बुधवार, 21 दिसंबर 2016

मप्र में अब आनंद ही आनंद!

भोपाल। प्रदेश की जनता के चेहरे मुस्कुराते रहें, जिन्दगी बोझ नहीं, वरदान लगे, इसके लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पिछले 11 साल में योजनाओं की झड़ी लगा दी है। इससे बीमारू राज्य रहे प्रदेश में विकास की बयार तो बहने लगी है, लेकिन आनंद अभी भी कोसो दूर हैं। अत: लोगों में आनंद भरने के लिए प्रदेश में आनंद विभाग का गठन किया गया है। इसमें रोटी, कपड़ा, मकान, आध्यात्म, योग और ध्यान के साथ ही कला, संस्कृति और गान भी होगा। यानी अब मप्र में आनंद ही आनंद होगा। तमाम तरह की समस्याओं और आपाधापी के कारण व्यक्ति जीवन का आनंद लेना भूल गया है। ऐसे में मप्र सरकार ने अपने प्रदेशवासियों को आनंद की अनुभूति का अहसास कराने और इसे प्राप्त करने के तरीकों को बताने के लिए आनंद विभाग का गठन किया है। अपने उद्देश्य को अंजाम तक पहुंचाने के लिए सरकार 14 से 21 जनवरी के बीच मध्य प्रदेश के करीब 10 हजार गांवों में आनंद उत्सव मनाने जा रही है। इसके लिए प्रत्येक ग्राम पंचायत के लिए 15000 रुपए की राशि मंजूर की गई है। सरकार की मंशा है कि प्रदेश में विकास के साथ ही आमजन समस्या मुक्त होकर आनंद की अनुभूति करे। इसके लिए सरकार ने जमीनी तैयारी शुरू कर दी है। गत दिनों मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में आनंद विभाग ने अपना प्रेजेंटेशन दिया। बैठक में फैसला लिया गया कि आनंदोत्सव की सीएम मॉनिटरिंग करेंगे। इस आयोजन के लिए आनंद दल का गठन होगा। बैठक में निर्णय लिया गया कि 6-8वीं तक की क्लास में आनंद सभाओं का आयोजन होगा। इसमें उन्हें बतलाया जाएगा कि किस तरह वे कम अंक आने पर असफल होने पर अपना परफार्मेंस सुधार सकते हैं। वहीं कॉलेज में लाइफ स्टाइल और स्किल डेवलपमेंट की कला सिखाई जाएगी। इसके तहत सरकारी और अर्धसरकारी कर्मचारी अपने-अपने दफ्तर में 15-20 मिनट तक मेडिटेशन कर सकेंगे। यह उनकी ड्यूटी टाइम में शामिल रहेगा। अपने उद्देश्य को अंजाम तक पहुंचाने के लिए सरकार 12 जिलों में 3600 मास्टर ट्रेनर नियुक्त करने जा रही है। ये लोगों को जीने की कला सिखाएंगे। इसके लिए प्रदेशभर में 10 नवंबर से पंचगनी कार्यशाला आयोजित करने जा रही है। आनंद उत्सव के संबंध में सरकार ने निशा फाउंडेशन, आईआईएसईआर, यूनिसेफ, रिलायंस फाउंडेशन, स्कूल-खेल विभाग आदि से एमओयू साइन किया है। ये सभी आनंद विभाग के तहत लोगों को आनंद की अनुभूति प्राप्त करने के तरीके बताएंगे। आनंद विभाग सीधे सीएम की निगरानी में होगा। इसके साथ ही आनंद दल का गठन भी किया जाएगा, जिसमें आम लोगों की भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी। फरवरी 2017 में प्रदेश में हैप्पीनेस इंडेक्स का सर्वे होगा। जनसंपर्क मंत्री नरोत्तम मिश्रा सहित अन्य मंत्री और राजनीतिज्ञ की सोच में आनंद विभाग का गठन अत्यंत शुभ परिवर्तन का संकेत है। दरअसल पहली पंचवर्षीय योजना से लेकर वर्तमान की बारहवीं योजना तक सभी में समाज की भौतिक उन्नति के कई सफल एवं कुछ असफल प्रयास हुए हैं। आज देश में संसाधनों की भरमार है। कई मामलों में सभी आत्मनिर्भर हैं। मगर इन सब विकास और उन्नति से क्या समाज पहले से अधिक संतुष्ट, प्रसन्न, सुखी और आनंदित है? आंकड़ों का आधार लें या अनुभव का इस सवाल का जवाब तो 'नÓ ही है। और इसी 'नÓ को 'हांÓ में बदलने की कवायद है आनंद विभाग। क्या नोकरशाही साकार कर पाएगी हकीकत आज पूरे देश में आत्महत्याएं बढ़ रही हैं। हर