सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

बिजली उपकरण खरीदी में हेराफेरी ?

मध्य प्रदेश में ऊर्जा विकास के लिए मिलाने वाला करोड़ों रूपया भ्रष्टाचार और अनियमितता की भेंट चढ रहा है. जहां एक और बिजली विभाग के अफसर बिजली उपकरणों की चोरी की रिपोर्ट लिखवाने में कतराते हैं तो दूसरी और बिजली उपकरणों की खरीदी में भी हेरफेर कर करोड़ों के वारे-न्यारे कर दिए जाते हैं. विकास कार्यों के लिए आने वाला पैसा किस तरह से अफसरों की तिजोरियों और बैंक के लॉकरों में जमा होता है. इसका खुलासा कुछ दिनों पूर्व मध्य प्रदेश और छतीसगढ़ में आइएएस अधिकारीयों के यहाँ पड़े छापों से हो जाता हैं. जिसमें करोड़ों रुपये की बेनामी सम्पत्ती उजागर हुई. जिसके बाद प्रदेश सरकार की जमकर किरकिरी भी हुई.

बिजली विभाग में भ्रष्टाचार का यह कोई पहला मामला नहीं है इससे पहले भी अल्प अवधी की बिजली खरीदी भ्रष्टाचार का मामला उजागर हुआ था. जिसमें एक ही समय में टेंडर और बिना टेंडर के अलग-अलग कीमतों (यानि टेंडर के द्वारा सस्ती और बिना टेंडर के द्वारा महंगी दरों) पर दूसरे राज्यों की बिजली कंपनियों से बिजली खरीदी गई थी. जिसमें अदानी समूह को सबसे ज्यादा फयादा देने की बात सामने आई थी. जिसके बिजली नियामक आयोग ने बिना टेंडर के जिन कीमतों पर बिजली खरीदी गई उसे दर को मानने से इनकार कर दिया था जिसकी जांच अभी भी चल रही है. बिजली उपकरण खरीदी में हुए लाखों का भ्रष्टाचार अब जाँच का विषय है ?

बिजली विभाग में उपकरण खरीदी का जो मामला प्रकाश में आया है उसमें इस बात का खुलासा हुआ है कि एक ही टेंडर पर अलग अलग कीमतों पर उपकरण खरीदे गए. और वह भी एक ही कंपनी से से. जो कि उपकरण खरीदी पर सवालिया निशान लगाता है ? खास बात यह है कि जिस पैसे से उपकरण खरीदे गए वह पैसा एशियन विकास बैंक से आया था. एशियन विकास बैंक ने आर्थिक मदद के तहत यह खरीदी वर्ष २००६ में की गई जिसमें लाखों का हेरफेर किया गया है. इस खरीदी में लगभग ८१ लाख रुपये का अतिरिक्त भुगतान करना पाया गया है. जो भ बिजली उपकरण खरीदे गए उनमें १३२ केवी सर्किट ब्रेकर, १३२ केवीसीटी एम्पिकयर, २०० केवी के फेब्रिकेटेड गेल्वेनैज्द टॉवर सहित ट्रांसफार्मर सुरक्षा उपकरण तथा लाइन कंट्रोल उपकरण खरीदे गए हैं. बिजली उपकरण खरीदी के इस मामले में पहले टेंडर निकालकर कंपनी को ठेका दे दिया गया. जिसके बाद अलग अलग समयावधि में एक ही सामान अलग अलग कीमतों पर खरीदा गया. इस खरीदी पर कंपनी का अपना ही तर्क है. कंपनी का कहना है कि बाजार में सामान का दाम बढ़ाने से उपकरणों की कीमतों में फर्क पड़ा है. खास बात यह है कि खरीदी के पूर्वानुमान में बिजली विभाग ने उपकरणों की आवश्यकता प्रदर्शित की थी. ऐसे में अलग अलग समयावधि की खरीददारी में कीमतें सामान न रखी जाना कई आशंकाओं को जन्म देता है ? बिजली उपकरण खरीदी में नियम कानून की भी अनदेखी की गई है. नियम के अनुसार टेंडर के समय में ही अलग अलग समयावधि की खरीदी पर एक सामान कीमतों का नियम उल्लेखित किया जाना था. लेकिन अनियमितता कर निजी फार्मों को लाभ पहुंचाने के लिए ऐसा किया गया.

बिजली चोरी के ज़्यादातर मामलों में चोरी की रिपोर्ट पुलिस में नहीं लिखवाई जाती. भले ही दोषियों ने लाखों करोड़ों की चपत ही क्यों न लगा दी हो. बीते सालों के रिकॉर्ड बताते हैं. चोरी के ज़्यादातर मामलों में रिपोर्ट लिखवाने से अफसर बचते हैं. जबकि राज्य विधुत मंडल ने बिजली चोरी के प्रकरणों में पुलिस को तुरंत सूचना दे प्राथमिकी दर्ज करने के निर्देश दिए गए हैं. लेकिन बिजली महकमें की ज़मीनी हकीकत कुछ और ही है. लगभग ४२ फीसदी मामलों के अलावा बाकी सभी मामले मैदानी तौर पर ही निपटा लिए गए. खास बात यह है कि ५० हज़ार से अधिक की बिजली चोरी के मामलों में जमकर लापरवाही बरती गई. जबकि छोटी राशि के लिए बिजली कटाने तक की कार्यवाही कर दी जाती है. परिणाम स्वरुप बिजली कंपनियां पांच हज़ार करोड से अधिक के घाटे में चल रहीं हैं. ग्रामीण स्तर पर तो हालत और भी ज्यादा खराब हैं. जहाँ ट्रांसफार्मर तक चोरी हो जाने की रिपोर्ट नहीं लिखवाई गई.

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