शनिवार, 20 फ़रवरी 2010

भारतीय खेती को तबाह करने का कानून

जीएम यानी जेनेटिकली मोडीफाइड खेती आम तौर पर उन बंजर यूरोपीय देशों में विकसित हुई है जहां खुद फसल उगाने का कोई जुगाड़ नहीं है। विकासशील देशों को मदद देने के बहाने इन लोगों ने प्रयोगशालाओं में बीज विकसित किए हैं और पूरी दुनिया में विकासशील देशों के विकसित शहरों में नेटवर्क और पेशेवर बद्विजीवियों और कृषि वैज्ञानिकों की एक जमात खड़ी कर के इन्हें बेचने का अभियान शुरू कर दिया है। अगर आप आयातित और नकली तौर पर विकसित कर के खेती को तबाह करने वाले संश्लेषित यानी जेनेटिकली मोडीफाइड यानी जीएम बीजों और फसलों की सार्वजनिक आलोचना करते हैं तो आपको जेल जाने से शायद कोई नहीं रोक पाएगा।
मंत्रिमंडल की बैठक में भी इस पर बात हो चुकी है और प्रस्ताव पेश हो चुका है कि जो भारत की खेती में विदेशी हस्तक्षेप का विरोध करेगा उसे कम से कम छह महीने की सजा या पचास हजार रुपए जुर्माना या दोनों अदा करने पड़ेेंगे। यह तो ईस्ट इंडिया कंपनी की दादागीरी से भी ज्यादा भयानक है। भारत की सरकार पता नहीं कब से इतनी कायर हो गई कि विदेशी कंपनियों और विदेशी हिताें को साधने के लिए अपने नागरिकों को अभियुक्त बनाने में तुल गई?
अमेरिका की एक मोसेंटो नाम की कंपनी है। दुनिया में बीटी बैंगन और जीएम बीजों का सबसे ज्यादा बड़ा कारोबार इसी का है। इस कंपनी में संत सिंह चटवाल की भी साझेदारी है जिसे आर्थिक भ्रष्टाचार करने के आरोप में बहुत दिनों तक अदालतों में घसीटने के बाद सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित करने की पहल की है।
भारत के संविधान में धारा 19 के तहत अभिव्यक्ति की आजादी का जो अधिकार दिया गया है उसके सीधे उल्लंघन का यह बेशर्म प्रयास मनमोहन सिंह की सरकार कर रही है और इससे जााहिर है कि मनमोहन सिंह किसानों का दर्द और धरती की कीमत आज तक नहीं समझ पाए। उन्हें मुद्रा कोष और विश्व बैंक के आंकड़े ही समझ में आते हैं।
अब सवाल यह है कि मोसेंटो जो हत्यारें बीज बना रहा है जिनसे पूरी दुनिया की खेती पर उसका एकाधिकार हो जाने वाला है उसकी मदद करने में भारत सरकार का क्या स्वार्थ है? एक स्वार्थ तो यह है कि देश में अकाल नहीं पड़ने का यह एक शॉर्ट कर्ट है और इसके कई राजनैतिक लाभ है। इसके अलावा कई नामी भारतीय कंपनियां भारत में मोसेंटो की दलाल है। इतना ही नहीं, भारत की संसद में भी ऐसे कई महारथी बैठे हैं जो कहते हैं कि आखिर मोसेंटो में बुराई क्या है?
भारत के जैव तकनीक और खाद्य सुरक्षा में से सबसे प्रसिद्व विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा पत्रकार रहे है और कई इस तरह के घपलों का भंडा फोड़ चुके हैं। जाहिर है कि उनकी राय साफ है और वह यह है कि जीएम बीजों के प्रचार करने के लिए और मोसेंटो जैसी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए भारत में एक पूरी लॉबी तैयार हो गई है जिस पर मोटा खर्चा किया जा रहा है तथा जिसे सरकार का भी समर्थन मिला हुआ है। ये लोग भारतीय कानून को माफिया शैली में लागू करना चाहते हैं और इसकी कीमत भारत की खेती और किसानों को चुकानी पड़ेगी।
मोसेंटो बीजों ने जो कहर उठाया है उसका नतीजा आप हरियाणा, पश्चिमी उड़ीसा और उत्तर प्रदेश के पश्चिमी इलाके में देख सकते हैं जहां बीज बेचने वालों ने पहले तो बहुत प्यार से बात की और किसानों को बाकायदा उपहार भी दिए। बड़े किसानों को मोटरसाइकिलें तक दी गई मगर एक फसल के बाद अगली फसल के लिए बीज मोटी रकम ले कर बेचे गए और राज्य सरकारों से कहा गया कि इन बीजों के अविष्कार में जो खर्चा हुआ है उसके बदले रॉयल्टी दी जाए।
बेचने का तरीका भी नायाब
पहले ये बीज सरकारों से मिल कर किसानों को मुफ्त में बांटे जाते हैं। बहाना प्रयोग का होता है। यह सही है कि बैंगन से ले कर चावल तक पहली फसल धुआंधार होती है। मगर जैसे कैंसर होता है वैसे ही धरती के सारे जीवन पोषक तत्व ये बीज चूस लेते हैं। अब यहां धरती इन अवैध बीजों की रखैल बन जाती है। इन बीजों के अलावा और कोई बीज यहां बोया ही नहीं जा सकता। खादान की आपूर्ति के बहाने दुनिया की कई सरकारें इन बीजाें को मान्यता दे चुकी है और अपने यहां की कृषि अनुंसधान परिषद या ऐसी ही किसी और संस्था से मान्यताएं दिलवा चुकी है।
भारत में एक बड़ा वर्ग है जो इन बीजों, जिनका डीएनए तक बदला जा चुका है, का विरोध कर रहा है और जब किसानों को समझाया गया तो किसानों का एक बड़ा आंदोलन भी इसके खिलाफ हो गया। भारत के विज्ञान और तकनीक मंत्रालय ने कानून मंत्रालय को पत्र लिख कर अनुरोध किया है कि जीएम बीजाें का विरोध करने वालों को कानूनी दंड मिले और उन्हें तुरंत जेल भेजा जाए क्योंकि वे देश के विरूद्व बयानबाजी कर रहे हैं।
यह एक निरर्थक और आपराधिक प्रयास था मगर जो खेत इन बीजों की पहली फसल से तबाह हो चुके हैं उन्हें फिर से खेती लायक बनाने में प्रति एकड़ सत्तर हजार रुपए तक का खर्चा आएगा और भारत सरकार के कृषि मंत्रालय में ऐसा कोई प्रावधान नहीं हैं कि इस खर्चे की भरपाई की जा सके। मगर सबसे बड़ी परेशानी की बात तो यही है कि अगर मल्टीनेशनल्स के दबाव में जीएम बीजों के विरोध को भारत में अपराध घोषित कर दिया गया तो भारत फिर से गुलाम देशों की कतार में चला जाएगा।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें