शनिवार, 20 अगस्त 2016

काले सोने का काला कारोबार

मप्र को हर साल 727 करोड़ की चपत
भोपाल। मप्र में काले सोने यानी कोयले का काला कारोबार दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है। प्रदेश में कोयले का अवैध कारोबार भले ही बिहार और झारखंड की तरह खुंखार नहीं है लेकिन उससे कम काला नहीं है। आलम यह है की प्रदेश में हर साल सफेदपोश के संरक्षण में मप्र सरकार को करीब 727 करोड़ की चपत लगाई जा रही है। इसका खुलासा पूर्व विधायक छोटेलाल सरावगी और नगर परिषद बुढ़ार की अध्यक्ष शालिनी सरावगी के पति पूर्व नगर पंचायत उपाध्यक्ष राजा सरावगी की गिरफ्तार से सामने आया है। राजा सरावगी के खिलाफ एक ही पिट पास पर एक से ज्यादा बार कोयले का परिवहन कराने का आरोप था और इस मामले में चंदिया थाने में जुलाई 2015 में अपराध दर्ज किया गया था। मप्र में काले सोने के कारोबार में किस तरह सरकार को चूना लगाया जा रहा है इसका खुलासा कैग की रिपोर्ट, सीबीआई जांच और राज्य सभा में भी किया गया है। राज्यसभा में खुद राज्यमंत्री पीयूष गोयल ने स्वीकार किया है कि मप्र में कोयले की लदाई, उतराई स्थलों व सरकारी कोयला गोदामों से बड़े पैमाने पर कोयले की चोरी हो रही है। इस चोरी से सरकार को हो रही हानि का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच युवा प्रकोष्ठ के मनीष शर्मा ने बताया कि मंच ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिख कर इस पर लगाम लगाने की मांग की है। पत्र में मांग की गयी है कि प्रदेश में सांठगांठ से हो रहे कोयला चोरी पर प्रतिबंध लगाया जाये। जिससे सरकार को प्रतिवर्ष होने वाले करोड़ों रुपये का राजस्व हानि तथा अप्रत्यक्ष तौर पर जनता से वसूली पर रोक लग सके। मंच के ने बताया कि प्रदेश सरकार व कोयला कंपनियों के सुरक्षाकर्मियों ने छापामार कार्रवाई कर 2012 से दिसम्बर 2015 तक कुल 65283.86 टन कोयला जब्त किया। इसका अनुमानित मूल्य 2238 लाख रुपए है। प्रदेश में बीते दो साल से कोयला चोरी की एक भी एफआईआर दर्ज नहीं की गई। इससे कई सवाल खड़े होते हैं।
रिजेक्ट कोयले का खेल
मध्यप्रदेश के शहडोल, अनूपपुर और उमरिया जिले में 24 कोयला खदानें संचालित हैं। इन क्षेत्रों में चारों ओर काले सोने का असीमित भंडार भरा हुआ है जिसके चलते कोयले पर कोल व्यापारियों और कोल माफिया की भी नजर गड़ी ही रहती है। खनिज विभाग और माफिया मिलकर रिजेक्ट कोयले के नाम पर गुणवता वाले कोयला को अवैध रूप से बेच रहे हैं। खबर आश्चर्यचकित करने वाली है कि विगत दो वर्षों से प्रदेश में कोयला चोरी की कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई है। पिछले तीन वर्षों में देश के विभिन्न राज्यों में कोल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड की सहायक कम्पनियों का 65 हजार टन से अधिक चोरी गया कोयला छापे के दौरान बरामद हुआ था। शहडोल, अनूपपुर और उमरिया जिले में भारत सरकार ने कोयले पर भारतीय हक के दावेदारी के चलते ही एसईसीएल (साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड)का निर्माण किया ताकि भारतीय अर्थव्यवस्था को कोयले के द्वारा क्रय-विक्रय से राजस्व की प्राप्ति होती रहे। एसईसीएल देश की सबसे बड़ी कोयला उत्पादक कंपनी है। साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड के कोयला भंडार दो राज्यों मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में फैले हुए हैं। कोयला प्लांट के अलावा दोनों राज्य में कंपनी के 35 माइंस और 54 खानों के साथ कुल 89 खानों में कोयले का काम कर रही है।
