गुरुवार, 22 दिसंबर 2016

उद्योगों की बलि चढ़ी चढ़े किसान, ग्रामीण और आदिवासी...

60,00,00,00,000 की जमीन हड़पी सरकार ने
भोपाल। धीरूभाई अंबानी को लेकर एक किस्सा सुनाया जाता है, जो उन्होंने अपने सहयोगी से कहा था-हम कहां उद्योग धंधा लगाएं, यह बात पहले तय करते हैं और फिर उसके बाद जमीन कबाड़ते है। जमीन भी हमारे लिए एक तरह का रॉ-मटेरियल ही है। आज अधिकांश कार्पोरेट घराने यही कर रहे हैं, जो यह नहीं कर पा रहे हंै वे ऐसा ही करने की कोशिश कर रहे हैं और कार्पोरेट घरानों की मंशा को पूरा कर रही हैं सरकारें। मप्र में भी यही हो रहा है। पिछले 8 साल से मध्य प्रदेश को औद्योगिक हब बनाने के लिए राज्य सरकार ने अब तक 10 इंवेस्टर्स समिट का आयोजन कर अरबों रूपए फूंका है, इन सब के बावजुद प्रदेश में औद्योगिक निवेश छत्तीसगढ़ से भी कम हुआ है। इसको देखते हुए मप्र सरकार ने निवेशकों को आकर्षित करने के लिए प्राकृतिक संसाधनों के साथ ही किसानों, ग्रामीणों और आदिवासियों की बलि चढ़ाकर 1.20 लाख एकड़ लैंड बैंक तैयार किया है। जिसकी बाजारू कीमत करीब 60,00,00,00,000 रूपए है। प्रदेश के लाखों लोगों का हक छिनकर तैयार इस लैंड बैंक के भू-खंड को देश-विदेश के धनाढ्य औद्योगिक घरानों को दिया जाएगा, लेकिन इससे प्रदेश और यहां के वासियों को फायदा होगा की नहीं यह कोई नहीं जानता। क्योंकि प्रदेश में कृषि से लेकर वन भूमि तक उद्योगों के नाम पर पिछले कई सालों से बांटी गई है, लेकिन फायदा ढेलाभर भी नहीं हुआ है। उद्योग विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, यह तथ्य सामने आया है कि 22-23 अक्टूबर को इंदौर में आयोजित ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट-2016 में भले ही उद्योगपतियों, निवेशकों ने यहां 5.62 लाख करोड़ के निवेश करने की मंशा जाहिर की है, लेकिन उद्योगपतियों का रूझान मप्र के प्रति कम दिखा। इसको भांपते हुए सरकार में उद्योगपतियों और निवेशकों को लुभाने के लिए जमीनों की बंदरबांट करने की योजना बनाई है। इसके लिए ग्रीन बेल्ट के साथ ही किसानों, ग्रामीणों और आदिवासियों की जमीन हड़पी जा रही है। जिसके विरोध में लोग आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं। यह भूमि कहां से प्राप्त हुई? प्रदेश में उद्योग लगाने वाले उद्योगपतियों को आसानी से भूमि उपलब्ध हो सके, इसके लिए उद्योग विभाग ने 1 लाख 20 हजार एकड़ भूमि को शामिल करते हुए लैंड बैंक तैयार करने का दावा किया है। लेकिन लैंड बैंक की इतनी ाूमि कहां से आई है यह उद्योग विभाग द्वारा नहीं बताया जा रहा है। समाजवादी जन परिषद के अनुराग मोदी कहते हैं कि मप्र सरकार उद्योगों को देने के लिए जो 1.20 लाख एकड़ जमीन आरक्षित की है, वो गैरकानूनी है। यह मप्र राजस्व पुस्तक परिपत्र, पंचायती राज कानून और उच्चत्तम न्यायालय के निर्देशों की खुली अवहेलना है। वह कहते हैं कि गांव के संसाधन कौडिय़ों के मोल लुटाने की साजिश है। उद्योग विभाग के सूत्रों के अनुसार, मप्र सरकार ने उद्योगों के लिए जो लैंड बैंक तैयार किया है उसमें प्रदेश में लगभग 300 क्षेत्र चिंहित किए गए हैं, जिसमें लगभग 1.20 लाख एकड़ जमीन उद्योगों को देने के लिए की आरक्षित की गई है। इसमें अधिकांश जमीन आज भी राजस्व रिकार्ड में चरनोई आदि नाम से दर्ज है। यह जमीन, जिला और तहसील मु यालयों से जुड़े गांवों की हाईवे और प्रमुख मार्गों से लगी होने के करण बेशकीमती है। लैंड बैंक में आरक्षित यह सारी जमीन मप्र राजस्व पुस्तक परिपत्र खंड 4, क्रमांक 1 के प्रावधानों का खुला उल्लंघन है। इसके अनुसार इन सार्वजानिक उपयोग की जमीनों को नजूल या सरकार की मिलकियत में शामिल नहीं किया जा सकता। यही नहीं नीलेंद्र प्रताप सिंग विरुद्ध मप्र सरकार मामले में उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुसार गांव में 2 प्रतिशत चरोखर जमीन बची रहना जरुरी है। चरोखर जमीनों के मद परिवर्तन के प्रक्रिया धारा 237 मप्र भू राजस्व सहिंता में वर्णित है। मप्र पंचायत राज अधिनियम के अनुसार कलेक्टर को इस हेतु संबंधित ग्राम-सभा की मंजूरी लेना जरुरी है, जो किसी भी मामले में नहीं ली गई है। यानी नियमों को ताक पर रखकर उद्योगपतियों को बेशकीमती जमीनी देने की तैयारी की जा रही है। अगर हम मप्र सरकार के 'कमिश्नर लैंड रिकार्ड्सÓ की वेब साईट पर प्रदेश के सभी जिलों के नगरीय क्षेत्रों के लैंड बैंक की जमीनों की तालिका में इन जमीनों की नोईयत देखें तो समझ आएगा कि असल में यह सब सार्वजनिक जमीन है यानी चरनोई, खलिहान, श्मशान, तालाब, कदीम, पारतल, आबादी, पहाड़ और ना जाने क्या-क्या नाम से दर्ज है। मुगलों से लेकर अंग्रेजों के समय तक जो जमीन समुदाय के अनेक तरह के उपयोग के लिए नियत थी, जैसे चराई, आबादी, तालाब, कु हार की मिट्टी आदि उन्हें गांव के 'बाजुल उर्जÓ (राजस्व रिकार्ड) में दर्ज कर दिया जाता था। मप्र राजस्व सहिंता के खड 4, क्रमांक 1 के अनुसार सिर्फ ऐसी जमीन को नजूल या सरकार की मिलकियत में शामिल किया जा सकता है जो किसी गांव के खाते में शामिल ना हो, जो बंजर, झाड़ीदार जंगल, पहाडिय़ों, और चट्टानों, नदियों, ग्राम वन या शासकीय वन ना हो, जो ग्राम की सड़कों, गोठान, चराई भूमि, आबादी या चारागाह के रूप में अभिलिखित ना हो, जो ग्राम निस्तार या किसी भी सार्वजानिक प्रयोजन के लिए आरक्षित ना हो। यानी इन सारी जमीनों को नजूल या सरकारी मिल्कियत की जमीन में नहीं बदला जा सकता। यह जमीन गांव के विकास के लिए उपयोग की जाना चाहिए। लेकिन सरकार अपने ही नियमों को दरकिनार कर गांवों और ग्रीन बेल्ट की जमीनों को पूंजीपतियों पर लुटाने को अमादा है। अनुराग मोदी कहते हैं कि एक-तरफ भूमिहीन दलित और आदिवासी जमीन को तरस रहे है, सरकार के पास विस्थापितों को देने के लिए जमीन नहीं है। वहीं उद्योगों को इक_े और इतनी मात्रा में जमीन देने की तैयारी कर ली गई है, लेकिन इसका फायदा प्रदेश को कितना होगा यह कोई बताने को तैयार नहीं है। उधर नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री मेधा पाटकर, समाजवादी जन परिषद के अनुराग मोदी, जल-जन जोड़ो अभियान के संयोजक और सामाजिक कार्यकर्ता संजय सिंह, किसान जागृति संगठन के प्रमुख इरफान जाफरी, जलपुरूष राजेन्द्र सिंह आदि का आरोप है कि सरकार ने नर्मदा घाटी के सरदार सरोवर से विस्थापितों के लिए जो लैंड बैंक बना रखा था उसे में उद्योगों के नाम पर हड़प लिया गया है। मप्र शासन से वर्ष 1999 में सर्वोच्च अदालत में दर्ज जानकारी के मुताबिक विस्थापितों के लिए बनाए गए लैंड बैंक में 8000 हैक्टेयर की जमीन उपलब्धता थी, पर उसे अनदेखा करके विस्थातिपों को मात्र खराब, अनुपजाऊ पथरीली जमीन दिखाकर पुनर्वास से वंचित रखा गया। अब ऐसी ही करीब 15,000 हैक्टेयर भूमि को भी उद्योगों के लिए बनाए लैंड बैंक में शामिल कर लिया गया है। जबकि विस्थापित आज भी जमीन के लिए भटक रहे हैं। आरोप है कि सरदार सरोवर परियोजना से विस्थापित हजारों परिवार जमीन का हक कानूनन होते हुए भी सरकार से उन्हें सही खेती लायक जमीन नहीं मिली इसलिए उन्हें विशेष पुनर्वास अनुदान याने नगद पैकेज देकर फंसा दिया गया। सरकार ने जमीन न देकर-नकद मुआवजे का प्रावधान इसलिए किया ताकि आसानी से भ्रष्टाचार किया जा सके। न्यायमूर्ति एसएस झा आयोग की 7 सालों की जांच से निकला कि 1589 फर्जी रजिस्ट्रियों का घोटाला किया गया है। आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि नगद राशि देने की गलत नीति के कारण यह भ्रष्टाचार हुआ है और अधिकारी तथा दलाल इसके लिए दोषी हैं। मेधा पाटकर कहती हैं कि सही लैंड बैंक छुपाकर, उद्योगों के लिए आरक्षित रखने के कारण हुए इस पूरे जमीन घोटाले के लिए अब मात्र विस्थापित (क्रेता) व विक्रेता, जिनमें कि पूरी निर्धनता से फंसाए गए आदिवासी, बालाई/दलित, कोई अंध, जिनमें कोई विधवा शामिल है के खिलाफ दलालों के साथ अपराधी प्रकरण दाखिल कर रहे हैं। इसमें दलालों और आरोपियों की