गुरुवार, 22 दिसंबर 2016

संघ की सख्ती का असर...दागियों पर कसने लगी नकेल

45 नौकरशाहों सहित 400 पर गिरेगी गाज
-विभागों ने भ्रष्टों के खिलाफ देनी शुरू की अभियोजन की स्वीकृति
- दो आईएएस और तीन आईएफएस सहित आधा सैकड़ा के खिलाफ कार्रवाई शुरू
भोपाल। मप्र के नाफरमान और दागदार नौकरशाहों को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सरकार की खिंचाई की तो सरकार की भी तंद्रा टूट गई है और दागदारों पर नकेल कसनी शुरू हो गई है। सरकार ने सभी विभागों को निर्देश दिया है कि वे अपने-अपने विभाग के दागदार अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करें। सरकार के निर्देश के बाद 45 नौकरशाहों सहित 400 अधिकारियों कर्मचारियों के भ्रष्टाचार की फाइल खुलने लगी है। इस कड़ी में अभी तक दो आईएएस सहित करीब आधा सैकड़ा अधिकारियों-कर्मचारियों के खिलाफ लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू को अभियोजन चलाने की अनुमति दे दी गई है। दरअसल, मप्र में अफसरों और कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के लगातार मामले आ रहे हैं। आलम यह है कि पिछले 11 साल में प्रदेश में भ्रष्टाचार के जितने मामले आए हैं उतने पिछले सालों में नहीं आए। इससे प्रदेश को भ्रष्टाचार का गढ़ कहा जाने लगा है। खास बात यह है कि प्रदेश के आईएएस से लेकर चपरासी तक की तिजारियों से करोड़ों की काली कमाई निकल रही है। इससे भाजपा सरकार की नीयत पर भी सवाल उठने लगे हैं। ऐसे में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने मोर्चा संभाला और सरकार को जमकर फटकार लगाई। संघ की नसीहत और फटकार के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी अफसरों की जमकर क्लास ली साथ विभागों को निर्देश दिया की वे दागी अफसरों और कर्मचारियों के खिलाफ जल्द से जल्द कार्रवाई करें। दरअसल, पिछले 8 साल से प्रदेश में मंजर देखने को मिल रहा है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अधिकारियों को योजनाओं के क्रियान्वयन, उनकी मॉनीटरिंग और उन्हें सफल करने की हिदायत देते रहे हैं, लेकिन अधिकारी अपनी मनमर्जी से काम कर रहे हैं। प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी इतनी निरंकुश हो गई है कि वह मुख्यमंत्री को छोड़कर और किसी की परवाह नहीं करती है। यही कारण है कि कई मंत्रियों और उनके विभागीय अधिकारियों में पटरी नहीं बैठती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नजर में नौकरशाही के नकारेपन के कारण सरकार और जनता के बीच खाई बढ़ रही है। यही कारण है कि अगस्त महीने में संघ की समन्वय बैठक में संघ के पदाधिकारियों ने मध्यप्रदेश की नौकरशाही के चाल-चेहरा और चरित्र पर सवाल खड़े किए थे। मोहंती और थेटे के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति अभी तक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर दागी अफसरों को संरक्षण देने का आरोप लगता रहा है। लेकिन संघ की सख्ती और मुख्यमंत्री की मीटिंग का असर अब विभागों में दिखने लगा है। राज्य सरकार ने अपर मुख्य सचिव एसआर मोहंती और रमेश थेटे के खिलाफ अभियोजन की कार्रवाई को हरी झंडी दे दी है। मोहंती के खिलाफ एमपीआईसीडीसी के घोटाले में 2004 से जांच चल रही है। 