शनिवार, 20 अगस्त 2016

गरीबों को रास नहीं आ रहे सरकार के मकान

21,482 करोड़ स्वाहा फिर भी...
भोपाल। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि जिस देश में 90 करोड़ भारतीय या 75 फीसदी परिवार औसतन 5 सदस्य के साथ दो कमरे के या उससे छोटे मकान में रहते हैं उस देश में गरीबों को सरकार द्वारा बनाए गए मकान रास नहीं आ रहे हैं। इस बात का खुलासा हुआ है केंद्र सरकार की एक रिपोर्ट में। रिपोर्ट के अनुसार 10 वर्षों के दौरान, केंद्र सरकार ने 21,482 करोड़ रुपए शहरी गरीबों के लिए घर बनाने पर खर्च किया हैं लेकिन इनमें से 23 फीसदी घर खाली हैं। यानी 10,32,433 मकानों में से 2,38448 मकान खाली हैं। इनमें से मध्य प्रदेश में 26,004 मकान खाली हैं। यह अजीब विडंबना है कि एक तरफ लाखों आवास खाली पड़े हैं और दूसरी ओर करोड़ों लोगों के सिर पर छत नहीं है। दरअसल सरकार द्वारा विभिन्न योजनाओं के तहत बनाए गए मकानों की डिजाइन और गुणवता इतनी खराब रहती है कि लोग ऐसे मकानों में रहने से कतराते हैं। आलम यह है कि इन 23 फीसदी आवासों में 2005 से कोई रहने वाला नहीं है। एक मोटे अनुमान के अनुसार देश में करीब ढाई करोड़ लोग छत के लिए मोहताज है। केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा सबको आवास लक्ष्य को लेकर योजनाएं बनाई जाती है। मप्र में गरीबों को आवास उपलब्ध कराने के लिए केंद्र सरकार द्वारा राजीव आवास योजना,जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन और सरदार पटेल अर्बन हाउसिंग स्कीम के तहत 2011 से अभी तक 11,8,15,28,936 रूपए की राशि मिली है। गरीबों के लिए आवास बनाए जाते हैं, फिर भी गरीब लोगों को खुले में सोते या इधर-उधर सड़क या किसी पुल या अन्य स्थान पर कच्ची पक्की झोपड़ी बनाकर रहते हंै। आखिर ऐसा क्यों?
जटिल शासकीय प्रक्रिया
दरअसल, हर व्यक्ति चाहता है कि उसका अपना एक घर हो। इसके बावजुद वह शासकीय मकान लेने से वंचित रहता है। दरअसल, शासकीय मकानों की पात्रता पाने के लिए जटिल शासकीय प्रक्रियाएं हैं। संसद में पेश रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार द्वारा सतत प्रयासों के बावजूद झुग्गी में रहने वाले लोग उचित बुनियादी ढांचे और आजीविका के साधन की कमी के कारण सरकार द्वारा निर्मित घरों में स्थानांतरित करने के लिए अनिच्छुक हैं। रिपोर्ट के अनुसार झुग्गी बस्ती में रहने वालों के लिए जो सरकारी आवास बने हैं वे आवास मानव निवास के लिए अयोग्य हैं, भीड़भाड़ है, दोषपूर्ण व्यवस्था है और इमारतों के डिजाइन इस तरह हैं कि संकीर्णता या सड़क की दोषपूर्ण व्यवस्था, वेंटिलेशन, प्रकाश, या स्वच्छता सुविधाओं का अभाव है।
नए मकान अक्सर बिजली और पानी की कमी होती है, जो बस्तियों में सस्ती, अक्सर अवैध कनेक्शन उपलब्ध होती है। सरकार ने भी स्वीकार किया कि नए मकान आम तौर पर कार्यस्थलों के पास नहीं हैं। मप्र के संदर्भ में बात करें तो गरीबों को मुफ्त या सस्ता मकान उपलब्ध कराने के लिए ढेरों योजनाएं बनीं, उनके लिए समय पर फंड भी दिए गए, लेकिन समय पर फंड का उपयोग नहीं होने से ढेरों मकानों का निर्माण अधूरा रह गया। राज्य में सबसे पहले इंदिरा आवास योजना के तहत प्रदेश में गरीबों के लिए मकान बनाने की योजना बनी। फिर जवाहरलाल नेहरू शहरी नवीकरण योजना जेएनएनयूआरएम के तहत बेसिक सर्विसेस फार अर्बन पूअर्स (बीएसयूपी) के लिए 2008 में शहर के भीतर की झुग्गी बस्तियों को शहर के बाहर शिफ्ट करने के लिए मकान निर्माण की स्वीकृृति केंद्र सरकार ने दी। वहीं राजीव आवास योजना के तहत शहर के भीतर मौजूद झुग्गियों को जहां तक हो सके उसी जगह पर सारी सुविधाएं मुहैया कराने की योजना बनी। लेकिन आज तक शहर झुग्गी मुक्त नहीं हो सके हैं।
मप्र में 26,004 मकान खाली
मध्य प्रदेश में शहरी गरीबों को आवास उपलब्ध कराने के लिए बने मकानों में से 26,004 खाली हैं। यह आवास या तो अपराधियों का अड्डा बन गए हैं या खाली पड़े-पड़े जर्जर हो रहे हैं या फिर अतिक्रमण की भेंट चढ़ गए हैं। इसको इसी से समझा जा सकता है कि अकेले मध्यप्रदेश में 45 फीसदी आवास खाली हैं। इस तरह से सरकारी धन की बर्बादी हो रही हैं वहीं देश में एक करोड़ से अधिक बंगले खाली पड़े हैं, इन आधुनिक सुविधाजनक साज-सज्जायुक्त बंगलों में कोई रहता नहीं। वे पिकनिक स्थल हैं। दूसरी ओर लाखों लोग सिर छुपाने के लिए एक अदद छत के मोहताज है। 2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक देश में एक करोड़ दस लाख घरों में रहने वाला कोई नहीं हैं। एक तरफ सरकार नियत समय सीमा में सबको आवास देने की नीति पर काम कर रही है। वहीं पैसे वालों के पास एक से अधिक मकानों के होने से सामाजिक विषमता बढ़ती जा रही है। केंद्र में शहरी विकास मंत्रालय और राज्यों में नगरीय विकास मंत्रालय इस दिशा में आगे बढ़े हंै। इसके बावजूद सबको आवास का सपना पूरा नहीं हो पा रहा है। गरीबों को आवास उपलब्ध कराने के लिए वहनीय आवासीय योजनाओं का प्रावधान, इनके नियम-कायदे और नित नई नीतियां बन रही हैं, इसके बावजूद दो करोड़ से अधिक लोगों के पास आवास सुविधा नहीं होना गरीबों के लिए बनाए लाखों मकानों में रहवास की दरकार और एक करोड़ से अधिक घरों में कोई रहने वाला नहीं होना विसंगति दर्शाता है। मप्र के अलावा महाराष्ट्र में 42, आंध्र प्रदेश 37, तेलंगाना में 24, गुजरात में 18, तमिलनाडु में 11 फीसदी और अन्य प्रदेशों में बड़ी संख्या में इस तरह के आवास खाली पड़े हैं। सिर ढकने को छत नहीं होने के बावजूद इन आवासों का खाली रहना विचारणीय है। आवास और शहरी गरीबी उपशमन मंत्रालय के अनुसार, खाली मकानों में 2,24,000 घर जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन (जेएनएनयूआरएम) के तहत बनाए गए हैं और 14,448 घरों का निर्माण राजीव आवास योजना (आरएवाई) के तहत किया गया है, जिसे अब बंद कर दिया गया है और जून 2015 में शुभारंभ किए गए प्रधानमंत्री आवास योजना में सम्मिलित किया गया है। यह जानकारी तब मिली है जब पांच साल के दौरान, मलिन बस्तियों में रहने वाले भारतीयों के अनुपात शहरी आबादी का 17 फीसदी से बढ़ कर 19 फीसदी हुआ है (आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार) और 33,000 में से 19,000 मलिन बस्तियां सरकार (2012 डेटा) द्वारा स्वीकार नहीं किए हैं।
पक्का आशियाना मिला नहीं, कच्चा घरौंदा भी गया
एक तरफ तो देश और मध्यप्रदेश में हर गरीब को रोटी, कपड़ा के अलावा मकान देने की मुहिम चलाई जा रही है और दूसरी तरफ सरकार द्वारा गरीबों के आवास तोड़कर उन्हें वैकल्पिक आवास तक नहीं दिये जा रहे हैं। गरीबी रेखा के नीचे गुजर कर रहे ऐसे तमाम हितग्राही पूरे प्रदेश में हैं जिन्हें इंदिरा आवास योजना, मुख्यमंत्री आवास योजना, होम स्टेड योजना, वनाधिकार योजना, मुख्यमंत्री अंत्योदय योजना आदि तमाम योजनाओं के बावजूद एक आशियाने के लिए भटकना पड़ रहा है। स्थिति यह है कि मध्यप्रदेश में अभी भी 24 लाख से अधिक परिवार छत विहीन मकानों में रहते हैं। केंद्र पोषित इंदिरा आवास योजना के तहत सरकारी मदद से पक्के आशियाने की चाह रखने वाले प्रदेश के 96 हजार परिवार परेशान हैं। पहली किस्त मिलते ही इन्होंने पक्के मकान की दीवारें खड़ी कर ली, लेकिन दूसरी किस्त मिली ही नहीं। इनमें से आठ हजार तो वे लोग हैं जो सरकारी मदद के भरोसे कच्चे घरोंदे तोड़ कर पक्का मकान बना रहे थे। उनके सर पर तो छत तक नहीं बची है। दरअसल गरीब परिवारों की फजीहत योजना के क्रियान्वयन में लापरवाही के कारण हुई है, जिसके चलते केंद्र सरकार ने दूसरी किस्त रोक दी है।
उल्लेखनीय है कि इंदिरा आवास योजना के तहत सरकार गरीबों को पक्का आशियाना बनाने के लिए आर्थिक मदद देती है। वर्ष 2014-15 के लिए प्रदेश में 1 लाख 10 हजार मकान बनाने की मंजूरी दी गई। इनमें से 96 हजार परिवारों को पहली किस्त (35 हजार) भी मिल गई। मगर भवन निर्माण का काम इस स्तर पर शुरू नहीं हो सका। इसमें कुछ लापरवाही सरकारी तंत्र की तो कुछ हितग्राहियों की भी रही। इसका सर्वाधिक खामियाजा उन 8 हजार परिवारों को उठाना पड़ रहा है, जिन्होंने सरकारी मदद की आस में कच्चे घरौंदे तोड़ पक्का मकान बनाने का काम शुरू कर दिया। बिना छत बारिश का मौसम इन्हें भारी पड़ रहा है। ये परिवार पहली किस्त से दीवारें खड़ी कर चुके हैं और इसका सरकारी एजेंसी से भौतिक सत्यापन भी करा दिया है। मगर दूसरी किस्त नहीं मिल पा रही है। इसकी वजह है समग्र रूप से प्रदेश का योजना के क्रियान्वयन में खराब प्रदर्शन। इसके चलते केंद्र सरकार ने आगे की राशि रोक ली है। इन परिवारों का कहना है कि योजना में दूसरे लोग अगर ठीक काम नहीं कर रहे तो हमारा क्या कसूर। बताया जाता है कि प्रदेश के हर जिले में लोग इंदिरा आवास योजना के तहत पक्के मकान बनाने के लिए परेशान हैं किंतु अलीराजपुर, अशोकनगर, बालाघाट, छतरपुर, दमोह, कटनी, मुरैना, शाजापुर, सीधी, सिंगरौली आदि जिलों में एक भी मकान का सत्यापन नहीं हो पाया है। इस कारण इनका आशियाना अभी भी अधूरा पड़ा हुआ है। इस संदर्भ में पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव कहते हैं कि केंद्र सरकार से इस मसले पर चर्चा की गई है। जल्द ही राशि मिल जाएगी। वह कहते हैं कि प्रदेश के हर व्यक्ति का अपना पक्का मकान हो इसके लिए प्रदेश सरकार निरंतर प्रयासरत है।
24 लाख अभी भी वंचित
प्रदेश में 24 लाख से अधिक परिवार अभी भी छत विहीन मकानों में रहते हैं। वैसे इनकी संख्या घटी है। जनगणना 2011 के अनुसार प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में एक करोड़ 35 लाख परिवारों में से 37 लाख 14 हजार 723 कच्चे मकानों में निवास करते थे, लेकिन केन्द्र सरकार की इंदिरा आवास योजना सहित मप्र सरकार द्वारा प्रारंभ की गई मुख्यमंत्री ग्रामीण आवास योजना में अभी तक 13 लाख परिवारों को पक्के मकान निर्मित कर दिए जा चुके हैं, लेकिन इन मकानों की गुणवत्ता पर सवाल उठने लगे हैं। इसी कारण पिछले महीने एक बैठक में सीएस एंटोनी डिसा ने कहा था कि प्रत्येक गांव में रॉ- मटेरियल एक साथ क्रय किया जाए, जिससे मकानों के निर्माण की गुणवत्ता में सुधार आ सके। वैसे निर्माण सामग्री की दरें महंगी होने से 70 हजार या सवा लाख रुपए में मकान का निर्माण संभव नहीं है। प्रदेश में गरीबों को पक्के मकानों की दरकार सालों से रही है। छत विहीन आवासों में अभी भी प्रदेश के 24 लाख 9 हजार 854 परिवार निवास करते हैं, जबकि इसके पहले यह संख्या 37 लाख 14 हजार 723 हुआ करती थी। बीते छह सालों में 13 लाख 4 हजार 869 परिवारों को पक्के मकान बनाकर दिए जा चुके हैं, परन्तु केन्द्र सरकार द्वारा तय मापदण्ड में इंदिरा आवास योजना में प्रत्येक पक्के कुटीर का निर्माण 70 हजार रुपए में कराया जाता है, जबकि मुख्यमंत्री ग्रामीण आवास योजना में यह मकान सवा लाख रुपए में। मुख्यमंत्री अंत्योदय आवास योजना में भी बहुत कम राशि 70 हजार में मकान निर्मित कर आवंटित किया जाता है। इतनी कम राशि में 15+20 फीट के मकान और उसमें टायलेट का निर्माण आज के समय में संभव नहीं है। क्योंकि इस समय रेत, गिट्टी, सीमेंट तथा ईट खरीदी की दर बहुत महंगी हो चुकी है। इसके साथ ही आवास निर्माण करवाने वाले ठेकेदार को मजदूरी के साथ ही स्वयं की मेहनत भी निकालना होता है। यदि उसे उक्त निर्माण में कोई फायदा नहीं होगा, तो ठेकेदार काम ही नहीं करेगा। इस कारण पक्के कुटीर निर्माण की गुणवत्ता पर सवाल उठते रहे हैं। क्योंकि हितग्राही को भी इसमें 10 प्रतिशत राशि मिलाना पड़ता है। सरकार ने अभी तक इंदिरा आवास में 7 लाख 36 हजार 337 आवास, होम स्टेड योजना में एक लाख 36 हजार 190, वनाधिकार योजना में 53 हजार 360 मकान, मुख्यमंत्री अंत्योदय योजना में 50 हजार 405, मुख्यमंत्री ग्रामीण आवास में 3 लाख 28 हजार 577 मकानों का निर्माण किया है।
20 हजार मकान जर्जर
एक तरफ जहां प्रदेश में आज भी 24 लाख परिवार छत विहीन मकान में रह रहे हैं वहीं, प्रदेश में बन कर तैयार करीब 9 हजार मकान जर्जर हो गए हैं। जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीनीकरण मिशन (जेएनएनयूआरएम) स्कीम के तहत प्रदेशभर में 25 हजार मकान दो साल पहले बनकर तैयार हैं, लेकिन इनमें से करीब 5 हजार मकान का ही आवंटन हो पाया है। 20 हजार के लगभग मकान अब भी खाली हैं। शहरों के बीचों-बीच बने इन मकानों पर 780 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। इस स्कीम के तहत भोपाल में सबसे अधिक 11,500 मकान बनाए गए हैं, इसमें से करीब दो हजार मकान आवंटित हो चुके हैं बाकी के साढ़े 9 हजार मकान अब भी खाली हैं। ये मकान अब जर्जर होने लगे हैं। इन मकानों की दरवाजे, खिड़कियां टूटने लगी हैं दीवारों व छतों से सीमेंट झडऩा शुरू हो गया है। इसके बाद भी मकान गरीबों को आवंटित नहीं हो पा रहे हैं। इसकी मुख्य वजह हितग्राहियों द्वारा उनके हिस्से के रुपए नहीं दिया जाना है। प्रदेश में भोपाल, जबलपुर, इंदौर और उज्जैन शहरों को जेएनएनआरयूएम योजना में शामिल किया गया था। इसके तहत इन शहरों को झुग्गी मुक्त बनाए जाने के लिए ई-डब्ल्यूएस आवास बनाए गए यह मकान 2008 से 2012 के बीच में बने थे। ये मकान सभी शहरों में बनकर तैयार हो चुके हैं। अधिकतर मकान दो साल पहले बनकर तैयार हो गए थे, इसके बावजूद भी 80 फीसदी मकानों को आवंटन नहीं हो पा रहा है। स्थिति यह है कि इन मकानों में लोग अवैध रूप से कब्जा करने लगे भोपाल सहित अन्य शहरों में हाउसिंग बोर्ड, विकास प्राधिकरणों और नगरीय निकायों द्वारा यह मकान बनाए गए हैं। प्रदेश में इंदिरा आवास योजना के हाल लक्ष्य :112752 (परिवार) मंजूर : 110727 पहली किस्त मिली: 96864 दूसरी का इंतजार: 8733 (नोट : आंकड़े वर्ष 2014-15 के )
इन जिलों में सर्वाधिक ऐसे परिवार पूर्वी निमाड़: 1594 उज्जैन: 1203 धार: 1064 खरगोन: 925 बैतूल: 468 बुरहानपुर: 390 देवास: 296 इंदौर: 259 रतलाम: 240 जबलपुर: 218 श्योपुर: 212
आवंटी नहीं दे पा रहे राशि
जेएनएनयूआरएम स्कीम के तहत बने मकानों को उन लोगों को दिया जाना है, जिनकी झुग्गियों की जगह से हटाया गया है। मकानों के लिए हितग्राहियों को 1 लाख 50 हजार रूपए सरकार को देना है। यह राशि आवंटी नहीं दे पा रहे हैं इस वजह से मकान खाली पड़े हैं। हालांकि इन हितग्रहियों के लिए सरकार अपनी गारंटी पर लोन मुहैया करा रही है, लेकिन की प्रक्रिया के लिए दस्तावेज न होने सहित अन्य कारणों से इन आवंटियों को लोन भी नहीं मिल रहा है इन समस्याओं के चलते इन आवासों की स्थिति खराब होती जा रही है।
केंद्र द्वारा कटौती
प्रदेश सरकार ने वर्ष 2022 तक हर गरीब को घर देने का लक्ष्य निर्धारित किया है, लेकिन योजना में केंद्र सरकार द्वारा कटौती कर दी गई है। इसके कारण अब प्रदेश सरकार की परेशानियां बढ़ती दिख रही हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले गरीबों को मकान बनाने के लिए इंदिरा आवास योजना के तहत राशि दी जाती है। योजना में एक व्यक्ति को करीब 70 हजार रुपए दिए जाते हैं। यह राशि वापस नहीं करनी होती है, इस कारण अधिकारियों द्वारा इस योजना के तहत बहुत कम मकानों को मंजूरी दी जा रही है। यदि जमीनी स्तर पर देखें तो एक पंचायत में मुश्किल से सालभर में एक या दो मकान ही दिए जाते हैं। इनमें भी आरक्षण का मामला फंस जाता है। इधर मुख्यमंत्री आवास योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों को मकान बनाने के लिए एक लाख रुपए का ऋण दिया जा रहा है। इसमें से 50 हजार रुपए की राशि उनको किश्तों में वापस करनी होगी। इस योजना के तहत तो बड़ी संख्या में गरीबों को मकान के लिए ऋण दिया जा रहा है, लेकिन इंदिरा आवास योजना के तहत बहुत कम गरीबों को मकान आवंटित किए जा रहे हैं।
यह है योजना
एक मकान की कीमत 3 लाख 90 हजार रूपए
केंद्र सरकार की राशि 96,800 रुपए
राज्य सरकार की राशि 38,700 रूपए
सरकारी निर्माण एजेंसी की राशि 1,04,500 रुपए
हितग्राहियों को देना है 1,50,000 रूपए
होम स्टेड में फंसे 15 हजार परिवार
केंद्र सरकार ने गरीबों को आवास देने के लिए वर्ष 2010 में इंदिरा आवास योजना सहित होम स्टेड योजना शुरू की थी। इस योजना में बीपीएल परिवारों को 45 हजार रुपए दो किस्तों में दिए जाने थे। पहले ऑफ लाइन व्यवस्था होने के कारण पहली किस्त तो हितग्राहियों को मिल गई, लेकिन अब केंद्र सरकार ने इस योजना को ऑनलाइन कर दिया है, जिससे पैसा सीधे हितग्राही के खाते में पहुंच सके, लेकिन पोर्टल में तकनीकी खामी होने के कारण फंड सेंक्शन नहीं हो पा रहा है और न ही हितग्राही के खाते में पहुंच पा रहा है। इस मामले में ग्रामीण एवं पंचायत विकास विभाग के मंत्री गोपाल भार्गव का कहना है कि इस मामले में अफसरों से जानकारी लेकर आगामी कार्रवाई करेंगे। अगर पोर्टल की समस्या के कारण होम स्टेड योजना के हितग्राहियों को भुगतान नहीं हो रहा है, तो दिल्ली में मंत्रालय से चर्चा कर समस्या का निराकरण कराया जाएगा। जब इस विषय में ग्रामीण रोजगार डायरेक्टर वीके ठाकुर से बात की, तो उन्होंने बताया कि ऑनलाइन प्रॉब्लम होने के कारण भुगतान नहीं हो पा रहे हैं। हमने इस मामले की जानकारी केंद्र सरकार को भेज दी है। ज्ञातव्य है कि होम स्टेड योजना के तहत हितग्राही को पट्टे की जमीन देने के बाद एक कमरा, किचन और लेट-बाथ के निर्माण के लिए 45 हजार रुपए दिए जाने थे। मध्यप्रदेश में इस योजना के तहत वर्ष 2011-12 व वर्ष 2013-14 के हजारों हितग्राहियों को मकान बनाने के लिए 45 हजार रुपए मिलना थे, लेकिन केंद्र सरकार से एक किस्त मिलने के बाद दूसरी किस्त ऑनलाइन प्रक्रिया में फंस गई। उल्लेखनीय है कि पहली होम स्टेड योजना वर्ष 2010-11 में शुरू हुई तथा 2011-12 में स्वीकृत की गई। दूसरी योजना 2012-13 में शुरू हुई तथा 2013-14 में स्वीकृत हुई। वर्ष 2011-12 व वर्ष 2013-14 में होम स्टेड योजना के तहत 15 हजार परिवार अधूरे मकान बनाकर इस योजना मे फंस गए हैं। ये सभी मकान अधूरे पड़े हैं।
अब 15 लाख घर देगी सरकार
पुरानी योजनाओं के तहत बने मकान अभी अधर में है कि राज्य सरकार ने प्रदेश के करीब 15 लाख (10 लाख ग्रामीण व 5 लाख शहरी) लोगों को अपना घर देने की तैयारी कर ली है। मप्र आवास गारंटी विधेयक 2015 के तहत प्रदेश के ऐसे स्थाई निवासी को रियायती दर (अफोर्डेबल प्राइस) पर जमीन अथवा मकान मिलेगा, जिनके पास ना तो अपनी छत है और ना ही जमीन। खासबात यह है कि इस कानून के दायरे में आने के लिए आय की सीमा और जाति के आरक्षण का बंधन नहीं है। इसके लिए केवल एक शर्त रहेगी कि परिवार में किसी भी सदस्य के नाम पर जमीन यास मकान नहीं होना चाहिए। विधेयक के ड्राफ्ट को वरिष्ठ सचिवों की कमेटी ने स्वीकृति दे दी है। आश्रय शुल्क के रूप में जमा करीब 500 करोड़ रुपए जमीन खरीदकर कानून के दायरे में आने वाले परिवारों को प्लॉट अथवा मकान बनाकर दिए जाने का प्रावधान किया गया है। बता दें कि भोपाल में भोपाल में 50 व इंदौर में 87 करोड़ जमा हैं। बिल पर काम कर रही कमेटी ने फस्र्ट फेस में 2011 की जनगणना को आधार बनाते हुए करीब एक लाख पात्र लोगों को चुना है। इसमें शहरी क्षेत्र में 42 हजार 312 तथा ग्रामीण क्षेत्र में 23 हजार 23 लोग भूमिहीन मिले हैं।
पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव का कहना है कि आवास गारंटी बिल के तहत पात्र नहीं होने के बाद भी यदि कोई भूमिहीन आवेदन देता है तो उसके बारे में निर्णय शहर में नगर निगम या ग्रामीण इलाकों में नगर पालिका, नगर पंचायत व ग्राम पंचायत लेंगे। आवासहीन लोगों को मकान का अधिकार देने के लिए नए कानून का ड्राफ्ट तैयार हो गया है। इसके लिए 28 जुलाई को मंत्रिमंडल उप समिति की बैठक प्रस्तावित है। सरकार लोगों को अपना घर देने के लिए संकल्पित है। प्रस्तावित ड्राफ्ट के मुताबिक आवास गारंटी कानून में हर भूमिहीन को फ्लैट का लाभ देने के लिए हाउसिंग बोर्ड और विकास प्राधिकरण के ईडब्ल्यूएस और एलआईजी भी एक्ट के अधीन आएंगे। शासन चाहेगा तो उसे भूमिहीनों को प्राथमिकता के आधार पर देगा। एलआईजी में आय की सीमा 6 लाख रुपए और ईडब्ल्यूएस में 3 लाख रुपए है। शहर की सीमा से सटे 8 किमी के क्षेत्र में जितने भी बिल्डिंग प्रोजेक्ट हैं उनसे पंचायत कॉलोनाइजिंग एक्ट के तहत जो 6 फीसदी आश्रय शुल्क जमा होगा, उसी का उपयोग आवास गारंटी एक्ट में किया जाएगा।

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