बुधवार, 21 दिसंबर 2016

अब ट्रायफेक रखेगा औद्योगिक जमीनों का हिसाब

-अब जमीन तलाशने के लिए नहीं होना पड़ेगा परेशान
-कहां कितनी जमीन है, एक क्लिक पर मिलेगी जानकारी
भोपाल। मप्र में निवेश करने को इच्छुक निवेशकों को अपनी मन पसंद औद्योगिक जमीन तलाशने के लिए अफसरों की परिक्रमा नहीं करनी पड़ेगी। उद्योग विभाग, सातों एकेवीएन( भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर, उज्जैन, सागर और रीवा) के अलावा अब औद्योगिक क्षेत्रों की जमीनों पर अब मप्र ट्रेड एंड इन्वेस्टमेंट फेसिलिटेशन कॉर्पोरेशन(ट्राइफेक) की नजर रहेगी। कहां कितनी जमीन खाली है, किस साइज के कौन से प्लाट कहां पर हैं, जमीन के आसपास क्या लोकेशन है, ऐसी सभी जानकारियां एक क्लिक पर मिलेंगी। ज्ञातव्य है कि 22-23 अक्टूबर को इंदौर में आयोजित ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट में कई निवेशकों ने आपत्ति दर्ज कराई थी कि उन्हें अपने उद्योग को स्थापित करने के लिए सही परिवेश और औद्योगिक क्षेत्र की जानकारी नहीं मिल रही है। आरोप यह लगे की उद्योग विभाग के अधिकारी समय पर निवेश से संबंधित जमीन का विवरण भी नहीं दे पाते। निवेशकों की समस्याओं को दूर करने के लिए अब प्रदेश के सभी औद्योगिक क्षेत्रों की जमीन की कुंडली ट्रायफेक की वेबसाइट पर उपलब्ध रहेगी। समिट से पहले ही शुरू हो गया था काम विभागीय अधिकारियों का कहना है कि औद्योगिक विकास और निवेशकों की सुविधाओं के मद्देनजर इसका काम इन्वेस्टर्स समिट के पहले ही चालू कर दिया गया था, मगर अब 31 दिसम्बर तक इसको कंप्लीट अपडेट कर दिया जाएगा। इस सुविधा से अब उद्योगपतियों को जमीन देखने भोपाल, इन्दौर, पीथमपुर के अलावा ग्वालियर, उज्जैन, जबलपुर, रीवा नहीं जाना पड़ेगा। वे औद्योगिक क्षेत्र अब स्क्रीन पर ही देख सकेंगे। इतना ही नहीं, देश-विदेश में कहीं से भी बैठकर ट्रायफेक की वेबसाइट पर जमीनें तलाशी जा सकेंगी। इन जमीनों की सिर्फ जानकारी और लोकेशन ही नहीं, बल्कि कौन सा प्लाट कितना बड़ा है, उसकी कीमत क्या है, उसका विकास शुल्क क्या है और हर साल कितना लीजरेंट बनेगा ये सारी जानकारियां भी वेबसाइट पर उपलब्ध रहेंगी। इसके अलावा कौन सा औद्योगिक क्षेत्र कौन सी योजना के लिए आरक्षित है, जैसे फार्मा के जमीन कहां है या हर्बल अपैरल व फूड प्रोसेसिंग के लिए कौन से औद्योगिक एरिया हैं। इतना ही नहीं, औद्योगिक क्षेत्रों के लिए पानी और बिजली की क्या व्यवस्था है ये सारे अपडेट वेबसाइट पर दिए जा रहे हैं। सीआईआई के साथ आगे बढ़ा कदम ट्रायफेक मप्र में औद्योगिक निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के साथ आगे बढ़ रहा है। मध्यप्रदेश में 'मेक इन मध्यप्रदेशÓ को प्रोत्साहित करने के लिए इसी साल 19 जुलाई को राज्य सरकार की ओर से ट्रायफेक ने सीआईआई के साथ बतौर राष्ट्रीय भागीदार बनने का एमओयू किया। इस अनुबंध का मुख्य उद्देश्य योजनाबद्ध तरीके से प्रदेश का देश-विदेश में प्रचार कर उसकी ब्रांडिंग करना और राज्य में निवेश आकर्षित करना है। इज ऑफ डुइंग में मप्र की अच्छी स्थिति नहीं मप्र में औद्योगिक निवेश की स्थिति सरकारी दावे के विपरीत है। इज ऑफ डुइंग बिजनेस में भी मप्र की अच्छी स्थिति नहीं है। हाल ही में उद्योग एवं वाणिज्य मंत्रालय की तरफ से जारी सालाना रिपोर्ट में मध्यप्रदेश पिछले दो बार से पांचवें नंबर पर है जबकि छत्तीसगढ़ को 97.32 अंकों के साथ चौथा स्थान मिला है। आंध्र प्रदेश 98.78 अंक के साथ पहले पायदान पर है। पिछले साल आंध्र दूसरे नंबर पर था। गुजरात पिछले साल पहले नंबर पर था, लेकिन इस साल वह तीसरे पायदान पर पहुंच गया है। तेलंगाना ने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए दूसरी रैंकिंग हासिल कर ली है। पिछले साल वह 13 वीं पोजिशन पर था। वहीं हरियाणा ने 14वीं रैंकिंग से 6वें पायदान पर छलांग लगाई है। पिछले साल तीसरे स्थान पर रहा झारखंड अब फिसलकर सातवीं पोजिशन पर पहुंच गया है। जनवरी 2015 से जून 2016 तक मध्यप्रदेश सरकार को 17 हजार 882 करोड़ रुपए के पूंजी निवेश के लिए इंडस्ट्रियल एंटरप्रेन्योर मेमोरेंडम प्राप्त हुए हैं। वहीं छत्तीसगढ़ सरकार को विभिन्न उद्यमियों से 45 हजार 025 करोड़ रुपए, आंध्रप्रदेश ने 29 हजार 602 करोड़, ओडिशा ने 28 हजार 436 करोड़ रुपए, तमिलनाडु ने 23 हजार 113 करोड़ रुपए, पश्चिम बंगाल ने 20 हजार 823 करोड़, उत्तर प्रदेश ने 17 हजार 830 करोड़ रुपए, राजस्थान ने आठ हजार 563 करोड़ रुपए, पंजाब ने पांच हजार 686 करोड़ रुपए और केरल ने निवेशकों से पांच हजार 104 करोड़ रुपए का इंडस्ट्रियल एंटरप्रेन्योर मेमोरेण्डम प्राप्त किया है। 13 साल में शुरू हो सके सिर्फ दो सेज एक तरफ सरकार प्रदेश को औद्योगिक हब बनाने में जुटी हुई है। तमाम प्रकार के उद्योगों के लिए न्योता दिया गया है। वह भी बिना किसी बंधन के। उन्हें कहा गया है, आपके लिए द्वार खुला है, नाम भले सिंगल विंडो क्यों न हो। वहीं दूसरी स्थिति यह है कि प्रदेश में 13 साल में अभी तक दो सेज ही शुरू हो सके हैं। सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत मिली जानकारी से पता चला कि वर्ष 2003 से लेकर अब तक सूबे में 10 सेज अधिसूचित हुए हैं। इनमें से पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र स्थित बहु-उत्पादीय सेज और इंदौर के सूचना प्रौद्योगिकी सेज के दर्जे वाले क्रिस्टल आईटी पार्क में ही औद्योगिक इकाइयां चल रही हैं। ये दोनों सेज मध्यप्रदेश औद्योगिक केंद्र विकास निगम की इंदौर इकाई ने विकसित किए हैं। आरटीआई अर्जी के जवाब से खुलासा हुआ कि जबलपुर के खनिज उत्पाद आधारित सेज और कृषि उत्पाद आधारित सेज को गैर अधिसूचित कर दिया गया है। ये दोनों सेज मध्यप्रदेश औद्योगिक केंद्र विकास निगम की जबलपुर इकाई द्वारा विकसित किए जाने थे। सिंगरौली में हिंडाल्को इंडस्ट्रीज के विकसित किए जाने वाले एल्युमिनियम उत्पाद आधारित सेज को भी गैर अधिसूचित कर दिया गया है। इसके अलावा, पाश्र्वनाथ डेवलपर्स के इंदौर में विकसित किए जाने वाले आईटी सेज की अधिसूचना रद्द कर दी गई है। टीसीएस, इन्फोसिस और इम्पेटस इंदौर के अलग-अलग स्थानों पर अपने आईटी सेज विकसित कर रही हैं। तीनों कंपनियों के आईटी सेज वर्ष 2013 में अधिसूचित हुए थे। अब सजग हुआ विभाग मध्यप्रदेश में यदि अभी तक संपन्न इन्वेस्टर्स मीट के परिणामों पर नजर दौड़ाएं, तो हालत ये है कि दस फीसदी एमओयू भी धरातल पर नहीं उतर सके हैं। इसको देखते हुए सरकार ने ट्राइफेक को भी निवेशकों के लिए सक्रिय कर दिया गया है। ज्ञातव्य है कि सरकार की पहल और उद्योगपतियों के लिए बेहतर सुविधाएं देने के वादे से प्रभावित होकर बड़े निवेशकों ने रुचि दिखाई, लेकिन अभी तक उसका प्रतिफल जमीन पर नहीं दिख रहा है। हालांकि सरकार का दावा है कि प्रदेश में उद्योग एवं विकास की दिशा में चलाई जा रही मुहिम का असर देशी व विदेशी निवेशकों पर भी दिख रहा है। यही कारण है कि देश के औद्योगिक घरानों, जिनमें अंबानी, अडानी, जेपी ग्रुप, टाटा समूह, सहारा और अब पतंजलि ने भी प्रदेश में निवेश की इच्छा जताई है। बड़े प्रोजेक्टों को जमीन आवंटन का अधिकार ट्रायफेक को प्रदेश में बड़े प्राजेक्टों को जमीन आवंटन का अधिकार ट्राइफेक को है। ट्रायफेक 100 करोड़ से लेकर 500 करोड़ रुपए तक के बड़े प्रोजेक्टों को जमीन आवंटित करता है। ऐसे में जमीनों की कुंडली उसके पास होने से निवेशक आकर्षित होंगे। वहीं 100 करोड़ तक के अधिकार एकेवीएन के पास हैं। उल्लेखनीय है कि 23 अक्टूबर को संपन्न हुई ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में इंदौर एकेवीएन के पास उद्योग लगाने के लिए 100 से ज्यादा प्रस्ताव आए हैं। ये सभी प्रस्ताव 10 करोड़ से लेकर 100 करोड़ रुपए तक के हैं। इन सभी औद्योगिक प्रस्तावों की लागत लगभग डेढ़ लाख करोड़ रुपए है। अब इन उद्योगों के लिए जमीन आवंटन का सिलसिला शुरू होना है। एकेवीएन इंदौर के एमडी कुमार पुरुषोत्तम का कहना है कि इनकी डीपीआर मिलने के बाद इन्दौर या अन्य आसपास औद्योगिक क्षेत्रों में जमीनें आवंटित की जाएंगी। इनका कहना है... -प्रदेश में औद्योगिक विकास सरकार की प्राथमिकता में है। प्रदेश में लैंड बैंक का रिकार्ड कई वेबसाईटों पर डाला गया है। निवेशकों की सहुलियतों के लिए हर कारगर कदम डठाए जा रहे हैं। वीएल कांताराव आयुक्त, उद्योग विभाग - प्रदेश में औद्योगिक विकास में कई तरह की बाधाएं हैं। हमने पूर्ववर्ती यूपीए सरकार से मांग की थी कि सेज पर से मैट और डीडीटी वापस लिये जाएं। लेकिन तब हमें राहत नहीं मिली। फिलहाल एनडीए केंद्र की सत्ता में है, लेकिन यह सरकार भी हमारी मांग के सिलसिले में अब तक कोई फैसला नहीं ले सकी है। गौतम कोठारी अध्यक्ष, पीथमपुर औद्योगिक संगठन - प्रदेश के औद्योगिक विकास को लेकर जब हमने जानकारी मांगी तो हमें दिए गए दस्तावेजों में बताया गया की प्रदेश में अभी तक दो ही सेज बने पाए हैं। अब सरकार ट्राइफेक पर जमीनों को दर्शाकर क्या करना चाह रही है? चंद्रशेखर गौड़ सामाजिक कार्यकर्ता नीमच बॉक्स... यशोधरा अभी भी उद्योग मंत्री प्रदेश को औद्योगिक हब बनाने के लिए उद्योग विभाग को हाईटेक बनाया गया है। ताकि विभाग की वेबसाइट पर भी प्रदेश के औद्योगिक विकास को देखा जा सके। लेकिन यह हाईटेक विभाग किस तरह काम कर रहा है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उद्योग विभाग की वेबसाइट पर अभी भी उद्योग मंत्री के तौर पर यशोधरा राजे सिंधिया का नाम अंकित है। जबकि वर्तमान राजेंद्र शुक्ल उद्योग मंत्री हैं।

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