बुधवार, 21 दिसंबर 2016

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का हाल

19,000 करोड़ ठग ले गई बीमा कंपनियां
मध्यप्रदेश के 34 लाख किसानों के साथ फिर हुई धोखाधड़ी भोपाल। मप्र सरकार 10 दिसंबर को प्रदेशभर में किसान सम्मेलन आयोजित करने जा रही है जिसमें खरीफ की फसल के लिए 20,45,794 किसानों किसानों को 4 हजार 400 करोड़ रूपये के दावे के स्वीकृति पत्र वितरित किए जाएंगे। लेकिन किसानों और किसान नेताओं का आरोप है कि हर बार की तरह इस बार भी किसानों से अधिक बीमा कंपनियों को लाभ पहुंचाया गया है। ज्ञातव्य है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के आह्वान पर प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत खरीफ 2016-17 में सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। अपने को सुरक्षित और नुकसान से बचाने की उम्मीद में मध्यप्रदेश में करीब 34 लाख किसानों ने 19 हजार करोड़ का बीमा कराकर खुद को सुरक्षित किया है। लेकिन हकीकत यह है बड़े-बड़े आश्वासन के बीच किसानों के साथ एक बार फिर ठगी हुई है। सरकारी बीमा एजेंसियां होने के बावजुद किसानों की फसलों का बीमा उन्हीं ठगोरी प्राइवेट कंपनियों से कराया गया है जो वर्षों से किसानों को ठगती आ रही हैं। यही कारण है कि मप्र के 98.8 लाख किसानों में से आधे ने भी बीमा नहीं करवाया। उल्लेखनीय है कि मप्र जितनी तेजी से कृषि उत्पादन में आगे बढ़ रहा है उसी तेजी से प्रदेश में नकली बीज, खाद का गोरखधंधा फैल रहा है। किसान जैसे-तैसे नकली बीज, खाद से बचते-बचाते खेती कर रहे हैं, लेकिन हर साल फसल बीमा के नाम पर उनके साथ ठगी की जा रही है। इसको देखते हुए इस बार देशभर में कई किसान हितैषी प्रावधानों के साथ प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना लागू की गई है। केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में प्रीमियम राशि कम होने के कारण अधिकांश किसानों इस योजना के तहत फसलों का बीमा कराया है। इसी खरीफ सीजन में प्रदेश के 34 लाख 13 हजार किसानों (ऋणी किसान 30 लाख 24 हजार और अऋणी 3 लाख 88 हजार) ने बीमा कराया है। इन किसानों का कुल 18 हजार 969 करोड़ रुपए से अधिक का बीमा हुआ है। पिछले साल राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना में मात्र 276 अऋणी किसानों ने फसल बीमा करवाया था, जबकि इस खरीफ सीजन में यह आंकड़ा 3 लाख 88 हजार किसानों तक पहुंच गया है। प्रदेश का 73 लाख 43 हजार हेक्टेयर रकबा बीमित हुआ है। इसके लिए बीमित किसानों ने कुल 396 करोड़ का प्रीमियम जमा किया है। ठगोरी कंपनियों के हाथ में किसानों का भविष्य मप्र सहित देशभर में सरकार ने बीमा का काम सरकारी कंपनियों की जगह इस बार भी निजी कंपनियों को दे दिया है। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के आश्वासन पर किसानों ने बढ़-चढ़ कर बीमा तो करा लिया है, लेकिन सोयाबीन, कपास, ज्वार, धान और उड़द की फसल खराब होते ही कंपनियां गायब हो गई है। अब किसान मुख्यमंत्री से गुहार लगा रहे हैं। दरअसल, मानसून की मेहरबानी के बाद किसानों, सरकार और बीमा कंपनियों को इस बार बंपर उत्पादन की आस है। लेकिन मौसम में लगातार हो रहे बदलाव के कारण सोयाबीन की फसल बर्बाद होने लगी है। सरकारी कार्यालयों में कागजी खानापूर्ति पूरी करने के बाद भी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का लाभ नहीं मिल रहा है। किसान कभी कलेक्टर कार्यालय तो कभी बैंकों के चक्कर लगाने को मजबूर हैं। किसानों का कहना है कि अफसर बीमा कंपनी से ही राशि आवंटित नहीं होने की बात कह रहे हैं। ऐसे में उनके पास सीएम हेल्पलाइन में शिकायत करने के अलावा कोई रास्ता नहीं रह गया है। किसान संगठनों का आरोप है कि फसल बीमा योजना का लाभ सरकारी बीमा कंपनियों के बजाय निजी बीमा कंपनियों को मिल रहा है। इस महत्वाकांक्षी योजना के पहले चरण में सरकारी बीमा कंपनी की उपस्थिति नाममात्र की है। दिलचस्प है कि भारत में बीमा क्षेत्र में भारी योगदान दे रही चार प्रमुख सरकारी कंपनियों को फसल बीमा योजना से नहीं जोड़ा गया। इससे किसानों का एक बड़ा तबका फसल बीमा योजना से नाराज है। किसान संगठनों का एक आरोप यह भी है कि फसल बीमा योजना का लाभ सरकारी बीमा कंपनियों के बजाय निजी बीमा कंपनियों को मिल रहा है। इस महत्वाकांक्षी योजना के पहले चरण में जुड़ी बीमा कंपनियों में सरकारी बीमा कंपनी की उपस्थिति नाममात्र की है। सरकारी क्षेत्र की एग्रीकल्चर इन्श्योरेंस कंपनी ऑफ इंडिया लिमिटेड को इस योजना से जोड़ा गया है। एक और कंपनी एसबीआई जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड आंशिक सरकारी कंपनी है, क्योंकि इसमें भारतीय स्टेट बैंक की हिस्सेदारी चौहत्तर फीसदी है। जबकि इस योजना से जुड़ी आइसीआइसीआई लोंबार्ड, एचडीएफसी अर्गो, इफ्को टोकियो, चोलामंडलम एमएस, बजाज अलियांज, फ्यूचर जेनराली, रिलायंस जनरल इंश्योरेंस, टाटा एआइजी आदि निजी क्षेत्र की बीमा कंपनियां हैं। दिलचस्प है कि भारत में बीमा क्षेत्र में भारी योगदान दे रही चार प्रमुख सरकारी कंपनियों- नेशनल इंश्योरेंस कंपनी, न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी, ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी और यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी को फसल बीमा योजना से नहीं जोड़ा गया। प्रीमियम राशि को लेकर विरोध पिछले एक दशक से प्राइवेट बीमा कंपनियों की ठगी के बाद जब केंद्र की मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा शुरू किया तो किसानों को उम्मीद थी की अब यह योजना सरकार के नियंत्रण में रहेगी लेकिन फिर निजी कंपनियों के हाथों में आ गई है। बताया जाता है कि सरकारी बीमा कंपनियों ने इस योजना में शामिल होने के लिए काफी जोर लगाया लेकिन उनकी कोशिशें नाकाम हो गर्इं। सरकारी बीमा कंपनियों के पास योजना में शामिल होने के मजबूत तर्क थे क्योंकि इनका नेटवर्क देश में सबसे ज्यादा है। पूरे देश में इनके पास हजारों कार्यालय हैं। लाखों बीमा एजेंट हैं। कई जगहों पर तो राजनीतिक दलों और किसान संगठनों ने इस योजना का विरोध किया। उनका विरोध प्रीमियम राशि को लेकर था। किसानों के बैंक खातों से जबर्दस्ती प्रीमियम राशि काटे जाने के कारण भी उनमें भारी रोष था। किसानों का आरोप था कि फसल बीमा योजना में धोखाधड़ी हो रही है। उनकी खाली पड़ी जमीन का भी बीमा कर प्रीमियम की राशि काट ली गई। जबकि कई जगहों पर आरोप लगाया कि उनके खेत में ज्वार की फसल को धान की फसल दिखा कर प्रीमियम काट लिया गया। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को लेकर सरकार उत्साहित है, क्योंकि यूपीए सरकार के समय तीन फसल बीमा योजनाएं लागू थीं और उनसे किसानों को अक्सर शिकायत रही। उस समय भी शिकायत थी कि बीमा कंपनियों ने भारी प्रीमियम राशि इक_ा की, लेकिन किसानों को मुआवजा देने के वक्त हेराफेरी की गई। कई किसान संगठनों ने इस पर सवाल उठाया है। किसान संगठनों का आरोप है कि 2016 के खरीफ सीजन से लागू इस योजना में किसानों को जितना मुआवजा नहीं मिलेगा, उससे कई गुना ज्यादा राशि बतौर प्रीमियम बीमा कंपनियों को मिलेगी। 3 साल में 84 लाख किसानों के साथ ठगी मध्यप्रदेश में फसल बीमा की हकीकत क्या है इसका पता इसी से चलता है कि पिछले तीन साल में 83,75,105 किसानों से फसल बीमा योजना के अंतर्गत प्रीमियम लेने के बाद भी कंपनियों ने उन्हें एक रूपए का भी भुगतान नहीं किया। यह जानकारी राज्य सभा में केंद्रीय कृषि मंत्री ने दिग्विजय सिंह के एक सवाल के जवाब में दिया। केंद्रीय कृषिमंत्री के अनुसार मप्र में वर्ष 2011-12 में 33,74,706 किसानों का बीमा हुआ था लेकिन मात्र 6,61,779 किसानों को ही बीमा का लाभ मिल सका। इसी तरह वर्ष 2012-13 में 40,60,131 किसानों का बीमा हुआ था लेकिन लाभान्वित 4,34,642 ही किसान हो सका। 2013-14 में 24,10,937 किसानों की फसल का बीमा हुआ था लेकिन 14,70,666 किसानों को ही बीमा का लाभ मिला। यानी इन तीन सालों में 98,45,771 किसानों का बीमा हुआ लेकिन लाभ 14,70,666 किसानों को ही मिला। यानी 83,75,105 किसानों को एक धेला भी नहीं मिला। किसानों के साथ धोखा करने वाली कंपनियों में से भारतीय कृषि बीमा कंपनी लि., आईसीआईसीआई-लोम्बामर्ड, इफ्को-टोकियो, एचडीएफसी-इआरजीओ, चोलामंडलम-एमएस, टाटा-एआईजी, फ्यूचर जनरली इंडिया, रिलायंस, बजाज एलाइंज, एसबीआई और यूनिवर्सल सोम्पोस जनरल बीमा कंपनी शामिल हैं। यही कंपनियां इस बार भी किसानों की फसलों का बीमा कर रही हैं। अभी तक इन कंपनियों द्वारा किए गए बीमा की जो खामिया सामने आ रही हैं उससे किसान एक बार फिर डरे हुए हैं। इनका कहना है -कंपनी कोई भी हो, किसानों को फायदा होना चाहिए। प्रदेश सरकार किसानों के हित के लिए काम कर रही है। किसानों को नुकसान नहीं होने दिया जाएगा। गौरीशंकर बिसेन कृषि मंत्री -प्रदेश में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत खरीफ की फसल के लिए पूरे प्रदेश में 20 लाख 45 हजार 794 किसानों के खाते में 4414 करोड़ की राशि का वितरण होना है। राजेश राजौरा प्रमुख सचिव कृषि विभाग - अभी तक सरकार फसल बीमा का लाभ किसानों को नहीं दिला पाई है तो अब क्या दिलाएगी। यह चुनावी प्रोपगंडा है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से किसानों को कुछ भला नहीं होने वाला। शिवकुमार शर्मा कक्का जी राष्ट्रीय अध्यक्ष भारतीय किसान मजदूर संघ - प्रचार प्रसार में योजना के बहुत से लाभ बताए थे लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि यह बीमा योजना पुरानी बीमा योजना से भी बदतर है। इससे किसानों को कोई लाभ नहीं होगा। विजय चौधरी किसान नेता

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