गुरुवार, 22 दिसंबर 2016

शिव 'राजÓ के नौ रत्न नौकरशाह

भोपाल। मप्र में अभी मिशन 2018 का बिगुल बजा नहीं है, लेकिन भाजपा सरकार को सत्ता की चिंता सताने लगी है। दरअसल, संघ से मिली रिपोर्ट के अनुसार भाजपा के 90 विधायकों के क्षेत्र में पार्टी की स्थिति बदतर है। इसमें आधा दर्जन मंत्रियों का भी क्षेत्र है। वहीं दूसरी तरफ सरकार की कार्यप्रणाली से विधायक, सांसद, पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं में असंतोष है। यही नहीं कुछ मंत्री भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और नौकरशाही के रवैए से खफा हैं। यानी कुल मिलाकर प्रदेश में लगातार चौथी बार भाजपा की सरकार बनने में चुनौतियों का पहाड़ खड़ा है। लेकिन तमाम बाधाओं के परिलक्षित होने के बाद भी शिवराज सिंह चौहान के माथे पर शिकन नजर नहीं आ रही है। जबकि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भाजपा संगठन संशय में है। दरअसल, शिवराज को अपनी प्रशासनिक क्षमता और अपने नौ-रत्न नौकरशाहों पर भरोसा है कि ऐन मौके पर वे अपनी रणनीति से मैदान मार लेंगे। शिव 'राजÓ के ये नौ रत्न हैं- राधेश्याम जुलानिया, दीपक खांडेकर, इकबाल सिंह वैश्य, मनोज श्रीवास्तव, मो. सुलेमान, अशोक वर्णवाल, एसके मिश्रा, विवेक अग्रवाल और पुलिस महानिदेशक ऋषिकुमार शुक्ला। प्रदेश की प्रशासनिक वीथिका में यह चर्चा जोरों पर है कि मुख्यमंत्री ने इन अफसरों को चुनावी रणनीति बनाने के लिए फ्री-हैंड दे दिया है। इस अफसरों को सरकार की लोक लुभावन नीतियों को जमीनी स्तर तक पहुंचाना है ताकि सरकार के प्रति जनता का विश्वास और मजबूत हो सके। वैसे देखा जाए तो शिवराज सिंह चौहान का कभी कोई निशाना खाली नहीं गया और हर सियासी फैसला सही साबित हुआ। इसलिए राजनीतिक और प्रशासनिक विशेषज्ञ शिवराज के इस कदम को दमदार बता रहे हैं। वहीं शिवराज के नौ-रत्नों में जिन अफसरों का नाम आया है उनमें से अधिकांश की कार्यप्रणाली से न तो संघ और न ही भाजपा संगठन संतुष्ट है। राधेश्याम जुलानिया: 1985 बैच के आईएएस अफसर जुलानिया को अखड़ और कड़क अफसर माना जाता है। अपने काम के प्रति मूडी जुलानिया हमेशा विवादों में रहते हैं। इसकी वजह है उनका अपने काम के प्रति समर्पण। सरकार से मिले दिशा-निर्देश का पालन करवाने के लिए वे कई बार तानाशाह बन जाते हैं। कई बार तो वे विभागीय मंत्रियों को भी दुत्कार देते हैं। इसलिए उन्हें विभागीय अफसर पसंद नहीं करते हैं, लेकिन जनता के बीच उनकी अच्छी छवि है। उन्हें ईमानदार और जनता के प्रति संवेदशील अफसर माना जाता है। वे जिस विभाग में रहते हैं उस विभाग में ईमानदारी और लगन से काम करने वाले अधिकारियों, कर्मचारियों और ठेकेदारों की खुब पूछ परख रहती है। हालांकि उन पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे, लेकिन कोई शिकायत दर्ज नहीं हुई है। उन्होंने करीब 7 साल जल संसाधन विभाग की कमान संभाली। इन दौरान करीब 50 हजार करोड़ से ज्यादा का बजट खर्च किया। विभाग में अरबों रुपए के भ्रष्टाचार की शिकायत हुई। जांच किसी की नहीं कराई गई। अपने चहेते रिटायर अधिकारी को संविदा आधार पर लगातार 5 बार ईएनसी बनवाने में सफल रहे। नरोत्तम मिश्रा को विभाग मिलने के बाद संगठन के भारी दबाव में जुलानिया को हटाया गया और ग्रामीण विकास विभाग की काम सौंपा गया है। लेकिन उनके तेवर वही है। संघ के आरोप और मुख्यमंत्री की विभागीय समीक्षा के बाद वे और आक्रामक हो गए हैं। वे रोजाना किसी न किसी अफसर को फटकार लगाकार यह साबित करने में जुटे हैं की सरकार आम आदमी के प्रति कितनी संवेदनशील है। दीपक खांडेकर: 1985 बैच के ही आईएएस दीपक खांडेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के विश्वास पात्र अधिकारी है। मुख्यमंत्री की किसी भी महत्वपूर्ण और गोपनीय बैठक में उनकी उपस्थिति सरकार में उनकी अहमियत को दर्शाती है। खांडेकर को मैदान के साथ ही विभागों की अच्छी जानकारी है। इसलिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें अपने नौ-रत्न में जगह दी है। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने प्रदेश में हुए विकास कार्यों से आम जनता को अवगत कराने का व्यापक प्रचार अभियान चलाने के निर्देश दिए हैं। जन संकल्प, मंथन और दृष्टिपत्र के साथ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 'सुशासन के 11 वर्षÓ पर जो फीडबैक लेना शुरू किया है, इसकी जिम्मेदारी खांडेकर को दी गई है। सीएम की अध्यक्षता में समिति की पहली बैठक में एसीएस खांडेकर ने वर्ष 2005 से 2016 के बीच प्रदेश में हुए आर्थिक और सामाजिक विकास की जानकारी दी। उन्होंने लोगों के जीवन सुधार पर भी बिन्दुवार बताया। समिति इसलिए गठित की गई है कि राज्य सरकार और विभाग के प्रमुख अधिकारी सुशासन पर फीडबैक ले सकें। इकबाल सिंह बैस: 1985 बैच के आईएएस इकबाल सिंह बैस शिवराज सिंह चौहान के प्रिय अफसरों में से एक हैं। उनकी ईमानदार और सख्त मिजाज अफसर की छवि है। शिवराज की मंशानुसार अफसरों की मैदानी जमावट में माहिर इस अफसर पर मिशन 2018 की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। इकबाल पर शिवराज को इतना भरोसा है कि वे उन्हें हमेशा अपने पास रखते हैं। 2013 से पहले भी सीएच सचिवालय में रहे। दिल्ली से साल भर के भीतर प्रतिनियुक्ति से वापस लौटे और फिर सीएम सचिवालय में पदस्थ किए गए। संघ के भारी दबाव में बैस को सीएम सचिवालय से हटाया गया है। मुख्यमंत्री की प्राथमिकता वाले आनंद विभाग की जिम्मेदारी उन्हें दी गई है। आज भी मुख्य सचिव एंटानी डिसा के बाद पूरी प्रशासनिक व्यवस्था उनके हाथ में है। मनोज कुमार श्रीवास्तव: 1987 बैच के आईएएस मनोज कुमार श्रीवास्तव को शिव 'राजÓ का बौद्धिक शिल्पी कहा जाता है। यही कारण है की मनोज कुमार श्रीवास्तव हमेशा शिवराज की गुड बुक में रहते हैं। अफसरों में समन्वय, तालमेल, उत्साह और आत्मविश्वास भरने के साथ ही मंत्रालय में गण और तंत्र के बीच प्रशासनिक दूरी को समाप्त करने का श्रेय उन्हीं को जाता है। मनोज श्रीवास्तव ने न केवल मंत्रालय को आम लोगों के लिए सुलभ बनाने की दिशा में काम किया, बल्कि उनकी समस्याओं को सुनकर उनके यथासंभव समाधान का प्रयास भी किया। मनोज श्रीवास्तव कुशल प्रशासक और सरकार के बौद्धिक चिंतक बनकर उभरे हैं जो मुख्यमंत्री की टीम मध्यप्रदेश में हरफनमौला की अहम भूमिका से न्याय करते नजर आते हैं। विधानसभा चुनाव में भाजपा की लगातार तीसरी बार सरकार बनाने का श्रेय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के करिश्माई व्यक्तित्व और लोकप्रियता को जाता है तो इसमें प्रशासनिक अधिकारियों का समन्वय और कड़ी मेहनत को नकारा नहीं जा सकता। मनोज श्रीवास्तव तो मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार की हैट्रिक के बाद आइडिया गुरु साबित हुए हैं। इंदौर कलेक्टर के रूप में अपनी धाक जमा चुके मनोज श्रीवास्तव वैसे रेवेन्यू के एक्सपर्ट माने जाते हैं। इंदौर-भोपाल सहित प्रदेश के कई बड़े भूमि घोटाले उजागर करने की बात हो या फिर सरकारी जमीन को अवैध कब्जों से मुक्त कराने का मामला ही क्यों न हो, श्रीवास्तव ने अपने कर्तव्य और दायित्वों को बखूबी अंजाम दिया। समाज के हर तबके को लाभान्वित करने की एक से बढ़कर एक योजनाएं बनाने में भी उनकी कुशाग्र बुद्धि और नेतृत्व का अहम योगदान रहा। यही नहीं, भाजपा सरकार की योजनाओं के प्रचार-प्रचार और उन्हें अमलीजामा पहनाया जिसने जन-जन में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को लोकप्रिय बना दिया। जबकि मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रीद्वय अर्जुन सिंह और मोतीलाल वोरा की जो इमेज सत्ता में रहते हुए तत्कालीन ब्यूरोक्रेसी ने बिल्डअप की थी उसने दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों को आम जनता से दूर कर दिया था, ऐसा पब्लिक परसेप्शन माना जाता था। इसका विपरीत प्रभाव भी इन दोनों नेताओं के राजनीतिक कैरियर में देखा जा सकता है। लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस मामले में अपवाद साबित हो रहे हैं। प्रदेश की कमान संभालने के बाद शिवराज सिंह चौहान ने खुद को मुख्यमंत्री नहीं, बल्कि जनता का सेवक बताया था। प्रशासन ने शिवराज सिंह चौहान की उसी छवि को आगे बढ़ाया। उसी का परिणाम है कि भाजपा मध्यप्रदेश की सत्ता में हैट्रिक बना चुकी है और इसमें प्रशासनिक तंत्र की भूमिका को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की छवि गढऩे को लेकर विपक्ष प्रशासनिक तंत्र पर गाहे-बगाहे निशाना साधता रहा है। बेटी बचाओ, मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन से लेकर मां तुझे प्रमाण देश में अपनी तरह की योजनाएं हैं जिन्हें लागू करने का श्रेय मध्यप्रदेश को मिला। इन योजनाओं के जरिए समाज के बड़े हिस्से को सीधे गवर्नेंस से जोड़ा गया। मुख्यमंत्री निवास को आम जनता के करीब लाने के उद्देश्य से पंचायतों का सिलसिला शुरू किया गया। सीएम हाउस में होने वाली समाज के हर तबके की पंचायतों का नया आइडिया भी मनोज श्रीवास्तव की देन रहा, जिसके चलते युवा, कोटवार, हाथ ठेला, केश शिल्पी और कामकाजी महिलाओं के साथ-साथ हर समाज वर्ग की पंचायतें मुख्यमंत्री निवास पर करवाई गईं। मध्यप्रदेश सरकार की तीर्थदर्शन जैसी अभिनव योजना की प्रशंसा तो पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी सार्वजनिक रूप से कई कार्यक्रमों में कर चुके हैं। लोप्रोफाइल माने जाने वाले मनोज श्रीवास्तव की गिनती उन अफसरों में होती है जो नियमों की आड़ लेकर फाइलों को लंबे समय तक अटकाए रखने की बजाए समय-सीमा में उसका निराकरण करने में अधिक दिलचस्पी दिखाते हैं। कह सकते हैं कि श्रीवास्तव ही वे अफसर हैं जिन्होंने आम लोगों की समस्याओं को जाना, समझा जिसके बाद उनकी सुनवाई भोपाल में होने लगी। उन्होंने मुख्यमंत्री की जो तस्वीर जनता के सामने पेश की उसमें शिवराज सिंह आम आदमी ही नजर आते हैं। मनोज श्रीवास्तव ने मुख्यमंत्री की मंशा के अनुरूप नई और अनुपम योजनाओं का खाका तैयार किया और उनके क्रियान्वयन को भी संभव कर दिखाया। सरकार की लगभग सभी लोकलुभावन योजनाओं के शिल्पकार के साथ-साथ मंत्रियों, प्रशासनिक अधिकािरयों, मुख्यमंत्री और सरकार के प्रशासनिक संकटमोचक के रूप में मनोज श्रीवास्तव का नाम लिया जा सकता है। ब्यूरोक्रेसी द्वारा इम्प्लीमेंट की गई योजनाओं का ही नतीजा है कि शिवराज सिंह ने किसान, गरीब, दलित, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, युवा बेरोजगार, व्यापारी सहित अनेक वर्गों के लिए काम किया जिसमें सत्ता, संगठन और ब्यूरोक्रेसी का समन्वय देखने को मिला। प्रदेश में सरकार की हैट्रिक के पीछे जो बड़ा योगदान था वह मनोज श्रीवास्तव का ही था जिन्होंने मुख्यमंत्री द्वारा की गई घोषणाओं का क्रियान्वयन बड़ी तत्परता और मुस्तैदी से किया। मनोज श्रीवास्तव के आईक्यू ने ही जिलों के कलेक्टरों से लेकर पटवारी तक के लिए कार्यक्रम बनाए जिन्हें पूरा भी किया गया। मध्यप्रदेश की जनता के लिए मनोज श्रीवास्तव के पिटारे में अभी भी बहुत कुछ है, जिसको वे मिशन 2018 को फतह करने के लिए निकालेंगे। मोहम्मद सुलेमान: 1989 बैच के आईएएस मोहम्मद सुलेमान हमेशा सरकार के दमदार अफसरों में शामिल रहे हैं। प्रदेश सरकार की महत्वपूर्ण योजनाओं को उन्होंने क्रियान्वित किया है। ये कांग्रेस सरकार में भी पॉवरफुल रहे। प्रदेश में बिजली व्यवस्था को सुदृढ़ करने के बाद अब ये फरवरी 2014 से उद्योग विभाग की कमान संभाल रहे हैं। ये इतने रसूखदार हैं कि मंत्री यशोधरा सिंधिया से जब उद्योग विभाग छिना तब उन्हें यह टिप्पणी करनी पड़ी कि एक बाबू ने उनका विभाग बदलवा दिया। दरअसल, इसके पीछे मुख्यमंत्री की मंशा दिखती है। राज्य में यह सर्वविदित तथ्य है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अधिकारियों के माध्यम से अपने मंत्रियों पर नजर रखते हैं और उनका नियमित रिपोर्ट कार्ड भी बनवाते हैं। जो मंत्रियों को पसंद नहीं है। वैसे सुलेमान की कार्यप्रणाली पर सवाल उठते रहे हैं लेकिन सरकार ने कभी उन सवालों को तरजीह नहीं दिया। अभी सुलेमान पर इन्वेस्टर्स समिट को ऐतिहासिक बनाने की जिम्मेदारी है। इसलिए वे मुख्यमंत्री और मंत्री के साथ निरंतर विदेशों का दौरा कर रहे हैं। अशोक वर्णवाल: 1991 बैच के आईएएस अशोक वर्णवाल एक दिन में ही इतने पावरफुल हो गए की कई अफसर उनसे जलने लगे हैं। वर्णवाल को मुख्यमंत्री का प्रमुख सचिव बनाया गया है।इकबाल सिंह बैस की जगह अशोक वर्णवाल जैसे आईएएस को मिलेगी यह शायद किसी ने कल्पना नहीं की होगी। वास्तव में मुख्यमंत्री के इस कदम ने साफतौर पर संकेत दिया है कि अच्छे काम के साथ मिलनसारिता और सबसे प्रमुख बात जनप्रतिनिधियों को प्राथमिकता देने की मानसिकता रखने वाले अधिकारियों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जाएगी। यहां लिखने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि अशोक वर्णवाल का जो स्वभाव रहा है वह इन बातों पर पूरी तरह खरा उतरता है। उन्होंने पीडीएस में बेहतर काम करके अपनी प्रशासनिक योग्यता को बखूबी सिद्ध किया है। इसके साथ वे मिलनसार होने के अतिरिक्त सहज व सरल स्वभाव के अधिकारी हैं। चूंकि सरकार ने अपना आधा कार्यकाल पूर्ण कर लिया है। आने वाले समय में मुख्यमंत्री सचिवालय में तैनात अधिकारी की कारगुजारी को लेकर जनप्रतिनिधि कोई शिकायत न करें। इस बात पर भी अशोक वर्णवाल खरे उतरेंगे ऐसी शायद मुख्यमंत्री की मंशा रही है। एसके मिश्रा: 1991 बैच के आईएएस एसके मिश्रा को मुख्यमंत्री का आंख-कान कहा जाता है। शिव 'राजÓ के सपनों को साकार करवाने में मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव एसके मिश्रा की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। इंदौर, रायसेन, गवालियर, हरदा, रीवा, देवास, सिहोर, इत्यादि शहरों में प्रमुख पदों पर अपनी सेवाएं देने के कारण इनकी मैदानी पहुंच काबिले तारीफ है। वर्तमान में प्रमुख सचिव जनसंपर्क के रूप में कार्य करके प्रदेश की मीडिया को अपने परिवार का हिस्सा बनाकर मीडिया के हित में नीतिगत निर्णय लेकर चौथे स्तम्भ को स्वतंत्रता के साथ काम करने की ताकत प्रदान कर रहे हैं जो अपने आप में एक बड़ी बात है। साथ ही सरकारी योजनाओं की जानकारी जनता तक पहुंचाने की जिम्मेदारी भी इन पर है। उल्लेखनीय है कि 2013 के विधानसभा चुनाव के अवसर पर प्रदेश के हर जिले में विधानसभावार उम्मीदवारों की हैसियत तलाशी गई। यह सर्वे एसके मिश्रा की देखरेख में हुआ। इस सर्वे में उनकी पूरी मदद कर जिलों के कलेक्टर्स और एसपी ने किया। रिपोर्ट के आधार पर टिकट दिया गया था। इस बार भी सरकार उनसे ऐसा सर्वे करा सकती है। विवेक अग्रवाल: 1994 बैच के आईएएस विवेक अग्रवाल 2010 से सीएम सचिवालय में जुड़े हैं और एमपीआरडीसी, पीडब्ल्यूडी के पदस्थ रह चुके हैं। वर्तमान में आयुक्त नगरीय प्रशासन, सचिव, मेट्रो रेल कार्पोरेशन के एमडी और सचिव मुख्यमंत्री हैं। मुख्यमंत्री ने इन्हें स्मार्टसिटी और मैट्रो जैसी दो बड़ी योजनाओं की जिम्मेदारी सौंपी है। ये योजनाएं प्रदेश में विकास का मापदंड प्रदर्शित करेंगी। ऋषि कुमार शुक्ला: उपरोक्त आईएएस अफसरों के साथ ही पुलिस महानिदेशक ऋषि कुमार शुक्ला भी शिवराज सिंह चौहान के नौ रत्नों में शामिल है। 1983 बैच के आईपीएस अफसर ऋषि कुमार शुक्ला सर्विस रिकॉर्ड के मुताबिक अगस्त 2020 में रिटायर होंगे। यानी 2018 विधानसभा चुनाव संपन्न करवाने में उनकी भी महत्वपूर्ण भूमिका रहेगा। प्रदेश में कानून-व्यवस्था को सुदृढ़ करवाने के साथ ही जनता के मन में सुरक्षा की भावना पैदा करवाने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी इन पर है। मुख्यमंत्री में अपनी जमावट से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भाजपा संगठन को संदेश दे दिया है कि तथाकथित बेलगाम नौकरशाही पर उनकी पकड़ मजबूत है और इन्हीं के दम पर मप्र में लगातार चौथी बार भाजपा की सरकार बनेगी। अब भले ही भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने नौकरशाहों के भ्रष्टाचार की बात कही है, शिव काबिना के मंत्रियों ने नौकशाहों को निरंकुश बताया है, संघ पहले से ही मध्यप्रदेश में बिगड़ते हालत को लेकर चिंतित हो लेकिन शिवराज को लेसमात्र भी चिंता नहीं है। क्योंकि शिवराज नौकरशाहों को कसना जानते हैं। अब एसी कमरे छोड़ फील्ड में पसीना बहाना होगा राजधानी में लगे सभी आईएएस अफसरों को अब एसी कमरों में बैठकर योजनाओं की समीक्षा करने की जगह फील्ड में पसीना बहाना पड़ेगा। सभी आईएएस को जिलों में जाकर योजनाओं की जमीनी हालत का निरीक्षण करने और जनता की समस्याओं का समाधान भी करना होगा। दरअसल मंत्रिमंडल से रूखस्त होने के बाद बेलगाम होती नौकरशाही के लिए बाबूलाल गौर ने घोड़े की बजाए घुड़सवार को निशाने पर लिया है। इसका जवाब देने के लिए मुख्यमंत्री ने यह योजना बनाई है। वैसे इसमें कोई शक नहीं कि नौकरशाहों पर नियंत्रण घोड़े की सवारी जैसा ही होता है। यदि घुड़सवार अनाड़ी हो तो घोड़ा दुलत्ती भी मारता है और घुड़सवार को पटकनी भी देता है। गौर के आक्षेप में आंशिक सच्चाई भले ही हो, लेकिन शिवराज ने अपनी तीसरी पारी शुरू करने के बाद अपने घोड़ोंं को कह दिया है कि उसे उनके ही इशारे पर कदम ताल करना है। केवल उनकी ही लगाम के कमांड को समझना है। वो कहें तो दौड़ो। वो कहें तो ठिठक जाओ। वो कहें तो नाचो। नौकरशाही रूपी घोड़ों ने घुड़सवार के संदेश और संकेत को पूरी तरह समझ लिया है। इसलिए वह सिर्फ और सिर्फ शिवराज के संकेतों की ही भाषा समझता है। और अब मुख्यमंत्री ने संकेत दे दिया है कि नौकरशाही चुनावी मोर्चा संभाल ले ताकि आलोचकों को जवाब दिया जा सके। मुख्यमंत्री के निर्देशों के बाद मुख्य सचिव एंटानी डिसा ने सभी एसीएस, प्रमुख सचिवों और सचिवों को आदेश जारी कर हर महीने कम से कम पांच दिन 3 जिलों का फील्ड निरीक्षण और वहां की समस्याओं का समाधान करने के लिए कहा है। इन आईएएस अफसरों को फील्ड निरीक्षण की रिपोर्ट मुख्यमंत्री को भेजने के निर्देश दिए गए हैं। मुख्यमंत्री को भेजी जाने वाली रिपोर्ट में हर दिन का जिक्र करना होगा। योजनाओं की जमीनी हालात जानकर उन्हें प्रभावी तरीके से लागू करने की दिशा में इसे बड़े कदम के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि आईएएस अफसर फील्ड विजिट में कितनी सजगता दिखाते हैं और इसके कितने सार्थक परिणाम मिलते हैं। यह अभी कहना मुश्किल होगा, क्योंकि पुराना अनुभव बताता है कि फील्ड विजिट में अफसरों की रूचि नहीं होती है। सोशल मीडिया पर होना होगा सक्रिय मुख्यमंत्री चौहान चाहते हैं कि प्रदेश का हर अफसर सीधे जनता से जुड़े ताकि सरकार के कामकाज का सही आकलन हो सके। मैदानी स्तर पर योजनाओं का कितना पालन हो रहा है और जनता के बीच सरकार की क्या छवि है। इसकी जानकारी लग सके। लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तमाम कोशिशों के बाद भी प्रदेश के आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अफसर जनता से दूरी बनाए हुए हैं। उनका आम आदमी से कोई सीधा संवाद नहीं है। जबकि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और खुद मुख्यमंत्री चौहान सोशल मीडिया के जरिए सरकार के कामकाज का फीडबैक ले रहे हैं। राज्य में दो साल बाद विधानसभा चुनाव हैं। ऐसे में सरकार की कार्यप्रणाली पर संगठन की पूरी नजर है। विधायक, मंत्री और अफसरों की कार्यप्रणाली को लेकर संगठन सख्ती भी बरत रहा है। इसे देखते हुए मुख्यमंत्री ने मैदानी कार्यों का फीडबैक लेने सोशल मीडिया का सहारा लिया है। चौहान ने अफसरों को भी सोशल मीडिया पर एक्टिव होने के निर्देश दिए थे। राज्य में 10 से 20 फीसदी आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अफसर सोशल मीडिया पर हैं, लेकिन ये भी फेसबुक, वॉट्सएप, इंस्टाग्राम के माध्यम से सिर्फ अपने सहयोगी, मित्र और परिजनों से जुड़े हैं। इनमें हाल ही में सर्विस में आए अफसरों की संख्या ज्यादा है। जबकि पुराने अफसर सोशल मीडिया से दूरी बनाए रखे हैं। इनमें से कुछ अफसर एंड्रॉयड फोन भी नहीं रखते।

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