भारतीय सरकार को यह अंदेशा भी नहीं रहा होगा कि एसईसीएल के उच्चाधिकारी देश के राजस्व में ही चपत लगाने लगेंगे और प्रतिदिन कई करोड़ का नुकसान पहुंचाने लगेंगे। बताते चलें कि एसईसीएल देश में कोयला खान की बड़ी यूनिट है। हजारों लाखों लोगों की रोजी रोटी चलने का माध्यम भी। शासकीय उच्चाधिकारियों ने ही प्राइवेट कंपनियों से हाथ मिला कर भारत सरकार को जबरदस्त तरीके से लूटना शुरू कर दिया है। यह लूट खसोट दस-बारह वर्षों से भी अधिक समय से लगातार और प्रतिदिन चल रही है। उच्चाधिकारियों की मिलीभगत से ही आज तक कोई, इस कंपनी की ओर आंख उठा कर भी नहीं देख पाया है। कई बार जांच हुई जिसमें यह सत्य उजागर हुआ मगर राज्य सरकार और जांच एजेंसियां दोनों ही एसईसीएल के भ्रष्ट उच्चाधिकारियों और इन प्राइवेट कंपनियों के सामने बौने साबित हो गए। इसलिए राज्य सरकार से उम्मीद करना बेकार ही है। प्राइवेट कंपनियों पर एसईसीएल के उच्चाधिकारियों की अधिक मेहरबानियां है। वैसे भी एसईसीएल जब खुद लुटने को तैयार बैठी है तो इसमें प्राइवेट कंपनी वाले की क्या गलती। प्रदेश में एसईसीएल और प्राइवेट कंपनियों के साथ मिलकर कोयले का ऐसा रोचक खेल खेला जाता है जो कि यकीनन कौतूहल का विषय है। वैसे काले सोने के खेल में करोड़ों रुपए के वारे न्यारे होतें हैं, दरअसल इस खेल की पोलपट्टी तब खुली जब खनिज विभाग ने कुछ जगह छापेमारी की। पकड़े जाने पर ट्रक चालकों ने खनिज विभाग के अधिकारियों को बताया था कि इन ट्रकों में रिजेक्ट कोयला है मगर जब जांच की गई तब पता चला कि कोयला अच्छी गुणवत्ता वाला स्टीम कोयला है। खनिज विभाग के अधिकारियों ने ट्रकों को जब्त कर दिया था परंतु राजनीतिक दबाव के चलते मामले को रफा दफा कर दिया गया था। नियमों के अनुसार शिकायत सही पाई जाती तो इस राशि के अलावा दंड भी अधिभारित किया जाता। मगर राजनीतिक दबाव व भ्रष्टाचार के चलते सेटिंग करके मामले को रफादफा कर दिया गया था। महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि रिजेक्ट कोल के नाम पर खदानों से निकला कोयला रूपये 80/- प्रतिटन बेचा जाता है और वहीं धुला अथवा नंबर-1 के कोयले की कीमत 4 हजार रुपये प्रतिटन से भी अधिक है। रिजेक्ट कोयले के खेल में एमओयू का खुला उल्लंघन किया जा रहा है।
रोजाना 2 करोड़ का कोयला चोरी
मध्यप्रदेश के शहडोल, अनूपपुर, उमरिया और सिंगरौली स्थित खदानों से अधिकारियों की आंखों में धूल झोंक कर रोज करीब 2 करोड़ रुपए का कोयला चोरी हो रहा है। सिंगरौली स्टेशन के साइडिंग पर लगी इलेक्ट्रिक इन मोशन वेबरेज मशीन (वैगन तौल मशीन) के ऑपरेटिंग सिस्टम में छेड़छाड़ कर यह खेल चल रहा है। मशीन इस तरह से सेट कर दी जाती है कि वह 91 टन के बाद वजन ही नहीं दर्शाती हैं। इसका खुलासा सीबीआई की जांच में सामने आया है। सीबीआई ने अपनी छापामार कार्रवाई के दौरान सात बार चार से पांच टन अतिरिक्त स्लीपर कोयले से भरे वैगन पर रखवाए, लेकिन हर बार मशीन का वजन 90 से 91 टन के बीच ही दर्शाता रहा। इस खेल में रेलवे को भी हर महीने लाखों रुपए के मालभाड़े की क्षति पहुंचाई जा रही है। सिंगरौली स्थित कोयला खदानें नार्दन कोल इंडिया लिमिटेड के अंतर्गत आती हैं। यहां से रोज 10 रैक कोयले की सप्लाई होती है। हर रैक में 59 वैगन होते हैं। एक वैगन की क्षमता 75 से 90 टन होती है। रेल प्रबंधन ओवरलोडिंग रोकने के लिए मालभाड़े के साथ भारी जुर्माना वसूलता है। सिंगरौली स्टेशन की साइडिंग में लगी वेबरेज मशीन को 31 अगस्त 2010 को प्रगति इंस्टूमेंटेशन प्रा. लि. बोकारो ने लगाया था। यह कंपनी रेलवे की ओर से अधिकृत नहीं है। लखनऊ स्थित आरडीएसओ को कंपनी तय करने का अधिकार है। सीबीआई इसकी भी जांच कर रही है कि कंपनी अधिकृत नहीं थी, तो उसे कैसे लगाया गया। इस मशीन की ऑपरेटिंग रेलवे क्लर्क करते हैं। रेलवे हर छह महीने में एक बार इसकी जांच कराती है। अंतिम बार इसकी जांच 28 अक्टूबर 2014 को हुई थी। तब तौल ठीक मिला था। इसी तरह शहडोल, अनूपपुर, उमरिया में भी खामियां सामने आई हैं। दरअसल, यह पूरा खेल सोची-समझी रणनीति के तहत चल रहा है।
सीबीआई के अनुसार हर वैगन में औसत चार टन अधिक कोयला लादा जाता था, जो तौल मशीन में कम दर्शाता था। एक रैक में 59 वैगन के हिसाब से 236 टन हुआ। रोज 10 रैक कोयला सिंगरौली स्थित वेबरेज मशीन से तौल के बाद निकलता है। इस तरह से रोज 2360 टन कोयला चोरी होता था। वर्तमान में एक टन कोयले की कीमत 3200 रुपए है। 2360 टन कोयले की कीमत 75 लाख 52 हजार रुपए होती है। इसमें रेलवे का मालभाड़ा व जुर्माना जोड़ दें, तो रोज एक करोड़ रुपए का खेल हो रहा था। इसी तर्ज पर शहडोल, अनूपपुर और उमरिया में भी कोयले की चोरी की जा रही है। सीबीआई पूरे मामले की तहकीकात कर रही है।
रीवा के तुर्की रोड स्थित जेपी विला सीमेंट कंपनी में अलग तरह का खेल चल रहा था। वहां वेबरेज मशीन को इस तरह से सेट किया गया था कि मशीन सीमेंट से भरे वैगन को तौल में कम दर्शाती थी। यदि बाद में उस पर अतिरिक्त माल लादा जाता था, तो मशीन सटीक तौल बताती थी। सीबीआई के अनुसार यहां रेलवे के मालभाड़े की चोरी की जा रही थी। जबकि, ब्यौहारी स्थित वेबरेज मशीन जांच में ठीक निकली। सीबीआई एसपी मनीष वी. सुरती कहते हैं कि सिंगरौली व रीवा स्थित जेपी विला कंपनी में लगे वेबरेज मशीन के ऑपरेटिंग सिस्टम में छेड़छाड़ कर राजस्व को भारी नुकसान पहुंचाया जा रहा था। इस खेल में कौन-कौन शामिल हैं, इसकी जांच जारी है।
उल्लेखनीय है कि कोयला की हेराफेरी में पूर्व विधायक छोटेलाल सरावगी के पुत्र राजा सरावगी को चंदिया पुलिस ने गिरफ्तार किया था। चंदिया थाना के नगर निरीक्षक मो.असलम ने 16 जुलाई 2015 को दो ट्रक चोरी का कोयला पकड़ा था। पकड़े गए ट्रकों में एमपी 18 एच 4717 और एमपी 18 जीए 2388 शामिल हैं। ये दोनों ही ट्रक बुढ़ार के बताए गए हैं। इस बारे में जानकारी के अनुसार दोनों ही ट्रकों में चोरी का कोयला लदा हुआ था। एक ही पास पर एक बार कोयला बेचा जा चुका था और दोबारा उसी पास का इस्तेमाल करके कोयले का परिवहन किया जा रहा था। नगर निरीक्षक ने बताया कि ट्रक राजा सरावगी और रेखा रूचंदानी के हैं। इस मामले में आरोपी चालक शेख सब्बीर और रमेश दाहिया को गिरफ्तार किया गया था और इन सबके खिलाफ धारा 420, 379, 109, 120 बी, 201, 4, 21, खान एवं गौण खनिज संपदा अधिनियम के तहत अपराध पंजीबद्घ किया गया है। यह तो महज एक उदाहरण है। मप्र की लगभग सभी कोयला खदानों में इसी तरह सांठ-गांठ करके सरकार को हर साल करोड़ों रूपए का चूना लगाया जा रहा है।
3.80 करोड़ के कीचड़-पत्थर
मप्र पावर जनरेटिंग कंपनी पिछले 5 साल से लगातार कोयले के भाव में पत्थर, कीचड़ और मिट्टी के ढेले खरीद रही है। इससे न सिर्फ 3 करोड़ 80 लाख रुपए का आर्थिक नुकसान हुआ, बल्कि बिजली उत्पादन भी कम हुआ। बीरसिंगपुर स्थित संजय गांधी विद्युत ताप गृह में 2009 से 2015 तक 250 एमएम से भी बड़े पत्थरों की सप्लाई ठेकेदार द्वारा की जा रही है। खास बात ये है कि इन पत्थरों को कंपनी प्रबंधन अलग रखवा तो देता है, लेकिन कोयला सप्लाई कर रही कंपनी साउथ ईस्टर्न कोलरीज लिमिटेड (एसईसीएल) से इन पत्थरों के एवज में मूल राशि या ब्याज नहीं वसूलता। सीएजी ने जांच के दौरान इस मामले को गंभीर आर्थिक अपराध माना है और सरकार के ऊर्जा मंत्रालय से कई सवाल करते हुए जवाब भी मांगा। लेकिन सरकार ने हर सवाल का गोलमोल जवाब दिया और ठेकेदार का बचाव किया। एसईसीएल के साथ विद्युत कंपनी ने अगस्त 2009 में ईंधन प्रदाय अनुबंध (एफएसए) किया। कॉन्ट्रेक्ट के मुताबिक एसईसीएल द्वारा 20 साल तक हर वर्ष 64 लाख मीट्रिक टन कोयला संजय गांधी विद्युत ताप गृह की तीनों यूनिटों को सप्लाई करना है। लेकिन ठेका होने के बाद से ही ठेकेदार द्वारा घटिया कोयला और पत्थर की सप्लाई की जा रही है। मप्र पावर जनरेटिंग कंपनी के एमडी एपी भैरव कहते हैं कि कोयले में पत्थर सप्लाई की समस्या सभी राज्यों के साथ हुई है। मप्र में एसईसीएल ने बड़े-बड़े पत्थर सप्लाई किए थे। जिसको लेकर कंपनी प्रबंधन को पत्र लिखे गए, लेकिन सुधार नहीं हो सका। सरकार अब इस मामले को देख रही है। कोयले के साथ सप्लाई हुए पत्थर अलग रखवा दिए जाते हैं और इस वसूली को लेकर अफसरों से चर्चा करेंगे। हमने स्टेट लेवल आयोग में कंपनी के खिलाफ शिकायत दी थी, लेकिन यहां से राहत न मिलने पर हमने कॉम्पटीशन कमीशन ऑफ इंडिया में मामला प्रस्तुत कर दिया। अब वहां से निर्णय के बाद ही कुछ कहा जा सकेगा।
हैरानी की बात यह है कि यह सब उस प्रदेश को भुगतना पड़ रहा है जो देश के कोयला उत्पादन का 28 प्रतिशत हर साल राष्ट्र को उपलब्ध कराता है। यह मात्रा लगभग 75 मिलियन टन है, लेकिन प्रदेश के बिजली प्लांटों के लिए 17 मिलियन टन कोयला भी प्रदेश को केंद्र सरकार नहीं दे रही है। प्रदेश में बिजली उत्पादन का मुख्य स्रोत कोयला ही है। बिजली प्लांटों के लिए कोयला केंद्र सरकार उपलब्ध कराती है। कोल इंडिया लिमिटेड यह मात्रा तय करती है। प्रदेश के बिजली प्लांटों के लिए केंद्र सरकार ने लगभग 17 मिलियन टन कोयला आपूर्ति का कोटा तय किया है, लेकिन पिछले तीन सालों से प्रदेश को लगभग 13-14 मिलियन टन कोयला ही मिल पा रहा है। कोयले की आवंटित मात्रा उपलब्ध कराने के लिए 2009 में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सारणी से कोयला यात्रा भी निकाली थी।
उधर, सीएजी का कहना है कि कोयले में जितना पत्थर सप्लाई किया गया, उसका रेल भाड़ा 1 करोड़ 27 लाख रु. होता है। इसकी वसूली ठेकेदार से की जाएगी? सीएजी की जांच में यह तथ्य सामने आया है कि बड़े पत्थर, कीचड़ व मिट्टी मिला घटिया कोयला सप्लाई हुआ है। जिसके एवज में 2.62 करोड़ रु. का गलत भुगतान करना पड़ा? हर महीने तय मात्रा से अधिक कोयला मिलने पर ठेकेदार को प्रोत्साहन राशि देने का प्रावधान रखा और कुल सप्लाई में से खराब कोयले की मात्रा न हटाकर ठेकेदार को गलत तरीके से 20 लाख 80 हजार की प्रोत्साहन राशि दी गई? कोयला परिवहन में भंडारण, हस्तांतरित हानि पर विचार न करते हुए ठेकेदार को 1 करोड़ 36 लाख रुपए का गलत भुगतान किया गया। इसमें मप्र विद्युत नियामक आयोग के नियमों का खुला उल्लंघन हुआ?
घटिया कोयले से 200 करोड़ की चपत
राज्य सरकार को ताप विद्युत गृह में उत्पादन के लिए दिए जाने वाले कोल को हायर ग्रेड का बताकर घटिया कोल सप्लाई किया जा रहा है। कोल कम्पनियों द्वारा किए जा रहे इस खेल से पावर जनरेटिंग कम्पनी को 200 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हुआ है। अब पावर जनरेटिंग कम्पनी इस मामले में खराब कोयला सप्लाई करने के मामले में क्रेडिट नोट जारी कर अकाउंट डिटेल क्लियर करना चाहती है जिसमें कोल कम्पनियों द्वारा आनाकानी की जा रही है। विद्युत उत्पादन कम्पनी द्वारा वेस्टर्न कोलफील्ड इंडिया लिमिटेड और साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड इंडिया लिमिटेड से ताप विद्युत गृह में उपयोग में लाए जाने वाला कोयला मंगाती है। इस बात की जांच कराई जाती है कि कंपनी जिस ग्रेड का कोयला बताकर कम्पनी दे रही है, वह उस लेवल का है या नहीं। इस काम के लिए भारत सरकार की दो इकाइयों सेन्ट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ माईनिंग एंड फ्यूल रिसर्च (सीआईएमएफआर) बिलासपुर तथा मिनिस्ट्री ऑफ साइंस एंड टेक्नालॉजी नागपुर की यूनिट को एमपी पावर जनरेटिंग कंपनी ने अधिकार दिए हैं। सेन्ट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ माइनिंग एंड फ्यूल रिसर्च बिलासपुर की यूनिट को संजय गांधी ताप विद्युत गृह बिरसिंहपुर को दिए जाने वाले कोयले के 10 रैक की टेस्टिंग के बदले 15 लाख 37 हजार रुपए और 21 रैक के परीक्षण के लिए 28 लाख 3 हजार रुपए दिए जाते हैं। इसके अलावा संजय गांधी ताप विद्युत गृह बिरसिंहपुर, अमरकंटक ताप विद्युत गृह चचाई तथा श्री सिंगाजी ताप विद्युत परियोजना खण्डवा को मिलने वाले कोयले के 1421 रैक के लिए 13 करोड़ 35 लाख 79 हजार रुपए दिए जाते हैं।
इसी तरह सेन्ट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ माइनिंग एंड फ्यूल रिसर्च इंस्टीट्यूट नागपुर की यूनिट को सतपुड़ा ताप विद्युत गृह सारनी को मिलने वाले कोयले के 10 रैक की जांच के लिए 15 लाख 16 हजार रुपए तथा 180 रैक के परीक्षण के लिए 1 करोड़ 38 लाख 2 हजार रुपए दिए जाते हैं। सूत्र बताते हैं कि कोयले की सप्लाई के बाद निर्धारित स्तर का कोयला नहीं मिलने पर किए गए भुगतान में कटौती करने के लिए पावर जनरेटिंग कम्पनी कोल कम्पनियों को क्रेडिट नोट जारी करती है। इसे कोल कम्पनियां जानबूझ कर इग्नोर करती हैं। बताया जाता है कि कम्पनियां नहीं चाहती हैं कि उनके कोल की टेस्टिंग और सेंपलिंग हो। इसलिए साउथ ईस्टर्न कम्पनी संगमा लोडिंग सेंटर पर कोल की लोडिंग में भी व्यवधान किया जा चुका है। वहां के प्रबंधन ने लोडिंग से ही मना कर दिया था, तब अपने स्तर पर कोशिश कर कोल की लोडिंग कराई गई थी। बताया जाता है कि कोल सप्लाई के बाद साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड लिमिटेड को 154 करोड़ 39 लाख 13 हजार रुपए तथा मेसर्स वेस्टर्न कोलफील्ड लिमिटेड की क्रेडिट नोट राशि 14 करोड़ 35 लाख 26 हजार का क्रेडिट नोट जारी किया गया। यह नोट इसलिए जारी हुआ ताकि तय ग्रेड का कोयला नहीं दिए जाने के बाद कम्पनियां भुगतान की गई राशि के अंतर को कम कर लें और राज्य सरकार को अगली सप्लाई के लिए कम पेमेंट करना पड़े। कोल कम्पनियां इसके लिए तैयार नहीं हैं। इस कारण टेस्टिंग के बाद बिलासपुर और नागपुर की यूनिट की जांच रिपोर्ट के आधार पर दो माह पहले 168 करोड़ 74 लाख 39 हजार रुपए क्रेडिट नोट जारी किया गया है। अब यह 200 करोड़ के करीब पहुंच चुका है।
हवाला कारोबार में जुटे व्यापारी
कोयले के कारोबार में जुटे कारोबारी अन्य अवैध गतिविधियों में भी जुटे हुए हैं। इसका खुलासा होने के बाद सीबीआई की नजर कोल क्षेत्र पर है। दरअसल, गत वर्ष कटनी में दो कोयला व्यापारियों के यहां इनकम टैक्स के छापे में 100 करोड़ से ज्यादा का हवाला कारोबार उजागर हुआ था। इनकम टैक्स अधिकारियों ने कारोबारियों के पास पांच दर्जन से ज्यादा बैंक खाते भी बरामद किए थे। जबलपुर रीजन के अंतर्गत हवाला से जुड़ा यह अब तक का सबसे बड़ा मामला माना जा रहा है। इनकम टैक्स विभाग की अन्वेषण विंग ने कोयला कारोबारियों मनीष सरावगी, नरेश पोद्दार और एक कर्मचारी नरेश बर्मन के आवासों व कार्यालयों पर एक साथ दबिश थी। इनकम टैक्स विभाग का मानना है कि हवाला कारोबार के जरिए भेजा गया धन ब्लैकमनी है। इसके लिए विस्तृत छानबीन की जा रही है। आयकर विभाग के अनुसार कोयला कारोबारियों के हवाला कारोबार के तार दूसरे राज्यों से भी जुड़ हुए हैं। इसके लिए अन्य राज्यों में भी जांच की जाएगी। उधर कोयले के काले कारोबार में हवाला का मामला सामने आने के बाद अब सीबीआई भी सचेत हो गई है। सीबीआई ने मप्र सहित देशभर के कोल ब्लाक पर नजरें गड़ा दी है। प्रिंसिपल डायरेक्टर आयकर (इन्वेस्टिगेशन विंग ) मप आरके पालीवाल कहते हैं क्रि कोयला कारोबारियों से 100 करोड़ से अधिक के हवाला कारोबार से जुड़े दस्तावेज बरामद किए गए हैं। उनके पास पांच दर्जन से अधिक बैंक अकाउंट भी मिले हैं। इनकी जांच की जा रही है।

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