बुधवार, 21 दिसंबर 2016

महंगी बिजली खरीदी का खेल...

रोजाना 4,68,00,000 की बिजली बेहिसाब
निजी कंपनियों को फायदा पहुंचान फिर जेब काटने की तैयारी
भोपाल। मप्र में निजी कंपनियों और अधिकारियों के बीच बिजली उत्पादन, खरीदी और बिक्री का खेल चल रहा है। प्रदेश में जरूरत से अधिक बिजली उत्पादन और खरीदी कर सरकार को रोजाना 4,68,00,000 रूपए की चपत लगाई जा रही है। स्थिति इतनी विकट है कि निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए उनसे महंगी बिजली खरीदी जा रही है और उसे सस्ती दर पर दूसरे राज्यों को बेचा जा रहा है। इसका असर यह हो रहा है विद्युत वितरण कंपनियां निरंतर घाटे में जा रही हैं और इसकी भरपाई के लिए मप्र के उपभोक्ताओं पर निरंतर भार डाला जा रहा है। लेकिन अफसरशाही के जाल में उलझी सरकार को यह सुध नहीं है कि वह मप्र पावर मैनेजमेंट कंपनी, मप्र पावर जनरेटिंग कंपनी, मप्र पावर ट्रांसमिशन कंपनी, मप्र पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी, मप्र मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी, मप्र पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी से बिजली का हिसाब मांग सके। दरअसल, मप्र में सरकार ने सभी विभागों को फ्री-हैंड दे रखा है कि अपने विभाग को अव्वल बनाने का प्रयास करें। सरकार का यह मंत्र ऊर्जा विभाग के अफसरों के लिए सोने पर सुहागा साबित हुआ है। सरकार की नजर में अपने विभाग को अव्वल दर्शाने के लिए ऊर्जा विभाग इस समय हर दिन बिजली का 15 हजार मेगावॉट उत्पादन कर रहा है, जबकि प्रदेश में बिजली की डिमांड 9 हजार मेगावॉट है। इसमें से अधिकांश बिजली निजी कंपनियों से महंगी दर पर खरीदी जा रहा है। यही नहीं निजी कंपनियों से महंगी बिजली खरीद कर उसे हरियाणा, पंजाब, दिल्ली और पश्चिम बंगाल को सस्ते में बेचा जा रहा है। अपना घर फंूक दूसरों का घर रोशन करने के चक्कर में बिजली कंपनियां 9288 करोड़ के घाटे में चली गई है और इसकी भरपाई के लिए अब जनता की जेब काटने की तैयारी की जा रही है। सामान्यत: प्रदेश में 6000 मेगावाट बिजली की मांग रहती है। 2500 मेगावाट औसत प्रदेश के संयंत्रों से 2200 मेगावाट तक निजी खरीदी और 2000 मेगावाट बिजली औसत नेशनल ग्रिड से ली जाती है। 500-700 मेगावाट बिजली उलटे सरप्लस बताकर बेच दी जाती है। ऐसे मंहगी बिजली खरीद सस्ते में बेची जाती है। कंपनी के रसूख से तय होता है रेट मध्य प्रदेश सरकार की नीति और नीयत सवालों के घेरे में है। वह अपने बिजली संयंत्रों को बंद कर निजी कंपनियों से बिजली खरीद कर सूबे में उसकी आपूर्ति कर रही है। इस खेल से सरकारी खजाने को करोड़ों का चूना लग रहा है और निजी कंपनियों की बल्ले-बल्ले हो आयी है। यही नहीं मप्र में स्थापित निजी विद्युत उत्पादन कंपनियों से बिजली खरीदी का कोई निश्चित मापदंड नहीं है। ऊर्जा विभाग कंपनियों के रसूख को देखकर रेट तय करता है। यही कारण है कि प्रदेश में ऊर्जा विभाग द्वारा निजी कंपनियों से जो बिजली खरीदी जा रही है वह प्रति यूनिट औसतन 7.80 रूपए पड़ रही है। लेकिन विभाग इसी बिजली को हरियाणा, पंजाब, दिल्ली और पश्चिम बंगाल को औसतन 5.50 रूपए में बेंच रहा है। ऐसे में विभाग को चपत लगना तय है। ज्ञातव्य है कि विभाग विभिन्न कंपनियों से अलग-अलग दरों पर बिजली खरीदी करता है। एटीपीसी से वर्ष 2015-16 में 2.89 रूपए में प्रति यूनिट बिजली खरीदी गई। इसी तरह एनपीसी से 2.78, सरदार सरोवर से 2.31, एनवीडीए