बुधवार, 21 दिसंबर 2016

मप्र में खपाया जा रहा 5,00,000 कारोड़ का कालाधन

- सोने, चांदी की हो रही बेतहासा खरीदी
-जन-धन योजना में जमा हो रही काली कमाई
भोपाल। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 500 और 1000 के नोट समाप्त करने की चहुंतरफा वाहवाही हो रही है। सरकार और जनता दोनों को लग रहा है कि देश में छुपा कर रखा गया सारा काला घन बाहर आ जाएगा। लेकिन जिस तरह सोने, चांदी आदि की रिकार्ड खरीदी हो रही है वह खोदा पहाड़, निकली चुहिया साबित होता नजर आ रहा है। अनुमानत: देश में 400 लाख करोड़ और मप्र में 5 लाख करोड़ रुपये का काले धन है। लेकिन जानकारों का मानना है कि नोट समाप्त करने और फिर बाजार में नए बड़े नोट लाने से अधिकतम 3 प्रतिशत काला धन ही बाहर आ पायेगा और 1 प्रतिशत से भी कम काला धन सरकार के खजाने में जाएगा, वह भी तब जब मान लिया जाए कि देश में जारी सभी 500 और 1000 के नोट काले धन के रूप में बदल चुके हैं। दरअसल, देश में अधिकांश कालाधन खनिज माफिया, भू-माफिया, शराब माफिया, रेत माफियर, बिल्डर्स, नेता, अधिकारी, व्यवसायी आदि के पास जमा है। अकेले मध्य प्रदेश में 5 लाख करोड़ से ज्यादा काला धन इन लोगों के पास है। लेकिन इनमें से अधिकांश ने यह कालाधन रियल स्टेट, खेती, बड़ी-बड़ी कंपनियों और ठेकों में लगा हुआ है। और जो कालाधन नोट की शक्ल में है उसे सोने, चांदी आदि खरीद कर खपाया जा रहा है। साथ ही काला धन रखने वाले अपनी रकम को अपने परिचितों और मातहतों के माध्यम से बैंकों तक पहुंचा रहे हैं। इसके लिए जनधन खातों का उपयोग किया जा रहा है। काला धन बन गया सोना एक हजार और पांच सौ रुपये का नोट बंद होने के बाद मची अफरातफरी के बीच काला धन रखने वालों ने नोटों को ठिकाने लगाने का रास्ता खोज लिया। साथ ही काला धन बाहर निकालने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मंशा पर पानी फेरने के लिए बेनामी कंपनियां सक्रिय हो गई हैं। अपने फर्जी स्टाक स्टेटमेंट, कैश वैल्यू और बिल पेमेंट के सहारे ये बेनामी कंपनियां काला धन रखने वाले मंझोले मगरमच्छों का पैसा सफेद कर रहीं हैं। इसके लिए बेनामी कंपनियां एक से पांच करोड़ रुपये तक की राशि के लिए 40 फीसदी और एक करोड़ रुपये से कम राशि के लिए 35 फीसदी दलाली ले रही हंै। सोने में निवेश करने वाले भी इस मौके का फायदा उठा रहे हैं 55-60 हजार रुपये प्रति दस ग्राम में बल्क में सोना बेचकर बेनामी कंपनियों के सहारे अपनी ब्लैक मनी व्हाइट कर रहे हैं। बताया जाता है कि मप्र में करीब काली कमाई के नोटों से करीब 1200 करोड़ का सोना खरीदा जा चुका है। खुफिया सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, एक हजार और पांच सौ रुपये का नोट बंद होने के बाद मची अफरातफरी के बीच काला धन रखने वालों ने नोटों को ठिकाने लगाने का रास्ता खोज लिया। प्रदेश में भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर, उज्जैन, सागर, सतना सहित कई जिलों में बेनामी कंपनियों के दलाल सक्रिय हो गए हैं। ये दलाल विभिन्न विभागों के अफसरों, कैश में लेनदेन करने वाले व्यापारियों से संपर्क कर उन्हें कैश एक्सचेंज का ऑफर दे रहे हैं। बताया जा रहा है कि काला धन रखने वालों से कैश लेकर उन्हें मिलने वाली राशि का एक एकाउंट पेयी चेक दिया जा रहा