बुधवार, 21 दिसंबर 2016

मप्र में अवैध खनन का टूटा रिकॉर्ड!

11 साल में 33,55,00,00,000 की चपत
खदानों पर नेताओं, अफसरों और माफिया का राज भोपाल। मध्य प्रदेश आज भले ही बीमारू राज्य के कलंक से मुक्त हो गया है, लेकिन अवैध खनन की बीमारी ने राज्य को इस तरह ग्रसित कर लिया है कि विगत 11 साल में सरकार को 33,55,00,00,000 रूपए की चपत लगी है। हद तो यह है कि प्राकृतिक संसाधनों का दोहन नेताओं, अफसरों और माफिया की मिलीभगत से हो रहा है। आलम यह है कि विधानसभा में मामला उठने और सत्तारूढ़ भाजपा के विधायक व नेताओं के धरने के बाद भी अवैध खनन रूक नहीं रहा है। अगर यह कहा जाए की मप्र में खनिज माफिया ने बेल्लारी की लूट के रिकॉर्ड भी तोड़ दिए हैं तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। कोल मंत्रालय की रिपोर्ट में भी मप्र में हो रहे अवैध खनन पर चिंता जाहिर की गई है। ज्ञातव्य है कि मु यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मप्र को औद्योगिक हब बनाना चाह रहे हैं। किसी भी प्रदेश के औद्योगिक विकास में खनिज संसाधनों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। खनिज उपलब्धता की दृष्टि से मध्यप्रदेश देश का चौथा खनिज संपन्न राज्य है। विकास की आवश्यकता के अनुरूप खनिजों की मांग औद्योगिक प्रगति के साथ बढ़ती जाती है। इसी मांग की पूर्ति के लिए वैध की आड़ में अवैध उत्खनन हो रहा है। सरकार भले ही अवैध खनन रोकने के दावे पर दावे करे, लेकिन हकीकत यह है कि अवैध खनन साल दर साल बढ़ता जा रहा है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अवैध खनन को लेकर जितने मामले प्रदेश की अदालतों में हैं, उतने अन्य किसी राज्य में नहीं हैं। प्रदेश के हर हिस्से में अवैध खनन यों तो खनिजों का खनन देश की अहम जरूरत है। लेकिन कुछ दशकों से समूचे देश में अवैध खनन की बाढ़ आ गई है। यह कारोबार नेताओं, अफसरों और माफिया की मिलीभगत की वजह से एक संगठित अपराध का रूप ले चुका है। मध्य प्रदेश में अवैध खनन माफिया ने लूट के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं और इसमें वो अफसर भी शामिल हैं, जिन पर इसे रोकने की जि मेदारी है। कोल इंडिया की रिपोर्ट को आधार माने तो मध्यप्रदेश में 11 साल में करीब 78 लाख 26 हजार 863 क्यूबिक मीटर गौण खनिज और 356 हजार 778 क्यूबिक मीटर प्रमुख खनिज का अवैध खनन हुआ है। कोल मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट में मप्र के अवैध खनन की जो तस्वीर प्रस्तुत की है उससे यही लगता है कि प्रदेश में संगठित तरीके से अवैध खनन हो रहा है। रेत और पत्थर के अवैध खनन के लिए कु यात ग्वालियर-चंबल अंचल हो या फिर मालवांचल या विंध्य या महाकौशल, हर क्षेत्र में वैध खनन की आड़ में अवैध खनन हो रहा है। मध्यप्रदेश में खदानों के लिए 406 पट्टे आवंटित हैं, लेकिन स्थिति यह है की हर साल अवैध खनन के करीब 14 हजार मामले सामने आ रहे हैं। चाहें गौण खनिज रेत, गिट्टी, मुरम हो या फिर प्रमुख खनिज कोयला, मैग्नीज, बाक्साइड और कॉपर हर खनिज संपदा का अवैध खनन हो रहा है। प्रदेश का कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जहां अवैध खनन नहीं हो रहा हो। प्रदेश केगांवों में अवैध खनन की शिकायतें आम हैं। दतिया जिले में भंडेर ब्लॉक की रेत खदानें कागजों में बंद है, लेकिन करीब 20 करोड़ रु. से अधिक का अवैध खनन जारी है। श्योपुर जिले में राजस्थान की सीमा से सटे पार्वती नदी के किनारे पत्थरों को अवैध उत्खनन हो रहा है। चंबल नदी का किनारा घडिय़ाल सेंचुरी के लिए आरक्षित है लेकिन रेत माफिया का काम जारी है। शिवपुरी जिले में नरवर और करैरा क्षेत्र में रिजर्व फोरेस्ट के भीतर, पिछोर क्षेत्र में राजापुर भड़ोरा खदान क्षेत्र में महुअर नदी का सीना चीरकर फर्शी, पत्थर की खुदाई की जा रही है। बुंदेलखंड का खनिज संपदा का अकूत भंडार माफिया के लिए नोटों के ढेर में तब्दील हो गया है। पाबंदी के बावजूद यहां अवैध खनन धड़ल्ले से किया जा रहा है। इसका अंदाजा यहां की पहाडिय़ों को देखकर लगाया जा सकता है, जो लगातार सपाट मैदानों में तब्दील होती जा रही हैं। इसके रोकथाम के उपाय सरकारी कागजों में सिमट कर रह गए हैं। धरातल पर कोई प्रभावी कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों के पहाड़ तो दूर की बात है, महानगर की सीमा में भी मोरम के पहाड़ सुरक्षित नहीं हैं। खर्चा कम मुनाफा मोटा लाल मिट्टी के काम में खनन माफियाओं को मोटा मुनाफा हो रहा है। एक डंपर में मिट्टी एलएंडटी मशीन से महज छह सौ रुपये के खर्च करने पर भर जाती है। इसके अलावा मिट्टी को गंतव्य स्थान तक ले जाने में डीजल का खर्च आता है। लेकिन एक डंपर यह लाल मिट्टी 10 से 15 हजार रूपए में आस पास के क्षेत्रों में बिक जाती है। मालवा-निमाड़ क्षेत्र के कई इलाकों में ाी धड़ल्ले से अवैध खनन जारी है। देवास में शंकरगढ़ की पहाड़ी पर खनन रुका तो कानकुंड मेंढकी, होशियारी में रेत, मुरम का खनन शुरू हो गया। बड़वानी में दो साल से रेत खदानों की नीलामी नहीं हुई है। लेकिन खनन जारी है। बुरहानपुर में ताप्ती नदी सहित आधा दर्जन नदियों में रेत व गिट्टी की वैध खदानों के अलावा अवैध खनन होता रहता है। रतलाम के आलोट, ताल, जावरा, बाजना, रावटी स्थित चंबल, शिप्रा और माही जैसी नदियों से अवैध रूप से रेत निकाली जाती रही है। शाजापुर, आलीराजपुर और झाबुआ भी अवैध खनन से अछूते नहीं हैं। नीमच में 25 स्थानों पर अवैध खनन चल रहा है। अनूपपुर, उमरिया में अवैध खनन जोरों पर है। शहडोल में अवैध रेत उत्खनन के कारण ब्यौहारी क्षेत्र की झापर नदी का अस्तित्व खतरे में आ गया है। डिंडौरी जिले की नर्मदा नदी में और सिवनी संगम व सिवनी नदी में भी अवैध खनन किया जा रहा है। विंध्य में अभी तक अवैध रेत का व्यापारिक केन्द्र रीवा जिला ही रहा है किन्तु प्रशासनिक ढिलाई के चलते सीधी की रेत यूपी पहुंच रही है। नरसिंहपुर, सिवनी और बालाघाट से भी शिकायतें मिलती रहती हैं। राजधानी भोपाल के आसपास के साथ ही संभाग के अन्य जिलों में अवैध खनन जारी है। छिंदवाड़ा में महाराष्ट्र की सीमा से लगी मालेगांव रेत खदान में नागपुर के रेत माफियाओं का कब्जा है। जिले में 53 रेत खदानों में से 16 ही संचालित हो रही है। बाकी खदानें अवैध हैं लेकिन रेत खनन जारी है। होशंगाबाद जिले में रायपुर, बांद्राभान, खर्राघाट, होरियापीपर खदानों में अवैध खनन हो रहा है। उधर कांग्रेस का आरोप है कि खनिज माफिया को सत्तारूढ़ दल के बड़े नेताओं और मंत्रियों का संरक्षण है। पिछले सात साल में खनिज माफिया एक आईपीएस अधिकारी सहित 13 लोगों को मार चुका है। इनमें अकेले मुरैना में सात लोग मारे गये हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक डॉ. गोविंद सिंह का स्पष्ट आरोप है कि सरकार में बैठे मंत्री और भाजपा के बड़े नेता पूरे प्रदेश में अवैध खनन करवा रहे हैं। प्रदेश में रेत से लेकर महत्वपूर्ण खनिजों का अवैध खनन हो रहा है। लेकिन सरकार आंख बंद किये बैठी है। खदानों के अवैध खनन में रसूखदारों के हाथ प्रदेश में झाबुआ, बालाघाट, कटनी, छतरपुर, पन्ना, जबलपुर, सतना, बैतूल आदि अनेक जिलों में वन भूमि पर लगभग 500 खदानों में अवैध उत्खनन चल रहा है। मप्र में अवैध खदानों में करोड़ों रुपए का खेल करने वालों में आधे से ज्यादा सत्ता के खासमखास हैं। शायद यही वजह है कि हर साल अवैध खनन के करीब 14 हजार मामले सामने आने के बाद भी रसूखदारों पर कार्रवाई नहीं हो पाती है। मध्यप्रदेश में वन विभाग के एक आला अधिकारी एडीशनल चीफ फॉरेस्ट कंजर्वेटर जगदीश प्रसाद शर्मा ने अपनी जांच रिपोर्ट में सतना में अवैध खनन उजागर किया था। तब राज्य के लोकनिर्माण मंत्री नागेंद्र सिंह के भतीजे रुपेंद्र सिंह उर्फ बाबा राजा समेत आठ लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। बाद में मामला रफा-दफा हो गया। अपनी रिपोर्ट में शर्मा ने स्पष्ट कर दिया था कि इस खनन की जांच अगर कर्नाटक के बेल्लारी केस की तर्ज पर की जाए तो वन क्षेत्रों में करोडों रुपये की पत्थरों की चोरी और रायल्टी चोरी के रूप में सरकार को पहुंचाया गया नुकसान उजागर हो सकता है। नर्मदापुरम संभाग से हर रोज करीबन 1500 ट्रक अवैध रूप से रेत लेकर भोपाल आते हैं। बिना रॉयल्टी दिए ये ट्रक भोपाल से विदिशा, रायसेन और इंदौर तक लाए-ले जाए जाते हैं। इसी तरह प्रदेशभर में अवैध रेत का खनन और परिवहन हो