गुरुवार, 22 दिसंबर 2016

अफसरों, इंजीनियरों और ठेकेदारों की चारागाह बना जल संसाधन विभाग

10 साल में सरकार को 12,000 करोड़ की चपत
भोपाल। 3,000 से अधिक इंजीनियरों वाले मप्र जल संसाधन विभाग में भ्रष्टाचार इस कदर समाया हुआ है कि पिछले एक दशक में अफसरों, इंजीनियरों और ठेकेदारों ने मिलकर सरकार को करीब 12,000 करोड़ की चपत लगाई है। इसका खुलासा कैग की रिपोर्ट, विभागीय जांच और इस बार की बारिश और बाढ़ में सामने आया है। हद तो यह देखिए की कई परियोजनाएं पूरी होने के बाद भी उन परियोजनाओं के निर्माण की खरीदी के नाम पर रकम मांगी जा रही है। हालांकि मामला सामने आने के बाद अब जांच की बात की जा रही है। उधर, विभागीय मंत्री नरोत्तम मिश्रा को अभी इससे अवगत नहीं कराया गया है। उल्लेखनीय है कि पिछले वर्षों में बरगी, राजघाट और इंदिरा सागर परियोजनाओं में 800 करोड़ से ज्यादा के भ्रष्टाचार का मामला सामने आया था। अफसरों, इंजीनियरों और ठेकेदारों ने मिलकर इन योजनाओं में जमकर अनियमितता की है। कुछ मामलों में जहां कुछ इंजीनियरों के खिलाफ कार्रवाई की गई है वहीं ठेकेदारों के खिलाफ भी कदम उठाए गए हैं। लेकिन उसके बाद भी भ्रष्टाचार थमा नहीं और कैग ने पिछले दस साल में 9,772 करोड़ की वित्तीय अनिमियता का खुलासा करके सनसनी फैला दी है। विभाग के सूत्रों का कहना है कि पिछले पांच साल में विभाग में राधेश्याम जुलानिया जैसा सख्त मुखिया(प्रमुख सचिव और बाद में कुछ समय के लिए अपर मुख्य सचिव के तौर पर)के होने के बाद भी भ्रष्टाचार निर्बाध चलता रहा। आलम यह रहा की सालों पहले निर्मित नहरों के निर्माण और उनकी सफाई के नाम पर करीब 400 करोड़ रूपए का घपला कर दिया गया। ये मामले सामने आने के बाद विभाग में हड़कंप मच गया है। प्रदेश में भ्रष्टाचार के लिए सबसे चर्चित मामलों में आईएएस अरविंद जोशी इसी जल संसाधन विभाग के लंबे समय तक पीएस रह चुके हैं। जोशी आयकर छापे के बाद सुर्खियों में आए थे। उनके यहां मिली काली कमाई जल संसाधन विभाग में भ्रष्टाचार की कहानी कहते हैं। नहरों के निर्माण में सबसे अधिक घपले जल संसाधन विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार, प्रदेश में नहर निर्माण से संबंधित 897 छोटी-बड़ी परियोजनाएं शुरू की गई हैं। जिनमें से अभी तक 350 योजनाएं पूरी हो चुकी हैं, जबकि 547 परियोजनाओं के निर्माण का कार्य जारी है। लेकिन जल संसाधन विभाग के अफसरों से मिलीभगत कर निर्मित नहरों के निर्माण के नाम पर इंजीनियर और ठेकेदार सरकार को करोड़ों रूपए की चपत लगा रहे हैं। बताया जाता है कि जन संसाधन विभाग की निर्मित 350 नहर योजनाओं में जमकर भ्रष्टाचार हुआ है। वर्षों पहले निर्मित हो चुकी कई परियोजनाओं का काम चालू दिखाकर लगातार भ्रष्टाचार किया जा रहा है। लेकिन जैसे ही इस भ्रष्टाचार की पोल खिली है विभाग ने इससे अनभिज्ञता जाहिर करते हुए जांच शुरू कर दी है। जांच में यह बात सामने आई हैं कि अनेक परियोजना में काम पूरा हो जाने के वर्षों बाद भी खरीदी की मंजूरियां मांगी गई है। विभाग के सूत्रों का कहना है कि प्रदेश में करीब 227 नहर निर्माण परियोजनाएं ऐसी हैं, जो बीते सालों में पूरी हुई हैं। इनमें से कई परियोजनाओं के नाम पर फिर से खरीदी और कई कामों पर बिना काम हुए मंजूरियां मांगी गई हैं। वहीं 123 नहरों के निर्माण में विभिन्न स्तरों पर भ्रष्टाचार हुआ है, इसको लेकर कैग ने भी आपत्ति उठाई है। जल संसाधन विभाग ने खुद भ्रष्टाचार की आशंका जताकर सभी जिलों के मुख्य अभियंताओं को चेतावनी-पत्र जारी कर दिया है। मामले की गंभीरता इतनी है कि विभाग ने दोषियों को बर्खास्त तक करने की चेतावनी दी है। विभाग अब निर्माण कार्यो की आकस्मिक जांच करेगा। विभाग ने चेतावनी-पत्र में लिखा है कि ठेकेदारों को गलत तरीके से आर्थिक फायदा दिलाने के लिए बिना काम हुए और पूर्व में पूर्ण हो चुके कामों के नाम पर भुगतान कराया जा रहा है। जल संसाधन विभाग के प्रमुख अभियंता एमजी चौबे के मुताबिक कार्य पूर्ण होने के बाद मंजूरी प्रकरण आना शंकाओं को जन्म देता है। इसलिए अधिकारियों को सचेत किया जाता है कि प्रकरणों का परीक्षण कर लें। इसमें रीवा, सीधी व सतना नहर की कैनाल बनने के बाद सामग्री खरीदी के लिए मंजूरी मांगी गई थी। इसमें लाखों के हेर-फेर की आशंका है। इसमें पहले दो इंजीनियरों पर कार्रवाई की गई है। सिवनी-छिंदवाड़ा नहरों के निर्माण कार्य में 69 लाख की गड़बड़ सामने आई थी। इसमें ठेकेदार ने निर्घारित मात्रा में सामग्री का उपयोग नहीं करके केवल बिल लगा दिए गए थे। हर नहर में करोड़ों के काम होते हैं। अभी गड़बड़ी की राशि का पूरा आकलन नहीं है, लेकिन 300 करोड़ से ज्यादा की मंजूरियां इस दायरे में आने का अनुमान है। जानकारों का कहना है कि नहर निर्माण तकनीकी काम होने के कारण जनता और दूसरे लोग हस्तक्षेप नहीं करते। जनप्रतिनिधि भी तकनीकी समझ के अभाव में उदासीन रहते हैं। काम पूरा होने के लंबे समय बाद खरीदी संबंधित मंजूरियां मांगना गड़बड़ी की आशंका तो पैदा करता ही है। कई बार ऐसा भी होता है कि लापरवाही के कारण इंजीनियर तय समय पर मंजूरी नहीं ले पाते और बाद में अनुमोदन मांगते हैं। टीकमगढ़ में बुंदेलखंड पैकेज के तहत हुए कार्यों में जमकर भ्रष्टाचार हुआ है। हाल ही में करोड़ों रुपए की लागत से बनकर तैयार हुई नहर पहली ही बारिश की मार भी नहीं झेल सकी और नहर टूटने से किसानों की सैकड़ों एकड़ जमीन पर लगी फसलें पूरी तरह से बर्बाद हो गईं। बुंदेलखंड पैकेज के तहत टीकमगढ़ में एक नहर बनाने के लिए स्वीकृत हुए करीब 38 करोड़ रुपए पानी में बहा दिए गए। भ्रष्टाचार की भेंट चढ़े पैकेज में इस तरह भ्रष्टाचार हुआ है कि, हाल ही में हरपुरा से लेकर मडिया गांव तक बनी नहर कई जगह से फूट गई है। जामनी नदी पर बनी 45 किलोमीटर लंबी इस नहर का काम साल 2011 के आखिरी में शुरु हुआ था। निर्माण लगभग पूरा हो चुका है। लेकिन घटिया निर्माण के चलते पहली ही बारिश में कई जगह से नगर टूट गई। नहर टूटने से कई किसानों की फसलें बर्बाद हो गईं हैं। साल 2011 में इस नहर का ठेका ग्वालियर की सारथी कंस्ट्रक्शन कंपनी को मिला था। 15 जून 2016 तक नहर का काम पूरा होना था। 35 गांवों से होकर गुजरी इस नहर से 10 तालाबों को भरा जाना था। लेकिन घटिया निर्माण के चलते नहर कई जगह से टूट गई। अंदाजा लगाया जा सकता है कि नहर का काम कितना गुणवत्ताहीन हुआ। मामले को लेकर जब बंसल न्यूज ने जि मेदार अधिकारियों से बात की तो उन्होंने हमेशा की तरह रटा-रटाया जबाव दिया। बुंदेलखंड पैकेज में हुए अरबों रुपए के भ्रष्टाचार की गूंज सड़क से लेकर संसद तक सुनाई देती है। लेकिन जिन अधिकारियों के संरक्षण में ये सब होता हैं उन्हें सरकार प्रमोशन से नवाजती है। निर्माण कार्य में लापरवाही और समय सीमा के अंदर काम पूरा न होने पर भी कंस्ट्रक्शन कंपनी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होना सिस्टम और कंस्ट्रक्शन कंपनी के बीच मिलीभगत को उजागर करता है। नहरों की सफाई के नाम पर भ्रष्टाचार प्रदेश में जेसीबी से नहरों की सफाई कर लाखों के बिल भुगतान किए जा रहे है तो नहरों को क्षतिग्रस्त कर मेंटेनेंस के नाम शासन से मिलने वाली राशि का बंदरबांट किया जा रहा हैं। अभी हाल ही में दतिया के सेंवढ़ा में मामला सामने आने के बाद विभाग में हड़कंप मचा है। आरोप है कि अधिकारियों की मिलीभगत से जल उपभोक्ता संस्थाओं द्वारा पक्की नहर पर उगी गाजर घास को काटने के नाम पर जेसीबी मशीन चलावाई जा रही है। जिस गाजर घास को काटने के लिए मशीन चलवाई जा रही है उसे केवल मजदूर से ही सही करवाया जा सकता है। पर जेसीबी मशीन चलवाकर