शनिवार, 20 अगस्त 2016

मप्र में मुख्य सचिव को लेकर अफसरों में रार

मोदी का 360 डिग्री प्रोफाइलिंग फार्मूला दरकिनार
कोई करवा रहा अफसरों में तकरार, तो कोई पहुंच रहा संघ के द्वार
भोपाल। मप्र का अगला मुख्य सचिव कौन होगा इसको लेकर प्रदेश की नौकरशाही में रार छिड़ गई है। आलम यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 360 डिग्री प्रोफाइलिंग फार्मूले को दरकिनार कर अफसर इस पद को पाने के लिए साम, दंड, भेद में जुट गए हैं। इसके लिए जहां एक अफसर की छवि खराब करने के लिए उसे दूसरे अफसर से लड़वाया जा रहा है, वहीं जुगाड़ भी लगाया जा रहा है। यही नहीं कुछ अफसरों के भ्रष्टाचार की दबी फाइलों को निकलवाया जा रहा है। यह स्थिति इस लिए बनी है कि इस बार मुख्य सचिव के लिए 1980 बैच से लेकर 1985 बैच के करीब बीस आईएएस शह-मात के लिए चौसर बिछाने में लगे हैं। नए सीएस को लेकर सारे समीकरण 2018 के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर ही लिए जाएंगे।
उल्लेखनीय है मुख्य सचिव एंटोनी डिसा 31 अक्टूबर को रिटायर होंगे। एक साल पहले तक माना जा रहा था कि निर्मला बूच के बाद 1982 बैच की आईएएस अरूणा शर्मा को प्रदेश की दूसरी महिला मुख्य सचिव होने का गौरव प्राप्त होगा, लेकिन उनके केंद्र में जाने के साथ ही अगले मुख्य सचिव का गणित गड़बड़ा गया। और इस दौड़ में 1985 बैच के इकबाल सिंह बैंस का नाम शामिल होने से मुकाबला रोचक बन गया है। दरअसल, डिसा के रिटायरमेंट के पहले ही मुख्य सचिव वेतनमान के तीन अफसरों को अपर मुख्य सचिव बनाना जाना तय है। ऐसे में पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की पूर्व अपर मुख्य सचिव अरुणा शर्मा के केंद्र में जाने से 1985 बैच के दीपक खांडेकर और फिर 1982 बैच के राकेश अग्रवाल की सेवानिवृत्ति के बाद 1985 बैच के ही प्रभांशु कमल अपर मुख्य सचिव बन गए हैं। अब अपर मुख्य सचिव के लिए वर्ष 1985 बैच के ही इकबाल सिंह बैंस की बारी है अगर केंद्र में पदस्थ अफसर राघवचंद्रा, स्नेहलता श्रीवास्तव, विजया श्रीवास्तव, आलोक श्रीवास्तव, रश्मि शुक्ला शर्मा और जयदीप गोविंद में से कोई वापस नहीं आता है तो अगस्त में सुरंजना रे के रिटायर होने के बाद बैंस का इसी वर्ष अपर मुख्य सचिव बनना तय है। अगर बैंस अपर मुख्य सचिव बनते हैं तो मुख्य सचिव के लिए उनकी दावेदारी मजबूत हो जाएगी, क्योंकि उन पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का हाथ है। लेकिन इसके लिए बैंस को अपने ऊपर के 20 अफसरों की वरियता को लांघना है।
सीएस के दावेदार
मप्र के अगले मुख्य सचिव का चयन वर्ष 2018 में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए किया जाना है। सरकार नहीं चाहेगी की किसी ऐसे अफसर को सीएस बनाया जाए जो 2017 या 18 में रिटायर हो। अक्टूबर में सेवानिवृत्त होने वाले डिसा के बाद वर्ष 80 बैच के अफसरों में सिर्फ पीडी मीना शेष रहेंगे, लेकिन उनकी सेवानिवृत्ति जुलाई 2017 में हो जाएगी, यानि उन्हें काम के लिए महज नौ महीने मिलेंगे। वे पिछले 6 वर्ष से भारत सरकार में प्रतिनियुक्ति पर हैं। हालांकि वे सीएस बनने के लिए संघ की परिक्रमा कर रहे हैं। मीणा को मुख्य सचिव बनवाने के लिए राजस्थान लॉबी के अन्य अफसर भी जोर लगा रहे हैं। लेकिन उनकी दाल गले इसके आसार कम ही नजर आ रहे हैं। ऐसी स्थिति में 82 बैच की अरूणा शर्मा का नाम उभर रहा है। उनकी सेवानिवृत्ति अगस्त 2018 में होगी। अभी 4 महीने पहले ही केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर गई हैं। और बताया जाता है कि वे मप्र आने के मूड में नहीं हैं। सरकार की मुश्किल यह है कि इस बैच में प्रवेश शर्मा के अलावा कोई ऐसा अफसर नहीं है, जिसका कार्यकाल नवंबर-दिसंबर 2018 में संभावित विधानसभा चुनाव के बाद तक हो। 2019 तक कार्यकाल वाले शर्मा ने वीआरएस मांग लिया है। इन हालात में वर्ष 84 बैच के बीपी सिंह जुलाई 2018 व आलोक श्रीवास्तव का कार्यकाल चुनाव के बाद तक है। वर्ष 83 बैच के सिर्फ एक अफसर मनोज गोयल ही कॉडर में मौजूद हैं, लेकिन समीकरण फिलहाल उनके पक्ष में नहीं हैं। यही स्थिति वर्ष 82 बैच के एसआर मोहंती की है, जिनका कार्यकाल 2020 तक है। लेकिन ईओडब्ल्यू ने हाईकोर्ट में उनके भ्रष्टाचार का सही बताकर उनकी राह में रोड़ा अटका दिया है। जेएस माथुर करीब 7 साल से केंद्र में हैं। उनके मप्र आने की संभावना नहीं के बराबर है। सीएस की दौड़ में 1984 बैच में कुल 8 अफसर हैं। इसमें एसीएस (गृह) बीपी सिंह तगड़े दावेदार के रूप में उभर सकते हैं। एसीएस (वित्त) एपी श्रीवास्तव मुख्य सचिव की दौड़ में हैं। किंतु नकारात्मक सोच इनकी राह में रोड़ा है। मुख्यमंत्री से नजदीकी साबित करने के लिए उन्होंने कुछ ऐसी फाइलों पर भी मुहर लगाई, जिसमें गुंजाइश नहीं के बराबर थी। 1985 बैच में तगड़े दावेदार के रूप में राधेश्याम जुलानिया सबसे ऊपर हैं। ऐसा माना जाता है कि वे मुख्यमंत्री के करीबी हैं। इस बैच के एसीएस दीपक खांडेकर और प्रभांशु कमल को बायपास कर इकबाल सिंह बैंस का नाम सामने आया है। ऐसे में इकबाल सिंह सबको पीछे छोड़कर बड़ी बाजी मार सकते हैं। इकबाल सिंह के आगे सूची में 1980 से लेकर 1985 तक के अफसरों की लंबी फेहरिस्त है।
बाधा हटाने में जुटे बैंस
अगर वरिष्ठता क्रमानुसार देखें तो डिसा के बाद उन्हीं के बैच(1980) के पीडी मीणा इस पद के सबसे पहले दावेदार रहे हैं। लेकिन मीणा का कार्यकाल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के शासन में उल्लेखनीय नहीं रहा है। ऐसे में मप्र में पदस्थ 1982 बैच के एसआर मोहंती, 1984 बैच के बीपी सिंह, 1985 बैच के राधेश्याम जुलानिया, दीपक खांडेकर और इकबाल सिंह बैंस प्रमुख दावेदारों में से हैं। यानी बैंस के मुख्य सचिव बनने की राह में यही चार आईएएस रोड़ा हैं। इसलिए अपनी राह की बाधाओं को हटाने के लिए बैंस ने ऐसा तिकड़म अपना है कि उनके कई प्रतिद्वंदी बिना लड़े ही चित हो गए हैं। बैंस ने सबसे पहले पंचायत एवं ग्रामिण विभाग के अपर मुख्य सचिव को ठिकाने लगाने के लिए गोंटिया बिछाई, क्योंकि जुलानिया भी मुख्यमंत्री के करीबी हैं। तथा माना जाता है कि मप्र का मुख्य सचिव बनने का रास्ता पंचायत एवं ग्रामिण विभाग से ही होकर जाता है। ऐसे में पंचायत एवं ग्रामिण विभाग में रमेश थेट की सचिव पद पर पदस्थापना के साथ ही यह तय हो गया था कि बैस की राह का यह रोड़ा जल्द दूर हो जाएगा।
सोची-समझी रणनीति
पंचायत एवं ग्रामिण विकास विभाग में जुलानिया और थेटे की पदस्थापना सोची-समझी रणनीति के तहत की गई। दरअसल जुलानिया और थेटे का विवादों से पुराना नाता है। ये दोनों अधिकारी हमेशा अपने बवाल के कारण चर्चा में रहते हैं। जुलानिया जहां अपने अक्खड़पन, नाफरमानी और मंत्रियों के साथ मनमानी के लिए जाने जाते हैं वहीं थेटे अपनी धमकियों के कारण चर्चा में रहते हैं। यानी दोनों का चरित्र और कार्यप्रणाली आग और मिट्टी तेल की तरह है। यह शासन और प्रशासन दोनों को मालूम है। फिर भी दोनों को एक ही विभाग में पदस्थ कर दिया गया है। ऐसे में विवाद तो होना निश्चित ही था। सो जुलानिया ने थेटे से उनके अधिकार छीन लिए हैं। थेटे ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर विवाद खड़ा कर दिया। ऐसे में समझा जाता है कि सीएस के प्रबल दावेदार जुलानिया के पैर उखाडऩे की खातिर ही थेटे को उनके ही विभाग में पदस्थ किया गया था। दरअसल राधेश्याम जुलानिया की प्रवृत्ति रही है कि वे विभाग में किसी को आगे नहीं बढऩे देना चाहते हैं। वे जिस विभाग में रहे हैं वहां तानाशाह की तरह काम करते हैं। उनकी इस प्रवृत्ति के कारण उनकी कई बार मंत्रियों से ठन चुकी है। ऐसे में पहले से ही बड़बोले और विवादित थेटे को वे कैसे बर्दाश्त कर पाते। सो उन्होंने थेटे का कद कम करके उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश की है। थेटे भी कहां कम हैं। उन्होंने भी अपने चिर-परिचित अंदाज में रोहित वेमूला की तरह आत्महत्या करने की धमकी दे डाली। ज्ञातव्य है कि थेटे पूर्व में भी आत्महत्या की धमकियां देते आए हैं। यही नहीं थेटे ने तो आईएएस गेस्ट हाउस के बाहर सड़क किनारे पेड़ के नीचे बैठ कर जुलानिया को भ्रष्ट अफसर बताते हुए उन पर जातिवादी मानसिकता से काम करने का भी आरोप लगाया। उन्होंने अपर मुख्य सचिव जुलानिया पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए कहा कि उन्होंने 30 हजार करोड़ रुपए का बजट हैंडल किया है। सिंचाई का रकबा बढ़ाने की वाहवाही जब वे लूटते हैं तो बांध टूटने की जिम्मेदारी किसकी है? बताते हैं कि जब जुलानिया को विवाद का मूल पता चला तो उन्हें इतनी ग्लानि हुई कि वे अवकाश पर विदेश अपने बेटे के पास चले गए। लेकिन अब पछताए क्या हो जब चिडिय़ा चुग गई खेत। इस विवाद से जुलानिया की ऐसी किरकिरी हुई की कर्मचारी संगठन भी उनके खिलाफ मोर्चा खोल बैठे हैं।
सोने पर सुहागा
उधर, सीएस की दौड़ में शामिल बैंस के लिए सोने पर सुहागा यह हुआ है कि राधेश्याम जुलानिया व वन विभाग के अपर मुख्य सचिव दीपक खांडेकर का केंद्र में अतिरिक्त सचिव पद के लिए इम्पैनलमेंट हो गया है। हांलाकि अभी सिर्फ इमपैनलमेंट की सूची जारी हुई है और ये तय नहीं हुआ है कि केंद्र में इन पदों पर मध्यप्रदेश के दोनों आईएएस ने रूचि दिखायी है या प्रतिनियुक्ति मांगी है। लेकिन विवादों के चलते राधेश्याम जुलानिया की प्रतिनियुक्ति की चर्चा जोर पकड़ रही है। वहीं खांडेकर ने प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली जाने के मूड में हैं। ऐसे में बैंस की राह में उन्हीं के बैच के जो अफसर खड़े थे लगभग उनका पत्ता ताक कटता नजर आ रहा है। बताया जाता है की बैंस के सीएस बनने की राह में कोई कानूनी बाधा न आए इसके लिए मुख्य सचिव डिसा को कम से कम तीन महीने के एक्सटेंशन की चर्चा भी हो रही है। मुख्यमंत्री की तरफ से कोई प्रस्ताव केंद्र में पहुंचता है तो उन्हें तीन या छह महीने के लिए एक्सटेंशन मिल सकता है। ऐसा कोई नियम भी नहीं है कि उनके एक्सटेंशन में रूकावट बने। ऐसे में संभावना यह भी जताई जा रही है कि डिसा को एक्सटेंशन देने के साथ ही बदले समीकरण के साथ नया मुख्य सचिव बनाया जा सकता है।
अचानक कैसे बैड मैन बन गए मोहंती...?
प्रदेश में मुख्य सचिव की दौड़ में शामिल अपर मुख्य सचिव सरकार के नौ रत्न से बैड मैन बन गए हैं। दरअसल, मध्यप्रदेश औद्योगिक विकास निगम के इंटर कार्पोरेट डिपाजिट स्कीम (आईसीडीएस) के करोड़ों के घोटाले के आरोपी एसआर मोहंती के भ्रष्टाचार के मामले में पहली बार ईओडब्ल्यू ने कोर्ट में लिखित में ये माना है कि घोटाले में मोहंती की संलिप्तता है। इससे मोहंती एक बार फिर बदनामी के साए में हैं। माना जा रहा है कि मोहंती के इस मामले में ईओडब्ल्यू का यह कदम भी सोची-समझी रणनीति का अंग है। दरअसल मोहंती के खिलाफ भ्रष्टाचार का ये जिन्न एक जनहित याचिका के जरिए फिर बाहर आया है और सरकार को चार सप्ताह में जवाब देने को कहा गया है। कभी दिग्विजय सिंह के नौ रत्नों में शामिल एडिशनल चीफ सेक्रेटरी एसआर मोहती इस सरकार में भी रत्नों के रत्न हैं। लेकिन उनके भ्रष्टाचार का मामला फिर से सामने आने के बाद अब इनके कारण प्रदेश सरकार की ही फजीहत होने लगी है। हाईकोर्ट ने शासन से हलफनामा में जवाब मांगा है कि मोहंती के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की इजाजत अभी तक क्यों नहीं दी गई। जांच एजेंसी ईओडब्ल्यू कोर्ट को बता चुकी है कि शासन से मंजूरी न मिलने के कारण मोहंती के खिलाफ कार्रवाई आगे नहीं बढ़ पा रही है जबकि घोटाले में उनकी संलिप्तता पाई गई है। मध्यप्रदेश औद्योगिक विकास निगम में तत्कालीन प्रबंध संचालक एसआर मोहंती के वक्त हुआ आईसीडीएस घोटाला इस सरकार के भी गले की फांस बन गया है। पहले सुप्रीम कोर्ट को जांच के निर्देश देना पड़ा तो अब हाईकोर्ट ने फटकार लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर जब कोई कार्रवाई नहीं हुई तो हाईकोर्ट में एक पीआईएल दायर की गई। जनहित याचिका दाखिल करने वाले मोहम्मद रियाजुद्दीन ने कोर्ट में बताया कि 20 जनवरी 2000 से 8 जनवरी 2004 तक तत्कालीन एमडी एसआर मोहंती के कार्यकाल में प्रायवेट कंपनियों को करोड़ों का लोन गैरकानूनी तरीके से दिया गया जिन्हें लोन दिए गए उनसे बैंक गारंटी भी नहीं ली गई। करोड़ों के इस लोन को वसूलने के लिए तत्कालीन एमडी ने सार्थक प्रयास भी नहीं किए। इससे शासन को करोड़ों का नुकसान हुआ है। चूंकि शासन का पैसा जनता का ही है इसलिए जनहित में इसे सुना जाए जबकि सुप्रीम कोर्ट पहले ही इस मामले की जांच के निर्देश दे चुकी है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आधार पर याचिका स्वीकार हुई तो घोटालेबाजों और बचाने वालों की परतें खुलना शुरू हो गई हैं। एक्टिंग चीफ जस्टिस राजेन्द्र मेनन और जस्टिस अनुराग श्रीवास्तव की बेंच के समक्ष जांच एजेंसी ईओडबल्यू ने स्पष्ट किया कि घोटाले में एसआर मोहंती की संलिप्तिता पाई गई है लेकिन चूंकि वे आईएएस अधिकारी हैं इसलिए आगे की कार्रवाई के लिए शासन की मंजूरी आवश्यक है, जो अभी तक मिल नहीं पाई है। शासन से मंजूरी मिलने के बाद ही आगे कार्रवाई की जा सकती है। इस मामले में मोहंती के खिलाफ कुछ और हो या न हो लेकिन उनके सीएस बनने के सपने पर पानी फिरना तय है।
क्या मोदी का फार्मूला होगा दरकिनार
इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्र औरा राज्य में ऊंचे और प्रमुख पद दिए जाने के लिए आईएएस अधिकारियों की स्क्रीनिंग के लिए 360 डिग्री(संपूर्ण) प्रोफाइलिंग शुरू की। लेकिन लगता है मप्र में नए मुख्य सचिव के चयन में इसको दरकिनार कर दिया जाएगा। प्रदेश में जिस तरह के हालात नजर आ रहे हैं उससे तो एक बात तय है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान प्रदेश में लगातार चौथी बार भाजपा की सरकार बनाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। कार्मिक विभाग के एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने बताया, कि स्क्रीनिंग के लिए 360 डिग्री प्रोफाइलिंग की इस प्रक्रिया के तहत अधिकारी के प्रदर्शन के अलावा कई जगहों से फीडबैक लिया जाना है। यानी राज्यों में मुख्य सचिव और केंद्र में सचिव या समकक्ष पद पर नियुक्ति से पहले अफसर के ऐनुअल कॉन्फिडेंशल रिपोट, सीनियर्स, जूनियर्स, सीवीसी, सीबीआई और खुफिया विभाग, सभी से फीडबैक लेने को कहा गया है। साथ ही वरिष्ठता का ध्यान भी रखने को कहा गया है। लेकिन मप्र में जिस तरह की तस्वीर नजर आ रही है उससे तो एक बात तय है कि राज्य में मोदी का फार्मूला नहीं चलने वाला है। हालांकि उत्तर प्रदेश में वहां के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मोदी के फार्मूले के आधार पर ही 6 जुलाई को 1982 बैच के आईएएस दीपक सिंघल को मुख्य सचिव बनाया है। वहां भी मुख्य सचिव बनने के लिए अफसरों में तमाम प्रशासनिक और सियासी दांव लगाए थे लेकिन अखिलेश यादव ने वरिष्ठता के आधार पर सिंघल का मुख्य सचिव अनाया है।
...तो क्या बैंस के लिए इतिहास दोहराएंगे शिवराज
मप्र काअगला मुख्य सचिव कौन होगा यह तो अक्टूबर में पता चलेगा, लेकिन प्रदेश की प्रशासनिक और राजनीतिक वीथिकाओं में यह चर्चा जोरों पर है कि इकबाल सिंह बैंस को उपकृत करने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान राकेश साहनी का इतिहास दोहरा सकते हैं। अगर चर्चा को मान भी लिया जा तो सवाल उठता है कि क्या मुख्यमंत्री उन 20 आईएएस अफसरों को नाराज करके ऐसा कदम उठाएंगे जो बैंस से वरिष्ठता क्रम में ऊपर हैं। मुख्य सचिव के दावेदारों में बैंस से सीनियर अफसरों में 1980 बैच के पीडी मीना, 1982 बैच की अरूणा शर्मा, एसआर मोहंती, राघवचंद्रा, स्नेहलता श्रीवास्तव, 1983 बैच के मनोज कुमार गोयल, 1984 बैच के वीपी सिंह, कंचन जैन, विजया श्रीवास्तव, आलोक श्रीवास्तव, रश्मि शुक्ला शर्मा, एपी श्रीवास्तव, जयदीप गोविंद, पीसी मीणा 1985 बैच के रजनीश वैश, राधेश्याम जुलानिया, दीपक खांडेकर और प्रभांशु कमल के बाद इकबाल सिंह बैंस का नंबर आता है। लेकिन जानकारों का कहना है कि जिस तरह राकेश साहनी को मुख्य सचिव बनाने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उनसे वरिष्ठ अफसरों को दरकिनार किया था उसी तरह बैंस के मामले में भी कर सकते हैं। सूत्र बताते हैं कि राकेश साहनी को मुख्य सचिव बनाने के मामले में डीओपीटी ने प्रदेश से जवाब-तलब भी किया था।
राकेश साहनी का इतिहास अगले मुख्य सचिव की दौड़ में मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव इकबाल सिंह बैंस का नाम जिस तेजी से उभरा है, उससे यह चर्चा शुरू हो गई है कि क्या वे 10 साल पहले मुख्य सचिव बने राकेश साहनी का इतिहास दोहराएंगे? साहनी 13 जनवरी 2006 को एसीएस बने, और 28 जनवरी 2006 को मुख्य सचिव बन गए थे। उन्होंने 16 वरिष्ठ अफसरों को पीछे छोड़ दिया था। साहनी जिस वक्त मुख्य सचिव बने थे, उस समय अजीत रायजादा, डीएस राय, बाला सुब्रमण्यम, संदीप खन्ना जैसे तेज तर्रार अफसर की लंबी फेहरिस्त थी। कमोबेश, यही स्थिति अब इकबाल सिंह के साथ बन रही है। 1972 बैच के राकेश साहनी को प्रमुख सचिव से अतिरिक्त मुख्य सचिव बनने के लिए एक साल से अधिक समय तक का इंतजार करना पड़ा था, जब विजय सिंह मुख्य सचिव थे। करिश्मा ये हुआ कि 13 जनवरी 2006 को वे अतिरिक्त मुख्य सचिव के रूप में पदोन्नत हुए और 28 जनवरी को वल्लभ भवन में मुख्य सचिव की कुर्सी पर बैठे दिखाई दे रहे थे। इकबाल सिंह भी इसी दौर से गुजर रहे हैं। उनके बेहद करीबी मित्र और बैचमेट बैजेंद्र कुमार पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में एक वर्ष से अधिक समय से मुख्यमंत्री के अतिरिक्त मुख्य सचिव बने हुए हैं। जबकि, इकबाल सिंह उनसे पहले प्रमुख सचिव के पद पर पदोन्नत हुए और अभी तक अतिरिक्त मुख्य सचिव नहीं बन पाए।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें