बुधवार, 21 दिसंबर 2016

मप्र में एक भी जेल में हाई-सिक्योरिटी नहीं!

सरकार के दावों की खुली परते...
-भोपाल सेंट्रल जेल के आईएसओ 9001-2015 सर्टिफिकेट की हो सकती है जांच
-आंकड़ेबाजी करके पाया गया आईएसओ सर्टिफिकेट
-देश की खुफिया एजेंसियों ने बड़ा आतंकी हमला होने का भेजा है इनपुट भोपाल। 30-31 अक्टूबर की दरम्यानी रात भोपाल जेल ब्रेक के सदमें से अभी शासन-प्रशासन निकल भी नहीं पाया है कि 19 नवंबर को करीब 2.30 बजे भोपाल पुलिस अफसरों को देश की खुफिया एजेंसियों द्वारा राजधानी सहित प्रदेशभर में बड़े आतंकी हमले का इनपुट भेज जाने के बाद हड़कंप मच गया है। इनपुट मिलते ही पुलिस विभाग अलर्ट हो गया और अफसरों ने आनन-फानन में उसी रात एक मीटिंग बुलाई। मीटिंग में प्रमुख बिंदुओं पर काम करते हुए जेल की सुरक्षा को मजबूत करने पर जोर दिया गया है। यह आदेश प्रदेश के सभी अधीक्षक केंद्रीय जेल, जिला जेल एवं उप जेल को भेजा गया है। पुलिस सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, खुफिया एजेंसियों ने इनपुट भेजा है कि सिमी के आतंकी प्रदेश की जेलों पर हमला कर सकते हैं। खासकर भोपाल जेल उनके निशाने पर है क्योंकि इसमें अभी भी 21 सिमी आतंकी हैं। जिनमें खूंखार अबू फैजल भी है। ये सभी 31 अक्टूबर को एनकाउंटर में मारे गए 8 सिमी आतंकियों की मौत का बदला लेना चाहते हैं। इसको लेकर जेलों में अलर्ट जारी कर दिया गया है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या मप्र की जेले इतनी मजबूत हैं कि वे किसी हमले या ब्रेक को रोक सकती हैं? जब इस संदर्भ में पड़ताल की गई तो यह तथ्य सामने आया कि सिर्फ कागजों पर ही प्रदेश की जेले फौलादी हैं। आंकड़ेबाजी का खेल मप्र में अफसरशाही किस तरह आंकड़ेबाजी करके उपलब्धियां हासिल कर रही है इसकी परते खुलने लगी है। अभी हाल ही में भोपाल जेल ब्रेक कांड से प्रदेश की जेलों की सुरक्षा के किए गए दांवों की पोल खुलकर सामने आई है। सिमी के आरोपित सदस्य भोपाल की जिस सेंट्रल जेल से भागे थे, वह देश की पहली आईएसओ 9001-2000 सर्टिफिकेट प्राप्त जेल है। इसको लेकर मप्र सरकार का दावा था की यह हाई-सिक्योरिटी (उच्च सुरक्षा )वाली जेल है। लेकिन जेल ब्रेक के बाद हुई जांच-पड़ताल में यह बात सामने आई है कि पूरे मध्य प्रदेश में हाई-सिक्योरिटी वाली एक भी जेल नहीं है। सूत्र बताते हैं की हाई-सिक्योरिटी की पोल खुलने के बाद केंद्र सरकार यह जांच कराने की तैयारी कर रही है कि इस जेल को किस आधार पर आईएएसओ सर्टिफिकेट मिला है। ज्ञातव्य है कि जून 2004 में भोपाल की केन्द्रीय जेल को आईएसओ 9001-2000 सर्टिफिकेट दिया गया था। तब खूब प्रचारित किया गया कि यह जेल अब कई मायनों में अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हो गई है क्योंकि यह प्रमाणपत्र इसी आधार पर दिया जाता है। इसके बाद बीती अगस्त में इसी जेल को आईएसओ 9001-2015 सर्टिफिकेट भी मिला। उस वक्त भी ऐसा ही प्रचार हुआ। फिर जब इस बहुप्रचारित उपलब्धि के ढाई-पौने तीन महीने बाद (30-31 अक्टूबर की दरम्यानी रात) के आठ सदस्य फरार हुए, तब भी सुर्खियों में यही आया कि वे हाईसिक्योरिटी वाली जेल तोड़कर भागे हैं। जेल की वह सेल (प्रकोष्ठ) हाईसिक्योरिटी वाली थी, जिसमें सिमी के ये आठों सदस्य कैद थे। वैसे इस फरारी के आठ घंटे बाद ही सिमी के सदस्य तो कथित पुलिस मुठभेड़ में ढेर कर दिए गए। लेकिन वे यह सवाल खड़ा कर गए कि क्या वास्तव में भोपाल की जेल या उसकी सेल हाईसिक्योरिटी वाली है? थोड़ा गहराई से तलाशने पर इस सवाल का जवाब यह मिलता है कि न भोपाल की जेल और न ही उसकी कोई सेल उच्च सुरक्षा वाली है। यहां तक कि पूरे प्रदेश में ही इस तरह की कोई जेल नहीं है। जबकि देश में सर्वाधिक 11 केन्द्रीय जेल इसी राज्य में हैं। जिला जेल-उपजेल मिलाकर प्रदेश में कुल 122 जेलें हैं। लेकिन इनमें से अधिकांश सुरक्षा के सामान्य मानकों को ही बमुश्किल पूरा कर पाती हैं। शायद इसीलिए अपराधियों के जेल से फरार होने के देश में सबसे ज्यादा मामले राजस्थान (55) के बाद मध्यप्रदेश (28) में ही सामने आए हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के ये आंकड़े 2001 से 2015 के बीच के हैं। क्या है हाई-सिक्योरिटी जेल या सेल? हाईसिक्योरिटी जेलों में चौबीसों घंटे कैदियों पर 360 डिग्री घूम सकने वाले और नाइट विजन से लैस क्लोज सर्किट टीवी (सीसीटीवी) कैमरों तथा अन्य उच्च तकनीक वाले सुरक्षा उपकरणों से निगरानी रखी जाती है। यहां लगभग छह गुणा छह फीट की बड़ी सी वॉल स्क्रीन से युक्त कंट्रोल रूम होता है। इसके जरिए प्रशिक्षित स्टाफ हर वक्त कैमरों से मिल रही तस्वीरों पर नजर रखता है। पूरे जेल कैम्पस में ऊंची हाईमास्ट लाइटें लगी होती हैं ताकि रात में कैदियों की छोटी-बड़ी हरकत पर नजर रखी जा सके। बाहर 25-30 फीट ऊंची दीवारों पर बड़े-बड़े कांच के टुकड़े या नुकीली चीजें फिट की जाती हैं। चौतरफा बाउंड्री वॉल पर पांच-छह फीट ऊंची फेंसिंग होती है। इसमें करंट दौड़ता रहता है और सेंसर लगे होते हैं। इस फेंसिंग को छूने की कोशिश से ही सेंसर सक्रिय हो जाते हैं और सुरक्षा अलार्म बज उठता है। बाउंड्री वॉल के इर्द-गिर्द चारों तरफ उससे भी ऊंचे वॉच टॉवर होते हैं। यहां तैनात सशस्त्र सुरक्षाकर्मी पूरे समय जेल परिसर के भीतर कैदियों के हर मूवमेंट पर निगाह रखते हैं। खासतौर पर प्रशिक्षित कुत्ते भी जेल में मौजूद रहते हैं। मेन गेट से भीतर तक कई स्तरों पर रिमोट कंट्रोल्ड बैरियर होते हैं। यहां तक कि दरवाजे भी इस प्रणाली से लैस हो सकते हैं। अगर इस मापदंड पर देखें तो मप्र में कोई भी जेल इस लेवल की नहीं है। ऐसे में सरकार के हाई-सिक्योरिटी जेल या सेल के दावे की पोल खुल गई है। देश में कहां हैं हाई-सिक्योरिटी जेलें भारतीय जेलें मानकों के मामले में अंतर्राष्ट्रीय स्तर की हैं या नहीं, यह अलग विषय है। फिर भी देश की चार-पांच जेलों को हाईसिक्योरिटी वाला कहा जा सकता है। इनमें सबसे पहला नाम आता है दिल्ली की तिहाड़ जेल का। यहां संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरू को करीब 12 साल तक रखा गया था। इसके बाद पुणे की यरवदा जेल का नाम लिया जाता है। यहां मुंबई आतंकी हमले के वक्त जिन्दा पकड़े गए इकलौते पाकिस्तानी आतंकी अजमल आमिर कसाब को चार साल तक रखा गया था। इस जेल की अंडा सेल (जहां कसाब कैद था) को 'सुपरमैक्सÓ की तरह समझा जा सकता है। तमिलनाडु के पुझाल (तिरुवल्लूर), आंध्रप्रदेश के राजामुंदरी, उत्तर प्रदेश के नैनी (इलाहाबाद) में स्थित केन्द्रीय जेलों को हाईसिक्योरिटी वाला कहा जाता है। मुंबई की आर्थर रोड और पोर्टब्लेयर की सेलुलर जेल को भी इसी श्रेणी में रखा जाता है। कागजों पर बन रही है हाईसिक्योरिटी जेल प्रदेश में हाईसिक्योरिटी जेल भले न हो पर इसका एक प्रस्ताव जरूर है। जानकारी के मुताबिक, जेल मुख्यालय ने अप्रैल, 2013 में राज्य सरकार को यह प्रस्ताव भेजा था। इसके तहत 120 करोड़ की लागत से इंदौर के नजदीक सांवेर में 26 एकड़ जमीन पर हाईसिक्योरिटी जेल बनाई जानी थी। लेकिन यह जेल अब तक सरकारी फाइलों में ही बन रही है। कुछ समय पहले सेवानिवृत्त हुए डीआईजी स्तर के जेल अधिकारी ने बताया, हाईसिक्योरिटी जेल से संबंधित प्रस्ताव को जनवरी 2014 में 14वें वित्त आयोग से भी मंजूरी मिल चुकी है। अब जरा भोपाल की उस प्रचारित हाईसिक्योरिटी जेल या सेल के हालात समझें, जहां से सिमी के आठ सदस्य दिवाली की रात फरार हुए थे। सूत्र बताते हैं कि जिस सेल में ये कैदी थे, वहां के ताले उन्होंने टूथब्रश से 17 चाबियां बनाकर ही खोल लिए थे। सात लिवर वाले ये ताले 1976 से इस्तेमाल हो रहे थे। अब जाकर कहीं इन्हें बदला गया है। कैदियों ने खाना खाने वाली थालियां बैरकों में जमा कर लीं, उनसे छुरेनुमा हथियार बना लिए थे। दीवार फांदने के लिए सीढ़ी बनाने के मकसद से उन्होंने ओढऩे वाली चादरें इकट्ठा कर ली थीं। जेल के भीतर मिल-बैठकर वे भागने की योजना बनाते रहे। दीवारें फांदने के लिए मटकी फोडऩे वाले गोविंदा बनकर उन्होंने पिरामिड बनाने की प्रैक्टिस कर ली। बाहर से उन्हें मदद मिलती रही। उन तक काजू-किशमिश, चिकन-मटन और नकदी (बैरकों से पैसे बरामद हुए हैं) तक पहुंचती रही, लेकिन इस पर किसी ने ध्यान तक नहीं दिया। जिस जेल में कुख्यात अपराधी थे, वहां सिर्फ 47 सीसीटीवी कैमरे लगे थे। इनमें भी फरार होने वाले कैदियों की सेल के तीनों कैमरे 9 अक्टूबर से बंद थे। इनका कवरेज एरिया भी 50 वर्गफीट तक ही है जबकि बैरक का दायरा 1600 वर्गफीट के आसपास है। और बड़ी बात ये कि बाहर लगे 44 कैमरे रात की तस्वीरें रिकॉर्ड करने लायक नहीं हैं, साथ ही इनमें महज सात दिन का डाटा सुरक्षित रखने की क्षमता है। इन कैमरों से मिलने वाली तस्वीरों पर नजर रखने के लिए जेल अधीक्षक के कमरे में बने कंट्रोल रूम में चार टीवी स्क्रीन हैं। इनमें हरेक पर चार-चार कैमरों की तस्वीरें दिखती हैं। यानी छोटे-छोटे खंडों में कुल 16। अमूमन यहां तैनात रहने वाले एक व्यक्ति के लिए एक साथ इन पर रखना खासा मुश्किल है। इसमें भी घोर लापरवाही ये कि कंट्रोल रूम छह महीने से बंद था। कंट्रोल रूम का स्टाफ भी प्रशिक्षित नहीं है, यह बात नियंत्रक महालेखा परीक्षक (कैग) की 2015 की रिपोर्ट में सामने आई थी। इस जेल में न कोई वॉच टावर है, न मोबाइल नेटवर्क जाम करने के लिए जैमर का इंतजाम। करीब 21 फीट ऊंची बाउंड्री वॉल पर लगे कांच के टुकड़े भी किसी को भागने से रोकने लायक नहीं हैं, यह फरारी से ही साबित हो चुका है। बाउंड्री वॉल के ऊपर कोई फेंसिंग भी नहीं है, अलार्म सेंसर या हाईमास्ट लाइट तो दूर की बात हैं। जेल में आपात स्थिति में सायरन बजाने का इंतजाम जरूर है लेकिन उसका बटन जेलर के कमरे में है। जिस दिन कैदी जेल से भागे, उस दिन यह कमरा बंद था क्योंकि जेलर इसकी चाबी अपने साथ घर ले गए थे। इस जेल की 150 बैरकों में करीब 2,964 कैदी हैं। इनकी निगरानी के लिए वैसे तो भोपाल जेल में 300 जवान हैं। लेकिन खबर है कि दिवाली की रात सुरक्षा का जिम्मा सिर्फ 16 जवानों पर था, बाकी छुटटी पर थे। जो थे वे भी या तो सो रहे थे (एसएएफ के जवान) या भागते कैदियों पर गोली चलाने की हिम्मत नहीं जुटा पाए थे। प्रदेश में 15 कैदियों पर एक जवान सिर्फ भोपाल ही नहीं, पूरे मध्य प्रदेश की जेलों की हालत खराब है। भोपाल जेल से फरारी के बाद प्रदेश की सभी केन्द्रीय जेलों के अधीक्षकों की राजधानी में एक बैठक हुई थी। इसमें राज्य के मुख्य सचिव बीपी सिंह और जेल विभाग के प्रमुख सचिव विनोद सेमवाल को अधीक्षकों ने जेलों में मौजूद तमाम खामियां गिनाईं। मसलन, वॉच टावर, हाईमास्ट लाइटें, इलेक्ट्रीफाइड फेंसिंग, सीसीटीवी कैमरे, प्रशिक्षित स्टाफ आदि न होना। इसके अलावा जवानों की कमी और क्षमता से ज्यादा कैदियों का होना तो स्थायी समस्या बताई गई। एक जानकारी के मुताबिक, प्रदेश की 122 जेलों में 31 दिसंबर 2015 तक करीब 38,458 कैदी बंद थे। यानी जेलों की क्षमता से करीब 39.81 फीसदी तक ज्यादा। जानकार बताते हैं कि इतने सारे कैदियों पर नजर रखने के लिए 6,500 जवान होने चाहिए लेकिन हैं सिर्फ 2,800 ही। यानी लगभग 15 कैदियों की निगरानी सिर्फ एक जवान के भरोसे होती है। जेल के सभी जवान सुरक्षा के काम में लगे हैं, ऐसा भी नहीं है। उन्हें डाक लाने-ले जाने से लेकर और भी काम करने होते हैं। अभी कुछ दिन पहले ही खुलासा हुआ कि भोपाल जेल के 300 में आधे जवान ही सुरक्षा ड्यूटी पर रहते हैं। इन आधे में से भी आधे यानी 70-75 के करीब जवान बड़े साहब लोगों के घरों पर ड्यूटी बजाते हैं। हालांकि कैदियों के भागने की घटना के बाद इनमें से कुछ जवान जेल ड्यूटी पर अब वापस भेजे जा रहे हैं। 15 साल में 28 बार ब्रेक हो चुकी हैं एमपी की जेलें मप्र की जेलें कितनी सुरक्षित हैं इसकी पोल नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट में भी खुल चुकी है। एनसीआरबी की मानें तो कैदियों के भागने के मामले में मप्र की जेलों का देशभर में दूसरा नंबर है। पहले नंबर पर राजस्थान की जेले हैं, जहां पर कैदी अधिक भागते हैं। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2001 से 2015 के बीच मप्र की जेलों से कैदियों के भागने की 28 घटनाएं और राजस्थान में इस अवधि के दौरान 43 घटनाएं हो चुकी हैं। वहीं, रिपोर्ट यह भी दर्शाती है कि दिल्ली, उत्तराखंड की जेलों से वर्ष 2001 से अब तक कोई कैदी फरार नहीं हुआ है। राज्यों में अब तक सामने आए मामले राज्य मामले राजस्थान 43 मध्यप्रदेश 28 बिहार 23 छत्तीसगढ़ 02 गोआ 06 गुजरात 01 हरियाणा 02 पंजाब 06 उत्तरप्रदेश 10 हिमाचल 05 झारखंड 06 कर्नाटक 01 तमिलनाड़ु 08 सिक्किम 02 त्रिपुरा 01 मेघालय 03 मिजोरम 01 नागालैंड 02 प. बंगाल 01 चंडीगढ़ 03 दिल्ली 00 उत्तराखंड 0 कुल 154 40 आतंकी उत्तर प्रदेश से घूसे मप्र में खुफिया सूत्रों के अनुसार, उत्तर प्रदेश से 40 सिमी के 40 आतंकी पुलिस के राडार से गायब हैं। आशंका जताई जा रही है कि ये मप्र में घूस गए हैं। इनपुट में यह भी जानकारी दी गई है कि सिमी के कुछ आतंकी भोपाल में घुस गए हैं और वे भोपाल जेल पर हमला कर सकते हैं। अधिकारियों की मीटिंग में यह बात भी सामने आई है कि इन दिनों जेल के आस-पास कुछ संदिग्धों को देखा गया। गौरतलब है कि इस वक्त भोपाल जेल में सिमी के 21 आतंकवादी कैद हैं। इसके मद्देनजर पीएस जेल वीसी सेमवाल ने आदेश जारी किया है कि जेल के अंदर और बाहर सहायक अधीक्षक, उप अधीक्षक, जेल अधीक्षक को रात 12.30 बजे से सुबह 4.30 बजे के बीच राउंड पर रहना होगा। उन्होंने इसके लिए मप्र जेल नियम-168 के नियम-93 का हवाला दिया है। इसमें इन अधिकारियों को इस दौरान नियमित आधे घंटे राउंड करना ड्यूटी में शामिल बताया गया है। यह आदेश 7 नवंबर को प्रदेश के सभी अधीक्षक केंद्रीय जेल, जिला जेल एवं उप जेल को भेजा गया है। जेलों की खामियां ढूंढ रहे हैं एडीजी भोपाल जेल ब्रेक के बाद चीफ सेक्रेटरी लेवल पर प्रदेश की सभी 11 सेंट्रल जेलों की सुरक्षा इंतजामों में खामियों की पड़ताल कराई जा रही है। एडीजी जेल सुधीर कुमार शाही और सीआईडी आईजी अनिल कुमार सिंह प्रदेशभर की जेलों का कोना-कोना छान रहे हैं ताकि खामियां ढूंढ कर उसे दूर किया जा सके। उल्लेखनीय है की भोपाल जेल ब्रेक के बाद प्रदेश की जेलों की खामियां तलाशी जा रही है। शाही के अनुसार जेलों की खामियों की रिपोर्ट तैयार कर शासन को भेजनी है। उसके बाद खामियों को दूर कर जेलों की सुरक्षा को मजबूत करना है। बताया जाता है कि माओवाद से त्रस्त पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ की तर्ज पर मध्य प्रदेश सरकार भोपाल केंद्रीय कारागार सहित अपनी 122 जेलों के चारो ओर इलेक्ट्रिक बाड़ा लगाने के बारे में गंभीरता से विचार कर रही है। मध्य प्रदेश जेल महानिदेशक संजय चौधरी के अनुसार एक आला अधिकार ने अभी हाल ही में छत्तीसगढ़ की जेलों में लगे इलेक्ट्रिक बाड़ा का अध्ययन वहां जाकर किया है। हम पड़ोसी राज्य के मॉडल को अपनाने पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि मध्य प्रदेश जेलों का सुरक्षा ऑडिट जारी है और इसी के बाद जेलों में सुरक्षा को बढ़ाने के उपाय किए जाएंगे। जब उनसे मध्य प्रदेश सरकार द्वारा समूचे राज्य के जेलों में ऊंची-ऊंची चारदीवारी बनाए जाने के कदम के बारे पूछा गया, तो चौधरी ने कहा कि हम जेलों की सुरक्षा को एक-एक करके नहीं बढ़ाएंगे, बल्कि जेलों की सुरक्षा ऑडिट रिपोर्ट आने के बाद सभी जेलों की सुरक्षा को एक साथ बढ़ाया जाएगा। उधर, जेल मंत्री कुसुम महदेल भी मानती हैं की प्रदेश की जेलों में खामियां हैं, उन्हें शीघ्र दूर किया जाएगा। प्रदेश की सभी जेलों में सुरक्षा की दृष्टि से सीसीटीवी कैमरे लगाए जा रहे हैं। साथ ही उनका कहना है की जेलों के कर्मचारियों की वेतन में जो विसंगतियां हैं, उसे शीघ्र दूर किया जाएगा। विसंगति दूर करने के लिए वित्त मंत्रालय को प्रस्ताव तैयार कर भेज दिया गया हैं। जैसे ही वित्त मंत्रालय से प्रस्ताव को स्वीकृति मिलती है, विसंगति दूर हो जाएगी। जवानों की तरह ट्रेंड होंगे जेल प्रहरी सेंट्रल जेल ब्रेक कांड के बाद अब विभाग ने सिमी आतंकियों की सुरक्षा के लिए जेल के 50 नए जवानों को सीआईएसएफ के जवानों की तरह ट्रेनिंग दिलाने का फैसला लिया है। इसके लिए प्रदेश के जेलों पर तैनात जवानों की लिस्ट तैयार की जा रही है। जल्दी ही इन जेल प्रहरियों को 6 महीने की कठिन ट्रेनिंग पर भेजा जाएगा। इस दौरान आधुनिक हथियार चलाना भी सिखाया जाएगा। नई व्यवस्था के तहत जेल की बाहरी दीवारों के पीछे इन जवानों को बंकर बनाकर तैनात किया जाएगा। इनकी मॉनीटरिंग की जिम्मेदारी जेल के वरिष्ठ अफसरों को दी जाएगी। रात में जेल मुख्यालय के अफसर औचक निरीक्षक कर ड्यूटी पर तैनात जवानों का ऑडिट करेंगे। गड़बड़ी मिलने पर इसकी रिपोर्ट जेल डीजी को दी जाएगी। जेल विभाग के अफसरों का कहना है कि फरारी कांड के बाद जेल में पांच साल से एक ही जगह पर जमे जेल प्रहरी से लेकर जेलर तक को एक स्थान से हटाकर दूसरी जगह ट्रांसफर किया जाएगा। नए स्टॉफ को जेलों पर तैनात किया जाएगा। इसके पीछे अफसरों का तर्क है कि पुराने स्टाफ से कैदी लंबे समय होने के चलते घुल मिल जाते हैं। इसके चलते उनको कंट्रोल करना आसान नहीं होता है। इनको हटाने के लिए जेल मुख्यालय अपने स्तर पर भोपाल सहित प्रदेश की जेलों पर पदस्थ प्रहरी और जेलरों ट्रांसफर सूची बना रहा है। अब मुख्यालय स्तर पर नहीं होंगे खरीदी के टेंडर जेल डीजी संजय चौधरी ने जेलों में होने वाली खरीदी का काम जेल मुख्यालय से हटाकर जेल अधीक्षकों को सौंप दिया है। उनका मानना है कि जेलों में सुरक्षा संबंधी उपकरण खरीदने और सामान मंगाने के लिए फाइल जेल मुख्यालय तक आती थी। इसके चलते लंबा वक्त लग गुजर जाता था। लेकिन अब सारी व्यवस्थाएं जेल अधीक्षक अपने स्तर पर कर सकेंगे। किसको कितने सीसीटीवी कैमरे लगाने हैं। उसके टेंडर जेल अधीक्षक कर सकेंगे। चौधरी ने बताया कि भोपाल सहित प्रदेश की 11 जेलों में मोबाइल जैमर लगाने के लिए प्रक्रिया तेज हो गई है। पिछले साल ग्वालियर में हुई जांच में बंदियों के पास मोबाइल मिले थे। ऐसी घटनाएं न हो इसलिए जैमर लगाने के लिए टेंडर प्रक्रिया की जाएगी। कुछ समय पहले भोपाल सेंट्रल जेल में इसका ट्रायल रन भी हो चुका है। यहां पर 21 पाइंट पर जैमर लगाने के लिए जेल मुख्यालय को बताया जा चुका है। इसकी कंट्रोल जेल अधीक्षक के पास रहेगा। सुरक्षित एशो-आराम की जिंदगी चाहिए तो मप्र की जेलों में चल आइए...! गुजरात टूरिज्म का विज्ञापन कुछ दिन तो गुजारिए गुजरात में आप लोगों ने देखा और सुना होगा ही... कुछ इसी तरह का स्लोगन मप्र की जेलों के लिए भी दिया जा रहा है और देशभर के अपराधियों से कहा जा रहा है...सुरक्षित एशो-आराम की जिंदगी चाहिए, तो मप्र की जेलों में चले आइए...! जी हां, भले ही मजाकिए लहजे से ऐसा कहा जा रहा है, लेकिन हकीकत में ऐसा ही है। भोपाल जेल ब्रेक के बाद प्रदेशभर की जेलों से जो रिपोर्ट आ रही है उससे यह साफ दिख रहा है कि जेलों में व्याप्त भर्राशाही और भ्रष्टाचार के कारण सजागृृह सुविधागृह बन गए हैं, तो ऐसे में किसी के मन में कानून का डर कैसे रहे? पहले जेल और पुलिस का नाम सुनकर लोगों की रूह कांप जाती थी। लेकिन अब तो जेल अपराधियों के लिए सबसे सुरक्षित जगह बन गई है। आलम यह है कि जेलों में वह तमाम तरह की अय्याशी भरी सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं जिसे बाहर रहते उपयोग करने पर आदमी अपराधी की श्रेणी में आ जाता है। खासकर मध्यप्रदेश की जेलों में तो चाय से चरस तक ... चिकन से मटन तक... तरबूज से खजूर तक... सुई से तलवार तक सब मिलता है बस खरीदने वाला चाहिए। तभी तो भोपाल की जेल में कैद आतंकियों की बैरिकों में प्रतिबंधित वस्तुएं मिली हैं। दरअसल हमारी जेलें वर्षों से घोर कुप्रबंधन तथा प्रशासकीय निष्क्रियता की शिकार हैं जो क्रियात्मक रूप से अपराधियों द्वारा अपनी अवैध गतिविधियां चलाने का 'सरकारी हैडक्वार्टरÓ बन गई हैं तथा उन्होंने जेलों में नशे व अन्य प्रतिबंधित चीजें लाने और अपना धंधा चलाने के अनेक तरीके ढूंढ लिए हैं। यह सब जेल विभाग में भ्रष्ट अधिकारियों की पदस्थापना से हो रहा है। सरकार जेल विभाग को कभी भी गंभीरता से नहीं लेती है। इस कारण यह विभाग भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा अड्डा बन गया है। पहले जहां जेलों का नाम सुनते ही लोग बीमार हो जाते थे आज बड़े-बड़े अपराध करने के बाद अपराधी जेलों का रुख करते हैं। और जेल से ही अपना नेटवर्क संचालित करते हैं। जेलों की इस हालत के लिए सरकारी अव्यवस्थाओं के साथ-साथ खुद जेलों के अघिकारी-कर्मचारी भी कम दोषी नहीं हैं। क्या जेल में बंद कैदी के पास सिगरेट, शराब, मोबाइल और हथियार आसमान से टपकते हैं! यदि नहीं तो फिर इन्हें उन तक कौन और कैसे पहुंचाता है! जाहिर है यह सब जेलों के ही उन भ्रष्ट अघिकारी और कर्मचारियों की वजह से होता है जो पैसे की अपनी भूख मिटाने के लिए अपना दीन-ईमान सब बेच देते हैं। जेलों में अपराधियों की आवभगत करके कमाई करने का चलन सा चल गया है। राजधानी की आईएसओ जेल बेहाल मध्यप्रदेश की अन्य जेलों का हाल कैसा होगा यह देश की सबसे पहली आईएसओ जेल भोपाल का हाल देखकर लगाया जा सकता है। इस जेल में 100 रुपए देकर कैदियों तक वह सभी चीजें पहुंचाई जा सकती है जो प्रतिबंधित हो। कैदी भले ही चाहरदीवारी में कैद हैं लेकिन वे प्रहरियों के मोबाइल से अपने परिजनों के साथ निरंतर बात करते हैं। यही नहीं जेल में उनको तमाम तरह की सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं। जो इस बात का संकेत हैं कि मध्यप्रदेश की जेलें भ्रष्टाचार का बड़ा अड्डा बनी हुई हैं। यही नहीं जेल में सुरक्षा के मापदण्डों का भी पालन नहीं किया जा रहा है। तभी तो यहां तैनात 160 प्रहरियों में से 80 को अन्यत्र काम पर लगाया गया है। कभी-कभी तो एक-दो प्रहरी के भरोसे ही पूरी जेल रहती है। जब राजधानी की आईएसओ जेल का यह हाल है तो प्रदेश की अन्य जेलों का क्या हाल होगा। जेलों के अधिकारी कमाई के चक्कर में एक ओर जहां जेल की सुरक्षा से समझौता करते हैं, वहीं दूसरी ओर रसूखदार कैदियों को मनमानी सुविधायें भी उपलब्ध करवाते हैं। भोपाल जेल ब्रेक के बाद शुरू हुई जांच में जो प्राथमिक तथ्य उभरे हैं वे यह साबित करते हैं कि सरकार दावे कुछ भी करे, लेकिन जेलों में वह सब कुछ हो रहा है जो नहीं होना चाहिए। जेलों में भ्रष्टाचार का आलम यह है कि पिछले सवा दो साल में एक जेल डीआईजी, दो वरिष्ठ जेल अधीक्षक और दो जेलर भ्रष्टाचार के आरोप में लोकायुक्त पुलिस द्वारा पकड़े गए हैं। इन जेल अधिकारियों के पास करोड़ों की अवैध स पत्ति पाई गयी थी। दरअसल जेलों में कैद अपराधियों के साथ मिलीभगत कर काली कमाई की जा रही है। इस कारण अपराधियों में जेलों का भय भी खत्म होता जा रहा है। ऐसे में इस बात की गारण्टी क्या है कि कड़ी साज वाले कानून से अपराधियों में खौफ होगा? मुल मुद्दा यही है कि अपराधियों में खौफ कैसे हो। इसके लिए अपराधी को कड़ी सजा देना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि सजा का कड़ाई से पालन करवाना जरुरी है। लेकिन जेलों के जो हालात हैं उससे तो यह साफ हो गया है कि अपराधियों को जेलों का कोई खौफ नहीं है। कैदगाह नहीं ऐशगाह बन गई जेलें कभी सुधारगाह के रूप में ख्यात रहीं जेलें अब कैदगाह नहीं बल्कि ऐशगाह बनकर रह गई हंै। अपराधियों को अपने अंदर कैद कर रखने वाली जेलों का चरित्र भी अपराधियों की तरह बदल रहा है। यानी अपराधी जैसा चाहते हैं जेल में वैसा ही होता है। जेलों का यह स्वरूप 90 के दशक में नया रूप लेने लगा था। नब्बे के दशक में कथित मानवाधिकारों के पैरोकार सक्रिय हुए और जेलों को सजागृह की बजाय सुधारगृह बनाए इन्हीं की सिफारिशों पर हमारी सरकारों हमारे न्यायालयों ने सजा के पालन में कठोरता को समाप्त करते हुए खंूखार अपराधियों के लिए बेडिय़ों, हथकडिय़ों का प्रावधान समाप्त किया तो कथित मानवीयता के नाम पर जेलों के भीतर अच्छा व पौष्टिक भोजन, श्रेणी अनुसार बिस्तर, पंखे, टीवी, टेलीफोन की सुविधाएं देने के प्रावधान किये और इन्हीं सुविधाओं का परिणाम है कि न्यायालय से प्रदत्त सुविधाओं के इत्तर भी अन्य सामग्री जैसे नशीले पदार्थ तक की सुविधाएं मिल रही है। जिससे आज जेलें जो पहले सजागृह कहलाती थी वे सुविधागृह होते हुए अपराधियों के लिए ऐशगाह बन गई है। ऐसे में यह स्पष्ट है कि अपराधियों में कड़ी सजा के कानूनों का डर क्यों, कब, कैसे व किसके कारण खत्म हुआ है जिसके चलते अपराधी बे-खौफ हो स य समाज के लिए नश्वर बन गये हंै। और इस स्वरूप को और बिगाड़ा है जेलों के भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों ने रसूख से तय होता है कैदियों के साथ व्यवहार मध्यप्रदेश की जेलों का तो यह हाल है कि यहां रसूख और दौलत से तय होता है कि कैदी के साथ किस तरह का व्यवहार होना चाहिए। अगर जेल में कोई रसूखदार कैदी पहुंचता है (पिछले कुछ सालों में भोपाल जेलों में ऐसों की भरमार रही है।) पूरा जेल प्रशासन उसकी तीमारदारी में लग जाता है। इसको देखकर अन्य कैदियों में भी ऐसी तीमारदारी या सुविधाओं की आस जगती है। जिसको पाने के लिए दौलतमंद कैदी अधिकारियों-कर्मचारियों पर पैसे लुटाकर सुविधाएं प्राप्त करते हैं। इससे जेलों की पूरी व्यवस्था ही बदहाल हो गई है। भोपाल जेल ब्रेक के बाद हुए एनकाउंटर के बाद हुई पड़ताल में यही बात सामने आ रही है कि जेल के अधिकारियों-कर्मचारियों ने अपना ईमान बेचकर आतंकियों को हर तरह की सुविधाएं मुहैया कराने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। लेकिन बाद में यही आतंकी उनके लिए परेशानी का सबब बन गए। अब तो आलम यह है कि जेलों के औचित्य पर ही सवाल उठने लगे हैं। हमारे देश में मोटर व्हीकल एक्ट से जुड़े अपराधों को छोड़ दे तो लगभग तमाम बड़े अपराधों के लिए कड़ी सजा के प्रावधान पहले से ही संविधान में विद्यमान है। जैसे हम देखें कि हत्या के लिए उम्रकैद या फांसी, देश के विरुद्ध युद्ध छेडऩा व आंतकारी घटनाओं के लिए दोषियों के लिए भी यहीं कानून है, आर्थिक अपराधों के लिए भी कड़ी कैद की सजा है तो इन्हीं की तरह बलात्कार के साथ हत्या या हत्या के प्रयास के लिए सात वर्ष उम्रकैद या फांसी तक की सजा के प्रावधान है और आजादी के बाद से देखें तो इस तरह के अपराधों में लिप्त दोषियों को सजा भी मिली है लेकिन देश की कोई भी सरकार, कोई भी नागरिक या कोई भी संवैधानिक संस्था आज क्या यह दावा कर सकने की स्थिति में है या वे यह कह सकें कि हां अमूक अपराधी को सजा के बाद उस क्षेत्र या कि देश भर में ऐसी कड़ी सजा वाले प्रावधानों की क्रियान्विति से अपराधों में कमी आई है तो निश्चित ही यह जवाब मिलेगा कि नहीं, बल्कि अपराधियों को सजा के बावजूद उसी तरह के अपराधों में और वृद्धि हुई है। और इसकी वजह है जेलों की बिगड़ती व्यवस्था। मप्र में लागू होगा सीजी फार्मूला भोपाल सेंट्रल जेल ब्रेक की घटना के बाद मप्र जेल विभाग की एक टीम ने छत्तीसगढ़ की जेलों की सुरक्षा व्यवस्था का पिछले दिनों निरीक्षण किया। निरीक्षण के बाद टीम ने माना कि मप्र से कहीं बेहतर छत्तीसगढ़ की जेलों में सुरक्षा व्यवस्था है। टीम ने सीजी फार्मूला मप्र में लागू करने पर जोर दिया है। दरअसल जेलों में निरीक्षण के मामलों में आंध्र प्रदेश जहां पहले पायदान पर है, वहीं मध्यप्रदेश का स्थाना दूसरा है। इसके बावजूद हाल ही में मप्र की कुछ जेलों में निरीक्षण के दौरान मिली प्रतिबंधित सामग्री हैरान कर रही है। यही नहीं, हैरानी की बात यह है कि निरीक्षण में आगे रहने के बाद भी सबसे ज्यादा जेल ब्रेक होने के मामलों में भी मप्र का स्थान दूसरे पायदान पर है। जेल विभाग के सूत्रों ने बताया कि भोपाल सेंट्रल जेल ब्रेक की घटना के बाद छत्तीसगढ़ की जेलों की सुरक्षा व्यवस्था को देखने के लिए मप्र के डीजी जेल संजय चौधरी के निर्देश पर सतना सेंट्रल जेल अधीक्षक शेफाली संजय तिवारी के नेतृत्व में एक टीम पिछले दिनों राजधानी आई थी। टीम ने रायपुर सेंट्रल जेल के साथ दुर्ग जेल का निरीक्षण किया। जेल की बाहरी और आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था को देखने के बाद टीम ने स्वीकार किया कि मप्र से कहीं अधिक छत्तीसगढ़ की जेलों में सुरक्षा के कड़े इंतजाम है। यहीं वजह है कि कुछ साल पहले हुए दंतेवाड़ा जेल ब्रेक की घटना के बाद फिर दोबारा यहां पर ऐसी घटनाएं नहीं हुईं। मप्र की टीम ने छत्तीसगढ़ के डीजी जेल गिरधारी नायक समेत अन्य आला अफसरों से भी भेंटकर जेलों में सुरक्षा को लेकर किए जा रहे उपायों पर चर्चा की। टीम ने अफसरों ने यह जाना कि छत्तीसगढ़ की तर्ज पर मप्र की जेलों की सुरक्षा व्यवस्था को किस तरह से अधिक मजबूत किया जाए। टीम को बताया कि हाईटेक तकनीक का फार्मूला अपनाने से काफी हद तक जेल की भीतर चल रही गतिविधियों पर नजर रखी जा सकती है। मसलन सीसीटीवी कैमरा, स्केनर, निगरानी के लिए जेल के चारों तरफ वॉच टावर का निर्माण, ऊंची और मोटी दीवारों का निर्माण, दीवारों पर फेसिंग, गेसी फायर, वीडियो कांफ्रेसिंग से बंदियों के मामलों की सुनवाई आदि से सुरक्षा व्यवस्था को पुख्ता किया जा सकता है। इस दौरान टीम ने जेल में संचालित हो रहे शिक्षा, स्वास्थ्य, उद्योग की विस्तार से जानकारी ली। सरकार की प्राथमिकता में जेल क्यों नहीं? प्रदेश की पहली आईएसओ भोपाल सेंट्रल जेल ब्रेक कर आठ कैदियों के भागने और बाद में उनके एनकाउंटर में मारे जाने पर हो हल्ला मचा हुआ है। आलम यह है कि इस घटनाक्रम की हकीकत जानने के लिए चार जांचें चल रही हैं। यानी पूरा घटनाक्रम एक मिस्ट्री बनकर रह गया है। ऐसे में कई सवाल भी उठने लगे हैं। लेकिन भोपाल जेल ब्रेक की मूल वजह सरकार की जेलों के प्रति निष्क्रियता मुख्य कारण है। दरअसल सरकार ने कभी जेलों को अपनी प्राथमिकता में लिया ही नहीं है। इसी का परिणाम है कि 30-31 अक्टूबर की दरम्यिानी रात में कुछ ऐसा घटनाक्रम हुआ जिसने मप्र के माथे पर कलंक का टीका लगा दिया है। हकीकत क्या है यह तो जांच रिपोर्ट आने के बाद ही पता चलेगा लेकिन इसको लेकर तरह-तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं। दरअसल सवाल इस बात की ओर संकेत कर रहे हैं कि सरकार ने कभी भी जेल को अपनी प्राथमिकता में नहीं रखा है। यही कारण है कि जेल विभाग में हमेशा से ही कमजोर कार्यक्षमता वाला मंत्री रखा जाता है। इसका परिणाम यह होता है कि जेलें भ्रष्टाचार का गढ़ बनती जा रही है। भोपाल जेल में जेलर रहे पीडी सोमकुंवर और गांधी इसके उदाहरण है। भ्रष्टाचार के आरोप में दोनों को जेल जाना पड़ा। सोमकुंवर तो अभी भी जेल में हैं जबकि गांधी का देहांत हो गया है। आलम यह है कि जेल विभाग में डॉक्टर से लेकर ऊपर तक के पदों पर पैसों से नियुक्ति होती है। इसलिए भ्रष्टाचार पनपता है और जहां चाक चौबंद सुरक्षा व्यवस्था होनी चाहिए वहां ढिलाई बरती जाती है। जिसके कारण भोपाल जेल ब्रेक जैसी घटना हुई है। राज्य की जेलों में काम कर चुके अधिकारियों का कहना है कि मध्य प्रदेश की जेल व्यवस्था चरमरा रही है। भोपाल जेल की खामियों को दूर करने के लिए पूर्व अधिकारियों द्वारा कई बार पत्र लिखें गए हैं लेकिन इस ओर ध्यान नहीं दिया गया है। आज जब बड़ी घटना घटित हो गई है तो हर कोई चिंतत है। अभी भी भोपाल जेल में 21 खूंखार आतंकी हैं जिनमें से अबू फैजल सबसे कुख्यात है। ये आतंकी कभी भी किसी बड़ी घटना को अंजाम दे सकते हैं।

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