गुरुवार, 22 दिसंबर 2016

सरकारी दावे की खुली पोल

कागजों में अटका 53,000 करोड़ का निवेश
भोपाल। मप्र में सरकार और अफसरशाही मिलकर विकास की आंकड़ेबाजी किस तरह कर रही है इसका खुलासा हाल ही में एक सर्वे में हुआ है। देश ही नहीं विदेशों में भी औद्योगिक विकास और निवेश का ढोल पीट रही सरकार के दावों की पोल खुलते ही उद्योग विभाग के अफसर सर्वे को ही गलत साबित करने में जुट गए हैं। हालांकि दूसरे विभागों के अफसर इस बात को मान रहे हैं कि प्रदेश में औद्योगिक विकास की जो तस्वीर दिखाई जा रही है वह हकीकत से परे है। सर्वे में यह तथ्य सामने आया है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तमाम विदेश यात्राओं के बावजूद मप्र में निवेश बढ़ा नहीं बल्कि 14 प्रतिशत घट गया है। इतना ही नहीं देश में मप्र का औद्योगिक योगदान भी घट गया, मतलब जो उद्योग चल रहे थे वो भी बंद हो रहे हैं। भले ही कृषि क्षेत्र में सरकार को कृषि कर्मण अवार्ड मिला है लेकिन धरातल पर कोई तरक्की नहीं हो पाई है। 87 प्रतिशत निवेश पिछले 57 महीनों से अफसरशाही के जाल में फंसा हुआ है जबकि 44 हजार करोड़ रुपए की निवेश घोषणाएं ऐसी हैं जो केवल घोषणाएं ही थीं। यह स्थिति तब है जब मप्र को औद्योगिक हब बनाने प्रदेश सरकार ने निवेशकों को आकर्षित करने के लिए जहां अरबों रूपए अभी तक के 9 इंवेस्टर्स समिट में फूंका है, वहीं खरबों रूपए का लैंड बैंक तैयार कर रखा है। इन सब के बावजुद प्रदेश में करीब 53,000 करोड़ का औद्योगिक निवेश कागजों में अटका है। आलम यह है कि निवेशक दफ्तरों का चक्कर लगाकर थक गए हैं, ऐसे में नौकरशाही के निकम्मेपन के कारण वे अब कई निवेशक दूसरे प्रदेशों का रूख कर चुके हैं। प्रदेश में वर्ष 2008 से लेकर अब तक कुल 9 इंवेस्टर्स समिट हुई हैं। इनमें कुल 327 एमओयू हुए हैं, जिनमें करीब 20 करोड़ 5 लाख 20 हजार रुपए से अधिक की राशि खर्च हुई है। उल्लेखनीय है कि किसी भी राज्य में इंडस्ट्री लगाने के लिए जमीन की उपलब्धता और जरूरी मंजूरियां मिलना पहली जरूरत होती है। हाल ही में जारी वल्र्ड बैंक की रिपोर्ट के अनुसार इन दोनों मामलों में मध्य प्रदेश देश में पहले नंबर पर है। मध्य प्रदेश में मौजूद लैंड बैंक, जमीन की ऑनलाइन इंफॉर्मेशन और अलॉटमेंट की निश्चित टाइम लाइन होने के चलते राज्य को 72.73 फीसदी अंकों के साथ देश का बेहतरीन राज्य माना है। मध्य प्रदेश के अलावा गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान और आंध्र प्रदेश को भी इस सूची में पहले पांच पायदानों पर जगह दी गई है। फिर भी निवेशकों को मप्र से मोहभंग होना किसी सदमें से कम नहीं है। दरअसल, हाल ही में एसोसिएटेड चैम्बर ऑफ कॉमर्स एण्ड इंडस्टीज ऑफ इंडिया (एसोचैम) ने मध्य प्रदेश में इकोनॉमी, इंफ्रास्ट्रक्चर और इंवेस्टमेंट को लेकर एक सर्वे किया। इस सर्वे के रिपोर्ट के आधार पर मार्च 2016 तक मध्य प्रदेश में करीब 14 फीसदी इंवेस्टमेंट ऐसे हैं जिन पर किसी भी तरह का विचार नहीं किया गया। इसके अलावा 53 हजार करोड़ के 86 फीसदी प्रस्ताव कागजी दस्तावेजों के बीच अटके हुए हैं। मध्य प्रदेश इंडिस्ट्रयल सेक्टर के लिए यह प्रस्ताव चौंकाने वाले हो सकते हैं। 