गुरुवार, 22 दिसंबर 2016

कर्मचारियों का 2,200 करोड़ हजम कर गई कंपनियां

10 हजार कंपनियां खा गईं पीएफ के पैसे
भोपाल। एक तरफ कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) ने देश के सभी कर्मचारियों को वर्ष 2030 तक भविष्य निधि, पेंशन और जीवन बीमा के दायरे में लाने का लक्ष्य रखा है, वहीं दूसरी तरफ 10,932 कंपनियां अपने कर्मचारियों का प्रॉविडेंट फंड काट तो रहीं हैं, लेकिन इसे ईपीएफओ के पास जमा नहीं करा रही हैं। इनमें से 1,195 कंपनियां सरकारी हैं। करीब 2200 ऐसी कंपनियां है, जिन पर ईपीएफओ का करीब 2200 करोड़ रुपए बकाया है। जहां तक मप्र का सवाल है तो यहां की 47 कंपनियों ने अपने कर्मचारियों का 2847.77 लाख हड़प कर बैठी हैं। उल्लेखनीय है कि प्रॉविडेंट फंड वेतन पाने वाले कर्मचारियों को वित्तीय सुरक्षा मुहैया कराने के लिए होता है। कर्मचारी अपने मासिक वेतन का 12 फीसदी पीएफ फंड में अंशदान देते हैं। कर्मचारी के पीएफ फंड में नियोक्ता को भी अंशदान करना होता है। कर्मचारी के रिटायर होने के बाद या नौकरी से इस्तीफा देने के दो माह बाद पीएफ फंड में जमा पूरी रकम निकाल सकते हैं। इसके अलावा नौकरी में रहते हुए घर, एजुकेशन, बच्चों की शादी या मेडिकल रीजन के लिए पीएफ फंड जमा रकम का एक हिस्सा निकाल सकते हैं। लेकिन इन दिनों ईपीएफओ कर्मचारियों की बचत के कस्टोडियन का रोल नहीं निभा रहा है। ईपीएफओ कर्मचारियों को तब तक नहीं बताया जाता है कि उनकी कंपनी डिफाल्ट कर रही है, जब तक कि कर्मचारी क्लेम सेटलमेंट के लिए उसके पास नहीं आता है। ऐसे में क्लेम सेटेलमेंट के लिए इंतजार रहे कर्मचारियों की सं या बढ़ रही है। हर कंपनी अपने कर्मचारियों की सैलरी से पीएफ का कुछ पैसा काटती है, लेकिन क्या आपकी कंपनी उस पैसे को आपके अकाउंट में जमा कर रही है। यह सवाल इसलिाए पूछा जा रहा है कि लगभग 10,932 ऐसी कंपनियां हैं जो पीएफ डिफॉल्टर की लिस्ट में हैं। ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि आपकी सैलरी से पीएफ के पैसे काटकर उन्हें आपके पीएफ खाते में जमा करने के बजाय ये कंपनियां उन पैसों से अपनी जेबें भर रही हैं। इस बारे में आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस सक्रेटरी और ईपीएफओ ट्रस्टी डीएल सचदेवा का कहना है कि हमको वर्कर्स से बड़े पैमाने पर शिकायतें मिल रही हैं कि उनको पीएफ से वंचित रखा जा रहा है। इसके अलावा क पनियों और ईपीएफओ अधिकारियों के बीच सांठगांठ को लेकर भी शिकायतें मिल रहीं हैं। 10 हजार से अधिक कंपनियां हैं डिफॉल्टर 2014-15 के आंकड़ों के अनुसार 10,091 ऐसी कंपनियां थीं, जो पीएफ की डिफॉल्टर की लिस्ट में थीं। इस लिस्ट में अब और बढ़ोत्तरी हो चुकी है। दिसंबर 2015 तक डिफॉल्टर कंपनियों की सं या बढ़कर 10,932 हो गई है। ऑनलाइन उपभोक्ता फोरम में कंपनी की तरफ से पीएफ न मिलने की हजारों शिकायतें पड़ी हुई हैं। आलम यह है कि केवल प्राइवेट ही नहीं बल्कि कई सरकारी कंपनियां और संस्थान भी कर्मचारियों का पीएफ जमा नहीं कर रहे हैं। एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया गड़बड़ी करने वाली संस्थाओं में टॉप पर है। उसके पास ईपीएफओ का 192 करोड़ रूपए का बकाया है। फिर नंबर आता है मुंबई के एचबीएल ग्लोबल, दिल्ली के अहलुवालिया कॉन्ट्रैक्ट्स इंडिया लि. का जिन पर क्रमश: 64.5 करोड़ और 54.5 करोड़ रुपए बकाया है। मप्र में एमपीआरवीवीएन खंडवा ने सर्वाधिक 301.64 लाख रूपए कर्मचारियों का हजम किया है। मप्र में कर्मचारियों का वेतन काट कर जमा नहीं करने वालों में कई नगर निगम भी हैं। वहीं पीएफ डिफॉल्टर कंपनियों में तमिलनाडु टॉप पर है, जिसमें पुडुचेरी की कंपनियों को भी शामिल कर लिया जाए तो यह सं या 2644 है। इसके बाद नंबर आता है महाराष्ट्र का जहां की 1692 कंपनियों ने कर्मचारियों के पीएफ के पैसे गटक लिए हैं। वहीं केरल में यह सं या 1118 है, जिसमें लक्षद्वीप की कंपनियां भी शामिल हैं। शहरों के हिसाब से अगर पीएफ डिफॉल्टर कंपनियों को देखा जाए तो इसमें सबसे ऊपर तिरुवनंतपुरम का नाम आता है, जहां पर कुल 247 कंपनियां डिफॉल्टर हैं। इसके बाद नंबर आता है कोलकाता का, जहां पर 173 कंपनियां डिफॉल्टर हैं और फिर बारी आती है भुवनेश्वर की जहां पर 115 कंपनियां पीएफ डिफॉल्टर हैं। पांच साल में 2,823 कंपनियों के खिलाफ केस दायर देश में कर्मचारियों के भविष्य निधि का पैसा हड़पने वाली कंपनियों के खिलाफ कर्मचारी भविष्य निधि संगठन लगातार स ती बरत रहा है, लेकिन कंपनियां बाज नहीं आ रही हैं। आलम यह है कि पिछले पांच साल में देशभर में ऐसी 2,825 कंपनियों के खिलाफ मामला दर्ज किया जा चुका है। जानकारी के अनुसार, वर्ष 2012-13 में जहां 317 कंपनियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था, वहीं 2013-14 में 414 कंपनियों के खिलाफ कर्मचारियों के पीएफ में गड़बड़ी की शिकायत दर्ज की गई थी। वहीं वर्ष 2014-15 में 1491 और वर्ष 2015-16 में 1601 कंपनियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। ऐसे बढ़ी घपलेबाजी पीएफ सैलरी क्लास लोगों को भविष्य के लिए फाइनेंशियल सिक्योरिटी देने के लिए काटा जाता है। इसमें 12 प्रतिशत कर्मचारी को देना होता है, जबकि 13.6 प्रतिशत कंपनी को देना होता है। 19 से ज्यादा कर्मचारियों वाली कंपनियों को पीएफ सिस्टम लागू करना जरूरी होता है। इसके माध्यम से जमा राशि पर सरकार ब्याज (वर्तमान दर 8.8 फीसदी) भी देती है। सरकार यह राशि सिक्योरिटीज और कॉर्पोरेट बॉन्ड्स में निवेश करती है। 2015-16 में ईपीएफ के लंबित मामलों में 23 फीसदी इजाफा हुआ है। इस संबंध में 228 पुलिस केस भी दर्ज हुए हैं। ईपीएफओ द्वारा डिफाल्टर कंपनियों के खिलाफ दर्ज कराए गए मुकदमों में भी करीब चार गुना बढ़ोतरी हुई है। 2012-13 में यह सं या 317 थी, जो 2015 में बढ़कर 1491 हो गई। वहीं 2002 से 2015 के बीच ईपीएफओ अधिकारियों के खिलाफ 322 भ्रष्टाचार के मामले दर्ज हुए हैं। डिफाल्टर कंपनियों को बकाया राशि पर अवधि के हिसाब से 17 से 37 प्रतिशत के बीच पेनल्टी देनी होगी। ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस के सचिव और ईपीएफओ ट्रस्टी डीएल सचदेव कहते हैं, हमें कई कर्मचारियों से शिकायतें प्राप्त हुई हैं जिन्हें भविष्य निधि नहीं दिया गया है और साथ ही ईपीएफओ के अधिकारियों और नियोक्ताओं के बीच मिलीभगत की शिकायत भी मिली है। ईपीएफओ की भूमिका पर सवाल ईपीएफ को लेकर आए दिन शिकायतें बढ़ती ही जा रही हैं। 2015-16 में इस शिकायतों की सं या 2014-15 की तुलना में 23 फीसदी बढ़ गईं। पीएफ को लेकर 228 पुलिस केस दर्ज किए गए हैं। डिफॉल्टर कंपनियों के खिलाफ 14000 जांचें शुरू हो चुकी हैं। 2014-15 में डिफॉल्टर कंपनियों से 3240 करोड़ रुपयों की वसूली की जा चुकी है। ईपीएफओ की तरफ से नियोक्ता के खिलाफ भी पिछले चार सालों में कई केस दर्ज कराए जा चुके हैं। 2012-13 में यह सं या 317 थी, जो 2014-15 तक बढ़कर 1491 हो गई। आरटीआई डॉट कॉम के को-फाउंडर विनोद आर कहते हैं कि पिछले डेढ़ साल के अंदर उन्हें पीएफ के बारे में जानकारी मांगे जाने के बहुत से आवेदन मिले हैं। डेढ़ साल में करीब 2000 ऐसी आरटीआई आई हैं, जिनमें लोगों ने अपने पीएफ के रिफंड मिलने या उसे मिलने में देरी होने के कारणों के बारे में पूछा है। बताया जाता है कि कर्मचारी भविष्य निधि संगठन कर्मचारियों को तब तक कंपनी के चूककर्ता होने के बारे में नहीं बताता जब तक कि कर्मचारी इसे निपटाने नहीं आते हैं ; निपटान के लिए इंतजार कर रहे मामलों में वृद्धि हो रही है और कर्मचारी भ्रष्टाचार के शिकार हो रहे हैं। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के अधिकारियों का कहना है कि कर्मचारियों की कमी के कारण विभाग सही से निगरानी नहीं कर पा रहा है। 31 मार्च 2015 को ईपीएफओ को 6,000 कर्मचारियों की कमी थी। ईपीएफओ ट्रस्टी सचदेव कहते हैं शिकायतों को निपटाने की संस्था की बहुत ही धीमी गति है। जब कोई कर्मचारी ईपीएफओ के साथ उसका खाता निपटाने जाता है तब ही उसे पता चलता है कि कंपनी ने राशि जमा नहीं कराई है। पूर्व विजिलेंस निदेशक ईपीएफओ विवेक कुमार कहते हैं, अब डिफॉल्टरों को नोटिस प्रधान कार्यालय से भेजा जाता है और यदि कंपनी भुगतान में चूक करती है तो वहां इसके लिए जि मेदार ठहराने के लिए कोई अधिकारी नहीं होता है। ईपीएफओ श्रम मंत्रालय द्वारा चलाया जाता है जो तीन सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को संभालती है-भविष्य निधि, पेंशन और बीमा कर्मचारी। यह योजनाएं कर्मचारी भविष्य निधि योजना, 1952 (ईपीएफ), कर्मचारी पेंशन योजना (ईपीएस), 1995, और कर्मचारी जमा बीमा योजना , 1976 (ईडीएलआई ) के माध्यम से प्रशासित होता है जिसके तहत यदि कार्यकर्ता की मृत्यु इसके सदस्य रहते होती है तो उसका परिवार लाभ नकद प्राप्त कर सकते हैं। 42,000 करोड़ पर सरकार की गिद्ध दृष्टि एक तरफ हजारों कर्मचारी डिफॉल्टर कंपनियों द्वारा हड़प लिए गए पीएफ के लिए संघर्षरत हैं वहीं दूसरी तरफ सरकार की नजर बंद पीएफ खातों में पड़े 42,000 करोड़ रूपए पर लगी है। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के सूत्रों का कहना है कि फंड का इस्तेमाल केंद्र सरकार अब सीनियर सिटिजन वेलफेयर स्कीम के लिए करने की योजना बना रही है। हालांकि, ट्रेड यूनियन इसका विरोध कर रही हैं। विगत माह केंद्रीय न्यासी बोर्ड की बैठक में ट्रेड यूनियन के प्रतिनिधियों के सामने जब यह मुद्दा उठाया गया तो इसका जमकर विरोध हुआ। केंद्रीय न्यासी बोर्ड की बैठक की अध्यक्षता कर रहे श्रममंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने इस मामले को संबंधित मंत्रियों और यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक भी ले जानेे की बात कही है। उल्लेखनीय है कि सीबीटी ईपीएफओ की निर्णय लेने वाली सर्वोच्च समिति है। न्यासियों के बीच वरिष्ठ कल्याण कोष से जुड़ी अधिसूचना पर पूरक एजेंडा बांटे जाने के तुरंत बाद श्रम संगठनों के सदस्यों ने सरकार के फैसले के विरोध में बैठक से बहिर्गमन किया। अधिसूचना के मुताबिक, खातों को निष्क्रिय घोषित करने की तिथि से सात साल तक की अवधि में कोई दावे दारी नहीं आने पर ऐसे खातों में पड़ी राशि के आधार पर एक कोष (वरिष्ठ नागरिक कल्या कोष) स्थापित किया जाएगा। बोर्ड के ट्रस्टी प्रभाकर बनासुरे का कहना है कि 27 हजार करोड़ रुपए सीनियर सिटिजन संबंधित वेलफेयर स्कीम में ट्रांसफर किए जा सकते हैं। मप्र के खातों में 980 करोड़ जमा कर्मचारी भविष्य निधि मध्यप्रदेश में निष्क्रिय खातों (इनऑपरेटिव अकाउंट) में कर्मचारियों के 980 करोड़ रुपए जमा हैं। अगर कुछ महिनों में इस रकम के दावेदार नहीं मिले तो सरकार इसे जब्त कर सकती है। हालांकि ईपीएफओ का कहना है कि वह निष्क्रिय खातेधारों की तलाश कर रही है। एसआरओ जबलपुर आरआर वर्मा का कहना है कि इन जमा रकम में जिसका हिस्सा है, दस्तावेजों की पड़ताल के बाद कर्मचारी भविष्य निधि मध्यप्रदेश यह रकम को देने को तैयार है। बताया जाता है कि कर्मचारी भविष्य निधि के निष्क्रिय खातों पर ब्याज मिलेगा। केंद्र सरकार की इस घोषणा के बाद कर्मचारी भविष्य निधि संगठन मध्यप्रदेश में रिकॉर्ड खंगाला, तो पता चला कि प्रदेश के तकरीबन 20 लाख खाते ऐसे हैं। जो निष्क्रिय हैं और इनमें नियोक्ता और कर्मचारी के 980 करोड़ रुपए जमा हैं। अधिकारियों का कहना है, बीते 36 माह में भविष्य निधि के जिन खातों में अंशदान नहीं डाला गया है। वे पीएफ के निष्क्रिय खाते हैं। जिन पीएफधारकों के निष्क्रिय खाते हैं। वे पीएफ ऑफिस में जाकर फार्म नंबर 19 और 10-सी अपने पहचान पत्रों के साथ भरकर दे दें। अधिकतम 10 दिन में राशि दे दी जाएगी। पीएफ कमिश्नर अजय कुमार मेहरा ने बताया कि बकाया राशि और दावों के प्रकरणों के निपटाने पर जोर दिया जा रहा है। सालभर में दो हजार से ज्यादा डिफॉल्टर संस्थानों के खातों को सीज किया गया है। वहीं एक दर्जन से अधिक नियोक्ताओं को गिर तार कर बकाया राशि जमा करवाई गई है। वह कहते हैं कि सालभर में अंशदाताओं की सं या 15 फीसदी बढ़ गई है। साथ ही डेढ़ लाख नए कर्मचारी व श्रमिक समेत चार हजार संस्थान पीएफ दायरे में आए हैं। वेयर हाउसिंग कॉर्पोरेशन में सालों से पीएफ जमा नहीं वर्तमान समय में मप्र में करीब 47 बड़ी कंंपनियां या सरकारी उपक्रम ऐसे हैं जो कर्मचारियों का पीएफ जमा नहीं कर रहे हैं। इसमें मप्र वेयर हाउसिंग एंड लॉजिस्टिक कॉर्पोरेशन भी एक है। कॉर्पोरेशन ने अधिकारी और कर्मचारियों का पैसा काटकर खुद के ट्रस्ट में जमा कर रखा है। इस ट्रस्ट में एमडी (पदेन), सचिव (पदेन), अकाउंट ऑफिसर (पदेन) व दो कर्मचारी शामिल हैं। उनकी देखरेख में पैसा जमा किया जाता है, फिर विकास कार्यों आदि में कर्मचारियों का पैसा लगा दिया जाता है। कॉर्पोरेशन वर्ष 1958 से चल रहा है। यहां काम करने वाले अधिकारी, कर्मचारी, दैनिक वेतन भोगी और 89 दिवस के कर्मचारियों का ईपीएफ कटता तो है, लेकिन भविष्य निधि संगठन में जमा नहीं होता है। कलेक्टर रेट पर जब कभी मजदूर काम करते हैं, तो उनका ईपीएफ नहीं काटा जाता है। स्थायी कर्मचारियों ने जब ईपीएफ संबंधी जानकारी हासिल की, तो पता चला कि उनका ईपीएफ में कोई पेंशन फंड नहीं है। इस वजह से जब भी वे सेवानिवृत्त होंगे, तब पेंशन नहीं मिलेगी। यह मामला सामने आने के बाद स्टाफ घबरा गया। उन्होंने इस मुद्दे को मु यालय तक पहुंचा दिया है। कॉर्पोरेशन का एक दल भविष्य निधि कर्मचारी संगठन ऑफिस में अफसर से मुलाकात कर आया है, लेकिन कोई संतोषजनक कार्रवाई नहीं होने के कारण कॉर्पोरेशन के कर्मचारी अब विभागीय लड़ाई करने की तैयारी कर रहे हैं, ताकि वे जब भी सेवानिवृत्त हों, उन्हें ईपीएफ के साथ ही पेंशन भी मिले। इससे वे भविष्य में अपने परिजनों के साथ गुजर-बसर कर सकेंगे। कॉर्पोरेशन के फील्ड स्टाफ एसोसिएशन के अध्यक्ष संजीव बिसारिया कहते हैं कि वेयरहाउसिंग कॉर्पोरेशन कर्मचारियों का पीएफ का पैसा काट रहा है, लेकिन ईपीएफ ऑफिस में जमा नहीं करा रहा। इससे भविष्य में अधिकारी और कर्मचारियों को पेंशन नहीं मिलेगी। कॉर्पोरेशन ने केंद्र सरकार के नियमों को नजरअंदाज कर फ्रॉड किया है। उसे हम सबका ईपीएफ काटकर भविष्य निधि कार्यालय में जमा करना चाहिए। उधर, कर्मचारी भविष्य निधि संगठन ने मप्र वेयर हाउसिंग एंड लॉजिस्टिक कॉर्पोरेशन के अफसर व कर्मचारियों का पीएफ न काटने के मामले में जांच शुरू कर दी है। संगठन के ग्वालियर क्षेत्र के आयुक्त रिजवानुद्दीन कहते हैं कि मप्र वेयर हाउसिंग कॉरपोरेशन में पीएफ जमा नहीं करने वाले मामले को रीजनल कार्यालय इंदौर पहुंचा दिया है। वहां से मामले की जांच की जाएगी। यदि कुछ गलत पाया जाता है, तो आगे की कार्रवाई होगी। मध्यप्रदेश वेयर हाउसिंग एंड लॉजिस्टिक कॉर्पोरेशन के 1500 अधिकारी और कर्मचारियों का पीएफ काट तो रहा था, लेकिन पैसा भविष्य निधि कार्यालय में जमा नहीं हो रहा था। कॉर्पोरेशन ने इसके लिए खुद ही एक ट्रस्ट बना रखा है, जिसमें कर्मचारियों के हक का पैसा जमा कराया जा रहा है। यह मामला सामने आने के बाद कॉरपोरेशन में भी हड़कंप मचा हुआ है। मप्र के 3 लाख सरकारी कर्मचारियों का नहीं कटता पीएफ मप्र सरकार अपने अधिकारियों-कर्मचारियों की सुरक्षा और भविष्य को लेकर कितना संवेदनशील है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां सरकारी वेतन पाने वाले करीब 3 लाख कर्मचारियों का पीएफ ही नहीं काटा जाता। इनमें आंनगवाड़ी कार्यकर्ता, होमगार्ड के सैनिक, ग्राम सहायक, रोगी कल्याण समिति के कर्मचारी एवं तमाम संविदा कर्मचारी शामिल हैं। जबकि स त नियम है कि प्रत्येक कर्मचारी का पीएफ काटा जाना चाहिए। प्रदेश के सरकारी महकमों में वर्षों से काम कर रहे लाखों कर्मचारियों का प्रोविडेंट फंड नहीं काटे जाने की लगातार शिकायतें मिलने के बाद ईपीएफओ ने इसे गंभीरता से लिया है। राज्य सरकार के आधा दर्जन से ज्यादा विभागों में संविदा, पार्ट टाइम जॉब, मानदेय और दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी के रूप में काम कर रहे तीन लाख से अधिक कर्मचारियों का प्रोविडेंट फंड नहीं काटने वाले विभाग के मुखिया की सैलरी अब अटैच करने की तैयारी है। केन्द्रीय भविष्य निधि संगठन के प्रदेश कमिश्नर अश्विनी गुप्ता ने अधिकांश विभागों के अफसरों को नोटिस जारी करते हुए कर्मचारियों का पीएफ नहीं काटने वाले अफसरों को चेताया है। केन्द्र सरकार के श्रम नियमों के तहत किसी भी सरकारी तथा गैर सरकारी संस्था में पार्ट टाइम अथवा फुल टाइम नौकरी करने वाले कर्मचारी का प्रोविडेंट फंड काटा जाना अनिवार्य है, मगर प्रदेश के सरकारी विभागों में ही इस नियम का उल्लंघन धड़ल्ले से हो रहा है। जिन कर्मियों का पीएफ नहीं काटा जाता उनमें महिला एवं बाल विकास 40 हजार आंगनबाड़ी कार्यकर्ता तथा 40 हजार सहायिका, स्कूल शिक्षा विभाग में ऐसे ढाई लाख से अधिक संविदा शाला शिक्षक, प्राध्यापक, गुरूजी, प्रौढ़ शिक्षा अध्यापक शामिल हैं। स्वास्थ्य विभाग में एनआरएचएम के तहत परियोजना अधिकारी, संविदा कर्मचारी, आशा कार्यकर्ता, एनएम सहित आयुष में भी लगभग 50 हजार कर्मचारी रखे गए हैं, जबकि पंचायत एवं ग्रामीण में पंचायत स्तर पर 50 हजार मेट एवं 23 हजार ग्राम पंचायत सचिव तथा मध्यान्ह भोजन बनाने के लिए लगभग 76 हजार कर्मचारियों को मानदेय पर लगाया है। इसी तरह पुलिस का सहयोगी संगठन होमगार्ड के 16 हजार 305 सैनिकों सहित 350 महिला नगर सैनिक, 20 हजार ग्राम सहायकों के प्रोविडेंट फंड नहीं काटने जा रहे हैं। 21 लाख मजदूरों के हितों की चिंता नहीं यही नहीं मध्य प्रदेश में सरकारी योजनाओं-परियोजनाओं में लगे मजदूरों का भी पीएफ नहीं काटा जा रहा है। प्रदेश में भवन, सड़क और पुल-पुलियाओं सहित अन्य सरकारी निर्माण कार्यों में करीब 24 लाख मजदूर काम करते हैं, लेकिन इनमें से 21 लाख सामाजिक सुरक्षा के लाभ से वंचित हैं। इनका पीएफ भी नहीं कट रहा। इस मामले में सरकारी महकमे भी सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अनदेखी कर रहे हैं। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के सर्वे के अनुसार प्रदेश में करीब 24 लाख मजदूर अलग-अलग शासकीय निर्माण कार्यों में लगे हैं। इनमें से केवल 3 लाख मजदूरों का ही पीएफ महकमे में पंजीयन है। केंद्रीय लोक निर्माण विभाग, भोपाल विकास प्राधिकरण, आरआरडीए, प्रदेश के सभी 16 नगर निगम, सीपीए, एनएचएआई, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग, रेलवे, हाउसिंग बोर्ड, जल संसाधन एवं पीडब्ल्यूडी सहित अन्य शासकीय विभागों के ठेकेदारों की सूची ईपीएफ ने तलब कर ली है। प्रारंभिक जांच में सामने आया है कि सरकारी विभागों में भी नियमों का पालन नहीं हो रहा। मजदूरों से काम लेने वाले ठेकेदारों की रुचि उनके पीएफ पंजीयन कराने में नहीं है। विभाग को छानबीन के दौरान ऐसे उदाहरण भी मिले जिनसे साबित हुआ कि ठेकेदारों ने मजदूरों का पैसा ही दबा लिया। कतिपय मामलों में यह भी पाया गया कि नगर निगम और हाउसिंग बोर्ड ने अपनी ओर से प्रमुख नियोक्ता की भूमिका भी ठीक से नहीं निभाई। ईपीएफ द्वारा नगर निगम एवं हाउसिंग बोर्ड को नोटिस भी भेजे गए हैं। केंद्र एवं राज्य सरकार के विभिन्न महकमों को सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों से अवगत कराया गया है जिसमें कहा गया है कि निर्माण कार्यों से जुड़े मजदूरों की सामाजिक सुरक्षा एवं श्रम कानूनों का पालन कराया जाए। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने दो साल पहले निर्देश जारी किए थे। भोपाल के रीजनल पीएफ कमिश्नर अश्विनी कुमार गुप्ता का कहना है कि इस संबंध में उन्होंने प्रदेश के कई शासकीय विभागों को पत्र भेजे हैं। कुछ महकमों को नोटिस भी जारी किए गए। विभाग द्वारा इस संबंध में विशेष मुहिम चलाई गई है जिसके तहत सभी मजदूरों का पंजीयन एवं उन्हें सामाजिक सुरक्षा से जुड़े लाभ दिलाना सुनिश्चित कराया जा रहा है। मप्र की डिफॉल्टर कंपनियां कंपनी रकम(लाख में) धीरज पॉलीपैक 10.03 कॉस्ट गार्ड सिक्योरिटी 11.08 मैकाल फाइब्र्स 11.16 फेंटल ड्रग इंडिया 11.76 गेस्टल इंजी एंड टेक्ट पीवीटी 12.08 अरविंदों इंस्टीट्यूट 12.08 फ्रिगोस केडिया 12.36 मिशाननिवा केयर 12.84 डेली कॉलेज इंदौर 12.85 खालसा ओवरसीज 15.20 इंदौर स्टील आर्यन 18.29 यूनिसिपल कार्पोरेशन देवास 20.38 वरूण सीमेंट 23.87 नवभारत प्रेस 21.88 अंबिका अलू 24.43 श्री अरविंदों इंस्टीट्यूट 24.99 कोशर इंफ्रास्ट्रक्चर 25.28 नवलसिंह सहकारी 25.82 यूनिसिपल कार्पोरेशन खंडवा 29.66 मापा स्पिनिंग 30.85 को-ऑप स्पिनिंग मिल्स 32.84 कल्याणमल मिल्स 33.80 ईश्वर अलाव 34.88 साक्र्स फार्मोसिटी 36.42 अवंति टैक्सटाइल मिल्स 38.87 स्वदेशी मिल्स 45.58 झाबुआ धार ग्रामीण बैंक 46.53 एमपी आरटीसी खंडवा 46.53 आईआई एम इंदौर 51.09 लखानी फुट केयर 54.47 धार टेक्सटाइल 54.50 गजरा बेवेल देवास 65.43 गिरनार फाइबर लि. 88.31 डिजाईन ऑटो सिस्टम 92.45 परसरामपुरिया इटानेशनल 96.30 इंदौर मालवा मिल्स 107.05 हुकुमचंद मिल्स 124.23 यूनिसिपल कार्पोरेशन इंदौर 133.17 राजकुमार मिल्स 174.61 आईडीए इंदौर 212.73 एमपीआरटीसी इंदौर 267.80 यूनिसिपल कार्पोरेशन झाबुआ 295.12 एमपीआरवीवीएन खंडवा 301.64 देश की टॉप टेन डिफाल्टर कंपनियां मेसर्स एयरपोर्ट ऑथरिटी, दिल्ली 19,206 एचबीएल ग्लोबल, बांद्रा मुंबई 6,448 मेसर्स ऑलुवलिया कांट्रेक्ट्स इंडिया, लि दिल्ली 5,457 एमएचएडीए, बांद्रा मुंबई 4,857 मेसर्स जी4एस सिक्योर सोल्यूसन इंडिया प्रालि, बैगलुरू 3,870 मेसर्स नुद्दा मिल कंपनी लि, कोलकाता 3,292 मेसर्स मसोर्स इंडिया प्रालि, बैगलुरू 3,103 1912 अर्नाकुलम डीसीबी लि, त्रिवंतपुरम 3,098 1900 अलाप्पुझा डीसीबी लि, त्रिवंतपुरम 2,909 16159 मुथूट कंस्लटेंसी टीअीएम 2,494

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