रहा है लेकिन कोई रोकने-टोकने वाला नहीं है। नदियां कर रही करुण पुकार अवैध खनन से प्रदेश की प्रमुख नदियां सूख रही हैं, कुछ तो लुप्त प्राय: हो चुकी हैं। लेकिन इन नदियों में हो रहे अवैध खनन को रोकने के लिए सरकार संवेदनशील नहीं है। मध्यप्रदेश में रेत के खनन से नदियों और उसकी जलवायु पर भारी खतरा मंडरा रहा है। शायद ही ऐसी कोई छोटी-बड़ी नदी हो, जिस पर रेत का उत्खनन न हो रहा हो। नर्मदा को मध्यप्रदेश की जीवनदायनी कहा जाता है। रेत माफिया बड़ी बड़ी राक्षसनुमा पोकलेन और जेसीबी मशीनों से बीच नदी से दिन रात रेत का उत्खनन कर रहे हैं। जिससे नदियां टापू में तब्दील होती जा रही हैं। इसके कारण आसपास के क्षेत्रों का जलस्तर गिरता जा रहा है। नर्मदा का उदगम अमरकंटक से होता है, लेकिन पर्वतमाला से उतर कर चंद किलोमीटर बाद ही खनन माफिया नर्मदा का चीरहरण करता नजर आता है। माफिया रेत का उत्खनन कर अपनी तिजोरियां भरते हैं। जहां-जहां से नर्मदा बहती हुई अपना मार्ग प्रशस्त करती है वहां-वहां हर जगह खनन माफियाओं द्वारा रेत खनन बेरोकटोक जारी रहता है। अनूपपुर, डिंडोरी, मंडला, जबलपुर, नरसिंहपुर, होशंगाबाद, सीहोर, हरदा, खंडवा, बड़वानी, धार और झाबुआ सहित ऐसा कोई जिला नहीं है जहां पर रेत का उत्खनन न हो रहा हो। नर्मदा पर वैध और अवैध दोनों तरीकों से शासन-प्रशासन की नाक के नीचे बेरोकटोक खनन जारी है। नर्मदा के अलावा प्रदेश में शायद ही ऐसी कोई नदी बची हो जहां रेत का वैध-अवैध उत्खनन न हो रहा हो। नर्मदा के अलावा महाकौशल में बेनगंगा, पेंच और कनान रेत उत्खनन के सबसे बड़े केंद्र्र हैं। चंबल मध्यप्रदेश की दूसरी बड़ी नदी है और यह इंदौर के महू से निकलकर धार, रतलाम, मंदसौर, शिवपुरी, भिंड और मुरैना होते हुए इटावा में जाकर यमुना से मिलती है। इन सभी जिलों में उत्खनन का कारोबार बदस्तूर जारी है। इनके अलावा बैतूल में ताप्ती, अनूपपुर, सीधी और सिंगरौली में सोन नदी, रायसेन, विदिशा, गुना, ओरछा की बेतवा, होशंगाबाद की तवा, देवास की काली सिंध और सीहोर की पार्वती नदी ये सभी नदियां बड़ी मात्रा में उत्खनन की शिकार हैं। इसलिए कहने में संकोच नहीं कि नदियों पर चिंता बहुत जरूरी है, लेकिन सिर्फ चिंता से क्या होगा। इसके लिए कोई ठोस कदम उठाने होंगे वो भी बिना किसी भेद-भाव के पूर्ण ईमानदारी के साथ। मध्यप्रदेश के मु यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नर्मदा को बचाने के लिए नमामि देवी नर्मदे यात्रा जनवरी से शुरू करने जा रहे हैं। मु यमंत्री ने जिस प्रकार अपनी चिंता जाहिर की है उसी प्रकार धरातल पर उतरकर नदियों के लिए कार्य करना बहुत जरूरी है। रेत माफियाओं के हौसले तो इतने बुलंद हैं कि खुद मु यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र बुधनी, नसरुल्लागंज को उन्होंने अवैध उत्खनन का सबसे बड़ा गढ़ बना रखा है, क्या शासन-प्रशासन इससे अनभिज्ञ है। अगर ऐसा है तो फिर समझा जा सकता है कि जिसकी नाक के नीचे नदी का चीरहरण हो रहा हो तो बाकी की नदियों का क्या हाल होता होगा आसानी से समझा जा सकता है। 80 फीसदी खदानों पर नेताराज प्रदेश में खनन कारोबार पर नेता काबिज हैं। मप्र में 8000 से ज्यादा छोटी-बड़ी खदानें हैं। यहां की 80 फीसदी से ज्यादा खदानों पर मंत्रियों, सांसदों, विधायकों और पार्टी के नेताओं के परिजनों का कब्जा है। इस बंदरबांट में अफसर भी पीछे नहीं। कई नौकरशाहों के रिश्तेदारों के नाम भी खदानें हैं। इस खेल में भाजपा-कांग्रेस दोनों साथ हैं। कुछ में बड़े नेताओं की अघोषित हिस्सेदारी तक है। प्रदेश की 8000 खदानों में से 1200 खदानें महंगे खनिज की हैं। 70 प्रतिशत महंगे खनिज की खदानें भाजपा के नेताओं या उनके करीबियों के पास है। सांसद गणेश सिंह की पत्नी मोना सिंह के नाम बठियाकला में 3.764 हेक्टेयर चूना पत्थर की खदान। भाई एवं जिला पंचायत सदस्य उमेश प्रताप सिंह की रामपुर बघेलान में 103 हेक्टेयर में चूना-पत्थर खदान। बहू एवं जिला पंचायत अध्यक्ष सुधा सिंह के नाम रामपुर बघेलान में 21 हेक्टेयर में लेट्राइट खदान। मंत्री कुसुम सिंह महदेले के भाई अशुतोष महदेले की पुराना पन्ना में खदान है। मंत्री संजय पाठक की कटनी-विजयराघोगढ़ में कई खदानें हैं। मंत्री हर्ष सिंहके बेटे वीर सिंह के नाम से रामपुर बघेलान में और विक्रम सिंह के नाम से अमरपाटन में लेट्राइट खदान है। कांग्रेस नेता व पूर्व विधायक ओपी राय की मैहर में तीन चूना पत्थर खदानें हैं। पूर्व बसपा सांसद देवराज सिंह ने सांसद रहते लक्ष्मी स्टोन क्रेशर के नाम पर सुमेदा में 2.61 एकड़ का रकबा 2011 में आवंटित कराया था। अभी भाई वीरभद्र खनन कारोबार देख रहा है। परिवार के 10 लोगों के नाम लीज है। इन नामी खदानों के अलावा कई बेनामी खदानों में नेताराज है। पूर्व मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह की पत्नी नंदिता सिंह, बहू अंजू सिंह और भाई लोकेन्द्र प्रताप सिंह के नाम खदानें हैं। भाई के नाम पवई क्षेत्र में खदानें हैं। मांधाता विधायक लोकेंद्र सिंह तोमर के परिजनों के नाम से पुनासा में खदान है। प्रदेश में रेत माफिया सरकार के आशीर्वाद से फलफूल रहा है। मे. पैसिफिक एक्सपोर्ट द्वारा जिला जबलपुर तहसील सिहोरा ग्राम झीरी के 27 हेक्टेयर वन क्षेत्र में आयरन का अवैध उत्खनन विगत कई वर्षों से किया जा रहा है। यह फर्म स्वीकृत क्षेत्र से बाहर जाकर वन क्षेत्र में स्थित सैकड़ों वृक्षों की अंधाधुंध कटाई कर आयरन का अवैध उत्खनन कर रही है। फर्म द्वारा कई मंत्रियों को अवैध फायदा पहुंचाकर शासन को करोड़ों रुपयों की हानि पहुंचाई जा रही है। इस कंपनी के पक्ष में खनिज विभाग ने जिला बालाघाट के ग्राम हथौरा में 14 एकड़, शहडोल में 143 हेक्टेयर एवं 862 हेक्टेयर का पीएल तथा जबलपुर में 1890 वर्ग किलोमीटर एवं 1080 वर्ग किलोमीटर की आरपी स्वीकृत की है। अफसर भी खदान लेने में पीछे नहीं हैं। आईएएस एसबी सिंह ग्वालियर में कमिश्नर थे तब उनके परिजनों को खूब खदानें मिलीं। खदानें कलेक्टर के स्तर पर आवंटित हुईं। सिंह के भाई रामप्रताप सिंह राजावत की पत्नी गौरी और साले के लड़के विजयप्रताप सिंह राजावत की पत्नी पूनम की पार्टनरशिप में राजावत स्टोन क्रेशर कंपनी बनाई गई। वर्ष-2010 में इस कंपनी को कई खदानें आवंटित हुई। इसमें लखनपुरा में एक खदान ली गई, जो कुछ समय बाद अमरनाथ शर्मा को बेच दी। अमरनाथ एक केंद्रीय मंत्री के बचपन के मित्र रामनिवास शर्मा के साले हैं। शर्मा की पहले से कई खदानें हैं। दूसरी ओर, सिंह के परिवार की कंपनी राजावत स्टोन क्रेशर को सरकारी जमीन तक क्रेशर चलाने के लिए आवंटित कर दी गई। हाल ये रहा कि खदानें भी आवंटित हुईं और जमीन भी। उस पर खदान लेकर बेच भी दी गई। नए गांव में रितुराज स्टोन के नाम से खदान है। पुलिस विभाग से उप पुलिस अधीक्षक के पद से रिटायर्ड हुए कुशवाह की यह खदान है। उन्होंने 2011 में नीरजा मरैया से अपने नाम ट्रांसफर कराई है। कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष अरुण यादव कहते हैं कि भाजपा सरकार के नेता-मंत्री खदानों के वैध-अवैध कारोबार में डूबे हुए हैं। करोड़ों-अरबों रुपए का भ्रष्टाचार इन खदानों में होता है, जिसे भाजपाई रसूख के दम पर करते हैं। खनन माफिया का खौफ सरकार पर हावी है। सरकार को विशेष अभियान चलाकर नामचीन चेहरों का अवैध कारोबार सामने लाना चाहिए पर इसकी उ मीद कम है। वहीं भाजपा प्रदेशाध्यक्ष नंदकुमार चौहान कहते हैं कि ज्यादातर खदानें कांग्रेसियों की हैं। आजादी के बाद कांग्रेस ही ज्यादा समय सत्ता में रही और उसके नेताओं ने एकतरफा खदानें लीं। भाजपा के राज में भी इन्होंने खदानें ली हैं क्योंकि हमने पारदर्शिता रखी है। भाजपा नेताओं की खदानें होना बुरी बात नहीं है। वैधानिक तरीके से कोई भी नेता खदान ले सकता है। अवैध खनन नहीं होना चाहिए। भाजपा-कांग्रेस के बीच 60-40 का बंटवारा बुंदेलखंड में पन्ना से लेकर टीकमगढ़ तक पत्थरों, रेत और गिट्टी की सैंकड़ों अवैध खदानें हैं। इनमें कांग्रेस और भाजपा का हिस्सा 60 अनुपात 40 का है। पन्ना में जहां श्रीकांत दीक्षित खदान किंग है वहीं टीकमगढ़ से लेकर भिंड-मुरैना तक की खदानों के राजा राजेद्र सिंह हैं। आलम यह है कि बुंदेलखड़ का कोना-कोना माफिया के कब्जे में है। बुंदेलखंड को सूखा से ज्यादा तकलीफ सत्ता-सिस्टम के भीतर संवेदानाओं के अकाल ने पहुंचाया है। बुंदेलखंड प्राकृतिक संसाधनों और खनिज-संपदा