2015-2016 के आंकड़ो पर नजर डालें तो एसौचेम की रिपोर्ट के मुताबिक 53,000 में 44,000 करोड़ रुपए के इंवेस्टमेंट ऐसे हैं जो सिर्फ कागजों पर ही पास हुए हैं। रिपोर्ट में यह बात भी निकलकर सामने आई है कि 2015-16 फाइनेंशियल ईयर में इकोनॉमी, इंफ्रास्ट्रक्चर और इंवेस्टमेंट से संबंधित अप्रुवल पर कुछ अनाउंसमेंट किए थे। जिन पर आज तक कोई काम नहीं किया गया है। एनालिसिस के मुताबिक 2013-2014 के इंडिस्ट्रयल आंकड़ों में रिपोर्ट में जिक्र किया गया है कि मध्य प्रदेश में 2013-2017 में जहां 60 फीसदी इंवेस्टमेंट प्रस्ताव खारिज किए गए। हालांकि रिपोर्ट के आधार पर 2015-2016 में राज्य में करीब 700 से अधिक इंवेस्टर्स ने वहां के इंडस्ट्रीयल सेक्टर में इंटररेस्ट जताया है। 2015-2016 में 5 लाख करोड़ रुपए इंवेसटमेंट के तौर पर प्रस्तावित किए गए जिन्हें कई प्रोजेक्ट के अंतर्गत लाया गया। निवेश में 14 प्रतिशत गिरावट आई मध्य प्रदेश में निवेश को बढ़ावा देने के लिए चल रही कोशिशों के बीच एसोचैम द्वारा कराए गए अध्ययन से सरकार के लिए निराशाजनक खबर आई है। यह अध्ययन बताता है कि बीते वित्त वर्ष 2015-16 में नए निवेश में 14 प्रतिशत गिरावट आई है। पिछले वित्त वर्ष के दौरान राज्य में निर्माण क्षेत्र में सर्वाधिक लगभग 68 प्रतिशत नया निवेश आया। इसके अलावा बिजली (19 प्रतिशत), सेवा (11.5 प्रतिशत) और निर्माण (01 प्रतिशत), गैर-वित्तीय सेवाओं के क्षेत्र में 12 प्रतिशत, सिंचाई क्षेत्र में छह प्रतिशत, खनन में चार प्रतिशत, निर्माण एवं रियल एस्टेट में तीन प्रतिशत नया निवेश आया। अध्ययन के मुताबिक, वर्ष 2015-16 तक कुल 5.75 लाख करोड़ रुपये का लाइव (सक्रिय) निवेश हासिल हुआ था। इस तरह एक साल में 4.5 प्रतिशत की वृद्धि दर प्राप्त हुई, जबकि एक साल (2014-15) पहले तक राज्य में 5.50 लाख करोड़ रुपये का लाइव निवेश आया था। इस निवेश के प्रस्तावों में से लगभग तीन लाख करोड़ की परियोजनाएं विभिन्न कारणों से अटकी पड़ी हैं। राज्य में कुल सक्रिय निवेश का सर्वाधिक करीब 55 प्रतिशत हिस्सा बिजली क्षेत्र में है। वहीं विनिर्माण क्षेत्र में 20 प्रतिशत, गैर-वित्तीय सेवाओं के क्षेत्र में 12 प्रतिशत, सिंचाई क्षेत्र में छह प्रतिशत, खनन में चार प्रतिशत, निर्माण एवं रियल एस्टेट में तीन प्रतिशत ऐसा निवेश आकर्षित हुआ है। अध्ययन के अनुसार, राज्य में करीब 87 प्रतिशत निवेश परियोजनाएं ऐसी हैं, जो औसतन 57 महीने विलम्ब से चल रही हैं। देरी के कारण 57 निवेश परियोजनाओं की लागत 35 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ गई, जिससे करीब 67 हजार करोड़ रुपये तक की लागत बढ़ चुकी है। रपट के अनुसार, इन परियोजनाओं की वास्तविक लागत लगभग दो लाख करोड़ रुपये ही थी। जो बढ़कर दो लाख 67 हजार करोड़ रुपये हो गई है। पूर्ण होने में विलम्ब के कारण परियोजनाओं की बढ़ी कुल लागत में बिजली क्षेत्र की सर्वाधिक 60.5 प्रतिशत हिस्सेदारी है। वहीं सिंचाई (27 प्रतिशत), गैर-वित्तीय सेवाओं (सात प्रतिशत) और विनिर्माण (06 प्रतिशत) की हिस्सेदारी है। एसोचैम के अध्ययन के अनुसार, भौतिक तथा सामाजिक ढांचे के अव्यवस्थित विकास की वजह से भागीदारी के मामले में निजी क्षेत्र की दिलचस्पी घटी है। इसकी वजह से मध्य प्रदेश में निवेश परिदृष्य की चमक फीकी हुई है। रपट के अनुसार, देश की अर्थव्यवस्था में मध्य प्रदेश का योगदान वर्ष 2005-06 के चार प्रतिशत के स्तर के मुकाबले 2013-14 में 3.9 प्रतिशत रहा। यानी इसमें मात्र 0.1 प्रतिशत की गिरावट आई है। अध्ययन के अनुसार, राज्य के करीब 70 प्रतिशत कामगार अपनी रोजी-रोटी के लिए कृषि पर निर्भर हैं, फिर भी राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) में इस क्षेत्र का योगदान आशा के अनुरूप नहीं है। वर्ष 2004-05 में जहां मध्य प्रदेश के जीएसडीपी में कृषि क्षेत्र का योगदान 27.7 प्रतिशत था, वहीं वर्ष 2014-15 में यह 28.1 प्रतिशत तक ही पहुंच सका। चिंताजनक पहलू यह भी है कि राज्य की अर्थव्यवस्था में औद्योगिक क्षेत्र का योगदान वर्ष 2010-11 में सर्वाधिक 26 प्रतिशत के मुकाबले 2014-15 में 22 प्रतिशत के स्तर तक जा गिरा। इसके अलावा औद्योगिक क्षेत्र में कामगारों की निर्भरता भी वर्ष 2001 में चार प्रतिशत के मुकाबले 2011 में घटकर तीन प्रतिशत हो गई। औद्योगिक योगदान 4 प्रतिशत गिर गया चिंताजनक पहलू यह भी है कि राज्य की अर्थव्यवस्था में औद्योगिक क्षेत्र का योगदान वर्ष 2010-11 में सर्वाधिक 26 प्रतिशत के मुकाबले 2014-15 में 22 प्रतिशत के स्तर तक जा गिरा। इसके अलावा औद्योगिक क्षेत्र में कामगारों की निर्भरता भी वर्ष 2001 में चार प्रतिशत के मुकाबले 2011 में घटकर तीन प्रतिशत हो गर्ई। भौतिक तथा सामाजिक ढांचे के अव्यवस्थित विकास की वजह से भागीदारी के मामले में निजी क्षेत्र की दिलचस्पी घटी है। इसकी वजह से मध्य प्रदेश में निवेश परिदृष्य की चमक फीकी हुई है। रिपोर्ट के अनुसार, देश की अर्थव्यवस्था में मध्य प्रदेश का योगदान वर्ष 2005-06 के 4 प्रतिशत के स्तर के मुकाबले 2013-14 में 3.9 प्रतिशत रहा। यानी इसमें भी 0.1 प्रतिशत की गिरावट आई है। नहीं लगे उद्योग, वीरान पड़ी जमीन क्षेत्रफल के आधार पर देश के बड़े राज्यों में शामिल मध्य प्रदेश में राज्य सरकार की ओर से लैंड बैंक तैयार किया गया है। जिसकी जानकारी सरकार की ओर से ऑनलाइन उपलब्ध कराई गई है। वल्र्ड बैंक ने खास तौर पर इस सिस्टम का उल्लेख करते हुए बताया कि मध्य प्रदेश ने लैंड बैंक को इंडस्ट्री के हिसाब से बांटा है। जिससे निवेशकों को अपनी जरूरत के हिसाब से जमीन हासिल करने में आसानी होती है। इसके साथ ही यहां लैंड अलॉटमेंट के लिए निश्चित समय सीमा भी निर्धारित है। जिससे निवेशकों को समय पर जमीन उपलब्ध कराने से लेकर प्लांट स्थापित करने की प्रक्रिया को आसान बनाता है। फिर भी ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में गुजरात टॉप पर है। वहीं मप्र को 5वीं पोजिशन हासिल हुई है। वहीं गुजरात लैंड अलॉटमेंट के मामले में भी मप्र के लगभग बराबर खड़ा है। वल्र्ड बैंक रिपोर्ट के अनुसार लैंड अलॉटमेंट के लिए लैंड बैंक मौजूद होने के बावजूद मप्र में जीआईएस आधारित जानकारियों का अभाव है। गुजरात सहित बहुत से छोटे और नए राज्यों में यह सुविधा प्राप्त है। इससे इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़े प्रोजेक्ट के लिए जगह की सही पड़ताल करना निवेशकों के लिए मुश्किल हो जाता है। इसके अलावा मप्र के पास कोई जोनल प्लान भी नहीं है। जिसके चलते मप्र में रियल एस्टेट और कंस्ट्रक्शन गतिविधियां दूसरे राज्यों के मुकाबले काफी पीछे हैं। यानी मप्र सरकार के तमाम दावों के बाद भी यहां की व्यवस्था में खोट है जिसके कारण मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मप्र को औद्योगिक हब बनाने की मंशा पूरी नहीं हो पा रही है। आलम यह है की सरकार ने आज से करीब 10 साल पहले प्रदेशभर में उद्योग लगाने के लिए जो लैंड बैंक तैयार किए थे और जिन्हें आवंटित कर दिया गया था वे आज भी वीरान पड़े हुए हैं। उल्लेखनीय है कि एक दशक पहले मप्र शासन ने प्रदेश में कई नए औद्योगिक क्षेत्र विकसित करने की कार्य योजना बनाई थी। इसमें छतरपुर, जबलपुर, कटनी, सतना, इंदौर, भोपाल आदि जिलों औद्योगिक क्षेत्र विकसित किए गए थे। इसमें छतरपुर जिले का चंद्रपुरा क्षेत्र भी शामिल किया गया था। यहां पर 125 एकड़ जमीन पर 204 प्लाटों पर उद्योग के लिए जमीन का आवंटन किया गया। लेकिन निश्चित समय सीमा दो साल बीतने के बाद भी इस जमीन पर कोई उद्योग स्थापित नहीं किया गया। जबकि नियम के अनुसार उद्योग के लिए आवंटित जमीन पर दो साल में उद्योग नहीं लगाने पर कार्रवाई का प्रावधान है। ऐसे में विभाग ने इन पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की। शासन ने शहर के लगे चंद्रपुरा गांव के पास खाली पड़ी सरकारी जमीन पर 2006 में नए औद्योगिक क्षेत्र की संरचना करना का प्रस्ताव तैयार किया। इसमें ऐसे उद्योगों को स्थापित करना था जिसे जिले के व्यापारी परंपरागत ढंग से करते आ रहे थे। इसमें बैलगाड़ी उद्योग, फर्नीचर उद्योग सहित लघु वनोपज व अन्य उद्योग स्थापित होना है। जिनके कारीगर यहां पर हैं और अब उन्हें रोजगार मुहैया नहीं हो पा रहा है। चंद्रपुरा औद्योगिक क्षेत्र के लिए शासन ने 125 एकड़ जमीन भी आवंटित की गई थी। यह जमीन जिला उद्योग एवं व्यापार केंद्र के माध्यम से व्यापारियों को देनी थी। इसमें जिला उद्योग व्यापार केंद्र के अधिकारियों ने न तो व्यापारियों को प्लाट दिए और न ही कारीगरों को प्लाट दिए। अधिकांश प्लाट उद्योग विभाग के अधिकारियों ने अपने चहेतों और एप्रोच वाले लोगों को दिए। ऐसे में जिला उद्योग एवं व्यापार केंद्र द्वारा जिन व्यापारियों को चंद्रपुरा औद्योगिक क्षेत्र में प्लाट आवंटित किए हैं उनकी सूची उजागर नहीं कर रहा है। उधर दो साल से अधिक समय होने के बाद भी यहां पर औद्योगिक स्थापना की शुरुआत भी नहीं हो सकी है। जबकि चंद्रपुरा औद्योगिक क्षेत्र के विकास के नाम पर करोड़ों रुपए भी शासन खर्च कर चुका है। शहर के आर्थिक विकास में मील का पत्थर समझे जा रहे प्रस्तावित औद्योगिक क्षेत्र के विकास में विभागीय अधिकरियों की लापरवाही के साथ ही आवंटियों की मनमानी बाधा बन गई है। सवा सौ एकड़ जमीन अभी भी वीरान पड़ी है। जबकि यहां 204 लोगों को उद्योग स्थापित करने के लिए जमीन का आवंटन किया जा चुका है। बावजूद इसके दस साल का समय गुजर जाने के बाद भी आज तक चंद्रपुरा औद्योगिक क्षेत्र में एक भी उद्योग स्थापित नहीं हो सकता है। जमीन आवंटन के बाद दो साल का समय निकलने पर भी उद्योग स्थापित न करने पर विभागीय अधिकारियों ने जब कुछ आवंटियों उद्योग स्थापित करने का दवाब बनाया तो संयुक्त संचालक परिक्षेत्रीय कार्यालय उद्योग सागर के यहां अपील दायर की। इस दौरान अपीलकर्ताओं ने छह माह के अंदर उद्योग स्थापित करने की बात कही। तब विभागीय अधिकारी ने छह माह के अंदर काम शुरू कराने की मोहलत दी है। प्रोजेक्ट का पता नहीं! इधर राजधानी में तमाम प्रोजेक्ट जमीन न मिलने की वजह से अटके हुए हैं। दूसरी ओर कुछ विभागों ने जमीन सालों से आवंटित करा रखीं हैं लेकिन उनका उपयोग नहीं हो रहा है। ऐसी दो हजार एकड़ से अधिक जमीन है जो प्राइम लोकेशन पर है लेकिन इस पर अभी तक कोई निर्माण शुरू नहीं हुआ है। कई विभागों से जमीन वापिस लेने की कार्रवाई भी शुरू हुई लेकिन बेकार रही। आलम यह है कि अब उन जमीनों पर अतिक्रमण हो रहा है। शासन ने 1991-92 में नगर निगम को गोवर्धन परियोजना के लिए मालीखेड़ी में 46 एकड़ जमीन आवंटित की थी। ननि के अधिकारियों ने ही ठेके पर अतिक्रमण कराना शुरू कर दिया। जिला प्रशासन ने दो बार में डेढ़ सौ झुग्गियों को यहां से हटाया। उद्योग विभाग को गोविंदपुरा औद्योगिक क्षेत्र के लिए लगभग 600 एकड़ जमीन आवंटित की गई थी। यहां खाली पड़ी जमीन पर लगातार अतिक्रमण होते रहे। जिला प्रशासन ने वर्ष 2011 में 141 एकड़ जमीन मुक्त कराई थी। इस पर फिर से अतिक्रमण हो गया है। धीरूभाई अंबानी एजुकेशन हब के लिए वर्ष 2009 में लगभग 50 एकड़ जमीन शासन ने अचारपुरा में आवंटित की थी। लेकिन, वहां अभी तक कोई निर्माण कार्य शुरू नहीं हुआ। शासन ने वर्ष 2011 में पीपलनेर और बैरागढ़ कलां गांवों को मिलाकर 100 एकड़ जमीन उद्योग विभाग को आवंटित की थी। यहां एयर कार्गो हब बनाया जाना था। कुछ नहीं हुआ। हाउसिंग बोर्ड को शासन ने अयोध्या नगर में सैकड़ों एकड़ जमीन आवंटित की थी। लेकिन इसके आधे पर भी विकास कार्य नहीं हो पाया है। जिला प्रशासन के सर्वे में पाया गया कि भेल से करीब 894 एकड़ जमीन वापिस ली जा सकती है। भेल को 6 हजार 45 एकड़ जमीन अर्जित कर दी गई थी। इसमें से 866 एकड़ जमीन खाली पड़ी हुई है। जबकि 256 एकड़ पर अतिक्रमण हो चुके हैं। 900 एकड़ जमीन,नहीं आ रहे उद्यमी जबलपुर में तो निवेशकों के इंतजार में लगभग 9 सौ एकड़ जमीन खाली पड़ी है। यहां औद्योगिक वातावरण और सुविधाएं कम नहीं है, लेकिन इन जमीनों पर उद्योगों को लगवाने की पहल करने वालों का अभाव है। बड़े औद्योगिक घरानों को आमंत्रित करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की यहां भारी कमी बनी हुई है। इसलिए जमीन जैसे के तैसे पड़ी हुई हैं। ऐसा भी नहीं है कि जिन औद्योगिक क्षेत्रों में जमीन खाली हैं, वहां पर उद्योगों के लायक माहौल या सुविधाएं नहीं हैं लेकिन उद्यमियों को लाकर यहां की खूबियां बताने वाला कोई नहीं है। इसमें राजनीतिक इच्छाशक्ति का बहुत अभाव है। जबकि ग्वालियर, इंदौर और भोपाल में स्थिति बिल्कुल विपरीत है। उद्योगों को आकर्षित करने के लिए एकेवीएन ने इस साल अपने किसी भी औद्योगिक केंद्र में प्रीमियम चार्जेस में इजाफा नहीं किया। इसमें हर साल 10 प्रतिशत का इजाफा होता है। बढ़ी हुई दरें एक अप्रैल से लागू होती हैं। हालांकि इन औद्योगिक क्षेत्रों की दरें कुछ महीने पहले ही निर्धारित हुई हैं। इसलिए भी इनमें इजाफा नहीं किया गया। जबलपुर में डिफेंस क्लस्टर का प्रस्ताव था, लेकिन वह भी हाथ से निकल गया। अब इसकी स्थापना इंदौर में होने जा रही है। यदि समय