है। यह चेक एकाउंट में नहीं लगाया जाएगा। एक-दो माह में इस राशि को आरटीजीएस के जरिए खाते में उधार के रूप में भेजकर चेक वापस ले लिए जाएंगे। नई करेंसी आने के बाद बेनामी कंपनियां उधार दर्शाई गई रकम को छोटे छोटे हिस्से में काले धन के मगरमच्छों से वापस लेंगी और बदले में उन्हें कैश देंगी। बाजार सूत्रों का पूरे प्रदेश में करीब पांच सौ करोड़ रुपये की काली रकम को सफेद धन में बदला जा चुका है। सोना बेचने वाले दोहरे फायदे में 32 हजार रुपये प्रति दस ग्राम में बिकने वाला सोना काला बाजारियों के लिए 55-60 हजार रुपये प्रति दस ग्राम में बिक रहा है। आयकर विभाग की मानीटङ्क्षरग और अघोषित बड़ी आय जमा करने पर टैक्स समेत 200 फीसदी पेनाल्टी की सूचना ने सोना दबाने वाले कई निवेशकों को दोहरे फायदे में पहुंचा दिया है। सोना बेचने वालों ने करीब सौ फीसदी अधिक दाम पर सोना बेचा और फिर 40 फीसदी की दलाली देकर बेनामी कंपनियों में पैसा लगाया और चेक ले लिया। ये काम तेजी से चल रहा है। प्रदेश के तमाम ज्वैलर्स के यहां से बेशुमार सोने-चांदी के आभूषणों की खरीदारी हो रही है। अनुमान है पीएम नरेंद्र मोदी की घोषणा के बाद 20 घंटों के दरमियान अकेले इंदौर के 1600 से अधिक सराफ और हीरा व्यापारियों के यहां 300 से 500 करोड़ रुपए की खरीद-फरोख्त हुई। सराफ आमदनी के बदले सरकार को टैक्स का भुगतान करेंगे। यह तरीका अपनाकर 25 लाख रुपए से 5 करोड़ रुपए तक कालाधन छिपाकर बैठे पूंजीपतियों ने 500-1000 रुपए के कालेधन से राहत महसूस की है। नौकरशाहों का कालाधन खप रहा उनके गृह प्रदेश में जानकारी के अनुसार, जिन नौकरशाहों के पास कालेधन के रूप में 500 और 1000 रूपए के नोट हैं वे अपने गृह राज्य में खपा रहे हैं। उल्लेखनीय है कि इस समय प्रदेश में 340 आईएएस अधिकारी हैं, जिनमें से 250 से अधिक कुबेर बने हुए हैं। हालांकि काली कमाई करने वाले अफसर पैसा घर पर नहीं रखते हैं। वे उस रकम को रियल स्टेट, खेती, बड़ी-बड़ी कंपनियों और ठेकों में लगा देते हैं। फिर भी जिनके पास आय से अधिक रकम है वे उसे अपने गृह राज्य भेज रहे हैं, जहां उनके परिजन और रिश्तेदार सफेद करने में लगे हुए है। ज्ञातव्य है कि मप्र के नौकरशाह काली कमाई के लिए कुख्यात है। 2014 में मप्र के नौकरशाहों की जिस अघोषित 22,000 करोड़ रुपए की संपत्ति का पता पीएमओ को चला था, उसका सुराग अभी तक आयकर विभाग नहीं लगा सका है या यूं भी कह सकते हैं कि विभाग इसको ढूंढने में रुचि नहीं ले रहा है। प्रदेश के आईएएस अफसरों में से अधिकांश के पास बेपनाह चल और अचल संपत्ति है। हालांकि, हर साल जब प्रदेश के आईएएस अफसर अपनी संपत्ति का ब्यौरा देते हैं तो अपनी अधिकांश नामी और बेनामी संपत्ति को छुपा जाते हैं, जो करीब 22,000 करोड़ रूपए की आंकी गई है। प्रदेश में अभी तक आईएएस और आईपीएस पर की गई छापामार कार्रवाई में जो बेतहाशा संपत्ति मिली है उससे यह तथ्य सामने आया कि मप्र के अफसर केंद्र और राज्य सरकार ने विभिन्न योजनाओं के लिए मिलने वाले बजट में जमकर घपलेबाजी कर रहे हैं। मप्र भले ही 101300 करोड़ रूपए के कर्ज में डूबा है। सूबे में हर व्यक्ति 15 हजार का कर्जदार है। 44.30 फीसदी आबादी अभी भी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करती है। 