से 4.52, दामोदर वैली कार से 3.63, टोरेंटो पीटीसी से 7.43, बीएलए से 3.63, जेपी बीना से 4.97, लेको से 3.10, सासन से 1.59, जेपी निगारी से 2.51, एमबी पॉवर से 3.46 और एमपी जनरेटिंग कंपनी से 4.00 की दर से बिजली खरीदी गई। इसी तरह राज्यों का जो बिजली बेची जा रही है उसमें भी असमानता है। विभाग के एक अधिकारी का कहना है कि प्रदेश में बिजली खरीदी और बिक्री का गणित केवल कुछ अधिकारियों को ही पता है। वह कहते हैं कि खरीदी-बिक्री में सरकार को जमकर चूना लगाया जा रहा है। इसका उदाहरण देते हुए वे कहते हैं कि विभाग कहता है कि वह सिंगरौली जिले के सासन में रिलायंस समूह द्वारा स्थापित पॉवर प्लांट से 1.59 रूपए प्रति यूनिट बिजली खरीद रहा है, जबकि 22, 23 अक्टूबर को इंदौर में आयोजित ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट में एडीएजी रिलायंस समूह के चेयरमैन अनिल अंबानी ने कहा कि मध्यप्रदेश को रिलायंस पावर प्लांट द्वारा मात्र एक रुपए 20 पैसे की प्रति यूनिट दर पर विद्युत उपलब्ध कराई जा रही है। उन्होंने कहा कि आगामी 25 वर्षों तक रिलायंस पावर प्लांट द्वारा मात्र एक रुपए 20 पैसे की प्रति यूनिट दर पर विद्युत राज्य को उपलब्ध कराई जा रही है। आखिर सरकारी आंकड़े और अंबानी के आंकड़े में 39 पैसे का अंतर क्यों है? विभाग के सूत्र बताते हैं कि शासन प्रोजेक्ट से जो सस्ती बिजली मिल रही है, उसमें घालमेल करके विभिन्न कारणों का हवाला देकर लगातार दरें बढ़वाई जा रही हैें। इसमें शासन प्रोजेक्ट के लिए रिलायंस ने अदालत में अपील दायर करके 20 साल तक निर्धारित दर फार्मूले में भी संशोधन कराया है। इसमें सरकारी बिजली कंपनियों का पक्ष कमजोर रहा। इसके तहत 2014-15 में जहां 70 पैसे प्रति यूनिट बिजली मिल रही थी, वहीं 2015-16 में 1.59 रूपए प्रति यूनिट बिजली मिली है। फिर भी यह बिजली दूसरी कंपनियों की तुलना में सस्ती है। ऐसे में सवाल उठता है कि जब निजी कंपनियों से ही बिजली खरीदी जानी थी तब अरबों रुपये खर्च कर सरकार ने बिजली उत्पादन इकाइयों की स्थापना ही क्यों की? इनके रख-रखाव, देख-रेख व स्थापना-व्यय मद में जो रकम खर्च हो रही है, वह क्यों? बावजूद इसके सरकार का दावा है कि मध्य प्रदेश अब सरप्लस बिजली वाला स्टेट बन गया है। तब क्यों शहरी उपभोक्ता लगभग दस रुपए प्रति यूनिट बिजली खरीदने को मजबूर हैं? क्यों ग्रामीण इलाकों में वादे के विपरीत 15 से 20 घंटे की बिजली कटौती जारी है? ऐसे अनेक सवाल हैं जो दावों व हकीकत में भेद करते हैं। खुद को किया बर्बाद, पड़ोस को कर रहे आबाद मप्र में बिजली का खेल इस तरह चल रहा है कि खुद को बर्बाद कर पड़ोस को रोशन किया जा रहा है। और इसके लिए अपने संयंत्र बंद कर सरकार निजी कंपनियों से बिजली खरीद रही है। तर्क भी गजब का, एक तो सरकार इन कंपनियों से अनुबंध में बंधी है तो दूसरा उत्पादन के बजाय खरीदी कर बिजली की आपूर्ति करना सरकार को अधिक सस्ता पड़ रहा है। ऊर्जा विभाग के अधिकारियों की कारस्तानी का नतीजा यह हो रहा है कि सरकारी संयंत्रों में उत्पादन में गिरावट आ रही है। वहीं निजी कपंनियों से हर माह करोड़ों रुपए की बिजली खरीद कर उपभोक्ताओं को इसकी आपूर्ति की जा रही है। इस पर सरकार का दावा यह कि बिजली उत्पादन के मामले में हम सरप्लस स्टेट की श्रेणी में आ गए। जानकार सूत्रों के मुताबिक, बीते एक दशक में प्रदेश सरकार ने बिजली उत्पादन के क्षेत्र में खासा काम किया। अनेक प्रमुख हाइड्रो पावर संयंत्रों की स्थापना हुई। वहीं नवकरणीय ऊर्जा यानी गैर-पंरपरागत तरीके से बिजली उत्पादन के क्षेत्र में भी काफी काम हुआ। दूसरी ओर सरकार ने बिजली संकट के नाम पर एक दर्जन से अधिक निजी कंपनियों से बिजली खरीदी के लिए 20 से 25 साल की अवधि के अनुबंध कर लिए। बिजली उत्पादन के मामले में स्वावलंबी होना जहां प्रदेश के हित में है वहीं निजी कंपनियों की शर्तों में बंधना सरकार की नीयत पर सवाल खड़े करता है। सवाल यह है कि जब सरकार एक दशक पहले से यह दावा करती रही है कि बिजली उत्पादन के मामले में मध्य प्रदेश वर्ष 2018 तक पूरी तरह आत्मनिर्भर हो जाएगा तब निजी कंपनियों से इस दीर्घ अवधि के अनुबंध क्यों किए गए? अब सरकार इन अनुबंधों में बंधी है। इसके चलते उसे अपने संयंत्रों से उत्पादन बंद कर इन कंपनियों से उनके मनमाने दाम पर बिजली की खरीद करनी पड़ रही है। खरीदी अनुबंध करते समय सरकार का इंडस्ट्रियल ग्रोथ का अनुमान गलत साबित हुआ है। प्रदेश में बिजली की मांग खेती के सीजन में 11 हजार 500 मेगावाट को पार कर जाती है। बाद में यही डिमांड 5-6 हजार मेगावाट के आस-पास रह जाती है। वहीं पिछले एक दशक में उद्योगों में कोई उल्लेखनीय वृद्धि भी नहीं हुई है। सूत्रों के मुताबिक, सरकार ने निजी क्षेत्र में रिलायंस, जेपी ग्रुप, मोजरबियर, लेंको सहित अन्य कंपनियों से 14 हजार मेगावाट से ज़्यादा की बिजली खरीद के करार (पीपीए) कर रखे हैं। इसके एवज में इन कंपनियों को बहुत कम दरों पर (लगभग मु त में) कोयले की बड़ी खदानें आवंटित की हैं। यदि इनसे बिजली न भी खरीदें तो अनुबंध की शर्तों के चलते इनको एक निश्चित राशि का भुगतान करना सरकार की मजबूरी है। यह हो भी रहा है। बताया जाता है कि सरकार जेपी एसोसिएट्स को बीते कुछ माह से बिना किसी खरीद के ही हर माह करोड़ों रुपये का भुगतान कर रही है। सरकार का दावा है कि निजी व सरकारी कंपनियों से बिजली की खरीद कर इसकी आपूर्ति करना स्वयं के संयंत्रों से उत्पादन करने की तुलना में 60 से 90 पैसे प्रति यूनिट तक सस्ता है। पिछले सालों में पवन ऊर्जा और सौर ऊर्जा क्षेत्र में प्रदेश में बहुत निवेश हुआ है। अभी 1300 मेगावाट तक (अधिकतम) बिजली इन गैर-पर परागत क्षेत्रों से मिल रही है। ये बिजली पांच से आठ रुपए प्रति यूनिट पड़ती है। ग्रीन एनर्जी पैदा कर रही इन कंपनियों से अनुबंध के चलते महंगी बिजली खरीदना सरकार की बाध्यता है। हर साल 2,000 करोड़ की चपत अपने संयंत्रों से उत्पादन बंद कर निजी कंपनियों से बिजली खरीदे जाने को लेकर सरकार की नीयत व नीति पर सवाल खड़े हो रहे हैं। आम आदमी पार्टी के आलोक अग्रवाल पहले ही यह आरोप लगाते रहे हैं कि निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने की गरज से सरकार उपभोक्ताओं को मंहगी बिजली मुहैया करा रही है। मध्य प्रदेश शासन निजी विद्युत कंपनियों जैसे जेपी बीना पावर, जेपी निगरी, एमबी पावर, बीएमए पावर, लेंको अमरकंटक से बिजली को नियमानुसार प्रतिस्पर्धात्मक बोली के आधार पर न खरीद कर महंगी बिजली खरीदी जा रही है। प्रदेश सरकार ने जेपी बीना पावर से साल भर पहले 1.35 करोड़ यूनिट बिजली करीब 52 करोड़ रुपये में खरीदी थी। इसी कंपनी को बीते साल मई, जून व जुलाई में बिना एक भी यूनिट बिजली खरीदे 150 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया गया। इस प्रकार इन कंपनियों से महंगी बिजली खरीद पर प्रदेश सरकार को दो हजार करोड़ रुपए प्रति वर्ष का नुकसान हो रहा है। आलोक कहते हैं कि दिल्ली और छत्तीसगढ़ राज्यों की अपेक्षा मध्य प्रदेश में बिजली की दर सबसे ज्यादा है। जबकि दूसरी ओर सरकार बिजली उत्पादन में सरप्लस स्टेट होने का दावा कर रही है। थर्मल, हाडड्रो पावर स्टेशन बदहाल मध्यप्रदेश में अब तक थर्मल पावर प्लांट के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च किए जा चुके हैं लेकिन इसके बाद भी प्रदेश की 10 थर्मल पावर यूनिट बंद हो चुकी हैं। इनमें सारणी के थर्मल पावर प्लांट की छह के अलावा संजय गांधी थर्मल पावर स्टेशन की एक, अमरकंटक की दो और श्रीसिंगाजी की एक यूनिट ऐसी हैं जो पूरी तरह से ठप हो चुकी हैं और इनसे प्रदेश को बिजली उत्पादन नहीं किया जा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, अगर इन थर्मल पावर प्लांट पर ठीक से काम किया जाए तो 4320 मेगावाट बिजली उत्पादन हो सकता है। लेकिन, अभी इन यूनिट्स से 15 प्रतिशत यानी 627 मेगावाट ही बिजली उत्पादन हो रहा है। प्रदेश में वर्तमान में सिर्फ विंड से बिजली प्रोडक्शन हो रहा है जबकि सोलर एनर्जी और बायोमास से बिजली के उत्पादन के मामले में स्थिति शून्य है। यह स्थिति सिर्फ थर्मल पावर प्लांट तक ही सीमित नहीं है। रिपोर्ट के आंकड़ों पर नजर डालें तो ज्ञात होता है कि प्रदेश के सभी 12 हाइड्रो पावर स्टेशन की हालत भी दयनीय हो चुकी है। इसका अंदाजा इनके टोटल प्रोडक्शन को देखकर लगाया जा सकता है। वर्तमान समय में हाइड्रो पावर स्टेशन से महज 564 मेगावाट से बिजली उत्पादन हो रहा है जबकि इन हाइड्रो स्टेशन के जरिए कुल 2435 मेगावाट तक का उत्पादन होना चाहिए। इनमें से तीन यूनिट तो पूरी तरह से पावर प्रोडक्शन का काम पूरी तरह बंद हो चुका है। बरघी, मदीखेड़ा, गांधी सागर, पेंच, इंदिरा सागर और ओमकारेश्वर अपने लक्ष्य के अनुसार आधा प्रोडक्शन भी नहीं कर पाया है। प्रदेश में सरकार कुल पांच हजार मेगावाट (हाईड्रिल पावर-960 और थर्मल पॉवर-4080) बिजली बनाती है। 4080 मेगावाट में से 2000 मेगावाट से ज्यादा की जनरेटर टरबाइन पिछले महीने से बंद पड़ी हैं। बाकी भी आधी क्षमता पर चलाई जा रही हैं। बारिश के बाद कुछ और यूनिट बंद होने वाली हैं। यह नौबत इसलिए आई क्योंकि एक तो बिजली की डिमांड तीन माह पहले के मुकाबले घटकर आधी रह गई है। दूसरा निजी क्षेत्रों के पावर प्लांटों से मिल रही सस्ती बिजली के मुकाबले सरकार को खुद बिजली बनाना महंगा पड़ रहा है। अरबों की लागत वाले इन प्लांटों को बंद रखना सरकार की मजबूरी भी है, क्योंकि उसने निजी कंपनियों से आंख मूंदकर बिजली खरीदने के करार कर रखे हैं। ऊर्जा विभाग का दावा है कि मध्य प्रदेश देश के उन चुनिंदा राज्यों में से एक है, जहां गैर-कृषि उपभोक्ताओं को 24 घंटे और कृषि उपभोक्ताओं को 10 घंटे बिजली दी जा रही है। इस प्रकार प्रदेश बिजली के मामले में सरप्लस स्टेट है। प्रदेश में पिछले 5 वर्ष में बिजली आपूर्ति में 64 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। उपभोक्ताओं को गत वर्ष उनकी मांग के अनुरूप 6340 करोड़ यूनिट बिजली की सप्लाई की गयी, जो वर्ष 2014-15 के मुकाबले 12 प्रतिशत अधिक रही। पहली बार पिछले रबी मौसम में 10 हजार मेगावाट से अधिक बिजली की सप्लाई की गयी। राज्य सरकार बिजली के मामले में अपनी तुलना आज भी 12 साल पहले की स्थिति से कर रही है। जबकि कर्ज को लेकर इस तुलना से बचा जाता है। अधिकृत जानकारी में कहा गया कि वर्ष 2003 में बिजली की उपलब्ध क्षमता मात्र 4673 मेगावाट हुआ करती थी। आज यह क्षमता 17 हजार 169 मेगावाट है। बिजली की आपूर्ति के लिए वर्ष 2022 तक का रोडमैप तैयार किया गया है। इस दौरान बिजली की उपलब्ध क्षमता बढ़कर 22 हजार 513 मेगावाट हो जायेगी। राज्य की विद्युत क पनी एमपी जेनको द्वारा खण्डवा जिले में श्रीसिंगाजी ताप विद्युतगृह में 2660 मेगावाट क्षमता की सुपर क्रिटिकल तकनीक आधारित दूसरे चरण की विस्तार परियोजना पर एलएण्डटी क पनी द्वारा तेजी से कार्य किया जा रहा है। सिंगाजी में पहला विस्तार वर्ष 2018 में और दूसरा विस्तार नव बर, 2018 में पूरा कर लिया जायेगा और इसमें उत्पादन भी प्रारंभ हो जायेगा। राज्य में पांच लाख अस्थायी कृषि प प कनेक्शन को स्थायी प प कनेक्शन में परिवर्तित करने का कार्य तेजी से किया जा रहा है। प्रदेश में नवकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की गयी है। पिछले तीन वर्ष में इसमें लगभग 2670 मेगावाट क्षमता की वृद्धि की गयी है। इस वृद्धि से प्रदेश में नवकरणीय ऊर्जा की स्थापित क्षमता 3107 मेगावाट हो गयी है। पिछले वर्ष प्रदेश में देश की सबसे अधिक नवकरणीय ऊर्जा क्षमता 1580 मेगावाट स्थापित की गयी। यह क्षमता उक्त वर्ष में देश भर में स्थापित क्षमता का लगभग एक चौथाई है। रीवा जिले में 750 मेगावाट क्षमता का सोलर प्लांट लगाया जा रहा है। इस पर तेजी से कार्य किया जा रहा है। इस प्लांट में बनने वाली बिजली का उपयोग प्रदेश के साथ-साथ दिल्ली मेट्रो के लिए भी होगा। बिजली सरप्लस पर सप्लाई से संतुष्ट नहीं मंत्री प्रदेश में बिजली विभाग लगातार सरप्लस बिजली का दावा कर रहा है, लेकिन ऊर्जा मंत्री पारस जैन खुद इससे संतुष्ट नहीं हैं। एक तरफ सरप्लस बिजली का दावा और दूसरी तरफ बिजली की अघोषित कटौती से नाराज ऊर्जा मंत्री पारस जैन कहते हैं कि प्रदेश में बिजली सरप्लस है लेकिन लोगों को मिल क्यों नहीं रही हैं। कंपनी के अफसरों को मंत्री ने कटघरे में खड़े करते हुए कहा, प्रदेश में 17500 मेगावाट बिजली का उत्पादन हुआ है। जबकि प्रदेश को एक साल में 8 से 12 हजार मेगावाट बिजली की जरूरत है। उधर, अधिकारियों का कहना है कि प्रदेश में उत्पादित बिजली दूसरे राज्यों को भी बेची जा रही है। मंत्री की नाराजगी बेवजह नहीं है। ऊर्जा विभाग ने प्रदेश में सरप्लस बिजली के नाम पर 10 ताप विद्युत गृहों को बंद कर दिया है। इन थर्मल पॉवर स्टेशन में बिजली का उत्पादन दो माह से बंद है। इसके विपरीत स्थिति यह है कि 22 जिलों में छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में बिजली की निर्बाध सप्लाई नहीं हो पा रही है। इस मामले में विधायकों ने भी सरकार और विधानसभा से शिकायत की है। ऊर्जा विभाग की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में पॉवर जनरेटिंग क पनी के ताप विद्युत गृहों की उत्पादन क्षमता 4080 मेगावाट है। बिजली उत्पादित करने वाली इन 10 थर्मल पॉवर इकाइयों को सरकार ने शटडाउन कर दिया है। जानकारों का कहना है कि खरीदी अनुबंध करते समय सरकार का इंडस्ट्रियल ग्रोथ का अनुमान गलत साबित हुआ है। प्रदेश में बिजली मांग खेती के सीजन में 11 हजार 500 मेगावाट को पार कर जाती है। बाद में यही डिमांड 5-6 हजार मेगावाट के आसपास रह जाती है। वहीं पिछले एक दशक में उद्योगों में कोई उल्लेखनीय वृद्धि भी नहीं हुई है। इसलिए उत्पादन बढ़ रहा प्रदेश में बिजली उत्पादन के वैकल्पिक जरिए तेजी से विकसित हो रहे हैं। इंदौर-उज्जैन संभाग में भी सोलर एनर्जी, विंड एनर्जी, हाईड्रोलिक सिस्टम के जरिए निजी कंपनियां बिजली उत्पादन कर रही हैं। इन निजी कंपनियों की बिजली सरकारी प्लांट के मुकाबले काफी सस्ती है। हाईड्रोलिक बिजली उत्पादन भी इस समय भरपूर हो रहा है। प्रदेश में जितने भी निजी बिजली उत्पादक हैं, उनसे सरकार को कुल उत्पादन की छह फीसदी बिजली खरीदना अनिवार्य है। प्रदेश में जरूरत से अधिक बिजली खरीदी पर अफसरों का कहना है कि पिछले सालों में पवन ऊर्जा और सौर ऊर्जा क्षेत्र में प्रदेश में बहुत निवेश हुआ है। अभी 1300 मेगावाट तक (अधिकतम) बिजली इन गैरपरंपरागत क्षेत्रों से मिल रही है। ये बिजली पांच से आठ रुपए प्रति यूनिट पड़ती है। ग्रीन एनर्जी पैदा कर रही इन कंपनियों से अनुबंध के चलते महंगी बिजली खरीदना सरकार की बाध्यता है। मप्र पावर जनरेशन कंपनी के एमडी आनंद भैरवे कहते हैं कि जब रबी के सीजन में डिमांड बढ़ती है तब निजी क्षेत्र भी बिजली महंगी कर देते है। तब हम अपने पावर प्लांट पूरी ताकत से चलाएंगे और भरपूर बिजली देंगे और पैसा भी बचाएंगे। प्रदेश में एमबी पॉवर लिमिटेड नई दिल्ली ने अनूपपुर जिले के जैतहरी, बीना पॉवर सप्लाई लिमिटेड मुंबई ने सागर जिले के बीना, बीएलए पॉवर लिमिटेड मुंबई ने नरसिंहपुर जिले के गाडरवारा तहसील के निवारी में प्लांट लगाए हैं। इसी तरह जेपी निगरी नई दिल्ली द्वारा सिंगरौली जिले देवसर तहसील, झाबुआ पॉवर लिमिटेड नई दिल्ली द्वारा सिवनी जिले के घंसौर तहसील के बरेला और गोरखपुर में, सासन पॉवर लिमिटेड सिंगरौली द्वारा सिंगरौली में तथा एस्सार पॉवर लिमिटेड नई दिल्ली द्वारा सिंगरौली जिले के बैढऩ में बिजली यूनिट स्थापित कर विद्युत उत्पादन किया जा रहा है। राज्य सरकार द्वारा झाबुआ पॉवर और एस्सार पॉवर को छोड़ बाकी सभी निजी बिजली कंपनियों से बिजली की खरीदी की जा रही है। बंदी से बढ़ रही है बेरोजगारी प्रदेश में एक तरफ 53 सौ परिवार तीन साल से अनुक पा नियुक्ति की मांग को लेकर जबलपुर में क्रमिक धरना दे रहे हैं वहीं दूसरी तरफ प्रदेश के पावर प्लांट बंद होने के कारण हजारों लोग बेरोजगार हो गए हैं। प्रदेश के सबसे पुराने सतपुड़ा थर्मल पावर हाउस को अचानक बंद कर दिया गया। करीब 1330 मेगावाट क्षमता वाले इस पावर हाउस को बंद करने से हजारों मजदूर व दिहाड़ी कर्मचारी बेरोजगार हो गए। इस फैसले पर मजदूरों का आरोप रहा कि सरकार एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत इस पावर प्लांट को भी निजी हाथों में देना चाहती है। उनका दावा है कि सरकार के निजी पावर कंपनियों से बिजली खरीदने के बावजूद भी प्लांट फायदे में चल रहा था। बिजली उत्पादन अचानक बंद किये जाने से प्लांट के कोल हैंडलिंग प्लांट में करोड़ों रुपये कीमत का कोयला खुले में पड़ा हुआ है। बताया जाता है कि इस संयंत्र को बंद करने के लिए योजनाबद्ध तरीके से महंगे कोयले की आपूर्ति की गयी ताकि संयंत्र को घाटे में दिखाया जा सके। जून में संयंत्र से बिजली के उत्पादन को महंगा सौदा बताकर इसकी आधा दर्जन यूनिट में उत्पादन बंद कर दिया गया। यहां सरकार को बिजली की लागत 2.19 रुपये प्रति यूनिट पड़ रही है, जबकि निजी क्षेत्र के सिंगरौली जिले के सासन और नीगरी पावर प्रोजेक्ट से यही बिजली 1.61 रुपये प्रति यूनिट मिल रही है। यह प्रदेश का सबसे पुराना बिजली उत्पादन संयंत्र है। इसकी स्थापना बैतूल जिले के सारनी में सन् 1967 में रूस की मदद से की गयी थी। सारणी में उक्त संयंत्र को बंद किये जाने का असर सारणी शहर के कारोबार पर भी पड़ा। कमोबेश यही स्थिति सतपुड़ा ताप विद्युतगृह की है। वहीं संजय गांधी थर्मल पावर स्टेशन की एक, अमरकंटक की दो और सिंगाजी की एक यूनिट ऐसी है जो पूरी तरह से ठप हो चुकी है और इससे बिजली उत्पादन नहीं किया जा रहा है। खंडवा जिले के सिंगाजी प्लांट की 600-600 मेगावाट की दो यूनिट का उत्पादन भी मई से बंद है। यहां कोयला छत्तीसगढ़ के कोरबा से मंगाना पड़ता था। परिवहन लागत बढऩे से बिजली उत्पादन की कीमत लगभग 2.50 रुपये प्रति यूनिट पड़ रही थी। इससे इन संयंत्रों से जुड़े लोगों के पास काम ही नहीं है। हाइड्रो पावर स्टेशन की हालत भी दयनीय है। प्रदेश के सभी 12 हाइड्रो पावर संयंत्रों में भी इनकी कुल क्षमता से बेहद कम उत्पादन किया जा रहा है। वर्तमान समय में हाइड्रो पावर संयंत्रों से महज 564 मेगावाट बिजली उत्पादन हो रहा है जबकि इन हाइड्रो संयंत्रों के जरिए 2435 मेगावाट तक बिजली का उत्पादन किया जा सकता है। बड़ी परियोजनाओं के साथ ही अन्य मध्यम व लघु बिजली परियोजनाओं से भी उत्पादन कम हुआ है। सरकार की पावर जेनरेशन कंपनी के अधिकारियों का तर्क यह है कि अभी प्लांट बंद करके जो कोयला और पैसा बचाया जा रहा है, वह रबी सीजन में काम आयेगा। रबी के सीजन में डिमांड बढ़ती है, तब निजी क्षेत्र भी बिजली महंगी कर देते हैं। कई बार रेल रैक समय पर नहीं मिल पाने से कोयला खदानों से समय पर कोयला नहीं आ पाता, ऐसे में उत्पादन प्रभावित होता है। लेकिन इसका असर इनसे जुड़े हजारों लोगों के रोजगार पर पड़ रहा है। 53 सौ को अनुकंपा नियुक्ति कब प्रदेश में ऊर्जा विभाग अपने लोगों को लेकर कितना संवेदनशील है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि विभाग में सेवा के दौरान मरने वालों के आश्रित वर्षों से अनुकंपा नियुक्ति के लिए भटक रहे हैं। स्थिति यह है कि प्रदेश के 53 सौ परिवार तीन साल से अनुक पा नियुक्ति की मांग को लेकर क्रमिक धरना दे रहे हैं। प्रदेश के मुखिया से लेकर बिजली कंपनी के अधिकारियों तक से आश्वासन मिला, लेकिन नियुक्ति स बंधी फाइल नहीं बढ़ी। जेल भरो आंदोलन से लेकर जबलपुर से भोपाल का पैदल मार्च किया। भोपाल में भी धरना दिया, लेकिन निराशा ही हाथ लगी। धरना दे रहे लोग मप्र राज्य विद्युत मंडल से जुड़े ऐसे कर्मचारियों के आश्रित हैं, जिनकी सामान्य मौत कार्यकाल के दौरान हुई थी। शक्ति भवन गेट पर मप्र विद्युत मंडल अनुकंपा आश्रित संघर्ष दल के अजगर ने बताया कि 11 मार्च 2013 से उनका धरना चल रहा है। वर्ष 1998 से 2012 के बीच के लगभग 5300 कर्मियों के आश्रित हैं। विद्युत मंडल ने घाटे का हवाला देते हुए अनुक पा नियुक्ति पर रोक लगा दी थी। अप्रैल से रेट बढ़ाने की तैयारी शुरू प्रदेश में अप्रैल से बिजली फिर महंगी हो सकती है। बिजली वितरण से जुड़ी तीनों कंपनियों समेत मप्र पावर मैनेजमेंट कंपनी ने इसके लिए राज्य विद्युत नियामक आयोग में याचिका दायर करने की तैयारी शुरू कर दी है। दस दिन बाद आयोग के सामने याचिका दायर की जा सकती है। यह काम अभी ट्रू अप यानी लेखे-जोखे के लेवल पर है। इसके पूरा होते ही कंपनियां अपनी वार्षिक राजस्व जरूरत (एआरआर) तैयार करेंगी। इसके लिए आंकड़े जुटाने का काम अंतिम चरणों में है। मौजूदा वित्तीय वर्ष यानी 2016-17 में बिजली 9.5 फीसदी महंगी हुई थी। 2015- 16 में इसमें 8.5 फीसदी का इजाफा हुआ था। पावर मैनजेमेंट कंपनी ने मध्य क्षेत्र, पूर्व और पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनियों से आंकड़े बुलाए हैं। ऊर्जा विशेषज्ञ अंकित छाबडिय़ा कहते हैं कि बिजली को लेकर शासन स्तर पर ही नीतिगत विसंगतियों की भरमार है। बिजली कंपनियों का गठन बिजली बोर्ड को हो रहे घाटे के हल के लिए हुआ था, लेकिन बिजली कंपनियां खुद घाटे में हैं। इसकी वजह घाटे के कारणों को कंट्रोल करने की बजाए महज बिजली महंगी करके आमदनी बढ़ाने की नीति अपनाना है। बिजली कंपनियां न तो चोरी रोकने में रूचि लेती है और न नुकसान कम करने में। वह महज दर बढ़ाकर आमदनी बढ़ाना चाहती है। इसके लिए बिजली कंपनियों के सोशल ऑडिट करने और बिजली बिल को सरल करने की जरूरत है। जानकारी के अनुसार, प्रदेश में 13 हजार मिलियन यूनिट से ज्यादा बिजली की बिलिंग ही नहीं हो सकी है। हद ये कि बिजली चोरी रुकने की बजाए साल-दर-साल बिना बिल वाली बिजली की खपत बढ़ती जा रही है। महज एक साल में इस तरह बिना बिल खपने वाली बिजली में करीब एक हजार मिलियन यूनिट की बढ़ोतरी हुई है। इसमें लाइन लॉस और चोरी वाली बिजली भी शामिल है। बिजली महकमे के ताजा डाटा रिकार्ड बिजली की खपत और बिलिंग की स्थिति को चिंताजनक बताते हैं। इसमें पाया गया है कि वर्ष-2014-15 में जहां 12 हजार 197 मिलियन यूनिट बिजली बिना बिल के खपी थी, वहीं 2015-16 में यह मात्रा बढ़कर 13 हजार 881 मिलियन यूनिट से भी अधिक हो गई। स्थिति यह रही कि बिजली कंपनियां हर साल लाइन लॉस व अन्य घाटे को नियंत्रित करने में फेल रही। राज्य विद्युत नियामक आयोग के मापदंड से ज्यादा नुकसान रहा। इसमें 2015-16 में पूर्व क्षेत्र के लिए 18 फीसदी मापदंड था, लेकिन 22.65 फीसदी से ज्यादा नुकसान रहा। मध्य क्षेत्र के लिए 19 फीसदी मानक था, घाटा 25.13 फीसदी रहा। यानी तय मानक से 6.13 फीसदी ज्यादा। वहीं पश्चिम क्षेत्र के लिए 16 फीसदी मानक था, पर नुकसान 6.58 फीसदी ज्यादा यानी 22.58 प्रतिशत रहा। इस गड़बड़ी के चलते बिजली के नुकसान का बोझ घूम-फिरकर उपभोक्ता की जेब पर ही आ जाता है। वजह यह कि दर निर्धारण के समय बिजली कंपनियां इस घाटे को अपनी आमदनी और खर्च के बीच अंतर के रुप में बताती है। एक नजर में स्थापित क्षमता क्रमांक विद्युत गृह स्थापित क्षमता (मे.वा.) मध्यप्रदेश की हिस्सेदारी (मे.वा.) 1 अमरकंटक विस्तार (210 मे.वा.) 210 210 2 सतपुडा ढ्ढढ्ढ (200+210 मे.वा.) 410 410 3 सतपुडा ढ्ढढ्ढढ्ढ (2&210 मे.वा.) 420 420 4 सतपुडा ढ्ढङ्क (2&250 मे.वा.) 500 500 5 संजय गॉंधी, बिरसिंहपुर -ढ्ढ (2&210 मे.वा.) 420 420 6 संजय गॉंधी बिरसिंहपुर -ढ्ढढ्ढ (2&210 मे.वा.) 420 420 7 संजय गॉंधी बिरसिंहपुर -विस्तार (1&500 मे.वा.) 500 500 8 श्री सिंगाजी ता.वि.गृ. दोंगलिया (2&600 मे.वा.) 1200 1200 कुल ताप विद्युत गृह उत्पादन 4080 4080 1 गांधी सागर(5&23 मे.वा.) 115 57.5 2 पेंच,तोतलाडोह(2&80 मे.वा.) 160 107 3 रानी अवंती बाई बरगी (2&45 मे.वा.) 90 90 4 बाण सागर ढ्ढ टोंस(3&105 मे.वा.) 315 315 5 बिरसिंहपुर(1&20 मे.वा.) 20 20 6 राजघाट (3&15 मे.वा.) 45 22.5 7 बाण सागर ढ्ढढ्ढ सिलपरा(2&15 मे.वा.) 30 30 8 बाणसागर -ढ्ढढ्ढढ्ढ देवलोंद (3&20 मे.वा.) 60 60 9 बाणसागर -ढ्ढङ्क झिन्ना (2&10 मे.वा.) 20 20 10 मडीखेडा (3&20 मे.वा.) 60 60 जवाहर सागर- राणा प्रताप सागर राजस्थान में स्थापित (99 मे.वा. - 172 मे.वा.), 271 मे.वा. ---- 135.5 कुल जल विद्युत गृह उत्पादन 915 917.5 कुल 4995 4997.5

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