रहते इस पर गंभीरता से काम होता तो शायद स्थिति दूसरी होती। यहां न केवल जमीन बल्कि रक्षा उद्योगों के लिए प्रशिक्षित मजदूर भी आसानी से मिल सकते थे। करीब दो साल पहले दक्षिण अफ्रीका के अप्रवासी भारतीय के द्वारा उमरिया-डुंगरिया क्षेत्र में बांस उद्योग की स्थापना का इरादा जाहिर किया गया था। इसमें 1500 लोगों को रोजगार की संभावना जताई गई थी। बताया जाता है कि किसी भी संगठन या राजनीति से जुड़े लोगों ने इसमें रुचि नहीं दिखाई। सिहोरा के हरगढ़ और उमरिया डुंगरिया में स्पेशल इकॉनामिक जोन (एसईजेड) की स्थापना के लिए जमीन चिन्हित की गई। विकास भी किया गया, लेकिन आज तक कोई निर्यातक इकाइयां यहां नहीं आ सकी। इस मामले में भी कोई बड़ी पहल नहीं की जा सकी है। जबकि छिंदवाड़ा में निजी एसईजेड स्थापित होने जा रहा है। स्पेशल इकोनॉमिक जोन के लिए नहीं मिले इन्वेस्टर्स प्रदेश सरकार की हीलाहवाली के चलते जबलपुर जिले के हरगढ़ और उमरिया-डुंगरिया से स्पेशल इकोनॉमिक जोन (सेज) छिन गया है। सरकार इन क्षेत्रों में 8 साल में भी विकास कार्य नहीं करा पाई। नतीजतन दोनोंÓसेजÓमें एक भी एक्सपोर्ट यूनिट नहीं आई। ऐसे में केंद्र सरकार ने सेज को डीनोटिफाइड कर दिया। अब इसे औद्योगिक क्षेत्र में बदला जाएगा। इसके बाद यहां सभी तरह के उद्योगों की स्थापना हो सकेगी। केंद्र ने जिले में दो सेज की सौगात दी थी। सिहोरा तहसील के हरगढ़ में 101 हेक्टेयर क्षेत्रफल में खनिज एवं खनिज आधारित उत्पादों के लिए 24 जुलाई 2008 मेंÓसेजÓका नोटिफिकेशन हुआ था। चरगवां के पास भी उमरिया-डुंगरिया में 101 हेक्टेयर क्षेत्रफल में कृषि एवं कृषि आधारित उत्पादों केÓसेजÓकी स्थापना 25 अगस्त 2009 को गई थी। दोनों औद्योगिक क्षेत्रों में आठ साल में एक भी इकाई की स्थापना नहीं हो सकी, जबकि यहां पर अधोसंरचना के निर्माण पर लाखों रुपए खर्च कर दिए गए थे। मप्र औद्योगिक केंद्र विकास निगम जबलपुर ने दोनों सेज को डिनोटिफाइड (विमुक्त) करने का प्रस्ताव केन्द्र को भेजा था। लंबे समय बाद वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की बैठक में इस पर निर्णय लिया गया। धरातल पर नहीं उतर पाए सीमेंट उद्योग के सपने 2010 में खजुराहो समिट में 18 औद्योगिक घरानों ने 25,726 करोड़ के सीमेंट प्रोजेक्ट के लिए सहमति व्यक्त की थी। इसके तहत 9 जिलों में 21 सीमेंट प्लांट लगाए जाने थे। 80 फीसदी उद्योग विंध्य के सतना, रीवा सहित पन्ना जिले में लगाए जाने थे। जिसमें रिलायंस, आदित्य बिड़ला ग्रुप, अंबुजा, डालमिया, इमामी, एस्सार जैसे घराने शामिल थे। अफसोस, छह साल बाद भी अधिकतर प्रोजेक्ट पाइप लाइन में हैं। ये हकीकत की जमीन पर नहीं उतर सके। केवल रिलायंस व केजेएस ही व्यावहारिक रूप से शुरू हो सके, जिनका उत्पादन जारी है। उद्योग विभाग से मिली जानकारी के अनुसार,आदित्य बिड़ला ग्रुप के अल्ट्राटेक ने सतना व धार जिले में 6 हजार करोड़ इंवेस्ट करने का एमओयू साइन किया था। इसमें से 4400 करोड़ में सतना में तीन यूनिट लगनी थी। अभी भी प्रोजेक्ट प्रक्रिया में है। जेपी एसोसिएट ने एक हजार करोड़ में एक-एक यूनिट सतना और सागर में लगाने का एमओयू साइन किया था। सूर्या ग्लोबल ने सतना में 2690 करोड़ रुपए इंवेस्ट करने के लिए एमओयू साइन किया था। एस्सार सीमेंट लिमिटेड ने 2100 करोड़ रुपए से दो यूनिट लगाने का एमओयू साइन किया था। डलमिया सीमेंट ने 2 हजार करोड़ का इंवेस्ट सतना में करने का एमओयू साइन किया था। इमामी सीमेंट ने 1750 करोड़ का इंवेस्ट सतना में करने का एमओयू साइन किया था। एवी माइंस ने 301 करोड़ व साई नाथ वेंचर ने 300 करोड़ इंवेस्ट करने का एमओयू साइन किया था। वीआईएसए सीमेंट और बुदेलखंड रिसोर्स प्रालि ने एक-एक सीमेंट प्लांट रीवा में लगाने का एमओयू साइन किया था। वहीं चार कंपनियों ने पन्ना में सीमेंट प्लांट स्थापित करने का एमओयू साइन किया था। सनफ्लेग इफ्रास्ट्रेक्चर ने 833 करोड़, खजुराहो सीमेंट ने 430 करोड़, रिस्पांस मर्चेंट प्राइवेट लिमिटेड व एमबी इस्पात ने 400-400 करोड़ के सीमेंट प्लांट लागने का एमओयू साइन किया था। बताया जाता है कि अधिकतर घरानों को सीमेंट इंडस्ट्री का अनुभव नहीं था। लिहाजा, इंडस्ट्रीज को समझने में ज्यादा समय गुजर गया। कई घराने अन्य ग्रुप को टेकओवर करने में लगे रहे। पर सफल नहीं हो सके। आदित्य ग्रुप को कुछ हद तक सफलता मिली, लेकिन वह भी मामला कोर्ट पहुंच गया। जमीन अधिग्रहण सहित कई कानूनी पेंच भी भारी पड़ रहे। रेवती सीमेंट का प्रोजेक्ट तक रुक गया है। खाली पड़े हैं 7 हजार औद्योगिक भूखंड केंद्रीय एमएसएमई मंत्रालय के अनुसार, मध्यप्रदेश में औद्योगिक पार्क, इंडस्ट्रियल एरिया और स्पेशल इकॉनोमिक जोन में करीब 7,000 और देश भर में 40,000 से अधिक औद्योगिक भूखंड खाली पड़े हैं। औद्योगिक जमीनों सबसे बड़ी समस्या स्पेशल इकॉनोमिक जोन में है। देश भर में खाली पड़े प्लॉट में से 50 फीसदी प्लॉट विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज) में खाली पड़े हैं। यदि राज्य सरकारें उचित योजना बनाकर इन खाली भूखंडों को जरूरतमंद उद्योगों को उपलब्ध कराते हैं तो देश भर में लाखों नए उद्योग सफलतापूर्वक शुरू हो सकते हैं। इसे देखते हुए सबसे पहले मप्र से इसकी शुरूआत होने जा रही है। उधर,प्रदेश सरकार बीमार उद्योगों के पास पड़ी 27 हजार हैक्टेयर जमीन भी अधिग्रहित करने की तैयारी कर रही है। इसके लिए नोटिस भेजना शुरू कर दिया गया है। उद्योग न शुरू करने पर वापस हो सकती जमीनें छोटे उद्योगों को जमीन उपलब्ध कराने के लिए मध्य प्रदेश सरकार औद्योगिक क्षेत्रों का सर्वे भी करवा रही हैं। इसके तहत उन उद्योगों की जांच की जा रही है जिन्होंने औद्योगिक क्षेत्रों में जमीन तो ले रखी है। लेकिन लंबे समय से वहां पर औद्योगिक गतिविधि शुरू नहीं की है। ऐसे उद्योगों की जमीनें वापस ली जा सकती हैं। इसके साथ ही जरूरत से ज्यादा जमीन अपने नाम पर आवंटन करवाने वाले उद्योगों की जमीनें वापस लेने की तैयारी भी की जा रही हैं। विंध्य व महाकौशल के लिए जबलपुर-कटनी-सतना-सिंगरौली इंडस्ट्रीयल कॉरिडोर बहुप्रतिक्षित योजना है। इस योजना के मूर्त रूप लेने से सतना, रीवा, सीधी व सिंगरौली में विकास के अवसर पर उपलब्ध होंगे, वहीं जबलपुर व कटनी का भी औद्योगिक विकास होगा। इसके लिए मप्र शासन ने 6 जिलों में करीब 6.5 हजार वर्ग हेक्टेयर जमीन चिह्नित की है। लगभग 370 किमी दायरे में चिह्नित जमीनों पर औद्योगिक क्षेत्र विकसित किया जाएगा। इन पर बड़े उद्योग तो लगेंगे ही साथ ही लघु और सूक्ष्म उद्योग भी लगाए जाएंगे। इतने बड़े पैमाने पर उद्योग स्थापित होने से रोजगार व संसाधन दोनों का विकास होगा। कॉरीडोर को अमलीजामा पहनाने की जिम्मेदारी एकेवीएन को दी गई है। विभाग ने कलेक्टरों के माध्यम से जमीन की तलाश शुरू कर चुकी है। विंध्य व महाकौशल के 6 जिलों में 6541.842 वर्ग हेक्टेयर लैंड बैंक सुरक्षित की गई है। प्रस्तावित इंडस्ट्रीयल कॉरिडोर के लिए सतना, रीवा, सीधी, सिंगरौली, जबलपुर व कटनी में जमीन तलाशी गई है। सबसे ज्यादा जमीन कटनी में 4350.581 वर्ग हेक्टेयर है, जबकि सबसे कम सीधी में 91.156 वर्ग हेक्टेयर है। सतना में 892.495, रीवा में 244.186, सिंगरौली में 232.620 और जबलपुर में 724.794 वर्ग हेक्टेयर जमीन चिह्नित की गई है। इंडस्ट्रीयल कॉरिडोर के लिए जमीन चिह्नित करने में इस बात का ध्यान रखा गया है कि जमीन नेशनल हाइवे से ज्यादा दूर न हो। सतना के उचेहरा में 86.219, इचौल में 29.974, बगहा में 40.134, नयागांव-बिरसिंहपुर में 100.170, रहिकवार में 64. 096, सुरदहा कला में 96.035, खिरिया कोठार में 14.824, सोनौरा में 86.752, उमरी-रामपुर बाघेलान में 67.57 व बाबूपुर अतरहरा-उचेहरा में 180.364 वर्ग हेक्टेयर जमीन चिह्नित है। रीवा में मऊगंज के घुरहेटा कला में 175. 059 व गुढ़ के हरदी में 69.137 वर्ग हेक्टेयर चिह्नित जमीन है। सिंगरौली में 52.560, पिडस्ताली में 63.122, फुलवारी में 60.630, बाघाडीह में 29.980 व गनियारी में 32.328 वर्ग हेक्टेयर, सीधी के चोरबा में 9.940, रामपुर सिहावल में 72.136 व बरहाई चुरहट में 9.080 वर्ग हेक्टेयर जमीन चिह्नित है। जमीन लेने तक सिमटे निवेशक प्रदेश सरकार मप्र में औद्योगिक निवेश को आकर्षित करने की रणनीति फिलहाल निवेशकों को रास नहीं आ रही है। सरकार की देश-विदेश की यात्राओं और रोड शो के मद्देनजर हाईटेक बुलाव और ब्रांडिंग पर निवेशक मप्र में होने वाले इंवेस्टर्स समिट में मेहमान बनकर आने में तो जरूर रुचि दिखा रहे हैं, लेकिन वह सरकार और सूबे की जनता के भरोसे पर खरा नहीं उतर पा रहे हैं। यही कारण है कि इंवेस्टर्स समिट में दिल खोलकर एमओयू साइन करने और निवेशक घोषणा करने वाले यह उद्योगपति जमीन पर अपने उद्योगों को नहीं उतार पा रहे हैं। इसके चलते न तो प्रदेश में उद्योगों का जाल बिछ पा रहा है और न ही सूबे के बेरोजगार शिक्षित और अशिक्षित युवाओं को रोजगार मिल पा रहा है। हालांकि, यह बात और है कि इसके उलट प्रदेश सरकार मेहमान बनकर आने वाले निवेशकों और देश-विदेशी उपद्योगपतियों पर जमकर मेहरबान है और उनकी अगवानी और स्वागत में खर्च करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है। यही कारण है कि अब तक करीब इंवेस्टर्स समिट में अरबों रुपए से अधिक की राशि खर्च हो चुकी है, लेकिन प्रदेश में इसके एवज में आया निवेश कुछ खास नहीं कर पाया है। आंकड़ों पर गौर करें तो प्रदेश सरकार देशी-विदेशी उद्योगपतियों को रिझाने और मप्र में औद्योगिक निवेश को बढ़ाने के लिए अब तक इंवेस्टर्स समिट में करीब 120 करोड़ रुपए से अधिक की राशि खर्च कर चुकी है, लेकिन इसके नजीते में अब तक मात्र एक दर्जन से अधिक उद्योग ही धरातल पर उतर सके हैं।

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