वर्ग, जाति, उम्र और धर्म का व्यक्ति आत्महत्या कर रहा है। इसके कारणों में पढ़ाई, होड़, भविष्य निर्माण, एकाकीपन, ईश्र्या व विद्वेश माने जा रहे हैं। व्यक्ति स्वयं आत्महंता न बने, इस दृष्टि से मध्य-प्रदेश सरकार ने आनंद विभाग शुरू किया है। जीवन-यापन की कठिन होती जा रही आपाधापी में बड़ी संख्या में लोग अवसाद और मनोरोगों की गिरफ्त में आ रहे हैं। नतीजतन व्यक्ति में विकार मुखर हो रहे हैं। इन पर नियंत्रण के लिए यदि कोई संस्थागत ढांचा अस्तित्व में आता है तो निश्चय ही यह स्वागत योग्य पहल है। लेकिन लोक कल्याण से जुड़ी संस्थाएं जिस तरह से नौकरशाही द्वारा बरते जा रहे निरकुंश भ्रष्टाचार की गिरफ्त में हैं, उसी तर्ज पर यदि विभाग चल पड़ा तो इसके ख़ुशी बांटने का पुनीत कार्य दुख का सबब भी बन सकते हैं? इसलिए ख़ुशी विभाग की कार्य-संस्कृति को नौकरशाही की जकड़बंदी से मुक्त रखते हुए इसमें व्यापक तरलता की जरूरत सुनिश्चित करनी होगी। भारत का स्थान 118 वें क्रमांक पर आनंद विभाग या हैप्पीनेस मिनिस्ट्री अब वैश्विक-पटल पर अनूठी चीज नहीं है। दुनिया के पांच देश यूएई, बेनेजुएला, इक्वाडोर, स्कॉटलैंड और भूटान में पहले से ही ख़ुशी विभाग हैं। यूएई में इसके जिम्मेदारी महिलाओं के पास हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2012 से विश्व ख़ुशी रिपोर्ट जारी करने की परंपरा भी डाल दी है। इसमें प्रति व्यक्ति की सकल घरेलू आय, सामाजिक समर्थन, स्वस्थ जीवन, स्वतंत्रता, उदारता और शासन-प्रशासन पर व्यक्ति का भरोसा जैसे छह बिंदुओं पर 156 देशों में सर्वेक्षण कराया जाता है। बाद में इस सर्वे के अध्ययन के बाद रिपोर्ट जारी की जाती है। ख़ुशी का स्तर मापने के इस सर्वे में भारत का स्थान 118 वें क्रमांक पर है। पाकिस्तान और बांग्लादेश भारत से कहीं ज्यादा खुशहाल देश हैं। डेनमार्क और भूटान में ख़ुशी विभाग नहीं है,बावजूद वह खुशहाल देशों के पहले व दूसरे पायदानों पर हैं। इसलिए यह कोई गारंटी नहीं है कि मध्यप्रदेश में आनंद विभाग खुल जाएगा तो वह उल्लास से सरोबार हो ही जाएगा? हमारे पड़ोसी देश भूटान वैश्विक प्रसन्नता के मामले में विलक्षण देश है। आकार और भौतिक संसाधनों के रूप में सीमित होने के बावजूद सकल राष्ट्रिय आनंद के पैमाने पर खरा देश है। यहां आनंद की पहल 1972 में भूटान के चौथे राजा जेष्मे सिंग्ये वांगचुक ने की थी। इस आवधारणा के चलते भूटान की संस्कृति में शताब्दियों से सकल घरेलू उत्पाद वाले भौतिक विकास की बजाय जीवन की गहरी समझ पर आधारित संतोष को अहमियत दी गई। संतोष की इस सांस्कृति अर्थव्यवस्था को वर्तमान में भी सरंक्षित रखा गया है। भविष्य की इसी दूरदृष्टि का परिणाम है कि आज हिमालय की गोद में बैठा यह राष्ट्र मानसिक रूप से खुशहाल देशों के शिखर पर हैं। आज गरीब हो या अमीर कोई भी खुश नहीं है। कोई बेहिसाब धन-दौलत व भौतिक सुख-सुविधाएं होने के बावजूद दुखी है, तो कोई ऊंचा पद व प्रतिष्ठा हासिल करने के बाद भी दुखी है। कोई छात्र पीएमटी या पीईटी में चयन न होने की वजह से दुखी है तो कोई क्रिकेट में भारत की पराजय देखने से दुखी है। बहरहाल दुख के कारणों का कोई अंत नहीं है। कैरियर बनाने की होड़ और वैभव बटोरने की जिद् ने इसे सघन व जटिल बना दिया है। अपेक्षाकृत कम ज्ञानी व उत्साही व्यक्ति में भी विज्ञापनों के जरिए ऐसी महत्वाकांक्षाएं जगाई जा रही हैं, जिन्हें पाना उसके वश की बात नहीं है? फिर सरकारी नौकरी हो या निजी कंपनियों की नौकरी, उनमें रिक्त पदों की एक