सूची में आयोग की ओर से डाले गए अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही की भी कोई खबर नहीं है। झा आयोग द्वारा दोषी करार होते हुए भी अन्य अधिकारियों को भी भ्रष्टाचार के हर मुद्दे में बचाने की पूरी साजिश सरकार रच रही है। इसमें कोर्ट को भी भ्रमित किया जाकर, सही कानूनी आधार पर सुनवाई टालने की कोशिश भी है। वेंडर सबलीज पर दे सकेगा जमीन सरकार जरूरतमंदों से खेती, चरनोई या रहवासी क्षेत्र की जमीन लेकर उद्योगपतियों को कई सहुलियतों और रियायतों के साथ देने जा रही है। लैंड बैंक में उपलब्ध 1 लाख 20 हजार एकड़ भूमि में से 15 हजार एकड़ भूमि को औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विकसित किया जा चुका है। औद्योगिक क्षेत्र में भूमि के मूल्य को नियंत्रित रखने के लिए आउटर इन्फ्रास्ट्रक्चर का कार्य राज्य शासन द्वारा अनुदान के रूप में किया जा रहा है। इसके साथ ही इंटरनल इन्फ्रास्ट्रक्चर पर होने वाले खर्च का 40 फीसदी हिस्सा भी सरकार ही खर्च कर रही है। इस व्यवस्था से औद्योगिक क्षेत्र में भूमि का मूल्य 200 रुपए प्रति वर्गफीट से कम ही रहता है। औद्योगिक भूमि एवं प्रबंधन भवन नियम में संशोधन कर यह व्यवस्था की गई है कि औद्योगिक इकाई 99 वर्ष की अवधि के लिए भूमि लीज पर ले सकती है। औद्योगिक भूमि लीज पर प्राप्त करने के बाद वित्तीय संसाधन जुटाने के लिए बैंक को मॉडगेज की जा सकती है। इसके लिए उद्योगपति को अलग से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होगी। भूमि आवंटन संबंधी नियम में यह भी प्रावधान रखा गया है कि लीज पर ली गई औद्योगिक भूमि वेंडर इकाइयों को सबलीज पर दी जा सकती है। जमीन को लेकर उद्योगपति और निवेश भी कितने उतावले हैं इसका नजारा बाबा रामदेव के शब्दों में मिलता है। बाबा रामदेव के अनुसार 45 एकड़ भूमि तो मात्र कबड्डी खेलने के लिए होती है? यानी किसानों, ग्रामिणों और आदिवासियों से टुकड़ों-टुकड़ों में जो जमीन छिनी गई है उसे हड़पने के लिए निवेशकों ने भी बड़े-बड़े हवाई प्रोजेक्ट बनाकर मप्र सरकार को लुभाया है। मेधा पाटकर कहती हैं कि इस जानकारी को तत्काल सामने लाना चाहिए और नवीनतम जानकारियों से लोगों को अवगत कराया जाना चाहिए। जरूरत से ज्यादा जमीन लेकर अपने गेस्ट हाउसेस, हरियाली और बगीचे ही नहीं, मल्टीप्लेक्स और रियल स्टेट भी बढ़ाने वाले नए जमीनदार बन रहे हैं ये निवेशक-उद्योगपति। प्रदेश के 4 एकेवीएन भोपाल, इंदौर, ग्वालियर व उज्जैन में 2398 हेक्टेयर भूमि में 20 औद्योगिक क्षेत्रों में 1017 करोड़ रुपए के अधोसंरचना विकास के कार्य करवाये जा रहे हैं। इनमें धार जिले के दो औद्योगिक क्षेत्र उज्जैनी व हातोद को शामिल किया है। उज्जैनी में 76 हेक्टेयर में 35 करोड़ तथा हातोद में 142 हेक्टेयर में 30 करोड़ के विकास कार्य संचालित हैं। इन औद्योगिक क्षेत्रों में एप्रोच रोड, बिजली, पानी और उद्योग से जुड़ी अन्य बुनियादी सुविधाएं विकसित की जा रही हैं। जो जमीन उद्योगपतियों को दी जा रही है, वह भूमि वास्तव में किसानों से अधिग्रहित होकर या ग्राम पंचायतों से बिना अधिग्रहण करके ली जा रही है। घराने तैयार कर रहे अपना लैंड बैंक सरकार जहां एक तरफ प्रदेश में औद्योगिक निवेश के लिए लैंड बैंक बना रही है वहीं एक बहुत बड़ा खेल कार्पोरेट जगत कर रहा है और वह है 'लैंड बैंकÓ बनाने का। लगभग सभी बड़े घरानों की अपनी लैंड बैंक है। वे उसका इस्तेमाल नहीं कर रहे है और इंतजार कर रहे है कि कब वह जमीन और महंगी हो और वे उसका उपयोग ज्यादा व्यावसायिक तरीके से करें। यह बात सही है कि विकसित होते हुए भारत के लिए नए एयरपोर्ट, बंदरगाह, रेल लाइनें, हाइवेज, उद्योग धंधे आदि के लिए जमीन की जरूरत है और यह सब जमीन पर ही बन सकते है हवा में नहीं। जमीन अधिग्रहण को लेकर सरकार का इरादा है कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े सेना के हथियारों के उद्योग, बड़े विद्युतीकरण प्रोजेक्ट्स और गरीबों को घर देने की परियोजनाओं के लिए ही भूमि अधिग्रहण करेगी। सुनने में यह बात अच्छी लगती है, लेकिन व्यवहार में ऐसा होता नहीं है। सरकार को अधिग्रहण के लिए केवल गरीब किसानों की ही जमीन नजर आती है। बड़े-बड़े उद्योग घरानों और उनके द्वारा हथियाई गई जमीन पर सरकार की निगाह नहीं जाती। वास्तव में सरकार को पहले ऐसी जमीनें अपने नियंत्रण में लेनी चाहिए। जानकारों का कहना है कि यह जमीने अलग-अलग कार्पोरेट घरानों ने अलग-अलग नामों से हथिया रखी है। बड़े कार्पोरेट घराने देश की बेशकीमती जमीन पर अपने कब्जे की कोई जानकारी सार्वजनिक नहीं करते। जानकारी के अनुसार, पर्ल ग्रुप के पास करीब एक लाख एकड़ जमीन है। मुकेश अंबानी की कंपनियों के पास करीब 70 हजार एकड़ जमीन है। गौतम अडानी 20 हजार एकड़ से ज्यादा जमीन पर कब्जा रखते हैं और दस हजार 600 एकड़ का इजाफा होने वाला है। अडानी की ज्यादातर जमीनें एसईजेड अथवा पीपीपी मॉडल के तहत हथियाई गई है। सहारा समूह की ए बी वैली करीब 25 हजार एकड़ की है। इसके अलावा 217 शहरों में सहारा समूह के पास औसतन 100 एकड़ जमीन हर शहर में है। सहारा समूह ने ही लखनऊ में गरीब लोगों को मकान देने के नाम पर 600 एकड़ जमीन लीज पर ले रखी थी, जिस पर समूह के संचालकों के महलनुमा आवास बने है। टाटा समूह के पास देशभर में कितनी जमीने है, इसका कोई हिसाब-किताब नहीं है। बिड़ला समूह, अडानी ग्रुप, अनिल अग्रवाल ग्रुप, एस्सार, नुस्ली वाडिया, गोदरेज, वाडिया ग्रुप, दिनशा ग्रुप, बिलिमोरिया परिवार, ठाकुर परिवार, हिरजी भाई दिनशा परिवार, बैरामजी जीजी भाई परिवार, वीके लाल परिवार, मोह मद युसूफ खोट ट्रस्ट, अंसल परिवार, कृष्णपाल सिंह परिवार, नंदा परिवार जैसों के पास कुल कितनी जमीन है, यह हिसाब लगाना मुश्किल है। एसईजेड के नाम पर भी जमीनों के भारी घोटाले हुए है। अनेक राज्य सरकारों ने एसईजेड के लिए किसानों की जमीनें अधिग्रहीत की और वे जमीनें उद्योगों को दी गई। अधिकिांश उद्योगपतियों ने उस जमीन का आंशिक उपयोग भी किया और बाकी जमीन अपनी भावी परियोजनाओं के लिए आरक्षित कर ली। जल-जन जोड़ो अभियान के संयोजक संजय सिंह कहते हैं कि केंद्र और प्रदेश सरकार कहती है कि किसी भी परियोजना के लिए जमीन की अड़चन नहीं आने दी जाएगी। अच्छी बात है, लेकिन यह जमीन आएगी कहां से? किसकी होगी यह जमीन? क्या इन उद्योगपतियों और भूस्वामियों से सरकार जमीन ले सकती है? पीपीपी परियोजनाओं के नाम पर जमीनें किस तरह बंट रही है। यह भी किसी से छुपा नहीं है। किसानों की सहमति के बिना उनकी जमीन लेना कतई उचित नहीं कहा जा सकता। अधिग्रहण के खिलाफ जनआंदोलन चलाने वाले एस राजगोपाल का कहना है कि कोई भी सरकार गरीबों और किसानों से ही चलती है। पूंजीपतियों ने कभी कोई सरकार नहीं चलाई। सरकार को चाहिए कि वह अनुपयोगी भूमि अपने कब्जे में ले और बेघर किसानों को बांट दे। जंगल में रहने वाले आदिवासियों को उसी जंगल का हक मिले। नर्मदा बचाओ आंदोलन ने राज्य सरकार पर सही लैंड बैंक छुपाकर उद्योगपतियों को मनमर्जी से जमीन देने का आरोप लगाया है। संगठन का आरोप है कि सरकार एक तरफ तो बांध विस्थापितों के लिए जमीन नहीं होना बता रही है वहीं दूसरी ओर ग्लोबल इंवेस्टर समिट में 1.20 लाख एकड़ जमीन लैंड बैंक के रूप में होने का दावा कर रही है। इसमें से 15 हजार एकड़ जमीन तो ऐसी बतायी जा रही है जिस पर उद्योगपतियों को तत्काल पहुंचकर कब्जा लेना है। मेधा पाटकर ने सही लैंड बैंक छुपाकर उद्योगपतियों के लिए जमीन आरक्षित रखने को बड़ा जमीन घोटाला बताया है। उन्होंने राज्य सरकार से यह स्पष्ट करने की मांग की है कि उद्योगपतियों को देने के लिए सरकार के पास इतनी जमीन कहां से आई और कितनी मात्रा में जमीन देने की तैयारी है? पाटकर कहती हैं कि अभी तक आयोजित इंवेस्टर्स समिट में देखा गया है कि राज्य सरकार लोकल इंवेस्टर जो वास्तव में वोटर भी है को पूरी तरह से अनदेखा कर रही है। जबकि दूसरी ओर दुनिया भर से इंवेस्टर्स को आमंत्रित कर रही है। एनबीए ने सरकार पर जमीन का अंधाधुंध बंटवारा करने का भी आरोप लगाते हुए बताया कि अब तक देश में उद्योगों को 1050 लाख हेक्टेयर जमीन दी जा चुकी है। इसके साथ ही उन्होंने नर्मदा-क्षिप्रा योजना, नर्मदा-गंभीर योजना, नर्मदा-माही योजना व नर्मदा कलियासोत योजना पर भी सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि यह सारी योजनाएं उद्योगपतियों के लिए ही शुरू की गई है। उन्होंने ग्लोबल इंवेस्टर समिट को लेकर भारत सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को भी कटघरे में खड़ा किया है। पाटकर का कहना है कि मंत्रालय का भी फर्ज बनता है कि वो सरकार से पूछे कि किस तरह का उद्योग लाया जा रहा है। उधर, किसान जागृति संगठन के प्रमुख इरफान जाफरी का कहना है कि सरकार ग्लोबल इंवेस्टर समिट के नाम पर इंवेस्टर और जनता दोनों को ही भ्रमित कर रही है। भू-राजस्व संहिता 1959 के तहत सरकार ग्रामीणों की जमीन उद्योगों को दे ही नहीं सकती है। जलपुरूष राजेन्द्र सिंह कहते हैं कि किसानों की जमीन पूंजीपतियों के हवाले करने की चल रही सुनियोजित साजिश को अगर रोका नहीं गया, तो पानी पर भी कब्जा कर लिया जाएगा। सरकार संरक्षित कंपनियां हमारा ही पानी बोतलों में भरकर हमें बेचेंगी। राजेन्द्र सिंह का आरोप है कि किसानों को भूमिहीन बनाकर सरकार कुछ लोगों को ताकतवर व जमीन का मालिक बनाना चाह रही है, वह ठेकेदारों और कॉरपोरेट का राज कायम करना चाहती है। सरकार के दावों की खुली पोल सरकार का दावा है कि पिछले 12 साल में दुनियाभर के निवेशक मध्यप्रदेश में निवेश के लिए आकर्षित हुए हैं। प्रदेश में निवेश बढऩे से बेरोजगारों को काम मिला है। वहीं अगर एसोसिएटेड चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज ऑफ इंडिया (एसोचेम) की रिपोर्ट पर गौर करें तो पता चलता है कि प्रदेश में न तो निवेश बढ़ा है और न ही रोजगार के अवसरों में वृद्धि हुई है। इसके अलावा औद्योगिक उत्पादन में भी कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई है। एसोचैम द्वारा मध्य प्रदेश में इकोनॉमी, इंफ्रास्ट्रक्चर, इंवेस्टमेंट और इंप्लाइमेंट को लेकर किए गए एक सर्वे में यह तथ्य सामने आया है कि मु यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तमाम विदेश यात्राओं के बावजूद मप्र में निवेश बढ़ा नहीं बल्कि 14 प्रतिशत घट गया है। इतना ही नहीं देश में मप्र का औद्योगिक योगदान भी घट गया, मतलब जो उद्योग चल रहे थे वो भी बंद हो रहे हैं। भले ही कृषि क्षेत्र में सरकार को कृषि कर्मण अवार्ड मिला है लेकिन धरातल पर कोई तरक्की नहीं हो पाई है। 87 प्रतिशत निवेश पिछले 57 महीनों से अफसरशाही के जाल में फंसा हुआ है जबकि 44 हजार करोड़ रुपए की निवेश घोषणाएं ऐसी हैं जो केवल घोषणाएं ही थीं। वहीं करीब 53,000 करोड़ का औद्योगिक निवेश कागजों में अटका है। ऐसे में रोजगार के अवसर कैसे बढ़ सकते हैं? आलम यह है कि निवेशक द तरों के चक्कर लगा रहे हैं और नौकरशाही के निक मेपन के कारण वे अब दूसरे प्रदेशों का रुख कर चुके हैं। 2013-2014 के इंडस्ट्रीयल आंकड़ों में यह जिक्र है कि मध्यप्रदेश में 2013-2014 में 60 प्रतिशत इन्वेस्टर्स प्रस्ताव खारिज किए गए हैं। हालांकि रिपोर्ट के आधार पर 2015-16 में राज्य में 700 से अधिक निवेशकों ने वहां के इंडस्ट्रीयल सेक्टर में रुचि दिखाई है। किसान जागृति संगठन के प्रमुख इरफान जाफरी कहते हैं कि सरकार को जमीनों के अधिग्रहण के साथ यह भी बताना चाहिए की इससे जनता को क्या फायदा होगा। वह पूछते हैं कि क्या सरकार ने कभी यह बताने की कोशिश की है कि इंदौर या खजुराहो में हुए पिछले निवेश स मेलनों के बाद कितने उद्योगपतियों ने कितना पूंजी निवेश किया और उसमें भारत ने, मध्यप्रदेश की जनता ने क्या खोया-क्या पाया? कितना रोजगार निर्मित और कितनी खेती बर्बाद हुई? बेरोजगारी कितनी बढ़ी? इन सवालों का जवाब खोजा जाना जरूरी है। वैसे भी इस हिसाब में अगर केवल पैसे की गिनती हो और जल, जंगल, जमीन जैसे प्राकृतिक या श्रमशक्ति की नहीं, तो फिर किस तरह का विकास होगा? हम यह आंकलन कभी करते ही नहीं हैं कि विकास के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों का विनाश दीर्घकालीन विनाश लेकर आ रहा है। इरफान जाफरी कहते हैं कि चुनाव के पहले दिए आश्वासन को मु यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भूल भी सकते हैं, जैसे हर विस्थापित को 5 लाख रूपए प्रति एकड़ का मुआवजा और किसानों को कर्ज मुक्ति। वह कहते हैं कि हद तो यह है कि किसानों, मजदूरों, आदिवासियों और ग्रामीणों की स पदा को छीन कर पूंजीपति उद्योगपतियों को देने के साथ-साथ सरकार उन्हें करों-शुल्कों में भी इकतरफा छूट देती है। सरकार को बताना चाहिए कि क्या स्वतंत्र भारत में ऐसी छूटें सरकार द्वारा कभी भी किसानों-मजदूरों को दी गई है या दी जाएगी? ईज ऑन डूइंग बिजनेस में भी अच्छी स्थिति नहीं मप्र में औद्योगिक निवेश की स्थिति क्या है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि ईज ऑन डूइंग बिजनेस में भी मप्र की अच्छी स्थिति नहीं है। हालही में उद्योग एवं वाणिज्य मंत्रालय की तरफ से जारी सालाना रिपोर्ट में मध्यप्रदेश पिछले दो बार से 5 वें नंबर पर है जबकि छत्तीसगढ़ को 97.32 अंकों के साथ चौथा स्थान मिला है। आंध्र प्रदेश 98.78 अंक के साथ पहले पायदान पर है। पिछले साल आंध्र प्रदेश दूसरे नंबर पर था। गुजरात पिछले साल पहले नंबर पर था, लेकिन इस साल वह तीसरे पायदान पर पहुंच गया है। तेलंगाना ने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए दूसरी रैंकिंग हासिल कर ली है। पिछले साल वह 13 वीं पोजिशन पर था। वहीं हरियाणा ने 14 वीं रैंकिंग से 6 वें पायदान पर छलांग लगाई है। पिछले साल तीसरे स्थान पर रहा झारखंड अब फिसलकर 7 वीं पोजिशन पर पहुंच गया है। जनवरी 2015 से जून 2016 तक मध्यप्रदेश सरकार को 17 हजार 882 करोड़ रुपए के पूंजी निवेश के लिए इण्डस्ट्रीयल इंटरप्रेन्योर मेमोरेण्डम प्राप्त हुए हैं। वहीं छत्तीसगढ़ सरकार को विभिन्न उद्यमियों से 45 हजार 025 करोड़ रुपए, आंध्रप्रदेश ने 29 हजार 602 करोड़, ओडिशा ने 28 हजार 436 करोड़ रुपए, तमिलनाडू ने 23 हजार 113 करोड़ रुपये, पश्चिम बंगाल ने 20 हजार 823 करोड़, उत्तर प्रदेश ने 17 हजार 830 करोड़ रुपए, राजस्थान ने आठ हजार 563 करोड़ रुपए, पंजाब ने पांच हजार 686 करोड़ रुपए और केरल ने निवेशकों से पांच हजार 104 करोड़ रुपए का इण्डस्ट्रीयल इंटरप्रेन्योर मेमोरेण्डम प्राप्त किया है। निवेशकों को लुभाने में असफल रहा समिट मध्यप्रदेश में यदि अभी तक संपन्न इंवेस्टर्स मीट के परिणामों पर नजर दौड़ाएं, तो हालत ये है कि दस फीसदी एमओयू भी धरातल पर नहीं उतर सके हैं। सरकार की पहल और उद्योगपतियों के लिए बेहतर सुविधाएं देने के वादे से प्रभावित होकर बड़े निवेशकों ने रुचि दिखाई, लेकिन अभी तक उसका प्रतिफल जमीन पर नहीं दिख रहा है। सरकार का दावा है कि प्रदेश में उद्योग एवं विकास की दिशा में चलाई जा रही मुहिम का असर देशी व विदेशी निवेशकों पर भी दिख रहा है। यही कारण है कि देश के औद्योगिक घरानों, जिनमें अंबानी, अडानी, जेपी ग्रुप, टाटा समूह, सहारा और अब पतंजलि ने भी प्रदेश में निवेश की इच्छा जताई है। कई संस्थान अपनी प्राथमिकताओं के कारण यहां आए तो जरूर, लेकिन सरकार के बुलावे या समिट से उनका कोई सरोकार नहीं रहा। अभी तक स पन्न हुई इन्वेस्टर्स समिट में निवेशकों ने जिस तरह से इस प्रदेश में निवेश करने के जो वादे किए, उनके परिणाम कुछ अच्छे नजर नहीं आए। सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट अपने लक्ष्य को नहीं पा सकी है, यह इस बात का द्योतक है कि प्रदेश की नौकरशाही निवेशकों को ज्यादा तवज्जो नहीं देती। हालांकि बीते 23 अक्टूबर को हुई ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में इंदौर एकेवीएन के पास उद्योग लगाने के लिए 100 से ज्यादा प्रस्ताव आए हैं। ये सभी प्रस्ताव 10 करोड़ से लेकर 100 करोड़ रुपए तक के हैं। इन सभी औद्योगिक प्रस्तावों की लागत लगभग डेढ़ लाख करोड़ रुपए है। अब इन उद्योगों के लिए जमीन आवंटन का सिलसिला शुरू होना है। एकेवीएन एमडी कुमार पुरुषोत्तम का कहना है कि इनकी डीपीआर मिलने के बाद इन्दौर या अन्य आसपास औद्योगिक क्षेत्रों में जमीनें आवंटित की जाएंगी। इन्वेस्टर समिट में वैसे तो कुल 5 लाख 62 हजार करोड़ के इंटेंशन टू इन्वेस्ट के प्रस्ताव शासन के पास आए हैं, मगर डेढ़ लाख करोड़ के प्रस्ताव अकेले इन्दौर एकेवीएन के खाते में आए हैं। इनकी सं या 107 है। मतलब 107 उद्योग वालों को इन्दौर एकेवीएन के अधीन जमीन चाहिए। गौरतलब है कि इन्दौर एकेवीएन के अधीन औद्योगिक क्षेत्र आलीराजपुर, झाबुआ से लेकर खंडवा में बने हुए हैं। अधिकांश उद्योगपतियों और क पनी मालिकों की पहली पसंद इन्दौर जिला ही है और पीथमपुर 1-2-3 में स्थिति हाउसफुल जैसी चल रही है। समिट में 107 प्रस्ताव आने के बाद एकेवीएन को जमीन आवंटन के लिए कसरत करना पड़ रही है। एकेवीएन एमडी कुमार पुरुषोत्तम का कहना है कि 100 करोड़ से लेकर 500 करोड़ रुपए तक के बड़े प्रोजेक्टों को जमीन आवंटन के अधिकार ट्रायफेक के पास हैं। वहीं 100 करोड़ तक के अधिकार एकेवीएन के पास हैं। 107 उद्योगों के लिए जो प्रस्ताव आए हैं, उनको जमीन आवंटन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। जिन्होंने प्रस्ताव भेजे हैं, उन्हें ई-मेल भेजकर 10 करोड़ से लेकर 100 करोड़ तक वालों को 15 नव बर तक और 100 करोड़ से लेकर 500 करोड़ वालों को 15 दिस बर तक डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट पेश करना है। इसके बाद तय किया जाएगा कि किस प्रोजेक्ट को कहां जमीन आवंटित की जाएगी। इसके बाद ही उन्हें जमीन दिखाई जाएगी। हालांकि एकेवीएन के पास जितनी भी औद्योगिक जमीनें हैं, सब ऑनलाइन सिस्टम पर मौजूद हैं। 13 साल में शुरू हो सके सिर्फ दो सेज अभी हाल ही में मध्य प्रदेश शासन ने कोरिया, जापान, इंग्लैंड, यूएई और सिंगापुर जैसे देशों की सरकारों को साथ लेकर बड़ी इन्वेस्टर्स मीट संपन्न की। इसमें पधारे और न पधारे हुए उद्योगपतियों का आह्वान किया कि आप आइए और अपनी पूंजी लगाईए। इनमें निश्चित ही तमाम प्रकार के उद्योगों के लिए न्यौता दिया गया है और वह भी बिना किसी बंधन के। उन्हें कहा गया है, आपके लिए द्वार खुला है, नाम भले सिंगल विंडों क्यों न हो। इस प्रकार करोड़ों रूपए सार्वजनिक तिजोरी से खर्च करके आयोजित किए जाने वाले स मेलनों का प्रदेश के औद्योगिक विकास में कितना योगदान है यह इसी से पता चलता है कि प्रदेश में 13 साल में अभी तक 2 सेज ही शुरू हो सके हैं। प्रदेश के नीमच निवासी सामाजिक कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ ने बताया कि उन्हें सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी से पता चला कि वर्ष 2003 से लेकर अब तक सूबे में 10 सेज अधिसूचित हुए हैं। इनमें से पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र स्थित बहुउत्पादीय सेज और इंदौर के सूचना प्रौद्योगिकी सेज के दर्जे वाले क्रिस्टल आईटी पार्क में ही औद्योगिक इकाइयां चल रही हैं। ये दोनों सेज मध्यप्रदेश औद्योगिक केंद्र्र विकास निगम की इंदौर इकाई ने विकसित किए हैं। आरटीआई अर्जी के जवाब से खुलासा हुआ कि जबलपुर के खनिज उत्पाद आधारित सेज और कृषि उत्पाद आधारित सेज को गैर अधिसूचित कर दिया गया है। ये दोनों सेज मध्यप्रदेश औद्योगिक केंद्र विकास निगम की जबलपुर इकाई द्वारा विकसित किये जाने थे. सिंगरौली में हिंडाल्को इंडस्ट्रीज के विकसित किए जाने वाले एल्युमिनियम उत्पाद आधारित सेज को भी गैर अधिसूचित कर दिया गया है। इसके अलावा, पाश्र्वनाथ डेवलपर्स के इंदौर में विकसित किए जाने वाले आईटी सेज की अधिसूचना रद्द कर दी गई है। टीसीएस, इन्फोसिस और इ पेट्स इंदौर के अलग-अलग स्थानों पर अपने आईटी सेज विकसित कर रही हैं। तीनों कंपनियों के आईटी सेज वर्ष 2013 में अधिसूचित हुए थे। जानकारों के मुताबिक केंद्र सरकार द्वारा सेज पर न्यूनतम वैकल्पिक कर और लाभांश वितरण कर लगाने की मु य वजह से मध्यप्रदेश ही नहीं, बल्कि देश भर में सेज परियोजनाओं को लेकर उद्योग जगत का रुझान घटा है। पीथमपुर औद्योगिक संगठन के प्रमुख गौतम कोठारी कहते हैं कि हमने पूर्ववर्ती यूपीए सरकार से मांग की थी कि सेज पर से मैट और डीडीटी वापस लिये जाएं। लेकिन तब हमें राहत नहीं मिली। फिलहाल एनडीए केंद्र की सत्ता में है, लेकिन यह सरकार भी हमारी मांग के सिलसिले में अब तक कोई फैसला नहीं ले सकी है। मप्र में नगरीय क्षेत्र के लैंड बैंक क्र.सं. जिला का नाम नगरीय क्षेत्र 1 भिंड भिंड, अकोडा, फुफकलॉ, गोरमी, मेहगांव, दबोह, मिहोना, आलमपुर, लहार, मौ, गोहद 2 मुरैना अ बाह, पोरसा, मुरैना 3 श्योपुर विजयपुर, श्योपुर 4 अशोकनगर अशोकनगर, ईसागढ, चन्देरी, मुगांवली 5 ग्वालियर ग्वालियर 6 गुना गुना 7 दतिया दतिया, रामनगर, ह मीरपुर, डगरई, भांडेर, सेवढा, इन्दरगढ 8 शिवपुरी शिवपुरी, करैरा, पिछोर 9 सागर सागर, देवरी, राहतगढ, बण्डा, खुरई, बीना, गढाकोटा 10 टीकमगढ टीकमगढ, बडागांव-घसान 11 दमोह हिरदेपुर, सिंगपुर, रासटोरिया, कोटातला, मारूताल, चौपराखुर्द, चौपरा रैयतवारी, दमोह, धरमपुरा, हिण्डोरि, खैरूआ, पथरिया, हटा, इमलाई, विजयगढ, ठोलिया खेडा, बूढाहटा, गढिया, तेन्दुखेडा, चौरई 12 पन्ना पन्ना, पवई, ककरहटी, देवेन्द्र नगर, अजयगढ, माघैगंज, आलमपुर , बहादुरगज, बडी रूघ 13 छतरपुर छतरपुर, राजनगर, खुजराहो, बारीगढ, जुझारनगर, बडा मल्लहर , घुवारा, विजावार, बकस्वाहा, नौगांव, हरपालपुर, लोडी 14 रीवा रीवा 15 उमरिया उमरिया, चंदिया, नौरोजाबाद, पाली 16 सीधी सीधी 17 शहडोल ब्यौहारी, धनपुरी, बुढार, जयसिंहपुर, सोहागपुर , शहडोल 18 सतना सतना, उचेहरा, नागौद, बिरसिंहपुर, जैतवारा, कोठी, अमरपाटन, कोटर, रामपुरबघेलान, चित्राकूट, मैहर 19 अनूपपुर अनूपपुर, सामतपुर, पसान, बिजूरी, कोतमा, जैतहरी,राजेन्द्रग्राम, अमरकंटक 20 कटनी कटनी,पडखारा(माधवनगर), वि.गढ 21 छिन्दवाडा छिन्दवाडा, चांदमेरा, बडबुही, पारासि, डोगर चिखनी, डोगर पारासिक, सौंसर, पारासिक, मोहगांव, लोधीखेडा,पाठुर्वा ,अमरवाडा, चौरई, जुन्नारदेव 22 जबलपुर जबलपुर 23 डिण्डोरी डिण्डोरी 24 नरसिंहपुर छोटा छिन्वाडा, गाडरवारा, करेली, नरसिंहपुर 25 बालाधाट बालाधाट,कंटगी, बैहर, मोहगांव(मलाजखण्ड), वारासिवनी 26 मण्डला मण्डला, विछिया, नेनपुर 27 सिवनी सिवनी, बरधाट, लखनादौन 28 बैतूल बैतूल, मुलताई, भैंसदेही, अमला, शाहपुर 29 भोपाल भोपाल 30 रायसेन रायसेन, सांची, उदयपुरा, मंडीदीप, औबेदुल्लागंज, सुल्तानपुर, बेगमगंज, बरेली, बाडीखुर्द 31 राजगढ राजगढ, खुजनेर, नरसिंहगढ, सारंगपुर, खिचलीपुर, छापीहेडा, जीरापुर,माचलपुर, ब्यावरा 32 विदिशा लटेरा, सिंरोज, विदिशा 33 सीहोर सीहोर, इछावार, नसरूल्लागंज, जमानिया, जर्रापुर, माना, बुदनी, बरखेडी, वांसापुर, आस्था, जबर 34 होशगांबाद होशगांबाद, सिवनी-मालवा, इटारसी, सांरगपुर, पिपरिया 35 हरदा हरदा, टिमरनी 36 उज्जैन उज्जैन, खाचरौद, उन्हैल, नागदा 37 देवास जानकारी विहिप पारूप में नहीं है 38 नीमच नीमच, जीरन, मंनासा, रामपुरा, जावद, सिंगोली, रतनगढ, डीकेन 39 मंदसौर मंदसौर, दलोदा चौपाटी,नगरी,सीतामऊ,सुवासरा,गरोठ, शामगढ, भानपुरा, गांधीसागर, भैसोदा, नारायणगढ, पिपल्यामंडी, मल्हारगढ 40 रतलाम रतलाम, सैलाना,पिपलौदा 41 शाजापुर शुजालपुर, अकोदिया, पोलायकतों, सुसनेर, सोयतकलॉ, आगर 42 इन्दौर इन्दौर 43 खरगौन खरगौन, कसरावद, सनावद, बडवाह, महेश्वर, मण्डलेश्वर,भीकनगांव 44 खण्डवा मांधाता, मूंदी, खण्डवा, छैगविमासन, पंधाना 45 झाबुआ जानकारी निरंक है 46 धार धार, माण्डव, धरमपुर, धामनोद, बदनावर,सरदारपुर,राजगढ, मनावार,कुक्षी 47 बुरहानपुर नेपानगर, बुरहानपुर 48 बडवानी बडवानी,अजंड, सेन्धवा, राजपुर ——————

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें