गुरुवार, 22 दिसंबर 2016

खानें खोलेंगी लक्ष्मी की राह

2 साल में 10,000 करोड़ कमाने की योजना
भोपाल। एक तरफ मप्र करीब 1,25,000 करोड़ रूपए के कर्ज के बोझ तले दबा है वहीं दूसरी तरफ प्रदेश में अवैध खनन हो रहा है। इससे सरकार को हर साल हजारों करोड़ की राजस्व हानि हो रही है। इसको देखते हुए सरकार खनन से कमाई करने के लिए कारगर तरीका अपना रही है। इसी कड़ी में पहले रेत की खदानों को देने के तरीके आसान बनाया। इस प्रक्रिया से राज्य सरकार की कमाई बढ़ी है, वहीं अवैध खनन पर रोक लगाने में भी सफलता मिली है। अब एक बार फिर आर्थिक तंगहाली से जूझ रही प्रदेश सरकार अब खजाना भरने की प्लानिंग कर रही है। उसके मद्देनजर जीआईएस अर्थात भौगोलिक सूचना तंत्र विकसित किया जा रहा है। इस सिस्टम से न केवल अवैध खनन पर अंकुश लगेगा बल्कि नए खनन क्षेत्र चिन्हीकरण व माइनिंग लीज जारी करने की प्रक्रिया में तेजी लाई जा सकेगी। इससे अगले दो साल में खान विभाग का राजस्व करीब 10 हजार करोड़ रुपए पहुंचने की संभावना है। केन्द्र सरकार की योजना के अंतर्गत जियोग्राफिकल इनफोरमेशन सिस्टम के जरिए सेटेलाइट से भोपाल में कृषि, राजस्व, माइनिंग आदि विभिन्न सेक्टरों से सम्बंधित डेटा एकत्रीकरण के आधार पर विभाग द्वारा उक्त प्लाङ्क्षनग तैयार की गई। इसमें नए खनिजों की खोज अर्थात एक्सप्लोरेशन व माइनिंग विभाग के बीच बेहतर समन्वय पर फोकस रखा गया है। अवैध खनन पर अंकुश यह सिस्टम अवैध खनन गतिविधियों पर अंकुश लगाने में कारगर साबित होगा। दो खानों के बीच का कितना पार्ट खाली पड़ा है। ऐसे प्लॉट भी मिनटों में खोजे जा सकेंगे। ऐसे प्लॉट से भी खासा राजस्व मिलने की संभावना है। फिलहाल, ऐसे बीच वाले प्लॉट पर अवैध माइनिंग अधिक की जा रही है। चूंकि खनिज भण्डारों का पूरा खाका नक्शे पर लाया जा सकेगा अत: वहां अवैध खनन गतिविधियां काफी हद तक थामी जा सकेगी। इस सिस्टम के जरिए प्रदेश में प्रधान खनिजों की खानें दो गुना होने की संभावना है। जबलपुर, रीवा, शहडोल, कटनी, बालाघाट, छिंदवाड़ा, सतना, उमरिया आदि जिलों में लगभग 500 प्रधान खनिजों की खानें चल रही हैं। सिस्टम के अस्तित्व में आने के बाद इतनी ही और खानें बढऩे की उम्मीद है। खदानों पर कैमरे, वाहनों में जीपीएस सूत्रों के अनुसार तमाम खदानों में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएंगे। इन पर जिला कलेक्ट्रेट में डेटा कलेक्शन सेंटर से नियंत्रण रहेगा। पता चला है कि इससे खनिज परिवहन में होने वाली तमाम गड़बडिय़ों पर प्रभावी रोक लगाई जा सकेगी। कितना माल भरा गया? गाड़ी का रास्ता कौन सा है? कहां पहुंची? कहां खाली हो रही है? आदि जीपीएस सिस्टम से पता लगाया जा सकेगा। संभाग स्तर पर क्षेत्रीय कार्यालयों में प्रयोगशाला नुमा डेटा कम्पाइलेशन व वेरीफिकेशन का काम होगा। ये लेब्स भोपाल में बनने वाली मुख्य लेब से जुड़ी होगी। विभागीय सूत्रों के मुताबिक इस पूरे सिस्टम पर करीब 20 करोड़ रुपए खर्च होगा। यह प्लान तैयार कर लिया गया है और भोपाल में सरकार से लेब के लिए जमीन मांगी गई है। इस सिस्टम के अस्तित्व में आने के बाद विभाग का राजस्व 5000 करोड़ रुपए प्रति वर्ष तक बढऩे की संभावना है। गौरतलब है कि चालू वित्त वर्ष में खान विभाग का लक्ष्य 5000 करोड़ रुपए रखा गया है। प्रदेश में खनिज से 3610 करोड़ रुपये की आय प्रदेश में खनिज अन्वेषण और खनिज भंडारों की खोज में आधुनिक तकनीक का लगातार इस्तेमाल किया जा रहा है। राज्य को पिछले वर्ष खनिज राजस्व के रूप में 3610 करोड़ 56 लाख रुपये की आय हुई है। विभाग ने अर्जित आय में 102 प्रतिशत उपलब्धि हासिल की है। इस वर्ष अप्रैल से अगस्त तक 5 माह में प्रदेश में खनिज से एक हजार करोड से अधिक राजस्व प्राप्त हुआ है। राज्य को हीरा खनिज के मामले में देश में एकाधिकार प्राप्त है। इसके अलावा प्रदेश में मुख्य रूप से कोयला, तांबा, मैंगनीज, लौह अयस्क, चूना पत्थर, डोलोमाइट, बाक्साइट, रॉकफास्फेट, क्ले, लेटेराइट खनिज के रूप में पाया जाता है। केन्द्र सरकार द्वारा नवीन अधिनियम लागू किये जाने के बाद प्रदेश में मुख्य खनिज की स्वीकृति के लिए नीलामी की कार्यवाही की जा रही है। इस कार्यवाही से प्रदेश को करीब 30 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष राजस्व प्राप्त होगा। चूना पत्थर, मेंगनीज, बाक्साइट, आयरन आदि खनिज ब्लाकों को चिन्हित किये जाने की कार्यवाही तेजी से की जा रही है। राज्य में पहली बारह विभिन्न गौण खनिज रेत, फर्शी पत्थर, खदानों की नीलामी में ई-आक्शन की प्रक्रिया को अपनाया गया है। ई-आक्शन की प्रक्रिया से कार्यप्रणाली में पारदर्शिता आई है। ई-आक्शन से गौण खनिज में केवल रेत से ही 10 गुने से अधिक राजस्व की प्राप्ति होगी। खनिज के परिवहन की प्रक्रिया को सरलीकरण बनाने के लिये ई-टीपी (ट्रांजिट पास) जारी किये जाने की व्यवस्था लागू की गई है। इस व्यवस्था से प्रदेश में खनिज के अवैध उत्खनन, परिवहन और भंडारण पर अंकुश लगा है। राज्य के सभी जिलों में पृथक से खनिज कार्यालय भवन का निर्माण और कम्प्यूटरीकरण पूरा किया गया है। क्षेत्रीय कार्यालय रीवा और जबलपुर में कार्यालय भवन बनाये जा रहे है। मप्र की चमकती रेत के काले कारोबार पर यूपी की नजर अवैध खनन देश के लिए एक गंभीर मसला है और किसी न किसी रूप में पूरे देश में यह धंधा चल रहा है। चाहे आंध्र प्रदेश में लौह अयस्क का मामला हो, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में बालू खनन का या झारखंड में कोयले का, देश भर में अवैध खनन माफिया की हर जगह तूती बोलती है। मप्र में खनन कारोबार के प्रति प्रदेश सरकार के नरम रवैए को देखते हुए उत्तर प्रदेश के कारोबारी और माफिया मप्र की चमकती रेत के काले कारोबार पर नजर गड़ाए हुए है। उत्तर प्रदेश में खनन माफिया का तिलिस्म कभी कोई सरकार नहीं तोड़ पाई। वहां के नदी किनारे, पहाड़ी इलाकों को छूता कोई भी जिला ऐसा नहीं बचा है, जो अवैध खनन माफिया के कब्जे में न हो। ऊपरी तौर पर देखा जाए, तो यह तस्वीर बहुत गंभीर नहीं दिखती, लेकिन इसका असली खेल तब समझ में आता है, जब यह बात सामने आती है कि समूचा धंधा राजनेताओं के संरक्षण मे फल-फूल रहा हैं। उत्तर प्रदेश के कई सांसद और विधायक सीधे तौर पर इस धंधे में जुड़े हैं। ऐसे में हमेशा वहां वर्चस्व के लिए खूनी होली मचती रहती है। ऐसे में अब वहां का कारोबारी मप्र की ओर रूख करने को आतूर है। इसके लिए उन्होंने मप्र के खनन व्यवसायियों से सांठ-गांठ शुरू कर दी है। पर्यावरण का काम करने वाले फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर के सचिव डॉ. राजीव चौहान कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में लोग बंदूक की नोक पर खनन का काम करते हैं। ऐसे में अब वहां रोज होने वाले खून-खराबें से लोग आजीज आ चुके हैं। इसलिए अधिकांश माफिया मप्र में संभावनाएं तलाश रहे हैं। डॉ. राजीव चौहान कहते हैं कि उत्तर प्रदेश के अतीक अहमद, मुख्तार अंसारी, अखंड सिंह, ब्रजेश सिंह, मुन्ना बजंरगी, धनंजय सिंह आदि जैसे बड़े बाहुबली अपने कारोबार को दूसरे राज्यों में बढ़ाना चाहते हैं। क्योंकि उनके कारोबार को कई अन्य माफिया की चुनौती मिल रही है। इसलिए इन खनन माफिया ने मध्य प्रदेश में अपना पैर जमाने की तैयारी कर दी है। अवैध रेत उत्खनन से अरबों का लगता है चूना राज्य सरकार की खनन नीति से रेत माफिया तो उत्साहित है, लेकिन यह डर भी सताने लगा है कि कहीं इस गोरखधंधे में सरकार के हाथ आने वाला हिस्सा भी माफिया न ले उड़े। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव की माने तो प्रदेश की नीति ही गड़बड़ है। राज्य सरकार ने रेत खदानें अपने चहेतों को बांट दी है। जो धड़ल्ले से अवैध खनन कर रहे हैं। सरकार हाथ पर हाथ धरी बैठी है। अवैध खनन का कारोबार भी 20 हजार करोड़ रुपए के ऊपर पहुंच गया है। प्रदेश के जिलों में लंबे समय से जमे जिला खनिज अधिकारियों के संरक्षण में माफिया के साथ मिलीभगत से रेत के अवैध उत्खनन का कारोबार चल रहा है। इससे सरकार को हर साल अरबों रुपए का चूना लग रहा है। ग्वालियर-चंबल संभाग में डबरा के पास स्थित सिंध नदी के चांदपुर घाट और रायपुर घाट पर रेत माफिया द्वारा नाव डालकर रेत का अवैध उत्खनन किया जा रहा है। खनिज विभाग के अधिकारी इसे बढ़ावा देकर वसूली कर रहे हैं। पनडुब्बी से 70-80 फुट गहराई से रेत पाइप डालकर निकाली जाती है। कई बार लाखों रुपए की लागत से उत्तरप्रदेश से बनकर आईं पनडुब्बियां पकड़ी गई हैं। परंतु रेत के काम में इतना मुनाफा है कि रेत माफिया पर कोई फर्क नहीं पड़ता। प्रदेश सरकार ने यहां रेत खदान के ठेके निरस्त कर दिए हैं, लेकिन रेत माफिया ने अधिकारियों से सांठगांठ कर करोड़ों की राजस्व चोरी कर हैं। खादी और खाकी का संरक्षण होने के कारण सिंध नदी के चांदपुर घाट, अरूसी, रायपुर, कैथोदा, बेलगढ़ा, गजापुर, लांच, चूनाघाट, विजकपुर, भैंसनारी घाट पर जमकर अवैध उत्खनन हो रहा है। राजस्थान के रेत माफिया सिंध नदी के 10-12 घाटों पर करोड़ों रूपए की बोली स्थानीय नेताओं को अघोषित पार्टनर बनाकर लगाते हैं, जहां से ठेके लेकर अरबों रूपए की रेत निकालकर दिन-रात बेची जाती है। ठेके खत्म होने के बाद अब जो रेत निकल रही है, उसकी राजस्व वसूली रॉयल्टी के रूप में खनिज विभाग के अधिकारी दिखावे के रूप में कर रहे हैं। कई बार रेत माफिया में बर्चस्व को लेकर गोली चली है। संकट में नर्मदा की सहायक नदियां मप्र की जीवनरेखा नर्मदा और उसकी लगभग एक दर्जन सहायक नदियां अपना अस्तित्व बचाने के लिए जद्दोजहद कर रही हैं। नरसिंहपुर जिले की प्रमुख नदियों शक्कर, शेढ़, सीतारेवा, दूधी, ऊमर, बारूरेवा, पांडाझिर, माछा, हिरन आदि नदियों में से कई नदियों को रेत माफिया लगभग मौत के घाट उतार चुका है। बारूरेवा, माछा, पांडाझिर, सीतारेवा, ऊमर नदी तो ऐंसी नदियां हैं कि जहां माफिया ने रेत का अंधाधुंध खनन नदी के अंदर से किया, जिससे नदी की सतह पर पानी थामने वाली कपायुक्त त्रि-स्तरीय तलहटी (लेयर) पूरी तरह उजड़ गई है। नर्मदा का हाल यह है कि उसका सीना लगातार छलनी किया जा रहा है। इससे नर्मदा के दोनों तटों पर रेत की बजाय अब कीचड़ है, नदी के अंदर से पोकलेंड मशीन के जरिए रेत निकालकर वही कार्य किया जा रहा है। शकर और शेढ़ नदी के हाल बुरे हैं। कभी इन नदियों के किनारे खरबूज-तरबूज की खेती लहलहाती थी, आज वहां उजड़ा चमन है। शकर अस्तित्व से जूझ रही है, वहीं शेढ़ को भी संकट का सामना करना पड़ रहा है। 10 सालों में तेजी से बढ़ा कारोबार मध्यप्रदेश में खनन कारोबार का पिछले दस सालों में इस कदर विस्तार हुआ है कि राज्य के हर हिस्से में खदानों का खनन हो रहा था जिसके चलते अवैध उत्खनन का ग्राफ बढ़ गया है। माफिया ने अपने पैर फैला लिए है। अवैध उत्खनन की बार-बार बढऩे की शिकायतें के बाद अब केंद्र सरकार ने खदानों की अनुमति लेने की शर्त केंद्र से अनिवार्य कर दी है। इसके चलते खनन कारोबारी घबरा गए हैं। मप्र का खनिज विभाग भी विचलित है। प्रदेश में करीब 28 जिलों में तो खनन माफिया का एकछत्र राज है। इन पर न तो सरकार हाथ डाल पा रही है और न ही जिम्मेदार अधिकारी। खनिज विभाग के अफसर तो इनकी जानकारी देना तो दूर किसी प्रकार मुंह खोलने को भी तैयार नहीं होते। यही वजह है कि कई जिलों में अवैध उत्खनन के मामले में खनन माफिया पर लगाए गए अर्थदंड के अरबों रुपए वसूल नहीं हो पा रहे हैं। अकेले मंडला एवं सीहोर जिले में ही 1300 करोड़ रुपए का अर्थदंड खनन माफिया से वसूलने में प्रशासन नाकाम साबित हुआ है। हालत यह है कि प्रदेश के तकरीबन सभी जिलों में 50 से 100 प्रकरण लंबित हैं, जिसमें खनन माफिया पर कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है। छतरपुर, रीवा, ग्वालियर में 100 से अधिक प्रकरण लंबित हैं, जबकि जबलपुर, बालाघाट, डिंडोरी, पन्ना, टीकमगढ़, सतना, सीहोर, रायसेन और देवास जिले में करीब 50 से 100 के बीच अवैध उत्खनन के प्रकरण लंबित हैं। वहीं अन्य जिलों में पचास से कम हैं। मजबूरी में वर्ष 2012 में राज्य सरकार को प्रदेश के सभी कलेक्टरों को सख्त पत्र लिखकर जुर्माने की वसूली एवं प्रकरण दर्ज करने के आदेश जारी करने पड़े, लेकिन खनिज संसाधन विभाग के मंत्रालय द्वारा जारी प्रमुख सचिव के पत्र का भी इन अफसरों पर खास असर नहीं हुआ है। अवैध खदानों से हर साल 20 हजार करोड़ का धंधा मप्र में नर्मदा, चंबल, बेतवा, केन और बेनगंगा आदि बड़ी नदियों के साथ ही अन्य नदियों में जितनी रेत खदानें हैं, वह सभी अवैध हैं। इन खदानों के संचालन में न तो एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) के नियमों का पालन हो रहा है और न ही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मापदंडों का पालन हो रहा है। नियमों को दरकिनार नदियों का कलेजा चीरकर माफिया सालाना 20 हजार करोड़ का अवैध धंधा कर रहा है जबकि सरकार को मासिक केवल 76 करोड़ की आय हो रही है। मध्यप्रदेश में रेत खदानें सोना उगलती हैं। इसी वजह से माफिया सक्रिय है। नतीजा यह है कि रेत खनन वैध कम अवैध अधिक चल रहा है। जो खदान चल रहीं हैं उनके पास पर्यावरण मंजूरी नहीं है। प्रशासन अनजान बन रहा है और अवैध उत्खनन खुलेआम जारी है। जबकि वन एवं पर्यावरण मंत्रालय दिसंबर माह में ही माइनिंग के लिए नई गाइडलाइन जारी कर चुका है। मप्र प्रदूषण बोर्ड का दावा है कि प्रदेश में जितनी भी रेत खदान चल रही है उनमें से अधिकांश के पास पर्यावरण मंजूरी नहीं है। बिना मंजूरी के सभी खदान अवैध हैं। प्रशासन को भी खदान आवंटन से पहले पर्यावरण मंजूरी की जानकारी लेना चाहिए था। रेत के अवैध उत्खनन, अवैध भण्डारण व ओव्हरलोड परिवहन के कारण नदियों की सभी स्वीकृत रेत खदानों का 90 प्रतिशत रेत पूरी तरह समाप्त हो चुका है। खनन माफिया ऐसे स्थानों से रेत का उत्खनन कर रहे है, जहां खदान स्वीकृत नहीं है। इससे नर्मदा, चंबल, बेतवा, केन, बेनगंगा आदि नदियों के हालात खनन के कारण गंभीर हैं।

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