गुरुवार, 22 दिसंबर 2016

युवा कलेक्टर चमका रहे ब्यूरोक्रेसी का चेहरा।

मध्य प्रदेश में बदल रही बिगड़ी नौकरशाही भोपाल। विश्व में भारत और देश में मप्र की नौकरशाही सबसे बदनाम है। लेकिन मप्र के युवा कलेक्टर नौकरशाही का चेहरा बदलने में लगे हुए है। जिन युवा नौकरशाहों को कलेक्टरी सौंपी गई है, वे अपने जिले में सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन के साथ ही अपने स्तर पर भी समाज में कुछ न कुछ कार्य कर लोगों का दिल जीत रहे हैं। यानी कोई कलेक्टर शिकायत करने वालों का चाय पिलाकर स्वागत करते हैं तो कोई कलेक्टर महिलाओं को खुद पढ़ाकर साक्षर बनाने में जुटी हुई हैं। यानी युवा कलेक्टरों के सामाजिक सरोकार से मध्य प्रदेश में यह धारणा गलत साबित हो रही है कि नौकरशाह केवल दफ्तर में आराम करने के लिए होते हैं। प्रदेश में युवा अधिकारियों की टीम एक नया अध्याय लिख रही है। इससे लोगों को लाभ हो रहा है और लंबे समय से बदलाव की बाट जोह रही राज्य की बिगड़ी हुई नौकरशाही भी बदल रही है। नौकरशाही शब्द जहां एक ओर अपने नकारात्मक अर्थों में लालफीताशाही, भ्रष्टाचार, पक्षपात, अहंकार, अभिजात्य उन्मुखी, अपनी प्रकृति के लिए कुख्यात है तो दूसरी ओर प्रगति, कल्याण, सामाजिक परिवर्तन एवं कानून व्यवस्था व सुरक्षा के संवाहक के रूप में भी जाना जाता है। लेकिन कुछ नौकरशाहों की कार्यप्रणाली के कारण पूरी बिरादरी को संदेह की नजर से देखा जाता है। लेकिन मप्र के युवा नौकरशाह इस धारणा को बदल रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी फ्लैगशिप योजनाओं के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी जिन युवा कलेक्टरों को सौंपी है उनमें से अधिकांश अपनी कार्यप्रणाली से इतिहास रच रहे हैं। राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित संकेत भोंडवे 2007 बैच के आईएएस संकेत भोंडवे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के ट्रंफ कार्ड सिद्ध हो रहे हैं। यानी सरकार ने जो कार्य सौंपती है वे उससे दो कदम आगे निकल जाते हैं। भोंडवे ने होशंगाबाद कलेक्टर रहते अपने कार्यों से केंद्र सरकार को भी मोहित किया था। भोंडवे ने 8 अगस्त 2014 को होशंगाबाद के 113 वे कलेक्टर के रूप में ज्वाइनिंग दी थी। नि:शक्तों के विवाह, दिव्यांग पार्क, रोजगार, सेवा में जिले को देश में पहली पंक्ति में लाकर खड़ा किया। केंद्रीय वित्तीय मंत्री अरुण जेटली ने राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया। कृषि महोत्सव में पुरस्कार मिला। महिला बाल विकास के क्षेत्र में बेहतर कार्य करने पर स्कॉच स्मार्ट अवॉर्ड मिला। स्वरोजगार क्षेत्र में कार्य करने पर 17 जुलाई को ही मुख्यमंत्री ने सम्मानित किया। विस्थापन कार्य और धार्मिक आयोजनों का बेहतर काम किया। अब उनके ऊपर महाकाल की नगरी उज्जैन की जिम्मेदारी है। उज्जैन सीएम शिवराज सिंह चौहान की पसंदीदा जगह है। संकेत भोंडवे को उनकी गुड लिस्ट के चलते ये जगह दी गई हैं। सीएम उज्जैन को 5 बेहतर जिलों में शामिल करना चाहते हैं। इसलिए संकेत भोंडवे को बेहतर क्षमताओं के चलते उज्जैन की कमान सौंपी है। शार्प माइंड के कारण मुख्यमंत्री की गुड लिस्ट में 2009 बैच के आईएएस अविनाश लवानिया को वर्तमान में होशंगाबाद की कमान मिली है। 