30.9 फीसदी आबादी भूखमरी की कगार पर है। लेकिन यहां के अफसर मालामाल है। प्रदेश के 340 आईएएस अफसरों में से अधिकांश के पास बेपनाह चल और अचल संपत्ति है। इन नौकरशाहों ने अपनी अवैध कमाई का बड़ा हिस्सा खेती,रियल स्टेट, बड़ी-बड़ी कंपनियों और ठेकों में निवेश कर रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार भष्ट अफसरों ने प्रदेश की राजधानी भोपाल, इंदौर, होशंगाबाद, ग्वालियर, जबलपुर में खेती की जमीन तो सतना, कटनी, दमोह, छतरपुर और मुरैना में बिल्डर व खनन माफिया के पास करोड़ों रुपए का निवेश किया है। वहीं प्रदेश के बाहर मुंबई, दिल्ली, गुडग़ांव, हिमाचल प्रदेश, ओडिशा,पंजाब, शिमला, असम, आगरा के साथ ही विदेशों में ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, सिंगापुर, दुबई, मलेशिया, बैंकॉक, कनाडा, लंदन में भी संपत्ति जुटाई है। आयकर विभाग के सूत्रों के अनुसार केन्द्र और राज्य सेवा के ज्यादातर अफसरों को यह पता नहीं है कि उनकी संपत्ति की मौजूदा बाजार कीमत क्या है? सूत्रों के अनुसार केन्द्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग भी संपत्ति का वर्तमान मूल्य पता करने का मैकेनिज्म खोजने में लगा है। नौकरशाही में फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग में केंद्रीय सतर्कता आयोग ने अब खुद ही मोर्चा संभाल लिया है। अब आयकर की नजर मालदार किसानों पर उधर, आयकर विभाग ने अब मालदार किसानों पर भी नजर रखनी शुरू कर दी है। मध्यप्रदेश के प्रमुख शहरों से सटी जमीनों की खरीद-फरोख्त का रिकॉर्ड खंगाला जा रहा है। खेती की जमीनों का करोड़ों में सौदा करने वाले किसानों का पंजीयन दफ्तरों से ब्यौरा तलब कर नोटिस भेजे गए हैं। सबसे पहले तो यह पता लगाया जा रहा है कि जिसने जमीन खरीदी है उसकी आय का स्रोत क्या है। साथ ही आयकर व स्टाम्प ड्यूटी चोरी के मामलों में शिकंजा कसने की तैयारी की गई है। आयकर विभाग ने राजधानी भोपाल सहित कतिपय अन्य शहरों के समीपस्थ गांवों के किसानों को नोटिस भेजकर तलब किया है। हाल के वर्षों में मोटी रकम लेकर अपनी जमीन बेचने वाले किसानों को विभाग ने नोटिस भी भेजे हैं। इस संबंध में खासतौर पर विभाग की छापामार (इन्वेस्टीगेशन) विंग ने विशेष अभियान शुरू करने की योजना बनाई है। पंजीयन द तरों से भी इस तरह का रिकार्ड तलब किया गया है। विभाग ने अपने खुफिया तंत्र और एडवांस कम्प्यूटर सिस्टम के जरिए ऐसे किसानों को चिन्हित किया है जिन्होंने हाल के वर्षों में मोटी रकम लेकर अपनी जमीनें बेचीं लेकिन विभाग को उन्होंने इसकी सूचना नहीं दी। इतना ही नहीं इस तरह के सौदों पर लगने वाला केपिटल गैन टैक्स भी उन्होंने अदा नहीं किया। आयकर इन्वेस्टीगेशन विंग को पिछले कुछ महीनों में मप्र-छग के शहरों में बड़े धन्नाासेठों के यहां छापामारी में अनेक जानकारियां सामने आईं। सबसे अहम तथ्य तो यह है कि कालेधन को नंबर एक में बदलने के लिए लोग मनमानी कीमतों में जमीनों की रजिस्ट्री करा लेते हैं। किसानों को भी नंबर दो में नकद भुगतान कर दिया जाता है। इससे आयकर के साथ स्टा प ड्यूटी चोरी भी हो रही है। कहां खपेगा रेत के अवैध कारोबार का कालाधन मप्र में काली कमाई का सबसे बड़ा जरिया खनिज संपदा है। नेता, नौकरशाह, माफिया के गठबंधन से खनिज संपदा से अवैध कमाई की जाती है। मप्र की नदियों के पेट से सालाना वैध तरीके से 2.25 लाख करोड़ रुपए की रेत निकाली जाती है। जबकि अवैध तरीके से 20 हजार करोड़ रुपए की। रेत के अवैध कारोबार में जुटे माफिया और उसके सहयोगियों के सामने अब सबसे बड़ी समस्या यह है कि उनका कालाधन कहां खपेगा? क्योंकि प्रतिबंध के बावजूद कुबेर का खजाना बने रेत के अवैध कारोबार का कालाधन नेताओं से लेकर नौकरशाहों तक की तिजोरियों में भरा हुआ है। इस काले धन को खपाना आसान नहीं होगा। इस गौरखधंधे की भनक सरकार ही नहीं सूबे के आर्थिक अपराध इकाई को भी लग चुकी है। रेत के अवैध कारोबार में जो रुपए नौकरशाह, नेताओं और माफिया तक पहुंचते थे वह 1000 और 500 का नोट ही रहता था। कुछ ने तो जमीन और कुछ ने आलीशान मकान बना लिया है तो छुटभैया प्रतिनिधि जेसीबी, ट्रैक्टर और अन्य महंगी गाडिय़ों के मालिक बन गए हैं। आर्थिक सफलता उनके पैरों को चुमने लगी थी। केन्द्र सरकार की आर्थिक सर्जिकल स्ट्राइक ने सभी की नींद हराम कर दी है। अब चमक-दमक ही आफत लगने लगी है। बेबस भरी आंखों से वैसे लोग अपने काले धन को निहार रहे तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी कोसते हैं। इससे इतर वैसे लोग कालेधन को सफेद बनाने की जुगत में लग गए हैं। मप्र में नर्मदा, चंबल, बेतवा, केन और बेनगंगा आदि बड़ी नदियों के साथ ही अन्य नदियों में जितनी रेत खदानें हैं, वह सभी अवैध हैं। इन खदानों के संचालन में न तो एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) के नियमों का पालन हो रहा है और न ही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मापदंडों का पालन हो रहा है। नियमों को दरकिनार नदियों का कलेजा चीरकर माफिया सालाना 20 हजार करोड़ का अवैध धंधा कर रहा है जबकि सरकार को मासिक केवल 76 करोड़ की आय हो रही है। मध्यप्रदेश में रेत खदानें सोना उगलती हैं। इसी वजह से माफिया सक्रिय रहते है। नतीजा यह है कि रेत खनन वैध कम अवैध अधिक चल रहा है। जो खदान चल रहीं हैं उनके पास पर्यावरण मंजूरी नहीं है। प्रशासन अनजान बन रहा है और अवैध उत्खनन खुलेआम जारी है। अब ऑपरेशन ब्लैक गोल्ड की तैयारी कालेधन के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक के बाद देश के कुछ लोग खुश हैं वही काला धन इकठ्ठा करने वालों के ऊपर मानों पहाड़ गिर गया है। अनुमान है कि प्रधानमंत्री के इस फैसले से प्रदेश के अन्दर रखे हुए 5 लाख करोड़ मूल्य के काला धन में से करीब 3-4 लाख करोड़ रूपया बर्बाद हो जाएगा। इसलिए लोगों की कोशिश है कि जितना हो सके उतनी राशि का सोना, चांदी, हीरा खरीद लिया जाए। कालेधन से सोना खरीदने की रिपोर्ट मिलने के बाद सरकार अब ऑपरेशन काला सोना यानी ब्लैक गोल्ड पर काबू पाने कि तैयारी में है। सरकार ऐसे लोगों पर नजर रख रही है, जिन्होंने गैर-कानूनी तरीके से सोना खरीदा और बेचा हैं। ये वो लोग हैं जिन्होंने अपने कालेधन से अंधाधुंध सोना खरीदकर घरों में रख लिया है। वल्र्ड गोल्ड काउंसिल के मुताबिक भारतीय घरों में 24 हजार टन सोना है। नोटबंदी के बाद घरों में सैकड़ों टन सोना बढ़ गया है। मनमाने ढंग से सोना उन्होंने खरीदा है जिनके पास पैसों का ब्यौरा नहीं है। सरकार अब सोना खरीदने वालों के साथ बेचने वालों पर भी कार्रवाई करेगी।

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