सीमा सुनिश्चित होती है, उससे ज्यादा भर्ती संभव नहीं होती। ऐसे में एक-दो नबंर से चयन प्रक्रिया बाहर हुआ अभ्यर्थी भी अपने को अयोग्य व हतभागी समझने की भूल कर बैठता है और कुंठा व अवसाद की गिरफ्त में आकर मौत को गले लगाने के उपाय ढूंढने लग जाता है। ऐसे में परिवार से दूरी और एकाकीपन व्यक्ति को मौत के मुंह में धकेलने का काम आसानी से कर डालते हैं। यानी बेहतर जिंदगी मसलन रोटी,कपड़ा और मकान की जद्दोजहद में फंसे हर व्यक्ति को प्रसन्नचित्त बनाए रखने की जरूरत है। क्योंकि इस दौर में वह यदि हताशा और अवसाद के मनोविकार की गिरफ्त में आ गया तो फिर उसकी खंडित हो रही चेतना का उबार पाना कठिन है? इस लिहाज से ख़ुशी विभाग की प्रासंगिता है। चुनौतियों की भरमार मध्य प्रदेश वह राज्य है जहां औसतन हर रोज छह किसान आत्महत्या करते हैं, 60 युवतियां गायब होती हैं, 13 महिलाएं दुष्कर्म की शिकार होती हैं, पांच वर्ष आयु तक के जीवित प्रति हजार में 379 बच्चे हर रोज काल के गाल में समा जाते हैं, 43 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या यह विभाग वाकई समस्याग्रस्त लोगों के जीवन को आनंदित कर पाएगा या सिर्फ प्रचार का जरिया बनकर रह जाएगा। आनंद विभाग को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का कहना है कि प्रदेश की जनता के चेहरे मुस्कुराते रहें। जिन्दगी बोझ नहीं, वरदान लगे। इसके लिए प्रदेश में आनंद विभाग का गठन किया जा रहा है। इसमें रोटी, कपड़ा, मकान, आध्यात्म, योग और ध्यान के साथ ही कला, संस्कृति और गान भी होगा। समाजशाास्त्री डॉ. एस. एन. चौधरी सरकार की इस पहल को एक अच्छा कदम बताते हैं। वह कहते हैं, इसके लिए गंभीर प्रयास की जरूरत होगी, समाज से जुड़े उन लोगों की मदद लेनी होगी, जो समाज को समझते हैं। समाज को लाफ्टर क्लब, योग, सुबह की सैर के लिए प्रेरित करना होगा, तभी यह कोशिश कामयाब होगी। राज्य सरकार की ओर से बजट सत्र के दौरान विधानसभा में पेश किए गए जवाबों पर ही गौर किया जाए तो एक बात साफ हो जाती है कि राज्य में 396 दिनों में कुल 10,664 लोगों ने आत्महत्याएं की है। यानी हर रोज 27 लोग आत्महत्या करते हैं, वहीं छह किसानों ने हर दिन आत्महत्या की है। इसी तरह 365 दिनों में 4744 महिलाएं दुष्कर्म का शिकार बनीं। वहीं 446 दिनों में 26,997 महिलाएं गायब हुईं। एक तरफ जहां बढ़ती हताशा में लोग मौत को गले लगा रहे हैं, वहीं महिलाएं भी सुरक्षित नहीं हैं। मंत्रियों को दिया गया पांच इंडेक्स का परिपत्र भरने को सरकार ने अपने मंत्रियों के आनंद का आंकलन करने के लिए उन्हें एक परिपत्र दिया है। जिसे उन्हें भरकर अपने पास रखना है। इस परिपत्र में पांच इंडेक्स हैं। जिनके लिए सात मापदंड तय किए गए हैं। मंत्रियों को उस पर टिक लगाना है। परिपत्र में पहला इंडेक्स है-मेरे लिए जो आदर्श है मेरा जीवन अधिकांश दृष्टिकोण से उस आदर्श के नजदीक है। दूसरा-मैं अपने जीवन से संतुष्ट हूं। तीसरा-मेरे जीवन की परिस्थितियां उत्कृष्ट हैं। चौथा-अभी तक मैंने अपने जीवन में जो महत्वपूर्ण था उसे पा लिया। पांचवा- अगर मुझे अपना जीवन दुबारा जीने का अवसर मिले तो लगभग कुछ भी नहीं बदलना चाहूंगा। इन इंडेक्स के सामने सात घेरे बनाए गए थे जिनमें पहले में पूर्णत: असहमत और सातवें में पूर्णत: सहमत लिखा हुआ है जबकि बीच के पांच घेरे खाली हैं। मंत्रियों को इन पर टिक लगाना है। इससे मंत्रियों के आनंद का आंकलन किया जाएगा।

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