से परिपूर्ण है। लेकिन इसका फायदा यहां के आमजन को नहीं मिल पाता है। रसूखदार लोग यहां की संपदा का दोहन कर लाल होते जा रहे हैं और आमजन दिन पर दिन कंगाल। अवैध खनन ने बुंदेलखंड के पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचाया है। इतनी की हालात बद से बदतर हो चुकी है। पेड़ों की हरियाली दूर-दूर तक नजर नहीं आती। बुंदेलखंड से गिट्टी-बालू लादकर सरपट शहरों की तरफ भागते ट्रकों की रेलम-पेल और जगह-जगह पुलिस की वसूली साफ बताती है कि बुंदेलों की धरती खनन के नाम पर अवैध खनन से जूझ रही है। कहीं कोई रोक-टोक नहीं। क्षेत्र में माफिया कितना रसूखदार है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है छतरपुर जिले के चंदला अंचल में केन नदी से बड़े पैमाने पर हो रहे रेत के अवैध उत्खनन और परिवहन को रोकने के लिए चांदला विधायक आरडी प्रजापति को धरना देना पड़ा। प्रजापति कहते हैं कि विधानसभा में मामला उठाया था तो सरकार ने कार्रवाई का आश्वासन दिया था, लेकिन अवैध खनन आज भी जारी है। ज्ञातव्य है की इससे पहले ग्राम पंचायत दादूताल की महिला सरपंच ने भी इसी मुद्दो को लेकर सैंकड़ों महिलाओं के साथ धरना दिया था। दरअसल, छतरपुर जिले की सीमा से गुजरी केन नदी के मवई घाट, परेई, पड़वाहा, कुर्धना, फत्तेपुर, बरूआ, रामपुर, कंदेला, हर्रई व बघारी आदि से भारी मात्रा में रेत का अवैध कारोबार बेरोकटोक किया जा रहा है। प्रतिदिन 500 से 1000 से अधिक ट्रकों के माध्यम से रेत निकालकर यूपी की ओर भेजी जा रही है। मवई घाट में एक खेत से रेत निकालने की स्वीकृति किसान हरप्रसाद पाल, कमतू पाल को मिली है। इनके नाम से फर्जी पिटपास से केन नदी व अन्य खदानों से अवैध रूप से खनन किया जा रहा है। विधायक का आरोप है कि अवैध उत्खनन के कारोबार में बाहुबलियों और उप्र के गुंडा प्रवृत्ति के लोगों की संलिप्तता के कारण क्षेत्रीय जनता में भय व्याप्त है। वह कहते हैं कि क्षेत्र की रेत खदानों से अवैध उत्खनन को लेकर लगभग दो दर्जन से अधिक शिकायतें की गईं लेकिन क्षेत्र के पुलिस और प्रशासन के साथ साथ खनिज अधिकारियों की मिली भगत के कारण अवैध कारोबार पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। नदियों पर सरकार से ज्यादा माफिया के पुल मध्य प्रदेश सरकार भले ही बुंदेलखंड में नदियों पर पुल बनाने में फिसड्डी साबित हो रही है लेकिन सत्ता में बैठे कुछ प्रभावशाली लोगों के दम पर बालू माफियाओं ने सरकार से ज्यादा पुल नदियों पर बनाकर खड़े कर रखे हैं। राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) की तमाम स ितयों के बावजूद बुंदेलखंड में पर्यावरण की बर्बादी की ऐसी भयावह दास्तां लिखी जा रही है जिस पर भरोसा करना आसान नहीं होगा। नदियों की जलधारा को ना सिर्फ बांधकर उनके प्राकृतिक स्वरूप को बिगाड़ा जा रहा है बल्कि अवैध खनन के फेर में नदियों को बर्बाद किया जा रहा है। अवैध खनन करने वाले दिन दोगुनी और रात चौगुनी र तार से सरकार को भी चूना तो लगा ही रहे हैं। तकनीकि रूप से कानूनी अड़चनों को धता बताकर मध्य प्रदेश की खदानों के लाइसेंस की आड़ में बांदा, महोबा और चित्रकूट जिलों के सीमावर्ती इलाकों में केन, यमुना नदियों के किनारों को खोदकर छलनी किया जा रहा है। चौंकाने वाली बात यह है कि यूपी के बांदा, चित्रकूट और महोबा का भी प्रशासन और पुलिस महकमा इस ओर से आंखें मूंदे है। ऐसा नहीं है कि उनको जानकारी नहीं, बल्कि यहां पर अधिकारियों की मिलीभगत से ही यह गोरखधंधा पनप रहा है। खासकर खनिज विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत बालू माफियाओं के लिए वरदान है। जबलपुर जिले से निकलने वाली केन नदी पर खनन माफिया ने सरकार की नाक के नीचे ही कब्जा जमा लिया। जगह-जगह बालू की हजारों बोरियां डालकर नदी की धारा को करीब-करीब बंद कर दिया गया। नदी के बीचोबीच अवैध रास्ता बनाया गया ताकि माफिया के बालू और मौरंग (मोटी रेत) से लदे ट्रक अफसरों की नजरों से बचते हुए शहर से बाहर जा सकें। अफसर आंखें मूंदे हुए हैं और स्थानीय इंटेलीजेंस यूनिट के भी कान बंद हैं। नतीजतन खनन माफिया इतना बेखौफ हो गया है। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट के मुताबिक, बुंदेलखंड के 13 जिलों में हर वर्ष करीब 400 करोड़ रु. का अवैध खनन हो रहा है। इन इलाकों में सर्वाधिक खनन बालू, मौरंग, पत्थर और मिट्टी का होता है। आरटीआइ एक्टिविस्ट आशीष सागर दीक्षित के मुताबिक बुंदेलखंड में कुछ ही लोगों के पास खनन के लिए पर्यावरण विभाग का अनापत्ति प्रमाणपत्र है जबकि यहां कदम-कदम पर अवैध खनन चल रहा है। पर्यावरणविद डॉ. भारतेंदु प्रकाश कहते हैं कि केन नदी के किनारे बालू और मौरंग के अवैध खनन से दो तरह का नुकसान हो रहा है। पहला नदी के किनारे बालू का प्राकृतिक तटबंध नष्ट हो चुका है और दूसरा तलहटी से अधिक बालू और मौरंग निकालने के कारण नदी का पानी भूमि में तेजी से रिस रहा है। इसके चलते केन के विलुप्त होने की आशंका बढ़ गई है। नदी भले ही अभी विलुप्त न हुई हो, लेकिन बांध बनाकर इसकी धारा रोकने और अवैध खनन का असर दिखने लगा है। यह खनन माफिया, अफसर और नेताओं की मिलीभगत का ही कमाल था कि एक ओर जहां अवैध खनन ने बुंदेलखंड इलाके की जमीन को छलनी कर दिया, वहीं यहां के नेता लगातार अमीर होते गए। जो नेता पहले मोटरसाइकिल से चलते थे, अब महंगी एसयूवी से चलते हैं। नेताओं और माफिया के गठजोड़ का ही कमाल है कि अफसर चाहकर भी अवैध खनन रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठा पा रहे हैं। अगर किसी ईमानदार अफसर ने इन माफिया पर शिकंजा कसने की कोशिश की तो या तो उसका तबादला कर दिया गया या फिर उस पर हमला कर उसे डराने की कोशिश की जाती है। बाहुबल और मिलीभगत से रेत की निकासी प्रदेश में रेत के अवैध धंधे में बाहुबल और मिलीभगत का मेल चरम पर है। रसूखदार अवैध खदानों से रेत निकासी कर ही रहे हैं, वैध खदानें भी उनके निशाने पर हैं। ठेकेदार विरोध करता है, तो उसके कर्मचारियों या ठेकेदार की जान पर बन आती है। वहीं, पुलिस मूकदर्शक बनी रहती है। पुलिस मुंह खोले, उसके पहले माफिया मोटी रकम देकर जेब गर्म कर देते हैं। रेत चोरी में फायदा ही फायदा है। न खदान का ठेका, न सरकार को रॉयल्टी। पूरा मुनाफा रेत माफियाओं को होता है। यही कारण है कि माफिया रेत चोरी के धंधे में लगातार पैर पसार रहे हैं। नदियों में कई जगह से रेत चोरी हो रही है। कई माफिया ठेकेदारों को धमकाकर उनसे पार्टनरशिप कर रहे हैं। माफिया जिन घाटों से रेत निकालते हैं, वहां के थाने और चौकी की पुलिस को प्रत्येक ड पर और हाईवा के हिसाब से रुपए दिए जाते हैं। वैध खदानों के ठेकेदारों को भी रेत की निकासी के लिए मोटी रकम चुकाई जाती है। जबलपुर जिले में नर्मदा, हिरण, गौर, बंजर, परियट, पन्ना नदी से रेत की अवैध निकासी हो रही है। जिले में वैध खदानें 30 हैं जबकि अवैध 175। मप्र में खनन विभाग सरकार का पर्स मप्र में खनन विभाग को सरकार का पर्स कहा जाता है। इसका कारण यह नहीं है कि प्रदेश में जब जितना चाहो उतना कमाने की गारंटी है प्राकृतिक संपदा का अवैध खनन। नदी किनारे के सारे तीर्थ स्थल खनन माफिया के भी तीर्थ स्थल बन गए हैं। हर कहीं प्रशासन, पुलिस, खनन विभाग की मिलीभगत से माफिया सिंडिकेट प्रति दिन लाखों टन बालू, गिट्टी निकाले जा रहे हैं। अवैध खनन के कारोबार में पुलिस से लेकर सरपंच तक प्रति ट्रक-ट्राली के हिसाब से वसूली करते हैं। सबसे बड़ा हिस्सा माइनिंग इंस्पेक्टर का होता है। लेखपाल, कानूनगो, तहसीलदार से लेकर एसडीएम तक की सहमित और अवैध खनन की कमाई में भागीदारी किसी से छिपी नहीं है। खनन माफिया के खिलाफ आवाज उठाने वालों पर जान का खतरा मंडराता रहता है। चंदला विधायक आरडी प्रजापति भी अपनी जान के खतरे की आशंका जता चुके हैं। दरअसल, विगत कुछ सालों में कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में आए जबर्दस्त बूम और निर्माण कार्यों के लिए नदी की रेत की जरूरत ने अवैध खनन के धंधे को तेजी से विस्तार दिया है। ये खनन माफिया अवैध तरीके से नदियों से खनन करते हैं जिन्हें राजनीतिक पार्टियों का संरक्षण मिला होता है। प्रदेश के बड़े माफिया रेत और गिट्टी के अवैध खनन में शामिल हैं। इनके अवैध धंधे को जिला प्रशासन ही नहीं पुलिस-आरटीओ, वन विभाग जैसे महकमे भी सहयोग करते हैं। माफियाओं द्वारा जारी परमिट पर सैकड़ों डंपर चलते हैं। प्रदेश