1835 में जिला घोषित हुए होशंगाबाद के लवानिया 114वें कलेक्टर हैं। वे भारतीय प्रशासनिक सेवा अकादमी मैसूर से गोल्ड मेडलिस्ट हैं। लवानिया ने सिंहस्थ में मेला अधिकारी और उज्जैन नगर निगम कमिश्नर का कार्य बड़ी कुशलता से संपन्न कराया। उज्जैन में बड़ी जिम्मेदारी सफलतापूवर्क निभाने के कारण ही मुख्यमंत्री ने उन्हें होशंगाबाद की जिम्मेदारी सौंपी है। जिले की कमान संभालते ही लवानिया ने जनता के बीच अपनी पैठ बनाने के लिए क्षेत्र में अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। आलम यह है कि वे जनता से मिलने आम आदमी की तरह पहुंच जाते हैं। अविनाश लवानिया दिल्ली आईआईटी से इलेक्ट्रॉनिक्स से इंजीनियरिंग पास आउट हैं। सीएम हेल्पलाइन की लॉंचिंग में लवानिया का विशेष योगदान है। भोपाल में लंबे समय तक आईटी सेल संभाली। बालाघाट में जिला पंचायत सीईओ भी रहे। अविनाश लवानिया प्रदेश के कैबिनेट मंत्री नरोत्तम मिश्रा के दामाद हैं। इसके अलावा सबसे यंग और शार्प माइंड होने के कारण मुख्यमंत्री की गुड लिस्ट में शामिल हैं। समस्याएं सुनाओ और मुफ्त में चाय पीकर जाओ अभी तक अपनी बदहाली के लिए ख्यात उमरिया अब कलेक्टर अभिषेक सिंह के नवाचारों के लिए जाना जाने लगा है। अभी तक इस जिले में कलेक्टर आम आदमी के लिए दुर्लभ हुआ करते थे लेकिन 2010 बैच के आईएएस अभिषेक सिंह ने अपने एक कदम से लोगों का दिल जीत लिया है। जिले के दूरदराज के गांव से जनसुनवाई में आने वालों को अभी तक कोई पानी के लिए भी नहीं पूछता था लेकिन कलेक्टर अभिषेक सिंह ने एक नई पहल की है जिसके तहत शिकायकर्ता को कलेक्ट्रेट में मुफ्त में चाय पीने को दी जा रही है। इस पहल के पीछे कलेक्टर की सोच है कि हर जनसुनवाई में लगभग 150 लोग पहुंचते हैं जो दिनभर भूखे प्यासे भटकते रहते हैं। उन्हें कम से कम हम चाय तो पिला ही सकते हैं। कलेक्टर ने नई व्यवस्था की है जिसके तहत ग्रामीणों को टोकन दिया जाता है जिसे लेकर वे कैंटीन जाते हैं और फ्री में चाय पीते हैं। अब आलम यह है कि जनसुनवाई में 200-250 लोग पहुंच रहे हैं। आवेदकों का कहना है कि कलेक्टर की इस पहल से वे काफी खुश हैं। वे कहते हैं कि शिकायत करने आते समय हमें कोई पानी के लिए नहीं पूछता था। अब कलेक्टर साहब चाय पिला रहे हैं जिससे हम बेहद खुश हैं। माफिया पर इलैया राजा का अंकुश 2009 बैच के आईएएस इलैया राजा टी भिंड कलेक्टर हैं। इनकी जिले की जनता के बीच ऐसी छवि है कि प्रदेश में जब भी तबादलों का दौर शुरू होता है भिंड की जनता घबरा जाती है। लोगों का कहना है कि उन्होंने क्षेत्र के माफिया पर अंकुश लगाकर रखा है। विगत एक साल में उन्होंने अंचल में जहां क्राइम को रोकने में सफलता पाई है, तो वहीं माफिया पर अंकुश लगाया है। वर्तमान में जिस तरह विकास की दृष्टि से पिछड़े भिंड जिले को विकास की मुख्यधारा से जोडऩे का काम ईमानदार स्वच्छ प्रशासन के जरिए किया जा रहा है, उससे 90 फीसदी आमजन खुश है, जिस तरह आम व्यक्ति की शिकायत के निराकरण वाट्सएप पर महज मैसेज डालने से हो रहा है, उससे सबसे ज्यादा गरीब तबके के चेहरों पर मुस्कुराहट दिखाई दे रही है, भिंड को स्वच्छ बनाने, नकल मुक्त बनाने, विद्यालयों में अच्छी शिक्षा व्यवस्था कायम करने की जो अच्छी पहल जिलाधीश ने शुरू की है, वह अभी सिर्फ शुरुआती दौर में है। स्थानीय लोगों का कहना है कि एक ओर चुनाव के दौरान राजनीतिक पार्टियां दावा करती हैं कि विकास को करने के लिए पांच वर्ष कम पड़ते हैं इसलिए उन्हें ज्यादा समय का मौका मिलना चाहिए और जनता ने उनकी इस नीतिगत बात का मान रखा और कांग्रेस को लगातार 10 वर्ष और भाजपा 15 सालों से लगातार सत्ता पर काबिज है, अब यदि भिंड की जनता चाहती है कि वर्तमान जिला प्रशासन की सेवाएं कम से कम तीन वर्षों के लिए भिंड मेें रहनी चाहिए तो क्या गलत चाहती है। शायद भिंड के लिए यह पहले जिलाधीश होंगे जिनको रात को 12 बजे भी साइड पर देखा गया, यही नहीं रात्रि में यदि 12 बजे भी कोई जिलाधीश को समस्या से अवगत कराता है तो वे उस समस्या को त्वरित कार्रवाई में जुट जाते हैं। भिंड जिले में यदि सबसे कठिन काम को उन्होंने अंजाम दिया है तो वह नकल पर नकेल लगाने का कार्य है, फर्जी शिक्षण संस्थाओं में तालाबंदी के साथ-साथ सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई शुरू हो इसकी भी पहल कर रहे हैं, वह भी अधूरी रह जाएगी, सुरक्षा कानून व्यवस्था के मामले में भी भिंड को असमाजिक तत्वों पर नकेल डालने में पुलिस अधीक्षक भी जिलाधीश के परस्पर सहयोग से कामयाब हुए हैं। फोन पर भी सुनते हैं समस्याएं एक तरफ प्रदेश में जहां थाना इंचार्ज भी अनजान नंबर से आने वाले फोन रिसिव नहीं करते वहीं राजगढ़ के कलेक्टर तरुण कुमार पिथोड़े फोन पर भी समस्याएं सुनने और जमीनी हकीकत जानने की कोशिशकरते हैं। व्यावसायिक परीक्षा मंडल के संचालक रहे तरुण कुमार पिथोड़े 2009 बैच के आईएएस अधिकारी हैं। उनके इस नवाचार से जहां जनता अपनी समस्याओं से जहां कलेक्टर को अवगत करा रहे हैं वहीं अधिकारियों में भी खौफ है। पिथोड़े ने फोन पर लोगों की समस्याओं को सुनने और जमीनी हकीकत जानने के लिए एक नंबर शुरू किया है। पिथोड़े के अनुसार पहले ही दिन उन्हें फोन पर 35 लोगों ने अपनी समस्याएं बताईं, जिनमें दो समस्याओं का मौके पर ही निराकरण किया गया। इसके साथ ही अन्य समस्याओं को तत्काल संबंधित अधिकारियों को भेजकर मौका- मुआयना कराने के निर्देश दिए गए। उसके बाद अब लगातार लोगों के फोन आने की संख्या बढ़ती जा रही है। गौरतलब है कि जिला काफी बड़ा होने के साथ-साथ करीब सौ किमी से भी अधिक के दायरे में फैला हुआ है। ऐसे में कई गरीब शिकायतकर्ता जिला मुख्यालय तक पहुंच भी नहीं पाते हैं। पिथोड़े कहते हैं कि इससे एक फायदा यह भी होता है कि जब शिकायतकर्ता सामने होता है, तो वह अपनी शिकायत को बताने में काफी अधिक समय ले लेता है, जिससे अन्य शिकायतकर्ता जनसुनवाई में अपनी शिकायत उन तक पहुंचा ही नहीं पाते थे, लेकिन फोन पर सिर्फ शिकायतकर्ता का नाम, उसका पता, उसकी समस्या व उसका मोबाइल नंबर ही लेना होता है। ऐसे में कई सारे आवेदकों की समस्याओं को बैठकर आसानी से सुना व समझा जा सकता है। इसके साथ ही आवेदकों का जिला मुख्यालय तक आने का खर्च भी बचेगा। शिक्षा की अलख जगाने का प्रयास 2007 बैच के आईएएस शशांक मिश्रा आदिवासी बहुल बैतूल जिले में शिक्षा की अलख जगा रहे हैं। पूर्व में सिंगरौली कलेक्टर रहने के साथ ही वे होशंगाबाद जिले में जिला पंचायत मुख्य कार्यपालन अधिकारी तथा सहायक जिलााधीश के पद का जिम्मेदारी से निर्वाह कर चुके हंै। अब मिश्रा बैतूल में हर बच्चे को साक्षर बनाने के मिशन में जुटे हुए है। साथ ही जिले को कुपोषण से मुक्त करने के लिए कार्य कर रहे हैं। यही नहीं आमजन से मिलने वाली शिकायतों पर अमल करवाने के लिए खुद सक्रिय हैं। साथ ही सरकारी उपक्रमों का हाल जानने के लिए छापामार कार्रवाई भी कर रहे हैं। इसी कड़ी में गतदिनों जिला अस्पताल अचानक पहुंच कर कलेक्टर ने पूरी व्यवस्था की पोल ही खोल दी। जब पीछे से दरवाजे से कलेक्टर शशांक मिश्र जिला अस्पताल का निरीक्षण करने पहुंचे डॉक्टर्स अस्पताल में नहीं मिले। इसके पहले विधायक हेमंत खंडेलवाल ने अस्पताल का निरीक्षण किया उन्हें भी डॉक्टर्स नहीं मिलने पर नाराजगी जताई थी और वे बायोमैट्रिक मशीन का प्रिंट ले गए थे। डॉक्टर्स ने उन्हें वार्ड में राउंड पर होने का हवाला दे दिया था, लेकिन कलेक्टर मिश्र तो सुबह सवा 8 बजे जिला अस्पताल पहुंचे। इस दौरान कलेक्टर ने डॉक्टर्स की इस लापरवाही को लेकर सख्त कार्रवाई की हिदायत दी। कलेक्टर शशांक मिश्र ने किसी को भनक ना लगे इसलिए गाड़ी भी दूर खड़ी करवाई। अस्पताल के अंदर दाखिल होने पर उन्होंने डॉक्टर्स के बारे में पूछा और हाजिरी रजिस्टर देखा। इस दौरान कुछ डॉक्टर्स आ चुके थे, जबकि कुछ नहीं आए थे। इस पर कलेक्टर ने अनुपस्थित डॉक्टर्स की गैरहाजिरी लगाई और अनुपस्थित डॉक्टर्स के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के निर्देश दिए। उल्लेखनीय है कि विधायक को अस्पताल के निरीक्षण के दौरान कुल 23 डॉक्टर्स अनुपस्थित मिले थे, तो कलेक्टर को निरीक्षण के दौरान 13 डॉक्टर अनुपस्थित मिले। छात्रों के लिए आदर्श बने कलेक्टर साहब 2007 बैच के आईएएस अधिकारी स्वतंत्र कुमार सिंह मध्य प्रदेश के शहडोल जिले के बिरसिंहपुर में जन्मे स्वतंत्र की प्रारंभिक पढ़ाई कोल माइंस क्षेत्र के स्कूलों में ही हुई। स्वतंत्र की उपलब्धि किसी मिसाल से कम नहीं। स्कूल में वे औसत छात्र थे। कभी क्लास में अव्वल नहीं आए, लेकिन फस्र्ट आने वाले छात्र को देखकर उनकी इच्छा जरूर होती थी। विपरीत कंडीशन में मुकाम हासिल कर आज छात्रों के लिए आदर्श बने हुए हैं। वर्तमान समय में मंदसौर के कलेक्टर के साथ ही वे छात्रों के लिए मार्गदर्शक भी बने हुए हैं। मंदसौर एक प्रोग्राम के दौरान छात्रों को उन्होंने बताया था कि आईएएस की तैयारी के दौरान उनके पिता को किडनी की प्रॉब्लम हो गई थी। वहीं, मां को कैंसर था। दोनों की सेवा के साथ पढ़ाई भी पूरी की और आईएएस का एग्जाम क्लियर किया। नौवीं कक्षा में तय किया था कि क्लास में पहला स्थान हासिल करना है। खूब मेहनत की और सफल रहे, लेकिन दसवीं और बारहवीं में फिर पिछड़ गए। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और आज मिसाल बने हुए हैं। वे जिले में छात्रों के बीच शिक्षा की अलख जगाए हुए हैं। कुपोषण से मुक्ति की बना रहे युक्ति खंडवा में जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी एवं पदेन अपर कलेक्टर (विकास) रहे अमित तोमर वर्तमान में डिंडोरी जिले के कलेक्टर हैं। 2009 बैच के इस आईएएस अधिकारी ने जिले में कुपोषण से मुक्ति के लिए अभियान चला रखा है। भोपाल में हुई कमिश्रर-कलेक्टर कांफ्रेंस में मनरेगा में अच्छा काम करने पर डिंडोरी कलेक्टर अमित तोमर और सीईओ को सीएम ने बधाई दी। तोमर लगातार जिले के गांवों का दौरा कर रहे हैं। कलेक्टर इस दौरान मुख्यमंत्री युवा उद्यमी योजना, मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना, मुख्यमंत्री आर्थिक कल्याण योजना, प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम, मुख्यमंत्री ग्रामीण आवास मिशन समेत सभी योजनाओं की जमीनी हकीकत जान रहे हैं। वह कहते हैं कि समय सीमा में हर योजना पूरी होनी चाहिए तभी लोगों को उसका फायदा मिल सकेगा। गांव की विकास योजना में ग्रामीणों की भागीदारी मण्डला कलेक्टर प्रीति मैथिल का मानना है कि जिले की विकेन्द्रीकृत जिला योजना के लिए गांव को ईकाई मानकर कार्य किया जाय तो जल्दी विकास होगा। 2009 बैच की आईएएस अधिकारी प्रीति मैथिल इसी आधार पर काम कर रही हैं। उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि गांव की मूलभूत आवश्यकताओं का प्राथमिकता क्रम गांव के निवासियों, समुदाय की भागीदारी से ही ग्राम की योजना तैयार की जाये। इसके लिए ग्राम की विकास योजना निद्र्यारित समय सीमा में बनाई जाना सुनिश्चित की जाये। इस योजना में पूर्व में आयोजित ग्राम उदय से भारत उदय अभियान के दौरान प्राप्त गतिविधियों को भी शामिल किया जाना चाहिए। एक साधारण परिवार में पैदा होने के बाद अपनी शिक्षा और संघर्ष के बल पर सीहोर का नाम रोशन करने वाली प्रीति मैथिल इससे पूर्व नीमच में अपर कलेक्टर के रूप में पदस्थ थीं। प्रीति मैथिल सीहोर के रेलवे स्टेशन रोड स्थित शारदा विद्या मंदिर में पढ़ी हैं। इसी स्कूल से उन्होंने हायर सेकंडरी स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। इस दौरान वे हर कक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होती थीं। उच्च शिक्षा में भी उन्होंने बेहतर प्रदर्शन किया। ज्वाइन करते ही पहुंचे समाधान ऑनलाइन कार्यक्रम में मप्र के युवा आईएएस अधिकारियों के काम का जुनून कैसा है इसका नजारा इसी से मिलता है कि जब सागर के नए कलेक्टर विकास नरवाल ने कलेक्टोरेट में पदभार ग्रहण किया और दो मिनट कुर्सी पर बैठे, दो फाइलों पर दस्तखत किए। एक फाइल कार्यभार ग्रहण करने व दूसरी फाइल जिला कोषालय की थी। इसके तुरंत बाद वे सीधे सूचना केंद्र पहुंचे। जहांजहां मुख्यमंत्री समाधान ऑनलाइन कार्यक्रम में भाग लिया। वहां उन्होंने सागर के बदौना गांव के किसान परसादी पटेल की समस्या के समाधान के लिए मुख्य सचिव के सामने उसका पक्ष रखा। समाधान ऑनलाइन कायक्रम में बदौना गांव के किसान परसादी पटेल का सब्सिडी से जुड़ा मामला लंबित था। कलेक्टर विकास नरवाल ने इस प्रकरण में किसान की ओर से पक्ष रखा कि उद्यानिकी में कम जुताई की खेती होती है। इसलिए उद्यानिकी विभाग में 20 हार्स पॉवर से कम शक्ति का ट्रैक्टर किसानों को देने की योजना है। लेकिन किसान तो उद्यानिकी और कृषि विभाग में विभाजित नहीं है इसलिए शासन द्वारा उद्यानिकी विभाग को भी कृषि विभाग की योजना के बराबर लाभ उपलब्ध कराया जाए। इस पर मुख्य सचिव ने कृषि और उद्यानिकी के वरिष्ठ अधिकारियों से चर्चा करके राज्य स्तर पर निर्णय लेने का आश्वासन दिया है। इससे प्रभावित किसान को आगे चलकर लाभ मिलने की उम्मीद बढ गई है। इससे पहले वे नीमच में कलेक्टर रहे। सर्वसुलभ कलेक्टर भरत यादव 2008 बैच के आईएएस भरत यादव को आसानी से उपलब्ध हो जाने वाले कलेक्टर के रुप में याद रखा जाएगा। बालाघाट कलेक्टर के रूप में इन्होंने नक्सलियों से निपटने के लिए कई योजनाएं क्रियान्वित कर रखी हैं। भरत यादव सामाजिक सरोकारों से जुड़े मामलों में आसानी से उपलब्ध हो जाते थे। चाहे वह तालाब की सफाई का काम हो या फिर आशादीप विशेष विद्यालय के छात्रों की सुविधाओं का ख्याल हो। कलेक्टर के रुप में रहते हुए कलेक्टर ने सामाजिक सरोकारों का खास ख्याल रखा। निर्भिक आईएएस जिस से कांपते हैं माफिया राजस्थान सीकर की बेटी आईएएस अफसर स्वाति मीना नायक मध्यप्रदेश में मिसाल पेश कर रही है। स्वाति वर्तमान में खंडवा कलेक्टर हैं। वर्ष 1984 में जन्मीं स्वाति ने साढ़े 22 साल की उम्र में वर्ष 2007 में आईएएस की परीक्षा पहले ही प्रयास 260वीं रैंक से उत्तीर्ण कर ली थी। तब ये अपने बैच में सबसे कम उम्र की थीं। जिला कलकटर के रूप में इनकी पहली पोस्टिंग मंडला में वर्ष 2012 में हुई थी। तब इनकी उम्र महज 28 साल थी। तेज-तर्रार काम करने के तरीके और निर्भिक विचारों वाली स्वाति मीना को नो नॉनसेंस एडमिनिस्ट्रेटर के रूप में भी जाना जाता है। वे अपने काम के प्रति इतनी ईमानदार हैं कि अपने काम में किसी तरह से भी राजनेताओं का हस्तक्षेप और निकम्मे अधिकारियों को पसंद नहीं करती। गौरतलब है कि स्वाति के पति तेजस्वी नायक भी ऐसे ही अफसर हैं। वे बड़वानी कलेक्टर हैं। कहते हैं डीएम स्वाति नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में भी फील्ड में जाकर लोगों की समस्याओं को सुनना और उसे दूर करना पसंद करती हैं। अपने पति की ही तरह नेताओं की गैरवाजिब मांगों को उन्होंने कभी नहीं तवज्जो दी। वे जनता से सुनकर उनकी जरूरत के मुताबिक काम करने को तरजीह देती हैं। कलेक्टर स्वाति मीणा ने खंडवा जिले में 100 प्रतिशत साक्षरता का लक्ष्य रखा है। इसे पाने की पहल उन्होंने खुद से की है। वे दो महिलाओं को खुद पढ़ाकर साक्षर बनाएंगी। इनमें एक महिला कलेक्ट्रेट में काम करती है, जबकि दूसरी महिला आश्रय गृह में रहती है।

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