अधिकारी न तो नहर की सफाई करवा पा रहे है। बल्कि नहर के किनारे की आरसीसी को भी तोड़ रहे हैं। इस प्रकार तोड़ी गई आरसीसी नहरों के लिए मेंनटनेंस की जरूरत पैदा कर रही है। बताया जाता है कि संस्थाओं के अध्यक्षों ने अधिकारियों के साथ मिलकर गर्मियों में गूलों का घटिया निर्माण करवाया। नतीजा यह हुआ कि अस्सी फीसदी गूलें अपना अस्तित्व खो चुकी हैं। अब आनन फानन में नहरों की सफाई के नाम पर पैसे कमाने की जल्दी है। बिना टेंडर करा डाले 50 करोड के काम लोक निर्माण विभाग में अधिकारी और इंजीनियर कितने निरंकुश और भ्रष्ट हैं इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अब तो वे बिना टेंडर के भी काम करवाने लगे हैं। पिछले दो माह से रीवा से भोपाल तक एक ऐसा ही मामला चर्चा का विषय बना हुआ है। विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, पिपरवार वितरक नहर घोटाला कार्यपालन यंत्री आरडी अहिरवार की गले की फांस बन गया है। दरअसल इस मामले मे जलसंसाधन विभाग के कार्यपालन यंत्री अहिरवार ने तत्कालीन अपर प्रमुख सचिव राधेश्याम जुलानिया के मौखिक आदेश पर स्वीकृति की प्रत्याशा मे भारी भरकम बजट खर्च कर डाला लेकिन उन्हें स्वीकृति नहीं मिली और तो और अब जुलानिया को जलसंसाधन से हटा भी दिया गया ऐसी स्थिति मे गुणवत्ता विहीन कराया गया कार्य अब आरडीअहिरवार के गले की फांस बन चुका है। बताया जाता है कि इस मामले की शिकायत अधिवक्ता सुरेन्द्र पाण्डेय द्वारा कलेक्टर और कमिश्नर रीवा से की गई थी जिस पर जांच कराई गई। जांच में पाया गया कि पिपरवार माइनर नहर निर्माण मे संबंधित ऐजेंसी द्वारा भारी गड़बड़ी की गई है। इस जांच रिपोर्ट पर वरिष्ठ अधिकारी कार्यवाही करने से कांप रहे हैं क्यों कि मामला सीधे मप्र के तेज तर्राट आईएएस राधेश्याम जुलानिया से जुड़ा हुआ है। एएसीएस स्तर के अधिकारी जुलानिया विगत 5 वर्ष तक एक छत्र जल संसाधन विभाग के प्रमुख सचिव पदस्थ रहे जहां उनकी तूती बोलती रही। जुलानिया मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के विश्वास पात्र अधिकारियों मे गिने जाते रहे जिसका फायदा उठाकर उन्होंने अपनी चहेती कंपनी से बगैर टेंडर 50 करोड का काम करवा डाला। बताया जाता है कि क्योंटी केनाल अनुबंध क्रमांक 3 का 2012-13 दिनांक 27.06.2012 में अतिरिक्त कार्य पिपरवार वितरक नहर क्योटी कैनाल रीवा 0.0 से 1593 का जॉच प्रतिवेदन दिनांक 22.08.2016 पृष्ठ क्रमांक 393/तक/ग्रायॉसे/2016 द्वारा प्रस्तुत जॉच प्रतिवेदन नहर की लाईनिंग की मोटाई 05 सेमी, 03 सेमी, 2.50 सेमी, 4 सेमी पाई गई, जबकि शासन के नियामानुसार 7.50 सेमी होना चाहिए तथा अमानक एवं गुणवत्ता विहीन भी पाई गई। यही नहीं पूरक निर्माण कार्य शासन स्तर पर स्वीकृत हेतु अपेक्षित पाया गया है। इन सब के बावजुद जांच अधिकारी द्वारा आरोपियों को खूब बचाने का प्रयास किया गया। इसके बावजूद कार्य अमानक एवं गुणवत्ता विहीन बिना टेंडर के पाया गया। आरोपीगण मेसर्स एएनएस कांस्ट्रक्शन नई दिल्ली, आरडी अहिरवार कार्यपालन यंत्री क्योटी केनाल जल संसाधन विभाग रीवा, आनन्द स्वरूप तिवारी एसडीओ क्योटी कैनाल रीवा, संदीप कुमार द्विवेदी एसडीओ क्योटी कैनाल रीवा, जीसीएम उपयंत्री क्योटी कैनाल रीवा एवं संबंधित वरिष्ठ एवं कनिष्ठ यंत्रीगण इत्यादि दोषी अधिकारियों के द्वारा किए गए भ्रष्टाचार के खिलाफ एफआईआर और वसूली की कार्यवाही किए जाने की मांग की गई है। पांडेय ने बताया कि ढाल सिंह चौधरी कार्यपालन यंत्री ग्रामीण यांत्रिकी सेवा सम्भाग-1 रीवा के द्वारा जिलाध्यक्ष के यहां दिनांक 22.08.2016 क्रमांक 393 प्रस्तुत किया गया एवं अधीक्षण यंत्री ग्रामीण यांत्रिकी सेवा के द्वारा आयुक्त रीवा को जांच प्रतिवेदन प्रस्तुत करना था परन्तु आरोपी को बचाते हुए आयुक्त के निर्देश थे कि बारीकी से जांच कर तत्काल जांच प्रतिवेदन प्रस्तुत करें। इसके बावजूद भी जांच प्रतिवेदन प्रस्तुत नहीं किया गया। उन्होंने बताया कि जांच अधिकारी ढाल सिंह चौधरी ग्रामीण यांत्रिकी सेवा सम्भाग-1 रीवा के द्वारा 11.08.2016 पिपरवार वितरक नहर की लाइनिंग की जांच 0.0 से 1593 की गई। जिसमें बिन्दु क्रमांक 5 में लिखा गया कि शिकायतकर्ता द्वारा लाइनिंग की मोटाई के सम्बन्ध में शिकायत की गई है। कार्यस्थल का स्थल निरीक्षण किया। एट रेन्डम कुछ कंकरीट पैनल अलग-अलग स्थानों की मोटाई समान्य तौर पर जहां सम्भव हो सका देखी एवं प्रथम दृष्टया मापी गई जो (1)-7.50 सेमी, (2)-7.50 सेमी, (3)-5.00 सेमी, (4)-3.00 सेमी, (5)-2.50 सेमी, (6)-4.00 सेमी पाई गई एवं जांच अधिकारी के द्वारा लिखा गया कि कुछ कंकरीट पैनल में क्रैक (हेयर क्रैक्स एवं कुछ चौड़े) पाए गए एवं एक स्थान पर लाइनिंग कार्य टूटी पाई गई। एक स्थान के कंक्रीट पैनल में सेटेलमेन्ट पाया गया एवं कुछ लाइनिंग कंकरीट पैनल में लगभग पांच-छ: जगह में ऊपरी सतह पर रफ कार्य कंकरीट पाई गई। जिससे स्पष्ट हो गया कि अमानक एवं गुणवत्ता विहीन कार्य कराया गया है। इसके बावजूद भी जांच अधिकारी ढाल सिंह चौधरी द्वारा आरोपीगण मेसर्स एएन कास्ट्रक्शन कम्पनी लिमिटेड नई दिल्ली एवं आरडी अहिरवार कार्यपालन यन्त्री क्योटी कैनाल रीवा एसडीओ उपयन्त्री को बचाने का प्रयास किया गया। बताया जाता है कि बाण सागर परियोजना क्योटी मुख्य नहर के 41.41 से 90.00 किलोमीटर तक कंकरीट लाइनिंग का कार्य पिपरवार वितरक नहर का कार्य अतिरिक्त से जोड़ कर बिना निविदा आमंत्रित किए मेसर्स एएनएस कन्सट्रक्शन कम्पनी नई दिल्ली से नियम विरूद्ध कार्य सम्पादित किया गया है जो नियमानुसार गलत है। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि यह तो महज एक उदाहरण भर है। लोक निर्माण विभाग में लगभग सभी कार्य में ऐसे भ्रष्टाचार किए जाते हैं। भ्रष्टाचार के गवाह बांध इस बार मानसून की पहली बारिश में ही पन्ना के बिलखुरा, सिरस्वाहा तथा नचनौरा बांध फूटने के बाद जल संसाधन विभाग का भ्रष्टाचार प्रकाश में आया। अजयगढ़ तहसील अन्तर्गत बहादुर गंज बांध के फूटने की आशंका के चलते रातो-रात संबंधित ठेकेदार एवं विभाग के नुुमाइंदो द्वारा जेसीबी से दोनों नहरे खोलकर बांध का पानी निकालकर भ्रष्टाचार को छुपाते हुए मरम्मत कराई गई। बुंदेलखंड पैकेज अन्तर्गत अजयगढ़ में करोड़ों की लागत से बनाया जा रहा बहादुरगंज बांध लगभग 90 पूर्ण होने की स्थिति में है बांध से निकलने वाली नहर का कार्य अभी बाकी ही था कि पहली ही बारिश में बांध में जल भराव के कारण फूटने की स्थिति में पहुंच चुका था। बहादुरगंज बांध मे गुणवत्ता की इतनी तकनीकि खामियां अभी भी साफ नजर आ रही है। बांध की पार जगह जगह धस गई और दरारें भी आ चुकी है। वहीं सतना के रामनगर में सात महीने पहले करोड़ों की लागत से बने अंधियारी सागर बांध का एक हिस्सा टूटकर बह गया है। बांध का टूटा हुआ हिस्सा और उससे बहता पानी भ्रष्टाचार की कहानी बयान कर रहे हैं। 7-8 पहले ही यह बांध 32 करोड़ 32 लाख की लागत से बनकर तैयार हुआ था, लेकिन पहली ही बारिश में इस बांध की मजबूती की पोल खुल गई। श्योपुर जिले का बारदा बांध सहित कई बांधों के निर्माण में हुए भ्रष्टाचार का खुलासा हो चुका है। जो इस बात का संकेत है कि जल संसाधन विभाग में भ्रष्टाचार अथाह गहराई तक समाया है। सिंचाई का रकबा बढाने के नाम पर गुणवत्ता विहीन और अनुपयोगी जल संरचनाओं का निर्माण कार्य कराकर सरकारी धन का जमकर बंदरबांट किया गया है। राजनैतिक और प्रशासनिक संरक्षण में कई वर्षों तक चली इस लूट से जुड़े चंद हैरान करने वाले खुलासे जल संसाधन संभाग पन्ना पवई के मुख्य अभियंता ने अपनी एक रिपोर्ट में किया है। रिपोर्ट के अनुसार कमीशन के चक्कर में तकनीकी अधिकारियों ने धृतराष्ट्र बनकर पदीय दायित्वों एवं कर्तव्यों के विपरीत सिंचाई तालाबों का गुणवत्ता विहीन कार्य कराकर शासन के करोड़ों रूपए डकार लिए। करीब दो तीन वर्ष पूर्व हुई सघन जांच की बहुप्रतीक्षित रिपोर्ट के आने के बाद विभाग के अंदरखाने में हडक़म्प मचा है। शासन ने जांच रिपोर्ट के तथ्यों को अत्यंत ही गंभीरता से लेते हुए इसके आधार पर दोषी तकनीकी अधिकारियों की गर्दन पर अब जाकर विभागीय जांच का शिकंजा करा दिया है। इस सिलसिले में मप्र के राज्यपाल के नाम से तथा आदेशानुसार व्हीएस टेकाम उप सचिव मप्र शासन जल संसाधन विभाग ने कुछ माह पूर्व संभाग पन्ना एवं पवई के 11 तकनीकी अधिकारियों को आरोप पत्र जारी कर उनसे जबाव मांगा उसके आगे क्या कार्यवाही हुई कोई जानकारी देने तैयार नहीं है। जिन तकनीकी अधिकारियों आरोप पत्र जारी हुए थे उनमें से कुछ फिलहाल पन्ना में पदस्थ हैं जबकि कुछ का जिले से बाहर स्थानांतरण हो चुका है। जल संसाधन संभाग पवई में पदस्थ संलग्न अधिकारियों रघुराज सिंह ठाकुर इन्हीं में से एक हैं। वर्ष 2013 में करीब छ: माह तक जल संसाधन उप संभाग पवई के अनुविभागीय अधिकारी के अतिरिक्त प्रभार में रहे ठाकुर साहब ने अपने कार्यकाल में दोनों हाथों से सरकारी धन को लूटने के चक्कर में इमलिया तालाब, चकरभाटा तालाब और उमेही नाला तालाब निर्माण कार्य में भ्रष्टाचार किया। करोड़ों रूपए की लागत वाले इन तालाबों के निर्माण में गुणवत्ता के मापदण्डों के हांशिए पर रखकर करीब पांच करोड से अधिक का भ्रष्टाचार किया गया है। कैग रिपोर्ट में भी उठ चुकी है आपत्ति प्रदेश की नहरों में करोड़ों की हेर-फेर को लेकर कैग रिपोर्ट में भी आपत्ति उठ चुकी है। रिपोर्ट के मुताबिक बरगी, राजघाट और इंदिरा सागर परियोजनाओं में 800 करोड़ से ज्यादा की गड़बड़ी हुई है। इसमें ठेकेदारों को लाभ पहुंचाने के लिए फर्जी बिल लगाकर भुगतान कराया गया। घटिया गुणवत्ता के निर्माण कार्यो पर बिना परीक्षण भुगतान कर दिया गया। उधर, आम आदमी पार्टी की मध्यप्रदेश यूनिट का आरोप है की प्रदेश में पिछले 10 सालो में जल संसाधन विभाग में 9772 करोड़ की वित्तीय अनिमियताएं सामने आई हैं जो एक गंभीर विषय हैं। पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और प्रदेश संयोजक आलोक अग्रवाल ने आरोप लगाते हुए कहा है कि भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक के अनुसार 2004-05 से लेकर 2015 तक प्रदेश के 15 अलग-अलग विभाग में 36 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की ऐसी वित्तीय अनिमियताएं हुई हैं। पिछले दस सालों में वित्तीय अनिमियताओं के लगभग 5613 ऐसे मामले सामने आए हैं जिन का सरकार के पास कोई जवाब नही है। इन 5613 मामलो में से 1543 (लगभग 2100 करोड़ के) मामलों को लंबित हुए 10 साल से ज्यादा हो गए हैं। 13,000 करोड़ की योजनाओं पर पेंच एक तरफ जहां सिंचाई परियोजनाएं भ्रष्टाचार का शिकार हो रही है वहीं दूसरी तरफ करीब 13 हजार करोड़ के प्रोजेक्ट फॉरेस्ट क्लीयरेंस के फेर में अटके हैं। केन-बेतवा लिंक परियोजना सहित दो दर्जन परियोजनाओं के लिए प्रदेश और केन्द्र से फॉरेस्ट का रास्ता साफ करने के लिए प्रमुख सचिव पंकज अग्रवाल ने दिल्ली दौरा किया है। उधर, विभागीय मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने सिंचार्इं परियोजनाओं का काम आगे बढ़ाने के लिए आला अफसरों पर दबाव बनाया है। प्रदेश में सिंचाई का रकबा बढ़ाने के लिए जल संसाधन विभाग ने 20 हजार करोड़ की परियोजनाओं पर काम चल रहा है। फॉरेस्ट इलाके में आने वाली सिंचाई परियोजनाओं को समय पर अनापत्ति प्रमाण पत्र नहीं मिलने से सिंचाई अफसरों की मुश्किलें बढ़ गर्इं हैं। प्रमुख सचिव पंकज अग्रवाल ने करीब दो दर्जन योजनाओं को शार्टआउट किया है जिन्हें फॉरेस्ट क्लीयरेंस का इंतजार है। उन्होंने बड़ी परियोजनाओं को पूरा करने के लिए अंतिम समय सीमा वर्ष 2017 के अंत तक तय की है। प्रमुख अभियंता एमजी चौबे को ताकीद किया गया है कि वे फॉरेस्ट क्लीयरेंस के लिए काम करेंगे। गंगा बेसिन रीवा प्रोजेक्ट के तहत टनल का कार्य वित्तीय वर्ष 2016-17 में पूरा करने के निर्देश हैं। त्यौंथर नहर प्रोजेक्ट को 31 मई 2017 तक पूरा करने का प्लान है। माही एक्सटेंशन प्रोजेक्ट को 2017 तक पूरा किया जाना है। बहुती नहर परियोजना और पेंच नगर परियोजना का भी काम चल रहा है। एक अनुमान के अनुसार करीब 8 हजार हेक्टेयर जमीन पर सिंचाई का रकबा बढ़ाने के लिए परियोजनाओं को प्रभावी बनाया जा रहा है। प्रमुख सचिव जल संसाधन विभाग पंकज अग्रवाल कहते हैं कि सिंचाई परियोजनाओं को पूरा करने के लिए विभाग अपना काम कर रहा है। विभाग के मंत्री ने लगातार समीक्षायें की हैं। फॉरेस्ट की अनुमति के लिए सभी शर्तों और औपचारिकताओं की पूर्ति की जा रही हैं। प्रदेश में करीब 20 हजार करोड़ के प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है। उम्मीद है कि निर्धारित समय में पूरी कर ली जायेंगी। इन परियोजनाओं पर फोकस जल संसाधन विभाग ने जिन महत्वपूर्ण परियोजनाओं पर फोकस किया है उनमें एक लोअरगोई परियोजना है। 2400 करोड़ लागत की इस परियोजना को वन, पर्यावरण और प्रशासकीय मंजूरी का इंतजार है। हरसी उच्च बांध परियोजना के लिए भी फॉरेस्ट की पेंच होने से विभाग की मुश्किलें बढ़ी हुई हैं। फॉरेस्ट की क्लीयरेंस मिलने की इंतजार में चुनार बांध धार, मोरवा माइनर बैतूल, बसुधा नाला प्रोजेक्ट, झरकली बांध अलीराजपुर, बंसकर बांध सतना, भावसा मीडियम सिंचाई बांध, नर्मदा-मालवा-गंभीर लिंक परियोजना, मझगवां बांध पन्ना, पतपरा नाला पन्ना आदि परियोजनायें हैं। वहीं प्रदेश का सिंचाई रकबा बढ़ाने के लिए केन-बेतवा लिंक परियोजना के लिए फॉरेस्ट की अनुमति पाने सरकार प्रयासरत है लेकिन मामला केन्द्र में अटका है। इस परियोजना से 6 हजार हेक्टेयर से अधिक रकबे में सिंचाई होगी। परियोजना की लागत 9 सौ करोड़ से अधिक की है। साथ ही तिकतोली ग्वालियर लघु सिंचाई योजना में एसक्टेंशन का कार्य होना है। इसके लिए पांच हजार हेक्टेयर जमीन की आवश्यकता है। चीफ इंजीनियर ने प्रोपजल की जांच की है। मैदानी अफसर की रिपोर्ट पर डीपीआर बनाने को कहा गया है। दागियों को बनाया जा रहा दमदार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भले ही भ्रष्टाचारियों पर लगाम कसने की बात कहते हो, लेकिन कई विभाग भ्रष्टाचारी अफसरों पर पूरी तरह से मेहरबान हैं। इसमें जल संसाधन विभाग सबसे आगे है। आलम यह है कि विभिन्न भ्रष्टाचार के आरोपों में निलंबित किए गए अधिकारियों-कर्मचारियों का ताबड़तोड़ बहाल किया जा रहा है। इसके पीछे वजह यह बताई जा रही है कि विभागीय जांच पूरी होने के बाद ऐसा किया जा रहा है। दरअसल, जल संसाधन विभाग अधिकारियों और इंजीनियरों के लिए दुधारू गाय है। इस विभाग में चल रहे छोटे-बड़े कार्यों में भ्रष्टाचार शिष्टाचार बन गया है। इसका असर यह हो रहा है की कई योजनाएं-परियोजनाएं अधर में लटकी हुई हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सख्त निर्देशों के बाद भी अफसर उनके निर्देशों को ठेंगा दिखाते हुए अपने मंसूबों को अंजाम देने में लगे हुए हैं। इस विभाग में भ्रष्टाचार का कितना बोलबाला हैं इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि विभाग के पूर्व अपर मुख्य सचिव राधेश्याम जुलानिया को करीब साढ़े तीन साल में 166 उपयंत्रियों, सहायक यंत्रियों, अनुविभागीय अधिकारियों के खिलाफ निलंबन की कार्रवाई करनी पड़ी। लेकिन विभाग से उनका तबादला होते ही एक बार फिर से भर्राशाही चालू हो गई है। वैसे तो मप्र में भ्रष्टाचार के गंभीर मामले लोक निर्माण विभाग, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग, ग्रामीण यांत्रिकी सेवा, विद्युत यांत्रिकी विभाग में भी आते रहते हैं लेकिन जल संसाधन में सुनियोजित तरीके से भ्रष्टाचार होता है। जुलानिया ने विभाग के इस सुनियोजित नेटवर्क को तोड़ दिया था। लेकिन जुलानिया के जाते ही जल संसाधन विभाग में राहत का माहौल है। क्योंकि भ्रष्टों को फिर बहाल किया जाने लगा है। संविदा से चल रहा विभाग बताया जा रहा है कि जल संसाधन विभाग में जिन दागी अफसरों के आरोपों की जांच हो चुकी है और वे बेदाग साबित हुए हैं, उनकी सेवा बहाली की जा रही है। जबकि विभाग के सूत्रों का कहना है कि पूर्व अपर मुख्य सचिव राधेश्याम जुलानिया के जाते ही दागदार कमाऊ अधिकारियों और इंजीनियरों के अच्छे दिन आ गए हैं। विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि छोटी-छोटी शिकायतों पर अधिकारियों और इंजीनियरों को निलंबित किए जाने की परंपरा से विभाग में इंजीनियरों का टोटा हो गया है। वहीं प्राइवेट सेक्टरों के बढ़ते प्रभाव और नियमित इंजीनियरों के नौकरी छोडऩे के कारण जल संसाधन विभाग सेवानिवृत्त कर्मचारी और अधिकारियों को संविदा पर पदस्थ कर रहा है। अकेले जल संसाधन विभाग में पिछले चार साल में दो सौ के करीब सेवानिवृत्त अधिकारियों (काफी सं या में इंजीनियर शामिल) को संविदा पर पदस्थ किया गया है। ऐसे में विभाग के अनुभवी लोगों की सेवा बहाली में अनुचित क्या है? ज्ञातव्य है कि प्रदेश सरकार द्वारा जल संसाधन विभाग में 5 सालों से ईएनसी का पद पदोन्नति से नहीं भरे जाने से वहां भी संविदा नियुक्ति से काम चलाया जा रहा है। नए ईएनसी की तैनाती में सरकार की रुचि नहीं है। भ्रष्टाचारियों का चारागाह बने जनसंसाधन विभाग में भ्रष्टाचार का आलम क्या था। यह इसी से अंदाज लगाया जा सकता है कि जहां वर्ष 2013 में विभिन्न अनियमितताओं के कारण चौहत्तर उपयंत्रियों, सहायक यंत्रियों और अनुविभागीय अधिकारियों को निलंबित किया गया था वहीं 2014 में 51 को और 2015 में 25 को तथा 2016 में अभी तक 16 को निलंबित किया जा चुका है। ये आंकड़े इस बात के प्रमाण हैं कि विभाग में भ्रष्टाचार चरम पर था लेकिन जब से जुलानिया इस विभाग में आए उन्होंने भ्रष्टों के खिलाफ कठोर कदम उठाकर उन्हें निलंबित करने का जो सिलसिला शुरू किया उससे भ्रष्टाचार पर कुछ हद तक लगाम लगी थी। लेकिन एक बार फिर से विभाग ने भ्रष्ट अफसरों को सारे आरोपों से मुक्त कर पुन: सेवा में लिया जा रहा है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या सभी दागियों को बेदाग किया जाएगा। चौबे की पांचवी संविदा ने रोकी पदोन्नति जल संसाधन विभाग में भर्राशाही का आलम यह है कि विभाग में 3,000 से अधिक इंजीनियरों की भरमार के बाद भी विभागाध्यक्ष यानी इंजीनियर-इन-चीफ के पद पर पिछले पांच साल से सेवानिवृत अफसर मदन गोपाल चौबे की सेवाएं ली जा रही हैं। चौबे की संविदा नियुक्ति से पदोन्नति की बाट जोह रहे इंजीनियरों के शीर्ष पद पर पहुंचने से पहले रिटायर होने वालों की कतार में और इजाफा हो रहा है। विभाग के डेढ़ दर्जन से ज्यादा चीफ इंजीनियर बाट जोह रहे हैं कि उनमें से किसी को ईएनसी बनने का अवसर मिलेगा। लेकिन हर बार सरकार चौबे को ईएनसी बना देती है। यही नहीं चौबे के लिए नियमों को भी ताक पर रखा जा रहा है। इसी सरकार ने नियम बनाए थे कि किसी अफसर को रिटायरमेंट के बाद दो बार से ज्यादा संविदा पर नहीं रखा जाएगा। इसके बाद भी संविदा देनी है तो उसके बारे में छानबीन समिति की रिपोर्ट को माना जाएगा। ये और बात है कि चौबे का मामला छानबीन समिति में गया ही नहीं। चौबे को बार-बार संविदा पर रखने से ऐसा लग रहा है जैसे जलसंसाधन विभाग के 3000 इंजीनियरों में से किसी के पास भी वो तकनीकी योग्यता और नेतृत्व क्षमता नहीं है, जो चौबे जी के पास है। प्रदेश मे पड़ा सूखा और विभाग में चल रहे बड़े (वृहद) बांधों के काम चौबे की पांचवी संविदा नियुक्ति की भूमिका रचने में सहायक सिद्ध हुए तो और भूमिगत पाइपलाइन के जरिए खेत तक उच्च दाब से पानी पहुंचाने की विशेषज्ञता भी उनके अलावा किसी और इंजीनियर के पास नहीं होने की बात भी घुमा-फिरा कर साबित करने की कोशिश की गई। अब सवाल ये उठता है कि जिस विभाग के अफसरों को उस काम का अनुभव नहीं है जिसके लिए उन्हें नौकरी दी गई है तो उन्हें बीस-पच्चीस साल से वेतन देकर क्यों झेला जा रहा है? वे इतने अयोग्य हैं कि अभी तक वह योग्यता हासिल नहीं कर पाए, जिसकी जरूरत उनके काम में होती है तो ऐसे इंजीनियरों को भर्ती ही क्यों किया गया? उनकी क्षमता विकास के काम क्यों नहीं किए गए? उन्हें सहायक यंत्री से मुख्य अभियंता के पद तक पदोन्नत क्यों किया गया? क्या चौबे के ईएनसी बनने से पहले जलसंसाधन विभाग बड़े बांध नहीं बना रहा था? या फिर बाणसागर परियोजना जैसे बड़े बांध क्या अयोग्य इंजीनियरों ने बना डाले थे? या फिर चौबे सर्वगुणसंपन्न होने के साथ ही सर्वव्यापी भी हैं। जो वे हरेक बांध, प्रत्येक नहर, सभी भूमिगत पाइपलाइन के मुहाने पर एक साथ मौजूद रह कर अपनी देखरेख में जलसंसाधन विभाग के काम करा रहे हैं। दूसरे नजरिये से देखें तो चौबे ने कम से कम पैतीस-चालीस साल पहले इंजीनियरिंग की पढ़ाई की होगी। उनके इंजीनियर बनने के बाद क्या प्रदेश और देश के तकनीकी कॉलेजों ने कुशल इंजीनियर तैयार करना ही छोड़ दिया है? जो विभाग में योग्यता, तकनीकी क्षमता और नेतृत्व की काबिलियत का अकाल पड़ा हुआ है। ऐसे तमाम सवालों की फेहरिस्त तो किसी नहर की तरह लंबी हो सकती है, लेकिन जवाब कोई देगा नहीं। सरकार के एक इस फैसले ने विभाग के इंजीनियरों के अरमानों पर पानी जरूर फेर दिया है। विभागीय ट्री फार्मेशन का टॉप तो किसी और के लिए रिजर्व है तो नीचे के अफसरों के अवसर प्रभावित होगें ही। इसीलिए बीते चार साल में कई इंजीनियर प्रमोशन के इंतजार में रिटायर हो गए तो अब फिर कुछ और अधिवार्षिकी आयु पूरी कर घर बैठ जाएंगे। 7200 करोड़ का हिसाब नहीं जल संसाधन विभाग में सामने आए भ्रष्टाचार पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरूण यादव का कहना है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के चहेते अफसर सबसे अधिक भ्रष्टाचार कर रहे हैं। वह कहते हैं कि केंद्र की पूर्ववर्ती यूपीए सरकार ने बुंदेलखंड के विकास हेतु करीब 7200 करोड़ रुपयों की बड़ी धनराशि प्रदेश सरकार को आवंटित की थी, जिसे वह भ्रष्टाचार के रूप में निगल गई है। आलम यह है कि सरकार के पास उसका हिसाब ही नहीं है। प्रदेश में नहरों, बांधों, तालाबों के निर्माण में धांधली हुई है और जलसंसाधन विभाग के पूर्व एसीएस राधेश्याम जुलानिया भी इसमें शामिल रहे हैं। यादव कहते हैं कि भ्रष्टाचार को लेकर 'जीरो टॉलरेंसÓ की बात करने वाले शिवराजसिंह चौहान में यदि नैतिकता है तो उन्हें अपने ''नौ-रत्न नौकरशाहोंÓÓ में से एक जुलानिया के विरूद्ध सख्त कार्रवाही करते हुए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की विभिन्न धाराओं में एफआईआर दर्ज कराना चाहिए। वह कहते हैं कि बुंदेलखंड के लिए 7200 करोड़ का विशेष पैकेज पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी की पहल पर जारी हुआ था। वास्तव में इस राशि का कितना और किस तरह से इस्तेमाल हुआ है, यह सरकार को बताना चाहिए और इसके लिए 'श्वेतपत्रÓ जारी किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि राज्य में सिर्फ भ्रष्टाचार हुआ है, बांध, स्टॉपडैम और चेकडैम के नाम पर सिर्फ ढांचे खड़े किए गए, जो जान लेवा हैं।

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