का कोई हिस्सा ऐसा नहीं है, जहां खनन का जोर न हो। प्रदेश के ढांचागत निकायों से लेकर बहुमंजिली इमारतों तक की आवश्यकताएं खनन से जुड़ी हुई हैं। रेत-बजरी, जिनकी किसी जमाने में कोई कीमत नहीं होती थी, आज ये कीमती ही नहीं, बड़े अपराधों की वजह बन चुकी हैं। राजनेताओं से लेकर बड़े माफिया इसका हिस्सा बन चुके हैं। इससे जुड़े अपराधों की सं या का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि प्रदेश की विधानसभा का कोई भी सत्र इससे जुड़े हंगामे के बिना पूरा नहीं होता। वास्तविकता यह है कि इससे जुड़े अपराधों की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि इस पर अंकुश लगाने की हर कोशिश को मुंह की खानी पड़ती है। जाहिर है, इनके धंधे से सिर्फ प्रदेश के खजाने को बड़ी चोट नहीं पहुंच रही, बल्कि इसने पर्यावरण को भी खतरे में डाल दिया है। रसूखदारों को मात्र 8 महीने में 45 खदानें प्रदेश में रसूखदारों को प्रशासनिक सहयोग कैसे मिलता है इसका सबसे अच्छा उदाहरण पन्ना में देखने को मिला है। बुंदेलखंड के रियल हीरो की कथित उपाधि पाकर खबरों में आए तत्कालीन कलेक्टर शिवनारायण सिंह चौहान ने पन्ना में अपने सवा साल से कम के कार्यकाल के दौरान सिर्फ 8 महीने में फर्शी-पत्थर और क्रेशर गिट्टी की 45 खदानों की लीज स्वीकृत कर दी। इसको लेकर तरह-तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि इन खदानों के कारण देश के हृदय प्रदेश का मुकुट कहलाने वाली विंध्य की पर्वत श्रृंखलाओं के पहाड़ों का अस्तित्व अब खतरे में आ गया है। अब खजिन संपदा को अंधाधुंध दोहन किया जा रहा है। जिससे पर्यावरण का विनाश हो रहा है। इसका सीधा दुष्प्रभाव जल-जंगल, जानवर, जमीन पर पडऩा तय है। इससे इंसान भी अछूते नहीं रह सकते है। दरअसल, पन्ना के पहाड़ों की बर्बादी की इबारत माह जनवरी से अगस्त 2016 के मध्य में लिखी गई है। पन्ना के तत्कालीन कलेक्टर शिवनारायण सिंह चौहान ने लगभग 50 प्रतिशत वन क्षेत्र वाले जिले में जहां दो सामान्य वन मंडल उत्तर-दक्षिण, टाईगर रिजर्व, दो अ यारण गंगऊ और केन-घडिय़ाल स्थित है वहां ताबड़तोड़ अंदाज में रेवड़ी की तरह खदानों के पट्टे बांट दिए। शिवनाराण सिंह चौहान के पहले पन्ना में जितने भी कलेक्टर रहे किसी ने भी अपने कार्यकाल में इतनी अधिक खदानें स्वीकृत नहीं की। पन्ना जिले में शिवनारायण सिंह चौहान का कार्यकाल 4 मार्च 2016 से लेकर 30 अगस्त 2016 तक रहा है। इस अवधि में जिन्हें उपकृत किया है उनमें जिले के चर्चित जनप्रतिनिधि अथवा उनके परिजन, विभिन्न दलों के राजनेता, पत्रकार, ठेकेदार, खनन माफिया समेत कई प्रभावशाली लोग शामिल है। शायद इसीलिए सब कुछ गुपचुप तरीके से निपट गया। गौर करने वाली बात यह है कि अधिकांश खदानें जिले के दक्षिण वन मंडल अंतर्गत आने वाले क्षेत्र में स्वीकृत हुई है। जबकि दक्षिण वन मंडल के डीएफओ अनुपम सहाय ने अपनी ओर से खदानों की स्वीकृति पर कड़ी आपत्ति जताई थी। उधर कमिश्नर की अध्यक्षता वाली समिति में बतौर सदस्य शामिल रहे सहाय भी उन अधिकारियों में शामिल है जिन्होंने खदानों की स्वीकृति में अपनी मुहर लगाई है। तत्कालीन सागर कमिश्नर, पन्ना कलेक्टर के साथ समिति में दक्षिण वन मंडल डीएफओ की इस हैरान करने वाली जुगलबंदी से खदानों की स्वीकृति के मुद्दे पर उनका दोहरा मापदंड उजागर हुआ है। हालांकि वर्तमान कलेक्टर आईरिन सिंथिया जे.पी. कहती हैं कि उनके पास इसको लेकर कोई शिकायत नहीं आई है। इनको स्वीकृत हुई खदाने उपेन्द्र प्रताप सिंह पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष पन्ना को देवरी में, लुकमान मोह मद पन्ना को कैमुरिया, श्रीकांत दीक्षित कांग्रेस नेता पन्ना को बीजादोह-खिलसारी, विवेक सिंह नागौद को बछौन, श्रीकांत दीक्षित कांग्रेस नेता पन्ना को कुटरहिया, नत्थू सिंह पन्ना को झांझर, मुन्नालाल जयसवाल पवई को कैमुरिया, आनंत मसुरहा टिकरिया पवई को चौपरा, अरविन्द सिंह यादव भाजपा नेता पन्ना को झांझर, अमित सिंह पन्ना को कैमुरिया, श्रीकांत दीक्षित कांग्रेस नेता पन्ना को नारदपुर, विनोद कुमार माली दुरेहा नागौद को जूड़ा, राजेन्द्र जैन सलेहा को बीजादोह-खिलसारी, भाजपा नेता मदनमोहन पाण्डेय के पुत्र मयंक पाण्डेय सलेहा को बछौन, भाजपा नेता के भाई दिनेश कुमार पाठक नचनौरा को घुटेही, रामस्वरूप चतुर्वेदी छतरपुर को जूड़ा, जिला पंचायत सदस्य सीमा साह लिलवार को बछौन, पूर्व मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह के रिश्तेदार सतेन्द्र सिंह पन्ना को दिया, चतुर कुमारी बराहो को चौपरा, पूर्व मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह के रिश्तेदार सतेन्द्र सिंह पन्ना को बछौन, इंडिया न्यूज संवाददाता मुकेश विश्वकर्मा पन्ना को बछौन, सुषमा जैन सलेहा को बछौन, संतोष पाण्डेय कटनी को हरदुआ, कांग्रेस नेता के रिश्तेदार राजकुमार परौहा लमतरा शाहनगर को घौना, सहारा समय संवाददाता शिवकुमार त्रिपाठी ककरहटी (पन्ना) को घौना, जिला पंचायत अध्यक्ष के भाई अनुराज सिंह यादव पन्ना को घौना, सत्येन्द्र सिंह देवराकलां को ताला, जीतेन्द्र सिंह यादव मोहडिय़ा पवई को घौना, राजेन्द्र सिंह इटौरी-मझगवां को घौना, श्री प्रकाश दुबे दनवारा को पिपरिया ज्योतिष, बुन्देलखण्ड विकास प्राधिकरण उपाध्यक्ष महेन्द्र सिंह यादव पन्ना को घौना, कांग्रेस नेता रावेन्द्र सिंह कटनी को घौना, भाजपा नेता के भाई अमोद पाठक सिली गुनौर को सिली, दिनेश कुमार खरे महेबा-अमानगंज को महेबा, सरोज तिवारी घटारी पन्ना को पड़ेरी, दुष्यंत सिंह सुंगरहा-गुनौर को सुंगहरा, भाजपा नेता के रिश्तेदार सुमन पाठक सिली -गुनौर को सिली, पूर्व नगर पालिका उपाध्यक्ष पन्ना की पत्नी इन्द्रा सिंह डहर्रा को पटेलपुरा, कांग्रेस नेता श्रीकांत दीक्षित पन्ना को बिलघाड़ी, अरूण कुमार छाछरिया सतना को तिदुनिहाई, रश्मि वैद्य बिजावर-छतरपुर को टांई, कांग्रेस नेता श्रीकांत दीक्षित पन्ना को सिली, भाजपा नेता के रिश्तेदार रानी पाठक ग्राम सिली को फरस्वाहा, रश्मि वैद्य बिजावर-छतरपुर को टांई एवं कांग्रेस नेता के पुत्र करूणेन्द्र प्रताप सिंह गल्लाकोठी पन्ना की ग्राम भानपुर खदान नीलाम करें या पट्टे दें तय नहीं हो पाया लेटेराइट, क्वार्टज, स्लेट, डायस्पोर, डोलोमाइट जैसे प्रमुख खनिज (मेजर मिनरल्स) की खदानें नीलाम करें या पट्टे पर दें, राज्य सरकार डेढ़ साल में न तो यह तय कर पाई और न ही खदानें देने के नियम बना पाई। इस कारण प्रदेश को करोड़ों रुपए का राजस्व नुकसान हो रहा है, जबकि इस अवधि में करीब 200 लोगों ने खदानों में रुचि दिखाई है। प्रदेश में लेटेराइट, क्वार्टज, स्लेट, डायस्पोर, डोलोमाइट आदि खनिज बड़ी मात्रा में पाए जाते हैं। केंद्र सरकार ने इसके अलावा अगेट, बॉल क्ले, बैराइट्स, कैल्केरियस सैंड, कैल्साइट, चॉक, चीनी मिट्टी सहित अन्य क्ले, कोरण्डम, ड्रानाइट या पायरोसेनाइट, फेलसाइट, फेल्सपार, अग्निसह मृत्तिका, फुस्काइट क्वार्टजाइट, जिप्सम, जस्पर, कयोलिन, चूना कंकड़, अभ्रक, ऑकर, पाइरोफाइलाइट, क्वार्टजाइट, बालू, शेल, सिलिका बालू और स्टोटाइट या टैल्क या सोपस्टोन राज्य सरकार को सौंपे हैं। इन प्रमुख खनिजों के मालिकाना हक को लेकर केंद्र सरकार ने खान एवं खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम 1957 में संशोधन किया है। नई व्यवस्था में 31 प्रमुख खनिज राज्य सरकारों को सौंप दिए गए हैं। इसके निर्देश 10 फरवरी-15 को जारी हुए थे। राज्यों से कहा गया था कि वे अपने नियम तैयार करें और खदानों में खनिज निकालने का काम शुरू कराएं। छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र सहित प्रदेश के अन्य पड़ोसी राज्यों ने एक साल पहले ही नियम बना लिए और खदानों से उत्खनन भी शुरू कर दिया, लेकिन मध्य प्रदेश सरकार अब तक खदान देने के प्रकार को लेकर पसोपेश में है। सूत्र बताते हैं कि भाजपा कार्यकर्ताओं को उपकृत करने को लेकर प्रदेश में पसोपेश की स्थिति है। यदि सरकार खदान नीलाम करने का निर्णय लेती है, तो पार्टी से जुड़े लोगों को नीलामी प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा। ऐसे में सबसे ज्यादा बोली लगाने वाले को ही खदान मिलेगी। जबकि पट्टे का निर्णय हुआ, तो कार्यकर्ताओं को उपकृत करने की उ मीद ज्यादा रहेगी। छत्तीसगढ़ सरकार ने यही किया है। वहां पट्टे पर खदानें दी गई हैं। 9999999999999

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें