गुरुवार, 22 दिसंबर 2016

कालाबाजारियों के चंगुल में 28,21,50,00,000 का हीरा भंडार

पन्ना के तस्करी के हीरे से दमकर रहे देश के बड़े घराने
भोपाल। आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि मप्र के पन्ना जिले की खदानों से निकलने वाले अवैध हीरे से कई बड़े औद्योगिक घराने दमक रहे हैं। इसका खुलासा हाल ही में डायरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलीजेंस (डीआरआई) की एक जांच में सामने आई है। पन्ना जिले में तकरीबन 10,45,000 कैरट हीरे का भंडार है जिसकी अनुमानित कीमत कम से कम 28,21,50,00,000 रूपए है, जिस पर कालाबाजारियों की नजर है। आलम यह है कि पन्ना में वैध खदानों के साथ ही अवैध खदानों की भरमार है। सफेदपोश, माफिया, पुलिस की मिलीभगत से हीरे की अवैध खदाने चल रही हैं। मध्यप्रदेश विधानसभा में मानसून सत्र में कांग्रेस के विधायकों ने पन्ना की खदानों में हीरों का अवैध रूप से खनन किए जाने का मामला भी उठाया था। यही नहीं शून्यकाल के दौरान कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक रामनिवास रावत ने यह आरोप लगाते हुए कहा था कि इस मामले की शिकायत राज्य की एक मंत्री ने स्वयं नोटशीट लिखकर मुख्यमंत्री से की है। दरअसल, पन्ना की खदानों से निकलकर हीरा तस्करों के माध्यम से विदेश में पहुंच रहा है और इसकी भनक किसी को नहीं लग रही है। या यूं कह सकते हैं कि मप्र सरकार की निष्क्रियता के कारण हीरे की तस्करी जोरों पर है जिससे सरकार को अरबो रूपए की राजस्व हानि हो रही है। उल्लेखनीय है कि तीन साल पहले, जुलाई 2013 में अंडरगारमेंट में सिंगापुर से तस्करी के हीरे लाते एयरपोर्ट पर 4,000 करोड़ रूपए वाले सियाराम ग्रुप की बहू विहारी सेठ (विहारी सेठ सिल्क के बड़े व्यवसाई सियाराम पोद्दार शूटिंग ग्रुप की बहू और अभिषेक पोद्दार की पत्नी हैं। विहारी पोद्दार का परिवार सिंगापुर में रहता है। वहां उनका डायमंड व गोल्ड ज्वेलरी का भी व्यवसाय है। ) पकड़ी गई थीं। विहारी की जब्त लाल डायरी में दर्ज खरीदारों के नाम का दो साल बाद अब जाकर खुलासा हुआ है। डीआरआई ने कार्रवाई कर डायरी कोर्ट को सौंपी थी। जिसके डिटेल अब छनकर बाहर आए हैं। विहारी सेठ ने कुल 16.41 करोड़ रुपए के हीरे और सोने के जेवरात मुंबई के बड़े रसूखदार बिजनेसमैन को बेचे। काफी सस्ते में मंहगे जेवरात खरीदने में इन अमीरों ने यह नहीं सोचा कि इस माल का सोर्स क्या है। कहीं यह तस्करी का माल तो नहीं। उस समय विहारी के पास से बरामद लाल रंग की डायरी की डीआरआई ने छानबीन की तो माल खरीदने वाले मुंबई के नौ बड़े लोगों के नाम का खुलासा हो गया। डीआरआई की पूछताछ में सभी नौ लोगों ने अवैध खरीदारी की बात स्वीकार की तो उन पर जुर्माना लगा है। हालांकि यह भी सफाई दी कि उन्हें नहीं पता था कि यह माल तस्करी का है। चार हजार करोड़ रुपए वाले सियाराम ग्रुप की बहू के पैसा कमाने के लिए तस्करी पर उतरना हर किसी को हैरान करता है। हीरे की तस्करी बड़े ही सुनियोजित तरीके से इस मामले में डीआरआई और मुंबई एटीएस को जो सुराग मिले हैं वह बेहद चौकाने वाले हैं। दरअसल, देश में हीरे की तस्करी बड़े ही सुनियोजित तरीके से की जा रही है और पन्ना के छोटे-छोटे तस्करों की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका है। मप्र के पन्ना में अवैध रूप से खनन करके निकलने वाला कच्चा हीरा तस्करों के माध्यम से हीरा व्यवसायियों तक पहुंचाया जाता है। हीरा व्यवसायी उस कच्चे हीरे को विदेशों में भेजते हैं। जहां उस हीरे को तराशा जाता है और उसके गहने बनते हैं। वहां से बने गहने विहारी सेठ जैसी कैरियर के माध्यम से भारत लाया जाता है। अभी हाल ही में मुंबई एटीएस के हाथ ऐसे सुराग मिले हैं जिसके अनुसार अंडरवल्र्ड सोने के बदले हीरे ले रहा हैं। इसमें से कुछ हीरा हवाला से पार हो रहा है तो कुछ दुबई के रास्ते पहुंच रहा है। यानी पूरे विश्व के तस्करों और माफिया की नजर पन्ना के हीरों पर है। उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश के उत्तर-पूर्वी हिस्से में स्थित पन्ना जिला हीरे की खदानों के लिए दुनियाभर में मशहूर है। एशिया की इकलौती डायमंड सिटी होने के कारण यहां नेशनल मिनरल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (एनएमडीसी)के अलावा निजी कंपनियां भी हीरा निकालने का काम करती हैं। यहां 17 वीं शताब्दी से हीरे की खुदाई हो रही है। लेकिन इस जिले के लोगों की आर्थिक स्थिति आज भी बदहाल है। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने इस जिले को देश के 250 सबसे पिछड़े जिलों में शामिल किया। जो इस बात का संकेत है की यहां के हीरे की खान से निकलने वाले हीरे की कालाबाजारी जारों पर है। उथली हीरा खदानों से निकलने वाले बेशकीमती हीरों का काला कारोबार बेखौफ जारी है। जिले में संचालित होने वाली उथली खदानों से हर साल 100 करोड़ रूपए से भी अधिक कीमत के हीरे निकलते हैं, लेकिन हीरा कार्यालय में ये हीरे जमा नहीं हो पाते। अधिकांश हीरों की चोरी-छिपे बिक्री हो जाती है, जिससे शासन को हर साल करोड़ों रूपए. के राजस्व की क्षति होती है। उल्लेखनीय है कि पन्ना में देश का इकलौता हीरा कार्यालय है, जहां पर हीरा अधिकारी से लेकर हीरा पारखी, हवलदार व अन्य कर्मचारी पदस्थ हैं। हीरा कार्यालय से हर साल हीरों की खोज के लिए पट्टे जारी किए जाते हैं, जहां संबंधित व्यक्तियों द्वारा खुदाई कराई जाकर हीरों की तलाश की जाती है। राजस्व भूमि के अलावा हीरा कार्यालय द्वारा निजी पट्टे की भूमि में भी खदान संचालित करने की अनुमति दी जाती है, इसके अलावा हीरा धारित वन क्षेत्र में भी अवैध रूप से बड़ी संख्या में खदानें चलती हैं। नियमानुसार किसी भी व्यक्ति को हीरा मिलने पर उसे हीरा कार्यालय में जमा कराना आवश्यक है। शासन इसकी नीलामी करता है। बोलीदार पांच हजार रुपए की अमानत राशि जमा कर नीलामी में भाग ले सकता है। सबसे ज्यादा बोली लगाने वाले को कीमत का 20 प्रतिशत तुरंत जमा कर शेष राशि 30 दिनों में जमा करानी होती है। नीलामी से प्राप्त राशि में से कुछ हिस्सा शासन के खजाने में जमा होता है। कई हीरा खदान संचालक