने प्रदेश भर का दौरा करेंगे सांसद

भोपाल। भाजपा के गढ़ के रूप में स्थापित हो रहे पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने जिस फॉर्मूले से भाजपा को हराया था उसी शैली में मैदानी राज्य मप्र को फतह करने की तैयारी कर रही है। इसके लिए प्रदेश के सभी 12 कांग्रेसी सांसद प्रदेश भर का दौरा करेंगे। इस दौरे के दौरान वे विधानसभा चुनाव के जीताऊ प्रत्यासियों की खोज के साथ ही क्षेत्रवार चुनावी रणनीति भी तैयार कर आलाकमान को देंगे। उसके आधार पर पार्टी रणनीति बनाकर चुनावी समर में उतरेगी। यह संकेत पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रदेश के सांसदों के साथ नई दिल्ली में हुई बैठक में दिया है। हिमाचल प्रदेश और गुजरात चुनाव से पार्टी में उत्साह हिमाचल प्रदेश और गुजरात चुनाव के बाद कांग्रेस में उत्साह का माहौल बना हुआ है। इन चुनावों में कांग्रेस अपनी रणनीति में सफल रही है। हिमाचल प्रदेश में जहां सत्ता उसके हाथ लगी है, वहीं गुजरात में भी कांग्रेस को नरेंद्र मोदी के मजबूत कुनबे में दो सीटें कम करने में सफलता मिली है। कांग्रेस का मानना है कि अगर 2013 में मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों में हिमाचल की नीति पर चलें, तो सफलता हाथ लग सकती है। वैसे देखा जाए तो प्रदेश कांग्रेस के लिए सबसे ज्यादा चुनौतियों भरा है। कांग्रेस यहां सबसे ज्यादा कमजोर है और इस कमजोरी का कारण सिर्फ और सिर्फ गुटबाजी है। क्या है हिमाचल फार्मूला मप्र की तरह ही हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस टूकड़ों में बंटी थी। वहां के दिग्गज नेता किसी की नहीं सुन रहे थे। आलाकमान ने सभी नेताओं को पार्टी या किसी भी नेता के खिलाफ जाने वालों को बाहर का रास्ता दिखाने की हिदायत के साथ लाख विरोधों के बावजूद भी वीरभद्र सिंह को कमान सौंपी दी। फार्मूले के अनुसार वीरभद्र ने विधानसभा क्षेत्रों का सर्वे सासदों,विधायकों और पदाधिकारियों से करवाया। उसके बाद एक रिपोर्ट तैयार कर आलाकमान को सौंपी गई और उसके आधार पर सभी को महत्व देते हुए प्रत्यासियों का चयन कर पार्टी मैदान में उतरी और वीरभद्र ने कांग्रेस को सत्ता दिला दी। आलाकमान का मानना है कि अगर यही प्रयोग मध्य प्रदेश में भी होता है, तो दस वर्ष बाद कांग्रेस वहां फिर से वापसी कर सकती है। दिग्विजय और सिंधिया के हाथ कमान मप्र में पार्टी की कमान कांतिलाल भूरिया के पास रहेगी और चुनावी कमान होगी दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के पास। कांग्रेस में व्याप्त गुटबंदी को कम करने के लिए यह कदम उठाया गया है। दिग्विजय और सिंधिया इसके लिए तैयार भी हैं और चुनावी सफलता के लिए राहुल मॉडल पर चुनाव लडऩे की तैयारी में लगे हैं। दिग्विजय सिंह सप्ताह भर पहले तक अपने दिल्ली स्थित कार्यालय और घर पर लगातार कार्यकर्ताओं से मिल रहे थे और उनकी शिकायतों को संजीदगी से ले रहे थे। वहीं केंद्रीय राज्य मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने तो प्रदेश में दौरा भी शुरू कर दिया है। राहुल मॉडल और हिमाचल फार्मूला का ही प्रभाव है कि लंबे अर्से दिग्विजय और ज्योतिरादित्य के बीच दूरियां कम होने लगी हंै। ऐसा माना जा रहा है कि ये सब राहुल गांधी के मॉडल पर चलने की शुरुआत है, ताकि इन आपसी दूरियों का फायदा कहीं शिवराज सिंह चौहान को न मिल जाए। दोनों के बीच घटती दूरियों का एक उदाहरण उस वक्त देखने को मिला, जब गुना में सिंधिया और दिग्विजय एक साथ पहुंचे, तो दिग्विजय सिंह खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया का स्वागत करने गए, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया और दिग्विजय द्वारा पहनाए गए हार को सिंधिया ने उन्हीं को पहनाकर जिंदादिली का परिचय दिया। जानकारों का भी कहना है कि इस तरह से निकटता बढ़ जाती है, तो निश्चित तौर पर आगामी चुनावों में इसका लाभ प्रदेश कांग्रेस को मिलेगा। इधर कुछ महिनों से देखा जा रहा है कि दिग्विजय सिंह अपने सभी विरोधियों से हाथ मिला रहे हैं। स्पष्ट है कि आगामी चुनावों में वे कोई भी विरोधी तेवर नहीं चाहते। इस प्रकार से कांग्रेस की राजनीति में लगातार हो रहे बदलावों का कितना असर होगा, यह तो वक्त ही बताएगा। लेकिन फिलहाल माहौल बनाने की कोशिशें लगातार की जा रही है। यह सिलसिला अगर जारी रहा, तो निश्चित तौर पर कांग्रेस को लाभ होगा। भूरिया को सुझाव 20 जुझारू और अनुभवी नेताओं की एक टीम बनाएं। दस नेता कार्यालय में बैठकर रणनीति बनाएंगे। दस नेताओं को मैदानी संघर्ष की जिम्मेदारी सौंपी जाए। मजबूत जनाधार वाले नेताओं को सक्रिय करें। बिना जनाधार वाले नेताओं को कांग्रेस में कोई जगह न दें। दिग्गज नेताओं को जिम्मेदारी सौंपे और उनके अनुभवों का लाभ लें। तेज-तर्रार विधायकों को सक्रिय करें और मतभेद दूर करें।

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