शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

अरबों की योजनाएं, करोड़ों का भ्रष्टाचार

भोपाल। भ्रष्ट अफसरों पर भाजपा शासन जमकर मेहरबान है। अब तो शासन के निर्णय इन अफसरों के सामने घुटने टेकने जैसे हैं। हाल ही में मुख्य सचिव अवनि वैश्य के लिया गया फैसला हो या फिर लोकायुक्त में चालान पेश करने की जगह केस खत्म करने के लिए बनाया गया दबाव। भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के सामने हरेक मामले में भाजपा शासन घुटने टेक रही है।
जलसंसाधन विभाग के प्रमुख सचिव रहे निलंबित आईएएस अरविंद जोशी के पास करोड़ों रुपए किन स्त्रोतों से आया? अब इसकी अंदरूनी तौर पर पड़ताल शुरू हो गई है। इसकी भनक लगते ही विभाग के भ्रष्ट अफसर, सप्लायर और ठेकेदार भूमिगत हो गए हैं।
आधिकारिक सूत्रों के अनुसार प्रदेश में किसानों को भले ही सिंचाई योजनाओं का लाभ नहीं मिला हो, लेकिन भ्रष्ट अफसरों ने जमकर काली कमाई कर अपनी सात पुश्तों का इंतजाम कर लिया है। जोशी दंपत्ति के यहां से मिली करोड़ों की संपत्ति कहां से आई फिलहाज यह यक्ष प्रश्न है, लेकिन इस गोरखधंधे में शामिल रहे जलसंसाधन विभाग से जुड़े अधिकारियों, सप्लायरों और ठेकेदारों की अभी नींद उड़ी हुई है। इस मामले में वे आयकर से लेकर लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू तक की कार्रवाई पर नजर रखे हुए हैं। यह भी टोह ले रहे हैं कि कहीं मामला सीबीआई को तो नहीं सौंपा जा रहा है।
प्रदेश में सिंचाई का रकबा बढ़ाने के लिए केंद्र प्रवर्तित, नाबार्ड और विश्व बैंक के साथ ही राज्य की अरबों रुपयों की योजनाएं संचालित हो रही है। इनमें सालों से करोड़ों का घालमेल किया जा रहा है। विधानसभा में जहां कई बार यह भ्रष्टाचार गूंजा है, वहीं लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू के अलावा शासन स्तर पर कई गंभीर शिकायतें हुई है। हद तो यह हुई कि सरकार ने विभाग में खुद अफसरों को प्रभार देने की पैरवी की। जब करीब 1000 करोड़ के भ्रष्टाचार की शिकायत की गई तो इसे महज राजनीतिक चश्मे से देखकर मौन साध लिया गया। अब आयकर छापों के बाद सरकार के साथ ही आईएएस और आईपीएस भ्रष्टाचार को नेस्तनाबूद कर देने का संकल्प ले रहे हैं।
राज्य के घपलेबाज अफसरों ने केवल बाणसागर और हरसी परियोजना में ही करोड़ों के वारे–न्यारे कर लिए। बाणसागर परियोजना में चांदी काटने वाले अफसरों में बीके त्रिपाठी, मोहना प्रसाद मिश्रा, एके परवार, जेपी विश्वकर्मा, केसी राठौर, आरएस तिवारी, एमएल सिंह, पार्थ भट्टाचार्य, एपी सिंह, अनुपम कुमार श्रीवास्तव, सीएम त्रिपाठी, केएस श्रीवास्तव, बीपी मिश्रा, खरे, रामदिनेश त्रिपाठी, ठेकेदार एसके जैन, विजय मिश्रा, रामकुमार शर्मा, अमित तिवारी के अलावा सप्लायर कामधेनू इंटरप्राइजेस, संजय इंटरनप्राइजेस, रानी ट्रेडर्स, संगीता ट्रेडर्स, जगदीश ट्रेडर्स, थापर इलेक्ट्रिकल्स, एके इंजीनियरिंग, गुडलक इंटरप्राइजेस, आनंद फोटोकापी, रंजीत सिंह रीवा, ममता प्रिटिंग प्रेस और आदर्श इंटरप्राइजेस शामिल है। बाणसागर के 100 करोड़ से ज्यादा के घोटाले में ईओडब्ल्यू आधा दर्जन अफसरों के 11 ठिकानों पर छापे की कार्रवाई भी कर चुका है। इसमें कार्यपालन यंत्री एलएम सिंह के ठिकानों से करीब 3 करोड़ की संपत्ति के दस्तोवज, कार्यपालन यंत्री एसए करीम के यहां से सऊदी अरब के 2205 रियाल के अलावा 1 करोड़ से अधिक की संपत्ति और अन्य अफसरों की करोड़ों की संपत्ति का सुराग लगा चुका है। इसी तरह एमपी चतुर्वेदी, जे.बी. सिंह अवधनाराण मिश्रा, आरके बढ़ौलिया और सोनभद्र कंस्ट्रक्शन कंपनी देवलोंद के प्रोपाइटर मोतीलाल वैश्य भी इसकी जद में हैं।
जलसंसाधन विभाग के अफसरों ने ग्वालियर जिले की हरसी परियोजना में भी सरकार को जमकर चूना लगाया। इसी तरह ग्वालियर में भ्रष्ट अफसर और ठेकेदारों के लगभग एक करोड़ रुपए इकट्ठे कर लिए। नहर क्रमांक 412 से लेकर 842 तक का कार्य वर्ष 1998 में शुरू किया जाना था, लेकिन संबंधित अफसरों ने ठेकेदारों की मिलीभगत से नियमविरुद्ध इसकी समयावधि बढ़ा दी। इसक वजह से सरकार को लगभग 1 करोड़ का चूना लगा। यह कार्य इंदौर की की केटी कंस्ट्रक्शन कंपनी को दिया गया था। इसके संचालक टीकमचंद गर्ग ने खुद कार्य न करते हुए ग्वालियर के ठेकेदार गौतम सिंह गुर्जर को इसका जिम्मा देकर बंदरबांट कर ली। इस मामले में पीसी जैन, एमएस चंद्रवाल, बीके गर्ग, बीएमएस परमार, एडी यादव, बीआर प्रजापति, अजय सिंह तोमर, एमएस त्यागी, एसएस सिकरवार, ओएस धाकरे, आरएस सेंगर, टीकमचंद गर्ग, केदारनाथ और गौतम सिंह पर ईओडब्ल्यू ने शिकंजा कसा है।
भारत के नियंत्रक महालेख परीक्षक के प्रतिवेदन में हर बार जलसंसाधन विभाग के घोटालों पर उंगली उठाई गई, लेकिन सरकार ने इससे भी मुंह मोड़ लिया। नर्मदा ताप्ती कछार में 889.03 करोड़ रुपए की लक्षित 434 परियोजनाओं में से मात्र 108 परियोजनाएं ही पूर्ण की जा सकी और 104 परियोजनाओं का कार्य ही शुरू नहीं हो सका। बैतूल जिले में 4 करोड़ की बाकुड़ लघु सिंचाई तालाब योजना में भी घोटाला किया गया। एक ठेके का पुरोबंधन करके उसी दिन पुन: निविदा आमंत्रित करने तथा उसी ठेकेदार को ऊंची दर से कार्य दिए जाने की वजह से ठेकेदार को 1.43 करोड़ रुपए की अदेय वित्तीय सहायता दे दी गई और कार्य में चार साल की देरी हुई।

ये परियोजनाएं बनी दुधारू गाय
प्रदेश में निर्माणाधीन 10 वृहद परियोजनाओं में बाणसागर, राजीव सागर, माही, सिंध प्रथम चरण, सिंध द्वितीय चरण, बरियापुर बायीं नहर, राजघाट नहर, पेंच, कोलार, चंबल उद्वहन कनेरा के अलावा आधुनिकरण वाली आधा दर्जन परियोजनाओं में कोलार परियोजना की नहर प्रणाली का सुदृढ़ीकरण, सिंध रमौआ लिंक, चंबल चरण, हरसी नहर, तवा नहर प्रणाली का सुदृढ़ीकरण और बारना अफसरों, ठेकेदारों के लिए दुधारू गाय साबित हो रही है।

ये है जोशी की कमाई
आयकर छापों में अभी तकर करोड़ों की संपत्ति उजागर हो चुकी है। इसमें अरविंद जोशी, टीनू जोशी – नगद 3,04,38,350 रुपए, सोना–414.074 ग्राम मूल्य–6,64,640, विदेशी मुद्रा– 12391 यूएसडी, 1790 पाउण्ड 1050 यूरो।

एमएच जोशी – नगद–1,99,620 रुपए, सोना–416.450 ग्राम मूल्य –6,27,662 रुपए, चांदी–1842 ग्राम मूल्य–58556 रुपए।

अब एसीएस न बन सकेंगे
आयकर छापे में मिली करोड़ों की संपत्ति के बाद अरविंद जोशी तथा टीनू जोशी का सर्विस कैरियर खराब हो गया है। क्योंकि आय से अधिक संपत्ति रखने के मामले में राज्य सरकार ने उन्हें सस्पेंड कर दिया और यह कार्रवाई उनकी सीआर दर्ज होगी, जिससे वे न तो केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर जा सकेंगे और न ही एसीएस बन पाएंगे।

हाल ही में जेल एवं संसदीय कार्य विभाग के प्रमुख सचिव बनाए गए 79 बैच के आईएएस अरविंद जोशी तथा महिला एवं बाल विकास की प्रमुख सचिव टीनू जोशी के निवासों पर पड़े आयकर विभाग के छापे में मिली 3 करोड़ से अधिक की नगदी, जेवर तथा अन्य संपत्ति के बाद राज्य सरकार ने अखिल भारतीय सेवाएं (आचरण) नियम, 1968 के नियम–3 में वर्णित प्रावधानों के विपरीत आचरण करने पर जोशी दंपत्ति को सस्पेंड कर दिया और निलंबन के दौरान दोनों का मुख्यालय वल्लभ भवन में रहेगा। अर्थात किसी आईएएस का निलंबन होना उसके करियर का बर्बाद होने जैसा है, यह बात सीआर में दर्ज होने पर न तो इन्हें प्रमोशन का लाभ मिल सकेगा और न ही प्रतिनियुक्ति पर केंद्र में जा सकेंगे।

अधिकृत सूत्रों ने बताया कि 79 बैच के इन दोनों पति और पत्नी आईएएस दंपत्ति को पिछले साल ही केंद्र सरकार ने अतिरिक्त सचिव के पद पर इम्पॉयमेंट हुआ था और अगले तीन महीने बाद ही इन्हें केंद्र सरकार में जाने की अनुमति मिलने की संभावना थी, लेकिन जोशी दंपत्ति के निलंबित होने के बाद केंद्र में जाने का मामला जहां ठंडे बस्ते में चला गया है, वहीं दो साल बाद उनके एसीएस के पद पर प्रमोशन पाने की संभावनाएं भी धूमिल हो गई है। उधर नगद और अधिक संपत्ति नहीं मिलने की वजह से तत्कालीन समय में राज्य सरकार ने राजेश राजौरा को निलंबित नहीं किया था।

इनके यहां पड़े आयकर छापे
अभी तक आयकर विभाग द्वारा पूर्व आईएएस यूके सामल, तत्कालीन स्वास्थ्य आयुक्त राजेश राजौरा, अरविंद एवं टीनू जोशी के साथ ही रिटायर आईएएस एमए खान के यहां छापे की कार्रवाई की गई है।
विदेशों में भी खरीद रखी है अफसरों ने संपत्ति
प्रदेश के कई आला अफसरों ने विदशों में भी संपत्ति खरीद रखी है, जबकि कई अधिकारियों ने दिल्ली, हैदराबाद, बैंगलोर आदि में फार्म हाउस और फ्लैट खरीदे हैं। इनके पास यह संपत्ति कहां से आई, इसकी भी जांच आयकर विभाग को करनी चाहिए। यह मुद्दा आईएएस जोशी दंपत्ति के यहां निकली अकूत संपित्त से उठने लगा है।

आयकर छापे के लपेटे में आए जोशी दंपत्ति के घर से निकली अकूल संपत्ति से प्रशासनिक स्तर पर यहां चर्चा जोर–शोर से उठने लगी है कि जिन अफसरों ने विदेशों में संपत्ति खरीदी है, उनकी भी जांच कराई जानी चाहिए। क्योंकि जोशी दंपत्ति ही नहीं, बल्कि ऐसे और भी आईएएस अफसर है, जिनके पास अकूत संपत्ति मिल सकती है। कई अफसरों ने तो देश की राजधानी दिल्ली, चंडीगढ़, हैदराबाद, बैंगलोर तक में फार्म हाउस और फ्लैट खरीद रखे है तो कुछ ने केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर रहते हुए मलेशिया और सिंगापुर में करोड़ की जमीन अपने परिवार अथवा पुत्रों के नाम पर क्रय कर रखी है।

सूत्रों की माने तो दो जिले में कलेक्टर रहे एक आईएएस ने सिंगापुर में 3 एकड़ भूमि खरीद रखी है तो एक समय भोपाल के कमिश्नर रहे एक आईएएस ने भी सिंगापुर में अपने पुत्र के नाम पर फ्लैट ले रखा है। लंबे समय तक एक विभाग के प्रमुख सचिव रहते हुए और कुछ जिलों में कलेक्टरी करने वाले एक प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी ने मलेशिया और सिंगापुर में संपत्ति क्रय कर रखी है, जबकि एक पीएस ने कुछ साल पहले ही दो करोड़ की राशि खर्च कर दिल्ली में अपने फ्लैट का रेनुवेसन कराया है। दो प्रमुख सचिव स्तर के अफसरों ने एक सचिव के साथ मिलकर भोपाल जिले में ही लगभग 200 एकड़ जमीन क्रय की है। केंद्र में प्रतिनियुक्ति से दो साल पहले वापस लौटे एक पीएस स्तर के अधिकारी ने सिंगापुर में भूमि खरीद रखी है। एक अफसर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि ऐसे अफसरों को भी जांच के घेरे में लिया जाना चाहिए।

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