हीरा मिलने पर उसे चोरी छिपे गुजरात और मुंबई के व्यापारियों को बेच देते हैं। तराशने में नहीं होता वेस्ट पन्ना में हीरे की खुदाई के लिए 1968 में नेशनल मिनरल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन(एनएमडीसी) की स्थापना की गई थी। एनएमडीसी पन्ना जिले के मझगांव में हीरे की खदान का संचालन करती है, जो अब तक कई नायाब हीरे दे चुकी है। कहा जाता है कि यहां से निकला हीरा साउध अफ्रीका की खदानों से भी अच्छा होता है। ये चमकदार होता है और काटने में कम वेस्ट होता है। एनएमडीसी की मानें तो ये खदान साल भर में करीब 80 हजार कैरेट हीरा उत्पादन कर सकती है। सर्वाधिक हीरा खदानें इटवां सर्किल में चलती हैं तथा इस क्षेत्र में सबसे अधिक हीरा भी निकलते हैं। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि सर्वाधिक हीरा खदानों वाले इस इलाके में निकलने वाले हीरे नियमानुसार हीरा कार्यालय में जमा नहीं होते। इटवां सर्किल में बगीचा, किटहा, हजारा, मडफा, हरका हजारा मुढ्ढा, रमखिरिया तथा सिरसा द्वारा आदि क्षेत्रों में हीरा खदान के पट्टे दिए जाते हैं। यहां खदानों से निकलने वाले हीरे यदा कदा जमा होते हैं। अधिकांश खदानें बड़े कारोबारियों की होती हैं, इसलिए ये लोग हीरा मिलने पर उसे जमा करने के बजाय सीधे व्यापारियों को बिक्री कर देते हैं। इस काले कारोबार पर हीरा कार्यालय का सीधे तौर पर कोई अकुश नहीं है, फलस्वरूप बेशकीमती हीरों की तस्करी का धंधा यहां खूब फलफुल रहा है। पन्ना में आगेन नदी द्वारा बनाए गए ढेर में रामखेरिया नामक स्थान पर 12 से 18 मीटर की गहराई से हीरे प्राप्त होते है इनका वार्षिक उत्पादन 11,000 केरेट है इसमें 50-60 प्रतिशत जवाहरात किस्म का हीरा होता है! राम खेरिया में हीरा में अनुमानित भंडार 11,5 000 केरेट के है पन्ना की ही खानों से नागों एवं ओद्योगिक कार्यों के उपयुक्त पत्थर प्राप्त होता है! जानकारों के मुताबिक इटवां सर्किल में ही सौ से भी अधिक लोग ऐसे हैं जो सीधे तौर पर हीरा कारोबार से जुड़े हैं तथा हर साल तकरीबन 10 लाख रूपए से भी अधिक राशि हीरा खदानों में व्यय करते हैं। हीरा खदानों में खुदाई का काम करने वाली जेसीबी मशीने एक सीजन में दो से ढाई करोड़ रूपए का धंधा करती हैं। इतनी भारी भरकम राशि हीरा खदानों में व्यय की जाती है, फिर भी इस क्षेत्र से एक भी हीरे जमा नहीं होते। यदि हीरा नहीं मिलते तो फिर हर साल लोग हीरों की तलाश में लाखों रूपए क्यों खर्च करते हैं तथा यह पैसा कहां से आता है, क्या कभी इस बात की गहराई से छानबीन की गई है। क्यों होती है तस्करी पन्ना जिले की उथली हीरा खदानों से प्राप्त होने वाले बेशकीमती हीरों की तस्करी क्यों होती है, इसकी तहकीकात किए जाने पर यह तथ्य सामने आया है कि हीरा कारोबार करने पर तुआदार (हीरा धारक) को तुरन्त पैसा नहीं मिलता। हीरा जमा होने पर जब नीलामी होती है और हीरा बिकता है तब पैसा मिलता है। इस प्रक्रिया में कई महीने लग जाते हंै, जबकि हीरा कारोबारियों को सीधे बेंचने से तुआदार को तुरन्त पैसा मिल जाता है। व्यवस्था में इस खामी के कारण ही अधिकांश हीरों की चोरी-छिपे बिक्री कर दी जाती है। पन्ना में भले ही कीमती पत्थरों की खुदाई होती है लेकिन कहीं भी हीरे की दुकानें नहीं दिखाई देती। कारण पन्ना में कीमती पत्थरों की तस्करी करने वाले स्मगलर। पन्ना में 6,000 साल पहले कच्चे हीरे मिले थे। आज भी यहां कीमती पत्थर निकाले जाते हैं। लेकिन यहां काम करने वाले मजदूरों की हालत खराब है। और अगर ये अवैध तरीके से काम कर रहे हों तो पूछना ही क्या। यूसुफ बेग खदानों में काम करने वाले मजदूरों के हक के लिए लड़़ते हैं। ये दिल्ली के संगठन एनवाइरोनिक ट्रस्ट के लिए काम करते हैं। यूसुफ अक्सर हीरे के खदानों का दौरा करते हैं। खदानों में अकसर किसान और दिहाड़ी मजदूर काम करते हैं। कैसे होता है काम गर्मी के मौसम में काम कम ही होता है क्योंकि नदियां भी सूख जाती हैं और नदी की रेत में हीरे ढूंढने के लिए काफी पानी की जरूरत होती है। यूसुफ बेग बताते हैं, पहले खदान से खोद कर इसे निकाल लेते हैं। इसके बाद इसे यहां खड्डे में डाला जाता है। फिर इसे पानी से भर दिया जाता है। फिर दो लोग इसे पांव से कुचलते हैं ताकि मिट्टी कंकड़ से अलग हो जाए। कंकड़ और हीरे भारी होने के कारण नीचे बैठ जाते हैं। फिर मिट्टी को पानी के साथ बाहर फेंक दिया जाता है। कंकर और हीरे को बाहर निकाल लिया जाता है। अगर पत्थरों में हीरा है तो उसे ज्यादा ढूंढने की जरूरत नहीं पड़ती, वो सूरज की रोशनी में चमकने लगते हैं। भरी गर्मी में हीरे खोजना आसान नहीं। 40 डिग्री में पत्थर तोडऩा बहुत मुश्किल है। बेग बताते हैं, जो मजदूर धूल में यहां काम करते हैं उन्हें सिलिकोसिस की बीमारी होती है। यानी पत्थर की धूल उनके फेंफड़ों में बैठ जाती है क्योंकि मजदूर यहां असुरक्षित तरीके से काम करते हैं, कोई मास्क नहीं लगाते। यहां सुरक्षा के कोई प्रबंध नहीं हैं। लाख कोशिशों के बावजूद काम का माहौल बेहतर बनाने की मुहिम में कोई सफलता नहीं मिली है। अब भारत के मानवाधिकार आयोग ने भी खान मजदूरों के स्वास्थ्य के लिए बेहतर सुरक्षा की मांग की है। यूसुफ बेग का कहना है कि पन्ना में 70 फीसदी हीरों का गैरकानूनी खनन होता है और यह भी बच्चों से करवाया जाता है। सरकार ने योजनाएं तो बहुत अच्छी अच्छी बनाई हैं। लेकिन उनका पूरा लाभ इन मजदूरों को नहीं मिल रहा है। इसके लिए सरकार को बड़ा प्लान बनाने की जरूरत है जिससे इनके बच्चे पढ़ लिख सकें। आगे निकल सकें। इन खदानों से बाहर जाएं। वो भी किसी लायक बन सकें। उन्हें नौकरियां मिलें और बड़े उद्योग धंधों में वो लग सकें। इलाके में कोई स्कूल नहीं है। यूसुफ का कहना है कि बच्चों को खदान में भेजने के अलावा परिवारों के पास कोई और चारा नहीं है। कम से कम इससे उनका पेट तो भरता है। मजबूत चक्रव्यूह है हीरा कालाबाजारी का हीरा मिलना वाकई भाग्य की बात है। हीरे की खदान लगाकर जहां कई लोग करोड़पति हो गए हैं, वहीं कई लोग घर की जमा पूंजी दांव पर लगाकर कंगाल हो गए हैं। हीरे के खदान से निकलने से लेकर महानगरों तक पहुंचने के बीच करोड़ों का खेल हो जाता है। हीरा कालाबाजारी के इस कारोबार से जुड़े लोग बहुत मजबूत और पहुंच वाले हैं। यही कारण है कि हीरा विभाग और खनिज अमला हीरे से जुड़े मामलों में जल्दी हाथ नहीं डालते हैं। सूत्र बताते हैं कि जिले की वैध हीरा खदानों से निकलने वाले हीरे का 80 फीसदी से भी अधिक भाग कालाबाजारी की भेंट चढ़ जाता है, जबकि अवैध खदानों से निकलने वाले शत-प्रतिशत हीरे की कालाबाजारी हो जाती है। कालाबाजारी होने वाला अधिकांश हीरा स्थानीय हीरा कारोबारियों और बड़े लोगों से होकर गुजरता है। इसकी जानकारी पुलिस के साथ खनिज और जिला प्रशासन के अधिकारियों को भी होती है। हर माह करोड़ों के हीरे के अवैध कारोबार पर पुलिस प्रशासन भी हस्ताक्षेप नहीं करती है। पिछले दिन हुए एक हीरा व्यापारी की हत्या के मामले में हीरा के अवैध विक्रय और अवैध रूप से क्रय करने की बात सामने आई थी, इसके बाद भी पुलिस ने मामले में कोई कार्रवाई करना इसलिए जरूरी नहीं समझा, क्योंकि किसी ने शिकायत नहीं की। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि हीरे से जुड़े अपराधों के मामलों में पुलिस किस हद तक नरमी बरत रही है। हाट-बाजारों में लाखों की कैश डिलीवरी पन्ना में मिलने वाले हीरे की अवैध बिक्री का आलम यह है कि ग्राम पंचायतों में लगने वाली हाट बाजारों में भी 8 से 10 लाख का कैश भुगतान हो जाता है। ग्राम पंचायत जमुनहाई की हाट बाजार में हीरे बिकवाने का काम करने वाले बिचौलिए ने बताया कि जिन्हें हीरा मिला होता है उसकी जानकारी उन लोगों तक पहुंच जाती है। इसके बाद इन्हें खरीदने के लिए पन्ना और बृजपुर सहित आसपास के व्यापारी संपर्क करते हैं। यहां चाय-पान की दुकानों में बैठकर लोग 8 से 10 लाख का कैश भुगतान कर देते हैं। हीरे के लिए हत्या, छल और टोटके दुनियाभर में चमक बिखेरने वाले पन्ना के हीरे की चमक से हीरा नगरी ही दूर है। करोड़ों के हीरे के अवैध कारोबार ने यहां पूरा एक रैकेट खड़ा कर दिया है। इससे यहां अपराधिक वारदातें तक होने लगी हैं। यहां हीरे के लिए हत्या, लूटपाट, छल-कपट और टोने-टोटके जैसी चीजें आम हो गई हैं। जिले के हीराधारित पट्टी क्षेत्र में होने वाली अपराधिक वारदातों के इर्द-गिर्द हीरे की अहम भूमिका होती है। हीरे की खदानें लगाने वाले लोग भाग्य आजमाने के साथ टोटके भी करते रहते हैं, ताकि खदानों को किसी की नजर न लगे। जिन खदानों में हीरे ज्यादा मिलने लगते हैं वहां को लेकर लोग तरह-तरह की चर्चा करने लगते हैं। खदान लगाने वालों ने बताया कि खदानों को किसी की बुरी नजर न लगे इसलिए मवेशियों की हड्डियों को खदान के ऊपरी हिस्से में लगा दिया जाता है या रख दिया जाता है। हीरा मिलने को लेकर भी अन्य कइ तरह के टोटके आजमाए जाते हैं। कुछ लोग साधू-संतों को जमीन दिखाने के बाद खदान के लिए स्थान का चयन करते हैं। हीरे को लेकर जमीनों में कब्जे हिस्सेदारों को उनका हिस्सा नहीं देने सहित कई प्रकार के विवाद सामने आते रहे हैं। यहां हीरा है तो हीरे को लेकर विवाद भी है। गौरतलब है कि हीरा खदान लगाने में बड़ी लागत लगती है। यही कारण है कि कुछ लोग छोटी खदानें ही लगाते हैं और चार-छह मजदूरों को लगाकर काम कराते हैं, जबकि 20 फीट या उससे भी गहरी खदान लगाने में अच्छी खासी लागत लगती है। यही कारण है कि दो-चार लोग मिलकर पार्टनरशिप में हीरा खदान की खुदाई का काम कराते हैं। पार्टनरशिप में काम करने के कारण कई बार पार्टनरों द्वारा ही धोखा देने की बात सामने आती है। पन्ना जिले के ग्राम तिलगुवां नवासी एक महिला ने बताया कि उसके सह खातेदार देवर शंकर पिता प्यारेलाल ने बिना सहमति के हीरा खदान का पट्टा बनवा लिया है। उनकी जमीन में चार हीरा खदानें गली हैं, जिनमें से अभी तक करीब 1 करोड़ रुपए के हीरा निकाल लिए गए होंगे। इसमें उन्हें 20 फीसदी का हिस्सा मिलना चाहिए, लेकिन खदानों से मिलने वाली पूरी राशि देवर रख रहे हैं। महिला ने जन सुनवाई में कलेक्टर को आवेदन देकर खदानें बंद कराने और खदानों से निकली चाल को उठवाकर जमीन समतल करवाने की मांग की है। गौरतलब है कि जिले की उथली हीरा खदानों से जैम क्वाटिली का उच्च गुणवत्ता वाला हीरा निकलता है। यही कारण है कि यहां हीरे के लिए लूट मची है। हीरा विभाग के अनुसार जिले में 10 से 15 किमी के क्षेत्रफल की लंबी पट्टी में हीरा पाया जाता है। इसे हीराधारित पट्टी भी कहते हैं। जिले में करीब 350 हीरा खदानों के पट्टे दिए गए हैं। एक हीरा खदान के लिए 200 रुपए में एक साल के लिए 8 बाई 8 मीटर का क्षेत्रफल आवंटित किया जाता है। हीरा विभाग के रिकॉर्ड से कई गुना ज्यादा खदानें पन्ना, बृजपुर, पहाड़ीखेड़ा सहित आसपास के क्षेत्र में चल रही हैं। इनमें से अधिकांश अवैध होती हैं। इन खदानों में न सिर्फ अवैध रूप से विस्फोट किए जाते हैं, बल्कि शत प्रतिशत हीरे का कालाबाजारी भी हो रहा है। अवैध हीरा खदानों पर खनिज विभाग और जिला प्रशासन लगाम नहीं लगा पा रहा है। हीरा कारोबार से जुड़े लोग एक दूसरे से छल कपट करते रहते हैं। जो लोग हीरा खदान लगाकर इस काम को छोड़ चुके हैं उनके पूछने पर उत्तर मिलता है कि उनके पार्टनर ने धोखा दे दिया। इसके बाद उन्होंने खदान लगाना बंद कर दिया। पवई क्षेत्र के एक कारोबारी ने बताया कि उसने अपने रिश्ते के बड़े भाई के साथ मिलकर खदान लगाई थी। जब हीरे की चाल बीनने का समय आया तब उसे कहीं चाय लेने भेज दिया जाता था तो कहीं किसी काम से। पार्टनर चूंकि परिवार के ही लोग थे, इसलिए विश्वास में वह चला जाता था। जिस खदान में शत-प्रतिशत हीरा मिलने की उम्मीद थी, वहां उन्हें एक रुपए के भी हीरे नहीं मिले। बाद में मजदूरों से उन्हें पता चला कि उनके ही रिश्तेदारों ने धोखा दे दिया। हीरे के कारण न सिर्फ रिश्ते बिगड़ रहे हैं, बल्कि रिश्तेदार हत्या तक की वारदातों को अंजाम दे चुके हैं। निरंतर होता रहता है निरीक्षण पन्ना कलेक्टर शिवनारायण सिंह चौहान कहते हैं कि हीरा उत्खनन क्षेत्र का निरीक्षण निरंतर किया जाता है। कलेक्टर ने बताया की हाल ही में सिरस्वाहा बांध के अंदर चल रही खुदाई का निरीक्षण किया। निरीक्षण में कई स्थानों पर हीरायुक्त मिट्टी तथा ग्रेबल के भंडार पाए गए। बांध के अंदर कई स्थानों पर हीरे की खुदाई के स्पष्ट प्रमाण मिले। उन्होंने बताया कि हीरा अधिकारी रत्नेश दीक्षित को सिरस्वाहा बांध क्षेत्र के अंदर हीरा के लिए की गई खुदाई तथा भंडारित ग्रेबल की फाटोग्राफी तथा वीडियोग्राफी कराने के निर्देश दिए। कलेक्टर ने कहा कि सिरस्वाहा बांध के लिए भूअर्जन किया जा चुका है। पूरी भूमि शासकीय होने के बाद बिना किसी तरह की अनुमति के हीरे के लिए उत्खनन अवैध है। इसमें लिप्त व्यक्तियों, ठेकेदार तथा जल संसाधन विभाग के अधिकारियों के विरुद्ध प्रकरण दर्ज करें। उत्खनन में संलग्न मशीनों को जब्ती करने की भी कार्रवाई करें। सिरस्वाहा बांध में निरीक्षण के दौरान कई ग्रामवासियों ने बताया कि बांध के अंदर कई खदानें संचालित हैं। इनमें खुदाई के लिए मशीनें बांध निर्माण करने वाले ठेकेदार द्वारा उपलब्ध कराई जाती है। 50 करोड़ का हीरा गायब! पिछले साल पन्ना से विधायक कुसुम मेहदले ने मुख्यमंत्री को शिकायत की थी कि जून 2015 में खदान से 80 कैरेट का हीरा निकला था, जिसकी कीमत 50 करोड़ रुपए थी। वह हीरा खदान संचालकों और पुलिस अफसरों ने मिलीभगत कर बेच दिया है। इसके पहले एनएमडीसी ने 2010 में दावा किया था कि खदान से 37.68 कैरेट का हीरा निकला था, जिसकी कीमत करीब 1 करोड़ रुपए थी। एनएमडीसी का यह भी दावा था कि वह खदान से निकला अब तक का सबसे बड़ा हीरा था। पन्ना में ज्यादातर हीरे ऐसी खदानों से निकले हैं जो ज्यादा गहरी नहीं है। जमीन से दो से तीन फीट नीचे ही काफी बड़े हीरे निकले हैं। 1961 में 44.55 कैरेट का हीरा महुआ टोला की खदान से निकला था। इसके बाद 2015 में 80 कैरेट का हीरा निकला, जिसे लेकर खदान संचालक भाग गया। नई हीरा नीति बनाने की कवायद पन्ना में हीरा खदानें होने के बाद भी सरकार का न के बराबर लाभ हो रहा है। ऐसे में सरकार नई हीरा नीति बनाने की तैयारी कर रही है। पिछले माह पन्ना जिले में हीरे से जुडे खनन कर्ताओं तथा हीरा व्यापारियों की कठिनाईयों के निराकरण के लिए बृजपुर में जगदीश स्वामी मंदिर परिसर में बैठक का आयोजन किया गया। बैठक में सबसे सुझाव प्राप्त करके नई हीरा नीति का प्रस्ताव तैयार करने का निर्णय लिया गया। बैठक में शामिल मंत्री कुसुम मेहदेलेकहती हैं कि पत्थर तथा हीरा उत्खनन पन्ना जिले का प्रमुख उद्योग है। इनमें हजारों लोगों को रोजगार मिल रहा है। हीरा उत्खनन की कठिनाईयों को दूर करने के लिए शीघ्र ही नई हीरा नीति बनाई जा रही है। इससे सभी कठिनाईयां दूर होंगी। उन्होंने कहा कि उत्खनन से जुडे व्यक्तियों, मजदूरों तथा हीरा व्यापारियों के हितों को ध्यान में रखकर नई नीति बनाई जाएगी। इसके लिए मौखिक तथा लिखित सुझाव प्रस्तुत करने को कहा गया है। नई नीति बनने पर गर्व से सर उठाकर हीरा उत्खनन और विपणन का कार्य होगा। बैठक में शामिल कलेक्टर शिवनारायण सिंह चौहान ने बताया कि प्रस्तावित हीरा नीति में गहरी खदानों की तरह उथली खदानों में भी मशीनों के उपयोग तथा निर्धारित राशि देकर 5 साल तक के लिए एक से 5 एकड़ क्षेत्र में पट्टे जारी करने का प्रावधान रखा जा रहा है। हीरे की नीलामी तथा समय पर उत्खनन पट्टे जारी करने का भी प्रावधान रखा जा रहा है। शासन द्वारा मान्यता लिए जाने के बाद प्रस्तावित कार्ययोजना को लागू किया जाएगा। रिओ टिंटो का माइनिंग प्रोजेक्ट हुआ बंद खनन की जानी मानी कंपनी रिओ टिंटो नें, मध्य प्रदेश में 2200 करोड़ रूपए के हीरों की खान के एक प्रोजेक्ट को बंद कर दिया है। दरअसल, पर्यावरण मंत्रालय द्वारा केन-बेतवा नदियों को जोडऩे का प्रोजेक्ट पूरा होने तक जमीन के नीचे खनन की संभावनाएं तलाशने के लिए कहे जाने के बाद, कंपनी ने 19 अगस्त को इस प्रोजेक्ट को बंद करने का निर्णय लिया। रिओ टिंटो एक्सप्लोरेशन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के अनुसार, शेयरधारकों की निधि (वैल्यू) को बढ़ाने के लिए लागत घटाने और अन्य प्रयास किए जाने के बाद, रिओ टिंटो ने भारत में बुंदर प्रोजेक्ट को बंद करने का निर्णय लिया है। 2016 के अंत तक इसे पूरी तरह से बंद कर दिया जाएगा। मध्य प्रदेश सरकार के लिए कंपनी का यह निर्णय एक निराशाजनक कदम है, क्योंकि खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस प्रोजेक्ट के लिए जरुरी कानूनी मंजूरी के लिए प्रयासरत थे। इस हीरे की खान में खनन शुरू होने के बाद से करीब 2058 करोड़ रूपए की आमदनी का अनुमान लगाया गया था और रोयल्टी और टैक्स के रूप में राज्य सरकार को 208 करोड़ रुपए मिलने थे। कंपनी के अनुसार इस प्रोजेक्ट पर करीब 400 करोड़ रूपए लगाए जा चुके थे और प्रोजेक्ट साईट पर काम करने के लिए करीब 300 लोगों को लिया गया था। देश में पहली बार किसी निजी कंपनी द्वारा चलाए जा रहे हीरों की खान के इस प्रोजेक्ट में, पन्ना टाइगर रिज़र्व और नवरदेहि वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी के बीच के वाइल्डलाइफ कोरिडोर में पर्यावरण के नियमों को अनदेखा करने की बात सामने आई थी। नेशनल टाइगर कंजरवेशन अथॉरिटी की जुलाई में आई एक रिपोर्ट के अनुसार, पन्ना क्षेत्र में बाघों की जनसंख्या और उनका फलना-फूलना, इस प्रोजेक्ट से प्रभावित होने की प्रबल संभावनाएं हैं। पर्यावरण मंत्रालय ने भी इस प्रोजेक्ट के लिए प्रस्तावित 971 हेक्टेयर क्षेत्र में से केवल 76.43 हेक्टेयर के लिए ही स्वीकृति दी थी। राज्य सरकार को भेजे गए एक पत्र में पर्यावरण मंत्रालय ने जमीन के ऊपर खनन से बहुमूल्य वन सम्पदा के हमेशा के लिए नष्ट हो जाने की बात कही, और भूमिगत खनन की संभावनाएं तलाशने का सुझाव दिया। सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार इस क्षेत्र में करीब 34.2 मिलियन कैरट हीरों का भण्डार होने की संभावना है। शिवराज सरकार ने 2010 में रिओ टिंटो कंपनी के साथ पहला करार किया था, और 2012 में 30 सालों के लिए कंपनी को यह क्षेत्र लीज़ पर देने के समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। 2013 में यह प्रोजेक्ट ब्यूरो ऑफ़ माइंस से पास होने के बाद 2014 से वन विभाग से मंजूरी मिलने की प्रतीक्षा में था।

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