शनिवार, 27 फ़रवरी 2010

शिवराज की दूत क्यों बनीं सुषमा स्वराज?

इंदौर यानी अहिल्या नगरी में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में तीन दिनों तक दिग्गज नेताओं में कुनबे की दिशा, दशा और चरित्र पर जमकर मंथन किया। प्राकृतिक महौल के बीच हुए इस मंथन में अमृत निकला या नहीं अभी तक पता नहीं चल पाया है लेकिन हलाहल जरूर बाहर आ गया है।

इस हलाहल को निकालने का श्रेय (कुचेष्टा) पार्टी की वरिष्ठ नेत्री और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज को जाता है। उनके एक वक्तव्य से दो नेता ही नहीं दो राज्यों की प्रतिष्ठा दांव पर लग गई है। ये राज्य हैं गुजरात और मध्यप्रदेश। तथा दोनों नेता हैं इन राज्यों के मुख्यमंत्री यानी नरेन्द्र मोदी और शिवराज सिंह चौहान। दोनों सुषमा स्वराज को बड़ी दीदी मानते हैं लेकिन दीदी के एक वक्तव्य ने भाइयों के बीच लकीर खींच दी है।

सुषमा स्वराज ने अपने आपको मध्य प्रदेश का ब्रांड एंबेसडर खुद ही बना दिया है। कायदे से तो उन्हें कर्नाटक का ब्रांड एबेसडर होना चाहिए जहां से वे सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव भी लड चुकी है और जहां की भाजपा सरकार सुषमा के मुंह बोले रेड्डी बंधुओं की दम पर चल रही है। सुषमा स्वराज और नरेंद्ग मोदी में कभी नहीं बनी यह तो सभी जानते हैं। इसकी एक बडी वजह यह है कि जब सुषमा बहुत पहले अपने लिए राज्य सभा की सीट तलाश रही थी तो उनके लिए लाल कृष्ण आडवाणी ने नरेंद्ग मोदी से कहा था। मोदी ने गुजराती गौरव का गुब्बारा उछाल दिया था और आखिरकार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने विदिशा की अपनी सीट लोकसभा चुनाव में सुषमा को सौपी और खुद सुषमा के लिए प्रचार भी किया।
उल्लेखनीय है कि ऐशियाई शेरों को लेकर पहले से ही इन दोनों मुख्यमंत्रियों के बीच शीत युद्ध चल रहा था। मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जब कभी गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी से कुनों अभ्यारण्य के लिए ऐशियाई शेरों की मांग करते तो श्री मोदी उन्हें पहले अपने बाघो का ध्यान रखने की सलाह दे डालते। शेरों के हस्तांतरण को लेकर वर्षो से चल रहे इस शीत युद्ध में सुषमा स्वराज की टिप्पणी ने आग में घी डालने जैसा काम किया है।

पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में सब कुछ ठीक चल रहा था। पार्टी अध्यक्ष नीतिन गडकरी जहां युवाओं को ज्यादा तरजीह देने की बात कर रहे थे, वहीं आडवाणी भी चौथी पीढ़ी को जिम्मेदारी संभालने को तैयार रहने पर जोर दे रहे थे। इन सबके बीच गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी हीरो थे। पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जब तमाम नेता नरेन्द्र मोदी के सुशासन की कसीदे पढ़ रहे थे, तब सुषमा ने ये कहकर सबको चौंका दिया कि मध्यप्रदेश का प्रशासन गुजरात के मुकाबले ज्यादा संवेदनशील है।

पार्टी के ज्यादातर नेता सिर्फ मोदी मॉडयूल की तारीफ करते नहीं थक रहे थे। तब लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने मोर्चा संभाला और साफ किया कि गुजरात के मुकाबले मध्य प्रदेश किसी मायने में पीछे नहीं है। नरेन्द्र मोदी के बराबर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को खड़ा करना था कि पार्टी के भीतर एक नई बहस शुरू हो गई। यानी क्या बीजेपी के मोदीकरण से वाकई पार्टी को नुकसान हो रहा है।

हालांकि पार्टी प्रवक्ता इस मामले में स्पष्ट नजरिया तो नहीं रख सके, लेकिन चौहान की तारीफ करने से भी पीछे नहीं रहे। सियासी हलकों में सुषमा के बयान के मायने निकाले जा रहे हैं। दो दिन पहले ही गडकरी ने मंदिर निर्माण के लिए मुसलमानों से सहयोग की अपील की। यानी पार्टी अल्पसंख्यकों के करीब पहुंचना चाहती है। ऐसे में पार्टी को मोदीकरण चेहरे से बाहर निकालना ही होगा।

उम्मीद तो थी कि इंदौर में एसी टेंट में ही सही लेकिन प्रकृति के थोड़े करीब आकर, नए युवा अध्यक्ष की अगुआई में बीजेपी नेता कुछ नया सोचकर एक नई शुरुआत करेंगे पर लोगों को यह जानकर बड़ा अफसोस हुआ कि पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में सुबह शाम चले मंथन के बाद भी ये नेता अपनी पार्टी के लिए अमृत नहीं निकाल पाए।

अलबत्ता बीजेपी में एक नई बहस की शुरुआत हो गई है और जिसका मुख्य सूत्रधार सुषमा स्वराज को माना जाता हैं। पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जब तमाम नेताओं की उपस्थित में श्रीमती स्वराज के इस कथन ने सबको चौंका दिया कि मध्य प्रदेश का प्रशासन गुजरात के मुकाबले ज्यादा संवेदनशील है।

एक ही परिवार के दो सदस्यों के बीच फूट डालने की कोशिश तथा एक-दूसरे के खिलाफ भड़काने की सुषमा की कोशिश करार देने वाले राजनीतिक विश£ेषक अचरज से भरकर यह कहने में नहीं चूकते कि आखिर ये क्या हो गया है बीजेपी को, लगातार दो लोकसभा चुनावों में मात खाने के बाद बदले बदले से क्यों नजर आ रहे हैं पार्टी के तेवर।

सुषमा लोकसभा की सदस्य भी बनीं और जब आडवाणी के उत्तराधिकारी की बात चल रही थी तो आडवाणी ने बहुत से लोगों की दावेदारी को किनारे करते हुए सुषमा को लोकसभा में प्रतिपक्ष का नेता भी बनाया। सुषमा स्वराज अब लोकसभा में राजनाथ सिंह को भी आदेश देंगी जो हाल तक पार्टी के अध्यक्ष थे और उस नाते सुषमा स्वराज ही नहीं, पार्टी के सभी नेता उनका आदेश माना करते थे।

सुषमा स्वराज ने शिवराज सिंह की सरकार का गुणगान करने के लिए नरेंद्ग मोदी को निशाना क्यों बनाया यह तो अलग सवाल है लेकिन सुषमा ने कहा कि गुजरात सरकार को भाजपा के मुख्यमंत्रियों को मॉडल सरकार करार देने से पहले मध्य प्रदेश की सरकार की संवेदनशीलता देख लेनी चाहिए। मध्य प्रदेश मंे विकास भी हो रहा है और सुषमा की राय में संवेदनशील तरीके से हो रहा है। जाहिर है कि सुषमा ने एक तीर से दो शिकार किए है। शिवराज सिंह की संवेदनशीलता पर मोहर लगाई है और नरेंद्ग मोदी को एक बार फिर से हडका दिया है।

प्रतिपक्ष के नेता का पद लोकतंत्र में प्रधानमंत्री के बाद सबसे महत्वपूर्ण पद होता है। ब्रिटिश और अमेरिकी लोकतंत्र में तो प्रतिपक्ष के नेता को छाया प्रधानमंत्री कहा जाता है। अगर भाजपा सरकार में आई तो प्रधानमंत्री पद की स्वाभाविक दावेदार सुषमा स्वराज ही होंगी। ऐसे में नरेंद्ग मोदी जैसे कद के नेता से झंझट मोल लेने का काम कर के सुषमा स्वराज ने बचपने का परिचय दिया।

नरेंद्ग मोदी ने सुषमा स्वराज के इस बयान पर कुछ भी नहीं बोल कर राजनैतिक बडप्पन भी दिखाया और यह संदेश भी दिया कि वे सुषमा स्वराज को कुछ नहीं समझते। वैसे भ जिससे भाजपा दूसरी पीढी कहा जाता था वह अब पहली पीढी बन गई है और नितिन गडकरी के तौर पर पार्टी के पास सबसे युवा अध्यक्ष मौजूद है। रही शिवराज सिंह की बात तो उन्हें सुषमा स्वराज के प्रमाण पत्र की जरूरत नहीं थी। प्रमाण पत्र तो मध्य प्रदेश के मतदाता ने उन्हें दूसरी बार शान से मुख्यमंत्री बना कर दे दिया है।

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