2011में केंद्रीय कार्मिक एवं लोकशिकायत विभाग (डीओपीटी) ने मोहंती के खिलाफ अभियोजन की अनुमति दी थी, जिसके खिलाफ वे सुप्रीम कोर्ट चले गए। कोर्ट ने ईओडब्ल्यू को दोबारा जांच के निर्देश दिए थे। दोबारा जांच में भी जांच एजेंसी ने प्रकरण को अभियोजन के अनुरूप पाया था। अब सामान्य प्रशासन विभाग ने केंद्र सरकार को अनुमति के लिए प्रस्ताव भेजने की तैयारी शुरू कर दी है। मध्यप्रदेश इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड के 714 करोड़ रुपए का कर्ज बांटने के मामले में मोहंती के खिलाफ लंबे समय से जांच चल रही थी। ईओडब्ल्यू उनके खिलाफ चार्जशीट पेश करने के लिए पिछले पांच साल से अभियोजन की अनुमति का इंतजार कर रहा था। प्रकरण में देरी के हवाला बनाकर भोपाल के मो. रियाजुद्दीन ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका लगाई थी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ब्यूरो को अभियोजन की कार्रवाई आगे बढ़ाने की हरी झंडी दे दी है। वहीं राजस्व विभाग ने 29 मामलों में लोकायुक्त को अभियोजन की स्वीकृति दे दी है। जिसमें से 25 मामले तो केवल रमेश थेटे पर हैं। इसी तरह अन्य विभाग भी मुख्यमंत्री के कड़े रुख को देखते हुए अपने-अपने विभाग के पेंडिंग पड़े मामलों को निपटाने में जुट गए हैं। सामान्य प्रशासन विभाग ने जाति प्रमाणपत्र को लेकर श्योपुर, गुना, टीकमगढ़, सागर, सतना, रीवा, इंदौर, कटनी, भोपाल सहित 10 जिलों के कलेक्टरों को डीओ पत्र लिखा है। साथ ही लोकसेवा अधिनियम का उल्लंघन करने वालों पर कार्रवाई करने का निर्देश भी दिया है। डबास का भी डिब्बा खुला मुख्यमंत्री द्वारा विभागवार चर्चा के दौरान अफसरशाही का अडिय़लपन और मनमर्जी सामने आई थी। इस पर सीएम ने नाराजगी व्यक्त करते हुए कड़े शब्दों में कहा था कि अब मनमर्जी नहीं चलेगी। इसी का नतीजा है कि लगातार विवादों में रहने वाले आईएफएस अफसर आजाद सिंह डबास के खिलाफ लोकायुक्त पुलिस सागर ने पद के दुरुपयोग का मामला दर्ज किया है। डबास पर पांच लाख की वित्तीय अनियमितता का आरोप है। उनके खिलाफ अधिकारियों और कर्मचारियों ने संयुक्त रूप से लोकायुक्त मुख्यालय को शिकायत की थी। डबास सितंबर 2012 से सितंबर 15 तक सागर में मुख्य वनसंरक्षक (अनुसंधान-विस्तार) रहे हैं। शिकायत के मुताबिक इस अवधि में डबास ने छोटे-छोटे काम कराने में वित्तीय अनियमितता की है। उन्होंने स्टोर से कंडम सामान बेचा, लेकिन राशि सरकारी कोष में जमा नहीं कराई। लोकायुक्त पुलिस ने शिकायत के आधार पर डबास के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(1) और 13 (डी) के तहत मामला दर्ज किया है। लोकायुक्त डीजी अजय शर्मा ने बताया कि आईएफएस डबास के खिलाफ पद के दुरुपयोग का मामला दर्ज हुआ है। मामले में कार्रवाई शुरू हो गई है। पीके सिंह के खिलाफ विभागीय जांच डबास के अलावा एक और आईएफएस पीके सिंह पर भी नकेल कसी गई है। देश की पहली व्हाइट टाइगर सफारी (मुकुंदपुर, रीवा) के निर्माण में अनियमितता के आरोपों के चलते सीसीएफ रीवा पीके सिंह के खिलाफ वन विभाग ने विभागीय जांच शुरू कर दी है। आरोप है कि सिंह के कार्यकाल में सफारी निर्माण में बड़े पैमाने पर अनियमितता हुई है। इसकी जांच एपीसीसीएफ अतुल श्रीवास्तव को सौंपी गई है, जबकि प्रस्तुतकर्ता अधिकारी रीवा सीसीएफ को बनाया है। रीवा के तत्कालीन सीसीएफ पीके सिंह के खिलाफ विभाग ने जांच कर जो आरोप पत्र सौंपा था, उसके जवाब से विभाग संतुष्ट नहीं है। सिंह ने निर्माण कार्य में अनियमितता के सभी आरोपों को नकार दिया था, जबकि विधानसभा में वन विभाग ने अनियमितताओं की बात स्वीकारी थी। इसे देखते हुए विभाग ने अब सिंह के खिलाफ विभागीय जांच करने का निर्णय लिया है। इसके अलावा जांच अधिकारी के साथ दुव्र्यवहार के मामले में विभाग ने सिंह को कारण बताओ नोटिस देकर जवाब मांगा है। यदि जवाब संतोषप्रद नहीं हुआ तो इस मामले में उनके खिलाफ अलग से कार्रवाई होगी। वहीं ठेकेदार से 50 लाख रुपए की रिश्वत मांगने के आरोपों में घिरे जबलपुर के सीसीएफ अजीत कुमार श्रीवास्तव के मामले में वन मुख्यालय से रिपोर्ट मांगी गई है। लोकायुक्त संगठन ने पुख्ता प्रमाण न होने को कारण रिश्वत का मामला चलाने योग्य नहीं माना था, पर विभाग ने इसको लेकर अंतिम निर्णय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर छोडऩे का फैसला किया है। इसके मद्देनजर विभाग ने वन मुख्यालय से पूरे प्रकरण की रिपोर्ट बनाकर भेजने के निर्देश दिए हैं। इसे मुख्यमंत्री को प्रस्तुत किया जाएगा। अपर मुख्य सचिव वन दीपक खांडेकर ने बताया कि मुकुंदपुर सफारी मामले में पीके सिंह के खिलाफ विभागीय जांच शुरू कर दी है। राघव चंद्रा की भी फाइल खुली भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के अध्यक्ष राघव चंद्रा पर गृह निर्माण मंडल के आयुक्त रहते समय भ्रष्टाचार के आरोप लगे। मामला अदालत में है। बताया जाता है कि कोर्ट के रूख को देखते हुए सरकार ने भी उनकी बंद फाइल खाल ली है। मामला कटनी जिले में साल 2000 में सामने आए बहुचर्चित भूमि घोटाले से जुड़ा हुआ है। कटनी में हाउसिंग बोर्ड द्वारा बनाई गई कॉलोनी के लिए खरीदी गई जमीन के खिलाफ साल 2003 में जनहित याचिका दायर की गई थी जिसमें आरोप लगाया गया है कि तत्कालीन हाउसिंग बोर्ड कमिश्नर राघवचंद्रा ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए यह जमीन दस गुना अधिक कीमत पर खरीदी गई थी। याचिका में कहा गया था कि तत्कालीन आयुक्त हाउसिंंग बोर्ड राघव चंद्रा ने कलेक्टर की अनुशंसा के विपरीत कटनी में जमीन अधिग्रहीत करने की बजाय कोलकाता की कंपनी ओलफर्ट्स प्रालि की निजी जमीन खरीद कर सरकार को लाखों रुपयों का नुकसान पहुंचाया। 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने मामला वापस हाईकोर्ट को रिमांड करते हुए कहा कि ईओडब्ल्यू ने जांच में कुछ अनियमितताएं पाई हैं। इन पर अब कार्रवाई किए जाने की आवश्यकता है। इसी मसले पर लंबे समय से कोर्ट में मामला लंबित है। कहा जा रहा है कि विवादित आईएएस राघवचंद्रा इस मामले में नए-नए मसले कोर्ट के सामने पेशकर केस को भटकाने की कोशिश कर रहे हैं। 400 से ज्यादा मामलों की फाइल खुली मुख्यमंत्री की सख्ती के बाद लोकायुक्त में वर्षों से धूल खा रही 400 से ज्यादा भ्रष्टाचार के मामलों की फाइल दोबारा खुलने लगी हैं, जो कार्रवाई की सिफारिश के बाद भी सालों से ठंडे बस्ते में पड़ी हैं। 22 मामले तो ऐसे हैं जिनमें भ्रष्टाचार साबित होने के बाद भी अभियोजन की अनुमति नहीं मिली और संबंधित अफसर रिटायर हो गए हैं। लोकायुक्त सूत्रों के मुताबिक छापे की कार्रवाई के बाद पहले तो दस्तावेजों के परीक्षण और विभागीय जांच में ही डेढ़ से दो साल लग जाते हैं, इसके बाद जब आरोपी अधिकारी को अपना पक्ष रखने के लिए बुलाया जाता है तो वे कमियां दिखाकर आवेदन पर आवेदन लगाते रहते हैं। इससे मामला और ज्यादा लंबित होता जाता है। फिर शासन के नियमों के मुताबिक प्रकरण को विभागीय जांच के लिए भेजना होता है। ऐसा इसलिए कि यदि विभाग ने कोई राशि नकद खर्च करने के लिए संबंधित अफसर या कर्मचारी को दी हो तो उसके लेन-देन के दौरान किसी को गलत ढंग से न फंसा दिया जाए। इसलिए मूल विभाग से अनुशंसा का नियम है। लोकायुक्त के अफसरों का कहना है कि विभाग से अनुमति के लिए लोकायुक्त चालान की प्रति विभाग को भेजता है तो संबंधित विभाग के पीएस पूरी फाइल पढ़ते हैं। इसके बाद 10 से 20 पेज में लिखे आरोप को पढ़कर अनुमति और अनुशंसा दी जाती है। जानकारी के अनुसार पहले नियम था कि केवल चालान फाइल पर लिखा जाता था कि अनुशंसा की जाती है लेकिन इसे लेकर आरोपी के वकील आपत्ति लगाते थे कि विभाग बिना पढ़े ही अनुमति दे देते हैं। इससे केस कमजोर हो जाता था। उप लोकायुक्त यूसी माहेश्वरी कहते हैं कि हमारी तरफ देर नहीं होती है। छापे की कार्रवाई के बाद अभियोजन की अनुमति के लिए संबंधित विभागों को प्रकरण भेज दिया जाता है। अब ये सरकार को देखना होगा की उनकी आंतरिक व्यवस्था कैसी है। सरकार को अपने संसाधन बढ़ाने चाहिए, ताकि इस तरह के मामलों में देरी न हो। डॉ. पंकज त्रिवेदी की संपत्ति होगी राजसात मप्र की शिक्षा को भ्रष्टाचार का गढ़ बनाने वाले त्रिवेदी बंधुओं यानी व्यापमं के पूर्व परीक्षा नियंत्रक व घोटाले के मुख्य आरोपी डॉ. पंकज त्रिवेदी तथा उनके भाई और राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (आरजीपीवी) के कुलपति प्रो. पीयूष त्रिवेदी की संपत्ति राजसात हो सकती है। सरकार ने पंकज त्रिवेदी की संपत्ति राजसात कर विशेष न्यायालय में केस चलाने की अनुमति दे दी। साधिकार समिति ने त्रिवेदी की संपत्ति राजसात करने के लिए सरकार से अनुमति मांगी थी। जिसके लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अनुमति दे दी है। वहीं ईओडब्लयू और लोकायुक्त ने पीयूष त्रिवेदी की काली कमाई की संपत्ति की पड़ताल शुरू कर दी है। इस मामले में पीयूष त्रिवेदी पर लगातार नकेल कसी जा रही है। बताया जा रहा है कि दोनों भाइयों के पास अनुपातहीन संपत्ति मिली है। मालूम हो कि वर्ष 2014 में पंकज त्रिवेदी और और उनके भाई पीयूष त्रिवेदी के इंदौर और भोपाल स्थित घरों में लोकायुक्त पुलिस ने छापामार कार्रवाई की थी। इस दौरान लोकायुक्त को पंकज त्रिवेदी के इंदौर स्थित मकान से करीब तीन करोड़ रुपए की संपत्ति का पता चला था। इसके अलावा भोपाल में बैंक ऑफ बड़ौदा की शाखा के एक लॉकर में भी मिला था। इस संपत्ति में से पंकज के पास 84 लाख की अनुपातहीन संपत्ति पाई गई जो काली कमाई से जमा की गई थी। पंकज त्रिवेदी पर वर्तमान में भोपाल जेल में बंद है और आय से अधिक संपत्ति के मामले में इंदौर की जिला कोर्ट में ट्रायल चल रहा है। वहीं पीयूष त्रिवेदी आरजीपीवी में कुलपति के पद पर पदस्थ हैं और दिसंबर में वे रिटायर होने वाले है। उधर ईओडब्ल्यू और लोकायुक्त ने पीयूष त्रिवेदी की काली कमाई की जांच शुरू कर दी है। बाकी भ्रष्टों का क्या होगा? सरकार और उसकी जांच एजेंसियों ने त्रिवेदी बंधुओं पर तो नकेल कसनी शुरू कर दी है, लेकिन उन भ्रष्ट अफसरों का क्या होगा, जिनके पास आयकर विभाग और लोकायुक्त के छापों में करोड़ों की संपत्ति मिली थी। उल्लेखनीय है कि प्रदेश के भ्रष्ट अफसरों की संपत्ति जब्त करने के लिए सरकार ने 'मध्यप्रदेश विशेष न्यायालय अधिनियम 2011Ó लागू किया था लेकिन प्रदेश के सबसे भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ इस अधिनियम के तहत कोई कार्रवाई नहीं की गई है। आलम यह है कि कई भ्रष्ट अफसर छापेमारी के बाद फिर से अपना रसूख कायम करने में जुट गए हैं। उल्लेखनीय है कि जब इस अधिनियम के तहत इंदौर जिले में विशेष अदालत ने पहला फैसला सुनाते हुए इंदौर के क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय में सहायक ग्रेड तीन के रूप में पदस्थ रहे रमण धुलधोये उर्फ रमेन्द्र के विशाल फार्म हाउस को आवासीय खेल परिसर में बदल देने का निर्णय दिया था तब ऐसा लगा था कि प्रदेश में भ्रष्टों पर अब नकेल कसी जा सकेगी। लेकिन उसके बाद किसी भी बड़े अधिकारी के खिलाफ आज तक कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है। ज्ञातव्य है कि भ्रष्टाचार निरोधक कानून में प्रावधान है कि प्रदेश सरकार अपने कारिंदों की भ्रष्ट तरीकों से बनाई गई संपत्ति को जब्त करके जन हित में इसका इस्तेमाल कर सकती है। हालांकि इस कानून के तहत अभी तक लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू द्वारा कई अधिकारियों-कर्मचारियों की चल-अचल संपत्ति जब्त करने की अनुशंसा सरकार से की गई है। सबसे अधिक मामले जलसंसाधन विभाग में जिन अधिकारियों कर्मचारियों की संपत्ति जब्त करने की अनुशंसा की गई है उनमें सबसे अधिक जलसंसाधन विभाग के हैं। इनमें पीसी मोहबिया प्रभारी मुख्य अभियंता जल संसाधन विभाग सिवनी, मातेश्वरी प्रसाद चतुर्वेदी एसी जलसंसाधन विभाग रीवा, शमशेर सिंह सोलंकी सहायक यंत्री जलसंसाधन सीधी, प्रहलाद अमरिया एसडीओ जलसंसाधन विभाग उज्जैन, पीएन तिवारी एसडीओ जलसंसाधन सिवनी, राधेश्याम पाटीदार उपयंत्री जलसंसाधन विभाग खरगोन का नाम शामिल है। इनके अलावा उज्जैन के पटवारी ओमप्रकाश प्रेम और बिरेश उपाध्याय के अलावा महेंद्र कुमार जैन अधीक्षण यंत्री ग्रामीण यांत्रिकी, बाबूलाल गोठवाल संपदा अधिकारी इंदौर विकास प्राधिकरण, छोटे खान लेखापाल महिला एवं बाल विकास विभाग अलीराजपुर, ताराचंद पारीकर मंडी सचिव बड़वानी, वीरेंद्र कुमार आर्य सहायक निरीक्षक कृषि उपजमंडी खनियाधाना, अरविंद कुमार तिवारी उपयंत्री आरईएस देवास, संतोष कुमार आर्य उपयंत्री आरईएस खरगोन, भवानी प्रसाद भारके आबकारी अधिकारी होशंगाबाद, नीलम मिंज आरक्षक परिवहन, चित्रसेन बिसेन संस्था प्रबंधक सहकारिता विभाग, बलभद्र प्रसाद पाराशर समिति प्रबंधक सहकारिता विभाग ग्वालियर, त्योसिल तिग्गा सत्कार अधिकारी सामान्य प्रशासन विभाग। यहां सवाल यह भी उठता है कि एक तरफ सत्कार अधिकारी त्योसिल तिग्गा के खिलाफ कार्रवाई तो की गई लेकिन उसी मामले में राज्य शिष्टाचार अधिकारी राजेश मिश्रा और आरएन सहाय के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई। जबकि मिश्रा उस मामले के मुख्य आरोपी थे। उन्हीं के हस्ताक्षर से सारे बिल पास होते थे और कैश में पार्टियों का भुगतान होता था। यही नहीं स्वास्थ्य विभाग में आयकर विभाग ने जिन अधिकारियों के यहां छापे मारे थे उनकी संपत्ति जब्ती की कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है। इनके खिलाफ कब होगी कार्रवाई प्रदेश में मोहंती और थेटे के अलावा 44 अन्य नौकरशाह है जिनके खिलाफ 61 मामले दर्ज हैं। जिनके खिलाफ अभियोजन की अनुमति वर्षों से लंबित हैं। बताया जाता है कि लोकायुक्त पुलिस लंबे समय से मप्र के 45 दागी नौकरशाहों के खिलाफ अभियोजन की अनुमति मांग रही है। फाइलें सीएम सचिवालय में धूल चाट रहीं हैं। बार-बार उंगलियां भी उठ रहीं हैं। इनमें से कई आईएएस अफसरों के खिलाफ तो गंभीर आर्थिक अपराध के मामले दर्ज हैं। ऐसे में अब सवाल उठ रहा है कि इन अफसरों के खिलाफ कब कार्रवाई होगी। एमके सिंह : 1985 बैच के अधिकारी के खिलाफ राज्य शिक्षा केंद्र में लगभग 8 करोड़ रुपए की नियम विरुद्ध खरीदी के मामले में लोकायुक्त पुलिस जांच कर रही है। इनके खिलाफ डीई भी चल रही है। वे अभी राजस्व मंडल ग्वालियर में पदस्थ हैं। लक्ष्मीकांत द्विवेदी : गृह विभाग में उप सचिव पदस्थ द्विवेदी पर कटनी नगर निगम आयुक्त रहते हुए द्विवेदी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा था। लोकायुक्त पुलिस जांच कर रही है। पूर्व लोकायुक्त जस्टिस पीपी नवलेकर के खिलाफ बयानबाजी भी की थी। गोपाल रेड्डी : आईएएस गोपाल रेड्डी के खिलाफ कॉलोनाइजरों के अनुचित फायदा पहुंचाने के मामले में केस दर्ज हुआ था। 18 साल से जांच चल रही है। ईओडब्ल्यू ने 2002-03 में 6 करोड़ के नकली बीज खरीदी के मामले में दस साल बाद 2012 में केस दर्ज किया था। रेड्डी अभी केंद्र में पदस्थ हैं। नीरज मंडलोई : नीरज मंडलोई के खिलाफ भी इंदौर प्रेस क्लब मामले में 2009 में केस दर्ज हुआ था। नीरज काफी समय से केंद्र सरकार में डेपुटेशन पर हैं। राजेश राजौरा : इंदौर प्रेस क्लब में विधायक निधि से काम करवाने के मामले में लोकायुक्त ने राजौरा के खिलाफ दो केस में जांच शुरू की थी। एक केस में खात्मा लग चुका है। उसी तरह के एक केस में जांच चल रही है। मामला वर्ष 2009 का है। वे अभी कृषि विभाग के प्रमुख सचिव हैं। हालांकि, इससे जुड़े एक मामले में खात्मा लग चुका है। विवेक अग्रवाल : अग्रवाल के खिलाफ 2009 में इंदौर प्रेस क्लब में विधायक और सांसद निधि से काम करवाने के मामले में लोकायुक्त पुलिस में जांच चल रही है। हालांकि, इससे जुड़े एक मामले में खात्मा लग चुका है। 2010 से सीएम सचिवालय में जुड़े हैं और एमपीआरडीसी, पीडब्ल्यूडी के पदस्थ रह चुके हैं। वर्तमान में आयुक्त नगरीय प्रशासन, सचिव, मेट्रो रेल कार्पोरेशन के एमडी और सचिव मुख्यमंत्री हैं। भोपाल में तुलसी नगर और शिवाजी नगर में स्मार्ट सिटी बनाने की इनकी जिद थी। किसी भी शहर में स्मार्ट सिटी का प्लान आगे नहीं बढ़ा। इनके व्यवहार से मंत्री और संगठन के नेता बेहद खफा हैं। शशि कर्णावत: जिला पंचायत की सीईओ रहते खरीदी समेत अन्य मामलों में अनियमितताओं के आरोप में दोषी। कोर्ट ने पांच लाख का जुर्माना भी लगाया। फिलहाल निलंबित जांच जारी। बीके सिंह : फरवरी 2013 में बीके सिंह के घर लोकायुक्त पुलिस ने छापा मारा था। वे उज्जैन में सीसीएफ थे। छापे में बेनामी संपत्ति मिली थी। चालान की अनुमति राज्य सरकार ने लोकायुक्त पुलिस को नहीं दी है। प्रकाश जांगड़े: दतिया कलेक्टर रहते लोक निर्माण विभाग के कार्यपालन यंत्री केके सिंगारे को थप्पड़ मारने को लेकर विवादों में आए थे और वहां से हटाए गए थे। इसके बाद कटनी कलेक्टर बने, समाधान आनलाइन में महिला कर्मियों के भुगतान प्रकरण में गडबड़ी के चलते सीएम ने निलंबित किया था। अभी भी जांच जारी। के पी राही: टीकमगढ़ में कलेक्टर रहने के दौरान मनरेगा में नियम विरूद्ध खरीदी और भुगतान को लेकर अनियमितिता के आरोप के चलते निलंबित किए गए। कुछ समय बाद बहाल पर मामले की जांच अब भी जारी है। अंजू सिंह बघेल: कटनी की कलेक्टर रहने के दौरान सीलिंग की जमीन निजी भूस्वामियों को देने के आरोप में हटाई गर्इं। सरकार ने इस मामले में निलंबित कर जांच बैठाई बाद में बहाल की गई और अब रिटायर भी हो चुकी हैं पर जांच अब तक पूरी नहीं हो पाई है। एम एस भिलाला: रतलाम कलेक्टर नियम विरूद्ध खरीदी के चलते हटाए गए थे। सरकार ने पाया था कि खरीदी में क्रय नियमों का पालन नहीं किया गया। इसे लेकर नोटिस मिला और जांच शुरू हुई। जांच के दौरान भिलाला रिटायर हो गए पर जांच अब तक पूरी नहीं हो पाई है। सिबि चक्रवर्ती: तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता के समर्थन में फेसबुक पर ट्वीट कर विवादों में फंसे। सरकार ने इसे सिविल सेवा आचरण नियमों का उल्लंघन मानते हुए नोटिस दिया। इसके बाद से कार्यवाही अब तक लंबित। अजय गंगवार: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के एक लेख पर अपनी फेसबुक बाल पर कमेन्टस करने के कारण विवादों में आए। सरकार के नोटिस के बाद भी कमेन्ट्स जारी रहने पर कलेक्टर बड़वानी के पद से हटाए गए। नोटिस के बाद सरकार ने पूछ लिया कि मैने कौन सी टिप्पणी की है, दस्तावेज समेत बताए। इसके बाद से कार्यवाही लंबित। मनीष श्रीवास्तव: शिवपुरी, टीमकगढ़ में अर्धवार्षिक परीक्षा में गलत भुगतान, राजीव गांधी शिक्षा मिशन में निर्माण में अनियमितता, दवा व बिस्तर खरीदी में गड़बड़ी, उत्तर पुस्तिका छपाई और गणवेश खरीदी और खदानों का गलत तरीके से आवंटन। अरूण पांडे: खनिज लीज में ठेकेदारों को अवैध लाभ पंहुचाना। प्रभात पाराशर: वाहनों के क्रय में 5 लाख से अधिक का भ्रष्टाचार। मोहम्मद सुलेमान: कालोनाईजरों को अवैध लाभ पंहुचाना। कांग्रेस सरकार में भी ये पॉवरफुल रहे। फरवरी 2014 से उद्योग विभाग की कमान संभाल रहे हैं। ये इतने रसूखदार हैं कि मंत्री यशोधरा सिंधिया से जब उद्योग विभाग छिना तब उन्हें यह टिप्पणी करने पड़ी कि एक बाबू ने उनका विभाग बदलवा दिया। उद्योग से पहले ये ऊर्जा विभाग में थे। इन्वेस्टर्स समिट को लेकर इनके विदेश दौरे दिल्ली तक खासे चर्चा में रहते हैं। उद्योगपतियों ने प्रदेश में निवेश तो नहीं किया लेकिन सुलेमान से उनके संबंध चर्चा में रहे। अरूण भट्ट: भारी रिश्वत लेकर निजी भूमि में अदला बदली। निकुंज श्रीवास्तव: पद का दुरूपयोग एवं भ्रष्टाचार, दो शिकायतें। संजय दुबे: शिक्षाकर्मियों के चयन में अनियमितताएं। एमके वाष्णेय: सम्पत्तिकर का अनाधिकृत निराकरण करने से निगम को अर्थिक हानि। केके खरे: पद का दुरूपयोग कर भ्रष्टाचार। अलका उपाध्याय: भारी धन राशि लेकर छह माह तक दवा सप्लाई के आदेश जारी नहीं किए। पी नरहरि: सड़क निर्माण व स्टाप डेम में गड़बड़ी। शिखा दुबे: अनुसूचित जाति, जनजाति के विधार्थियों की गणवेश खरीदी में अनियमितता। जीपी सिंघल: सेमी ओटोमेटिक प्लांट की जगह प्राइवेट डिस्टलरी से देशी शराब की वाटलिंग कराने का आरोप। मनीष रस्तोगी: सतना में रोजगार गारंटी योजना में 10 करोड़ की अनियमितता। विवेक पोरवाल: सतना में रोजगार गारंटी योजना में 10 करोड़ की अनियमितता। हरिरंजन राव: रायल्टी का भुगतान नहीं करने से शासन को लाखों की चपत लगाई। सीबी सिंह:बिल्डर्स को लाभ पहुंचाने के लिए अवैध निर्माण व विक्रय। प्रमोद अग्रवाल: औधोगिक केन्द्र विकास निगम में अनियमितताएं। इन्हें सरकार का चहेता अफसर माना जाता है। छवि ईमानदार है, लेकिन भ्रष्टों पर मेहरबान रहे हैं। इनकी कार्यप्रणाली की वजह से लोक निर्माण विभाग में ठेकेदार काम करने को तैयार नहीं है। इंजीनियरों में दहदत है। कोई भी काम करने को तैयार नहीं है। इससे कामकाज ठप है। मंत्री रामपाल सिंह ने पद संभालते ही इन्हें विभाग से हटाने की मांग की। लोनिवि से पहले ये परिवहन विभाग में थे। तब राजस्व वसूली का काम निजी कंपनी को सांैपा, जिससे अरबों की राजस्व हानि हुई। बाद में विभाग बदला। आशीष श्रीवास्तव: एमपीएसआईडीसी की राशि का एक मुश्त उपयोग कर बैंक लोन पटाने का मामला एसएस कुमरे : एसएस कुमरे के खिलाफ 6 साल से ज्यादा समय से विभागीय जांच चल रही है। उनके खिलाफ उमरिया कलेक्टर रहते हुए मृदा संरक्षण प्रोजेक्ट के लिए निर्धारित बजट से ज्यादा पैसा आवंटित करने के मामले में विभागीय जांच चल रही है। मंत्रालय में पीएचई के उपसचिव के रूप में पदस्थ हैं। कामता प्रसाद राही : महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना की राशि में 16 लाख की गड़बड़ी का आरोप झेल रहे हैं। उनके खिलाफ विभागीय जांच चल रही है। राही निलंबित भी रहे, फिर उन्हें 2010 में बहाल कर दिया गया। विभागीय जांच अभी जारी रही। अखिलेश श्रीवास्तव : अखिलेश श्रीवास्तव जब दमोह जिला पंचायत के सीईओ थे, तब उन पर शिक्षाकर्मी भर्ती में गड़बड़ी का आरोप लगा था। विधानसभा में गलत जानकरी देने के मामले में भी उनके खिलाफ जांच हुई। रिटायर हो गए। डॉ. डीएन शर्मा: एग्रीकल्चर डायरेक्टर रहते हुए डॉ. डीएन शर्मा के घर लोकायुक्त का छापा पड़ा था। आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज हुआ लेकिन कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं हुई। आखिरकार वे रिटायर हो गए। पीयूष त्रिवेदी: तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर काबिज हैं। व्यापमं फर्जीवाड़े के आरोप इन पर लगे। गलत नियुक्ति को लेकर कई शिकायतें। बीके मंदोरिया: गंजबासौदा के तहसीलदार रहते हुए बीके मंदोरिया पर 50 हजार रुपए की रिश्वत लेने का आरोप। शासन ने निलंबित करने की जगह उनका भोपाल तबादला कर दिया। रमाकांत तिवारी: प्रमुख सचिव पीडब्ल्यूडी प्रमोद अग्रवाल के नाम पर एसडीओ अनिल मिश्रा और असिस्टेंट इंजीनियर आरपी शुक्ला से रिश्वत मांगने का आरोप। एएन मित्तल: स्वास्थ्य संचालक रहते हुए इन पर भी भ्रष्टाचार का आरोप लगा। लोकायुक्त ने छापे मारे तो लाखों रुपए नकद और संपत्ति मिली। मामले में उन्हें सस्पेंड किया गया। डॉ. मयंक जैन : 1995 बैच के आईपीएस अफसर के घर लोकायुक्त पुलिस का छापा पड़ा था। अनुपातहीन संपत्ति का आरोप लगा। मयंक जैन फिलहाल सस्पेंड हैं। दमदार घोड़ों पर कौन कसेगा नकेल राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की भोपाल में सत्ता और संगठन के बीच समन्वय को लेकर हुई बैठक के दौरान जो सबसे बड़ा मुद्दा उभर कर सामने आया वह बेलगाम नौकरशाही और उनके भ्रष्टाचार पर केंद्रित रहा। शिवराज पर तोहमत लगी कि नौकरशाहों पर सरकार का नियंत्रण नहीं है। नौकरशाह न तो भाजपा के मंत्रियों को घास डाल रहे हैं और न विधायकों तथा पार्टी के आम कार्यकर्ताओं को तवज्जो दे रहे हैं। आम जनता की तो बिसात ही क्या। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने नौकरशाहों के भ्रष्टाचार की बात की तो काबिना के मंत्रियों ने निरंकुश नौकशाहों की शिकायत की। वहीं मंत्रिमंडल से रूखस्त होने के बाद बेलगाम होती नौकरशाही के लिए बाबूलाल गौर ने घोड़े की बजाए घुड़सवार को निशाने पर लिया है। इसमें कोई शक नहीं कि नौकरशाहों पर नियंत्रण घोड़े की सवारी जैसा ही होता है। यदि घुड़सवार अनाड़ी हो तो घोड़ा दुलत्ती भी मारता है और घुड़सवार को पटकनी भी देता है। गौर का कहना कुछ हद तक सही भी है। क्योंकि मप्र की एक दशक की कार्यप्रणाली को देखें तो हम पाते हैं कि कई नौकरशाह ऐसे हैं जिन का लगाम लगाना हर किसी के बूते की बात नहीं है। क्योंकि कुछ चुनिंदा नौकरशाहों (बाबूलाल गौर के शब्दों में घोड़े) को शिवराज सिंह चौहान ने इस कदर अपने इशारे पर फेरा है कि जब भी भाजपा के मंत्री, विधायक, सांसद और कार्यकर्ता इनको चलाने की कोशिश करते हैं तो वह दुलत्ती मारकर उन्हें दूर कर देते है। प्रदेश में सरकार से भाजपा संगठन और संघ की नाराजगी की एक वजह है लंबे समय से मलाइदार और दमदार पदों पर जमे रसूखदार अफसरों की कार्यप्रणाली। यही कारण है कि पिछले महीने संघ की समन्वय बैठक में भ्रष्टाचार और चुनिंदा अफसरों की मनमानी की वजह से सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए गए थे। इसके बाद संगठन और संघ को उम्मीद थी कि सरकार में जरूरत से ज्यादा दखलंदाजी करने वाले अफसरों को किनारे किया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। आलम यह है कि संघ और संगठन की घेराबंदी के बाद सरकार ने दमदार अफसरों को इधर से उधर तो किया लेकिन उनका रसूख कायम रखा। संघ की समन्वय बैठक के तत्काल बाद मुख्यमंत्री सचिवालय से इकबाल सिंह बैस और जल संसाधन विभाग से राधेश्याम जुलानिया की विदाई हो गई, लेकिन दोनों का दखल बरकरार है। इन दोनों के अलावा मोहम्मद सुलेमान, प्रमोद अग्रवाल, विवेक अग्रवाल, पुष्पलता सिंह, विनीत आस्टिन जैसे रसूखदार अफसरों को किनारे करने की इस कार्रवाई से संगठन और संघ संतुष्ट नहीं है।

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